जीवन की गुणवत्तता का भाव (concept of quality life)
हैप्पी मदर्स डे ------माँ ------- क्वालिटी टाइम निकलना आज पापा के साथ ----------- बीमार लाचार पत्नी के मुख पर बेबसी - और कमजोरी से की जाने वाली बातें के प्रभाव एक साफ़ आईने की तरहचेहरे पर घूमने लगे एक मोटा सा आंसू गाल पर लुढक आया माँ कहती रहीं बहुत अच्छी हूँ बेटा , मेरे सामने मेरा अतीत एक एक लम्हे जैसे खड़ा करने लगा ----------सोचा मै रोऊँ या खुश होऊं -----
गाँव के वातावरण मै पैदा हुआ था मैं अच्छी जमीन जायदाद थी बाबा के पास सुख था शांति थी वैभव था सबके दुःख सुख में खड़े होने का भाव साथ ही हर त्यौहार में एक दूसरे का इंतज़ार मीठी लड़ाइयां और लम्बी मनाने की प्रक्रिया और फिर एक दूसरे के प्रति मर मिटने का भाव, यहाँ आम था । कुल मिला कर जिंदगी सकून लुटा रही थी और हम ही नहीं सैकड़ों लोगो को रोजी रोटी देने वाली थी बाबा की यह हवेली । समय बीतता गया बाबा ने शहर के बड़े कॉलेज में मेरा दाखिला , डाक्टरी में करा दिया था ,और हम डाक्टर भी बन गए थे ,पी जी के लिए मुझें विदेश जाना पड़ा ,फिर शादी हुई बच्चे हुए और कभी गाँव लौट कर जाना नहीं हो पाया ,मेरी पत्नी ने भी पूरी संस्कृति और संस्कारों से बच्चों को पाला ,पुत्र एवं पुत्री को ,मुझे भी विदेश पढाई करने भेजना पड़ा बच्चों को, और वे ग्रीन कार्ड धारी वहीँ के होकर रह गए | अपने अपने परिवारों के साथ खुश है वे सब लोग और हम भी क्याकहें उनकी ख़ुशी में खुश है मगर -------आज मैं और मेरी पत्नी शहर के बहुत बड़े डॉक्टर है मगर उम्र बीमारियों और हताशा से पूर्ण , खोखले आधार हीन और नीरस जीवन का भाव पैदा होने लगा है हममें , ,बच्चों को पैसे ,संपत्ति और जायदाद का कोई लोभ नहीं है परन्तु दुःख यह कि कर्त्तव्य बोध भी नहीं है ,मशीनी इंसान की तरह ,हम अकेले शारीरिक मानसिक कमजोरियों के साथ इस द्वन्द में कि जीवन में मुझसे कहाँ गलतियां हुई है ,जिससे मुझे उस समय की खोज करना पड रहा है कि मेरी क्वालिटी लाइफ कहाँ है --------------इस कहानी का निष्कर्ष आप अपने अपने हिसाब से निकालिये शायद बहुत सारे उत्तर होंगे इस वास्तविक कहानी के -------
आज हम आप सब क्वालिटी लाइफ या क्वालिटी टाइम के फेर में जीवनके संस्कारों और आदर्शों से आदर्शों से बहुत दूर निकल आए है यहां हमने अपना जीवन केवल उन स्थितियों को समर्पित करदिया है जहाँ केवल अपनी सोच अपना विकास औरकर्तव्यों की अनदेखी रह गई है ,परिवार समाज और राष्ट्र की मानसिकता हमारे निहित स्वार्थों के सामने बहुत पंगु होकर रहगए है , हमारे पास अपना आंकलन करने का समय ही नहीं है , आदर्शों की मीमांसा में हम स्वयं को कहा खड़ा पाते है ,? शायद हम अपने ही जाल और भाव में अकेले पड़ गए है , जहाँ हमारा खोखलापन ,हताशा और नैराश्य की पारा काष्ठा परहै ,और हम स्वयं को खोजने का प्रयत्न अवश्य कर रहे है |
मित्रों पिछले तीन दशकों में आदमी साधनों का ढेर बन कर बैठ गया है हर ऐशोआराम की बहुतायत है उसके पास संबंधों के आधार जो कल तक साधन हीनता और उनकी अधिकता के कारण बन रहेथे वो भी ख़त्म होते जारहे है , पैसा रूपया ,साधन सम्पन्नता और भौतिक साम्राज्य भी मनुष्य के मानसिक स्तर को संतोष नहीं दे पारहा है ,जब हम क्वालिटी लाइफ या समय की बात करते है तो हमारा इशारा उपभोगवादी होता है जबकि यह अकाट्य सत्य है कि जिस क्वालिटी टाइम या लाइफ की हम खोज कररहे है उसका आरम्भ संस्कारों ,संस्कृति और परहित के भाव में निहित मिलेगा , हम उपभोग के स्थान पर त्याग के महत्व को अधिक बल देंगे तब शायद क्वालिटी लाइफ का मायने समझ पाएंगे |
दोस्तों जीवन सम्पूर्णता चाहता है वह कई भागों में बंटा हुआ आपको पूर्णता के साथ सफल देखना चाहता है जीवन के हर भाग में आप अपने अधिकार कर्तव्यों से बधें हुए अपना आंकलन सकारात्मक कर पाएं | यहाँ समस्या यह है कि हम जीवन से चाहते बहुत कुछ है, मगर उसे देने के लिए हम स्वयं को सबसे ज्यादा कंगाल बना बैठते है यहीं से एक ऐसा कुचक्र आरम्भ होता है कि हम केवल नकारत्मकताओं से जुड़े सकारात्मक जीवन के कुछ पलों को इकठ्ठा करना चाहते है मगर हमपर अपनी सकारात्मकता कम पड़ने लगती है और जीवन की हताशा भी बढ़ जाती है, तब तो क्वालिटी लाइफ ढूढनी ही पड़ेगी न |
हर आदमी यहाँ स्वयं को खोजता हुआ मिलता है सबके अपने अपने स्वार्थ है , अपने लक्ष्य और अपने गंतव्य है और कैसे भी स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने की एक बड़ी होड़ भी है ,कैसे भी स्वयं को सिद्ध बताने की चेष्टा में उसे सकारात्मकता और नकारात्मकता का ज्ञान ही कहाँ रहता है , जीवन प्रश्नों के साथ बार बार उसके सामने खड़ा होजाता है मगर वह बार बार अपने स्वार्थो के हिसाब से उत्तर देता रहता है यह बात और है कि कालांतर में ये सब क्रियान्वयन उसे ही कटघरे में खड़ा कर देता है ,फिर मानसिक हताशा उससे तमाम प्रश्नोत्तर करती रहती है जिनके उत्तर उसके पास नहीं होते |
क्वालिटी लाइफ और क्वालिटी समय के लिए इनका प्रयोग अवश्य करें जीवन की गुणवत्तता का भाव (concept of quality life)
हैप्पी मदर्स डे ------माँ ------- क्वालिटी टाइम निकलना आज पापा के साथ ----------- बीमार लाचार पत्नी के मुख पर बेबसी - और कमजोरी से की जाने वाली बातें के प्रभाव एक साफ़ आईने की तरहचेहरे पर घूमने लगे एक मोटा सा आंसू गाल पर लुढक आया माँ कहती रहीं बहुत अच्छी हूँ बेटा , मेरे सामने मेरा अतीत एक एक लम्हे जैसे खड़ा करने लगा ----------सोचा मै रोऊँ या खुश होऊं -----
गाँव के वातावरण मै पैदा हुआ था मैं अच्छी जमीन जायदाद थी बाबा के पास सुख था शांति थी वैभव था सबके दुःख सुख में खड़े होने का भाव साथ ही हर त्यौहार में एक दूसरे का इंतज़ार मीठी लड़ाइयां और लम्बी मनाने की प्रक्रिया और फिर एक दूसरे के प्रति मर मिटने का भाव, यहाँ आम था । कुल मिला कर जिंदगी सकून लुटा रही थी और हम ही नहीं सैकड़ों लोगो को रोजी रोटी देने वाली थी बाबा की यह हवेली । समय बीतता गया बाबा ने शहर के बड़े कॉलेज में मेरा दाखिला , डाक्टरी में करा दिया था ,और हम डाक्टर भी बन गए थे ,पी जी के लिए मुझें विदेश जाना पड़ा ,फिर शादी हुई बच्चे हुए और कभी गाँव लौट कर जाना नहीं हो पाया ,मेरी पत्नी ने भी पूरी संस्कृति और संस्कारों से बच्चों को पाला ,पुत्र एवं पुत्री को ,मुझे भी विदेश पढाई करने भेजना पड़ा बच्चों को, और वे ग्रीन कार्ड धारी वहीँ के होकर रह गए | अपने अपने परिवारों के साथ खुश है वे सब लोग और हम भी क्याकहें उनकी ख़ुशी में खुश है मगर -------आज मैं और मेरी पत्नी शहर के बहुत बड़े डॉक्टर है मगर उम्र बीमारियों और हताशा से पूर्ण , खोखले आधार हीन और नीरस जीवन का भाव पैदा होने लगा है हममें , ,बच्चों को पैसे ,संपत्ति और जायदाद का कोई लोभ नहीं है परन्तु दुःख यह कि कर्त्तव्य बोध भी नहीं है ,मशीनी इंसान की तरह ,हम अकेले शारीरिक मानसिक कमजोरियों के साथ इस द्वन्द में कि जीवन में मुझसे कहाँ गलतियां हुई है ,जिससे मुझे उस समय की खोज करना पड रहा है कि मेरी क्वालिटी लाइफ कहाँ है --------------इस कहानी का निष्कर्ष आप अपने अपने हिसाब से निकालिये शायद बहुत सारे उत्तर होंगे इस वास्तविक कहानी के -------
आज हम आप सब क्वालिटी लाइफ या क्वालिटी टाइम के फेर में जीवनके संस्कारों और आदर्शों से आदर्शों से बहुत दूर निकल आए है यहां हमने अपना जीवन केवल उन स्थितियों को समर्पित करदिया है जहाँ केवल अपनी सोच अपना विकास औरकर्तव्यों की अनदेखी रह गई है ,परिवार समाज और राष्ट्र की मानसिकता हमारे निहित स्वार्थों के सामने बहुत पंगु होकर रहगए है , हमारे पास अपना आंकलन करने का समय ही नहीं है , आदर्शों की मीमांसा में हम स्वयं को कहा खड़ा पाते है ,? शायद हम अपने ही जाल और भाव में अकेले पड़ गए है , जहाँ हमारा खोखलापन ,हताशा और नैराश्य की पारा काष्ठा परहै ,और हम स्वयं को खोजने का प्रयत्न अवश्य कर रहे है |
मित्रों पिछले तीन दशकों में आदमी साधनों का ढेर बन कर बैठ गया है हर ऐशोआराम की बहुतायत है उसके पास संबंधों के आधार जो कल तक साधन हीनता और उनकी अधिकता के कारण बन रहेथे वो भी ख़त्म होते जारहे है , पैसा रूपया ,साधन सम्पन्नता और भौतिक साम्राज्य भी मनुष्य के मानसिक स्तर को संतोष नहीं दे पारहा है ,जब हम क्वालिटी लाइफ या समय की बात करते है तो हमारा इशारा उपभोगवादी होता है जबकि यह अकाट्य सत्य है कि जिस क्वालिटी टाइम या लाइफ की हम खोज कररहे है उसका आरम्भ संस्कारों ,संस्कृति और परहित के भाव में निहित मिलेगा , हम उपभोग के स्थान पर त्याग के महत्व को अधिक बल देंगे तब शायद क्वालिटी लाइफ का मायने समझ पाएंगे |
दोस्तों जीवन सम्पूर्णता चाहता है वह कई भागों में बंटा हुआ आपको पूर्णता के साथ सफल देखना चाहता है जीवन के हर भाग में आप अपने अधिकार कर्तव्यों से बधें हुए अपना आंकलन सकारात्मक कर पाएं | यहाँ समस्या यह है कि हम जीवन से चाहते बहुत कुछ है, मगर उसे देने के लिए हम स्वयं को सबसे ज्यादा कंगाल बना बैठते है यहीं से एक ऐसा कुचक्र आरम्भ होता है कि हम केवल नकारत्मकताओं से जुड़े सकारात्मक जीवन के कुछ पलों को इकठ्ठा करना चाहते है मगर हमपर अपनी सकारात्मकता कम पड़ने लगती है और जीवन की हताशा भी बढ़ जाती है, तब तो क्वालिटी लाइफ ढूढनी ही पड़ेगी न |
हर आदमी यहाँ स्वयं को खोजता हुआ मिलता है सबके अपने अपने स्वार्थ है , अपने लक्ष्य और अपने गंतव्य है और कैसे भी स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने की एक बड़ी होड़ भी है ,कैसे भी स्वयं को सिद्ध बताने की चेष्टा में उसे सकारात्मकता और नकारात्मकता का ज्ञान ही कहाँ रहता है , जीवन प्रश्नों के साथ बार बार उसके सामने खड़ा होजाता है मगर वह बार बार अपने स्वार्थो के हिसाब से उत्तर देता रहता है यह बात और है कि कालांतर में ये सब क्रियान्वयन उसे ही कटघरे में खड़ा कर देता है ,फिर मानसिक हताशा उससे तमाम प्रश्नोत्तर करती रहती है जिनके उत्तर उसके पास नहीं होते |
क्वालिटी लाइफ और क्वालिटी समय के लिए इनका प्रयोग अवश्य करें जीवन की गुणवत्तता का भाव (concept of quality life)
- जीवन के सत्य को एक बार फिर इस नजर से समझे कि आपके जन्म का मूल उद्देश्य क्या है और उसकी पूर्ती के लिए क्या आपने अपने प्रयास आरम्भ किये है अथवा नहीं |
- संस्कारों और आदर्शों के क्रियान्वयन पर अपनी पैनी नजर बनाये रखें क्योंकि इसके बिना आपका जीवन गतिहीन और लक्ष्य हीन होसकता है |
- आपके भाव में जबतक दूसरों के हित की सोच नहीं होगी तबतक आपको कोई उपलब्धि प्राप्त नहीं हो सकती क्योकि जबतक आपको देने का भाव नहीं आएगा तबतक आपको समाज से वह नहीं मिलेगा जो आप ढूढ़ रहे है |
- सम्पत्ति जायदाद और साधनों की बाहुल्यता आपको श्रेष्ठ सिद्ध नहीं करसकती क्योकि सबके साथ आपका सहज सच्चा और मधुर व्यहार ही आपको श्रेष्ठ साबित करेपयेगा यह हमेशा ध्यान रखें|
- क्वालिटी लाइफ एवं क्वालिटी समय का मायने आपका उपभोग वादी दृष्टिकोण नहीं अपितु आवश्यक उपयोग और त्याग का बाहुल्य आपको श्रेष्ठ सिद्ध करसकता है |
- अपने कर्तव्यों की स्थिति पर पैनी नजर बनाये रखें आज के कर्त्तव्य की अनदेखी आपका तमाम सुख और संतोष ख़त्म करडालता है अतः कर्त्तव्य और दायित्व को जीवन में बनाये रखें |
- क्वालिटी टाइम और क्वालिटी लाइफ की आवश्यकता आपको तब होती है जब आपके पास सम्पूर्णता नहीं होती अत; अपने व्यवहार और जीवन को इतनी सहजता दें जिससे जीवन के आदर्श आपके सम्पूर्ण जीवन को क्वालिटी लाइफ में बदल सकें |
- जीवन को नकारात्मकता के जाल से बचा कर एक सकारात्मक दृष्टी से पूर्ण करें और समस्याओं का सामना नकारात्मकताओं से से नहीं अपितु शक्ति से करें |
- सबके साथ मधुर एवम सहज सम्बन्ध स्थापित करें और सुख दुःख से स्वयं को जोड़े रखें इससे स्वयं को शांत और सहज रहने का ढंग और परिष्कृत होगा |
- जीवन में प्रत्येक दिन एक कार्य सकारात्मक दृष्टी से दूसरों के लिए अवश्य करें इससे आपको जीवन का आतंरिक संसर्ग मिलाना आरम्भ हो जाएगा |
- परहित , परदुःख और परमार्थ को आधार बनाकर सम्पूर्ण विश्व से स्वयं को जुड़ा अनुभव करें आपको स्वयं की शक्ति का ज्ञान अवश्य होने लगेगा |
- गुणात्मक आधारों पर जीवन को मूल्य परक बनाने का प्रयत्न करे क्योकि मूल्यों की क्रियान्वयनता स्वयं संतोष के स्तर का निर्माणक हो जाता है |
- क्वालिटी टाइम की सोच उपभोगवादी और बाह्य आवरण का विषय है , जबकि क्वालिटी लाइफ का भाव आतंरिक मूल्यांकन है जो मनोभाव को सिद्धः करता है |
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