Wednesday, April 8, 2020

वैदिक ऋषियों का महामारी के सम्बन्ध में योगदान Contribution of Vedic sages about the epidemic (कॅरोना महामारी के सम्बन्ध में )

 वैदिक ऋषियों का महामारी के सम्बन्ध में योगदान
 Contribution of Vedic sages about the epidemic
  (कॅरोना महामारी के सम्बन्ध में )
  आज विश्व भयानक महा मारी की चपेट में खड़ा है  तथा कोई हल  दिखाई नहीं  दे रहा है कि  अपने राष्ट्रको इस महामारी से कैसे सुरक्षित करें ,आज विश्व के विकसित देशों में इसकी जिन दवाइयों का अंदाज लगाया जारहा है वो तक  उपलब्ध नहीं है,  हम शून्य  में खड़े  बचाव के मार्ग अपनाने की रण नीति बनाये खड़े है ,क्योकि इतिहास गवाह है, जब जब बड़ी महा मारी आयी सभ्यतायें नष्ट हो गई है, जो भाग कर कुछ एक लोग जान बचा पाए, वो ही आगे की पीढ़ी के लिए बच पाए है ,उस समय भी केवल एक इलाज था सब कुछ छोड़ कर जगल पहाड़ो नदी किनारे बस जाय ,जाए जहाँ संक्रमण का स्तर  कम हो जाए, और जाने अनजाने मौसम और खान पानी देशीदवाये जीवन शैली में प्रयोगित आचार व्यवहार से समय के साथ इस पर नियंत्रण पाया जाता था | 

 ईसा से पूर्व की शताब्दियों से महा मारी के इतिहास आज भी विकास को चिनौती दे रहे है ,जिनसे अरबो की संख्या में जान सख्या ख़त्म हुई है ,प्लेग एंथेक्स ,इन्फ्लून्जा तपेदिक चेचक हैजा आदि की   महा मारी प्रमुख थी जिसमे बड़ी जनसँख्या का भाग मारा गया ,ब्लैक डेथ १३०० में में अनेक हत्या का कारण बनी 
१५१८ से १५२० के बीच मेक्सिको व   यूरोपियन देशों  में भारी तबाही मचाई ये चेचक का प्रकोपित था ,१६१८-१९ में इससे ही भयानक तबाही इसी प्रकार आगे  की शताब्दियों में हैजा टी बी और यल्लो फेवर के नाम से जानी गई १८ १६ हैजा से १९६६ तक अरबो लोगो की मृत्यु का कारण बना इन्हे ७ बड़ी महामारियों में शामिल किया गया 
इसी प्रकार फ्ल्यू ,सन्निपात चेचक खसरा टी बीकुष्ठ मलेरिया और अज्ञात कारणों से भी महा मारी देखने को मिली जैसे इंग्लिश स्वेट का कारण आज तक मालूम नहीं हुआ है 


भारतीय सनातन परंपरा अखंड रही है अनंत काल से उसमे निरंतर परिवर्तन के साथ अनेक आविष्कार जुड़े है जबकि उसके मूल रूप ने तमाम विश्लेषण और शोध के बाद जोमूर्त स्वरुप पाया है वह साधना सिद्धि के बाद के सिद्धयोग माने जाते है वैदिक परम्पराओं में ऋग  वेद में कुल १० मंडलों में ११००० मंत्र निहित है यह पद्यात्मक प्रस्तुतिदेव आवाहन प्रार्थना जल ,वायु सूर्य मानस  और हवन चिकित्सा से सम्बंधित है ,१० वे मंडल में औषधि सूक्त में १२५ औषधियों का वर्णन जो १०७ स्थानों पर पाई जाती है ,यजुर्वेद गति शीलता का वेद है इसमें यज्ञ ,प्रयोग मन्त्र तत्व ज्ञान रहस्य ब्राह्मण आत्मा शरीर पदार्थ ज्ञान का अध्ययन अलग तरह से है , इसके बाद साम वेद में संगीत शास्त्र का सूर्य अग्नि इंद्र की आराधना प्रमुख है ,और अथर्ववेद रहस्यमयी विद्याओं जड़ी बूटी चमत्कार आयुर्वेद से जुड़ा शास्त्र है ५६८७ मन्त्रहै

 सामान्यतः धार्मिक ग्रंथों में महामारी के लिए प्राकृतिक  परिवर्तन कीट कृमि जो दृश्य अदृश्य स्वरुप में होते है उन्हें दोषी बताया गया है तथा युग युगांतर से यही क्रम रहा है कि ये महामारियाँ पर्याप्ततः  प्रकृति और जीवों को प्रभावित करती थी  वैसे तो

अथर्व वेद में जिन रहस्यमयी विद्याओं  के बारे में कहा गया है वो विधि व्यक्ति को नुक्सान पहुंचाने और पुष्टि कर्म के लिए भी उपयोगित की जाती रही है ,चमत्कार  के बारे में अनेक  प्रयोग किये  जाते  रहे  है ,इस महा ग्रंथ में जड़ी बूटी और आयुर्वेद का भी वर्णन  है , बीमारियों को  का सामर्थ्य रखती है ,इस  महा ग्रंथ में ऋग  वेद की तरह हवन विधियों का भी कहीं कही व्यवहारिक वर्णन मिलता है ,जलीय चिकित्सा , हवन चिकित्सा , औषधीय चिकित्सा ,मंत्राचिकित्सा , और सूर्य वायु अग्नि तथा मानस चिकित्सा का वर्णन मिलता है, जिनका उस सीमा तक प्रयोग किया जा सकता है ,जहाँ आप धर्मांध न हो , सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि आपको  के विकास और पुरातन  धरोहरों का कोई श्रेष्ठ सामंजस्य स्थापित करना है, जो मानवता की सेवा में अपना महत्व पूर्ण योगदान दे सके | 

 
अथर्व वेद महामारी के इस पूरे साम्राज्य को दृश्य और अदृश्य कृमि से मानता है ,और इनके नष्ट करने के उपाय भी उसमे निहित करता है यहाँ अलग अलग कृमियो के असंख्यों  प्रकार बताये गए है, जिनकी रचना और रंग  रूप स्पष्टतः वर्णित है
मन्त्र शक्ति के द्वारा ये कृमि को ख़त्म करने के संकल्प से पूर्व  स्वयं को पूर्ण  विश्वास रखना आवश्यक है ,इस विधान में सूर्य इंद्रा पृथ्वी कण्व ,अत्रि जमदग्नि अगस्त्य आदि ऋषियों के नाम से मन्त्र हवन  की आहुति कृमि विनाश में महत्वपूर्ण भूमिका रखती है |

संकल्प  शक्ति -- हम  अधिकांश कार्यों को संकल्प  शक्ति के द्वारा ही सिद्ध कर सकते है ,परन्तु सबसे  बड़ी  विडंबना यह  कि हमारा तमाम चिंतन इस बात पर अधिक महत्व  कि हम  नकारात्मकता कहाँ और कैसे है , हम जिसका ज्यादा चिंतन करेंगें वो चिंतन हमारे जीवन में घटने लगेगा ,शुक्ल यजुर्वेद में संकल्प को केवल संकल्प नहीं कहा गया, उसे शिव संकल्प कहा है जिसका अर्थ है सकारात्मक ,सबके लिए कल्याणकारी

नाद विज्ञान --- एक लय ताल और ब्रह्म वाक्यों का समूह ,जो  आवृति और नाद के कारण अलग अलग तरह के प्रभाव उत्पन्न करते हो कृमि नाशन के कार्य में निश्चित रूप से सामर्थ्यवान  है ,दुनियां के अनेक देशों की धर्म पद्धतियों में घंटा शंख  घड़ियाल  मंजीरे ढोल झांझ  प्रयोग पुरातन धर्म वेत्ताओं ने यही सोच समझ कर बनाये और प्रयोग किये थे

हवन शक्ति -- पांच तत्वों में अग्नि वायु सबसे सशक्त स्वरुप में पाए जाते है, इनमे गुण  यह  कि वे अपने पास कुछ नहीं रखते आपको ही वापिस करदेते है, वह सब जो आप  अर्पित कर देते है , कई  धर्मों में जहा सुगन्धित द्रव्य औषधियां घी और अलग अलग तरह की सामिग्री का प्रयोग कर ऋषियों देवताओं का आवाहन कर जो आहुति प्रदान की जाती है उनसे  वायु प्रदूषण हटाने , वातावरण को दोष रहित बनाने और सम्पूर्ण सौर मंडल को  पवित्र करने का काम किया जाता है |

औषधि शक्ति ---कृमि नाशक  औषधियों में अनेक का वर्णन किया  जाता है वेद में जिन का वर्णन किया गया है वे बहुत है   जिनमे छोटी पीपल ,सुहागा ,फिटकरी ,गुग्गल ,गंधक ,कूट लॉन्ग ,इलाइची ,खैर ,आम पीपल की लकड़ी गूलर  हल्दी दालचीनी अदरक नीम बेल तुलसी गिलोय  सिलाची लाख कपूर पिपरमेंट बच अमलतास का वर्णन  मिलता है इनका प्रयोग असाध्य  बीमारियों को सरलता से ठीक कर सकता  है

निम्नांकित प्रयोग अवश्य करें
  • समय से सोना उठना और दैनिक कार्यों को एक अनुशासन में बांधिए और उनके अनुरूप चलें ध्यान यह रहे कि सूर्योदय  उठना अधिक श्रेष्ठ है 
  •  योग व्यायाम और ध्यान का अभ्यास अवश्य करें इससे ही गति का अभ्यास होगा यदि ध्यान का कोई तरीका नहीं आता हो तो केवल स्वास के आने जाने  को देखो ,आत्म स्थित होने की सहज विधि मिलेगी | 
  • संकल्प  विधि का प्रयोग करें   समय जीवन और उसके उद्देश्यों के लिए कल्याण कारी संकल्प बनाइयें और उनका नित्य प्रति कार्य शैली और पूरा करने का उपक्रम कीजिये | 
  • संकल्प का सीधा सम्बन्ध आपकी आंतरिक ऊर्जा और उसे सकारात्मक प्रयोग में लगाने की योजना की व्यवस्था से है इससे किसी भी स्थिति में जीत हासिल की जासकती है |
  • नित्य की साधना में नांद का बहुत  महत्त्व है, उसके लिए मन्त्रों  प्रयोग करें शंख घंटा ताली आदि का प्रयोग करते रहे उससे सूक्ष्म कृमि नष्ट होने के प्रमाण है | 
  •  चिंतन की सकारात्मकता और उसके विषय और नायक सकारात्मक  होने चाहिए, उनके चिंतन से आपकी क्रिया शीलता में  भी सकारात्मक परिवर्तन आने लगेंगे | 
  • तुलसी मरुआ दोना हर सिंगार ,बेल पीपल नीम  गूलर इनके संपर्क में बना रहना चाहिए इनसे भी अनेक कृमि ख़त्म होते है ,| 
  • सूर्य ,पृथ्वी ,इंद्र वरुण और अगस्त्य अत्रि कण्व  जमदग्नि ऋषियों के  नाम से जल दिया जा सकता हैइनका  आराधना में भी  है | 
  • नित्य के क्रम में हवन  का विशेषः  महत्त्व है इस हवन में बच ,लाख कपूर पीपल गंधक  थोड़ा  लोग गूगल नारियल और खैर आम पीपल की लकड़ी या  गाय के कंडे से अग्नि प्रज्वलित करके हवन करें देव आहुतियों के साथ उपरोक्त ऋषियों की भी आहुति दे 
  • गर्म पानी का प्रयोग फिटकरी एवं सुहागा जला कर उपयोग में लाये ये किसी भी तरह के कृमि के विकास क्रम को ख़त्म कर सकता   है

 

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