एक साधु गांव में प्रवचन दे रहे थे, जीवन प्रभु के सहारे ही चलता है ,जिसने उसके नाम का सहारा लिया उसे किसी सहारे की जरूरत है नहीं है, उसकी हर चिंता हरी ही रखते है, आपको परेशान होने की जरूरत ही नहीं है, एक युवती बड़े ध्यान से महात्मा की बात सुन रही थी, अबोध , सरल और छोटे से मन की बड़ी गहराइयों तक महाराज की बातें उसके मन मष्तिष्क में उतर गई और उसने यही निश्चित किया की अब तो जीवन की हर समस्या में मुझे हरी ही साथ देगा ,कथा ख़त्म हुई, सारे श्रोताओं और महात्मा जी को नदी पार के गाँव में विश्राम करना था ,पूरा गाँव मंदिर से नदी पार करने किनारे आगया , बच्ची महाराज की बातों में डूबी भगवान कृष्ण को साक्षी मान कर पानी की सतह पर चलने लगी उसने महात्मा जी से भी कहा महाराज आजाओ आप भी गुरु जी महाराज किनारे खड़े गालियां दे रहे थे ,मैं नहीं आरहा साले मुझे मरवाना चाहते है । और पूरा गाँव उस लड़की के प्रति श्रद्धान्वित था और महाराज जल्दी में वहां से भाग लिए |हम जो कह रहे है ,कर रहे है , और समझने की चेष्टा कर रहे है ,उस पर हमें ही विशवास नहीं है ,अबोध बच्ची का परम विश्वास उसके लिए फलदायी रहा | |
हम सब भी कमो वेश ऐसा ही जीवन शैली में जी रहे है, जहाँ हमें हर पल नए रूप बदलने पड रहे है, और हम स्वयं को बड़ा बताने और दूसरों को ठगने की प्रक्रिया में लगे अपने आपको श्रेष्ठ बताने की होड़ में लगे है ,और पूरा ही जीवन इस उधेड़ बुन में लगे रहते है कि ,कैसे भी स्वयं को श्रेष्ठतम सिद्ध करते हुए अपने आपको लाभान्वित किया जावे ,उसके बदले में चाहे दूसरो को कितना भी कष्ट क्यों न उठाना पड़े ,आम जीवन में हमारे अपने ही हमसे ऐसी जलन रखते है कि जैसे हमारा विकास हमारा बड़ा होना उन्हें बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा हो |
हम बड़े बड़े आदर्शों और कठोर अनुशासन की बातें करते है और सबको यह बताने प्रयत्न करते है कि ,आदर्श ,सत्य और अहिंसा के बड़े मान दंड आपसे ही चलते है ,आपका अतीत और वर्तमान एक त्याग तपस्या और कठोर अनुशासन का अध्याय है ,और आपके जीवन ने ही संसार समाज और अपने परिवेश को जीवन मूल्य प्रेषित किये है ,जबकि उसका मन हर बात पर यह जानता है की ,वे हर पल झूठ फरेब और कैसे भी की तकनीक में जी है , आत्मा का सत्य बार बार मन और स्वयं को दुत्कारता रहता है ,मैं इतना नीच , गिरा हुआ और कृतघ्न हो कैसे सकता हूँ ?मैंने जब जब स्वयं को बड़ा और आदर्शों का पक्ष धर बताने की कोशिश की ,स्वयं आत्मा ने मुझे झुठला कर एक कट घेरे में खड़ा कर दिया , और हम सबभी इस जीवन में इस तरह रच बस गए है, कि जिसकी नकारात्मक गूँज भी हम नहीं सुन पा रहें है।
हम अपने परिवार समाज और अपने ही परिवेश में अजनबी और अनजान से लग रहे है ,जिसका ज्ञान हमें स्वयं को भी नहीं हो पारहा हैं, समाज और सम्बन्ध तथा अपनों का प्रयोग हम एक सधे हुए लुटेरे की तरह कर रहे है , सबसे पहले हमें अपने सारे अस्त्र शस्त्र का प्रयोग करके स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करना था उसके बाद जैसे ही विश्वास , प्रेम और सद्भाव एक सीमा पर पहुंचे, वैसे ही हम एक पेशेवर ठग की भाँती अपने पंजों से सारे सद्भाव अपनत्व और प्रेम को लूट डालते है और अपने सहयोगियों को ही ठगने में हमारी आत्मा तनिक भी नहीं कांपती, यह बात और कि हमारी आत्मा हमे धिक्कारती रहती है और हमे उसकी आवाज सुनाई ही देनी बंद हो जाती है |
हम जीवन को किसी भाव से भी जिए यह अवश्य याद रखे कि आपके कार्यों की स्थिति से ही आपका भविष्य बन और बिगड़ रहा है आज हम जिस उपलब्धि को लूट खसोट के द्वारा अपने पास एकत्रित कररहे है, वो ही अपने सकारात्मक और नकारात्मक कर्मों के बदले में हमें प्रतिफल स्वरुप प्राप्त होने वाला है , और जब आपको स्वयं के कर्मों की जान कारी पूरी तरह से हो तो आपको अपने साथ होने वाली नकारात्मक घटनाओं के कारण ,अपनी क्रियान्वयनता से ही ढूढ़ने चाहिए |
जीवन कुछ भी उधार रखता ही कहाँ है वह जीवन में बदलते हुए समय को वैसा ही लौटा देता है जैसा कभी आपने समय को दिया था , आप जब दूसरों को अंधेरों में रख कर और खुद अपनी आँखें बंद कर के नकारात्मक व्यवहार कररहे होते है तो ,आत्मा की सारी एकाग्रता एकत्रित होकर आपका आंकलन करने लगती है और वही एक दिन आपको निकृष्ट सिद्ध करदेती है ,मित्रों बाह्य आलोचनाओं को समय जबाब दे देता है मगर यदि एक बार आपकी आत्मा आपको नीच और निकृष्ट मानने लगे तो आपके पास कुछ शेष रहता ही कहाँ है |
निम्न का प्रयोग कर के अवश्य देखें |
- स्वयं के कर्तव्यों और सोच पर चिंतन अवश्य करते रहें और जहाँ भी यह लगे कि आप दिशा भ्रमित हो रहे है आप सचेतक की भाँती स्वयं को सही करने का प्रयत्न अवश्य करें |
- सामान्यतः हम बार बार खूबसूरती , यश , संसाधनों और इनका प्रयोग अधिकाधिक बनाये रखना चाहते है साथ ही दीर्घ काल तक जीवन चाहते है ,जबकि हमपर समय नियत होता है ,ऐसे में जीवन की नश्वरता का ध्यान बनाये रखते हुए चलने का प्रयत्न करें |
- sex, anger ,greediness, काम , क्रोध, लोभ ये तीनो अपनी सीमा नहीं जानते आपको इन तीनों को सामंजस्य मालूम ही नहीं होता ध्यान रहे ये तीनों भाव ही मनुष्य को नकारात्मक और सकारात्मक बनाने में सक्षम है आपको इनका भाव और समन्वय आना आवशयक है |
- स्वयं के आत्म बल को बढ़ने के लिए स्वयं को एकाग्रचित्त करना बहुत आवश्यक है , आपक्या चाहते है ,और आपका परम उद्देश्य क्या है, बस इसका ज्ञान और ध्यान, आपका बल बढ़ाने में सक्षम हो सकता है |
- आप जिन मूल्यों को श्रेष्ठ मानते है उनपर निष्ठां से चलने का प्रयत्न कीजिए निरंतर प्रयास आपको सफलता के शिखर पर अवश्य ले जाएगा |
- अपनी वास्तविकता पर आवरण डालने का प्रयत्न न करें क्योकिं इससे आपके व्यक्तित्व में स्वयं कमजोरी पैदा होने लगेगी और आपका वास्तविक बल ख़त्म हो जाएगा |
- हम जिसके लिए भी अपने अस्तित्व पर झूठ फरेब और असत्य का जाल बुनते है वह सब समय से हारना होता है , रूप -रंग ,यश- वैभव ,धन-संपत्ति और अकूत जमीन जायदाद सब समय के बाद आपकी निरीहता सिद्ध कर देते है तो जीवन के मूल उद्देश्यों से इनका सामंजस्य बैठाने का प्रयत्न करें |
- व्यक्ति को सकारात्मक और नकारत्मकताओं के साथ ही स्वीकार करना सीखें क्योकि यदि आप पूर्ण स्वरूप की खोज करेंगे तो आपको स्वयं से झूठ बोलना होगा कि आप पूर्ण है |
- स्वयं का बखान करने के स्थान पर स्वयं मौन रहना सीखें और दूसरों को आपका आंकलन करने दें एक बार आपका आंकलन समाज ने करलिया, फिर आपको किसी नकारात्मक पहिचान की जरूरत नहीं होगी |
- जीवन को जीतने के लिए अपने आपको सत्य के साथ जीने की आदत डालना सिखाइये, जो आपका है नहीं, वो आपके पास से चला ही जाएगा ,और जो आपका है ,वो हजारों रास्ते बनाकर आपके पास आ ही जाएगा , फिर आपको स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के स्थान पर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लिए स्वयं को उपयोगी बनाने की आवश्यकता है ,जिसे आप मौन और श्रेष्ठ कर्तव्यों से बना ही लेंगे |
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