powerful rule of universe (Get what you sow)
ब्रह्माण्ड का शक्तिशाली नियम
जैसा बोओगे वैसा ही पाओगे
कृष्ण पांडवों से कह रहे थे पुत्र हम जाने अनजाने और किसी भी क्रियान्वयन और चिंतन के फल को बदल नहीं सकते कर्म का फल तो सबको ही भुगतना होता है उससे देवता भी मुक्त नहीं हो सकते ,यह कहते हुए कृष्ण ने कहा यह देखो ---
युद्ध क्षेत्र में पितामह भीष्म शर शैय्या पर पड़े थे और लोगों की भीड़ लगी थी उनसे मिलने को सब अपने अपने हिसाब से उनके पास अभिलाषा लिए खड़े थे अचानक पांडवों के साथ भगवान वासुदेव कृष्ण पधारे , उनकी पदचाप सुनते ही मौन भीष्म ने अपनी आँखें खोली और उन्हें प्रणाम किया, कृष्ण बोले आपको असह्य पीड़ा है मैं जानता हूँ भीष्म ने हंस कर कहा आप तो सब जानते है जनार्दन मुझे इन बाणों की तकलीफ नही है मुझें तकलीफ इस बात की है कि मैं मरते वक्त भी सत्य का ज्ञान होते हुए भी मुझे असत्य के लिए लड़ना पड़ा ,अचानक अर्जुन ने पूछा पितामह आपके हाथ में तो इच्छा मृत्यु है फिर यह कष्ट क्यों ?भीष्म ने गंभीर स्वर में कहा पुत्र इसके दो कारण है प्रथम तो यह कि इस समय सूर्य दक्षिणायन है और जब तक उत्तरायण नहीं होता तबतक मुझे प्राणों को रोककर रखना होगा ,दूसरा यह कि एक जन्म में मैं एक सम्राट था अपनी रानी के साथ एक बार मैं बगीचे में घूम रहा था अचानक रानी चिल्लाई सांप सांप मैंने बिना कुछ विचार किये अपने हाथ की छड़ी से उसे दूर फ़ेंक दिया पुत्र वह सांप एक बेरिया की झाडी पर गिरा और जैसे जैसे वो हिला उतने ही कांटे उसकेशरीर में चुभ गए पुत्र आज भी मैं उस अपराध बोध से मुक्त नहीं हो पाया हूँ , आज जब मई शर शैय्या पर हूँ उतने ही बन मेरे चुभे है जितने उस सांप को चुभे थे ,पर मन काफी हल्का है ,लगता यह है अब मेरे जीवन का कोई भी ऋण मुझ पर बाँकी नहीं रह गया है ---यह कहकर भीष्म मौन होगये और कृष्ण पांडवों की और देख कर मुस्कुरा दिए |
महाभारत में यह घटना कितनी सत्य या असत्य है यह प्रश्न नहीं बल्कि यहाँ यह किस्सा शायद युवाओं को कुछ दिशा निर्देशित जरूर करेगा
जीवन भी एक ऐसा हिसाब का गणित है जो हर कर्म का हिसाब मय ब्याज के चुकता करने का सामर्थ्य रखता है , सामान्यतः जब जीवन अपने यौवनके वेग की शक्तियों की अधिकता महसूस कररहा होता है उस समय अच्छे बुरे , कर्त्तव्य और उसकी दायित्वशीलता तथा सत्य और असत्य, का भेद कुछ मालूम ही नहीं होता हम अपनी शक्ति के चरम पर उन सारे सत्यों को सहज ही भूल जाते है जो मानवीयता के लिए भी निर्मित हुए है ,हम कैसे भी जीत हांसिल करने की जल्दी में अपनों को ही कुचलते हुए आगे बढ़ जाते है ,हमें यह कभी एहसास ही नहीं हो पाता कि इससे हमारे अपनों को कितना कष्ट हुआ होगा , परन्तु जब उसके परिणाम हमारे सामने आते है तब हमारे पास कोई रास्ता ही नहीं बचता क्षमा के लिए , यह जीवन भर एक बड़े अपराध बोध की तरह हमें मुंह चिढ़ाता रहता है |
प्रकृति के नियमों और सिद्धांतों में क्षमा जैसा कोई शब्द नहीं होता वहां सारे न्याय शास्वत अवस्था में वैसे ही होते है जैसे आपने कर्म किये है , एक बहुत बलबान आदमी कुंएं की मेड पर खड़ा जोर जोर से गालियां बक रहा था अंदर से कोई पहलवान उसे भी गालियां दे रहा था , अचानक एक साधू ने उसे रोक और कहा पुत्र नहीं, आप अपनी जवान क्यों ख़राब करते हो मेरे कहने से एक बार वो बोलो जो मैं कहता हूँ उसने दोहराया मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ आदर से आवाज आयी मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ , मुझे क्षमा करदो वैसी ही प्रतिध्वनि फिर आई , साधु ने समझाया पुत्र हम अपने कर्म को न बदलते हुए सबको अपने अनुसार कार्य करते देखना चाहते है ,तब सहज ही हमारा अपनी ही अंतरात्मा से युद्ध होने लगता है जबकि सामने वाला केवल माध्यम भर होता है हमसे युद्ध करने वाले के स्वरुप में , हम जैसा सबके बारे में सोच रहे होते है वैसा ही वेलोग हमारे बारे में सोचने लगते है फिर शिकायत कैसी |
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हम जड़ और चेतन किसी के लिए भी जो विचार प्रेषित करते है वे विचार हजारों मौन की अद्भुत सांकेतिक भाषा में उस तक पहुँच जाते है जिनके लिए वो प्रस्तुत हुए है , ब्रह्माण्ड की अनगिनत शक्तियां आपके नकारात्मक और सकारात्मक भावों को इसीतरह कई गुना बढ़ाकर आपके साथ व्यवहार पैदा करती है ,भारतीय धर्मशास्त्र के तांत्रिक अध्याय में ऐसे कई वर्णन है जहाँ दूर से ही वैचारिक संवाद किये जा सकते थे ,ब्रह्माण्ड की शक्तियों को एकाग्र चित्त से धारण करके वैसे ही गुण धर्म व्यक्ति में पैदा किये जा सकते है जिन शक्तियों की वह उपासना कररहा है |
यहाँ यह स्पष्ट है कि आप जो ब्रह्माण्ड को दे रहें है वहीँ कई गुने में परिवर्तित होकर आपको मिलने वाला है चाहे वह धोखा है , या कोई छल आप यहाँ यह अवश्य ध्यान रखें कि छल , बल ,अपने अंत में आपको उस फल तक अवश्य ले जायेंगे जहाँ आपको आपकी बुद्धि के हिसाब से ही फल मिलेगा, और वह वही होगा जो आप ब्रह्माण्ड को दे रहे है ,जब आपके सारे कर्त्तव्य और सोच के बिंदु प्रकृति की उस प्रयोगशाला में लिपिबद्ध हो रहे है जहाँ आपकी एक भी सोच और कर्त्तव्य उसके फलों से मुक्त नहीं होगा तब आपको सजग होना आवशयक होगा और सजगता का यह अध्याय आप आज ही कंठस्थ करलें तो अधिक अच्छा रहेगा ।
ईश्वर सबसे शक्तिशाली प्रयोग शाला का एक सर्वोत्कृष्ट वैज्ञानिक है ,जो आपको भौतिक रूप में अपने अनगिनत नेत्रों से उसी प्रकार नजर में रखता है जैसा कि सुपर कम्प्यूटर अपनेसी सी टीवी कैमरों से एक क्षेत्र पर निगाह बनाये रखता है , परन्तु ईश्वर की तकनीक केवल बाह्य आवरण , परिवेश को ही नहीं अपितु ,मन मष्तिष्क की सोच को भी अपनी सुपर मेमोरी में नोट करके रखती है और उन्हीं फलों को चाहते न चाहते हमें भोगना ही होता है | अतैव न्याय की इस बड़ी पाठ शाला में हम सब अपने को यदि पूर्ण सफल और श्रेष्ठ देखना चाहते है तोहमें जड़ , चेतन , और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सकारात्मक ऊर्जा का विकास करना चाहिए, जिससे आपकी सकारात्मक ऊर्जा ब्रह्माण्ड की सकारात्मकता पा कर आपको अनगिनत सफलता के वो पुरूस्कार दे पाये जिससे इंसान देव तुल्य हो जाता है |
जीवन की सार्थकता के लिए निम्न को अपनाएँ
ब्रह्माण्ड का शक्तिशाली नियम
जैसा बोओगे वैसा ही पाओगे
कृष्ण पांडवों से कह रहे थे पुत्र हम जाने अनजाने और किसी भी क्रियान्वयन और चिंतन के फल को बदल नहीं सकते कर्म का फल तो सबको ही भुगतना होता है उससे देवता भी मुक्त नहीं हो सकते ,यह कहते हुए कृष्ण ने कहा यह देखो ---
युद्ध क्षेत्र में पितामह भीष्म शर शैय्या पर पड़े थे और लोगों की भीड़ लगी थी उनसे मिलने को सब अपने अपने हिसाब से उनके पास अभिलाषा लिए खड़े थे अचानक पांडवों के साथ भगवान वासुदेव कृष्ण पधारे , उनकी पदचाप सुनते ही मौन भीष्म ने अपनी आँखें खोली और उन्हें प्रणाम किया, कृष्ण बोले आपको असह्य पीड़ा है मैं जानता हूँ भीष्म ने हंस कर कहा आप तो सब जानते है जनार्दन मुझे इन बाणों की तकलीफ नही है मुझें तकलीफ इस बात की है कि मैं मरते वक्त भी सत्य का ज्ञान होते हुए भी मुझे असत्य के लिए लड़ना पड़ा ,अचानक अर्जुन ने पूछा पितामह आपके हाथ में तो इच्छा मृत्यु है फिर यह कष्ट क्यों ?भीष्म ने गंभीर स्वर में कहा पुत्र इसके दो कारण है प्रथम तो यह कि इस समय सूर्य दक्षिणायन है और जब तक उत्तरायण नहीं होता तबतक मुझे प्राणों को रोककर रखना होगा ,दूसरा यह कि एक जन्म में मैं एक सम्राट था अपनी रानी के साथ एक बार मैं बगीचे में घूम रहा था अचानक रानी चिल्लाई सांप सांप मैंने बिना कुछ विचार किये अपने हाथ की छड़ी से उसे दूर फ़ेंक दिया पुत्र वह सांप एक बेरिया की झाडी पर गिरा और जैसे जैसे वो हिला उतने ही कांटे उसकेशरीर में चुभ गए पुत्र आज भी मैं उस अपराध बोध से मुक्त नहीं हो पाया हूँ , आज जब मई शर शैय्या पर हूँ उतने ही बन मेरे चुभे है जितने उस सांप को चुभे थे ,पर मन काफी हल्का है ,लगता यह है अब मेरे जीवन का कोई भी ऋण मुझ पर बाँकी नहीं रह गया है ---यह कहकर भीष्म मौन होगये और कृष्ण पांडवों की और देख कर मुस्कुरा दिए |
महाभारत में यह घटना कितनी सत्य या असत्य है यह प्रश्न नहीं बल्कि यहाँ यह किस्सा शायद युवाओं को कुछ दिशा निर्देशित जरूर करेगा
जीवन भी एक ऐसा हिसाब का गणित है जो हर कर्म का हिसाब मय ब्याज के चुकता करने का सामर्थ्य रखता है , सामान्यतः जब जीवन अपने यौवनके वेग की शक्तियों की अधिकता महसूस कररहा होता है उस समय अच्छे बुरे , कर्त्तव्य और उसकी दायित्वशीलता तथा सत्य और असत्य, का भेद कुछ मालूम ही नहीं होता हम अपनी शक्ति के चरम पर उन सारे सत्यों को सहज ही भूल जाते है जो मानवीयता के लिए भी निर्मित हुए है ,हम कैसे भी जीत हांसिल करने की जल्दी में अपनों को ही कुचलते हुए आगे बढ़ जाते है ,हमें यह कभी एहसास ही नहीं हो पाता कि इससे हमारे अपनों को कितना कष्ट हुआ होगा , परन्तु जब उसके परिणाम हमारे सामने आते है तब हमारे पास कोई रास्ता ही नहीं बचता क्षमा के लिए , यह जीवन भर एक बड़े अपराध बोध की तरह हमें मुंह चिढ़ाता रहता है |
प्रकृति के नियमों और सिद्धांतों में क्षमा जैसा कोई शब्द नहीं होता वहां सारे न्याय शास्वत अवस्था में वैसे ही होते है जैसे आपने कर्म किये है , एक बहुत बलबान आदमी कुंएं की मेड पर खड़ा जोर जोर से गालियां बक रहा था अंदर से कोई पहलवान उसे भी गालियां दे रहा था , अचानक एक साधू ने उसे रोक और कहा पुत्र नहीं, आप अपनी जवान क्यों ख़राब करते हो मेरे कहने से एक बार वो बोलो जो मैं कहता हूँ उसने दोहराया मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ आदर से आवाज आयी मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ , मुझे क्षमा करदो वैसी ही प्रतिध्वनि फिर आई , साधु ने समझाया पुत्र हम अपने कर्म को न बदलते हुए सबको अपने अनुसार कार्य करते देखना चाहते है ,तब सहज ही हमारा अपनी ही अंतरात्मा से युद्ध होने लगता है जबकि सामने वाला केवल माध्यम भर होता है हमसे युद्ध करने वाले के स्वरुप में , हम जैसा सबके बारे में सोच रहे होते है वैसा ही वेलोग हमारे बारे में सोचने लगते है फिर शिकायत कैसी |
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हम जड़ और चेतन किसी के लिए भी जो विचार प्रेषित करते है वे विचार हजारों मौन की अद्भुत सांकेतिक भाषा में उस तक पहुँच जाते है जिनके लिए वो प्रस्तुत हुए है , ब्रह्माण्ड की अनगिनत शक्तियां आपके नकारात्मक और सकारात्मक भावों को इसीतरह कई गुना बढ़ाकर आपके साथ व्यवहार पैदा करती है ,भारतीय धर्मशास्त्र के तांत्रिक अध्याय में ऐसे कई वर्णन है जहाँ दूर से ही वैचारिक संवाद किये जा सकते थे ,ब्रह्माण्ड की शक्तियों को एकाग्र चित्त से धारण करके वैसे ही गुण धर्म व्यक्ति में पैदा किये जा सकते है जिन शक्तियों की वह उपासना कररहा है |
यहाँ यह स्पष्ट है कि आप जो ब्रह्माण्ड को दे रहें है वहीँ कई गुने में परिवर्तित होकर आपको मिलने वाला है चाहे वह धोखा है , या कोई छल आप यहाँ यह अवश्य ध्यान रखें कि छल , बल ,अपने अंत में आपको उस फल तक अवश्य ले जायेंगे जहाँ आपको आपकी बुद्धि के हिसाब से ही फल मिलेगा, और वह वही होगा जो आप ब्रह्माण्ड को दे रहे है ,जब आपके सारे कर्त्तव्य और सोच के बिंदु प्रकृति की उस प्रयोगशाला में लिपिबद्ध हो रहे है जहाँ आपकी एक भी सोच और कर्त्तव्य उसके फलों से मुक्त नहीं होगा तब आपको सजग होना आवशयक होगा और सजगता का यह अध्याय आप आज ही कंठस्थ करलें तो अधिक अच्छा रहेगा ।
ईश्वर सबसे शक्तिशाली प्रयोग शाला का एक सर्वोत्कृष्ट वैज्ञानिक है ,जो आपको भौतिक रूप में अपने अनगिनत नेत्रों से उसी प्रकार नजर में रखता है जैसा कि सुपर कम्प्यूटर अपनेसी सी टीवी कैमरों से एक क्षेत्र पर निगाह बनाये रखता है , परन्तु ईश्वर की तकनीक केवल बाह्य आवरण , परिवेश को ही नहीं अपितु ,मन मष्तिष्क की सोच को भी अपनी सुपर मेमोरी में नोट करके रखती है और उन्हीं फलों को चाहते न चाहते हमें भोगना ही होता है | अतैव न्याय की इस बड़ी पाठ शाला में हम सब अपने को यदि पूर्ण सफल और श्रेष्ठ देखना चाहते है तोहमें जड़ , चेतन , और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सकारात्मक ऊर्जा का विकास करना चाहिए, जिससे आपकी सकारात्मक ऊर्जा ब्रह्माण्ड की सकारात्मकता पा कर आपको अनगिनत सफलता के वो पुरूस्कार दे पाये जिससे इंसान देव तुल्य हो जाता है |
जीवन की सार्थकता के लिए निम्न को अपनाएँ
- हमारी उपस्थिति से हमारा समाज राष्ट्र और परिवार तथा परिवेश सब बंधा है और हमारे हर कार्य से उसमे धनात्मक और ऋणात्मक परिवर्तन होने ही है इसका हम ध्यान रखें |
- ब्रह्माण्ड में हमारा हर कार्य और सोच एक ऐसी वैज्ञानिक प्रणाली से जुडी है जिसका आकलन करने हमे दण्डित या पुरस्कृत किया जाना है अतैव अपने कर्तव्यों और सोच का ध्यान रखिये |
- समाज और अपने परिवेश के साथ हम सहज और सरल भाव से मिलें और समय समय पर अपने व्यवहार का आकलन करते रहे समयानुसार उसमे धनात्मक परिवर्तन करें |
- जीवन और जड़ चेतन सबके प्रति सकारात्मक सोच बनाये रखिये क्योकि जीवन में आपकी सकारात्मक सोच के परिणाम भी अति सकारात्मक होकर ही मिलने वाले है |
- सत्य की सफलता का कोई शार्ट कट नहीं होता , आप आपने आदर्शों पर चलते हुए अपनी राह बनाइये आपको दीर्घ कालिक सफलता अवश्य प्राप्त होगी |
- क्षण भंगुर सुख के लिए अपने आदर्शों से समझौता मत कीजिए क्योकि थोड़े समय बाद आपका यह त्याग आपके भविष्य को बहुत बड़ी सफलता देने वाले है |
- आपके कारण किसी को कष्ट नहीं पहुचना चाहिए यदि ऐसा हुआ तो आपकी सफलता में नकारात्मकता स्वयं शामिल हो जायेगे जो आपको अंत में असफल सिद्ध कर देगी |
- आप अपनी तुलना दूसरों से करके स्वयं को सफल सिद्ध करने का प्रयत्न न करें , क्योकि दूसरों की सफलता के साथ ही आप सफल सिद्ध हो सकते है |
- ब्रह्माण्ड की शक्तियों को एकाग्र होकर समझने का प्रयत्न करें एवं उसको सकारात्मक भाव से स्वीकार करें साथ ही समय समय पर अपने व्यवहार में धनात्मक परिवर्तन भी करें |
- किसी भी नकारात्मक व्यक्ति या स्थिति का चिंतन निरंतर नहीं करें क्योंकि इससे अपने व्यवहार और शक्तियों में भी नकारात्मकता आ जाती है |
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