Sunday, July 5, 2015

अपने भविष्य और अतीत के बारे में परेशान न हों Do not worry about your future and the past


अपने भविष्य और अतीत के बारे में परेशान न हों 
Do not worry about your future and the past


सुचित्र सेन एक महा प्रतापी और अजेय सम्राट था राज्यों की सीमाये बढ़ती जा रहीं थी और सम्पूर्ण राज्य में बहुत अधिक धन संपत्ति वैभव होने के बाद भी शान्ति सुख और अतृप्तता का माहौल था | राजा को आक्रमण करना राज्यों पर कब्ज़ा करना और उनके खजाने को हड़पना अच्छे से आता था | एक बार एक पहुंचे हुए योगी  राजा के यहाँ आये राजा ने उनकी खूब सेवा की और उनसे पूछा महाराज आप मेरे राज्य में सुख शांति वैभव धन सबकी वृद्धि का आशीर्वाद दें , साधु ने ध्यान लगा कर देखा और कहा राजा मैंने सब देख लिया है मैं  तेरी सेवा से प्रसन्न हूँ जाओ आपके राज्य के बाहर एक साधु की कुटिया है वहां जाकर उनका आशीर्वाद लें  और उनकेउनके निर्देशों का पालन करें आपका कल्याण होगा , राजा ने तुरंत बड़ी भीड़ और असंख्यों उपहार लिए और पूरे वैभव के साथ साधु की कुटिया में पहुंचा नंग धडंग साधु राजा को देख कर हंसा ,उसने राजा से कहा इस भीड़ को कहो  कि  वो दूर रहे ,और जहाँ तक उपहारों की बात है मैंने सुबह एक बुढ़िया माँ का दिया खाना खा लिया है और अब मुझे किसी चीज की जरूरत है नहीं , शाम को मालिक फिर देगा इस बहाने मैं  रोज उसकी कृपा को प्रत्यक्ष अनुभव करता हूँ ,साधु बोला राजा आज से ३ वर्ष पहले युद्ध के मैदान में एक भाला तुम्हारी गर्दन से छूकर निकल गया था , जानते हो यदि उस दिन तुम मर जाते तो अगले पल ये सारा साम्राज्य और खजाना दूसरे का हो जाता |

पुत्र जीवन में संपत्ति ,सम्बन्ध और सुख  सबसे गतिशील वस्तुएं है  जबकि हम जब भी इन्हें हम स्थिर, गुलाम और अपने खजाने की जेल में बंद करना चाहते है ,वहीँ से यह हमारे मन मष्तिष्क में अपनी ऋणात्मकता के साथ पैदा होने लगते  है , फिर तो जीवन अपनी उपलब्धियों से ही परेशान होकर और और और के फेर में उलझने लगता है , अतीत और वर्तमान केवल अफ़सोस का आश्रय बन कर रह जाता है , प्राप्तियों का सुख ख़त्म और व्यर्थ हो जाता है , और जीवन छीना झपटी में अपने मूल उद्देश्य खो देता है , पुत्र दुःख  देकर सुख की खेती कैसे कर सकते हो आप , अंत में साधू ने कहा  पुत्र  मैं  तुम्हें तुम्हारे भविष्य की एक झलक दिखाता हूँ तुम्हे उत्तर मिल जाएगा आपके प्रश्न का------- राजा ने देखा हमेशा की तरह उसने अपने दोनों पुत्रों से एक राजा से युद्ध करने भेजा , और उनके ही राज्य के गुप्तचर ने राजा के दोनों पुत्रों का वध करवा दिया , राजा ने स्वयं को विलाप करते देखा ,वह रो रहा  था ------मैंने जो अकूत संपत्ति कई पीढ़ियों के लिए इकट्ठी की है अब क्या करू मैउसका , उसने देखा  कि  फिर वही साधु आया उसने पुत्रो को जीवित किया , राजा ने कहा कि  आप मांग लो जा माँगना है ,साधु बोला राजन कल भी मुझे कुछ नहीं चाहिए था आज भी नहीं चाहिए | राजा समझ गया था कि जीवन नश्वर है और जो संपत्ति वैभव और जीत का  मोह है वह आज मेरा कल दूसरे का है , पसीने में भीगा  घबराया राजा स्वप्न से  जागा, वह  अपने  सारे उत्तर पा चुका था ,अपने पुत्रों को नेकी और परमार्थ का वचन लेकर  वह साधु के साथ जंगल की और चल दिया |

जीवन में हम सब यह जान ही नहीं पाते कि  हम किन स्थितियों के मोह में बार बार परेशान होकर अपने आप को परेशान  करते रहते है , जो है नहीं उसे अपनी सोच से खड़ा करलेते है , और जो नहीं है उसे भी खीच कर हम अपने आप  पर लाद  लेते है और पूरे व्यक्तित्व पर निराशा ,  आलस्य और अस्थिरता का अनुभव होने लगता है  ,पूरा जीवन सबसे कठिन , और  स्वयं को निरीह समझने लगता है परिणाम जीवन  की सम्पूर्णता ही व्यर्थ साबित होने लगती है
हम संबंधों  - धन - वैभव - ऐश के  फेर में अपने ही सत्य से काफी दूर चले जाते है और ये परिभाषाएं हमे हमारा ही मुँह चिढ़ाने वाली लगने लगती है |


हर बार हम  जब अपने अतीत  में झांकने का प्रयत्न करते है तो एक गहरी वेदना हमें घेर लेती है , हमपर क्या नहीं था और हमने कैसा बुरा समय निकाला है ,इसका बड़ा दुःख हमे परेशान करने लगता है दूसरी और हमपर बहुत संसाधन थे पर आज हम सारे संसाधनों  के अभाव में है , कल हमसे सब कामके वक्त अपने मतलब सिद्ध करने खड़े थे आज कोई नहीं है , वो लोग जो हमे अथाह प्यार करने का नाटक करते थे  वो आज हमे तिरस्कृत कररहे है , और जिस यौवन , धन वैभव और अपनत्व पर हम कभी गर्व कररहे थे  वो हमारा रहा ही नहीं फिर तो एक बड़ी निराशा होना स्वाभाविक ही था न , उम्र , समय ,शक्ति ,यौवन और हर चीज संसार से लूट कर अपने कब्जे में करने वाली मानसिकता धीरे धीरे शिथिल होने लगी थी -- और अतीत शिकायत निराशा और अफ़सोस सा बनने लगा था | यह सब एक जीवन की प्रक्रिया थी मगर क्या यह सब ठीक था इसी पुनर्चिन्तन की आवश्यकता थी जीवन के इस पल को |

भविष्य की संभावनाएं है जीवन हमें अधिकांशतः अपने अतीत के किये कार्य और  अपने अनभिज्ञ भविष्य की सम्भावनाये डराती ही रहती है ,कल यह न हो जाए कल कहीं मुझसे मेरे स्वामित्व के सम्बन्ध और  प्राप्त वस्तुएं  न छीन ली जाएँ , भविष्य मुझसे मेरा प्रेम अपनत्व और संसाधनो की परेशानी बनकर खड़ा न होजाये , मुझे सामाजिक पारिवारिक और राष्ट्रिय आधारों पर तिरस्कृत न करदिया जाए , मेरे अपने वास्तव में मेरे ही है क्या कहीं वे मुझे मूर्ख तो नहीं बना रहें है , हम  जिन उद्देश्यों ,  और कार्यों के लिए प्रयत्न कररहा हूँ कहीं उसमे असफल न हो जाऊं ,और हम  जिन वस्तुओं व्यक्तियों और अपनत्व के सहारे को अपने जीवन में स्थापित करना चाहते है कहीं वे हमें ही तिरस्कृत न करदें ,

आशय यह हुआ की जो निकल गया वह उस घाव के निशान  की तरह हमे उस दुःख की अनुभूति में खड़ा  कर देता है जैसे हमे उस घटना के समय कष्ट हुआ था ,संबंधों की सोच में कई बार हम  अपने आपको उसी अतीत की बड़ी याताना  में स्वयं को खड़ा पाते है ,उतना ही दर्द महसूस करता है मन मष्तिष्क, और कई बार या अतीत  हमारी ही नजर में हमारी हत्या करता रहता है भविष्य में हर आने वाले सम्बन्ध प्रश्न वाचक बने खड़े रहते है और वर्तमान का विश्वास  , धैर्य और सत्य अपनी तुलनात्मक दृष्टी से खुद ही परेशान हो जाता है , अब ऐसे समय में  हर स्थिति को परखना क्या गलत है , जीवन जैसे अनुभावों से निकला है वह भविष्य की वैसी ही कल्पना करता है तो कहाँ गलत है ,मित्रों यही से कही जीवन को अपनी धनात्मक सोच का भवन बनाना होगा, जो आपको अपने अंतिम विकास बिंदु तक ले जाने में सक्षम है |


एक दार्शनिक ने लिखा  आप  ईश्वर की अनमोल कृति है , आप गुणों का भण्डार है , और आपकी चिंतन शीलता आपको अद्वितीय सिद्ध कर सकती है आप स्वयं के  के सामने एक बहुत मोटी और ऊंची दीवार बना डालिये ऐसी ही दीवार आप अपने पीछे भी बना डालिये और अब आप स्वयं को वर्तमान में खड़ा पाएंगे , बस यही से आपकी आगामी यात्रा आरम्भ होनी है जहां अतीत के कष्टों का मलाल और भविष्य की अनभिज्ञता का डर नहीं होगा ,जीवन को अपने महान उद्देश्य के लिए संकल्पित मानते हुए जिसने भी  वर्तमानकी क्रियान्वयता को मूर्त स्वरुप प्रदान किया वह स्वयं काल जयी सिद्ध हुआ है ,


जिस छण  वर्तमान अतीत  और भविष्य के स्वप्नों से मुक्त होकर स्वयं की साधना करने लगता है आप सही मानलें कि वहीँ से दुनिया की सारी सफलताएं उसके पीछे दौड़ने लगती है , अतीत का दुःख और भविष्य की कोरी कल्पनायें अपना अस्तित्व खोने लगती है , वैचारिकता में निराशा और अकर्मण्यता आती ही नहीं है , व्यक्ति और अपनत्व अपनी परिभाषाएं नहीं बना पाते मन उन्हें छोड़कर अपने वास्तविक उद्देश्यकी क्रियान्वयनता में लग जाता है और व्यक्ति स्वयं को कालजयी सिद्ध  कर देता है ,ध्यान  रहे कि  जीवन का साश्वत सत्य यहीं है कि जीवन यौवन , शक्ति ,ऐश , और भौतिक सुख सुविधाये  तथा सम्बन्ध समय के साथ अपना अर्थ और  सार्थकता बदल लेंगे , केवल सकारात्मक लक्ष्य  के साथ आपका वर्त्तमान क्रियान्वयन आपको श्रेष्ठ सिद्ध कर सकता है आवश्यकता इस बात की है कि उसका सही प्रयोग निश्चितता के साथ किया जावे जहाँ वर्तमान के लक्ष्य के अलावा कुछ न हो |

निम्न का प्रयोग कर कर अवश्य देखें


  • सकारात्मक सोच के साथ जीवन को जीने का प्रयत्न करें , यदि आप आदर्शों पर चलने वाले हुए तो आपको कई समस्याओं का सामना करते हुए जीत हासिल होगी क्योकि ,जीवनका सत्य जानने वाला ही संघर्ष कर पाता  है|
  • अतीत और भविष्य पर  मोटी दीवारें बनाई जाए और उनमे झांकने का प्रयत्न न करें आपको सदैव यह ज्ञात रहे आपकी वर्तमान की क्रियान्वयनता का सम्बन्ध ही आपको सफलतम सिद्ध करेगा | 
  • संबंधों का एक नियत  क्षेत्र  है और उन्हें उतना ही महत्व दिया जाना चाहिए , जीवन कर्त्तव्य के मार्ग में संबंधों के कर्त्तव्य निभाने आने चाहिए उन्हें कमजोरी नहीं बनाऐ | 
  • संसाधन , बल , धन , और सम्बन्ध और उनका प्रयोग समय के साथ अर्थ खो देता है  ,अतः आपको यह अवश्य ध्यान रहे की जो आपके अस्तित्व के साथ नहीं है वो आपका नहीं है और उससे एक गैप अवश्य बनाये रखें | 
  • भविष्य की अनभिज्ञता आपको भय क्रान्त न कर पाये और अतीत के दुःख आपको अधिक परेशान न कर सकें आपको अपने कर्त्तव्य और शक्ति से इन्हें जीतना है | 
  • छीनने और दूसरों को दुःख देने  के स्वभाव से दर्द और पश्चताप ही पैदा हो सकता है हम जीवन में जिसे जीत समझते है वह जीत केवल वर्तमान को क्रियान्वयन और  सबको  परमार्थ दे सके तो श्रेष्ठ है | 
  • गतिशील दिखने वाली हर वास्तु और व्यक्ति समय के साथ अपनी आस्थाएं , प्रेम और अपने स्वार्थ बदल लेगा ऐसे में जो साश्वत सत्य है उसका पालन करते हुए वर्त्तमान  के कर्म को सार्थकता दें | 
  • रिश्ते भोग और संसाधन आज किसी के साथ है कल किसी और के होंगे परसों किसी और के पास होगी तो जो भी साश्वत और अमर गुण  धर्म हो  उनको प्राप्त करने की चेष्टा की जानी चाहिए | 
  • परमार्थ और सत्य दो मार्ग है जीवन को जीतने के इनका अनुशरण करने में अपनी आत्मा की आवाज को सदैव अपने सामने रखकर अपना आंकलन करते  रहें | 
  • जीवन को ऐसा आकार दें की आप दूसरे की आलोचनाओं से बचें रहें क्योकि आपालोचना के लिए आपकोउसका ध्यान करना होगा और उससे आपको भी नकारात्मकता घेर लेगी,अतः आप  किसी की आलोचना न करें |



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