अपनी सफलता और शक्ति सिद्ध करें
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मेरा नाम शुभ्रा है ,कुल मिला कर परिवार मैं पिताजी माँ और भाई चार ही लोग थे , पिताजी आबकारी विभाग में एक विभाग के विभागाध्यक्ष थे, पूर्णतः ईमानदारी की प्रति मूर्ति ,लोग उनकी जगह जगह प्रसंशा करते रहते थे ,लोग यह जानते थे की दुनियां इधर से उधर हो सकती है , मगर हमारे जानकी बाबू कभी एक पैसे के बेईमान नहीं हुए, इस लिए कोई भी विभाग का नया आई ए एस अधिकारी आता था ,तो वो बड़े सम्मान की दृष्टी से जरूर मिलता था बाबूजी से ,और जीवन कम साधनों में भी बहुत अच्छे से चल रहा था ,माँ का तो क्या कहना, हमेशा अपने काम ,पूजा और व्यवस्था में ही लगी रहती थी, पूछती रहती थी बेटा आज क्या बनाऊं, क्या पहनूं क्या करूँ , कभी कभी झल्ला पड़ती थी करलो जो मन में आये , ये भी कोई पूछने की बात है ,बेचारी चुप होकर अपने आप को दूसरे काम में लगे रहने का या दिखाने प्रयत्न करने लगती थी ,फिर बाद में मुझे ही लगता था , गुस्सा तो बहार अपने दोस्तों से लड़ाई का था ,इन पर क्यों चिल्लाई ,मन अंदर तक भीग जाता था दुःख से ,पर कह ही नहीं पाती थी |
कॉलेज में पंकज अकेला निकटतम मित्रों में था, हम दोनो एम् ए इंग्लिश फाइनल के छात्र थे ,पंकज नागपुर से मुंबई आकर अध्ययन कररहा था और पिछले डेढ़ साल में हमने बड़ा अच्छा समय बिताया था ,मेरी डिवीज़न हमेशा क्लास में फर्स्ट ही आती रही और इसकारण ही पंकज मेरे संपर्क में आया था,फाइनल एक्जाम अभी हो चुके थे थीसिस जमा करदी गई थी, रिजल्ट के बाद सोचती यह थी कि, पीएच. डी करुँगी, क्योकि हमारे यहाँ आर्थिक तंगी की वजह से कोई ज्यादा पढ़ ही नहीं पाया था |
कॉलेज की केंटीन में आज बड़ा भारी हो हल्ला था ,शुभ्रा ने पंकज के जन्म दिन के उपलक्ष में बड़ा इंतजाम किया था ,सारी केंटीन को अलग ढंग से सजा दिया गया था, और तीन वर्षों की अच्छी दोस्ती में ये तो बनता था न , हल्की ड्रिंक पार्टी , खाने का बड़ा इंतजाम और म्यूजिक पार्टी का आनंद ही कुछ और था ,बड़ी देर चली थी पार्टी, ख़त्म होने पर पंकज ही उसे घर छोड़ गया था , छोटा भाई नुकुल जो कुल १२ वर्ष का था सातवींकक्षा में पढ़ रहा था ,इन्तजार ही कर रहा था, फोन करते ही उसने है दीदी आओ खोलता हूँ दरवाजा ,बिना आवाज के दरवाजा खोला और दबे पाँव से दोनों अपने कमरे में आगये और थोड़ी थोड़ी बात करके तेज नींद में सो गया था नुकुल, देर तक पंकज बात करता रहा लाख कसमें वादे और जीवन के तमाम सपनों साथ मैं सो गई थी |
समय बीतता गया अचानक दरवाजा बजा ,एक अंकल आये पिताजी लिपट गए उनको ,उन्हें देख कर माँ भी खुश हुई, बोली देवकांत बाबू आपको १० वर्ष बाद देख पाएं है हम लोग, खाना नाश्ता और बातों के दौर चलते रहे , अचानक बाबूजी ने पूछा देवकांत कैसे आये हो ,क्या नाग पुर में आपको कोई काम था बता दिया होता , हमारे विभाग में जो कमिश्नर आये है न ,उनके भाई विक्रम सिंह है ,उनका लड़का पंकज यहाँ वि. वि. में अंग्रेजी में एम् ए कर रहा है ,उसका गौना का कार्यक्रम चल रहा था ,वो कहे क़ि मार्कशीट हम ले आये तो सोचा ठीक है , शुभ्रा ने झपट कर कागज हाथ से लिए ,ऐसा लगा हजारों बाल्टी पानी डाल दिया हो किसीने उस पर ,फोटो समेत वो सारे कागज़ पंकज के ही थे ,देवकांत बाबू ने बात ही बात में बताया कि शादी के १२ वर्ष बाद हो रहा है गोना , बदहवासी में यही पूछ बैठी मैं चाचा जी ,आप इनको जानते तो हो न ,हां बेटा अच्छे से ये ही तो छोड़ गया था बस पर हमें | अब कोई प्रश्न बाकी ही कहाँ रहगया था ,मुश्किल से दो रोज बिना खाना पानी के निकले सब परेशां थे ,अचानक नुकुल ने आकर बाबूजी को कहा दीदी ने जहर पी लिया है ,अभी हांल रो रही थी ,माँ बाबूजी चिल्ला चिल्ला कर रो रहे थे और जैसे तैसे वो अस्पताल लेकर पहुँच गए थे शुभ्रा को |
जिले के सबसे बड़े अस्पताल में सबसे सीनियर डॉक्टर रॉबर्ट का कमरा सामने ही था आई सी यूं के,एक डॉ को बुलाया गया था ,डॉ राबर्ट कुछ पल देखते रहे शुभ्रा को ,अचानक जोर जोर से चिल्लाने लगे जल्दी करो,ओ टी में लाओ ,जल्दी पूरा स्टाफ भागने लगा ,ओ टी में जाते ही डॉ रॉबर्ट ने दो नलिया पेट में डाली हुए पूरे पेट को अंदर से धो डाला , बेहोशी के लिए जल्दी जल्दी एंटी डोज दिए और जोर से चिल्लाये ये दवा भी नहीं है ,जाओ दवा वाले से बोलो डॉ रॉबर्ट करेंगे पेमेंट ,३ घंटे बाद शुभ्रा को हल्का हल्का होश आया था ,देखा डॉ रॉबर्ट अभी भी दूर एक कुर्सी पर बैठे मेरी और अलपक देखे जा रहे थे ,मेरी हलचल से वो दौड़ कर आये , नर्स डॉक्टर्स की भीड़ लग गई हर्ष नाद सा था, एक डॉ बोल रहे थे, सर आप तो सुबह से घर नहीं गए थे , ये तो सर चमत्कार है ,डॉ रॉबर्ट ने बड़े प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरा था बड़े आश्चर्य मैं उनके छुपे हुए आंसू देख पाई थी,जाते जाते बोले गुड नाईट यंग विनर लेडी , जूनियर डॉ कह रहे थे जब आप लोग ८ बजे आये तब डॉ रॉबर्ट जा ही रहे थे घर, पता नहीं किसी का फ़ोन आया या आप उनके कोई रिश्तेदार है ,वो आपके लिए ऐसे ही लगे रहे थे ,इस समय वो पूरे अस्पतालों के डायरेक्टर है |
दूसरे दिन एक संभ्रांत सी महिला और डॉ रॉबर्ट मेरे कमरे में आये, कैसी है हमारी यंग विनर लेडी ,मैं हंस दी थी, माँ पिताजी के कुछ समझ नहीं आया यह चमत्कार ,डॉ अपने काम पर चले गए थे ,मैंने उस महिला की तरफ विस्मय भरी नजरों से देखा वो मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोली रिलेक्स एक बड़ा फूलों का गुलदस्ता रख कर बोली बेटा तुम यह जानना चाहती हो कि डॉ रॉबर्ट इस तरह से क्यों परेशां हुए तुम्हारे लिए साथ क्या रिश्ता है , बेटा हमारे तुम्हारी तरह एक बेटी थी मोना ,वह आई पी एस की तैयारी कररही थी ,उसके किसी दोस्त ने धोखा दिया था उसे, गम सुम सी रहने लगी थी वो ,एक रात ऐसे ही उसने जहर खा लिया ,आज से एक साल पहले बिलकुल तुम्हारी तरह थी वो ,डॉ रॉबर्ट बहुत प्यार करते थे उसे , उस दिन उसके पापा अस्पताल की एक मीटिंग में बाहर थे ,लेट आये ,जहर अपना असर कर चुका था, हमारी बिटिया जोर जोर से चिल्ला रही थी पापा मुझे बचा लो, मैं आई पी एस बन कर समाज को न्याय दूँगी, मगर डॉ रॉबर्ट उसे नहीं बचा पाए ,उनके हाथों में उसका सिर था और वो हमें रोता छोड़ कर चली गई ,कल रात बहुत रोये है बेटी की फोटो के सामने , एक पल में जीवन ने मुझे रास्ता दे दिया था , डॉ रॉबर्ट मेरे दूसरे पिता भी बन गए थे ,मोना की सारी किताबों ,पिता की ईमान दारी और जीने के एक अद्वतीय संलकल्प ने मुझे आज आई पी एस शुभ्रा देसाई का बड़ा ओहदा दे दिया था ,स्टेज पर एक और पापा दूसरी और डॉ रॉबर्ट गले लग कर जोर जोर से रो रहे थे ,उनकी मोना आज आई पी एस बन गई थी |
जीवन में आप अपने लिए जितना अच्छा पूर्ण और श्रेष्ठ सोच सकते है उतना कोई दूसरा कैसे सोच पायेगा , आप अपने आपको जब परिस्तिथि और समय के आधीन छोड़ देते है, तो आपकी कर्त्तव्य शीलता की हत्या स्वयं होने लगती है और उसे बचाने के लिए आपको हर समय जागरूक होना आवश्यक है ,संकल्प का आरम्भ जहां से भी हो , उसके प्रति आपका सकारात्मक भाव और अपने कर्तव्यों की रूप रेखा का विचार होते रहना चाहिए ,जब भी आप समाज के सहारे चलते हुए अपने चिंतन और अपनी क्रियान्वयनता से दूर हटते है ,एक अकर्मण्यता का साम्राज्य आपको जकड़ने लगता है और आप धीरे धीरे अपने ही मकड़ जाल में फंसने लगते है ,बस इन सब से मुक्ति का मार्ग यही है समाज पर आश्रित होकर मत चलो ,अपने ऊपर समाज को आश्रित रहने दो और समयानुसार सबकी मदद करते रहना ही आपका एकमात्र संकल्प होना चाहिए | स्वयं को अकर्मण्य मत बनाइये आपमें जितना अधिक कार्य करने का संकल्प होगा आपको उतना ही अधिक संतोष प्राप्त होगा |
जीवन की जागृति के लिए इन बिंदुओं पर भी विचार करें |
जीवन बहुमूल्य है और उसका सौदा किसी भी तरह नहीं किया जासकता जबतक राष्ट्र हित या कर्त्तव्य के लिए बलिदान का अवसर न हो |
सम्बन्ध आपके संकल्प से बड़े नहीं हो सकते, जितना समय आप संबंधों को देते है उसका कुछ भाग ही सही अपने संकल्प को देना आरम्भ कीजिये सफलता आपकी होगी |
अपने जीवनकी क्रियान्वयनता से सम्बंधोंका कोई रिश्ता नहीं रखे ,जीवन में सम्बन्ध और संकल्प अलग अलग बिंदु है उन्हें मिलाये नहीं |
समय समय पर अपने संकल्पों के लिए किये जाने वाले कार्यों का मूल्यांकन करते रहें ,अन्यथा आप एक जगह खड़े गाड़ी चलने की कोशिश करते रहेंगे ,एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाएंगे |
जो ज्यादा चापलूसी करें उनसे प्रथम दृष्टि में ही सावधान रहे, वे अपने कारणों से आपके साथ है और उन्हें अपना कार्य सिद्ध होने पर चला ही जाना है |
जीवन में आपका कार्य सकारात्मक कर्त्तव्य से जुड़ा रहना चाहिए, जिससे जीवन में हर दिन कुछ नया करने का भाव बना रहेगा |
संसार में एक ईश्वर विद्धमान है वह आपके हर अच्छे बुरे कार्य का सह भागी है, आपको स्वयं को एकाग्र कर उससे जुड़ने का प्रयत्न करना चाहिए |
दुनियां का सबसे खराब समय जब आप समझे ,तो यह आशा अवश्य जागृत कीजिये, कि ख़राब के बाद अच्छा समय चालू होना ही है |
आप सकारात्मकता से समझौता कीजिये ,श्रेष्ठ ऊर्जा वाले लोगों से स्वयम जोड़े रखे ,बुरे समय में आपको इनके परामर्श की आवश्यकता होगी |
अपने आदर्शों से समझौता मत कीजिये, समय के साथ आपको पूर्णता मिलेगी ही ,क्योकि आपका आज से किया गया संकल्प, कल आपको पूर्ण कर ही देगा |
जितनी बड़ी सफलता का समय आना होता है, वह उतनी ही अधिक समस्याओं के समाधान आपसे कराने की चाह रखता है, तो ऐसे समय में धैर्य से काम लें |
सदैव यह दृण निश्चय रखें कि सफलता आपको ही मिलनी है ,और उसके लिए आपको ज्यादा और सही कार्य करना है , सच जानिये दुनियां की सारी सफलता शांति आपके सामने नत मस्तक हो ही जाएंगी |
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