Monday, January 21, 2013

परिवर्तन स्वीकार कीजिये 100% सफलता मिलेगी

 परिवर्तन  जीवन का आधार है और उसकी स्वीकारोक्ति  और समयानुसार शीघ्र निर्णय से जीवन में बहुत तेजी से सफलता पाई जा सकती है ।सामान्यत जीवन में घटनाएँ गुजरती जाती है और हम अपने परिवेश और समय की स्थिति के साथ चलते चले जाते है ।कभी हमे परिवेश प्रभावित करता है कभी शारीरिक और मानसिक आवश्यकताएं हमारे उद्देश्यों पर प्रश्नवाचक हो जाती है और एक बार हम जैसे ही उनसे हारते है वैसे ही पूरा जीवन सामंजस्य और समस्याओं के समाधान में लग जाता है और जीवन के मूल उद्देश्य हारने लगते है फिर तो केवल एक ही रिजल्ट सामने आता है  केवल हताशा निराशा और अन्धकार ।यह स्थिति केवल कुछ लोगो के साथ की समस्या नहीं है वरन  यह तो बड़े समाज की समस्या का चित्र है ।

दोस्तों जब भी जीवन का आरम्भ होता है तो उसमे तमाम तरह की सामायिक शारीरिक मानसिक परिवर्तन होते रहते है वही  समाज का बड़ा पक्ष  आपके शोषण और उनके लिए आप कैसे उपयोगी सिद्ध हो सकते है  केवल इससे बंधा होता है  वह बार बार यही कोशिश करता है की आप उसके पास जाकर उनके अनुरूप दासता स्वीकार क र  उनका वर्चस्व  स्वीकार करते रहे ,आप जिन लोगो को दोस्त शुभचिंतक और बहुत  निकट का समझ कर जीवन को गति देना चाहते है  इनमे से अधिकाँश लोग आपका शोषण करने लगते है और यही दुनिया का कडवा और नंगा  सत्य भी है  ।वो लोग जिन्हें हम अपना सहारा मान केर चलने का संकल्प करते है वे ही लोग सबसे बड़े अवसर वादी बनकर अपनी शारीरिक मानसिक और संसाधनों की भूख को लेकर आपको आमंत्रण दे डालते है की कभी आपको उनकी हवस की जरूरत  हो तो आप फिर आजाना वो आपको शोषण के लिए तैयार मिलेंगे ।कैसी दुनियां है कैसे है इस बहुल समाज के लोग कैसी है इनकी आदर्श वादिता यह बहुत बड़ी विडम्बना ही तो है और मेरे युवा को इन से ही बचा  कर अपने आप को सिद्ध करना  होगा ।

मित्रों  सफलता के  जिन मूलभूत विषयों का आपको ध्यान  रखना है उसे निम्नानुसार रख सकते  है  शायद समय आपको  विकास की वो दिशा जरूर देगा जिसकी आपको तलाश है


  • अपने मूल उद्देश्यों के लिए आप किसी का सहारा न लें आवश्यकता पड़ने पर प्रशिक्षण  ले सकते है 
  • जो सुख दूसरों से पैदा होगा उसमे आपको हमेशा दुःख ही मिलेगा 
  •  अपनी समय सारिणी और पूरे दिन का कार्य तय करें अन्यथा आप का दिमाग ऋणा त्मक होने लगेगा 
  •  अपने आदर्शों परिवर्तनों के समय आप उन लोगो से कोई परामर्श न लें जो आपको कमजोर बनाएं 
  • किसी  के कुतर्कों का जबाब देना आप के लिए आवश्यक नहीं है 
  • शरीर की आधारभूत आवश्यकताएं 20%और  80% सफलता जीवन के उद्देश्य और स्तर के साथ जीवन के नियत लक्ष्य की पूर्ती में है तो उन्हें उतना ही महत्व दिया जाए जितना वो आवश्यक हो। 
इसके साथ यह आवश्यक है की आप परिवर्तनों के विरोधी न बनकर अपने आपको पूर्ण बनाने की कोशिश करें ध्यान अध्यात्म साधना से स्वयं को स्थिर रखकर खुदको श्रेष्ठ साबित कर सकते है ।

Saturday, January 19, 2013

क्या जरूरी है ये पता तो चले ,स्वयं को आत्म केन्द्रित करें

क्या जरूरी है ये पता तो चले 
स्वयं को आत्म केन्द्रित  करें 
जीवन निकलता जाता है छण  छण बीता जाता है और जीवन हर पल मन यह जानने   की कोशिश करता रहता है कि  क्या उसके लिए आवश्यक है ,वह जीवन की हर जरूरत को  किस क्रम में रखे जिससे उसे सबसे ज्यादा संतोष प्राप्त हो सके और वह निरंतर इसी क्रम प्रयास करता रहा है ।उम्र समय परिवार परिवेश और हर बदलती स्थिति परिस्थिति में उसकी प्राथमिकताएं बदलती जाती है और वह अपनी बुद्धि और शारीरिक मानसिक आवेगों से प्रभावित होकर ये निर्णय करता रहता है फिर समय भविष्य में जाते हुए यह निर्णय करता है कि  आपके द्वारा किया हुआ निर्णय सफलता का मायने हुआ या असफलता का मायने ।

अब यही आवश्यकता है  कि यह अपने आपको आत्मकेंद्रित कर के यह विचार करें की  आप वस्तुत;चाहते क्या है  क्योकि जीवन में हर पल आपसे अलग अलग विषय वस्तुओं  की उपलब्धि की मांग  करता रहेगा और आपको यही सिद्ध करना होगा कि आप जीवन के  हर भाग को पूर्ण करके जियें है और आपने जीवन को सफल सिद्ध भी किया है ।

दोस्तों यही जीवन का सार भी है आप जीवन के हर इम्तहान में सफल ही होंगे शर्त यह है की आपको जीवन को हर पल उसी अंदाज़ में जीना है जैसी परिस्थितियां आपसे मांग करती है है इसमें महत्वपूर्ण विषय यह है की आप जीवन की परिस्थितियों में अपने अस्तित्व को खो न दें आपको कीचड और कमल का सम्बन्ध ध्यान में रखना है आपको केवल विकास की आंधी में निर्लिप्तता बनाये रखनी है आप किसी  भी घटना या जीवन की परिस्थिति में खो न जाएँ वरन  एक कार्य पूर्ण करके दूसरे के लिए संकल्पित हो जाए देखिये जीवन आपको वो ऊँचाइयाँ देगा जिसे समय इतिहास और समाज बार बार सराहते हुए आपको इतिहास पुरुष बना देगा ।

Friday, January 18, 2013

महिला सशक्तिकरण

महिला  सशक्तिकरण की बात आज भारत जैसे देश में  बड़ी विडम्बना का विषय है जिस राष्ट्र में माँ की सम्पूर्ण शक्ति में सारे देवताओं के शक्ति सार को तिरोहित किया गया हो, वहाँ आज हम फिर उसे अबला बना कर  सशक्त करना चाहते है शायद यह कितना  चिंतनीय विषय है ।इस सम्पूर्ण व्यवस्था में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हमारी कार्य पद्धति और सामाजिक ढांचे के क्रियान्वयन में कोई कमी अवश्य रही है जो सम्पूर्ण भारतीय परिवेश को प्रश्नचिन्ह बना रही है ।भारतीय समाज विदेशियों और अलग अलग संस्कृतियों का बाहुल्य रहा और वैसे ही प्रभाव  संस्कृति में आते गए ।

विदेशियों और उनकी संस्कृतियों के प्रभाव   सम्पूर्ण समाज पर दिखाई देने लगे और उनमे निरंतर परिवर्तन दृष्टिगत होने लगा ,मुस्लिम सभ्यता और हिन्दू कट्टर वाद ने धार्मिक गतिविधियों में महिला को कम महत्वदिया  वही पुत्रेक्षा की कामना समाज को कर्म और पराक्रम के स्थान पर मोक्ष से जोड़ा गया परिणाम यह हुआ की समाज में महिला शक्ति को पुरुष के सामने कमतर आँका गया ।

दोस्तों आवश्यकता है हमे अपनी सोच और समाज में अपनत्व का भाव पैदा करने की और भारत जैसे देश में एक बार फिर वाही भाव पैदा हो जाए  जिसमे हम कह सकें कि 

जय जय जय महिषा सुर मर्दनी  रम्यकपर्दिन शैल सुते
संकट हरिणी दुरति  विदारणि  दशुतनु  धारणी जय ललिते



Thursday, January 17, 2013

प्रेम

प्रेम का विराट अर्थ है उसे अपने स्वार्थी अर्थों से जोडकर  छोटा न बनाया जाए अबोध बालक का चाँद से अपनी माँ से और अपने रंग बिरंगे खिलौनों से होता नैसर्गिक प्रेम ,माँ का अपने अबोध बच्चे के कपड़ो, भोजन और हजारों चिंताओं के समूह से उलझा जीवनउसी प्रेम की एक बानगी है ।प्रकृति का ब्रह्माण्ड से और प्रत्येक जीव का अपने परिवेश से प्रेम उसी प्रेम की निशानी है ।प्रेम वात्सल्य  -- समर्पण  दया सौहार्द   की परा काष्ठ है उसमे सबकुछ लुटाने का भाव है ,ऐसे प्रेम की परिभाषा केवल ईश्वर ही बना सकता है और यदि आप उस परमेश्वर की श्रेष्ठ कृति है तो अपने  आचार विचार को उसी प्रेम की पराकाष्ठ पर ले जाइये  तो शायद आपको जीवन का सार मिल सके ।याद रखिये शोषण ,लूट ,और भीख और झूठ की बैसाखियों पर हम जिस  प्रेम को आधार देने का प्रयत्न करते है वह हमारेपरिवेश परिवार समाज और जीवन के हर भाग को ऋणात्मक बना डालता है 

महत्व समझे स्वयं का 

महत्व समझे स्वयं का 

जो भी अनिश्चित है  उसे श्रेष्ठ बनाने के लिए इंसानी प्रयास किये जातेहै 
मृत्यु  निश्चित है  परन्तु उसका समय और भविष्य निश्चित नहीं है इस लिए
 हम अपने समय और भविष्य को श्रेष्ठ बनाने के प्रयास में लगे रहते है और 
जीवन उन्हें अमर भी कर देता है जो लोग उस अनिश्चित के लिए  अनिश्चित
 व्यवहार का प्रयोग करते है उन्हें जीवन कभी माफ़ नहीं करता   क्योकि जीवन 
 और उसकी बहुमुलबहुमूल्यता का मूल्य केवल वो ही तय कर पायेगा  जो जीवन 
के हर पल का आकलन करके जिए जो समय को व्यर्थ गवां  देता है समय उसे भी 
व्यर्थ बना देता है ,आप स्वयं समय कार्य और प्रयत्न का क्रिया रूप समझें और 
समय अनु सार  ही उसका महत्व समझे शायद समय आपको महत्व देकर बड़ा बना दें 

Wednesday, January 16, 2013

जीवन के अध्याय में सॉरी नहीं होता


 जीवन  के अध्याय  में सॉरी नहीं होता

आदमी का स्वाभाव स्वार्थों ,लालच और अपने पराये में लिपटा रहता है 
फिर वर्षों की साधना और कठोर नियंत्रण के बाद वह अपने आप को परमार्थ 
सत्य और अहिंसा के मार्ग पर ला पाता  है  वहां यह प्रश्न अवश्य बना रहता है कि 
हम कितना सफल हो पाए और यही निर्णय करने में जीवन बीत जाता है

Tuesday, January 15, 2013

मिलें मगर सावधानी से

 संसार में अनगिनत लोग हमे मिलते है जो हमे अपने अपने अनुसार 
चलता देखना चाहते है परन्तु आदमी जो अपने अनुसार रास्ते बनाते है वो ही जीवन में सफल हो पाते वो ही  इतिहास पुरुष होते है ,हम किसी से मिलकर अच्छा अनुभव करते है तो शायद धनात्मक है 
जिनसे मिलकर हमे भय अपराधबोध , और जीवनकी ऋणात्मकता का अनुभव हो वो सब हमारे  जीवन को स्वयं प्रश्नचिन्ह बना देंगे और जीवन व्यर्थ साबित होगा जैसे हम भीड़ बन  कर  पैदा हुए और भीड़ बनकर गुमनाम हो गए ।

Wednesday, January 9, 2013

स्ट्रेस मनेजमेंट - योग और धर्म (Stress Management - Yoga and Religion)

  stress management 

don't think about negative 

ऋणात्मक सोच से हटकर स्वयं को एकत्रित करो स्वांसों के क्रम को बदलो और तुरंत नकारात्मकता को धराशाही कीजिये अब अपना नया अध्याय लिखिए जीत का ख़ुशी का और सबको पीछे छोड़ने का --------- 

 

जीवन  हर विकास के साथ अनेकों समस्याएँ , अभाव और कमियां पैदा करता रहता है और आदमी अपनी ही बुद्धि के हिसाब  से उसके हल ढूढता रहता है और स्वयं को शांत करता रहता है ,समय , आकांक्षाएं , और नए युग की तकनीक के परिवर्तन उससे और अधिक आपूर्तियों की मांग करते है ,वह भी पूरी ताकत से उनके पीछे भगा चला जाता है मगर बहुत कम बार वह उनके बराबर पहुँच कर स्वयं शांति का अनुभव कर पाता है | 

 

मित्रों सुख का सम्बन्ध मन और आत्मा का विषय है जबकि स्ट्रेस या  मानसिक दबाब का कारण अंतः  मन का विषय न होकर बाह्य जगत  की उपलब्धियों और दूसरों के साथ उसके प्रतियोगी स्वरुप से है , और सबसे बड़ा महत्व पूर्ण बिंदु यह है  कि आज हम जिस समाज में रहते है उस समाज के हर व्यक्ति हर सम्बन्ध से प्रतियोगिता करने लगते है परिणाम यह कि उनकी उपलब्धियां उनके ज्ञान और उनके हर उस  गुण से जिसमे हम स्वयं को छोटा समझते है उससे ईर्ष्या करने लगते है परिणाम हमारी शांति स्वयं नष्ट हो जाती है |

 

एक महत्व पूर्ण विषय यह भी है कि हमारी वैचारिकता उन विषयों से भी चिंतित रहती है जिसमें  हमारा कोई वश  होता ही नहीं है ,इंसान के जीवन के लगभग १०%भाग पर ही उसका वश चलता है शेष ९०% भाग पर उसका वश  ही नहीं होता और सबसे बड़ी विडम्बना यह कि वह उस ९०% भाग को सोच कर परेशान होता है जिस पर उसका वश  ही नहीं था,घर कैसे बनेगा ,बच्चे पढ़ क्यों नहीं रहे , पैसा  कैसे आएगा , जीवन में सुख कब मिलेगा , हमेशा दुःख मुझे ही क्यों मिलता है ,मेरा क्या होगा , मेरे साथ सब ख़राब व्यवहार क्यों करते है , उसकी जितनी उन्नति क्यों नहीं मिली , सब मेरे से बड़े क्यों है कहने का अर्थ यह कि जो हमारे सोच के विषय नहीं होने चाहिए वो हमे मानसिक दबाब  दे रहे  और जिनपर हमारा कोई अधिकार भी नहीं है | 

हम अपने ही पीछे पड़े है स्वयं को बेचारा बनाने की होड़ में स्वयं को साधन हीन , अज्ञानी और  सहानभूति का पात्र बनाये रखना चाहते है क्योकि न तो हमे स्वयं पर न ही ईश्वर पर कोई विश्वास हो पाता  है ,हम पूरे जीवन बेचारा बन कर सहानुभूति की खोज में रह कर सम्पूर्ण जीवन मानसिक दबाब के सुपुर्द करके स्वयं  के जीवन को नाकारा सिद्ध कर डालते है , जबकि यह प्रयत्न हम सकारात्मक विचार श्रंखला में या ईश्वर के विश्वास के सहारे रख देते तो शायद जीवन का हर चिंतन आपको पूर्ण शांति बनकर आपको पूर्ण कर देता | 

 

योग मार्ग में मानसिक दबाब के हल को निम्न माध्यम से समझा जा सकता है


 जीवन  स्वयं बंधा  है अपनी रचना, स्थिति और संपूर्ण ब्रह्माण्ड में उसकी उपस्थिति से। मनुष्य एक पूर्ण चेतना और गति शील इकाई है जो संपूर्ण  ब्रहमांड को उसी तरह प्रभावित करता रहता है जिसप्रकार ब्रहमांड उसे प्रभावित करता है  अर्थात वह जो पिंड वही  ब्रहमांड की लोकोक्ति अपना पूर्ण स्वरुप दिखाती है ।

आदमी ब्रह्माण्ड के दो बड़े शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र   पृथ्वी एवं आकाश  के बीच अवस्थित है और हर जड़ और चेतन अथवा जो भी  भौतिक रूप से दिख रहा है अपने अलग अलग चुम्बकीय क्षेत्रके साथ गति शील है ,यहाँ हर दृश्यमान  व्यक्ति, वस्तु, इकाई  अपनी एक अलग सत्ता और चुम्बकीय क्षेत्र के  आकर्षणके साथ  है जो बड़े चुम्बकीय ध्रुवों  के बीच गति बनाये रहता है और यही है संसार  और उसका चमत्कारिक प्रभावी स्वरुप ।लगता यह है कि  हम किसी चुम्बकीय  शतरंज की बिसात पर चल रहे वो मोहरे है जो स्वयं अपनी छोटे चुम्बकीय अस्तित्व के साथ बोर्ड से यथा स्थान चिपके हुए है


प्रथम एवं द्वतीय चित्र में प्रथम त्रिभुज अपने छाती के दौनो बिन्दुओं से ब्रह्म रन्ध्र से सम्बंधित है यह मनुष्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्रिभुज है इस त्रिभुज में  चार चक्र प्रभावित हो रहे है

सहस्रार ----------------------ऊं

आज्ञा चक्र -------------------उ

विशुद्धि  चक्र ------------------हं

अनाहत  चक्र -----------------यं

वैसे  तो जीव के शक्ति केंद्र उसके अनुरूप ही महत्व पूर्ण है परन्तु मनुष्य को ज्ञान परमार्थ और सीमा रहित विकास से बंधा  माना गया है यही त्रिकोड उसके मन  मष्तिष्क और सोच को प्रभावित करता है ।प्रथम त्रिकोड में

गृहण शक्ति क्रोध प्रेम चेतना   समर्पण दया समभाव स्वार्थ परमार्थ हिंसा

नेत्र दृष्टि  अनुभव निर्णय वचन शून्यता पराक्रम भय  स्वांस जीवन गति एवं  रिदम  के साथ चलती हुई लय है और यह त्रिकोड अपने आपमें भय क्रोध रोग और आदमी के व्यक्तित्व को सहज ही समझा देता है इस त्रिकोड को साधने के लिए उन्हीं मन्त्रों का प्रयोग  किया जा  सकता है और इससे शत प्रतिशत तमाम  व्यक्तित्व को बदल जा सकता है यहाँ सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है की आप स्वयं के प्रति इमानदार हो जाएँ


द्वतीय त्रिकोड  का मूल भाग गुदा और गुप्तांग के मध्य छोटी गणेश आकृति - कुण्डलनी- से छाती के दौनो बिन्दुओं  तक माना गया है जैसा चित्र में स्पष्ट है इस त्रिकोड में

मणिपूरक चक्र --------------रं

स्वाधिष्ठान  चक्र -----------वं

मूलाधार  चक्र ---------------लं

यह इन चक्रों के आधारभूत मंत्र है इस त्रिकोड से संसार और शरीर चलता है

शोधन, आबंटन, मल, मूत्र, भोजन, वितरण , चेतन ,केन्द्रीयनियंत्रण, सत्व ,और अपविष्ट का यही केंद्र है यही त्रिकोड सन्तति और हिरण्यगर्भ  का उद्गम माना गया है इनके प्रभाव से सम्पूर्ण शरीर की आधार भूत  संरचना जुडी रहती है


तृतीय त्रिकोड  मूलाधार से बाएं एवं दाहिने पाँव के अगूंठो तक फैला माना गया है यह त्रिकोड उस शक्ति केंद्र को प्रभावित करता है जहाँ से आपका सम्पूर्ण व्यक्तित्व पृथ्वी से जुडा है एक अंगूठे से प्रवेश करता चुम्बकीय चक्र बनाकर नियत गति से दूसरे अंगूठे से निकलता हुआ एक चक्र बनता रहता है और यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है आधार नियंत्रण शक्ति संचालन नियम गति लय और सम्पूर्ण शरीर के  नियंत्रण बिंदु है ।


अर्थात यह स्पष्ट है कि सम्पूर्ण शरीर में मूल अवयव स्वयं एक ऐसी गति लय और स्पंदन से जुड़े है जिसको मूळत:कोई अज्ञात एवं  चमत्कारिक शक्ति संचालित कर रही है और अनेक वैज्ञानिक केवल इस पर ताकत लगाए हुए है की वो है ही नहीं परन्तु कुछ उसके अस्तित्व को मूलत ; मानते है जो है ही नहीं तो उसका जिक्र क्यो।

सार स्वरूप यह कहा जाता है की स्ट्रेस   शक्ति और व्यक्तित्व के मूल में आपके शरीरकी कार्य  प्रणाली महत्वपूर्ण भूमिका अदा  करती  है और उसके लिए नियत मंत्र  साधना से और धनात्मक परिवर्तन किये जा सकते है ।

 

निम्न आधारों को अपनाइये और  मानसिक दबाब पर नियंत्रण 

  • हर समस्या से स्वयं को जोड़ने का प्रयत्न ना करे ,क्योकि दूसरों की समस्या से आपका कोई सरोकार नहीं है और आप उससे सबक लेकर वो त्रुटियाँ ना करें जो दूसरे करके कष्ट भोग रहे है | 

  • मनुष्य स्वयं ही पूर्ण मानवीय श्रष्टि है उसके पालन में सकारात्मक जीवन शैली का प्रयोग करें क्योकि मनुष्य के अंदर और बहार की शारीरिक रचना से असंख्यों श्रष्टि पलती  है | 

  • अपने सकारात्मक चिंतन को इस प्रकार व्यवहार में लाएं की आपका हर कार्य समयानुसार पूर्ण हो ही जाएंगे और समयानुसार ही आपमें वे सारी शक्तियां भी आजायेंगी जिससे आप जीवन को जीत पाएंगे | 

  • एक परम शक्ति सम्पूर्ण ब्रम्हांड का नियंत्रण कररही है और  वही सकारात्मकता और श्रेष्ठ जीवन का मार्ग प्रशस्त करने की शक्ति रखती है उसके विश्वास और अपने परिश्रम पर गर्व करना सीखिये | 

  • दूसरों के नकारात्मक चिंतन से आपके सारे ब्यक्तित्व में नकारात्मकता आरम्भ हो जाएंगी और आपका विकास का  उद्देश्य स्वयं ही अवरुद्ध हो जावेगा | 

  • आपको यह गर्व होना चाहिए कि आपके पास क्या है।, आपके पास क्या नहीं है इसके रोने से आपको कुछ भी  प्राप्त नहीं होने वाला है उससे तो स्वयं आपको ही नकारत्मकताएं मिलाने लगेंगी | 

  • मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है और उसमे अपरे शक्ति भी है , परन्तु जबतक अपने बनावटी आवरणों ,-काम क्रोध मोह लोभ मत्सर मद  इन छै आवरणों से मुक्ति नहीं हो सकेगी तब तक उसका पूर्ण शक्ति स्वरुप प्रकट नहीं हो पायेगा -धीरे धीरे स्वयं पर विचार कीजिये । 

  • शरीर की शक्तियों के साथ स्वयं की आंतरिक शक्तियों पर भी सतत ध्यान बनाये रखिये क्योकि आपको वहीँ से पूर्णता और शांति के मार्ग प्राप्त होंगे | 

  • आपका विकास और शान्ति दूसरों की पूर्णता से ही है इसलिए स्वयं की शांति और विकास के लिए आपको दूसरों के कल्याण की भी कामना करनी चाहिए | 

  • किसीने आपका कितना शोषण किया यह महत्व पूर्ण नहीं है महत्व पूर्ण यह  कि  आप उसकी शोषण की घटना से अधिक इस बात को बार बार याद करके आप नकारात्मक बने रहे यह ज्यादा बड़े त्रुटि है | 

  • समाज परिवार मित्रों और सम्बन्धियों की नकारत्मकताओं का चिंतन न करते हुए उससे जीवन के सिद्धांत बनाइये जिससे  पुनः शोषण नहीं किया जा सके | 

  • स्वयं की शक्तियों का सदैव चिंतन कीजिए यह विचार कीजिए कि आपका जन्म निश्चित उद्देश्य की पूर्ती के लिए हुआ  है और आपको एकाग्र करके उसे पूर्ण करना है |


अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...