women empowerment (महिला सशक्तिकरण )
एक चिंतन
वाज्ञा का कलेक्टर के रूप में ज्वाइन करने का स्वागत कार्यक्रम था यह , आगे बैठी माँ वाज्ञा को देखते देखते सम्पूर्ण अतीतमें विस्मृत सी हो गई थी , आँखों के सामने अतीत चल चित्र की तरह घूमने लगा , पूरे गाँव से दुश्मनी लेकर जीवित रख पाई थी मालती इसको ,जन्म के दिन ही उसे सास के कहने पर दाई ने तम्बाखू मुह में रख कर डलिया से ढक कर रख दिया था ,सुबह उसे मरा हुआ समझकर फेंकने जा ही रहे थे कि बच्ची जोर से रोई ,गहरे नशे में थी वह ,माँ का ह्रदय चीत्कार उठा उसने किसी की परवाह किये बगैर बच्ची को परिवार के सेवादार से छीना और जोर से चिल्लाई खबर दार अब किसी ने हाथ लगाया तो सबको जेल करवा दूंगी ,सारा घर परिवार पड़ोस सब सकते में आगये थे और बच्ची जीवित बच गई थी ,खूब शान और पूरी स्वतन्त्रता से पाला था सबनेउसे ,बड़ी पार्टिया , खुला वातावरण ,पैसे और स्वतंत्रता ने उसे अधिक बद दिमाग बना दिया था, जिद और बेतहाशा पैसे के प्रयोग ने सारी जिद पूरी करने का संकल्प ले लिया था पूरे घर ने | आज वाज्ञा अपने साथियों के साथ दूर पिकनिक स्पॉट पर थी , साथियों ने कोल्ड ड्रिंक में शराब मिलाकर सर्व करदी थी,और बाद में उल जलूल हरकत करने लगे थे , वाग्या ने पूरी ताकत लगाकर रेस लगा दी ,सड़क के किनारे आकर वह बेहोश हो गई थी किसी सज्जन ने उसे अस्पताल पहुँचाया घर को सूचना दी ,अब सारा घर उसे घेरे खड़ा था ,होश आने पर वाज्ञा माँ से लिपट कर खूब रोइ फिर केवल माँ से एक लाइन बोली---- माँ आप तो जानती हो दुनिया कितनी स्वार्थी , खुद गरज और ख़राब है आपने मुझे उससे दूर क्यों नहीं रखा , क्यों नहीं टोका हर जगह गलत जिदों पर ,मुझे मैं तो अबोध थी , आपतो बड़ी थी न , माँ के सामने पूरा जीवन चक्र एकबार में घूम गया , उसे लगा मैं समाज परिवार की रूढ़िवादी सोच को तो हरा आई पर आज इस बिंदु पर खुद को हारा सा महसूस कर रही थी खुद को, माँ भी रोने लगी , हा बेटा यह गलती हो गई, मगर आज वादा करती हूँ की मैं और तुम दोनो जीवनको इतना बड़ा बनाएंगे जहाँ समाज का हर विकास छोटा पड़ जाए , समय बीता और आज वाज्ञा उस जिले की नई कलेक्टर बनी बैठी अपने अतीत को सोच कर जीवन की बारीकियों को समझ रही थी | और तालियों की गड गड़ाहट ने माँ की सोच पर विराम लगा दिया था और माँ हंस दी थी |
हम या तो बहुत कठोर अनुशासन अथवा अनुशासन हीनता की परा काष्ठा पर स्वयं को रखना चाहते है ,और दोनो ही स्थितियों में आपको सहज उन्नति और चिदानंद की प्राप्ति नहीं हो सकती , क्योकि यदि आप स्वछन्द भाव से स्वयं को नियंत्रित नहीं कर सके तो आपका पतन निश्चित है, क्योकि जीवन का उर्ध्वगामी सत्य स्वयमेव विपरीत परिस्थितियों के कारण जब भी रुकता है तो ,वह अपने स्वाभाव के अनुसार नीचे की और जाने लगता है ,ऐसे में यदि नियंत्राण कारी शक्तियों से अंकुश लगा कर उसे नहीं रोका गया तो उससे समूल विनाश की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है और यही मनुष्य के लिए सबसे बड़ी चिनौती भी है |
अभी हाल में एक भारतीय अभिनेत्री को मीडिया ने खूब उछाला ,क्योकि उन्होंने जीवन को एक सिद्धांत पर रख दिया वह था ------------ MY CHOICE -----खूब हंगामा हुआ लोगोने यह कहा शर्म ,लाज , सम्मान , व्यवहार और श्रेष्ठ जीवन शैली के सिद्धांत अपना अलग महत्व रखते है , माय चॉइस का आशय यह कदापि नहीं है कि आप सामजिक और सांस्कृतिक मान्यताये छोड़ कर पाश्चात्य सामाज जैसे आचरण करना और समाज का उपहास करना सीख जाएँ , शायद आपको सुसंस्कृत वातावरण प्रदान करने के पीछे केवल एक सत्य था कि आपमें हर कार्य की ललक बनी रहें , मित्रों भारतीय धर्म यह जानता था कि जीवन के हर भोग को उसने एक सीमा में बांधने का प्रयत्न किया है जिससे वह भोग सुख और संतति का साधन बने ,न कि वह भोग के अतिरेक के कारण मानसिक दबाब , नैराश्य , या जीवन से मोह भंग का कारक भी बन जाये |
1 --------- अति सर्वत्र वर्जयेत
2 ---------- परम स्वतंत्र न सिर पर कोई आवहि मनही करो तुम सोई
3 ----------महा वृष्टि जहिं नसत कियारी ॥ जिम स्वतंत्र होइ बिगरहिं नारी
कहने का अर्थ यह कि चाहे स्त्री हो या पुरुष अपनी सीमाएं तो हमे ही निर्धारित करनी होंगी अति हर स्थान पर आपको कष्ट और हानि के सामने ही खड़ा कर देगी , दवा का अधिक डोज प्राण घातक है ,भोग का अधिका अधिक प्रयोग आपको मानसिक व शारीरिक रोगो और नैराश्य के भाव से जोड़ देगा , कहने का आशय जहां भी अति की वह परिणाम जान लेवा ही होंगे , वहीँ अति से आदर्श , संस्कृति और प्रतिमान सब कुछ ख़त्म होजाते है | अधिकार दायित्व और शक्ति की अति भी असामायिक विनाश का कारण खड़ा कर सकती है , इतिहास गवाह है की जहां भी अति गुण या दोष किसी में समाहित हुए है वहां विनाश अवश्यम्भावी हो ही जाएगा |
मित्रों पाश्चात्य देश अपना सारा भोग विलास छोड़कर एक नए सिरे से जीवन को समझने में लगे है , आपने उन भोगवादी व्यवस्थाओं को काफी समझ लिया होगा , जहाँ १३ वर्ष का बच्चा घर से अलग अपनी दुनिया में मस्त है भोग वादी प्रवृती ने उन्हें स्वतंत्र सम्पूर्ण भोगों से तो जोड़ दिया है मगर उनसे शिक्षा , ज्ञान एकाग्रता , लक्ष्य और जीवन के उद्देश्य छीन लिए है , जीवन में नैराश्य , पार्किंसंस , पागलपन , और अति हिंसा ये सब कारण उस अति भोग से पैदा हुए परिणाम है , रिश्तों का जीवन अस्तित्व तलाक और मिचुअल सेपरेशन के इर्द गिर्द घूम कर रह गया है दोस्तों आप सच मानिए कि उनका जीवन उत्तरार्ध और भी अधिक कठिन है |
महिला सशक्तिकरण का आशय यह है कि उसे जन्म का अधिकार दीजिये उसे अच्छे संस्कार और शिक्षा और संस्कृति से जुड़ने का सामान अवसर दीजिये , उसे अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में सोचने का अवसर अवश्य दीजिये साथ ही उसकी समस्याओं और उनके समाधानों को समझने समझाने का प्रयत्न भी कीजिए , उसके सम्मान और मर्यादाओं की इज्जत कीजिए तथा उसे और अधिक शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न किया जाए , उद्यमिता विकास कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी और बढाई जाए और उसे अपने पैर्रों पर खड़ा करने का मौका दिया जावे , शायद यहीं कहीं से जीवन को महिला सशक्तिकरण का लाभ प्राप्त हो जाएगा |
मनुष्य के दिल से दिमाग तक के भाग में एक ऐसा सेंसर मौजूद है जो शरीर से किये जाने , सोचेजाने और मन में आने वाले विचारों से पहले ही उसकी नकारात्मकता सकारात्मकता को प्रकट कर देता है ,यही है आत्मा |
मन बुद्धि और कर्म के सिद्धांत यह बताते है की जीवन चिंतन , चेतना , और उसे मूर्त स्वरुप प्रदान करने वाले कर्म से बंधा है और सबसे अधिक जीवन का जो मूल्यांकन करने वाला भाग है वह है आत्मा , यह मन मस्तिष्क के त्रिकोण में घूमती हुई कोई जीवन लहरें है जो शरीर और मन के छोटे से छोटे भाग पर पड़ने वाले हर प्रभाव को आंकलित करके उसका तुरंत निर्णय करती है ,और इसका सम्बन्ध केवल त्याग, अपरिग्रहता , प्रेम सौहार्द और अपनत्व में निहित है , अतः यह स्वीकार करने योग्य है कि भोग विलास और मानसिक चिंतन का सार्थक स्थान स्वतंत्रता के लिए अति उपयोगी शस्त्र है जो इंसान को जीवन भर शिक्षा देते रहते है आवश्यकता यह है की आप उसे ध्यान से सुन पाएं |
इन विषयों पर पुनः विचार करें
जीवन का आशय भोग नहीं है उसका आशय मन वचन कर्म की सच्चाई को समझाना एवं शारीरिक मानसिक चेतना में जितना आवश्यक हो उतना प्रयोग आवश्यक है |
जीवन में पथ प्रदर्शन अति आवश्यक है और जीवन के हर पल आप गुरु माँ पिता के परामर्शों को नाकारात्मक स्वरुप में न लें उसपर चिंतन का प्रयत्न करें |
महिला शशक्ति कारण हेतु आपको संस्कार , शिक्षा , सामाजिक मान्यताएं और उन्हें जन्मकी अनुमति अवश्य दी जानी चाहिए जिससे समाज सुसंस्कृत हो सके |
प्रेम सौहार्द और स्वतंत्रता की सारी सुविधाएं देने वालों से यह भी अपक्षा की जाती है कि वे सही गलत सिद्धांतों की व्याख्या करना अवश्य सीखें |
नितांत अन्धे होकर किसी भी बात को मान लेना पूर्ण स्वरुप में ठीक नहीं है क्योकि जहा आपको यह लगे कि आप स्वयं अपने मार्ग से भटक रहे है आप उसमे सुधार अवश्य करें |
मन वचन कर्म से सकारात्मक भावों को अधिक आश्रय दें क्योकि जैसे ही आपने तीनो स्तर पर सकारात्मक भाव बनाये सारी नकारत्मकताएं स्वयं नष्ट हो जाएंगी |
मन की चेतना शक्ति सबसे प्रबल है जब भी आपकी अंतरात्मा का सत्य आपको यह विचार दे कि आप उस कार्य में गलत हो या गलत साबित होगे आप सावधान होकर कार्य करना आरम्भ करदें |
जीवन को कमियों और अच्छाइयोंके साथ स्वीकार करें जिससे आपको कभी दुःख नहीं होगा जब हम पूर्णता से आदर्शों की बात करते है तब भी स्वयं अपनी अंतरात्मा में दोषी बने रहते है इससे विकास रुका रहता है |
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