Sunday, April 19, 2015

पूर्ण परित्याग आदर्श के लिए आवश्यक है(complete abandonment is necessary for ideal)


गाँव में बड़ी अच्छी धूम धाम थी गांव की सीधी सादी बेटी का विवाह  जो था ,खूब उत्साह और प्रसन्नता से आमोल से ब्याही गई  थी वैशाली, आमोल गुजरात के एक  शहर में नौकरी करता था माँ बापके बहुत जिद करने पर आमोल विवाह के लिए तैयार हुआ था , विवाह हो गया था सब कुछ अपनी जगह स्थिर हो गया , आमोल  फिर नौकरी में चला गया था बार बार आग्रह करने के बाद भी आमोल वैशाली को  लेकर नहीं गया, अब वैशाली के एक एक साल का बेटा भी था, सास स्वसुर बहू  की सेवा से बहुत प्रसन्न थे, कई बार उन्होंने भी कहा  बेटा  वही ले जाओ बहूको ,आमोल नहीं माना, एक दिन की वैशाली सास स्वसुर से पूंछ कर आमोल के पते पर अचानक गुजरात पहुँच गई घंटी बजाने पर एक महिला ने दरवाजा खोला  वैशाली ने पूछा आप कौन है महिला ने कहा मै अमोल की पत्नी हूँ ,एक बड़ा आघात सहा था वैशाली  के मन ने , पीछे आमोल को खड़ा देखा कर उसने कहा यह महिला कहती है वह  तुम्हारी पत्नी है ,तुम क्या कहते हो, आमोल चुप रहा ३ बार प्रश्न  का कोई उत्तर न मिलने पर वैशाली लौट कर चल दी ,एक नए गंतव्य की और ,अपने किसी भाई के यहाँ थोड़ी सी जगह ली पांचवी , की परीक्षा दी और वही छोटे बच्चो को पढाने लगी ,ग्यारवीं , स्नातक और स्नात्तकोत्तर की पढ़ाई  भी धीरे धीरे पूरी हुई, अब समय बदल गया था ,वैशाली के पुत्र बहू  और उनके बच्चों से भरा घर एक श्रेष्ठ गुरुकुल सा वातावरण थावैशाली का घर , वैशाली  शहर के बड़े स्कूल की प्राचार्य , आज वैशाली शहर के सबसे बड़े शिक्षक अवार्ड  से नवाजी गई , समारोह में  पूरा जीवन चक्र घूम गया उसकी आखों में और पता नहीं रहा उसे कि मंच से क्या क्या बोलती रही वह ----

  मैं नहीं जानती क्या अच्छा और क्या ख़राब था  जीवन में, परन्तु जबतक मन  परिवर्तनों में अपना पूर्ण संकल्प और निष्ठां के साथ कार्य नहीं करता तब  जीवन सामंजस्य मांगता रहता है और हम इस जीवन के आदी हो जाते है जिसमे शोषण झूठ फरेब और आडम्बर भरे पड़े है ,और यहीं यातना ,दुःख और जीवन को जुल्म सहने की आदत पड  जाती है | जीवन में अपने सहज आदर्शों के लिए आप पूर्ण संकल्प शक्ति से ग्राह्यता और परित्याग का पूर्ण  भाव जगाने की शक्ति पैदा कीजिए   आपको जल्दी ही यह विश्वास  हो जाएगा कि जीवन ने आपके सामने घुटने टेक दिए है और हर सफलता आपके पीछे हाथ बांधें खड़ी है जीवन की कुछ एक परेशानियां आपको आदर्शों से हटने को प्रेरित अवश्य करेंगी मगर यदि  परित्याग और संकल्प पूर्ण हुआ तो वे आपको   पूर्ण सिद्ध कर देगी




हर मनुष्य को जीवन जीतने के सामान अवसर देता है हम समाज और संबंधों में बांधें अपनी पूर्णता ढूढ़ते रहते है बार बार हमारे पास कई तरह के निर्णय खड़े होते है जहाँ हम पर केवल दो विकल्प या तो हम बिना आदर्शों के साथ अपने  आपको निरीह सिद्ध करके दूसरेकी कृपा के पात्र  बने रहें ,अथवा अपने आदर्शों को और मजबूत बना कर कठोर निर्णय लेकर जीवन को सर्वात्तम सिद्ध करदें | अनंत आवश्यकताओं के साथ जीवन हर तरह की उपलब्धियां मांगता है और हम उन उपलब्धियों को पाने के चक्कर में बार बार जीवन समन्वय स्थापित करने लगता है ,और जीवन के आदर्श अपने आप से हारने लगते है ,| 
  

मित्रों हम भौतिक उपलब्धियों के लिए हरबार सामंजस्य स्थापित करते करते अपनी सारी गुणवत्त्ता छोड़ बैठते है , उन्हीं शारीरिक एवं  उपभोग के साधनों और क्रियाओं के लिए जीवन के सारे आदर्श त्याग डालते है ,परिणाम मनुष्य के मानसिक स्तर को कभी परमानंद का भाव प्राप्त ही नहीं हो पाता ,जीवन क्रियाओं और उपभोग में बंधा अपने आदर्शों से आँखें बंद करलेता है परिणाम मन मष्तिष्क का सारा ज्ञान कैसे भी सुख और सफलता प्राप्त करने के यत्न में लग जाता है और धीरे धीरे ये सामंजस्य उसकी हर सफलता , सुख और आनंद को नष्ट भ्रष्ट कर डालती है | और जीवन निराश थका और हार सा जान पड़ने लगता है |


जिसमे संकल्प की शक्ति नहीं है जीवन उसे गुलाम बना लेता है जिससे हर कोई उसका प्रयोग कर सके | 
हम संकल्प और त्याग की  पूर्णता से हमेशा भयभीत रहते है, क्योकि हम अनभिज्ञ समय की कल्पना का नकारात्मक चित्र अपने मन मष्तिष्क में खींच चुके होते है ,या  स्वयं को बिलकुल निरीह और बेचारा बना कर समाज में प्रस्तुत करते है ,ध्यान रहे यदि आप समय के डर से, या स्वयं को बेचारा बना कर समाज से कुछ पाना चाहते है ,तो आपका शोषण अवश्य होगा ही , आप जीवन भर समन्वय स्थापित करते करते, अपने स्वयं की उपलब्धियों से काफी दूर निकल जाएंगे और जहाँ तक आदर्शों का प्रश्न है वो आपके पास होंगे ही नहीं क्योकि आपका स्वभाव भविष्य से डरा हुआ और अकर्मण्यता के साथ बेचारा बन चुका होगा , अब यहाँ केवल आपका उपयोग ही हो पायेगा , लोग समय और परिस्तिथि बदलने पर भी आपका उपयोग निरंतर चलता रहेगा क्योकि जीवन ने आपको संकल्प की शक्ति ही नहीं दी है |





जीवन की  पूर्णता के लिए इन्हें भी आजमाइए | 

  • आदर्शों की स्थापना कीजिए और उन्हें दोहराते रहिये तथा जीवन के विपरीत समय में अपने आपको आदर्शों के पक्ष में ही रहना स्वीकार करें ,क्योकि आदर्श  आपको जीवन में सकारात्मक बदलाव देना चाहते है | 
  • संकल्प की शक्ति का प्रयोग किसी सत्य या आदर्श को अपनाने का या किसी असत्य ,अन्याय के प्रतिरोध का भी हो सकता है आप आदर्शों की तरफ ही चलनें का प्रयत्न करें | 
  • भाव एवं व्यक्ति के परित्याग का का निर्णय मौन होकर लें और बार बार अपनी आत्मा को कमजोर बनाने का उपकृम ना करें ,एकबार में अडिग निर्णय लें,| 
  • परित्याग की भावना के साथ शर्तें न लगाएं या तो आपने परित्याग किया है या नहीं किया है आप दोनो तरफ रह कर स्वयं को धोखा दे रहें है | 
  • जीवन में तीन तरह के निर्णय महत्व पूर्ण है ,प्रथम  संसाधन प्रयोग,व्यक्तिगत सम्बन्ध और समय के साथ होते परिवर्तन ,इसमें व्यक्ति और संबंधों के मामले में आप बिलकुल  स्पष्ट मत बनाये उनसे समायोजन नहीं करें | 
  • संकल्प और परित्याग के मामले में हम  झूठ के साथ जी रहे होते है , समाज के मत में हम जो आदर्श  बता रहे होते है हम उनमे ही झूठे साबित होते रहते है परिणाम कभी हम विकास के गंतव्य तक नहीं पहुँच पातें | 
  • आत्मा को आनंद की अनुभूति आपके झूठ फरेब और अधिक से अधिक संसाधनों का प्रयोग करने से नहीं अपितु आपके संकल्प की दृणता से होती है नहीं तो मन ही आपको बुरा बताता रहेगा | 
  • सत्य और आदर्शों के साथ स्वयं को स्थापित करने के बाद आपकी हर समस्या स्वयं हल हो जाएगी , क्योकि जबतक हम स्वयं के अभिमान और तुलना की ऋणात्मकता से स्वयं को बचा कर आदर्श नहीं बना पाये तो जीवन हमें व्यर्थ साबित करदेगा | 
  • सत्य और संकल्प को मौन के साथ वैचारिक चिंतन के आधारों पर विकसित कीजिए थोड़ा सा संघर्ष अवश्य करना होगा फिर जीवन स्वयं निर्णय लेकर आपको उच्च शिखर पर बैठा देगा | 
  • संकल्प और परित्याग से आपकी जीवन शैली में भयानक तूफ़ान अवश्य आ सकते है मगर स्थिर मानसिकता से जीवन का सत्य आपको अगला मार्ग अवश्य देगा | 
  • झूठ  को सिद्ध करने के लिए हजारों झूठ की आवश्यकता होती है जबकि सत्य निरत अकेला और अनाथ होता है उसे किसी को सिद्ध कराने की आवश्यकता नहीं होती |




Tuesday, April 14, 2015

हर कोई यहां नकाब लगाये बैठा है ( Every one is sitting here with a mask)


एक साधु गांव  में प्रवचन दे रहे  थे, जीवन प्रभु के सहारे ही चलता है ,जिसने उसके नाम का सहारा लिया उसे किसी सहारे की जरूरत है नहीं है,  उसकी हर चिंता हरी ही रखते है, आपको परेशान होने की जरूरत ही नहीं है, एक युवती बड़े ध्यान से महात्मा की बात सुन रही थी, अबोध , सरल और छोटे से मन की बड़ी गहराइयों तक महाराज की बातें उसके मन मष्तिष्क में उतर गई  और उसने यही निश्चित किया की अब तो जीवन की  हर  समस्या में मुझे हरी ही साथ देगा ,कथा ख़त्म हुई, सारे श्रोताओं और महात्मा जी को नदी पार के गाँव में विश्राम करना था ,पूरा गाँव मंदिर से नदी पार करने किनारे आगया ,  बच्ची महाराज  की बातों में डूबी  भगवान कृष्ण को साक्षी मान कर पानी की सतह पर चलने लगी उसने  महात्मा जी से भी कहा महाराज आजाओ आप भी गुरु जी महाराज किनारे खड़े गालियां दे रहे थे ,मैं  नहीं आरहा साले  मुझे मरवाना चाहते है । और पूरा गाँव उस लड़की के प्रति श्रद्धान्वित था और महाराज जल्दी में  वहां से भाग लिए |हम जो कह  रहे है ,कर रहे है , और समझने की चेष्टा कर रहे है ,उस पर हमें ही विशवास नहीं है ,अबोध बच्ची का परम विश्वास उसके लिए फलदायी रहा |

हम सब भी कमो वेश ऐसा ही जीवन शैली में जी रहे है, जहाँ हमें हर पल नए रूप बदलने पड रहे है, और हम स्वयं को बड़ा बताने और  दूसरों को ठगने की प्रक्रिया में लगे अपने आपको श्रेष्ठ बताने की होड़ में लगे है ,और पूरा ही जीवन इस  उधेड़ बुन में लगे रहते है कि  ,कैसे भी स्वयं को श्रेष्ठतम सिद्ध करते हुए अपने आपको लाभान्वित किया जावे ,उसके बदले में चाहे दूसरो को कितना भी कष्ट क्यों न उठाना पड़े ,आम जीवन में हमारे अपने ही हमसे ऐसी जलन रखते है कि जैसे हमारा विकास हमारा बड़ा होना उन्हें बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा हो |


हम बड़े बड़े आदर्शों और कठोर अनुशासन की  बातें करते है और सबको यह बताने  प्रयत्न करते है कि ,आदर्श ,सत्य और अहिंसा के बड़े मान दंड आपसे ही चलते है ,आपका अतीत और वर्तमान एक त्याग तपस्या और कठोर अनुशासन का  अध्याय है ,और आपके जीवन ने ही संसार समाज और अपने परिवेश को जीवन मूल्य प्रेषित किये है ,जबकि उसका  मन हर बात पर यह जानता है की ,वे हर पल झूठ फरेब और कैसे भी  की तकनीक में जी  है , आत्मा का सत्य बार बार मन और स्वयं को दुत्कारता रहता है ,मैं इतना नीच , गिरा हुआ और कृतघ्न हो कैसे सकता हूँ ?मैंने जब जब स्वयं को बड़ा और आदर्शों का पक्ष धर बताने की कोशिश की ,स्वयं  आत्मा ने मुझे झुठला कर एक कट घेरे में खड़ा कर दिया , और हम सबभी  इस जीवन में  इस तरह रच बस गए है, कि  जिसकी नकारात्मक गूँज भी हम नहीं सुन पा रहें है।
 


हम अपने परिवार समाज और अपने ही परिवेश में  अजनबी और अनजान से लग रहे  है  ,जिसका ज्ञान हमें स्वयं को भी नहीं  हो पारहा हैं, समाज और सम्बन्ध तथा अपनों का प्रयोग हम एक सधे  हुए लुटेरे की तरह कर रहे है , सबसे पहले हमें अपने सारे अस्त्र  शस्त्र का प्रयोग करके स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करना था उसके बाद जैसे ही  विश्वास , प्रेम और सद्भाव एक सीमा  पर  पहुंचे, वैसे ही हम एक पेशेवर ठग की भाँती अपने  पंजों से सारे सद्भाव अपनत्व और प्रेम को लूट डालते है और अपने सहयोगियों को ही ठगने में हमारी आत्मा   तनिक  भी नहीं कांपती, यह बात और कि हमारी आत्मा हमे धिक्कारती रहती   है और हमे उसकी आवाज सुनाई ही देनी बंद हो जाती है |


हम जीवन को किसी भाव से भी जिए यह अवश्य याद रखे  कि आपके कार्यों की स्थिति से ही आपका भविष्य बन और बिगड़ रहा है आज हम जिस उपलब्धि को लूट खसोट के द्वारा अपने पास एकत्रित कररहे है, वो ही अपने सकारात्मक और नकारात्मक कर्मों के बदले में हमें प्रतिफल स्वरुप  प्राप्त होने वाला है , और जब आपको स्वयं के कर्मों की जान कारी पूरी तरह से हो तो आपको अपने साथ होने वाली नकारात्मक घटनाओं के कारण ,अपनी क्रियान्वयनता से ही ढूढ़ने चाहिए |

जीवन कुछ भी उधार रखता ही कहाँ  है वह जीवन में बदलते हुए समय को वैसा ही लौटा देता है जैसा कभी आपने समय को दिया था , आप जब दूसरों को अंधेरों में रख कर और खुद अपनी आँखें बंद कर के नकारात्मक व्यवहार  कररहे होते है तो ,आत्मा की सारी एकाग्रता एकत्रित होकर आपका आंकलन करने लगती है और वही एक दिन आपको निकृष्ट सिद्ध करदेती है ,मित्रों बाह्य आलोचनाओं को समय जबाब दे देता है मगर यदि एक बार आपकी आत्मा आपको नीच और निकृष्ट  मानने लगे तो आपके पास कुछ  शेष रहता ही कहाँ  है |

निम्न का प्रयोग कर के अवश्य देखें |
  • स्वयं के कर्तव्यों और सोच पर चिंतन अवश्य करते रहें और जहाँ भी यह लगे कि आप दिशा भ्रमित हो रहे है आप सचेतक की भाँती स्वयं को सही करने  का प्रयत्न अवश्य करें | 
  • सामान्यतः हम बार बार खूबसूरती , यश , संसाधनों और इनका प्रयोग अधिकाधिक बनाये रखना चाहते  है साथ  ही दीर्घ काल तक जीवन चाहते है ,जबकि हमपर समय नियत  होता है ,ऐसे में जीवन की नश्वरता का  ध्यान बनाये रखते हुए चलने का प्रयत्न करें
  • sex, anger ,greediness,  काम ,   क्रोध, लोभ ये तीनो अपनी सीमा नहीं जानते आपको  इन तीनों को  सामंजस्य मालूम ही नहीं होता ध्यान रहे ये तीनों भाव ही  मनुष्य को नकारात्मक और सकारात्मक बनाने में सक्षम है आपको इनका भाव और समन्वय आना आवशयक है | 
  • स्वयं के आत्म बल को बढ़ने के लिए स्वयं को एकाग्रचित्त करना बहुत आवश्यक है , आपक्या चाहते है ,और आपका परम उद्देश्य क्या है,  बस इसका ज्ञान और ध्यान, आपका बल बढ़ाने में सक्षम हो सकता है | 
  • आप जिन मूल्यों को श्रेष्ठ मानते है उनपर  निष्ठां से चलने का प्रयत्न कीजिए निरंतर प्रयास आपको सफलता के शिखर पर अवश्य ले जाएगा | 
  • अपनी वास्तविकता पर आवरण डालने का प्रयत्न न करें क्योकिं इससे आपके व्यक्तित्व में स्वयं कमजोरी पैदा होने लगेगी और आपका वास्तविक बल ख़त्म हो जाएगा | 
  • हम जिसके लिए भी अपने अस्तित्व पर झूठ फरेब और  असत्य का जाल बुनते है वह सब समय से हारना होता है , रूप -रंग ,यश- वैभव ,धन-संपत्ति और अकूत जमीन जायदाद सब समय के बाद आपकी निरीहता सिद्ध कर देते है तो जीवन के मूल उद्देश्यों से इनका सामंजस्य बैठाने का प्रयत्न करें | 
  • व्यक्ति को सकारात्मक और नकारत्मकताओं के साथ ही स्वीकार करना सीखें क्योकि यदि आप पूर्ण स्वरूप की खोज करेंगे तो आपको स्वयं से झूठ बोलना होगा कि  आप पूर्ण है | 
  • स्वयं का बखान करने के स्थान पर स्वयं मौन रहना सीखें और दूसरों को आपका आंकलन करने दें एक बार आपका आंकलन समाज ने करलिया, फिर आपको किसी नकारात्मक पहिचान की जरूरत नहीं होगी | 
  • जीवन को जीतने के लिए अपने  आपको सत्य के साथ जीने की आदत डालना सिखाइये, जो आपका है नहीं, वो आपके पास से चला ही जाएगा ,और जो आपका है ,वो हजारों रास्ते बनाकर आपके पास आ ही जाएगा , फिर आपको स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के स्थान पर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लिए स्वयं को उपयोगी बनाने की आवश्यकता है ,जिसे आप मौन और श्रेष्ठ कर्तव्यों से बना ही लेंगे |
drakbajpai.blogspot.com




Friday, April 3, 2015

स्वयं की शक्ति का संचय और विकास करें ( save and enhance your powers)

स्वयं की शक्ति का संचय और विकास करें ( save and enhance your powers)

सुबह होने को ही थी माँ के कमरे से जोर जोर से झाड़ू की आवाज आरही थी बीच बीच में बड़बड़ाती जा रही थी सुबह हो गया कोई नही उठा पूरा काम मेरे जिम्मे  है ,किसी की कोई जिम्मेवारी नहीं है , पूरा घर कूड़ा बना पड़ा है कोई साफ तो करदे जरा , गुप्ता के घर की सारी बहुएं सुबह से उठ कर कैसा काम संभालती है सारा मोहल्ला जानता है--- ये बात और है कि गुप्ता के घर की जंग सबको मालूम है ,--और बहुत सारी बातें जिनमे स्वयं को बेचारा साबित करने के एक लाख तर्क और पूरे घर का काम केवल माँ के ऊपर आन पड़ा हो यह भाव , पिताजी ने उंघते हुए से मुझे देखा और मुस्कुराये पिछले २० वर्ष से निरंतर कुछ कम ज्यादा सही यही सब सुन रहे है मै वे और बहू , बहू ने पिता के पाँव छुए माँ के पाँव छुए माँ बोली ठीक है ठीक है ,और धम्म से सोफे पर बैठ गई बहू ने चाय बनाई  और दिन चालू होगया माँ की सुनते रहे सब ,बहुत काम है, ताकत नहीं रही अब ,  तीनो मुस्कुराते रहे जानते थे सारा काम नौकर और बहू ही करती है मगर माँ सास है और यह  उनका अधिकार है कि  वो हम सबको रोज एक नए पहलवान की तरह चिनौती देती रहें , अब पूरा परिवार इसका आदी  होगया है | 

 मानव में या एक बड़ी विशेषता है कि उसमे सीमित शक्ति है साथ ही कामनाओं की उड़ान असीमित है ,उसे हर पल कुछ न कुछ करना ही होता है यहाँ यह बात महत्व पूर्ण है कि उसके प्रतिदिन के विषयों में वह अपने लिए सबसे कम विचार कर पाता है परिणाम यह कि उसकी भागती दौड़ती जिंदगी में यंत्रवत होकर काम करना और विपरीत स्थितियों में पूरी ताकत लगाकर अपने पक्ष में करलेना और फिर  वही यंत्रवत जीवन  जाना ,पूरे दिन में दूसरों का चिंतन , उनके व्यक्तित्व कृतित्व का पोस्टमार्टम और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के अलावा कुछ होता ही नहीं है ,

 मानवीय स्वाभाव में एक बड़ी होड़ इस बात की भी है कि वह हर ख़ूबसूरत और अनमोल वस्तु या व्यक्ति पर  एकाधिकार चाहता है ज्ञान ,सौंदर्य , धन बल , बाहुबल , और ऐश्वर्यों में भी सम्पूर्ण रहना चाहता है और यही  उसके सोच के विषय भी हो जाते है ,यहाँ आकर उसका सारा चिंतन इस बात में उलझ कर रह जाता है कि कैसे भी वह हर जगह श्रेष्ठ साबित हो सके , परन्तु जीवन तो समय के चक्र से हारता हुआ कोई सत्य ही है न , तो वह धीरे धीरे अपनी जीवनी शक्ति छीण होते हुए देखता रहता है , और निरंतर कामनाओं की वृद्धि उसके मन मष्तिष्क की शक्तियों को कमजोर बनाती जाती है और यही क्रम निरंतर चलता चला जाता है | 



भारतीय दर्शन यह कहता है कि मनुष्य में अलौकिक और अनंत शक्ति  स्त्रोत छिपे हुए है उनपर बहुत से आवरण डले हुए है ,जिन्हें काम (sex)क्रोध (angreeness)लोभ (greediness)मोह (artificial love)इन सारे आवरणों से अनेक कमियां व्यक्तित्व में स्वयं खड़ी हो जाती है और हम अपने ही सुख, दुखों के जाल बुनते और उसमे फंसते , छटपटाते रहते है  और सदैव यह सोचते रहते है कि इनके  पैदा करने वाले हम ही हैं  ,काम का भाव हमारे को को अशांत और उद्वेगी बना कर छीनने और जीतने की प्रवृति बार बार देने लगता है ,लोभ हर अच्छी चीज को हड़पने का भाव देने लगता है ,क्रोध अपनी गलतियों को बल पूर्वक  मनवाने के उपकृम को बल देता है और मोह ऐसा जाल बना देता है कि मैं  ही शायद सबको पालने  और आश्रय देने वाला हूँ और सबकी व्यवस्था करने से पहले हार न जाऊं ,बस ये ही कारण आपको अपनी शक्ति के परिचय से रोक देते है | आप एक सीमा में ये सारे व्यवहार करें अवश्य मगर आप उनमे लिप्त होकर न रह जाएँ यही सच्चा भारतीय दर्शन है | 



यह सिद्ध  है की मनुष्य में अनंत शक्तियाँ निहित है बस वैचारिक अस्थिरता और आकलन की कमी के कारण मनुष्य  कभी उन्हें पहिचान नहीं पाता जबकि उसके हाथ में उसकी वैचारिकता के अनुसार हर उपलब्धि प्राप्त करने की क्षमता है ।  सभी धर्मों में ईसा , मोहोम्मद साहिब ,नानक देव , और भारतीय देवता भी तो अपने आप पर नियंत्रण और अपनी आतंरिक शक्तियोंको जाग्रत करके इतने महान बन पाये है , वे ही शक्तियां ईश्वर ने आपको भी प्रदान की है बस आपको उनको संरक्षित करना एवं एकत्रित करना आना चाहिए ,इसका एक सरल उपाय यह है की आप स्वयं को अपनी शक्तियों के चिंतन का आधार दें ,तथा हर उस आवरण को जो आपको प्रभावित करता है उसकी सीमाये निर्धारित करें और स्वयं को एकाग्र करके स्वयं को जाग्रत करने का प्रयत्न करें | 


 क्या मजाक है ये कि मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन में लगभग ९०%भाग पर प्रकृति, परमशक्ति  सत्ता का प्रभाव रहता है बाकी १०% भाग पर उसके कर्म एवं चिंतन का प्रभाव रहता है मगर सबसे बड़ी विडम्बना यह कि वह उस ९०% के भाग की चिंता में परेशान रहता है जिसपर उसका कोई हक़ ही नहीं है ,जरूरत है कि अपने १०% भाग और उसकी सोच को सकारात्मक बनाकर सम्पूर्ण जीवन जीतने की | मनुष्य की  सबसे बड़ी कमी यह भी  है कि  वह सबसे ज्यादा चिंतन अपने समाज , प्रियजनों और कामनाओं का ही करता है , जीवन के बड़े भाग में मनुष्य उन चिंताओं से दुखी , परेशान और उदास है जिनपर उसका वश  ही नहीं था भविष्य की हर सोच से वह स्वयं को डरा हुआ पाता  है और उनकी ही चिंताओं में वर्तमान ख़राब कर देता है ,इससे उसकी तमाम सकारात्मक सोच नकारात्मक हो जाती है और वह स्वयं एक सामान्य या साधारण जीवन का हक दार बन कर रह जाता है जबकि उसका जन्म स्वयं को कल  तरह ,अति सफलतम सिद्ध करने के लिए हुआ था । आवश्यकता इस बात की है कि जिन विषय वस्तुओं पर हमारा अधिकार नहीं है और जो अनभिज्ञ है उनके प्रति सकारात्मक रवैय्या अपनाये और आश्वस्त रहें कि  सब अच्छा ही होगा शायद यही से आपके लिए नया द्वार खुल पायेगा | 


जीवन के शक्ति संकलन के संकल्प में इनका प्रयोग करके देखें | 
  • अपने आपको छोटा हीं और बेचारा नहीं मानें , आप ईश्वर की अनमोल कृति है और उस सर्वशक्तिमान ने नियत उद्देश्य के लिए आपको जन्म दिया है और आप ही उसे पूरा करेंगे यह विशवास रखें | 
  • दूसरों की आलोचना से आपकी स्वयं की शक्ति का ह्रास होता है आप दूसरों की कमियों की  व्याख्या में अपना समय व्यर्थ न गवांये , अन्यथा उससे स्वयं को भी नकारात्मक भाव पकड़ने लगेंगे | 
  • जीवन में जिन कार्यों और परिस्थितियों पर आपका वश नहीं है वहां  स्वयं को सकारात्मक रखें क्योकि ऐसा करने से आपको अलग अलग मार्ग दृष्टिगत होने लगेंगे | 
  • अपने चिंतन में महा पुरुषों की जीवन शैली के आलेखों को शामिल अवश्य करें इस से  आपको उनके कार्य और संकल्पों को पूर्ण करने  भाव साफ दिखाई देने लगेगा | 
  • अपनी शक्ति के चिंतन में स्वयं को अवश्य लगाइये और ध्यान के मार्ग से स्वयं को जैसा आप चाहते  वैसा शक्ति संपन्न बनाने के संकल्प दोहराइए | 
  • भविष्य की और अतीत की सोच को दूर रखने का प्रयत्न करें क्योंकि  कर्म को पूर्ण भाव से करने के लिए अतीत भविष्य के अध्यायों को बंद ही रखें | 
  •  अतीत के दुःख और भविष्य के भय को सकारात्मक सोच देते हुए उन्हें कष्ट का कारक  न माने क्योकि अतीत और भविष्य हमेशा प्रश्न वाचक ही रहता है ।उसे सकारात्मक  भाव से जीतें | 
  • स्वयं को समय बद्ध  तरीके से  कार्य में लगाए और समय समय पर उसका आकलन करते रहें और  आपको कर्तव्यों में  परिवर्तन कर आदर्श स्थापित करना हो तो अवश्य करते रहें । 
  • काम ,क्रोध। लोभ , मोह  आपके जीवन में सोच के आधार है उन्हें  सीमा में ही उपयोग करें क्योकि जैसे ही आपने सीमाये लांघी वैसे ही आपकी जीवन संयोजन   शक्ति के प्रयास असफल हो जाएंगे | 
  • अपने लक्ष्यों को बिलकुल साफ और स्पष्ट रखें जैसे ही आप अपने लक्ष्यों से जरा से दूर हुए आपका जीवन स्वयं आपकी हार बन जाएगा | 
  • हर कार्य सम्बन्ध और अच्छे बुरे पर समय रहते विचार करें और उसमे अपने संकल्प के अनुरूप परिवर्तन करें आपको सफलता  मिलेगी | 
  • मनुष्य के पास समय  कम और अनंत कामनाएं है ऐसे में अपने मन मष्तिष्क पर पूर्ण नियंत्राण लगते हुए उसे अपने संकल्प की और ही  मोड़े  रखें और  आंकलन करते रहें | 
  • हर  सुंदरता और कीमती स्वाभाव वाली वस्तुएं हमारी हों और हर ज्ञान , सुंदरता और बल तप यश में हम श्रेष्ठ हो यह दौड़ छोड़ कर यह आकलन करें कि  हमारे अंदर भी अनंत गुण  धर्म है जो हमें सर्व श्रेष्ठ साबित करेंगे
  • दूसरो की सहायता , दयालु भाव और आपके सत संकल्प   आपको आपकी शक्ति के स्त्रोत के रूप में मिले है आपको सम्पूर्ण समाज में उनकी खुशबू फैलानी है यही से आपका शक्ति सम्पन्न होने का अध्याय चालू होना है ।

Thursday, April 2, 2015

अपनी सीमाओं को मत भूलिए (don't forget your limitation ) (पुरुष व स्त्री समाज में स्वतंत्रता का संघर्ष )

 अपनी सीमाओं को मत भूलिए (don't forget your limitation )

 (पुरुष व  स्त्री  समाज  में स्वतंत्रता का संघर्ष )

एक ५ वर्ष का बच्चा छत पर अपनी माँ से लड़ रहा था माँ उसके पीछे भाग रही थी और वह जिद कररहा था कि  मै छत से कूदूंगा टीवी में स्पाइडर मेन  कैसे कूदता है छत से, कैसे करता है ,सबकी हेल्प ,मालूम ही नहीं है तुम्हें ,माँ जबरदस्त परेशानी में थी, बच्चा जिद पर अडा  था और  माँ के द्वारा पकड़ लिए जाने पर ,रो रो कर सो गया था माँ भारी मन से उसका अबोध चेहरा देखती रही और खुद भी  अनायास रोने लगी , अब कैसे बताऊँ तुझे कि जो संसार के स्वप्न है उनमे जबरदस्त आकर्षण है मगर वे आकर्षण जीवन की जीवंतता को ही निगल जाते है और सम्पूर्ण जीवन केवल शोषण और दूसरों के प्रयोग का अवशेष सा रह जाता है जिसपर जीवन ही घृणा करने लगता है | माँ को अपनी जवानी और अति स्वतंत्रता का समय याद आने लगा परिवार से लड़ाई  जैसा चाहो वैसा करो की छूट तक , समाज में जो अच्छा लगा उससे  बनाये सम्बन्ध ,और कुछ समय में उनकी वास्तविकताएं ,और उम्र भर ऐसे ही अविश्वास और स्वार्थों के के संबंधों में वह यही सोचती रही  कि  वास्तव जीता कौन ? मेरा दुःख केवल यही है की मुझे किसी ने रोक क्यों नहीं ,? नहीं तो आज मै  नितांत अकेली अपने बच्चे को लिए समाज से संघर्ष नहीं कररही होती | माँ खुद भी फफक फफक के रो रही थी कोई नहीं था उसकी सिसकियाँ सुनने वाला | उसे बार बार महाभारत का वह चित्र याद आ रहा था जिसमे कुंती कृष्ण से कह रही थी की वासुदेव तुम तो रोक  सकते थे न युद्धऔर  विनाश को , और कृष्ण मौन से यही कह   रहे थे सबको अपने अपने अनुसार स्वतंत्रता चाहिए थी कौन था जो मेरी बात मानता यही वह समय है जो सबको हरा देता है |



आज हर रिश्ता अपनी अपनी सत्ता के बल पर अपने अधीनस्थ रिश्तों पर आधिपत्य चाहता है और उसे हरिश्चंद्र और सावित्री की तरह सत्यवादी और पूर्ण पतिवृता देखना चाहता है और स्वयं के लिए पूर्ण स्वतंत्रता मतलब हर जगह कुछ भी करने की स्वतंत्रता, तो ऐसे में तो महा युद्ध होगा ही न |  बड़ा ही विचित्र समय है यहाँ किसी को प्यार करना सम्मान करना , उसे आदर्श बनाना और उसके निर्देशों का पालन करना समर्पण का भाव बनजाना सब गुलामी की गिनती में आने लगा है | अब यहाँ किसी को भी श्रेष्ठ बताना प्रश्न वाचक ही है न |



आज के समाज में अति स्वतंत्रता का भाव तेजी से पनप रहा है वहां स्त्री पुरुष सभी अपनी अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष रत है , कोई किसी के वर्चस्व को मानने को तैयार है ही नहीं , यदि कोई नामचीन कलाकार यह कहती है कि उसे अपने हिसाब से जीवन के निर्णय लेने के अधिकार है तो तुरंत दुसरे पुरुष कलाकार अपना दुःख बयां करके अपने अनुसार स्वतंत्रता की मांग करने लगता है , और दोनों ही वैचारिक संप्रदाय अपने अपने स्थान पर ऐसे मालूम होते है जैसे जीवन ने अत्याधिक प्रतिबन्ध और समस्याएँ पैदा करदी है ,और जीवन अति प्रतिबंधात्मक यातनाओं से ग्रसित होकर पूर्ण स्वतंत्रता की मांग कर बैठा है | प्यारे मित्र दोनो ही अतिरेक की स्थिति है और दोनों ही श्रेष्ठ नहीं है ,|


वर्षों की गुलामी और प्रतिबन्ध की जीवन शैली जीकर हम  अचानक आज़ाद हो गए , हजारों बलिदानों और शहदतों को हम पूरी तरह से सोच भी नहीं पाये और पूर्ण आज़ाद हो गए , मित्रों विकास और  अनुशासन तथा स्व मूल्यांकन तथा कर्तव्यों की भावना से शून्य हम केवल अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे परिणाम देश को विकास का मार्ग पकड़ते पकड़ते ५० वर्ष से अधिक समय लग गया और आज हमें राष्ट्रीय भावनाए कर्त्तव्य अनुसाशन फिर से सीखना पड  रहा है तथा स्वतंत्रता को नए सिरे से समझने की आवश्यकता है |


 तोते   के तीन दिन के बच्चे को मैंने खरीदा और एक पिंजरे में रख कर पाला ६ माह बाद एक दिन मैंने उसे बड़ा देखते हुए एक डंडा लेकर उड़ने का प्रयास किया वो  भागा , घिसटा , लहूलुहान होगया मगर अच्छे से उड़ नहीं पाया क्योकि उसने उड़ाना सीखा ही कहाँ  था उसे  उड़ने की जीवन शैली सीखने के लिए समय चाहिए था और स्वतंत्रता के साथ  अनवरत प्रयास , धनात्मक सोच , परमार्थ का भाव और कठोर आत्म अनुसाशन चाहिए था जिसकी  अनुपस्थिति में आपका जीवनमृत्यु तुल्य , एवं  पराभव का कारक बन सकता है |



जीवन में जिसे अपनी अंतरात्मा , मन मष्तिष्क और व्यवहार पर कठोर नियंत्रण करना आता हो उसे जीवन की किसी भी स्वतंत्रता से कोई फरक नहीं पड़ेगा वह अपने जीवन चक्र पर किसी प्रकार भी विपरीत प्रभाव को वह त्याग के माध्यम से जीत सकता है , मगर वे लोग जो  अपने स्वजनों के व्यवहार से उपेक्षित ,नाराज और दुखी  होकर  परम स्वतंत्रता की मांग करते है  वे  स्वयं को जान ही नहीं पाते , एक बाल्टी रस्सी से बांध कर पानी भरने का कार्य कररही है और एक रस्सी से छूटी हुई नदी की तली में पड़ी अपना अस्तित्व खो चुकी है , यहाँ स्वयं को अपने लक्ष्यों और जीवन के उद्देश्यों से बांधे  रखने की आवश्यकता है |



जीवन की स्वतंत्रता की मांग के समय निम्न पर विचार करें
  •  क्या आप जो स्वतंत्रता मांग रहे है उसका प्रयोग जीवन  प्रत्येक पल में कर सकेंगे या आप किन्ही क्रियाओं और सुख से प्रेरित होकर यह मार्ग चुनना चाहते है | 
  • समाज का अधिकाँश व्यक्ति तुम्हारा उपयोग करने के लिए ही खड़ा है और आपकी स्वतंत्रता कहीं आपके इस उपयोग को सरल तो नहीं बना रही | 
  • हर सम्बन्ध पर  करें प्रेम विश्वास करें मगर उस पर इस प्रकार आश्रित न हों जिससे वह  आपके अधिकार और आपके व्यक्तित्व को उपेक्षित करदे | 
  • परस्पर विश्वास  के लिए यह आवश्यक है कि  आप स्वयं अपने आचार विचार और क्रियाओं पर नियंत्रण रखें और समय समय पर स्वयं  की परीक्षा करते रहें | 
  • आप सब कुछ करने हेतु स्वतन्त्र है मगर यह ध्यान अवश्य रहे कि आपके विचारो और क्रियाओं  की पुनरावृति आपके प्रियजन  करें तो आपको ख़ुशी हो शिकायत नहीं होनी चाहिए |
  • यदि आपको स्वयं के मन मष्तिष्क पर पूर्ण नियंत्रण का भाव है और आप जीवन को बहुत सकारात्मक दृष्टी से देखना जानते है तो आप स्वतंत्रता  मांग का सकते है | 
  • नकारत्मकताओं से पैदा हुआ स्वतंत्रता का बीज आपके अस्तित्व को ही नहीं वरन आपके समाज और राष्ट्र को भी नकारात्मक बना डालेगा | 
  • प्रतिबन्ध का आशय यह नहीं की आप जिसकी स्वतंत्रता चाहते है उस विषय वस्तु या कार्य का जीवन में  महत्व कितना है बल्कि  यह अधिक महत्व पूर्ण है की उससे आपके आदर्श तो प्रभावित नहीं हो रहे | 
  • आप जिस स्वतंत्रता की मांग और चाहना कररहे है क्या आप आदर्शों के रूप में अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी यही मूल्य देने के लिए सहमत है | 
  •  जीवन पर आपका जितना अधिक नियंत्रण हो आपको उतनी ही स्वतंत्रता की मांग करनी चाहिए क्योकि यदि आपके पास उस स्वतंत्रता के लिए सशक्त समाधान नहीं है तो आप स्वयं को परेशानी में डाल रहे है



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