दूसरों की समस्याओं में सहायता करे ,मजाक न उडाये
समर शेष हैं नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ है समय लिखेगा उसका भी अपराध
जीवन संग्राम है और यहाँ हर सम्बन्ध और परिस्थितियां आपको यही समझाती है की मानवीय मूल्यों की रक्षा करते रहे तथा अपने आचार और विचार के बारे में सोच कर उसे परिष्कृत करते रहे |बहुधा यह देखने में आता है की यदि किसी एक व्यक्ति पर कोई बड़ी समस्या आजाती है तो हम उसकी सहायता के वजाय उसकी मजाक उडाने लगते है ,या पूरा जोर उसे दोषी बताने में लगा देते है ,यह जीवन का पहला पक्ष है की यातना झेल रहा व्यक्ति दोषी है और हम सब यथा सम्भव उसके कष्ट में सुख पाने कि अनुभूति पैदा करने लगते है क्योकि जब हम हरेक इंसान से प्रतियोगिता करते है तो हर समय यही सोचते है कि देखिये कैसे लोग है , अक्ल नहीं है ,इनका तो ऐसा ही होना था ,बहुत उड़ रहे थे और भी अनेको कशीदे जो दूसरों को छोटा अपने को श्रेष्ठ बताने के लिएजरूरी हो |
सामान्यतः हम दूसरों कि समस्याओं में भागी दार या तो होते ही नहीं है और अगर होतेभी है तो यह बताने के लिए कि हम आपसे अधिक श्रेष्ठ है ,अनादि काल से यही परम्परा चलती रही है कि आदमी स्वयं को एक दूसरे से श्रेष्ठ बताने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है जबकि यदि वह अपने विशवास , उद्देश्य और कर्तव्यों के प्रति सजग रह कर अपना पथ प्रसस्त कर पाता तो शायद उसका सही विकास हो सकता था
एक और समस्या कि हम दूसरों के दुःख !परेशानी ,और समयों में सहायता न करते हुए उसके आलोचक बन जाते है अथवा शांत हो जाते है मन ही मन कहते है कि हमें क्या जैसा करेगा वैसा भरेगा परन्तु आपत्ति काल में किसी कि सहायता न करना एवं उसके प्रति तटस्थ हो जाना किसी भी रूप में आपको श्रेष्ठ साबित नहीं करता , आपको यह जान लेना चाहिए कि केवल वह व्यक्ति जिसके सामने कठिनाई आयी है वही दोषी नहीं है वरन हम सब भी उसकी सहायता के समय तटस्थ होने के कारण या सहायता नही करने के कारण बड़े दोषी है |
कल चक्र में हर प्राणी , जीव इंसान और जीवित अजीवित वस्तुएं अपने अपने कर्म और उनके हिसाब की जीवन शैली में सुख दुःख भोग रहा है और किसी भी स्थिति में समस्या में पड़े इंसान कि मदद न करना मानवोचित नहीं कहा जा सकता ,इससे यह सिद्ध होता है कि आप मानवीय संस्कारों से दूर हो रहे है |
कई कथाओं में यह कहा गया है कि एक जानवर ने दुसरे जानवर के बच्चे को पाला ,कुत्ते ने मालिक कि कब्र पर दम तोडा ,और बहुत कुछ पर इंसान ने मदद में अहसान , सहायता में स्वार्थ और सहयोग के समय सुपीरियरटी दिखाई जो स्वयं बहुत बड़ा कलंक है |
समर शेष हैं नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ है समय लिखेगा उसका भी अपराध
जीवन संग्राम है और यहाँ हर सम्बन्ध और परिस्थितियां आपको यही समझाती है की मानवीय मूल्यों की रक्षा करते रहे तथा अपने आचार और विचार के बारे में सोच कर उसे परिष्कृत करते रहे |बहुधा यह देखने में आता है की यदि किसी एक व्यक्ति पर कोई बड़ी समस्या आजाती है तो हम उसकी सहायता के वजाय उसकी मजाक उडाने लगते है ,या पूरा जोर उसे दोषी बताने में लगा देते है ,यह जीवन का पहला पक्ष है की यातना झेल रहा व्यक्ति दोषी है और हम सब यथा सम्भव उसके कष्ट में सुख पाने कि अनुभूति पैदा करने लगते है क्योकि जब हम हरेक इंसान से प्रतियोगिता करते है तो हर समय यही सोचते है कि देखिये कैसे लोग है , अक्ल नहीं है ,इनका तो ऐसा ही होना था ,बहुत उड़ रहे थे और भी अनेको कशीदे जो दूसरों को छोटा अपने को श्रेष्ठ बताने के लिएजरूरी हो |
सामान्यतः हम दूसरों कि समस्याओं में भागी दार या तो होते ही नहीं है और अगर होतेभी है तो यह बताने के लिए कि हम आपसे अधिक श्रेष्ठ है ,अनादि काल से यही परम्परा चलती रही है कि आदमी स्वयं को एक दूसरे से श्रेष्ठ बताने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है जबकि यदि वह अपने विशवास , उद्देश्य और कर्तव्यों के प्रति सजग रह कर अपना पथ प्रसस्त कर पाता तो शायद उसका सही विकास हो सकता था
एक और समस्या कि हम दूसरों के दुःख !परेशानी ,और समयों में सहायता न करते हुए उसके आलोचक बन जाते है अथवा शांत हो जाते है मन ही मन कहते है कि हमें क्या जैसा करेगा वैसा भरेगा परन्तु आपत्ति काल में किसी कि सहायता न करना एवं उसके प्रति तटस्थ हो जाना किसी भी रूप में आपको श्रेष्ठ साबित नहीं करता , आपको यह जान लेना चाहिए कि केवल वह व्यक्ति जिसके सामने कठिनाई आयी है वही दोषी नहीं है वरन हम सब भी उसकी सहायता के समय तटस्थ होने के कारण या सहायता नही करने के कारण बड़े दोषी है |
कल चक्र में हर प्राणी , जीव इंसान और जीवित अजीवित वस्तुएं अपने अपने कर्म और उनके हिसाब की जीवन शैली में सुख दुःख भोग रहा है और किसी भी स्थिति में समस्या में पड़े इंसान कि मदद न करना मानवोचित नहीं कहा जा सकता ,इससे यह सिद्ध होता है कि आप मानवीय संस्कारों से दूर हो रहे है |
कई कथाओं में यह कहा गया है कि एक जानवर ने दुसरे जानवर के बच्चे को पाला ,कुत्ते ने मालिक कि कब्र पर दम तोडा ,और बहुत कुछ पर इंसान ने मदद में अहसान , सहायता में स्वार्थ और सहयोग के समय सुपीरियरटी दिखाई जो स्वयं बहुत बड़ा कलंक है |
- जीवन में यदि स्वयं की सफलता सुख और शांति की आवश्यकता है तो निम्न बातों पर ध्यान अवश्य दें |
- समय चक्र ने आज यदि मुझे परेशां किया है तो कल आपको भी परेशां करेगा आप स्वयं दूसरों कि सहायता के लिए अवश्य तैयार रहें |
- हर परिस्तिथि पर आपको अपना निर्णय लेकर कार्य रेखा बनानी चाहिए अन्यथा आपके तटस्थ रहने से समय आपके अपराध को कभी माफ़ नहीं करेगा |
- मानव का जन्म उदारता ,दया, करुणा ,सौहार्द और सबकी सहायता के लिए हुआ है और यदि वह इसका पालन नहीं कर पता तो समय उसे भी वाही परिस्थितिया दे देता है |
- हम अपने मन से अपनी क्षमता के अनुसार दूसरों कि सहायता हेतु उद्धत रहें,और यदि सहायता न कर सकें तो उसे ठीक भी सिद्ध न करें
- दूसरों कि आलोचना कदापि न करें अन्यथा वाही नकारात्मकता आपके मन मष्तिष्क और आचरण में परिलाक्षित होने लगेगी
- दुनिया में सम्बन्ध इस प्रकार बनाये कि आपसे किसीको तकलीफ न हो मगर आप उसे अपनी कमी भी न बनाएँ आप कमल और कीचड का सम्बन्ध याद रखें |
- अपने आदर्शों और दूसरे के गलत कामों को कभी प्रसंशान नहीं दे |
- हर दिन अपने व्यवहार कार्य और सम्बन्धों को सोच कर देखे और यथा सम्भव उनमे धनात्मकता लेन का प्रयत्न अवश्य करें |
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