स्वयं की शक्ति का संचय और विकास करें ( save and enhance your powers)
सुबह होने को ही थी माँ के कमरे से जोर जोर से झाड़ू की आवाज आरही थी बीच बीच में बड़बड़ाती जा रही थी सुबह हो गया कोई नही उठा पूरा काम मेरे जिम्मे है ,किसी की कोई जिम्मेवारी नहीं है , पूरा घर कूड़ा बना पड़ा है कोई साफ तो करदे जरा , गुप्ता के घर की सारी बहुएं सुबह से उठ कर कैसा काम संभालती है सारा मोहल्ला जानता है--- ये बात और है कि गुप्ता के घर की जंग सबको मालूम है ,--और बहुत सारी बातें जिनमे स्वयं को बेचारा साबित करने के एक लाख तर्क और पूरे घर का काम केवल माँ के ऊपर आन पड़ा हो यह भाव , पिताजी ने उंघते हुए से मुझे देखा और मुस्कुराये पिछले २० वर्ष से निरंतर कुछ कम ज्यादा सही यही सब सुन रहे है मै वे और बहू , बहू ने पिता के पाँव छुए माँ के पाँव छुए माँ बोली ठीक है ठीक है ,और धम्म से सोफे पर बैठ गई बहू ने चाय बनाई और दिन चालू होगया माँ की सुनते रहे सब ,बहुत काम है, ताकत नहीं रही अब , तीनो मुस्कुराते रहे जानते थे सारा काम नौकर और बहू ही करती है मगर माँ सास है और यह उनका अधिकार है कि वो हम सबको रोज एक नए पहलवान की तरह चिनौती देती रहें , अब पूरा परिवार इसका आदी होगया है |
मानव में या एक बड़ी विशेषता है कि उसमे सीमित शक्ति है साथ ही कामनाओं की उड़ान असीमित है ,उसे हर पल कुछ न कुछ करना ही होता है यहाँ यह बात महत्व पूर्ण है कि उसके प्रतिदिन के विषयों में वह अपने लिए सबसे कम विचार कर पाता है परिणाम यह कि उसकी भागती दौड़ती जिंदगी में यंत्रवत होकर काम करना और विपरीत स्थितियों में पूरी ताकत लगाकर अपने पक्ष में करलेना और फिर वही यंत्रवत जीवन जाना ,पूरे दिन में दूसरों का चिंतन , उनके व्यक्तित्व कृतित्व का पोस्टमार्टम और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के अलावा कुछ होता ही नहीं है ,
मानवीय स्वाभाव में एक बड़ी होड़ इस बात की भी है कि वह हर ख़ूबसूरत और अनमोल वस्तु या व्यक्ति पर एकाधिकार चाहता है ज्ञान ,सौंदर्य , धन बल , बाहुबल , और ऐश्वर्यों में भी सम्पूर्ण रहना चाहता है और यही उसके सोच के विषय भी हो जाते है ,यहाँ आकर उसका सारा चिंतन इस बात में उलझ कर रह जाता है कि कैसे भी वह हर जगह श्रेष्ठ साबित हो सके , परन्तु जीवन तो समय के चक्र से हारता हुआ कोई सत्य ही है न , तो वह धीरे धीरे अपनी जीवनी शक्ति छीण होते हुए देखता रहता है , और निरंतर कामनाओं की वृद्धि उसके मन मष्तिष्क की शक्तियों को कमजोर बनाती जाती है और यही क्रम निरंतर चलता चला जाता है |
भारतीय दर्शन यह कहता है कि मनुष्य में अलौकिक और अनंत शक्ति स्त्रोत छिपे हुए है उनपर बहुत से आवरण डले हुए है ,जिन्हें काम (sex)क्रोध (angreeness)लोभ (greediness)मोह (artificial love)इन सारे आवरणों से अनेक कमियां व्यक्तित्व में स्वयं खड़ी हो जाती है और हम अपने ही सुख, दुखों के जाल बुनते और उसमे फंसते , छटपटाते रहते है और सदैव यह सोचते रहते है कि इनके पैदा करने वाले हम ही हैं ,काम का भाव हमारे को को अशांत और उद्वेगी बना कर छीनने और जीतने की प्रवृति बार बार देने लगता है ,लोभ हर अच्छी चीज को हड़पने का भाव देने लगता है ,क्रोध अपनी गलतियों को बल पूर्वक मनवाने के उपकृम को बल देता है और मोह ऐसा जाल बना देता है कि मैं ही शायद सबको पालने और आश्रय देने वाला हूँ और सबकी व्यवस्था करने से पहले हार न जाऊं ,बस ये ही कारण आपको अपनी शक्ति के परिचय से रोक देते है | आप एक सीमा में ये सारे व्यवहार करें अवश्य मगर आप उनमे लिप्त होकर न रह जाएँ यही सच्चा भारतीय दर्शन है |
यह सिद्ध है की मनुष्य में अनंत शक्तियाँ निहित है बस वैचारिक अस्थिरता और आकलन की कमी के कारण मनुष्य कभी उन्हें पहिचान नहीं पाता जबकि उसके हाथ में उसकी वैचारिकता के अनुसार हर उपलब्धि प्राप्त करने की क्षमता है । सभी धर्मों में ईसा , मोहोम्मद साहिब ,नानक देव , और भारतीय देवता भी तो अपने आप पर नियंत्रण और अपनी आतंरिक शक्तियोंको जाग्रत करके इतने महान बन पाये है , वे ही शक्तियां ईश्वर ने आपको भी प्रदान की है बस आपको उनको संरक्षित करना एवं एकत्रित करना आना चाहिए ,इसका एक सरल उपाय यह है की आप स्वयं को अपनी शक्तियों के चिंतन का आधार दें ,तथा हर उस आवरण को जो आपको प्रभावित करता है उसकी सीमाये निर्धारित करें और स्वयं को एकाग्र करके स्वयं को जाग्रत करने का प्रयत्न करें |
क्या मजाक है ये कि मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन में लगभग ९०%भाग पर प्रकृति, परमशक्ति सत्ता का प्रभाव रहता है बाकी १०% भाग पर उसके कर्म एवं चिंतन का प्रभाव रहता है मगर सबसे बड़ी विडम्बना यह कि वह उस ९०% के भाग की चिंता में परेशान रहता है जिसपर उसका कोई हक़ ही नहीं है ,जरूरत है कि अपने १०% भाग और उसकी सोच को सकारात्मक बनाकर सम्पूर्ण जीवन जीतने की | मनुष्य की सबसे बड़ी कमी यह भी है कि वह सबसे ज्यादा चिंतन अपने समाज , प्रियजनों और कामनाओं का ही करता है , जीवन के बड़े भाग में मनुष्य उन चिंताओं से दुखी , परेशान और उदास है जिनपर उसका वश ही नहीं था भविष्य की हर सोच से वह स्वयं को डरा हुआ पाता है और उनकी ही चिंताओं में वर्तमान ख़राब कर देता है ,इससे उसकी तमाम सकारात्मक सोच नकारात्मक हो जाती है और वह स्वयं एक सामान्य या साधारण जीवन का हक दार बन कर रह जाता है जबकि उसका जन्म स्वयं को कल तरह ,अति सफलतम सिद्ध करने के लिए हुआ था । आवश्यकता इस बात की है कि जिन विषय वस्तुओं पर हमारा अधिकार नहीं है और जो अनभिज्ञ है उनके प्रति सकारात्मक रवैय्या अपनाये और आश्वस्त रहें कि सब अच्छा ही होगा शायद यही से आपके लिए नया द्वार खुल पायेगा |
- अपने आपको छोटा हीं और बेचारा नहीं मानें , आप ईश्वर की अनमोल कृति है और उस सर्वशक्तिमान ने नियत उद्देश्य के लिए आपको जन्म दिया है और आप ही उसे पूरा करेंगे यह विशवास रखें |
- दूसरों की आलोचना से आपकी स्वयं की शक्ति का ह्रास होता है आप दूसरों की कमियों की व्याख्या में अपना समय व्यर्थ न गवांये , अन्यथा उससे स्वयं को भी नकारात्मक भाव पकड़ने लगेंगे |
- जीवन में जिन कार्यों और परिस्थितियों पर आपका वश नहीं है वहां स्वयं को सकारात्मक रखें क्योकि ऐसा करने से आपको अलग अलग मार्ग दृष्टिगत होने लगेंगे |
- अपने चिंतन में महा पुरुषों की जीवन शैली के आलेखों को शामिल अवश्य करें इस से आपको उनके कार्य और संकल्पों को पूर्ण करने भाव साफ दिखाई देने लगेगा |
- अपनी शक्ति के चिंतन में स्वयं को अवश्य लगाइये और ध्यान के मार्ग से स्वयं को जैसा आप चाहते वैसा शक्ति संपन्न बनाने के संकल्प दोहराइए |
- भविष्य की और अतीत की सोच को दूर रखने का प्रयत्न करें क्योंकि कर्म को पूर्ण भाव से करने के लिए अतीत भविष्य के अध्यायों को बंद ही रखें |
- अतीत के दुःख और भविष्य के भय को सकारात्मक सोच देते हुए उन्हें कष्ट का कारक न माने क्योकि अतीत और भविष्य हमेशा प्रश्न वाचक ही रहता है ।उसे सकारात्मक भाव से जीतें |
- स्वयं को समय बद्ध तरीके से कार्य में लगाए और समय समय पर उसका आकलन करते रहें और आपको कर्तव्यों में परिवर्तन कर आदर्श स्थापित करना हो तो अवश्य करते रहें ।
- काम ,क्रोध। लोभ , मोह आपके जीवन में सोच के आधार है उन्हें सीमा में ही उपयोग करें क्योकि जैसे ही आपने सीमाये लांघी वैसे ही आपकी जीवन संयोजन शक्ति के प्रयास असफल हो जाएंगे |
- अपने लक्ष्यों को बिलकुल साफ और स्पष्ट रखें जैसे ही आप अपने लक्ष्यों से जरा से दूर हुए आपका जीवन स्वयं आपकी हार बन जाएगा |
- हर कार्य सम्बन्ध और अच्छे बुरे पर समय रहते विचार करें और उसमे अपने संकल्प के अनुरूप परिवर्तन करें आपको सफलता मिलेगी |
- मनुष्य के पास समय कम और अनंत कामनाएं है ऐसे में अपने मन मष्तिष्क पर पूर्ण नियंत्राण लगते हुए उसे अपने संकल्प की और ही मोड़े रखें और आंकलन करते रहें |
- हर सुंदरता और कीमती स्वाभाव वाली वस्तुएं हमारी हों और हर ज्ञान , सुंदरता और बल तप यश में हम श्रेष्ठ हो यह दौड़ छोड़ कर यह आकलन करें कि हमारे अंदर भी अनंत गुण धर्म है जो हमें सर्व श्रेष्ठ साबित करेंगे |
- दूसरो की सहायता , दयालु भाव और आपके सत संकल्प आपको आपकी शक्ति के स्त्रोत के रूप में मिले है आपको सम्पूर्ण समाज में उनकी खुशबू फैलानी है यही से आपका शक्ति सम्पन्न होने का अध्याय चालू होना है ।
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