Sunday, September 13, 2009

क्यों लगते है कुछ लोग अपने

जीवन के साथ आदमी को निरंतर जीना पड़ता है बड़ी संजीदगी से और बहुत बड़े जीवन में उसे अनगिनत लोगों सेमिलना होता है कुछ होते है जो सामान्य बनकर भुला दिए जाते है कुछ काम के साथ ही अपना अस्तित्व रख पातेहै ,और कुछ संबंधों में स्वतः पैदा होते है |मगर आज मै उन संबंधों की बात कर रहा हूँ जो बेनाम है उनका उनकाप्रभाव मनः मष्तिष्क पर इतना अधिक होता है जिसे समझ पाना सीमा में रखना और अच्छे बुरे का विचार करनासम्भव ही नहीं होता है क्योकि वे जीवन चक्र और पूर्व जन्म के अनसुलझे सम्बन्ध है जो इस जन्म में अपनीआपूर्ति चाहते है |आदमी बार बार यह समझने का प्रयत्न अवश्य करता है की वह कहीं ग़लत तो नहीं है ,क्या वहस्वार्थी तो सिद्ध नहीं होरहा आदि बहुत से प्रश्न अनसुलझे ही खड़े रहते है सबके बीच केवल एक भाव रहता है देने कासब कुछ देने का ,शायद ये सब बहुत दुर्लभ और ईश्वरीय प्रदत्त स्थिति है |

सामान्यत जो सम्बन्ध हमारे काम के साथ पैदा होते और ख़त्म होते रहते है उनका अस्तित्व प्रभाव हीन ही रहता है,जबकि कुछ सम्बन्ध बिना किसी परिचय के एक नजर में ही तय हो जाते है फिर तो समय परिस्थिति के अनुरूपहमे वही व्यवहार करना होता है जो समय मान्यता और आदर्शों के अनुरूप होता है जबकि उससे कई गुना प्रेम मनके अन्दर ही दबा रह जाता है क्योकि वह समय के और आदर्शों के अनुरूप सही नही लगता |

जीवन का गतिशील चक्र जीवन तरंगों को जो ध्वनी तरंगे गतिमान करती है उनके अणु परमाणु एक गति मै हीगतिशील होते है ,इनमे पोजेटिव नेगेटिव दौनों होते है पोजेटिव पोजेटिव की ओर और नेगेटिव नेगेटिव की ओरप्रभावित होते है ,यहाँ विरोधी स्वाभाव वाली तरंगे एक दूसरे के मध्य वैमनस्यता ओर धनात्मक तरंगे अति प्रेमउत्पन्न करने वाली होती है ,ये बात और है की आदमी परिस्थिति का दास है उसे एक आदर्श रूप में जीवन जीनेका भान बना रहता है और वह इसके अनुरूप ही व्याव्हार करता है |

जीवन तरंगे प्रकृति का सत्य है वे सहज और अनंत प्रेम की पारा काष्ठा होती है, वही ईश्वर का स्वरुप भी है ,उसका रंगरूप आकार सम्पूर्ण ब्रहमांड से अधिक विशाल है और जिसमे सम्पूर्ण जीवन का सार भी है ,सम्पूर्ण पृकृति सेनिस्वार्थ प्रेम और हर जीव पर दया क्षमा और सहजता का व्यवहार इस प्रेम की प्रथम सीडी है ,और यहीं सेमानवीयता की पहली पाठ शाला अपना पहला अध्याय शुरू करती है ,और यही आदमी को सर्व श्रेष्ठ और इतिहासपुरूष बना देती है |
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यही जीवन का सार भी है अनंत और सहज प्रेम

1 comment:

हेमन्त कुमार said...

निःस्वार्थ भाव के संबंध सदैव साथ रहते हैं
उनसे अलग नहीं हो सकता है कॊई ।

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