Monday, December 28, 2015

आत्म बोध जीवन का अन्तिम लक्ष्य है(The ultimate goal of life is self-realisation (

हजारों वर्ष की साधना  के बाद एक  साधु महाराज को सारे  देवताओं ने सबसे बड़ा मान लिया और यही कहा कि आप सबसे बड़े है और आपका वैभव , सम्मान और तपश्चर्यया तक कोई पहुंचा  ही नही आज तक , ब्रह्माण्ड के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति आप ही है ,साधु महाराज स्वयं में इतने गौरवान्वित हुए की उन्हें सारी दुनिया तुच्छ जान पड़ने लगी , अहंकार और घोर घमंड के साथ वो चिल्ला कर बोले क्या मुझसे अधिक और कोई  धर्म त्याग और संन्यास की परिभाषा समझ पाया है ,सब लोगो ने कहा नहीं महाराज कोई नहीं हुआ  ऐसा ,तब  फिर विष्णु ने कहा , महाराज आपके मुकाबले की तो बात क्या करूँ  मैं , मगर मिथला के राजा जनक को लोग बड़ा मानते जरूर है ,आप लोगो का यह भ्रम भी दूर कर दीजिये , अहंकार में साधू महाराज गालियां देते हुए सीधे मिथला पहुँच गए , राजा ने देखते ही अपना आसान छोड़ कर उन्हें बैठाया , पाँव धोये और अपने महल में आथित्य दिया , साधु ने कहा राजा मैं  शास्त्रार्थ करने आया हूँ तेरे साथ,राजा ने पाँव   पकड़ते हुए  कहा ,महाराज मै  अज्ञानी क्या कर सकता हूँ शास्त्रार्थ ,हाँ  मगर आपके प्रवचन अवश्य सुनूंगा , अभी प्रजा पर संकट आया है उसके लिए थोड़ा समय  दें ,तबतक एक बार अपने  धर्म का अध्ययन और करलें आप , मेरी सारी रानियां प्रजा आपकी दास  सेवामे रहेगी आपमुझे अनुमति दे , साधु बोले जा जल्दी आना , कर साधु से राजा ने विदा ली ,फिर राजा लौटा तो देश पर आक्रमण ,  अकाल, भूकम्प ,न्याय, और धर्म सभा जैसे कार्यों के लिए साधु से आज्ञा लेकर जाता रहा परन्तु हर बार जाते समय यह अवश्य कह जाता था महाराज आप अपने धर्म का एक बार और अध्ययन करलें ,इस प्रकार २ वर्ष का समय कब बीत गया मालूम ही नहीं पड़ा ,जब ११ वीं बार राजा लौटा तो देखा साधु गायब थे , राजा ने अपने योग से जाना कि साधु कहाँ है, तो सीधा उनके पास घने  जंगल में जहां साधु  थें ,वहां पहुंचा और रो रो कर बोला महाराज मैंने आपको बड़ा दुःख पहुंचाया है ,क्षमा करें मुझे अब आप ,अपना धर्म उपदेश दें  और मेरा परिवार आपको अपना सब कुछ मान चुका है ,आप दया करें , साधु ने धीरे से  आँखें खोली और पूर्ण प्रेम  भाव से कहना  आरम्भ किया ,हे राजा वास्तव तू  बहुत बदमाश है, तेरे कहने के कारण जब मै ११ वीं बार अपने धर्म का अध्ययन कररहा था ,तब मुझे यह ज्ञान प्रत्यक्ष दिखने लगा कि हर कण में जब वो ही समाया है तो मैं  बड़ा कैसे और कोई छोटा कैसे , मैं तेरी ब्रह्माण्ड  की सेवा और हर प्राणी के प्रति तेरे दया के भाव से भी नत मस्तक हूँ और आज मैं  ब्रह्म को जान गया हूँ ,यह कहकर साधु गहन ध्यान में उतर गये ,राजा ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी राजधानी लौट गया  |

हम आज जिस समाज में खड़े है वहां हम केवल इस बात के लिए सदैव   चिंतित रहते है कि , समाज का हर व्यक्ति श्रेष्ठता की तुलना में हमसे अधिक श्रेष्ठ न हो जाए , हमारी तमाम कोशिशें यही रहती है कि कैसे  भीस्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए कुछ भीकिया जाए ,मगर  स्वयं को इस   रूप  स्थापित  किया जाए  कि दूसरे उसकी तुलना नहीं कर सकें | इसी उधेड़ बुन में जीवन कब निकल जाता है यह अहसास ही नहीं हो पाता  हमें , हमारे सारे जीवन का सार  यही रह पाता है कि एक समूह जो हमारी प्रसंशा करता रहे , एक बनावटी परिवेश जिसमे हम स्वयं को श्रेष्ठ समझते रहे, और चाटुकारों से भरा छोटा सा हमारा दड़बा ,जिसमे हम स्वयं को सम्राट की तरह पाते है ,जीवन शनैः शनैःबीतता जाता है और हम अपने ही नशे मे चूर भ्रम पाले दुनियां से चले जाते है ,शायद यही जीवन का सत्य भी है |

मैं और मेरी उपलब्धिया बड़े अलग विषय है ,इस  समाज में रहता हुआ व्यक्ति अपनी पहचान के लिए अपनी उपलब्धियों को दर्शाने की कोशिश करता रहता है , उसकी पहिचान के लिए बहुत बड़ी  संपत्ति बड़े बड़े मकान बड़ी बड़ी गाड़ियां और ऐशो आराम का हर साधन होना आवश्यक होना चाहिए , उसकी पहिचान उसकी सम्पत्तियों के नाम से होती है , यह फार्म हाउस किसका है ओ हाँ बहुत बड़े आदमी है वो ,इसी प्रकार ३०० माले की बिल्डिंग , चार्टर प्लेन और हजारों साधनों की भीड़ ,आपकी पहिचान बनी रहती है ता उम्र ,
राजाओं महाराजाओं के विलास महल , नाट्य घर और राज सभाओं में कलाकारों और नृत्यकियों की हर रात चलने वाली प्रतियोगिताएँ ,बड़े बड़े राज्य प्रासादों में २४ घंटे जागते हरम और हजारों सेवादार , कहने का आशय यह कि धनबल , वैभव बल , रूपबल साधन और साधना बल ये सब उस व्यक्ति की पहिचान बने रहते है जबकि उसके आत्म चिंतन का यहाँ कही सवाल ही नहीं उठ पाता  है |


आदमी अपने बारे में सोच ही कहां पाता  है ,उसके सामने समाज परिवार और परम्पराओं के अनुसार काम लाद  दिए जाते है बस वह उन्हीं आपूर्तियों में उलझा अपना जीवन ढ़ोता रहता है बाल्य अवस्था में उसका मानस तैयार किया जाने लगता है कि ,बड़ा आदमी बनेगा , कलेक्टर बनेगा ,डॉ बनेगा , या और कुछ, कोई माता पिता बच्चे को सत्य , अहिंसा, त्याग और संस्कार का पाठ पढ़ाता नहीं दिखाई दिया, न ही कोई अपने बच्चे को गीता का निष्कामप्रेम समझाता मिला, न ही जीवन की नश्वरता , और मोह में बंधे सारे नकली रिश्तों की व्याख्या करता मिला कोई , शायद परम्पराओं के हिसाब से उनके बड़ों ने भी यह तथ्य उन्हें नहीं बताये होंगें , अर्थात उन्होंने जो कुछ भी बताया वह संसार और जगत का बोध तो अवश्य था मगर वह स्वयं के बोध और आत्म चिंतन से कोसों दूर था |
 
मैं क्यों पैदा हुआ हूँ ?मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है , आत्मा का सम्बन्ध किस हद तक सांसारिक उपलब्धियों से जुड़ा है ?ये तमाम प्रश्न सामान्यतः तब हमारे दिलो दिमाग में आते है जब हमारे पास जीवन के लिए समय ही नहीं होता ,मित्रो साधन और उपलब्धियां आपके लिये एक हद तक महत्वपूर्ण अवश्य है ,मगर जब वे आपके जीवन और मूल्यों से अधिक अपना महत्व निर्मित करने लगें ,तो आप निश्चित समझ लें कि वे ही आपके जीवन में अशांति , पाप और नाश का कारक बन कर आपको नष्ट कर देंगे ,
स्वयं का चिंतन और स्वयं की शक्तियों को जाग्रत करके जिन लोगो ने  संसार में जीवन जिया है वे लोग सदियों से अमरत्व पा  चुके है  उन्हें समय की परिधि ने भी मुक्त कर दिया है ,शांति , सुख , आनंद और परमानंद का सम्बन्ध साधनों के ढेर से अधिक आत्म बोध और आत्मानुभूति में निहित है , आपका लक्ष्य , आपका क्रियान्वयन और आपका सोच जैसे जैसे धनात्मक और बड़ा होता जाएगा, वैसे वैसे संसार की हर उपलब्धि आपको छोटी लगने लगेगी और एक दिन आप स्वयं को उस शिखर पर पाएंगे जहाँ केवल आप आपका नैसर्गिक आनंद होगा और शायद आपके पास इस समय कुछ पाने को शेष ही नहीं होगा |

निम्न विचारों को अवश्य चिंतन में लाये


  • समय की सीमितता पर पैनी नजर बनाये रखें और प्रयास यह हो कि ,जाता हुआ प्रत्येक पल जाते हुए आपको अपनी सार्थकता का परिचय अवश्य देता जाए , अन्यथा समय से पश्चाताप पैदा होने लगेगा | 
  • प्रतिदिन अपने बारे में अवश्य सोंचें ,साधन , शक्ति और बाह्य आवरण की रक्षा के लिए संसाधनों का एकत्रीकरण तो हो मगर उसके साथ उसके प्रयोग और उसके त्याग के लिए भी तैयारी बनाये रखनी चाहिए | 
  • मैं कोन हूँ ?मेरा उद्देश्य क्या है? मैकितना सफल हूँ? मुझे वास्तव में क्या करना चाहिए ?ये सब प्रश्न आप रोज अपने मन मष्तिष्क में दोहराते रहिये इससे आपके क्रियान्वयन में परिवर्तन आने लगेंगे | 
  • साधन उपभोग और  एकत्रीकरण एक अबाध चलने वाला क्रम है , उससे समाज और बाह्य वातावरण में आपका कद अवश्य बढ़ सकता है, मगर यह अवश्य तय समझे कि उनके उपभोग के बाद आपकी आत्मा को ही यह निर्णय करना है की यह व्यर्थ रहा या सार्थक | 
  • संसाधनों के एकत्रीकरण का अभिमान आप से सम्पूर्ण शांति छीन सकता है क्योकि जो संपत्ति कल किसी और की थी वो आज आपकी है और कल किसी और की होनी है तो इसका अभिमान क्यों | 
  • धन , बल , साधन , सौंदर्य, और शक्ति  सब शाश्वत है और इंसानी जीवन नश्वर है तो इन शक्तियों से इंसान का हारना तय ही तो है ऐसे में इनका अभिमान और एकत्रीकरण पूर्ण सोच के साथ होना चाहिए | 
  • सार्वभौमिक सत्य और ब्रह्माण्ड में पैदा होने वाला हर व्यक्ति किसी न किसी कारण से श्रेष्ठता सिद्ध करता रहता है आप उसकी श्रेष्ठता अनदेखी और अपनी श्रेष्ठता का बखान  न करें | 
  • त्याग , समभाव और दूसरों के प्रति प्रेम का भाव आपको सहज शांति दे सकता है क्योकि जैसे जैसे आप दूसरों को सुख देने को तत्पर होजाएंगे आपको स्वयं की अात्मा से सुख का अनुभव होने लगेगा | 


Sunday, December 13, 2015

हजारों ख्वाहिशे इंसान की है (people have thousands of desires)

हजारों ख्वाहिशे इंसान की है

एक साधु महाराज का अंतिम समय था और वो जीवन के इस समय को पूर्ण शांति के साथ व्यतीत करके स्वर्गारोहण करना चाहते थे , स्वर्ग के देवता उनका इन्तजार कररहे थे और साधु महाराज काफी समय के बाद भी वहां नहीं पहुंचे थे देवताओं ने कहा जाओ मालूम करों की संत बाबा कहां  रह गए है ,दूतों ने वहां जाकर देखा तो मालूम हुआ साधु महाराज की आत्मा शरीर छोड़ चुकी है, परन्तु वह कहां रह गयी ,यह  किसी को नहीं पता ,दूतों ने जब सूक्ष्म निरीक्षण किया तो मालूम हुआ की साधु महाराज का शरीर जहाँ पड़ा था ,उसके ऊपर एक बड़ा आम का वृक्ष लगा था और बहुत  ऊपर एक पके हुए आम के इर्द गिर्द उनकी आत्मा घूम रही थी, सोच यह थी की इस आम के वृक्ष को मैंने लगाया और फल नहीं खा सका , दूत ने तुरंत उस आम को तोड़ कर साधु बाबा को मुक्त किया और यह सोचने लगा की इंसान देवता  या यों कहें कि  प्रत्येक  जड़ और  चेतन अपनी अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं के चक्रव्हियू  में फंसा परम संतोष की कामना कररहा है जबकि उसकी सम्पूर्ण शांति को उसकी ही आकांक्षाएं और वासनाएं प्रति पल नष्ट भ्रष्ट कररही है |


जीवन प्रतिपल बढ़ता जाता है इच्छाओं का चक्र और अधिक गहरा और जटिल होता जाता है और हम स्वयं के बनाये जाल में इतना अधिक फँस जाते है  की  हमारी सम्पूर्ण क्रियाएँ ही हमारे जीवन को अस्थिर अशांत और प्यासा सिद्ध कर देती है , हमारी हालत रेगिस्तान में भटकते हुए उस इंसान की तरह होजाती है जो रेतीली चमक को पानी के भ्रम में पकड़ने का अथक प्रयास करता है मगर बार बार उसके हाथ निराशा ही लगती है और अपने अंतिम पल तक वह यही विचार करपाता है की शायद उसे यह और मिल जाता तो ज्यादा अच्छा हो जाता | यही हमारी आपकी जीवन शैली का कोई चित्र है जिसमे केवल भ्रम , प्यास और खालीपन ही ज्यादा है |


हजारो इच्छाओं आकांक्षाओं के बीच फंसे आदमी की दशा बड़ी विचित्र और दयनीय दिखाई देती है हमारी एक इच्छा पूर्ण करने के लिए, हम बड़ी मेहनत से एक उपलब्धि हासिल कर पाते है, उसकी पूर्ती से पहले ही फिर नई इच्छाए हमे परेशान करने लगती है और फिर से एकबार हम अपने प्रयत्न में लगजाते है , जीवन भर यही क्रम हमारा पीछा करता रहता है और हम जीतने हारने और जीतने के भ्रम पाले आगे बढ़ते जाते है , आकांक्षाओं का चक्र समय या काल की तरह अजेय और अमर है और इंसान एक नश्वर प्राणी है, तो उसे इन इच्छाओं और कामनाओं से हारना ही होता है ,जो उसके जीवन की सफलता और उसे श्रेष्ठ सिद्ध करने में बाधक ही बनी  रहती  है |

यहाँ इंसानी इच्छाएं बड़ी अजीबो गरीब है --किसीको अकूत धन वैभव की आवश्यकता है, तो किसीको बड़ेबड़े राज प्रासादों की ,किसीको पेट भरने की इच्छा है तो किसीको हजारों पीढ़ियों तक धन सम्पदा की आवश्यकता है, किसीको तन की इतनी अधिक भूख़  है  कि वह दुनिया के हर सुन्दर व्यक्ति का दोहन करना चाहता है और किसीको भूख  है स्वयं को सर्व श्रेष्ठ साबित करने की ,कहने का आशय यह  कि  तन ,मन, धन और संसार की हर श्रेष्ठ वस्तु और व्यक्ति पर अधिकार जाताना चाहता है हमारा यह इंसान ,  और इन सबकी उपलब्धता से वह यह  गलत फहमी भी पालने लगता है  कि शायद इन सबकी प्राप्ति उसे अमर और काल जई बना सकें ,मगर जीवन अपनी नश्वरता से बंधा यही सिद्ध करता रहता है ,कि जीवन का वास्तविक आशय इच्छाओं की आपूर्ति में नहीं अपितु उनके त्याग में निहित है |

एक दार्शनिक ने अपने दर्शन में लिखा 

आपकी मृत्यु के बाद बची अकूत संपत्ति , राजप्रासाद और दूर नजरतक फैली जमीन जायदाद यह सिद्ध करती है कि  आपने इस बची हुई संपत्ति के मूल्य के बराबर अतिरिक्त श्रम किया जिसका प्रयोग आप अपने आत्म विकास के लिए भी कर सकते थे जिससे आपको जीवन का अंतिम सत्य ,मोक्ष या यों  कहिये आपको परम संतोष का बिंदु अवश्य प्राप्त हो सकता था ,जो आप हासिल नहीं कर सके 

हम आपसी संबंधों के मामले में भी अत्यंत गलत धारणा लिए हुए है , हर इंसान अपने हर सम्बन्ध पर एकाधिकार चाहता है और स्वयं को पूर्णतः स्वतंत्र रखना चाहता है , उसकी धरणा  यही रहती  है  कि  वह सर्वश्रेष्ठ बना रहते हुए भी हर अच्छी विषय वस्तु , इंसान और श्रेष्ठता का स्वामी रहे , और हर इंसान उसकी प्रसंशा करता रहे , वह एक शहंशाह की तरह हर व्यक्ति और वस्तु का प्रयोग करने हेतु स्वतंत्र हो ,परन्तु वास्तविक जीवन में यह चाहना उसे स्वयं भविष्य के विकास से काफी दूर खीच ले जाती है परिणाम यह जीवन केवल पश्चताप का मायने होकर रहजाता है जिसमें लाखों कमियां परलक्षित होने लगती है | 

 अंतरात्मा और जीवन की सबसे बड़ी चाहना है परम शांति ,  एक असीम  शीतलता , एक  असीम  आत्म चेतना का  भाव या यूँ कहिये स्वयं और ब्रह्माण्ड के  विकास की सोच जिसमे स्वयं से समाज तक  कल्याण की भावना   छुपी हो 
 एक  बड़े हवन कुण्ड पर बैठा कोई इंसान जलते  हवन में मुट्ठी भर भर कर आहुति और घी डाल रहा है और यह भी चाहता है की इस अग्नि के प्रचंड वेग से वह स्वयं न जले , जब तन की वासनाएं उठी तो उसका बेतहाशा दोहन किया जब धन सम्पदा और श्रेष्ठ बनने की चाह हुई तो पूरा जीवन झोंक डाला आपूर्ति के लिए , और अब जब कुछ शेष ही नहीं बचा पश्चताप के सिवा ,तब हमे आवश्यकता हुई परम शांति की जो आपसे काफी दूर है ,जिसपर आपका कोई अधिकार है ही नहीं , हवन कुण्ड की ज्वालाओं को शांत करने हेतु आपको आहुति डालनी बंद करनी थी, तन , धन और श्रेष्ठता की इच्छाओं को त्याग कर स्वयं को भविष्य को और जीवन की नश्वरता को पहचानने की आवश्यकता  थी , जो आपको जीवन से और मृत्यु से जीतने का मार्ग  सहज कर सकती थी | 


निम्न को जीवन के आधारों में शामिल कीजिए 
  • जीवन का वास्तविक आशय यह है  कि आप उसे किस हद तक समझ पाये इसका अर्थ यह है  कि जीवन केवल मेरे लिए नहीं है वरन दूसरों के कल्याण के लिए भी है , अतैव वह सही अर्थो में स्वयं को सिद्ध करता रहे | 
  • कामनाओं , इच्छाओं और आवश्यकताओं का सही अर्थों में आकलन किया जाता रहना चाहिए क्योकि एक सीमा के बाद यही कामनाएं आपको पतन के द्वार तक ले जा सकती है | 
  • जीवन में सोच और चिंतन से मुक्त कामनाएं आपको वासना के रूप में प्राप्त होती है इनका भेद आपको मालूम होना चाहिए , आवेश और जल्दी में आपूर्ति का हर प्रयास आपको संतोष से दूर ले जाता है | 
  • ईश्वर ने हर इंसान को कुछ खूबियों और कुछ कमियों के साथ बनाया है आपको उसे उसी स्वरुप में स्वीकार करना चाहिए इससे आपकी नजर में दूसरों का सम्मान बढ़ेगा और आपका व्यक्तित्व निखरेगा | 
  • परस्पर विश्वास  होना चाहिए मगर इस विश्वास को समय समय पर  परीक्षित अवश्य करते रहें क्योकि केवल बोलने , सहानुभूति और भविष्य में कुछ करने के सब्ज बाग़ आपको सत्य से दूर लेजाते  है| 
  • कामनाओं और वासनाओं के अतिरेक का त्याग ही हमें हमारे भविष्य के लक्ष्य की तरफ लेजा सकता है अन्यथा प्रयत्न की हर दिशा इतनी भ्रमित और दिशा हीं होगी जो हमें पश्चाताप दे ने लगेगी | 
  • नाकारात्मक स्वप्नों  से स्वयं को बचाने का प्रयत्न करें , क्योकि इन नकारात्मक भावों का  पूरे व्यक्तित्व पर इतना गहरा प्रभाव होता है की जीवन का हर विकास अवरुद्ध हो जाता है | 
  • आपका हर कार्य आपका भविष्य का भोग्य बनने वाला है इसलिए हर कार्य से पूर्व आप यह चिंतन अवश्य करें की इससे आपको  बाद में पश्चताप तो नहीं होगा | 
  • शरीर और आत्मा दोनो अलग है, बहुत सारे कार्य शरीर करता है और सबके बाद आत्मा सिद्ध कर देती है कि यह कार्य सही  था की नहीं , अतैव आत्मा की आवाज सुनने का प्रयत्न करें | 
  • जो तुम्हारा  नहीं है ,उसका शोक कैसा और जो तुम्हारा था उसका अभिमान क्यों , यह तो नियति है दुःख और सुख पर केवल ईश्वर का अधिकार है आप स्वयं उसके नियंता न बनें | 
  • क्रोध ,झूठ ,फरेब , का सहारा लेकर जो होगा सो देखा जाएगा वाली शैली से जीवन केवल पश्चाताप दुःख निराशा ही दे सकेगा अतः  स्वयं को सत्य और त्याग का मायने बनाएं |





Sunday, October 25, 2015

The meaning of life is not to complain and cry जीवन का अर्थ शिकायत और रोना नहीं है


The meaning of life is not to complain and cry
जीवन का अर्थ शिकायत और रोना नहीं है

जीवन था तो सुख था जीवन था तो दुःख भी साथ था , परिस्थितियां  बदलती गई, समस्याएं नए नए स्वरुप में आती गई और हर व्यक्ति  अपने अपने स्वभाव के अनुसार जीवन की परिभाषा गढ़ता चला गया और उसका संतोष इन्हीं के इर्द गिर्द अपना डेरा डाले रहा |
एक गुरु  अपने तीन शिष्यों  को लकड़ी काटने   घने जंगल में भेजा तीनों अलग अलग दिशाओं में चल पड़े और दूसरे दिन दोपहर में गुरु के आश्रम पहुंचे इनमे केवल एक शिष्य लकड़ी का गट्ठर लिए था बाँकी शिष्यों के कपडे फट चुके थे जगह जगह खरोचें लगी थी एक शिष्य की पाँव की कोई हड्डी टूट गई थी , और दोनो कराह रहे थे , गुरु ने  जानकारी ली तो  शिष्यों ने जिन्हें चोट लगी थी और हड्डी टूट गई थी उन्होंने रोते हुए बताया कि इस सफल शिष्य ने जो लकड़ी का गठ्ठा लेकर आया है उसने हम दोनों को खराब दिशा में भेजा, इसे  मालूम था की वहां खतरनाक जीव जंतु रहते है ,हम दोनो गुरुदेव मरते मरते बचे है , हड्डी टूटे शिष्य की और इशारा करके वोशिष्य बोला की  इसे हाथियों ने घेर लिया ,भागते हाथियों  के साथ भागते भागते यह एक गहरे गड्ढे में गिर गया, जब हाथी  चले गए तो ये निकल पाया , मेरे पीछे एक रीछ   पड़  गया उससे भागते भागते मेरे सारे कपडे फट गए अचानक मै पहाड़ से फिसल कर बहुत नीचे गिरा फिर भागने लगा तब कही जाकर एक झोपड़ी में रह रहे आदिवासी परिवार  ने मेरी जान बचाई | गुरु ने तीसरे शिष्य से पूछा पुत्र आपको कोई कठिनाई नहीं हुई  क्या , उसने गुरु को प्रणाम किया  और  बताया कि  मैं जब लकड़ियाँ चुनने का विचार ही बना रहा था अचानक मुझे शेर की दहाड़ने की आवाज सुनाई पहाड़ से नीचे देखा तो एक शेर का परिवार तीन बच्चों के साथ मेरी और ही आ रहा था मैंने मन ही मन आपको प्रणाम किया और पास के विशाल वृक्ष पर चढ़ गया ,पहले तो मै दो घंटों  तक  शांत और स्तब्ध रहा, शेर बार बार पेड़ पर चढ़ते गुर्राते और गिरते रहे फिर वो पेड़ के नीचे ही बैठ गए , मुझे ख्याल आया कि  मै  लकड़ी  एकत्रित करने आया हूँ , तो मैंने उसी वृक्ष की सूखी लकड़ियाँ  इकठ्ठा करके नीचे फेकना चालू करदी पता नहीं कब शेर भाग गए , फिर रात भर मैं खुद को वृक्ष से बाँध कर वहीँ पड़ा रहा सुबह जब  कुछ लोग   आते दिखे तब मैं  उतरा और ये लकडियां  लेकर आपतक आ पाया हूँ , गुरु ने देखा सारी लकडिया एक वृक्ष की ही थी उन्होंने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया और दोनो शिष्यों से कहा  पुत्र  आप इनसे कुछ सीखों |

गुरु ने कहा  पुत्र जीवन जब आरम्भ होता है तब से ही उसे संघर्ष , समस्याओं और उनके प्रति किये कर्त्तव्य का बोध सीखना होता है हमे चाहते न चाहते वो सब कार्य , मार्ग  तय करने होते है जो समय हमको देता जाता है यहाँ यह समस्या नहीं है कि आपपर समस्या आई क्यों वह तो स्वभाव है प्रकृति का , यहाँ प्रश्न यह था की हम बार बार अपनी अकर्मण्यता और अपने स्वभाव के कारण दूसरों को दोषारोपित करते रहे , हमने बचपन में भाई बहिनों  को दोषारोपित किया , बड़े होने पर अपने मित्रों को दोष दिया और बड़े होने पर समाज को दोष दिया और जहाँ पर भी हमारी कमियां अकर्माण्यता और बुरी आदतें हमे समस्या सी दिखने लगी हमने अपने भाग्य और विधाता को दोष देना आरम्भ कर दिया और जीवन इसी तरह निकल गया ,पुत्र यहाँ पर प्रश्न यह नहीं कि आप दोषी थे या नहीं यहाँ केवल प्रश्न यही था  कि बाल्यावस्था से माँ बाप भाई बहिन मित्र सब पर हम दोष मढ़ते रहे , परन्तु कभी भी हमने अपने अंतर में झांक कर स्वयं को पहिचानने की कोशिश नहीं की यहीं से हमारा पराभव आरम्भ हो जाता है ,यह कहकर गुरु मौन हो गए दोनो शिष्यों ने क्षमा प्रार्थना की और लकड़ी लाने  वाला शिष्य उनके घाव साफ करने लगा |

हर दिन हमे जीवन उस मोड़ पर खड़ा  कर देता है जहाँ हम अपने अस्तित्व को बचाने के लिए दूसरों पर आरोप लगाने लगते है  यह हमे विरासत में ही प्राप्त होता है ,फिर तो अपनी कमियां अपने सर्वश्रेष्ठ होने का अहंकार और जीवन की तमाम नकारत्मकताएं केवल दूसरों पर थोप दी जाती है , परिणाम जीवन और गहरे और गहरे गर्त में डूबता चला जाता है , और हम स्व मूल्यांकन और स्वयं के दोषों के अवलोकन से दूर अपनी झूठी शान और अति महत्वाकांक्षी स्वाभाव के कारण अपनी गलतियों को दूर कर ही नहीं पाते , शायद जीवन इसी हवस , महत्वाकांक्षा और  उन जरूरतों का नाम हो जिन्हें कभी पूरा होना ही नहीं होता है , जैसे ही एक आवश्यकता पूरी हो वैसे ही दूसरी आवश्यकता आपको परेशान करने लगती है जीवन यही कार्य बार बार दोहराता रहता है |



हमारी दशा उस शराबी की तरह हो गई है जिसने  शराब के नशे मे बीती रात बहुत से अपराध किये  ,समाज और  प्रसाशन ने उसे खूब दण्डित किया और उसने समाज और प्रसाशन के सामने १००० बार कसमें खाई  कि  वह कभी शराब नहीं पियेगा और न ही कभी कोई अपराध करेगा , मगर रात होते ही वह फिर एक शराब की दूकान पर खड़ा अपनी बारी की प्रतीक्षा कररहा है , क्योकि हमने जीवन में अपने आत्मावलोकन का प्रयास ही नहीं किया ,हम सबकी शिकायत पर ऊपरी भाव से यह कहने  के आदि होगये कि, छोडो हम कभी फिर गलती नहीं करेंगे ,लेकिन हमारी अंतरात्मा हमारा ज़मीर  हमारे आदर्श सब कुछ अपनी हवस के कारण छोटे थे ,अंतिम रूप में कल जब  डॉ ने पेट की परेशानी में यह स्पष्ट कर दिया यह लिवर सिरॉसिस है अब हम फिर कसमें खा  रहे है , परिणाम हम जीवन भर उन्हीं  इच्छाओं के ही गुलाम बने रहे ,जबकि हमारे पास कई मार्ग थे स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के |

जीवन स्वयं इतना स्वाार्थी है जिसे दूसरे की परवाह ही कहाँ  होती है, एक बंदरिया को बच्चे के साथ पानी के टब में डालने पर केवल सीमा तक उसने बच्चे को बचाने का प्रयत्न किया ,जबपानी उसकी नाक पर आया तो उसने बच्चे को टब में पटका और कूद कर वह बाहर खड़ी हो गई,  यह बहुत बड़े दार्शनिक का मत रहा है और यहीं जीवन का एक मात्र सत्य भी है ,जब भी हम अपनी कल्पना करते है  आस पास के सारे लोग हमे प्रतिद्वंदी से दिखाई देने लगते है , हमारे पास एक ही लक्ष्य होता है कि कैसे भी हमे जो ठीक लगता है उसे पूरा किया जाए ,रोना ,पीटना , झूठ ,सच ,सहानुभूति और स्वयं को बड़ा बनाते हुए वही सब करना है जो हमे ठीक लगे , और सबसे बड़ी बात यह की सब लोग उसे अच्छा ही कहें ,जबकि समाज , समय और सारा ब्रह्माण्ड भी यदि साथ हो जाए तो भी आदर्शों  उपेक्षित नहीं किया जा सकता | अर्थात ख़राब को अच्छा और अच्छे को ख़राब नहीं बनाया जा सकता |


 जीवन के इस  प्रश्न पर इनको भी अपनाइये

  • स्वयं  का आंकलन हमेशा करते रहिये क्योकि मनुष्य स्वभाव में नित्य प्रति त्रुटियाँ होना स्वाभाविक है ,उन्हें बिना समय गवाये सुधारना आवश्यक है , दीवार में उगा छोटा पौधा तुरंत उखड जाता है नहीं तो वह दीवार उखाड़ देता है | 
  • अपनी कमियों और शक्तियों का आंकलन करते रहिये क्योकि बड़े बड़े शक्तिशाली वृक्ष भी कमजोर और नन्हीं दीमक के सामने धराशाही हो जाते है | 
  • हर  परिस्थिति  में संघर्ष का भाव बनाये रखिये  समस्या हो तो उसके समाधान का और यदि समस्या न हो तो अपने विकास के लिए निरंतर प्रयास किये जाए | 
  • प्रत्येक व्यक्ति में कमियां और अच्छाइयां है  उन्हें कमियों के साथ स्वीकार करना आरम्भ करें यदि हम बहुत सारी अच्छाइयों का भ्रम पाले है तो उसमे सुधार करलें | 
  • आत्मा और शरीर दोनो ही विपरीत स्थिति और स्वभाव रखते है आत्मा के उत्थान के लिए हठ योग एकाग्रता और बहुत से प्रयास करने होते है शरीर अस्थाई छड़ भंगुर संतोष का कारक  है ,जो नकारात्मकता  भी देता है | 
  • अच्छे और बुरे का भेद स्वयं के हिसाब से न करें उसका भेद वास्तविक आदर्शों के हिसाब से किया जाना चाहिए क्योकि हम अपने दुष्कर्मों को भी  पूर्णतः समझ ही नहीं पाते है | 
  • जीवन में उन लोगो का सम्मान करें जो आपको हर कदम पर रोकने टोकने की प्रवृत्ति रखते है , ध्यान रहे जीवन यह सौगात हरेक इंसान को नहीं देता | 
  • जीवन है तो  गलतियां होंगी और स्वाभाव गत गलतियां  निरंतर यह मांग करती रहती है उनकी स्वीकारोक्ति तुरंत की जाए नहीं तो अहंकार और कमियों की खरपतवार आपके व्यक्तित्व को पूर्णतः नष्ट कर देगी | 
  • संघर्ष के लिए उत्तेजना , क्रोध और अनियमित वार्तालाप के स्थान पर पूर्ण गंभीर और चेतना के भाव का आश्रय लेना चाहिए क्योकि सबसे ज्यादा श्रेष्ठ निर्णय ऐसे समय ही लेने होते  है | 
  • जीवन में अपने दुष्कर्मों की स्वीकारोक्ति बड़ा ही कठिन विषय है जो हमारी अंतरात्मा को भी घायल , निस्तेज और कमजोर बना डालता है , परिणाम उन कार्योंका छुपाव , झूठ आपको शक्तिहीन कर देगा अतैव स्वयं को परिष्कृत करने हेतु क्षमा और स्वीकारोक्ति का प्रयोग करते रहें | 




Friday, September 25, 2015

basic management of life and your thought जीवन का बुनियादी प्रबंधन और आपके विचार


 basic management of life and your thought
      जीवन का बुनियादी प्रबंधन और  आपके विचार

new management funda  ( story of success)



बहुत बड़ा कद था एस. के. एस का वह एक बड़ी मल्टी नेशनल कंपनी में चीफ था अमरीका बेस कंपनी का अलग अलग देशों में बड़ा अनुभव था उसके पास उसने कंपनी की  प्रगति रिपोर्ट देखा और यह पाया कि दो राष्ट्रों में कंपनी का कार्य बड़ा ही खराब और बंद होने के कगार पर खड़ा है ,एस के ने तुरंत निश्चय किया कि वह स्वयं जाकर वहां की  व्यवस्थाएं देखेगा, जिससे कंपनी  के लाभ और प्रगति में अंतर आ सके, यह सोच कर उसने एक समस्या गत देश को  स्वयं के सघन निरीक्षण में लिया और सुधार कार्यक्रम आरम्भ किया , यहाँ आकर  उसने देखा कि हर कर्मचारी हर व्यक्ति उससे मिलने और स्वयं को श्रेष्ठ बताने की होड़ में लगा है, हर आदमी की रूचि अपने कार्य से अधिक दूसरे के कार्य में है,
एस  के  ने अपने मुख्य सचिव को बुलाया और कम्पनी के बारे में पूछा सचिव ने ढेरों बातें बताई, उसमे हर आदमी का वर्णन बुराई और उसपर ही कंपनी की अव्यवस्था का ठीकरा फोड़ता रहा, चीफ  , एस. के. का सिर घूमने लगा , अलग अलग लोगो से बात करने पर उसने देखा  कि हर इंसान अपने से ज्यादा दूसरों की चर्चा में लगा हुआ है , कार्य स्थल के अलग अलग लोगो को बुला कर उसने जानकारी ली ,फिर दूसरों के  खिलाफ कार्यवाही की गई,फिर उनके पक्ष सुनकर दूसरों के  फिलाफ फिर कार्यवाही हुई ,और सारी कम्पनी का वातावरण  अस्थिर होगया था ,  सघन सी सी टी वी कैमरो के लगाए जाने पर यह स्पष्ट होगया कि, यह ऑफिस कम  एक रूढ़िवादी क्लेशी परिवार का  चित्रण ज्यादा है , हर आदमी अपने काम का रुतबा जमाने के लिए ,काम कम और दूसरों का चरित्र चित्रण अधिक कररहा है , कहीं आशिकी चल रही है  नई  युवतियां अधिक बातों और चेष्टाओं से अकारण ध्यान खीच रहीं थी , कहीं गोष्ठियां , और कहीं कैसे भी काम से बचने का कोई उपक्रम , जैसे ही किसीके फिलाफ कोई निर्णय लिया जाता दुसरे ग्रुप में जश्न मनाया जाने लगता था ,  और दुसरे ग्रुप को नीचे दिखाने के लिए पहला ग्रुप अलग तैयारी करने लगता था ,पुराने ढर्रे पर पुरानी रूढ़िवादी रीतियों में नए काम करने वाले , पढ़े लिखे लोगों को हतोत्साहित भी कर रहे थे ,बार बार यही कहा जाता था तुम दो दिन के बच्चे क्या जानो यह सब , एस के   बहुत अधिक परेशान होकर अपनी सारी योग्यता विहीन सा होने लगाथा  ,विकास के स्थान पर उसमें भी नकारत्मकताएं आने लगी ,और पूरा जीवन का सफल क्रम उसे मुंह चिढ़ाने लगा ,उसने  अपने ध्यान रूम में स्वयं को एकाग्र  किया , अचानक विडिओ काल पर उसके गुरु का फोन अाया वे बोले बेटा आप बहुत परेशान हो ,पूरी घटना सुनने के बाद गुरु बोले  बेटा अब मै  जैसा कह रहा हूँ आप वैसा ही करें कर्त्तव्य को एक कर्ता  के रूप में देखें, और कर्म स्थल को युद्ध के मैदान की तरह ,जंहाँ आदर्शों के साथ आपको सब कुछ जीतना है ,गुरु ने बताया कि

हर काम करने वाले आदमी को एक नए सिरे से प्रशिक्षण दिया जाए |
हर कर्मचारी का दायित्व उसे पूर्ण करना है ,वह कृष्ण के कर्म योग का मेंबर है उसकी जीवन की सफलता भी ,काम की सफलता पर है | 
 साथ ही विकास के कार्यों हेतु  एक नई युवाओं की टीम बनाई जाए |
ऑफिस के क्षेत्र को पीस एरिया घोषित करें, जहाँ जोर से बात करना , अप्रासंगिक बातें करना प्रतिबंधित हों |
सामान्य बातों के लिए अलग रूम और व्यवस्था की जाए |
समयानुसार मूल्यांकन किया जाए , और माह में एक बार उनसे दिन के अनुसार रिपोर्ट और समस्याएं जरूर पूछे |
सबकी कमियों के स्थान पर उनकी स्ट्रेंथ पर ध्यान लगाए |
किसीको भी किसी के बारे में बोलने का हक ना दें| 
स्वयं अपने तकनीकी स्त्रोतों से व्यक्ति के बारे में जानकारीलें  और सम्बंधित से बात करें |
हर बातके निर्णय को अपने ऊपर न लेकर सबकी  जबाब देही  स्पष्ट करें
७ - ७ डेज के सजा के प्रावधान किये जाए जिसमे वेतन न काट कर केवल उसे आराम वाले कमरों में बैठाया जावे
कोई काम न दिया जावे ,
व्यक्ति  को धर्म से जोड़े तथा उसका प्रेक्टिकल भी कराते रहें |
जो लोग कंपनी के लिए स्वयं को नहीं बदल सकें उन्हें दुगना पैसा देकर कंपनी से अलग किया जाए |
                             
 एस  के ने जैसे ही नियमों के तहत काम आरभ किया कंपनी का वातावरण बदलने लगा कुछ विरोध के बाद  योजना सफल होने लगी , कार्य स्थल पर बात न करना और सेंट्रल रूम का सघन चेकिंग में देखते हुए लोगो का व्यवहार बदलने लगा , प्रशिक्षण और विकास के के कार्यों से जुड़कर आज यह कम्पनी विश्व की सबसे बड़ी कंपनियों  में से एक है , और एस  के एक सफल और श्रेष्ठ डायरेक्टर भी है |

आज का जीवन समाज और वातावरण इतना जटिल होगया है कि आदमी अपनी  चिरंतन शान्ति और जन्म से मिला  गुण या यूँ कहिये अपना स्वयं का संतोष स्वयं खो बैठा है , उसके चारो ओर  अपर्याप्तता , असंतोष , अस्थिरता , और अँधेरा ही अँधेरा दिखाई देता  है , उसे अपने ही अंदर हजारों  कमियाँ दिखाई देती   है ,और बार बार जब उसकी  आत्मा उसका आंकलन नहीं कर पाती तो  स्वतः उसमे नैराश्य पैदा होने लगता है , फिर जहां का उत्पादन ही नकारात्मकता के वातावरण से आरम्भ  हो वहां कैसे आनंद का उद्भव हो पायेगा ,अतः सफलता के लिए प्रयास अवश्य  किये जाने चाहिए |
तुलना
आज की सबसे बड़ी समस्या है तुलना हम जिन परिवारों में पले  बढ़े  है उनसे हमने यही सीख पाया है कि किसके यहाँ क्या है हमारे पास क्या नहीं है  यूं कहिये   उसकी कमीज मेंरी कमीज  सफ़ेद क्यों , हमारे समाज, परिवार ,और मित्र मंडली के पास क्या क्या सुविधाएं  कौन कितना पढ़ा है कौन कितना बड़ा है और हम पर क्या नहीं है इसका विचार हम केवल  और ,मित्रों में ही  अपितु    आदि हो जाते है , परिणाम  यह कि  हमारा तमाम जीवन  दुःख और  परिभाषाएं ही नहीं तय करपाता , हम अपने से अधिक किसी पर  देखने को ही तैयार नहीं हैं |
 basic management of life and your thought  जीवन का बुनियादी प्रबंधन और  आपके विचार
भाव शून्यता
पास के  घर से एक बड़े  शोर और रोने   आयी रोने के सामूहिक स्वर  बहुत तेज थे बड़ी चीत्कार थी  एक निरीह सी रोने की  रट बैठ सी गई थी बहुत गहरा दर्द था उसमे , लोगो की भीड़ इकट्ठी  लगी थी समाज परिवार भी इकठ्ठा होने लगा मालूम यह पड़ा  कि  गुप्ता जी के बड़े लड़के की एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई है , बड़ा  नेक और आई आई टी पास करके गूगल में सर्विस कररहा था बच्चा ,  मैंने भी खा बहुत बुरा हुआ ,  मन  भीड़  में  विचार करने लगा अपने बच्चे के साथ का ही तो था , बड़ा घमंड था बाप को होगया न सब खत्म , हमारे लड़के को  कभी सपोर्ट नहीं किया , बाप को बहुत घमंड था , बहुत उड़  रहा था साला , ये तो होना ही था अचानक अपने बच्चों के साथ यही हादसा न हो जाए   सोचकर झटका लगा  और ईश्वर की और देख कर सच्चे   बहुत बुरा हुआ ------ यही समाज यही परिवार यही है आपके वो अपने जिनकी आप अपने सपोर्ट के लिए परिकल्पना करते है शायद आप सब कुछ जानकर भी अनजान बने अंधों की   तो ठोकर तो लग्न लाजिमी है |

सकारात्मकता 
 मित्रो  आज यदि आपको अपने जीवन को सकारात्मक देकर स्वयं को सफलता देनी है तो सर्वप्रथम  अधिकार दायित्व कर्त्तव्य , संसाधन और अपनी कार्य करने की शक्ति का  आवश्य होना चाहिए , क्योकि यह ध्यान रखें यदि आपने अपनी शक्तियों और कमजोरियों का नहीं रखा तो  जीवन के मूल उद्देश्य  अपनी सफलता तक ही नहीं पहुँच पायेगा ,हम अपनी शक्तियों के साथ नितांत अकेले है

स्वयं का चिंतन
जीवनके अधिकाँश भाग व्यर्थ  गंवाते रहते है, हम  अपने लिए   कुछ करते ही  नहीं  है , हमारा चिंतन , कार्य और सोच सब दूसरों के इर्द  घूमती रहती है , नौकरी इसलिए करनी है की सबका पेट पलना है , पढ़ाई इसलिए करनी है कि नौकरी मिल जाए ,  शादी  करनी है क्योकि घरवाले अपने दायित्व निभा पाएं ,बच्चे इसलिए  कि  वे हमारी सेवा करते रहें भले ही हमने जीवन में अपने बड़ों  की सेवा की हो या न की हो ,यानि की हर , चीज हम वही  करने की  कररहे है जिससे हमे थोड़ा शारीरिक सुख मिल जाए, जबकि सुख का सम्बन्ध आत्मा से है जिसके  पर  कुछ है ही नहीं | जीवन के  बुनियादी प्रबंधन में इनका प्रयोग अवश्य करें


  • दूसरो को सम्मान देना सीखिये क्योकि आप समाज को जो भी दे रहे है आपको वही वापिसी में मय  ब्याज के मिलने वाला  है , इससे आपका सम्मान बढ़ेगा | 
  • गलतियों पर तुरंत प्रतिक्रिया न  दें थोड़ा प्रतीक्षा करें , और सामने वाले को यह अवश्य मालूम हो जाए कि आपने उसकी गलती जान ली है मगर उसे जलील न करें | 
  • आअप ईश्वर , अल्लाह , ईसा और आप जिसे भी पूरे ब्रह्माण्ड की परम सत्ता मानते हों स्वयं को उससे जुड़ा हुआ महसूस करें और हर कर्त्तव्य के समय सही गलत पर विचार अवश्य करें | 
  • दिन में एक समय ऐसा भी निकालें जिसमे यह विचार अवश्य करें मई अपने और अपनी अंतरात्मा के आदर्शों के निर्माण हेतु क्या कर रहा हूँ | 
  • जीवन का मूल सिद्धांत है कि  वह   केवल उन्हें इतिहास रूप में याद कर पाता  है जो अपने आदर्शों से समाज और राष्ट्र के लिए मिसाल बन सकें वैसे तो इतिहास असंख्य खजानों के स्वामियों को भी याद नहीं करने देता | 
  • दूसरों के दुःख में अवश्य शामिल हों उर यही विचार करें की ये हादसा यदि उनके घर में होता तो उन्हें कितना दुःख होता , भविष्य अनिश्चित है और प्रकृति से सबको दर कर रहना चाहिए | 
  • जिन विषय स्थितियों पर आपका वश  नहीं है उनके बारे में सकारात्मक रुख बनाये रखिये क्योंकि आपके साारात्मक रुख रखने से परिस्थितियों का सामना करने की ताकत आपको सहज मिल जायेगी | 
  • हर समस्या का कोई नियत हल अवश्य है वह केवल ढूढने से एवं  प्रयत्न से ही  आपको प्राप्त होगा ये  विश्वास अपने मन में बनाये रखिये | 
  • स्वयं के कार्यों और सोच पर कड़ी नजर बनाये रखिये और समयानुसार उसमे परिवर्तन करने का प्रयत्न करते रहिये क्योकि निरंतर प्रयत्न से जीवन सहज हो जाएगा | 
  • शरीर सुख आपमें थोड़े समय बाद वितृष्णा , चिड़चिड़ापन , अपश्चाताप और वैराग्य का भाव देगा जबकि मानसिक ऊचाइयों पर पहुँच कर आपको सत् चित आनंद की प्राप्ति होगी |

Sunday, August 2, 2015

Is this friendship क्या यह दोस्ती है (friendship day)

गांव से अभी नए शहरी स्कूल में प्रवेश लिया था गीता ने , पुरानी  संस्कृति मान्यताओं और तहजीब में पली बढ़ी थी हमारी छोटी गुड़िया , नए स्कूल का हर अंदाज नया ही था आपस की सहेलियों का गुट बनाकर बैठना ,मजाक उड़ाना और बात बात पर नीचे दिखाने की कोई  कोशिश यह सब नयी व्यवस्था का एक अंग बन कर रह गया था , पढ़ाई में कुछ ज्यादा ही तेज होने के कारण ये सब तो होना ही था उसके साथ , पढ़ाई , खेल , और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उसका तहलका ही रहता था , शिक्षकों का एक आदर्श पक्ष उसकी तरफ ही रहता था , और बिना किसी की चिंता किये उसका जीवन तेजी से भाग रहा था , और इसी तरह उसका चयन आई आई टी जैसे सस्थान में भी हो गया ,छात्रों के  गुट  उसके आस पास भी मंडराने लगे थे ,उनमे दो युवक देव और ओम भी थे सामान्य दोस्ती में देव ने उसे अपने घर की परिस्थिति बतायी , बहुत गरीबी , पिता का माता और पूरे घर के साथ बहुत गन्दा व्यवहार और कई बार उस व्यवहार से परेशान होकर खुदकशी की कोशिश भी की गई थी ,उसके द्वारा ,ओम ने भी यही कुछ बताया कि माँ की मृत्यु के बाद पिता ने शादी की और सौतेला बन गया बच्चा,  बड़ी पीड़ा दायक कहानी थी दोनों सह पाठियों की , कई दिन तक गीता उनको कैसे सहायता की जाए, सोचती रही  थी , यह सहानुभूति एक दिन दोस्ती में बदल गई थी ,गीता अच्छी किताबो के नोट्स तीन प्रतियों में बनाकर उन्हें भी सहायता देती थी ,और जब कोई समस्या आती थी तो पैसे , रुपयों से भी सहायता करती रहती थी , उसके सामने महाविद्यालय में वे लोग बहुत दीन हीन से बने रहते थे,   एक सप्ताह बाद फ्रेंडशिप डे था सारे कॉलेज में उसकी धूम मची थी , आधुनिक लड़के लड़कियां अपने अपने समूहों में इधर उधर बैठे मस्ती कररहे थे गीता अपनी टीचर के पास बैठी विभाग के काम कररही थी | 


यदा कदा  उसकी टीचर से बात होती ही रहती थी, टीचर ने उससे पूछा बेटा आपको कोई हेल्प चाहिए हो तो बताना , क्योकि आपसे मुझे बहुत उम्मीदें है , गीता ने कहा हाँ मेम, मेरे गाँव में और मेरे घर में कोई इतना पढ़ा ही नहीं है , पिता का सपना है कि मैंबहुत बड़े पद पर पहुँच कर अपने गाँव  घर और अपनों का सम्मान बढ़ाऊं, ----हाँ मेम आप यदि हेल्प ही करना चाहती हैं ,तो मेरे फ्रैंड्स की करदें ,बहुत गरीब और परिस्थिति के मारे है वो दोनों , टीचर ने कहा , कौन है वो, तो गीता ने दोनों की पूरी कहानी उनके सामने दोहरा दी , टीचर न जाने कहा खो गई थी एक गहरी सोच के बाद वो बोली  बेटा परसों आपका कोई प्रोग्राम  तो नहीं है, गीता ने कहा  नहीं ,टीचर बोली बेटा इस शहर में सबसे बड़ा होटल मेरे पति का ही है परसों फ्रेंडशिप डे है और मेरा कोई फ्रेंड है नहीं हाँ आजसे तुम मेरी अच्छी फ्रेंड हो, तो कल फ्रेंडशिप डे से एक दिन पहले अपन दोनो फेंडशिप डे जरूर मनाएंगे ,| फ्रेंडशिप डे से एक दिन पहले ही , कक्षा में सबने एक दूसरे को बधाइयां दी ,अपनी सारी  बचत इकट्ठी करके गीता ने दोनो फ्रैंड्स को शर्ट  उपहार में दी ,उन्होंने एक कलावा दिया ये माँ ने भेजा है तुम्हारे लिए और गीता उन फ्रैंड्स के बारे में और कैसे हेल्प करे  कल उनके लिए क्या करे ?यही सोचती रही |

 
शाम को टीचर का फ़ोन आया बेटा आप तैयार हो तो मैं  आपको ले लेती  हूँ गीता ने हाँ कहा , और गाड़ी में बैठ कर दोनो शहर के आलिशान होटल में पहुँच गए टीचर ने कहा बेटा  मुझे भीड़ भाड़ पसंद नहीं है ,अपन तीसरी मंजिल के एक ओपन परदेवाले केबिन में बैठेंगे ,जहाँ से होटल के डांस कार्यक्रम और बाहर के दृश्य देख सके , , और दोनो एक एक कॉफी लेकर बात करने लगे काफी देर बाद टीचर ने  कहा  बेटा क्या नाम बताया था आपने अपने फ्रैंड्स का गीता ने कहा ओम और देव ओके बेटा  वो दूर दूसरी मंजिल के उस सामने वाले केबिन में जो लड़के बैठे है उनमे है क्या वो लड़के गीता ने देखा ८-१० कॉलेज के लड़कों के साथ देव और ओम भी शराब पी रहे थे , गीता सन्न रह गई उसने जो रूप इन दोनों का देखा था वो धराशाही हो गया था , टीचर ने अचानक एक फ़ोन लगाया और गीता और टीचर जिस कमरे में बैठे थे उस रूम का सी सी टी वी फुटेज उसकी टी  वी  स्क्रीन पर चालू हो गया ,उन लड़कों की तस्वीरें और बातें सुनाई देने लगी , बेहद भद्दी शर्मनाक और नीचता से भरी , गीता की यह सुन कर रूह काँप गई  कि कल फ्रेंडशिप डे पर सारे लोग उसके साथ पार्टी मनाने वाले है , देव और ओम  शराब के गहरे नशे में बड़ बड़ा रहे थे गीता रानी कल बनेगी सबकी रानी -------- और बहुत कुछ बातों में यह भी मालूम हुआ कि कल इसी होटल में गीता और देव के नाम से कमरा बुक है --------न जाने गीता कब बेहोश हो गई थी जब उसे होश आया तो उसने खुदको टीचर के कमरे में पाया , उसे तेज बुखार था एक ५५ वर्ष का  संभ्रांत आदमी फ्रिज से बर्फ निकाल रहा था , टीचर गीता के माथे पर और वह आदमी उसके पैरों पर बर्फ की पट्टियां  रख रहे थे ,दोनों के चेहरें आंसुओं से भरे थे और होश में आई गीता को देख कर एक एक वो मुस्कुरा दिए ,डॉ ने कहा  नाव शी इज़ आउट ऑफ़ डेंजर ---वह आदमी डॉ को छोड़ने चला गया ,  टीचर  आंसुओं के साथ बर्फ की पट्टियां रखते हुए बोली बेटा ये तेरे अंकल है , उन्होंने और मैंने बहुत साल पहले इस फ्रेंडशिप डे  के चक्केर में अपनी तेरी उम्र की बेटी खोई है , ऐसे ही उसके फ्रेंडस ने उसे बुलाया था उसे बहुत खुश थी वोउस दिन , सबकुछ करना चाहती थी वह उन सबके लिए ,और बाद में शर्म के कारण उसने उसी दिन आत्म हत्या कर ली| गीता को सब समझ आ गया था उसे टीचर में भगवान दिखने लगे थे , |

 

आज फ्रेंडशिप डे था ,और आज सात वर्ष बाद कलेक्टर गीता का सम्मान समारोह था , गीता  अपने माता पिता के साथ बड़ी स्टेज पर बैठी थी प्रदेश के मुख्यमंत्री गीता की  भूरि भूरि प्रसंशा कर रहे थे , अनेक सस्थानों ने गीता को प्रथम आने पर एवम इस प्रदेश के लिए चयन के लिए बधाइयां दी अचानक गीता ने माइक हाथ में लेकर सबका धन्यवाद किया और अपने मित्र को पुकारा स्टेज पर अचानक गीता की टीचर और उनके पति वहां पहुंचे ,  गीता सारी मर्यादाएं छोड़कर टीचर से लिपट कर जोर जोर से रोने लगी शायद उसे जीवन ने सब कुछ दे दिया था । टीचर बेसुध सी बेतहाशा रोती  रही उनके पति गीता के सर पर हाथ फेरते रहे जैसे उसकी अपनी लड़की कह रही हो कि माँ  पापा मैंने जीवन जीत लिया है |

आज जब हम तथाकथित सभ्य समाज में खड़े है  वहां  जीवन भर के संसाधन बहुतायत में हमारे पास इकट्ठे हो गये है हम हर चीज का  मूल्य लगा कर उसे हांसिल करने की हर तरकीब जानते है , या उसका प्रयत्न करते रहते है ,जबकि यह हमें स्वयं नहीं मालूम होता कि इसके बाद क्या होगा,  बस हम केवल उपयोग उपयोग और फिर वहीँ खड़े होकर नए उपयोग की तैयारी में लग जाते है, शायद हम यह नहीं समझ पाये की संतोष शांति और आनंद की अनुभूति का सम्बन्ध किसीसे कुछ छीनने से नहीं , वरन त्याग की उस पराकाष्ठा से है जहाँ हम दूसरे की ख़ुशी के लिए किस स्तर तक त्याग कर सकते है ,आज जब हम सब संसाधनों के ढेर पर बैठ कर हर चीज खरीद  फरोख्त के लिहाज से परख रहे है, तो यह स्पष्ट समझ ले की हम जीवन की छोटी सी ख़ुशी भी हासिल नहीं कर सकते है | क्योकि संतुष्टि का सम्बन्ध उपयोग से न होकर आत्मा की गहराई से होता है |




फ्रेंड शिप  किसी के उपयोग और छीनने का कोई अलग मौका नहीं है , वरन शायद यह वह मौका है जिसे मन और अंतरात्मा से अनुभव किया जा सके , आज हम जब इन दिनों को मानाने की बात सोचते है तो बड़ी बड़ी गिफ्ट , बड़े पांचसितारा होटल या छोटे होटल , बड़ी बड़ी ऐशो आराम की चीजें और  वासना, उत्तेजक वातावरण  और हर चीज का प्रयोग बिना अच्छे बुरे का विचार किये , शायद आधुनिक पीढ़ी इसे ही  अलग अलग दिनों सा सेलिब्रेट करने का त्यौहार समझ बैठती है ,

मित्रो फ्रेंड शिप का आशय एक आईना है  जो आपको आपका समग्र आकलन दिखा सके , आपको अपनी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ आपका ही दर्शन करा सकें ,तथा समय समय पर आपमें सुधारके लिए वो सब कर सके ,जिससे आपका व्यक्तित्व कृतित्व एक ऊंचाइयों के साथ, अडिग खड़ा रह सके , हम बस केवल फ्रेंडशिप का आशय यह समझते है ,जैसे कोई व्यवसाइयों का दलाल किसी माल की बेतहाशा बढाई कररहा हो जबकि उसे मालूम हो की इस माल में बहुत से दोष विद्धमान है, परन्तु वह केवल यह सोचता है कि दोष है तो रहने दो ,मगर मुझे तो इसमें ही फायदा है कि मैं इसको सही गलत का ज्ञान ही नहीं होने दूँ  इसमे ही मेरा फायदा है , हा मित्रों यही सही है आपको गलत बता कर सही रस्ते पर लाने वाले के साथ आप चल ही नहीं पाये क्योकि आपकी अंतरात्मा अपने सामने अपना आंकलन करने का साहस ही नहीं रखती |


फ्रेंडशिप का आशय जानना है तो उस कृष्ण से जानिये जो अर्जुन को निकृष्ट , ,   नाकारा , मूर्ख आसक्त और भोग विषयों में पड़ा हुआ बताकर भी सद मार्ग पर लाने की चेष्टा कररहा है , वह हर शोषण करने वाले , और जिसने उसके साथ अन्याय किया उससे युद्धः  का संकल्प लेने और उसे समूल नष्ट करने की बात कररहे है , वे दूसरी और सुदामा को भयानक त्रासदी देकर भी सम्पूर्ण लोक की दौलत दे डालते है , और जो राम बनकर विभीषण और सुग्रीव को गलती और अच्छाइयों के साथ स्वीकार करते हुए उन लोगो के खिलाफ संघर्ष की बात करते है जो आपके विकास और शोषण के कारण रहे , मित्रो ध्यान रहे जो लोग आपके अतीत में आपके शोषण का कारण रहें या विकास में बाधक बने उनको अपने मन बुद्धि से समूल नष्ट करने में आपकी जीत है यदि आप एक सामान्य आदमी की तरह स्वयं को बचाकर अनेक झूठ सच और दोहरे व्यक्तित्व के साथ सबको लेकर चलने का प्रयत्न करेंगे तो आपकी सभ्यता संस्कृति और जीवन की शांति स्वयं नष्ट भ्रष्ट हो जावेगी |

जीवन के मूल्यों के साथ फ्रेंडशिप को इन बिन्दुओं के साथ समझने का प्रयत्न करें


  • जीवन में गुरु और मित्र बहुत सोच विचार के बाद बनाये जाने चाहिए क्योकि जीवन के हर सम्बन्ध से अधिक सीधा प्रभाव  मित्रता का ही देखा जाता है | 
  • जो मित्रता किणी कार्यों ,वासना , लोभ लालच और शारीरिक मानसिक जरूरतों से बंधी हो वह मित्रता कहने लायक भी नहीं है वह   तो आपको अपनी ही नजर में गिराने का साधन बन बैठेगी | 
  • बुरे व्यक्ति के साथ मित्रता का ज्ञान होते ही आपको मित्रता उस प्रकार ख़त्म कार्डेनि चाहिए जैसे बच्चे के लटके हुए फोड़े को माँ कसाई की भांति खड़े होकर कटवा डालती है | 
  • बुरे , और ख़राब व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह इतना तेज होता है की वह आपके व्यक्तित्व को भी खराब कर ही देगा ,क्योकि आपकितने भी बड़े विशाल और ऊंचे क्यों न हो उसका अपयश आपको अपनी गिरफ्त में ले ही लेगा | 
  • मित्रता का उपयोग करने वाले स्वयं एक दिन अपने जीवन को नष्ट कर डालते है कंस ने कृष्ण को ख़त्म करने हेतु जितने मित्रों का प्रयोग किया वे कंस के साथ ही ख़त्म हुए | 
  • जीवन  के पथ पर कोई रास्ता एक जैसा नहीं मिल सकता आगे आगे और आगे जाने में जो लोग पुराने अतीत के रास्तों में ही भटकते रहना चाहते है वे जीवन भर अपना गंतव्य प्राप्त नहीं करपाते | 
  • जीवन में विचारों और अपनी मानसिकता में किसी भी ऋणात्मकता   को स्वीकार न करे जो व्यक्ति , समय घटना आपको नकारात्मकता दे उसे उसी तरह भूल जाए जैसे मृतात्मा को आदमी दुसरे पल भूल जाता है | 
  • आपके जीवन का उद्देश्य शादी ,प्रेम , ऐश , और कैसे भी केवल अपना सुख खोजने का है तो आप ऐसा ही जीवन जी सकते है जिसमे आप एक भीड़ की शक्ल में अपनी छोटी छोटी चीजों के लिए संघर्ष करते जीवन से बिना उद्देश्य की पूर्ती के चले जाएंगे । 
  • कृष्ण के जीवन से केवल यही सीखें  कि  गोपियों के अनन्य प्रेम में वो बंधे अवश्य रहे परन्तु जीवन में लौटकर कभी नहीं गए , गोकुल , मथुरा दोस्त सब जहाँ बने वहीँ रह गए क्योकि  जीवन के सर्व श्रेष्ठ भाव को वे कृष्ण ही दर्शा सकते थे ह, और यही मित्रता की परिभाषा भी थी | 
  • निंदक नियरे रखिये ------ मित्र ऐसा हो जो आपको आईने की तरह आपके व्यक्तित्व को बताता रहे यदि ऐसा हुआ तो आपका व्यक्तित्व स्वयं परिष्कृत हो जाएगा जरूरत यह है की आप स्वयं की आलोचनाएँ सहन कर सकें ।




Sunday, July 26, 2015

Why are you worried for Likes and comments लाइक्स और टिप्पणियों के लिए आप क्यों चिंतित हों

Why are you worried for Likes and comments
लाइक्स और टिप्पणियों  के लिए आप क्यों चिंतित हों


देवानी आंध्रा के एक प्रतिष्ठित मंदिर के प्रमुख पुजारी की संतान थी धर्म , कर्म , आचरण , और सुबह शाम सत्य और आदर्शों में बंधें जीवन का सशक्त चलचित्र था उसका जीवन , भगवान बालाजी का श्रृंगार सेवा और हर व्यक्ति से उसके  मधुर सम्बन्ध ने उसे पूरे क्षेत्र में ख्याति लब्ध बना दिया था , बहुत दूर दूर तक लोग यही कहते थे संस्कृति सभ्यता,और संस्कार इन लोगो से सीखने चाहिए , जीवन का इससे  सुन्दर सांकल और चित्र हो ही क्या सकता था |
१५ वर्ष की उम्र पूरी करने के जश्न में देवानी की बड़ी बहिन जो अमेरिका में रहती थी ,ने उसे एक लेपटोप दिया और
ढेर  सारी बधाइयां , उसने बताया विश्व कहाँ से  कहां  पहुँच गया है सब तरफ केवल विकास , बाजारों की चक चोंध और असंख्यों उपयोग के सामान है , और हम अभी भी वहीँ पड़े अपने आप को केवल मंदिर और रूढ़िवादी जंजीरों से बधें बैठे है, कुछ दिन साथ रहते रहते बड़ी बहिन ने अनेकों साइट्स से उसे जोड़ दिया  आरम्भ में वह जब कोई मंत्र या धर्म के आदर्शों की बात शोशल साइड्स पर डालती थी तो उसे एक -दो  यह एक भी लाइक्स मिलता ही नहीं था भूले बिसरे कोई एक आध लाइक्स मिलता भी था तो बहुत दिनों में --- दोस्तों के हजारों लाइक्स , और बड़ी बहिन की बातों से मन छुब्ध होने लगा , सपनों में भी उसे अपनी हीनता का बोध होने लगा --- फिर धीरे धीरे मंत्र के साथउसका सेक्सी सजा धजा उसका स्वरुप दिखाई देने लगा और समय बीता जीवन ने स्वयं को और ढीला छोड़ दिया धीरे धीरे भद्दे भद्दे कमेंट्स के साथ देवानी दूसरे किसी नाम  से उस शोशल साइट्स की सबसे बदनाम मेंबर थी ,  इस बीच कई बार लोगो ने उसे बुरी तरह ठग डाला था ,मन में गहन पीड़ा थी अपने पारिवारिक मंदिर में भगवान के सामने बैठी देवानी अलग अलग तरह की कसमें और संकल्प  करती  दिखी और अचानक वह भगवान का वही गीत गा उठी जिसे वह रूढ़िवादी सोच कर ६ माह पहले छोड़ चुकी थी ,उसे लगने लगा था कि  जीवन लाइक्स से अधिक अपनी अंतरात्मा  के लाइक्स की प्रतीक्षा करता है , जबकि  अधिक प्रसंशा की आकांक्षा में लोग  हममें अपनी वासनाओं की आपूर्ति में हमें अपनी अंतरात्मा की गहराइयों से दूर एक बनावटी संसार में लेजाता है जहाँ हम केवल भोग्य का सामन भर होते है | देवानी संकल्प के बाद  रोते  रोते  अचानक मुस्कुराने लगी शायद उसे उसकी अंतरात्मा का सत्य समझा आ गया था | और उसने सही दिशा में जाने का संकल्प कर डाला था |


जीवन  में  आकांक्षाएं मनुष्य को गुलाम बनाये रखती है और सबसे अधिक महत्वपूर्ण तीन आकांक्षाएं  प्रबल मानी गई है  उसमें प्रथम धन की कामना , द्वितीय  पुत्र की कामना और तीसरी  यश की कामना  इनमे यश की कामना सतत और अधिक प्रबल है जिसमें आदमी स्वयं को बड़ा बताने की होड़ में किसी भी स्तर पर जा सकता है वहां स्वयं को सिद्ध करने के लिए वह हर बुराई और स्वार्थ को अपना सकता है , यही है जीवन में यशकी कामना की प्रबलता है , जीवन बार बार स्वयं की कमियों  से परेशान स्वयं को स्थापित करने की होड़ में लगा  रहता है , और स्वयं के इस स्थापत्य में उसे केवल यही फिक्र बनी रहती है की वह सबसे श्रेष्ठ साबित हो सके |


शरीर आत्मा और संसार जीवन एक सामंजस्य ही तो है सबका यहाँ  सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह कि  मन शरीर और संसार कैसे भी स्वयं को सबसे ऊपर खड़ा देखना चाहता है वह किसी भी स्थिति में स्वयं को हर्ता नहीं देखना चाहता जबकि आत्मा उसके हर कर्त्तव्य पर अपना मत अवश्य देती रहती है ,एक नौकर व्यक्ति ने अपने स्वामी से मरते समय उसकी सारी दौलत अपने नाम करवा ली  और  मरते हुए स्वामी को इस लिए मार दिया की वह सारी घटना अपने पुत्रों को न बतादे , पुत्रों ने इससबको अपनी अकर्मण्यता और उसकी सेवा का फल समझा और भूल गए मगर इस नौकर को जब भी समाज से प्रसंशा मिली इसे अपने हत्यारा होनेका और  बेईमानी से धन हड़पने का चल चित्र सैदेव दिखाई देता रहा, अंत में मरे हुए सेठ का ध्यान उसे पागलपन की उस सीमा पर ले गया जहाँ उसे पागलखाने में  बंद करना पड़ा , यदा कदा वह चिल्लाता रहता था , मैं  अमीर हूँ साले  को मार दिया , फिर जोर जोर से रोता था हत्यारा हूँ मैं मैंने अपनेको पालने वाले को मार दिया , तेरे को भी मार दूंगा , ------- दोस्तों इस आदमी के वैभव ,और यश कमाने की चाहत  में किये गए कर्म को इसकी अंतरात्मा ने अस्वीकार  उसे आईना दिखा दिया था , यही जीवन का अकाट्य सत्य है जो यह बताता है जीवन का जीवन का मायने लाइक्स कमाना  नहीं वरन  अपनी अंतरात्मा के लाइक्स को जीतते रहने में है |


हम सदैव यही उधेड़ बुन में लगे रहते है  कि कैसे भी स्वयं अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने मैं  लगे रहें ,जबकि  मन हर जीत के बाद  स्वयं को ठगा महसूस करते हुए आगे की चिंता में व्यस्त हो जाता है हर जीत अपना सुख छोड़कर स्वयं थोड़े ही समय बाद नए सुख की कामना करने लगता है , और और की मानसिकता उसे उस बिंदु पर पहुंचा देती है जहाँ सुख होते ही नहीं है , आप ही बताइये जिस भोजन में तृप्ति का गन ही ख़त्म हो जाए उस भोजन की उपयोगिता ही क्या हो सकती है , मन बुद्धि और आत्मा की अतृप्तता सम्पूर्ण शारीरिक और मानसिक अपूर्णता सिद्ध करने लगती है और अंतरात्मा हर बनावटी और असत्य को झुठलाते हुए बार बार ऐसे कर्म की मांग करने लगती  है जो वास्तव में आदर्श , सत्य और श्रेष्ठता की परिभाषा बन सके |


लाइक्स या आपकी प्रसंशा निश्चित तौर  पर  मन को अच्छे लगते है  परन्तु उनकी सीमा क्या हो , यह बात हमें अवश्य याद रखनी चाहिए , मित्रों हम अधिकाँश शोशल साइड्स पर जहां  स्वयं को श्रेष्ठ देखना चाहते है एक पल उनकी वास्तविकताएं अवश्य देखें , पड़ोस की एक अधेड़ आंटी ने १५ वर्ष के एक लड़के से ऐसी दोस्ती की कि उस किशोर का सारा चैन छीन लिया और एक दिन उसने आत्महत्या कर ली,एक अन्य आंटी ने पड़ोस की एक  बच्ची से ऐसी ही साइड्स पर दोस्ती की एवं  लम्बे समय तक ब्लैक मेल करती रहीं , मित्रों इनमे अधिकांश साइड्स वासनाओं की पूर्ती का एकमात्र  केंद्र बन गए है वे केवल स्वार्थ वासनाओं और शारीरिक मानसिक शोषण के लिए काम उम्र के बच्चों को गुमराह कररहे है , शायद समय आगया है जहां  बड़ी संख्या में लाइक्स इकट्ठे करने की बजाय आप स्वयं  अपनी अंतरात्मा का  लाइक  पा सकें |


लाइक्स या आपकी प्रसंशा निश्चित तौर  पर  मन को अच्छे लगते है  परन्तु उनकी सीमा क्या हो , यह बात हमें अवश्य याद रखनी चाहिए , मित्रों हम अधिकाँश शोशल साइड्स पर जहां  स्वयं को श्रेष्ठ देखना चाहते है एक पल उनकी वास्तविकताएं अवश्य देखें , पड़ोस की एक अधेड़ आंटी ने १५ वर्ष के एक लड़के से ऐसी दोस्ती की कि उस किशोर का सारा चैन छीन लिया और एक दिन उसने आत्महत्या कर ली,एक अन्य आंटी ने पड़ोस की एक  बच्ची से ऐसी ही साइड्स पर दोस्ती की एवं  लम्बे समय तक ब्लैक मेल करती रहीं , मित्रों इनमे अधिकांश साइड्स वासनाओं की पूर्ती का एकमात्र  केंद्र बन गए है वे केवल स्वार्थ वासनाओं और शारीरिक मानसिक शोषण के लिए काम उम्र के बच्चों को गुमराह कररहे है , शायद समय आगया है जहां  बड़ी संख्या में लाइक्स इकट्ठे करने की बजाय आप स्वयं  अपनी अंतरात्मा का  लाइक  पा सकें |


 लाइक्स और यश की कामना के समय निम्न को भी ध्यान रखें

  • अपनी सीमाएं बनाएं और कड़ाई से अपने नियमों का पालन करें क्योकि जीवन में अपने आदर्श सीमाएं ही आपको उन्नति के शिखर पर ले जा सकती हैं | 
  • दुनियां में हर इंसान बिना किसी कीमत के आपको कुछ नहीं दे सकता और जो लोग बिना किसी सशक्त कारण  के आपको लाइक्स भेज रहे है उनसे सावधान रहने की आवश्यकता है | 
  • जीवन में सांसारिक लाइक्स  की तुलना में अपनी अंतरात्मा के लाइक्स की फिक्र करना सीखें वह नितांत सत्य और आपका वास्तविक विकास का मान दंड भी बना पाएगी | 
  • जब तक आप दूसरों को समझ ना पाएं तबतक उनसे प्रसंशा और आलोचना की अपेक्षा भी मत करें क्योकि उनकी आलोचनाऔर प्रसंशा आपके लिए घातक ही होगी 
  • जीवन का हर कदम इस बात पर निर्भर है की आप जीवन से चाहते क्या  है  और यदि जीवन शार्ट कट चाहता है तो आप निश्चित समझे की आप धोखा खाने जा रहा है | 
  • हर इंसान अपने गुण  और अवगुणों के साथ  जीवन गुजार रहा है और उसमें अपनी अपनी गुणवत्ता है यह ध्यान रहे  कि आप अपने गुणों का विस्तार और कमियों को ख़त्म करें | 
  • आलोचनाओं और प्रसंशा में आप स्वयं को न तो अधिक प्रसन्न और अहंकार में देखें और न ही आलोचनाओं में स्वयं को अत्याधिक्  दुखी करें यह सब विधाता की इच्छा है और उसमे स्वयं को स्थिर रखें | 
  • जीवन के हर पथ पर अपने गुरु पिता माता से परामर्श लेते रहें क्योकि समय समय पर आपको परामर्श की आवश्यकता होगी और ये रिश्ते आपको नया रास्ता देते रहेगा | 
  • धर्म और आदर्शों को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाये रहें क्योकि यह आपको नए सिरे से निर्माण करने की शक्ति प्रदान कर सकता है | 
  • जीवन के हर पल को अपने हिसाब से मूल्यांकन चाहिए होता है आप स्वयं आप अपना मूल्यांकन करते रहें और अपने को दोषों पर पैनी नजर बनाये रखें |




Sunday, July 5, 2015

अपने भविष्य और अतीत के बारे में परेशान न हों Do not worry about your future and the past


अपने भविष्य और अतीत के बारे में परेशान न हों 
Do not worry about your future and the past


सुचित्र सेन एक महा प्रतापी और अजेय सम्राट था राज्यों की सीमाये बढ़ती जा रहीं थी और सम्पूर्ण राज्य में बहुत अधिक धन संपत्ति वैभव होने के बाद भी शान्ति सुख और अतृप्तता का माहौल था | राजा को आक्रमण करना राज्यों पर कब्ज़ा करना और उनके खजाने को हड़पना अच्छे से आता था | एक बार एक पहुंचे हुए योगी  राजा के यहाँ आये राजा ने उनकी खूब सेवा की और उनसे पूछा महाराज आप मेरे राज्य में सुख शांति वैभव धन सबकी वृद्धि का आशीर्वाद दें , साधु ने ध्यान लगा कर देखा और कहा राजा मैंने सब देख लिया है मैं  तेरी सेवा से प्रसन्न हूँ जाओ आपके राज्य के बाहर एक साधु की कुटिया है वहां जाकर उनका आशीर्वाद लें  और उनकेउनके निर्देशों का पालन करें आपका कल्याण होगा , राजा ने तुरंत बड़ी भीड़ और असंख्यों उपहार लिए और पूरे वैभव के साथ साधु की कुटिया में पहुंचा नंग धडंग साधु राजा को देख कर हंसा ,उसने राजा से कहा इस भीड़ को कहो  कि  वो दूर रहे ,और जहाँ तक उपहारों की बात है मैंने सुबह एक बुढ़िया माँ का दिया खाना खा लिया है और अब मुझे किसी चीज की जरूरत है नहीं , शाम को मालिक फिर देगा इस बहाने मैं  रोज उसकी कृपा को प्रत्यक्ष अनुभव करता हूँ ,साधु बोला राजा आज से ३ वर्ष पहले युद्ध के मैदान में एक भाला तुम्हारी गर्दन से छूकर निकल गया था , जानते हो यदि उस दिन तुम मर जाते तो अगले पल ये सारा साम्राज्य और खजाना दूसरे का हो जाता |

पुत्र जीवन में संपत्ति ,सम्बन्ध और सुख  सबसे गतिशील वस्तुएं है  जबकि हम जब भी इन्हें हम स्थिर, गुलाम और अपने खजाने की जेल में बंद करना चाहते है ,वहीँ से यह हमारे मन मष्तिष्क में अपनी ऋणात्मकता के साथ पैदा होने लगते  है , फिर तो जीवन अपनी उपलब्धियों से ही परेशान होकर और और और के फेर में उलझने लगता है , अतीत और वर्तमान केवल अफ़सोस का आश्रय बन कर रह जाता है , प्राप्तियों का सुख ख़त्म और व्यर्थ हो जाता है , और जीवन छीना झपटी में अपने मूल उद्देश्य खो देता है , पुत्र दुःख  देकर सुख की खेती कैसे कर सकते हो आप , अंत में साधू ने कहा  पुत्र  मैं  तुम्हें तुम्हारे भविष्य की एक झलक दिखाता हूँ तुम्हे उत्तर मिल जाएगा आपके प्रश्न का------- राजा ने देखा हमेशा की तरह उसने अपने दोनों पुत्रों से एक राजा से युद्ध करने भेजा , और उनके ही राज्य के गुप्तचर ने राजा के दोनों पुत्रों का वध करवा दिया , राजा ने स्वयं को विलाप करते देखा ,वह रो रहा  था ------मैंने जो अकूत संपत्ति कई पीढ़ियों के लिए इकट्ठी की है अब क्या करू मैउसका , उसने देखा  कि  फिर वही साधु आया उसने पुत्रो को जीवित किया , राजा ने कहा कि  आप मांग लो जा माँगना है ,साधु बोला राजन कल भी मुझे कुछ नहीं चाहिए था आज भी नहीं चाहिए | राजा समझ गया था कि जीवन नश्वर है और जो संपत्ति वैभव और जीत का  मोह है वह आज मेरा कल दूसरे का है , पसीने में भीगा  घबराया राजा स्वप्न से  जागा, वह  अपने  सारे उत्तर पा चुका था ,अपने पुत्रों को नेकी और परमार्थ का वचन लेकर  वह साधु के साथ जंगल की और चल दिया |

जीवन में हम सब यह जान ही नहीं पाते कि  हम किन स्थितियों के मोह में बार बार परेशान होकर अपने आप को परेशान  करते रहते है , जो है नहीं उसे अपनी सोच से खड़ा करलेते है , और जो नहीं है उसे भी खीच कर हम अपने आप  पर लाद  लेते है और पूरे व्यक्तित्व पर निराशा ,  आलस्य और अस्थिरता का अनुभव होने लगता है  ,पूरा जीवन सबसे कठिन , और  स्वयं को निरीह समझने लगता है परिणाम जीवन  की सम्पूर्णता ही व्यर्थ साबित होने लगती है
हम संबंधों  - धन - वैभव - ऐश के  फेर में अपने ही सत्य से काफी दूर चले जाते है और ये परिभाषाएं हमे हमारा ही मुँह चिढ़ाने वाली लगने लगती है |


हर बार हम  जब अपने अतीत  में झांकने का प्रयत्न करते है तो एक गहरी वेदना हमें घेर लेती है , हमपर क्या नहीं था और हमने कैसा बुरा समय निकाला है ,इसका बड़ा दुःख हमे परेशान करने लगता है दूसरी और हमपर बहुत संसाधन थे पर आज हम सारे संसाधनों  के अभाव में है , कल हमसे सब कामके वक्त अपने मतलब सिद्ध करने खड़े थे आज कोई नहीं है , वो लोग जो हमे अथाह प्यार करने का नाटक करते थे  वो आज हमे तिरस्कृत कररहे है , और जिस यौवन , धन वैभव और अपनत्व पर हम कभी गर्व कररहे थे  वो हमारा रहा ही नहीं फिर तो एक बड़ी निराशा होना स्वाभाविक ही था न , उम्र , समय ,शक्ति ,यौवन और हर चीज संसार से लूट कर अपने कब्जे में करने वाली मानसिकता धीरे धीरे शिथिल होने लगी थी -- और अतीत शिकायत निराशा और अफ़सोस सा बनने लगा था | यह सब एक जीवन की प्रक्रिया थी मगर क्या यह सब ठीक था इसी पुनर्चिन्तन की आवश्यकता थी जीवन के इस पल को |

भविष्य की संभावनाएं है जीवन हमें अधिकांशतः अपने अतीत के किये कार्य और  अपने अनभिज्ञ भविष्य की सम्भावनाये डराती ही रहती है ,कल यह न हो जाए कल कहीं मुझसे मेरे स्वामित्व के सम्बन्ध और  प्राप्त वस्तुएं  न छीन ली जाएँ , भविष्य मुझसे मेरा प्रेम अपनत्व और संसाधनो की परेशानी बनकर खड़ा न होजाये , मुझे सामाजिक पारिवारिक और राष्ट्रिय आधारों पर तिरस्कृत न करदिया जाए , मेरे अपने वास्तव में मेरे ही है क्या कहीं वे मुझे मूर्ख तो नहीं बना रहें है , हम  जिन उद्देश्यों ,  और कार्यों के लिए प्रयत्न कररहा हूँ कहीं उसमे असफल न हो जाऊं ,और हम  जिन वस्तुओं व्यक्तियों और अपनत्व के सहारे को अपने जीवन में स्थापित करना चाहते है कहीं वे हमें ही तिरस्कृत न करदें ,

आशय यह हुआ की जो निकल गया वह उस घाव के निशान  की तरह हमे उस दुःख की अनुभूति में खड़ा  कर देता है जैसे हमे उस घटना के समय कष्ट हुआ था ,संबंधों की सोच में कई बार हम  अपने आपको उसी अतीत की बड़ी याताना  में स्वयं को खड़ा पाते है ,उतना ही दर्द महसूस करता है मन मष्तिष्क, और कई बार या अतीत  हमारी ही नजर में हमारी हत्या करता रहता है भविष्य में हर आने वाले सम्बन्ध प्रश्न वाचक बने खड़े रहते है और वर्तमान का विश्वास  , धैर्य और सत्य अपनी तुलनात्मक दृष्टी से खुद ही परेशान हो जाता है , अब ऐसे समय में  हर स्थिति को परखना क्या गलत है , जीवन जैसे अनुभावों से निकला है वह भविष्य की वैसी ही कल्पना करता है तो कहाँ गलत है ,मित्रों यही से कही जीवन को अपनी धनात्मक सोच का भवन बनाना होगा, जो आपको अपने अंतिम विकास बिंदु तक ले जाने में सक्षम है |


एक दार्शनिक ने लिखा  आप  ईश्वर की अनमोल कृति है , आप गुणों का भण्डार है , और आपकी चिंतन शीलता आपको अद्वितीय सिद्ध कर सकती है आप स्वयं के  के सामने एक बहुत मोटी और ऊंची दीवार बना डालिये ऐसी ही दीवार आप अपने पीछे भी बना डालिये और अब आप स्वयं को वर्तमान में खड़ा पाएंगे , बस यही से आपकी आगामी यात्रा आरम्भ होनी है जहां अतीत के कष्टों का मलाल और भविष्य की अनभिज्ञता का डर नहीं होगा ,जीवन को अपने महान उद्देश्य के लिए संकल्पित मानते हुए जिसने भी  वर्तमानकी क्रियान्वयता को मूर्त स्वरुप प्रदान किया वह स्वयं काल जयी सिद्ध हुआ है ,


जिस छण  वर्तमान अतीत  और भविष्य के स्वप्नों से मुक्त होकर स्वयं की साधना करने लगता है आप सही मानलें कि वहीँ से दुनिया की सारी सफलताएं उसके पीछे दौड़ने लगती है , अतीत का दुःख और भविष्य की कोरी कल्पनायें अपना अस्तित्व खोने लगती है , वैचारिकता में निराशा और अकर्मण्यता आती ही नहीं है , व्यक्ति और अपनत्व अपनी परिभाषाएं नहीं बना पाते मन उन्हें छोड़कर अपने वास्तविक उद्देश्यकी क्रियान्वयनता में लग जाता है और व्यक्ति स्वयं को कालजयी सिद्ध  कर देता है ,ध्यान  रहे कि  जीवन का साश्वत सत्य यहीं है कि जीवन यौवन , शक्ति ,ऐश , और भौतिक सुख सुविधाये  तथा सम्बन्ध समय के साथ अपना अर्थ और  सार्थकता बदल लेंगे , केवल सकारात्मक लक्ष्य  के साथ आपका वर्त्तमान क्रियान्वयन आपको श्रेष्ठ सिद्ध कर सकता है आवश्यकता इस बात की है कि उसका सही प्रयोग निश्चितता के साथ किया जावे जहाँ वर्तमान के लक्ष्य के अलावा कुछ न हो |

निम्न का प्रयोग कर कर अवश्य देखें


  • सकारात्मक सोच के साथ जीवन को जीने का प्रयत्न करें , यदि आप आदर्शों पर चलने वाले हुए तो आपको कई समस्याओं का सामना करते हुए जीत हासिल होगी क्योकि ,जीवनका सत्य जानने वाला ही संघर्ष कर पाता  है|
  • अतीत और भविष्य पर  मोटी दीवारें बनाई जाए और उनमे झांकने का प्रयत्न न करें आपको सदैव यह ज्ञात रहे आपकी वर्तमान की क्रियान्वयनता का सम्बन्ध ही आपको सफलतम सिद्ध करेगा | 
  • संबंधों का एक नियत  क्षेत्र  है और उन्हें उतना ही महत्व दिया जाना चाहिए , जीवन कर्त्तव्य के मार्ग में संबंधों के कर्त्तव्य निभाने आने चाहिए उन्हें कमजोरी नहीं बनाऐ | 
  • संसाधन , बल , धन , और सम्बन्ध और उनका प्रयोग समय के साथ अर्थ खो देता है  ,अतः आपको यह अवश्य ध्यान रहे की जो आपके अस्तित्व के साथ नहीं है वो आपका नहीं है और उससे एक गैप अवश्य बनाये रखें | 
  • भविष्य की अनभिज्ञता आपको भय क्रान्त न कर पाये और अतीत के दुःख आपको अधिक परेशान न कर सकें आपको अपने कर्त्तव्य और शक्ति से इन्हें जीतना है | 
  • छीनने और दूसरों को दुःख देने  के स्वभाव से दर्द और पश्चताप ही पैदा हो सकता है हम जीवन में जिसे जीत समझते है वह जीत केवल वर्तमान को क्रियान्वयन और  सबको  परमार्थ दे सके तो श्रेष्ठ है | 
  • गतिशील दिखने वाली हर वास्तु और व्यक्ति समय के साथ अपनी आस्थाएं , प्रेम और अपने स्वार्थ बदल लेगा ऐसे में जो साश्वत सत्य है उसका पालन करते हुए वर्त्तमान  के कर्म को सार्थकता दें | 
  • रिश्ते भोग और संसाधन आज किसी के साथ है कल किसी और के होंगे परसों किसी और के पास होगी तो जो भी साश्वत और अमर गुण  धर्म हो  उनको प्राप्त करने की चेष्टा की जानी चाहिए | 
  • परमार्थ और सत्य दो मार्ग है जीवन को जीतने के इनका अनुशरण करने में अपनी आत्मा की आवाज को सदैव अपने सामने रखकर अपना आंकलन करते  रहें | 
  • जीवन को ऐसा आकार दें की आप दूसरे की आलोचनाओं से बचें रहें क्योकि आपालोचना के लिए आपकोउसका ध्यान करना होगा और उससे आपको भी नकारात्मकता घेर लेगी,अतः आप  किसी की आलोचना न करें |



Sunday, June 14, 2015

झूठी प्रसंशा पतन का सबसे बड़ा कारण है False praise is cause of downfall

  झूठी प्रसंशा पतन का सबसे बड़ा कारण है 
  False praise is  cause of downfall 

एक शिष्य  समूह ने अपने गुरु से पूछ गुरुदेव  हमारे देश का राजा बहुत ही घमंडी है उसे चाटुकारिता बहुत प्रिय है, वह हमेशा अपने चाटुकारों से घिरा अपने राज्य में अजीबोगरीब हरकतें करता रहता है, कभी वह किसी को बे वजह दंड दे देगा कभी वह बिना किसी कारण के दूसरों से अपनी तुलना करने लगेगा ,और उसके द्द्वारा कभी भी किसी को भी फांसी चढ़ा दिया जाता है क्योकि वह राजा की प्रसंशा नहीं कर पाया था , गुरुने पूछा वहां कोई धर्म पारायण ग्यानी  पुरोहित या श्रेष्ठ मनुष्य नहीं है क्या, शिष्यों ने बताया हाँ महाराज वहां के राज पुरोहित बहुत ग्यानी और विद्वान है ,शास्त्रार्थ  में उनसे कोई नहीं जीत पाता , मगर उन्हें भी अपनी योग्यता पर बहुत घमंड है, और दोनों ही अपने अपने कार्यों में व्यस्त रहते है ,पुरोहित जी भी समय समय पर लोगो को शाश्त्रार्थ में हरा कर सार्वजानिक रूप से सजा देते है , गुरु गंभीरता से बहुत देर सुनते रहे अचानक वे अपने शिष्यों से बोले पुत्र जाओ आप दो समूहों में बंट कर राजा और राज पुरोहित की झूठी प्रसंशा करो ,इस समय आपका काम बिना सोचे प्रसंशा करना ही रहे बस ,शिष्यों ने गुरु को प्रणाम किया और अपने गंतव्यों की और चलेगये राजा से शिष्यों ने कहा महाराज आपके यश बल और ज्ञान की चर्चा सर्वत्र हो रही है आपका रूप , यौवन , ज्ञान और बल की पूरी दुनियां दीवानी है , पड़ौसी राज्य की  जनता भी आपके गुणों की तारीफ़ करने से नहीं थकती और आप बाहुबल धन बल और शौर्य में सबसे श्रेष्ठ है , बड़े शिष्य ने बोल रहे शिष्य की ओर विस्मय से देखा, की पड़ौसी राजा बहुत बलशाली और बहुत बड़े राज्य का मालिक है ,उसे कोई नहीं जीत सका और उसकी धर्म परायणता के किस्से जगह जगह सुनाये जाते है ,वो इससे सब अर्थो में श्रेष्ठ है ,पर झूठी प्रसंशा की बात सुन कर वो चुप रहा ,दूसरे शिष्य ने राज पुरोहित को यही कहा, महाराज आपके ज्ञान , तपश्चर्या और त्याग के किस्से आज राज्य और राज्य से बहार भी सुनाये जाते है लोग आपके ज्ञान का लोहा मानते है ,और राजा भी आपके ज्ञान के कारण ही शांति से राज्य कररहे है , भावावेश में राज पुरोहित राजा को बुरा भला कहने लगा , राजा को तुरंत खबर हुई उसने राज पुरोहित को बुलाया दोनों में विवाद होने लगा राजा खुद को बगड़ा बताने लगा पुरोहित अपने को , राजा बोला सब कह रहे है मैं  सबसे ग्यानी हूँ ,बलशाली हूँ ,पड़ौसी राज्य वाले भी कहीं नहीं लगते मेरे सामने , पुरोहित ने कहा पड़ोसी राज्य बहुत शक्तिशाली है , राजा ने तुरंत अपनी बात की अवहेलना के लिए पुरोहित को फांसी पर चढ़ावा दिया, और पड़ोसी राज्य पर हमला कर दिया पड़ौसी राजा को राजा की मूर्खता पर पहले से ही संदेह था उसने पलक झपकते ही युद्ध जीत लिया ,और अपना धर्म पारायण राज्यउस राजा के साथ मिला कर और बढ़ा लिया , दुष्ट राजा इस युद्ध में मारा  गया |
  

मूर्ख और अहंकार  से ग्रस्त महा ग्यानी की दशा एक जैसी ही होती है महा ग्यानी को ज्ञान का अतिरेक का अहंकार एक कीटाणुं की तरह उसके सम्पूर्ण ज्ञान का छरण करने लगता है , उनसे जीतने का केवल एक ही  शस्त्र है वह है उनकी झूठी प्रसंशा क्योकि मूर्ख की अति प्रसंशा उसे और अधिक मूर्खता करने के लिए बाध्य करती  है, और एक दिन उसकी बढ़ती हुई मूर्खता  उसके पतन का कारण बनजाती है ,दूसरी और महाज्ञानी यदि अहंकार के कीटाणु से ग्रस्त है तो वह भी झूठी प्रसंशा के कारण और अधिक स्वछन्द और स्वार्थी हो जाता है वह ज्ञान और धर्म का प्रयोग अपने हिसाब से करने लगता है , और आदर्शों और सत्य की परिभाषाये भी अपने हिसाब से बना डालता है ,परिणाम यह कि उसका यह भाव उसे ही नष्ट कर डालता है जबकि वह स्वयं को ग्यानी और सर्वश्रेष्ठ समझता रहता है ,परन्तु  अहंकार उसे कब भ्रष्ट , असत्य और अनादर्शों के तराजू में रख कर  असफल सिद्ध कर देता है यह मालूम ही नहीं पड़ता |


आधुनिक युग में हम सब आदी  होगये है अपनी प्रसंशा सुनने के, हमारा हर कार्य  प्रसंशा के लिए होने लगा है , हम धन ,बल, रूप, रंग ,सौंदर्य और सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए इतने लालायित है कि उसके लिए किसी भी हद  पर जाने को तैयार दिखते है , जबकि हम यह जानते है  इन सब चीजों में सर्वश्रेष्ठ साबित होने के लिए हमें दूसरों की तुलना में खड़ा होना होगा और जहाँ से भी कोई तुलना आरम्भ होती है वहां से तमाम नकारत्मकताएं अपने आप आरम्भ हो जाती है, आज जो धन , बल, रूप, रंग, यश वैभव मेरा है कल वो दूसरे का होगा जो सौंदर्य मेरे नाज का विषय था कल किसी और को उपकृत करेगा और वह हर गुण  कल  जो मुझे सबकी तुलना में श्रेष्ठ साबित करने के लिए दिखाना होता था आज दूसरों के पास था और यही सत्य भी था , मैं  झूठी प्रसंशा के कारण कभी अपना स्वरुप ही नहीं देखा पाया कि वास्तव मैं मैं  हूँ क्या | 


 कई बार हमारे साथ यही होता है कि  हम अपने प्रयत्नों से जो अर्जित नहीं कर   रहे होते उनकी भी प्रसंशा हमे लोग दे रहे होते है , जबकि आत्मा की गहराइयाँ यह जानती है  कि उसपर किसी और का हक है, परन्तु स्वार्थों के वशीभूत वह प्रसंशा हमें मिल रही है , प्रसंशा एक ऐसा नशा है जिसका आदी  मनुष्य उस   नशेड़ी की तरह व्यवहार करता है जैसे  उसका अस्तित्व इस पर ही निर्भर होकर रहगया है , नशे के  पूर्णतः  आदी  रोगी की तरह उसकी गति बड़ी दयनीय होती है जिसमे हर एक से यही याचना छुपी होती है वो कैसे भी आपकी प्रसंशा करें , मित्रों भिखारी को कम्बल ,पैसे , भीख देते में आप भिखारी से भी प्रसंशा की मांग कररहे होते हों कि भिखारी और देखने वाले आपको झूठी प्रसंशा दे सकें |

  how are  you -----fine         looking --------smart 

इन्हीं शब्दों के बीच कही छुपा है एक ऐसा व्यवहार जो आँखों ही आँखों में अपनी तुलना करके  देखना चाहता है की मैं  कैसे सामने वाले से श्रेष्ठ हूँ , मेरा पहनावा ,ओढ़ावा , चलने बैठने उठने बोलने चालने और तथा संसाधनों की बहुतायत या आभव सब मिलकर ही तो मैं समाज को प्रदर्शित कररहा होता हूँ और वह समाज आप भी उसे वैसा ही उत्तर देकर उसकी आत्मा को शांति  देंगे इसलिए वह भी आपकी और देख रहा है , और हम सब एक सी मांग लेकर जीवन के समायोजन कररहे है ,एक दूसरे से हजारों शिकायतें लिए ,लेकिन ध्यान रहे कि  हमें ये खोखलापन हमारा वही व्यक्तित्व दे रहा है जिसे हम  बिना गुणों के प्रसंशा पाने के लिए दूसरों के हाथ में सुपुर्द कर चुके होते है | 


भारतीय साहित्य और धर्म ने कई स्थानो पर यह लिखा कि मनुष्य को मनुष्यता और आदर्शों के  गुण साहित्य और धर्म ही सिखा सकता है तो कई साहित्य कारों ने यही भाव लिखा 

|| निंदक नियरे रखिये आँगन कुटी छबाय || बिन पानी साबुन बिना निर्मल कराइ सुभाय || 

अर्थात अपनी आलोचना करने वाले को अपने साथ ही रखना चाहिए जिससे वह आपको आपकी गलतियों के लिए समयानुसार सुझाव दे सके ,और इस प्रकार वह पानी और साबुन के बिना ही आपके आचार विचार और व्यक्तित्व को पवित्र कर सकता है मगर आज के युग में ------ जब भी आप समझाइश दे , ये आपका टाइम नहीं है  ,किया ही क्या है आपने , मेरी गलती निकालेगा ---- how dare he say  ,  और भी तरह तरह के वाक्यांश , सत्य का और आदर्शों की बात आपको स्ववकार ही नहीं है क्योकि जीवन ने आपको आपकी आत्मा के सामने आने का अवसर ही नहीं दिया आप भी जानते थे आप गुणों , और संसाधनो में समय और समाज से हारे हुए है और ऐसे में आपको केवल ऐसी झूठी प्रसंशा की आवश्यकता है जो आपको झूठा ही सही मगर थोड़ा सकूँ अवश्य देदे | दोस्तों यही कहीं से जीवन में बदलाव का सूत्र आरम्भ  होगा बस इस नशे का त्याग सबसे आवश्यक है 

  

एक दिन जीवन ने खुद को पलटकर देखा वहां हजारों लुटेरे खड़े थे जिसे जितना बड़ा स्वार्थ था ,उसने उतना ही बड़ा झूठी तारीफ के  अम्बार खड़े कर दिए और जैसे ही हमे उस प्रसंशा का नशा चढ़ा उसने नशे की हालत में हमे कई बार हमें  लूटा और जैसे ही उसका मतलब ख़त्म हुआ वह जीवन से गायब हो गया ,और हम झूठी प्रसंशा के आदी ।  वो लोग झूठी प्रसंशा के जाल में फसाने वाले शिकारी बने रहे ,हमारा नशा इतना अधिक हो गया था कि  हमपर कि हर सच्चाई हमें रूढ़िवादी , हर आदर्श और सत्य हमे दूसरे युग का  वाक्य  लगा, 
 आईना हमे पलट कर रख देना पड़ा क्योकि झूठी प्रसंशा के नशे में हम स्वयं का सामना करने का साहस ही नहीं जुटा पाये थेजीवन के सत्य के सामने हम यह मानाने  को तैयार ही नहीं होते कि एक दिन यौवन, धन , बल सौंदर्य सब दूसरों के हक में होंगे समय के साथ चलता चलता शरीर मन मष्तिष्क सब हार जाएगा तब  मन और आत्मा उस भाव को ढूंढेगी जिस पर वह सही मायनों में आपको  प्रसंशा दे पाये और यह कह पाये  कि आप जिंदगी के खेल के एक और सफल खिलाड़ी सिद्ध हुए आपको सलाम है | 


जीवन के इस भाग में इन्हें भी आजमाइयें 

  • अपने व्यवहार और बात चीत में सामान्य रहने का प्रयत्न कीजिये क्योकि यहीं से आपको जीवन में सरलता का गुण आरम्भ होगा और यहीं से जीवन में सहजता के साथ व्यवहार करना सीखेंगे हम | 
  • आप अपने आपको पूर्ण मानकर  ईश्वर को समर्पित कर अपना जीवन कार्य आरम्भ करें इससे आपको अपने आपमें पूर्णता का ज्ञान होने लगेगा और यही से आपको नया मार्ग प्राप्त हो सकता है | 
  • दूसरों की प्रसंशा के  आशय से स्वयं को दूर रखें और यह माने कि यह प्रसंशा आपके उन कार्यों की है जिनमे सम्पूर्ण समाज परिवार परिवेश सबका हिस्सा है और यह प्रसंशा सबकी है | 
  • प्रसंशा का सबसे केंद्र है मन जब आपकी आत्मा आपको श्रेष्ठ साबित कर दे बस आप यह जान लीजिये की आपको अब किसी बाह्य प्रसंशा की आवश्यकता नहीं है 
  • उन  वस्तुओं और गुणों  पर प्रसंशा की कामना न करें जो समय और परिस्थिति के कारण बदल जाने वाली है क्योकि उनका स्वाभाव ही ऐसा है  | 
  • सत्य आदर्श और सबका सम्मान करने का गुण ये सब आपमें होना ही चाहिए क्योकि इन गुणों के कारण ही आपको स्वयं से प्रसंशा प्राप्त होती है | 
  • प्रत्येक व्यक्ति में अलगअलग गुण   विद्यमान है आप उससे यदि ज्ञान में श्रेष्ठ है तो वह रूप में श्रेष्ठ हो सकता है अर्थात वसमें भी कोई न कोई गुण  है  जिसकी प्रसंशा आपको करनी चाहिए | 
  • झूठी प्रसंशा करने वालों से सावधान और दूरी बनाये रखें क्योंकि ये आपके विकास पथ पर आपको अकर्मण्य बना देते है और आपका मानसिक स्तर भी ख़राब कर देते है | 
  • जीवन में काम बोले सुने ज्यादा और उससे ज्यादा चिंतन करें इससे हर इंसान का असली स्वरुप आपके सामने होगा और सहजता में आप ठगे नहीं जाएंगे | 
  • अपनी आलोचना करने वालों से अच्छा व्यवहार बनाये रखिये एक दिन आप इनके कारण ही उन्नति के शिखर पर पहुंचेंगे | 
  • हर  प्रसंशा जप बाह्य व्यक्ति द्वारा की जा रही है उसका उद्देश्य क्या है इसका उत्तर आपको सहजता में मिल जाएगा आप वैसा ही व्यवहार करें जैसा अंतरात्मा कहें | 
  • भावावेश में कोई निर्णय न ले झूठी प्रसंशा के बाद आपको कड़वा जहर भी पीने को दिया जा सकता है यह हमेशा ध्यान रखें |

Sunday, June 7, 2015

powerful rule of universe (Get what you sow) ब्रह्माण्ड का शक्तिशाली नियम जैसा बोओगे वैसा ही पाओगे

powerful rule of universe (Get what you sow)
ब्रह्माण्ड का शक्तिशाली नियम

 जैसा बोओगे  वैसा ही पाओगे 

कृष्ण पांडवों से कह रहे थे पुत्र हम जाने अनजाने और किसी भी क्रियान्वयन और चिंतन के फल को बदल नहीं सकते कर्म का फल तो सबको ही भुगतना होता है उससे देवता भी मुक्त नहीं हो सकते ,यह कहते हुए कृष्ण  ने कहा यह देखो ---
युद्ध क्षेत्र में  पितामह भीष्म शर शैय्या पर पड़े थे और लोगों  की भीड़ लगी थी उनसे मिलने को सब अपने अपने हिसाब से उनके पास अभिलाषा लिए खड़े थे अचानक पांडवों के साथ भगवान वासुदेव कृष्ण पधारे , उनकी पदचाप सुनते ही मौन भीष्म ने अपनी आँखें खोली और उन्हें प्रणाम किया, कृष्ण बोले आपको असह्य पीड़ा है मैं  जानता हूँ भीष्म ने हंस कर कहा आप तो सब जानते है जनार्दन मुझे इन  बाणों की तकलीफ नही है मुझें तकलीफ इस बात की है कि  मैं मरते वक्त भी सत्य  का ज्ञान होते हुए भी मुझे असत्य के लिए लड़ना पड़ा ,अचानक अर्जुन ने पूछा पितामह आपके हाथ में तो इच्छा मृत्यु है फिर यह कष्ट क्यों ?भीष्म ने गंभीर स्वर में  कहा पुत्र इसके दो कारण है प्रथम तो यह कि इस समय सूर्य दक्षिणायन है और जब तक उत्तरायण नहीं होता तबतक मुझे प्राणों को रोककर रखना होगा ,दूसरा यह  कि  एक जन्म में मैं एक सम्राट था अपनी रानी के साथ एक बार मैं  बगीचे में घूम रहा था अचानक रानी  चिल्लाई सांप सांप मैंने बिना कुछ विचार किये अपने हाथ की छड़ी से उसे दूर फ़ेंक दिया पुत्र वह सांप एक बेरिया की झाडी पर गिरा और जैसे जैसे वो हिला उतने ही कांटे उसकेशरीर में चुभ गए पुत्र आज भी मैं  उस अपराध बोध से मुक्त नहीं हो पाया हूँ , आज जब मई शर शैय्या पर हूँ उतने ही बन मेरे चुभे है जितने उस सांप को चुभे थे ,पर  मन काफी हल्का है ,लगता यह है अब मेरे जीवन का कोई भी ऋण मुझ पर बाँकी नहीं रह गया है ---यह कहकर भीष्म मौन होगये और कृष्ण पांडवों की और देख कर मुस्कुरा दिए |

  महाभारत में यह  घटना कितनी सत्य या असत्य है यह प्रश्न नहीं बल्कि यहाँ यह किस्सा शायद युवाओं को  कुछ दिशा निर्देशित जरूर करेगा

जीवन भी एक ऐसा हिसाब का गणित है जो हर कर्म का हिसाब मय  ब्याज के चुकता  करने का सामर्थ्य रखता है , सामान्यतः जब जीवन अपने यौवनके वेग की शक्तियों की अधिकता महसूस कररहा होता है उस समय अच्छे बुरे , कर्त्तव्य और उसकी दायित्वशीलता तथा सत्य और असत्य, का भेद कुछ मालूम ही नहीं होता हम अपनी शक्ति के चरम पर उन सारे सत्यों को सहज ही भूल जाते है जो मानवीयता के लिए भी निर्मित हुए है ,हम कैसे भी जीत हांसिल करने की जल्दी में अपनों को ही  कुचलते हुए आगे बढ़ जाते है ,हमें यह कभी एहसास ही नहीं हो पाता  कि इससे हमारे अपनों को कितना कष्ट हुआ होगा , परन्तु जब उसके परिणाम हमारे सामने आते है तब हमारे पास कोई रास्ता ही नहीं बचता  क्षमा के लिए , यह जीवन भर एक बड़े अपराध बोध की तरह हमें मुंह चिढ़ाता रहता है | 

 प्रकृति के नियमों और सिद्धांतों में  क्षमा जैसा कोई शब्द नहीं होता वहां सारे न्याय शास्वत अवस्था में वैसे ही होते है जैसे आपने कर्म किये है , एक बहुत बलबान आदमी कुंएं की मेड पर खड़ा जोर जोर से गालियां बक रहा था अंदर से कोई पहलवान उसे भी गालियां दे रहा था , अचानक एक साधू ने उसे रोक और कहा  पुत्र नहीं, आप अपनी जवान क्यों ख़राब करते हो मेरे कहने से एक बार वो बोलो जो  मैं कहता  हूँ  उसने  दोहराया मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ आदर से आवाज आयी मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ , मुझे क्षमा करदो वैसी ही प्रतिध्वनि फिर आई , साधु ने समझाया पुत्र हम अपने कर्म को न बदलते हुए सबको  अपने अनुसार कार्य करते देखना चाहते है ,तब सहज ही हमारा अपनी ही अंतरात्मा से युद्ध होने लगता है जबकि सामने वाला केवल माध्यम भर होता है हमसे युद्ध करने वाले के स्वरुप में ,  हम जैसा सबके बारे में सोच रहे होते है वैसा ही वेलोग हमारे बारे में सोचने लगते  है  फिर शिकायत कैसी | 

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हम  जड़ और चेतन किसी के लिए भी जो विचार प्रेषित करते है वे विचार हजारों मौन की अद्भुत सांकेतिक भाषा में उस तक पहुँच जाते है जिनके लिए वो प्रस्तुत हुए है , ब्रह्माण्ड की अनगिनत शक्तियां आपके नकारात्मक और सकारात्मक भावों को इसीतरह कई गुना बढ़ाकर आपके साथ व्यवहार पैदा करती है ,भारतीय धर्मशास्त्र के तांत्रिक अध्याय में ऐसे कई वर्णन है जहाँ दूर से ही वैचारिक संवाद किये जा सकते थे ,ब्रह्माण्ड की शक्तियों को एकाग्र चित्त से धारण करके वैसे ही गुण  धर्म व्यक्ति में पैदा किये जा सकते है जिन शक्तियों की वह उपासना कररहा है | 

यहाँ यह स्पष्ट है कि आप जो ब्रह्माण्ड को दे रहें है वहीँ कई गुने में परिवर्तित होकर आपको मिलने वाला है चाहे वह धोखा है , या कोई छल आप यहाँ  यह अवश्य ध्यान रखें कि  छल ,  बल ,अपने अंत में आपको उस फल तक अवश्य ले जायेंगे जहाँ आपको आपकी बुद्धि के हिसाब से ही फल मिलेगा, और वह वही होगा जो आप ब्रह्माण्ड को दे रहे  है ,जब आपके सारे कर्त्तव्य और सोच के बिंदु प्रकृति की उस प्रयोगशाला में लिपिबद्ध हो रहे है जहाँ आपकी एक भी सोच और कर्त्तव्य उसके फलों से मुक्त नहीं होगा तब आपको सजग होना आवशयक होगा और सजगता का यह अध्याय आप आज ही कंठस्थ करलें तो अधिक अच्छा रहेगा । 



ईश्वर  सबसे शक्तिशाली प्रयोग  शाला का एक सर्वोत्कृष्ट वैज्ञानिक है ,जो आपको भौतिक रूप में अपने अनगिनत नेत्रों से उसी प्रकार नजर में रखता है जैसा  कि सुपर कम्प्यूटर अपनेसी सी टीवी कैमरों से एक क्षेत्र पर निगाह बनाये रखता है , परन्तु ईश्वर की तकनीक केवल बाह्य आवरण , परिवेश  को ही नहीं अपितु ,मन मष्तिष्क की सोच को भी अपनी सुपर मेमोरी में नोट करके रखती  है और उन्हीं फलों को  चाहते न चाहते हमें  भोगना ही होता है | अतैव न्याय की इस बड़ी पाठ  शाला में हम सब अपने को यदि पूर्ण सफल और श्रेष्ठ देखना चाहते है तोहमें  जड़  , चेतन , और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सकारात्मक ऊर्जा का विकास करना चाहिए, जिससे आपकी सकारात्मक ऊर्जा ब्रह्माण्ड की सकारात्मकता पा कर आपको अनगिनत सफलता के वो पुरूस्कार दे पाये जिससे इंसान देव तुल्य हो जाता है |

जीवन  की  सार्थकता के लिए निम्न को अपनाएँ 
  • हमारी उपस्थिति से हमारा समाज राष्ट्र और परिवार तथा परिवेश सब बंधा है और हमारे हर कार्य से   उसमे धनात्मक और ऋणात्मक परिवर्तन होने ही है इसका हम ध्यान रखें | 
  • ब्रह्माण्ड में हमारा हर कार्य और सोच एक ऐसी वैज्ञानिक प्रणाली से जुडी है जिसका आकलन करने हमे दण्डित या पुरस्कृत किया जाना है अतैव  अपने कर्तव्यों और सोच का ध्यान रखिये | 
  • समाज और  अपने परिवेश के साथ हम सहज और सरल भाव से मिलें और समय समय पर अपने व्यवहार का आकलन करते रहे समयानुसार उसमे धनात्मक परिवर्तन करें | 
  • जीवन और जड़ चेतन सबके प्रति सकारात्मक सोच बनाये रखिये क्योकि जीवन में आपकी सकारात्मक सोच के परिणाम भी अति सकारात्मक होकर ही मिलने वाले है | 
  • सत्य की सफलता का कोई शार्ट कट नहीं होता , आप आपने आदर्शों पर चलते हुए अपनी राह बनाइये आपको दीर्घ कालिक सफलता अवश्य प्राप्त होगी | 
  • क्षण भंगुर सुख के लिए अपने आदर्शों  से समझौता मत कीजिए क्योकि थोड़े समय बाद आपका यह त्याग आपके भविष्य को बहुत बड़ी सफलता देने वाले है | 
  • आपके कारण किसी को कष्ट नहीं पहुचना चाहिए यदि ऐसा हुआ तो आपकी सफलता में नकारात्मकता स्वयं शामिल हो जायेगे जो आपको अंत में असफल सिद्ध कर देगी | 
  • आप  अपनी तुलना दूसरों से करके स्वयं को सफल सिद्ध करने का प्रयत्न न करें , क्योकि दूसरों की सफलता के साथ ही आप सफल सिद्ध हो सकते है | 
  • ब्रह्माण्ड की शक्तियों को एकाग्र होकर समझने का प्रयत्न करें एवं उसको सकारात्मक भाव से  स्वीकार करें साथ  ही समय समय पर अपने व्यवहार में धनात्मक परिवर्तन भी करें | 
  • किसी भी नकारात्मक व्यक्ति या स्थिति का चिंतन निरंतर नहीं करें क्योंकि इससे अपने  व्यवहार और शक्तियों में भी नकारात्मकता आ जाती है |

Wednesday, May 27, 2015

the power of silence मौन की शक्ति


the power of silence  मौन की शक्ति



पूर्ण क्षेत्र का राजा विश्वजीत बड़ा ही पराक्रमी और दिलेर  माना जाता था सारे इलाके में उसके शौर्य की चर्चा  होती रहती थी ,राजा ने अपने सारे शत्रुओं पर विजय हासिल करली थी  , सारे राज्य में सुख शान्ति थी और सभी लोग खुश थे एक दिन रात्रि में अचानक यद्ध के नगाड़ों की आवाज आने लगी राजा ने गुप्तचरों को चारों दिशाओं में हाल जानने भेजा गुप्त चरों ने बताया की ४ हारे हुए राजाओं ने यह हमला  किया है , और वे सेनाये चोरों और बिछा चुके है ,कई दिन राजा ने अलग अलग तरीके से व्हियू रचना की ,मगर हर बार  उसे लौटना पड़ा ,और ऐसे में बहुत निराश होकर वह चिंता में बैठा था ,अचानक उसकी पत्नी ने उससे कहा की मैं  जानती हूँ यह समय विपरीत है ,मगर आप अपना धैर्य मत खोइए, हमारे राज गुरु इसका जरूर कोई उचित हल निकाल लेंगे ,राजा तत्काल गुरु आश्रम पंहुचा गुरु गहरी समाधि में थे , राजा नत मस्तक होकर उनके चरणो में बैठ गया,  पता नहीं क्या परम शक्ति थी उस आश्रम में राजा भाव विभोर और विस्मृत  सा बैठा रह गया ,अचानक गुरु ने उसे जगाया पुत्र उठो सुबह हो गई है , राजा ने गुरु को सारी समस्या बताई वे बोले मैं  जानता हूँ पुत्र कि  इस समय तुम संकट में हो ,अधिक चिंता , सोच और आवेग में तुम सही गलत का विचार ही नहीं कर पा रहे हो ,पुत्र एकांत में एकाग्रचित्त होकर अपनी मौन की परम शक्ति को जाग्रत करो वहां  से तुम्हे शक्ति और समाधान  अवश्य मिलेगा , राजा ने स्वयं को एकाग्र किया अचानक उसे आक्रमण कारी सेनाओं ने रसद बंद करने की नीत  पर घेरा डालने की चाल दिखाई दी ,और  हल भी साथ दिखा , कि किले के बड़े पहाड़ से जाने वाला जल ही एक नहर जैसे स्वरुप में  निकलकर पड़ोस के राज्य में जाता है, राजा ने तुरंत उस जल की  धारा बड़ी बाबड़ी  की और करदी ,पानी बंद होने, गर्मी से आहात सेनाओं में  व्याकुलता बढ़ गई सेनाओं का बड़ा भाग जब पानी के इंतजाम में भटका , उसी समय राजा की सेनाओं ने एक बड़ा आक्रमण कर शत्रु सेनाओं को परास्त कर दिया | राजा ने अपनी सभा में अपने गुरु को विजय का श्रेय दिया गुर ने गम्भीर स्वर में कहा सभा सदो यह जीत महाराज विश्वजीत की ही है , जब हमारे पास समस्याएं आती है तब सबसे पहले नकरात्मक विचार हजारों की संख्यां में हमारे मन मष्तिष्क पर कब्ज़ा कर लेते है , फिर निरंतर नकारात्मक प्रभाव स्वयं को और अधिक और अधिक नकारात्मक कर देता है और हम अपने स्वभाव के विपरीत गलतियां करने लगते है यही हमारी पराजय का कारण भी बन जाता है ,राजा ने जिस छण  स्वयं को एकाग्र करके मौन का सहारा लिया उसे वह दिव्यरास्ता दिखने लगा जो उसे नहीं दिख रहता ,  मौन और एकाग्रता इन्हीं नकारात्मक विचारों से व्यक्ति को मुक्त करता है और वहीं  व्यक्ति विजय प्राप्त कर सकता है राजा सभासदों के साथ गुरु चरणों में नत मस्तक था | 


जीवन विचारों की श्रंखलाओं का कोई सुगठित समूह है निरंतर चेतनाएं मनुष्य को एक ऐसी दलदल में फंसाए रखतीं है जहां सत्य का कोई भी नामो निशान होता ही नहीं है , वह संसार में जो भी कुछ दिख रहा है उससे प्रेम और जो अदृश्य और सत्य है उससे  आँखें बंद रखने की चेष्टा करता रहता है , उसके विचारों में स्वयं को बड़ा और श्रेष्ठ बताने की लालसा उससे इतने पाप कराती है की वह स्वयं पापों को गिनने की गिनती भूल जाता है , स्वयं को बड़ा सिद्ध करने में सारे आदर्श , प्रतिमान और सिद्दांत धरा शाही होते है और सदैव की तरह अंतर का झूठ सच सा दिखने लगता है ,लगता यह है कि यह ठीक है ,मगर इससे आत्मा कभी भी सुख का अनुभव नहीं कर पाती है, और  इसके विपरीत जब भी हम अपने बड़े होने का व्याख्यान दूसरों को देते है हमारी ही आत्मा हमे धिक्कारने लगती है जैसे हमने सब कुछ खो दिया हो | 


मानसिक शारीरक स्थितियां नित्य नई समस्याओं के साथ  हमारा परीक्षण करती रहती है , और जैसे ही नयी समस्याएँ आई  हमारे हजारों नकारात्मक विचार उसे घेर लेते है मन मष्तिष्क हल और भय के भविष्य की कल्पना में और अधिक संवेदनशील होजाता है , अलग अलग कल्पनायें हमारा सोच इस प्रकार बनाने लगती है कि हमारा सारा आत्म विशवास चूर चूर हो जाता है और हर आने वाले क्षण से हमें भय लगने लगता है , परिणाम यह  कि सम्पूर्ण व्यक्तित्व बदहवासी की स्थिति में एक हारे हुए प्रतियोगी की तरह जीवन से व्यवहार करने लगता है , और ऐसे में विजय की कल्पनाएं कितनी सार्थक होंगी ये आप भी समझ सकते है 


भगवान बुद्ध  से एक शिष्य ने पूछा परम गुरु आप यह बताये कि मौन की शक्ति क्या है और वह क्यों श्रेष्ठ है ,गुरु ने बोलना आरम्भ किया पुत्र हम जिस संसार में आज दृश्य मान है ,जानते हो वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अपनी पहिचान भी बड़ी मुश्किल से तय करपाता है , जब हम संसार के हिसाब से व्यवहार कररहे होते है तो हमारे सामने बहुत छोटा सा क्षेत्र होता  है, समाज , प्रदेश देश या इक गृह मगर यह एक छोटी सी सोच होती है छोटा सा वातावरण होता है और उस दृश्य मान में हम सबसे श्रेष्ठ बनने की चाह और प्रयत्न में अपने जीवन के मूल उद्देश्य को ही भूल जाते है कि हमारा जन्म क्यों हुआ है और हमे क्या करना चाहिए ,ऐसे ही उस छोटे से कुंएं रुपी परिवेश में हम बार बार असफल होते घसटते , कराहते  अपने आपको ही नहीं पहचान पाते ,इसी लिए मनुष्य जीवन यातना  बना मालूम होता है , जबकि मौन में जिस अनंत की व्याख्या होने लगती है वह इतना अनंत होता है की उसे हर बार नए सिरे से अलग अलग समझ कर भी उसके अंदर की खोज जिज्ञासा कभी ख़त्म ही नहीं हो पाती और वही जीवन के मूल में जाकर उसके रहस्यों से नित्य नए परदे हटाती रहती है ,और यही कारण है कि गहन समाधि के बीच का साधक  मौन की गहराइयों में हजारों गुना सकारात्मक और क्रियान्वित रहता है , और बुद्ध ने कहा  हजारों वर्ष की साधना के बाद भी हर बार साधना में कुछ नया जानने को शेष रहजाता है अतः योगी सदैव ध्यान और मौन में ही रहना चाहते है |यही जीवन का अमृत्व भी है | 


 दुनिया के हर धर्म में मौन और उसकी शक्तियों का प्रयोग प्रत्यक्ष दिखता है , ईसा को सूली परचढ़ाया गया वहां स्वयं उस देव पुरुष ने अपने प्राणों को समाधिस्थ करके  एक नियत समय के लिए सम्पूर्ण पीड़ा से स्वयं को मुक्त रख कर स्वयं को उस अन्नत में समाहित कर लिया और बाद में अपनी चेतना के लौटने पर जीवत हुए , भारतीय धर्म में शिव को समाधि का देवता भी बताया गया है , निरंतर समाधि और मौन की शक्ति से देवता ओतप्रोत है ,नानक , कबीर ,और हर धर्म का साधक और देवता इसी मौन और साधना से अपनी चरम शक्ति प्राप्त करते है
 
कलाकार दार्शनिक और साहित्य की सृजनात्मकता इसी मौन की शक्ति से पैदा होती है , असंख्य समस्याओं और उलझनों का हल है यह मौन एक सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र बिंदु  जहाँ से सम्पूर्ण शक्ति एकाग्र होकर जीवन को वह लक्ष्य  दे देती है जो आदमीको देव तुल्य बना देता है , मौन का चिंतन क्षेत्र इतना वृहत है की जिसकी खोज में कई जन्मों की तपश्चर्या कम पड़ जाती यही खोज जीवन के सार्थक उद्देश्यों को इतने पास से दिखाती है जहाँ दुनियां की हर दृश्य अदृश्य शक्तियों का भेद स्पष्ट हो जाता है| 

मौन और साधना के प्रत्यक्ष प्रभाव से चेतना का धरातल प्राप्तियों और अप्राप्त के भाव से दूर होकर अपने पूर्ण लक्ष्य की तरफ मुड़कर चलने लगता है जीवनका क्षेत्र और सूक्ष्म होकर सांसारिक और पारलौकिक शक्तियों से जुड़ने लगता है , अनंत की खोज में एक सतत अमृत की धार साधक के दिल दिमाग में स्पष्ट हो जाती है , नश्वर और अनश्वर की पहिचान होने लगती है , सुख और दुःख के कारण और परिणाम अपना अर्थ खो देते है ,और जीवन साश्वत सत्य की और चलने लगता है जहाँ न चोरी का भय होता है ना ठगी का , ना लूट की चिंता होती है और, न होती है ख़ूबसूरत और बद सूरत की भावना तथा वहां केवल्य भाव होता है ,और हमारा पूरा समाज और समूह होता है, जिज्ञासु जिसे उस अमृत पान की लत लग गई है ,और उसका सम्पूर्ण जीवन बदल गया है |

जीवन के इस  इस अध्याय में इन्हें भी याद बनाये रखिये 

  • मौन का सम्बन्ध आतंरिक चेतना शक्ति से है और हम यह प्रयास स्वयं के साक्षात्कार हेतु कर रहे  है जिससे हम क्या है और किस उद्देश्य के लिए प्रयासरत है यह स्पष्ट हो जाएगा | 
  • मौन की साधना से पूर्व स्वयं को एकाग्र करें संकल्प लें कि सारी समस्याओं और सारी जीवन की विषमताओं का समाधान हम इस साधना के बाद सोचेंगे ऐसा करने से साधना में अधिक शक्ति आ जावेगी |
  • साधना से पूर्व यह स्पष्ट चिंतन करें कि हम जिस संसार को जानते है उससे हजारों लाखों गुना संसार हमारे लिए अनभिज्ञ है और आज हम उस  अनभिज्ञ  को समझने की चेष्टा कर रहे है | 
  • जीवनके बाह्य स्वरुप से अंतर्मुखी होकर हम स्वयं की चेतना का आंकलन कर रहे है अतैव बाह्य आवरण से सम्बंधित तथ्य आपको प्रभावित नहीं करें इसके लिए स्वयं को एकाग्र करें | 
  • मौन और साधना के लिए वातावरण तैयार करें सादे कपडे अनंत का ध्यान , और सकारात्मक चिंतन यहीं से आरम्भ होगा आपका सहज योग | 
  • अपने चिंतन को शून्य से सकारात्मकता की और मोड़नेका प्रयत्न करें , यह प्रयास करें की आप सहजता और शून्यता की स्थितिमे प्रवेश कररहे है | 
  • विचारों को रोकना और उन्हें अपने हिसाब से सोचना दोनों ही सहज नहीं है  अतः केवल स्वयं को शिथिल और शिथिल  तथा शरीर  में और शरीर से बाहर स्थापित कीजिए | 
  • एकाग्र और चिंतन रहित स्थिति के लिए आपको केवल यह प्रयास करना चाहिए या तो आप स्वयं की स्वांस को एकाग्रता से देखे या अपनी नाक के अग्रभाग या अपनी भ्रू मध्य को देखने का चिंतन और प्रयास करें | 
  • ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां अखिल ब्रह्माण्ड में समायी हुई है और उन सारी शक्तियों की उपस्थिति का अनुभव आपको करना है और ध्यान में आप उसका प्रयास कररहे  है | 
  • समस्याओं  विषमताओं , और साधन और रूप हीनता को आप जैसे ही ध्यान की गहराई में जाएंगे आप सब भूल जाएंगे , मन स्वयं उस रस से ओतप्रोत और स्वाभिमान का अनुभव करने लगेगा | 
  • मौन और ध्यान का मध्य भाग आपके चिंतन से बड़े छोटे अच्छे बुरे और हीन और सर्वोत्कृष्ट का भाव ख़त्म करदेगा एक सहज प्रेम कीअनुभूति देगा यह मौन | 
  • मौन और साधना से प्राप्त शक्ति और बदलाव आपको और अधिक विनम्र और जहाज बनाएंगे , उनसे प्राप्त शक्तियां आपको और अधिक सज्जन और सहज बनाएंगी |




Saturday, May 23, 2015

women empowerment (महिला सशक्तिकरण )

women empowerment (महिला सशक्तिकरण )

 एक चिंतन 

वाज्ञा  का कलेक्टर के रूप में ज्वाइन करने का स्वागत कार्यक्रम था यह , आगे बैठी माँ वाज्ञा को देखते देखते सम्पूर्ण अतीतमें विस्मृत सी हो गई थी , आँखों के सामने  अतीत चल  चित्र की तरह घूमने लगा , पूरे गाँव   से दुश्मनी लेकर जीवित रख पाई थी मालती इसको ,जन्म के दिन ही उसे सास के कहने पर दाई ने तम्बाखू मुह में रख कर डलिया से ढक  कर रख दिया  था ,सुबह उसे मरा हुआ समझकर फेंकने जा ही रहे थे कि बच्ची  जोर से रोई ,गहरे नशे में थी वह ,माँ का ह्रदय चीत्कार उठा उसने किसी की परवाह किये बगैर बच्ची को परिवार के सेवादार से छीना और जोर से चिल्लाई खबर दार अब किसी ने हाथ लगाया तो सबको जेल करवा दूंगी ,सारा घर परिवार पड़ोस सब सकते में आगये थे और बच्ची जीवित बच गई थी ,खूब शान और पूरी स्वतन्त्रता  से पाला  था सबनेउसे ,बड़ी पार्टिया , खुला वातावरण ,पैसे और स्वतंत्रता ने उसे अधिक बद दिमाग बना दिया था, जिद और बेतहाशा पैसे के प्रयोग ने सारी जिद पूरी करने का संकल्प ले लिया था पूरे घर ने | आज वाज्ञा  अपने साथियों के साथ दूर पिकनिक स्पॉट पर थी , साथियों ने कोल्ड ड्रिंक में शराब मिलाकर सर्व करदी थी,और बाद में उल जलूल हरकत करने लगे थे , वाग्या  ने पूरी ताकत लगाकर रेस लगा दी ,सड़क के किनारे आकर वह बेहोश हो गई थी किसी सज्जन  ने उसे अस्पताल पहुँचाया घर को सूचना दी ,अब सारा घर उसे घेरे खड़ा था ,होश आने पर वाज्ञा माँ से लिपट कर खूब रोइ फिर केवल माँ से एक लाइन बोली---- माँ आप तो जानती हो दुनिया कितनी स्वार्थी , खुद गरज और ख़राब है आपने मुझे उससे दूर क्यों नहीं रखा , क्यों नहीं टोका हर जगह गलत जिदों पर ,मुझे मैं  तो अबोध थी , आपतो बड़ी थी न , माँ के सामने पूरा जीवन चक्र एकबार में घूम गया , उसे लगा मैं  समाज परिवार की रूढ़िवादी सोच को तो हरा आई पर आज इस बिंदु पर खुद को हारा  सा महसूस कर रही  थी खुद को, माँ भी रोने लगी , हा बेटा यह गलती हो गई, मगर आज वादा करती हूँ की मैं  और तुम दोनो जीवनको इतना बड़ा बनाएंगे जहाँ समाज का हर विकास छोटा पड़ जाए , समय बीता और आज वाज्ञा उस जिले की नई  कलेक्टर बनी बैठी अपने अतीत को सोच कर जीवन की बारीकियों को समझ रही थी | और तालियों की गड गड़ाहट ने माँ की सोच पर विराम लगा दिया  था और माँ हंस दी थी |


हम या तो बहुत कठोर अनुशासन अथवा अनुशासन हीनता की परा काष्ठा  पर स्वयं को रखना चाहते है ,और दोनो ही स्थितियों में  आपको सहज उन्नति और चिदानंद की प्राप्ति नहीं हो सकती , क्योकि यदि आप स्वछन्द भाव से स्वयं को नियंत्रित नहीं कर सके तो आपका पतन निश्चित है, क्योकि जीवन का उर्ध्वगामी सत्य स्वयमेव  विपरीत परिस्थितियों  के कारण जब भी रुकता है तो ,वह अपने स्वाभाव के अनुसार नीचे की और जाने लगता है ,ऐसे में यदि नियंत्राण कारी शक्तियों से अंकुश लगा कर उसे नहीं रोका  गया तो उससे समूल विनाश की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है और यही मनुष्य के लिए सबसे बड़ी चिनौती भी है |


अभी  हाल  में एक भारतीय अभिनेत्री को मीडिया ने खूब उछाला ,क्योकि उन्होंने जीवन को एक सिद्धांत पर रख दिया वह था ------------   MY CHOICE  -----खूब हंगामा हुआ  लोगोने यह  कहा शर्म ,लाज , सम्मान , व्यवहार और श्रेष्ठ जीवन शैली के सिद्धांत अपना अलग महत्व रखते  है , माय चॉइस का आशय यह कदापि नहीं है कि आप सामजिक और सांस्कृतिक मान्यताये छोड़ कर पाश्चात्य सामाज जैसे  आचरण करना और समाज का उपहास करना सीख जाएँ , शायद आपको सुसंस्कृत वातावरण प्रदान करने के पीछे केवल एक सत्य था  कि आपमें हर कार्य की ललक बनी रहें , मित्रों भारतीय धर्म यह जानता था कि जीवन के हर भोग को उसने एक सीमा में बांधने  का प्रयत्न किया है जिससे वह भोग सुख और संतति का साधन बने ,न  कि वह भोग के अतिरेक के कारण मानसिक दबाब , नैराश्य , या जीवन से मोह भंग  का कारक  भी बन जाये |



1 --------- अति सर्वत्र वर्जयेत

2 ---------- परम स्वतंत्र न सिर पर कोई आवहि मनही करो तुम सोई

3 ----------महा वृष्टि  जहिं  नसत कियारी ॥ जिम स्वतंत्र होइ बिगरहिं नारी

कहने का अर्थ यह कि चाहे स्त्री हो या पुरुष अपनी  सीमाएं तो हमे ही निर्धारित करनी होंगी अति हर स्थान पर आपको कष्ट और हानि के सामने ही खड़ा कर देगी , दवा का अधिक डोज प्राण घातक है ,भोग का अधिका अधिक प्रयोग आपको मानसिक व शारीरिक रोगो और नैराश्य के भाव से  जोड़ देगा , कहने का आशय जहां भी अति की वह परिणाम जान लेवा ही होंगे , वहीँ अति से आदर्श , संस्कृति और प्रतिमान सब कुछ ख़त्म होजाते है | अधिकार दायित्व और शक्ति की अति भी असामायिक विनाश का कारण खड़ा कर सकती है , इतिहास गवाह है की जहां भी अति गुण  या दोष किसी में समाहित हुए है वहां विनाश अवश्यम्भावी हो ही जाएगा |



मित्रों पाश्चात्य देश अपना सारा भोग विलास छोड़कर एक नए सिरे से जीवन को समझने में लगे है , आपने उन भोगवादी व्यवस्थाओं को काफी समझ लिया होगा , जहाँ १३ वर्ष का बच्चा घर से अलग अपनी दुनिया में मस्त है भोग वादी प्रवृती  ने उन्हें स्वतंत्र सम्पूर्ण भोगों से तो जोड़ दिया है मगर उनसे शिक्षा , ज्ञान एकाग्रता , लक्ष्य और जीवन के उद्देश्य छीन लिए है , जीवन में नैराश्य , पार्किंसंस ,  पागलपन , और अति हिंसा ये सब कारण उस अति भोग से पैदा हुए परिणाम है , रिश्तों  का जीवन अस्तित्व तलाक और मिचुअल  सेपरेशन के इर्द गिर्द घूम कर रह गया है दोस्तों आप सच मानिए कि उनका जीवन उत्तरार्ध और भी अधिक कठिन है |



महिला सशक्तिकरण का आशय यह है  कि उसे जन्म का अधिकार दीजिये उसे अच्छे संस्कार और शिक्षा और संस्कृति से जुड़ने का सामान अवसर दीजिये , उसे अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में सोचने का अवसर अवश्य दीजिये साथ ही उसकी समस्याओं और उनके समाधानों को समझने समझाने का प्रयत्न भी कीजिए , उसके  सम्मान  और मर्यादाओं की इज्जत कीजिए तथा उसे और अधिक शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न किया जाए , उद्यमिता विकास कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी और बढाई जाए और उसे अपने पैर्रों पर खड़ा करने का मौका दिया जावे , शायद यहीं कहीं से जीवन को महिला सशक्तिकरण का लाभ प्राप्त हो जाएगा |



मनुष्य के दिल से दिमाग तक के भाग में एक ऐसा सेंसर मौजूद है जो शरीर से किये जाने , सोचेजाने और मन में आने वाले विचारों से पहले ही उसकी नकारात्मकता सकारात्मकता को प्रकट कर देता है ,यही है आत्मा |

मन बुद्धि और कर्म के सिद्धांत यह बताते है की जीवन चिंतन , चेतना , और उसे मूर्त स्वरुप प्रदान करने वाले कर्म से बंधा है और सबसे अधिक जीवन का जो मूल्यांकन करने वाला भाग है वह है आत्मा , यह मन मस्तिष्क के त्रिकोण में घूमती हुई कोई जीवन लहरें है जो  शरीर और मन के छोटे से छोटे भाग पर पड़ने वाले हर प्रभाव को आंकलित करके उसका तुरंत निर्णय करती है ,और इसका सम्बन्ध केवल त्याग, अपरिग्रहता , प्रेम  सौहार्द और अपनत्व में निहित है , अतः यह स्वीकार करने योग्य है कि  भोग विलास और मानसिक चिंतन का सार्थक स्थान स्वतंत्रता के लिए अति उपयोगी शस्त्र है जो इंसान को जीवन भर शिक्षा देते रहते  है आवश्यकता यह है की आप उसे ध्यान से सुन पाएं |


        इन विषयों पर पुनः विचार करें


  • जीवन का आशय भोग नहीं है उसका आशय मन वचन कर्म की सच्चाई को समझाना एवं शारीरिक मानसिक चेतना में जितना आवश्यक हो उतना प्रयोग आवश्यक है | 

  • जीवन में पथ प्रदर्शन अति आवश्यक है और जीवन के हर पल आप गुरु माँ पिता के परामर्शों को नाकारात्मक स्वरुप में न लें उसपर चिंतन का प्रयत्न करें | 

  • महिला शशक्ति कारण हेतु आपको संस्कार , शिक्षा , सामाजिक मान्यताएं और उन्हें जन्मकी अनुमति अवश्य दी जानी चाहिए जिससे समाज सुसंस्कृत हो सके | 

  • प्रेम सौहार्द और स्वतंत्रता की सारी सुविधाएं देने वालों से यह भी अपक्षा की जाती है कि  वे सही गलत सिद्धांतों की व्याख्या करना अवश्य सीखें | 

  • नितांत अन्धे होकर किसी भी बात को मान लेना पूर्ण स्वरुप में ठीक नहीं है क्योकि जहा आपको यह लगे  कि आप स्वयं अपने मार्ग से भटक रहे है आप उसमे सुधार अवश्य करें | 

  •   मन वचन कर्म से सकारात्मक  भावों को अधिक आश्रय दें क्योकि जैसे ही आपने तीनो स्तर पर सकारात्मक भाव बनाये सारी नकारत्मकताएं स्वयं नष्ट हो जाएंगी | 

  • मन की चेतना शक्ति सबसे प्रबल है जब भी आपकी अंतरात्मा का सत्य आपको यह विचार दे कि आप उस कार्य में गलत हो या गलत साबित होगे आप सावधान होकर कार्य करना आरम्भ करदें | 

  • जीवन को कमियों और अच्छाइयोंके साथ स्वीकार करें जिससे आपको कभी दुःख नहीं होगा जब हम पूर्णता से आदर्शों की  बात करते है तब भी स्वयं अपनी अंतरात्मा में दोषी बने रहते है इससे विकास रुका रहता है |


अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...