Saturday, April 18, 2020

ब्रह्माण्ड का आधार मै हूँ I am the basis of the universe (रामायण से पूर्व गीता उपदेश )

ब्रह्माण्ड का आधार मै हूँ  
I am the basis of the universe
(रामायण से पूर्व गीता उपदेश )
महानारायण अर्थात ब्रह्माण्ड का नियंता बहुत ज्यादा व्यस्त थे एक बहुत बड़ी कलाकृति बना रहे थे ,सारे ब्रह्माण्ड की सुंदरता ,शक्ति ,सोच, पांडित्य और श्रद्धा ,साधना ,कर्म, योग स्थिरता ,वैभव ,विद्वता और असंख्य  गुण  डाल दिए थे अपनी कृति में ,फिर उसको शक्तियां देना आरम्भ की अस्त्र ,शस्त्र , दिव्य और अजेय  मारण , संहारक और दुर्लभ शक्तियों से उसे सजाया गया ,मन की ओजस्विता इतनी कि अपने मन की गति से भ्रमण , पृथ्वी आकाश पाताल  और सारे ,दृश्य अदृश्य घटनाओं का सहज ज्ञान डाला दिया गया ,टूटने फूटने का डर सबको है, नारायण ने अपने पुतले को सिद्ध किया शस्त्र , अस्त्र  ,  तीर ,भाला ,नुकीली कटीली और पृथ्वी पर उत्पन्न कोई चीज तुझे काट नहीं सकती , तू गिर के नहीं टूट सकता ,दुनिया की कोई शक्ति तुझे नुकसान नहीं पहुंचा सकती ,तू अजेय ही रहेगा , और जो चाहेगा वो करने में सामर्थ्य वान  बनेगा ,दुनिया का कोई व्यक्ति और जीव तेरा अंत नहीं कर सकता, क्योकि तेरा निर्माण मैंने किया है और तुझे दुनिया का सबसे शक्तिशाली और सुंदर कृति बनाया है , न आज तक ऐसा पुतला बना है न बनेगा | 

पुतले के निर्माण की प्रक्रिया पूरी हो गई थी ,सब और से निरीक्षण करने के बाद ,सब तरफ से संतुष्ट होकर, उस महानारायण ने उस पुतले में प्राण संचार किया ,जीवित किया और उसमे आत्म तत्त्व का निर्माण भी कर दिया, अचानक पुतला एक विशालकाय योद्धा के रूप में महानारायण के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा होगया, उसे चारो और से देखने के बाद महा नारायण ने उसे आवाज दी, महा गर्जन सी ,दृष्टी दी एक महा सम्मोहन सी ,गति दी हजारो अश्वों की चाल सी , भुजाओं का बल सहत्रों हाथियों के बल से कहीं ऊपर था ,और ध्यान दिया उस मनु भागीरथी और  ब्रह्मा सा, कि  वह आपने ध्यान से ही इष्ट को समक्ष पैदा करदे ,उसके छै चक्र स्तंभित और उसके वश में थे ,वह अपने सह्त्रसार में जीवंत सजीव और गति मान था , मन्त्र ,तंत्र ,और विषम यंत्रों का जानने वाला मारण ,मोहन ,वशीकरण ,उच्चाटन कीलन और उद्वासन इन महा षट विद्या तंत्र, का जानकार था नारायणका यह पुतला ,कहने का आशय यह कि  अपार शक्ति ज्ञान और पूर्णता के साथ ,सजीव निर्माण था यह महा नारायण का | 

पूर्ण निर्माण के बाद, बड़ी प्रेम भरी नजरों से देख कर ,पुतले ने महानारायण की स्तुति आरम्भ की ,हे काल पुरुष आप अलग अलग नामों से , अलग अलग युग में पैदा होते रहे और संसार का उद्भव पालन और नाश के कारण भी रहे है ,आप ही आदि है आप ही अंत है , आप ही दुःख है ,आप ही सुख है ,जड़ -चेतन ,अच्छा- बुरा शक्ति- सम्पन्नता  व शक्ति हीनता ,सब आप में ही निहित है ,आप ही हाथी जैसे बड़े जीव में है ,और आप ही चीटीं से लाखों गुना छोटे अदृश्य जीव में निहित है, हे नाथ संसार में जो दृश्य अदृश्य है वो सब आपमें ही निहित है ,आपको बारम्बार प्रणाम ,हे महाबाहो प्रलय काल में आप क्रुद्ध होकर संहारक हुए ,तो कभी पालन करने में माता बनकर सबको पोषण दे रहे थे, ,और आपके द्वारा ही अनंत जगत पैदा होता हुआ दिख रहा था , अनंत ब्रह्माण्ड में अनेक काल मुखों से विलुप्त होते हुए संसार को मैंने देखा है ,तो आपके  अनगिनत हिरण्य गर्भों से पैदा होते हुए संसार भी देखे है यह कहकर पुतला महानारायण के चरणों में साष्ट्रंग प्रणाम करते हुए लेट गया | 

महानारायण ने बड़े वात्सल्य से उसे उठाया और पूछा पुत्र तेरा मन अशांत क्यों है , निसंकोच होकर अपने मन की बात पूछो -- पुतले ने कहा हे दीनों पर दया करने वाले ,मै कौन हूँ ,मेरा नाम क्या है ,मै  किस काम से पैदा हुआ हूँ  और स्वयं को ही नहीं जानता ,इस लिए बड़ा व्याकुल हूँ ,महानारायण ने गंभीर होकर कहा ,पुत्र तेरा नाम रावण है, श्रेष्ठ ऋषिकुल में पैदा होते हुए भी तू  महाराक्षस सा संसार में अवतरित होगा ,तेरा कार्य सम्पूर्ण राक्षस कुल को एकत्रित कर उनपर शासन करना होगा ,दुनियां के सारे राक्षस कुल का तू एकमात्र सम्राट होगा , देवता दानव , किन्नर, नाग और संसार का हर शक्तिशाली तेरे सामने निस्तेज हो जाएगा और तेरा एक क्षत्र  राज्य होगा ,वह भी निष्कटक ,बहुत देर अपनी गुण गाथा सुनी पुतले ने फिर उदास होकर कहा कि ,स्वामी मेरा यह जन्म केवल अपयश के लिए, ख़राब काम करने के लिए या धर्म विरुद्ध कर्म के लिए जाना जाएगा और जिससे मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी कभी , दया कीजिये --- महानारायण बोले पुत्र जब भी ब्रम्हांड में कोई संकट आता है ,तो मुझे ही अवतार लेना होता है , तेरी मुक्ति के लिए भी मुझे स्वयं अवतार लेना होगा ,फिर तेरे कुल समेत सम्पूर्ण राक्षस जाति  का अंत करके ,तुझको मुझमे ही समाना होगा क्योकि मै ही इस सृष्टि कस निर्माणक हूँ, पुत्र इसी तरह हर जीव चर -अचर गोचर - अगोचर में मै  ही उसकी उत्पत्ति पालन और नाश का कारण भी हूँ ,कभी तुझको कंस और मुझे कृष्ण बनाना होता है ,कभी राम मै  बनता हूँ तो रावण तुझे बना कर भेजना होता है और संसार में हर जीव को अपने अनुसार अपना धर्म निबाहना होता है, यह कहकर महानारायण अंतर्ध्यान हो गए ,और पुलस्त्य कुल मेंएक नवजात शिशु की आवाज गूंजने लगी ---

 कर्म ही सबसे  महान विषय है जो आपका भविष्य निर्धारित करता है ,  जिन विषय स्थितियों में आपका वश नहीं है उसमे अपने आपको फँसाए ,बिना वजह के चिंता करके आप वर्तमान को निस्तेज क्यों बना रहे है ,आप में अपरमित शक्ति पराक्रम और अनंत ज्योति है ,जिससे आपको अपने अन्तः को प्रकाशित करना है , आप हमेशा अतीत और भविष्य की सोच से वर्तमान को जोड़े रहे, परिणाम न आपके पास अतीत आपया और ना ही भविष्य वरन इस नकारात्मक सोच के लिए आपको जो मूल्य चुकाना पड़ा ,वो सबसे ज्याद मूल्यवान और महत्वपूर्ण था ,आपने अपना वर्तमान ही दांव पर लगा दिया, जिसकी भरपाई हो ही नहीं सकती ,आवश्यकता इस बात की थी कि हम अपनी कार्य शैली को  इतना परिष्कृत  करें कि कल हमे इसके प्रतिउत्तर में पश्चाताप में न खड़ा हो ना  पड़े | 

 निम्नांकित पर विचार अवश्य करे 
  • ईश्वर एक है उसके सारे रूपों में कोई भेद नहीं है, यदि आप अपने धर्म को सर्वोपरि मानकर दूसरे के धर्मों की अवहेलना करते  अभी ईश्वर  आपसे काफी दूर है | 
  •  अतीत भविष्य के लिए परेशांन  होने से आप वर्तमान की गतिशीलता और उसकी सकारात्मकता को खो रहे है जबकि वर्तमान भविष्य का निर्णायक है | 
  • संसार में स्वयं को जानना और उसकी आदर्श रूप रेखा के साथ कार्य करना ही सबसे बड़ा  धर्म है , आप अपने धर्म के अनुसार कार्य करें | 
  • जीवन आपको बार बार मौके नहीं देता ,किसी गलत कार्य को अपनी गलती मानते हुए ही ख़त्म कर देना तथा प्रायश्चित और गलती स्वीकार कर लेना ही सबसे बड़ा धर्म है | 
  • व्यक्ति की सोच और समझ की एक सीमा होती है और वह अपने से जुड़े निर्णय न्याय संगत ढंग से नहीं कर पाता  अतः उसे विद्वान और बड़ों की सलाह माननी चाहिए | 
  • सचिव , डाक्टर , और गुरु आपके डर से प्रिय  लगने वाली बातें ही बोलने लगे तो राज्य ,धर्म ,और शरीर का विनाश कोई नहीं बचा सकता | 
  • समय पर किसी का अधिकार नहीं है , इस लिए जितना जल्दी अच्छा काम कर सकते है कर लीजिये ,क्योकि समय कल दुबारा आपको मौका दे न दे, इसमें संशय है | 
  • अन्याय अनाचार और नकारात्मकता का फल भी नकारांमक ऊर्जा का सृजन करेगा ,अतः हर कार्य से पूर्व उसकी सकारात्मकता पर विचार करना अधिक आवश्यक है | 
  • स्त्री का निरादर   करना ,बहुत बड़ा अपराध है , जहाँ तक संभव हो उसके सम्मान  के विषय में विचार करते रहिये | 
  • राज्य ,धन वैभव और बल की अधिकता के कारण अहंकार उत्पन्न होता है और यही से दूसरों का अपमान का भाव पैदा होने लगता है जो विनाश की महा जड़ माना गया है |

1 comment:

drakbajpai said...

वही राम कहलाता है तो रावण को भी वही पैदा करता है और मृत्यु के बाद स्वयं में समाहित भी करता है

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