Sunday, February 2, 2014

सफलता के अनेक मार्ग है --मन को एकाग्र करें

        बहुत सी विचारधाराएं है ,बहुत सी क्रियाएँ है, और बहुत से माध्यम है सफलता के, बहुधा हम ऐतिहासिक विचारधाराओं  से सीख लेकर चलने का प्रयत्न अवश्य  करते है परन्तु न वैसा बन पातें है ,और न ही अपनी मौलिक सोच और आदर्शों को ही बचा पाते  है ,परिणाम कुछ करने की ललक के जाल में हम और अधिक तृस्त होते  जाते है फिर बहुत से उद्देश्य बनाते है छोड़ते है और  जीवन को इसी प्रकार निकाल कर दुखी होते  रहते है कि हम कुछ अच्छा क्यों नहीं कर पाये |

समय ,पृकृति ,और सम्पूर्ण ब्रह्मांड गतिशील एवं परिवर्तन शील है और हमारा परिवेश हमारी सोच और समस्याएं भी नित्य बदल रही है और उनके अनुरूप है हमे भी परिवर्तन स्वीकार करना होगा यदि हम समय कि दौड़ के साथ अपने विचारों ,संस्कारों और क्रियाओं में समयानुरूप परिवर्तन नहीं करपा रहे  है तो हम अपने को अनपढ़ ही माने शिक्षित होने केवल यह प्रमाण है कि आप समयानुरूप स्वयं में परिवर्तन कर के समय के अनुसार उपयुक्त ज्ञान प्राप्त करते रहें  |

माता पिता एवं अधिकाँश पालक  अपने बच्चों  को अपनी मति और सुविधा के अनुसार वो मार्ग देना चाहते है जो उनकी नजर में ठीक है उनपर इनके तर्क भी होते है , बाप दादाओं की बड़ी वकालत कि लाइब्रेरी कौन देखेगा ,पीढ़ियों से खुला अस्प्ताल बंद करदें क्या, और ऐसे ही  अनेकों तर्क , आशय यह कि वे अपनी संतान को अपने अनुसार  ही विकसित होता देखना चाहते है ,संतान कि इच्छा क्या है , उसमे क्या योग्यताएं है उसकी क्रियान्वयन कि दिशा कहाँ सफलहोसकती है इन बातों का उनके लिए अधिक महत्व नहीं है| 


यहाँ केवल एक हुल है और कुछ विचार है जिसके अनुरूप सफलता सहज पाई जा सकती है




  • ऐतिहासिक महापुरषों कि जीवनियां ,कार्यपद्धति और  आदर्शों  के पालन में समय नियम और जिस राष्ट्र में रहते है वहाँ के क़ानून का पालन करना नहीं भूलें ,आज जब राष्ट्रपिता और रामकृष्ण विवेकानंद तथा हजारों ऐसे ही महा पुरषों का नाम आगे रख  कर जब हम कोई स्वार्थो से प्रेरित बात करते देखते है तो शायद हम उनसे वो समर्पण नहीं सीख पाते जो हमे सत्य दिशा दे सकें , जिससे हम केवल उनका नाम न लेकर उनके आदर्शों को आत्मसात करें | 
  • अविभावकों को युवा की योग्यता और उसकी सोच के अनुरूप  ही आदर्शों का चयन   करना चाहिए नहीं तो बार बार अपने उद्देश्यों के परिवर्तन से सफलता में संदेह उत्पन्न हो सकता है | क्योकि जीवन में सबसे कम यदि कुछ है तो वह समय ही है | 
  • समय के अनुसार  शिक्षा ,तकनीक और समाजार्थिक परिवर्तन हो रहे है उनका समयानुरूप  भी युवा के लिए आवश्यक है | 
  • उद्देश्य का निर्धारण एवं प्रतिदिन हम उसके लिए कितना कार्य कररहे है और क्या यह कार्य संतोष जनक है यह विचार नित्य ही करना होगा | 
  • महा पुरषों के जीवन से सीख अवश्य लें मगर अपना मार्ग स्वयं ही बनायें नहीं तो आप अपनी स्वयं की  पहिचान ही खो देंगें । 
जीवन में रिश्ते , सुख सुविधाएं और क्या अच्छा लग रहा है ,इन बहुत से विषयों का महत्व आपके उद्देश्यों  के सामने महत्वहीन है और भविष्य की  तमाम सफलता आपके सकारात्मक क्रियान्वयन पर निर्भर है | मन को
अपने उद्देश्यों के प्रति संकल्पित करके  नित्य उसे एकाग्र कर अपनी सोच के प्रति संकल्पित करें आपको सफलता अवश्य मिलेगी |

3 comments:

Suresh Kumar Sharma said...

एक किसान जब फसल काटता है तो सबसे बढ़िया दाना छाँट कर बीज के रूप में अगली फसल के लिए संजो कर रख लेता है। भारत का शिक्षा तंत्र इस तरह की किसानी में बिलकुल फिस्सडी है। यहाँ हर वर्ष बाजार से सबसे घटिया बीज ( शिक्षक ) ढ़ूँढ कर लाया जाता है। हाथ की मजदूरी से भी सस्ती दर पर काम करने को राजी आदमी यहाँ के स्कूलों में देश का भविष्य निर्माण कर रहे हैं।

Urgent need of action to reform education...

http://supportinghands.blogspot.in/2013/12/blog-post.html

Awareness among people who spend on Education...

http://supportinghands.blogspot.in/2013/11/blog-post_9086.html

Private School Teachers are not well...

http://supportinghands.blogspot.in/2013/11/blog-post_1407.html

Real picture of Indian Educator...

शिक्षक?जी नही, आपने गलत पहचाना। और कुछ करने को था नही इसलिए जीभ का मजदूर बन गया हूँ। सरकारी स्कूल में नोकरशाह के तलवे चाटता हूँ। प्राइवेट स्कूल में मालिक की ठोकरों में पलता हूँ। नई नस्ल की सोच को मारने का हूनर सीख गया हूँ। हमारे गिरोह से कुछ बच जाते है तो बड़ी कम्पनी में नोकर हो जाते हैं। अधमरे सरकारी नोकर हो जाते हैं। हैरान हूँ ये सोच कर कि इन मुर्खों की बस्ती में लोग मुझे कभी कभी सम्मानित भी करते हैं। क्या इसलिए कि कुछ लोग अपनी सोच बचा कर ले जाते हैं मेरी लाख कोशिश के बावजूद कुछ लोगों की सोच जिन्दा रह जाती है। मुझे आज भी अपने बच्चों के लिए एक शिक्षक की तलाश है।

drakbajpai said...

सुरेश जी एक दम सटीक चित्रण है आज और हमारी टूटी फूटी आदर्शों  की लाचारी इस रूप में
खड़ी है मगर इसे ही बार बार याद करता हूँ और लेखक को धन्यवाद देता हूँ उम्मीद तक बंधती 
नहीं बीमार को तेरे ! अल्लाह से मायूस हुआ भी नहीं जाता है  

Anonymous said...

Sir meri soch negative hoti ja rh h koi samadhan btaye k kya kru

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