Saturday, March 8, 2014

किससे है  शिकायत यहाँ चहरे नकाब में है 

आदमी सामाजिक प्राणी है और  बड़े से बडे समाज बनाकर वह  अपने आपको बहुत बड़ा मान बैठता है और जिनके साथ समाज दोस्त और बड़े समूह नहीं होते वो अपने को हीन  मान बैठते है और तमाम सारी नकारात्मकताओं को अपने आप पर थोप डालते है परिणाम यह कि उनकी सकारात्मक ऊर्जा नकारात्मक होने लगती है और खुद अपने आप से शिकायतों के समूह जीवन को और अधिक कठिन बनाने लगते है कहने का आशय यह कि हम स्वयं ही अपनी नकारात्मकताओं के लिए जिम्मेदार बन जाते है | हम मानते है कि आदमी को अपने समाज, मित्र  और एक परिवार समूह की आवश्यकता अवश्य होती है और वह अपना सुख दुःख सब कुछ उनसे जोड़ कर देखने लगता है और सम्पूर्ण अस्तित्व का उत्थान पतन इनसे ही बंधा दिखाई देने लगता है शायद यह एक बड़ा कारण है युवा के नैराश्य ( डिप्रेशन ) का जो आज एक बहुत बड़ा कारण बन गया है युवा समस्याओं के लिए | 


अब इसका दूसरा पक्ष देखिएआदमी  सबसे अधिक अपने आपको प्यारकरता है और हर सम्बन्ध को अपनी कमियों को पूरा करने के लिए बनाना चाहता है और अब यहाँ एक और अंतः द्वन्द खड़ा हो जाता है कि हर आदमी एक दूसरे से बहुत सारी कामनाएं कर बैठता है और यह सम्बन्ध एक फ्रीस्टाइल कुश्ती जैसा माहौल बना देता है हर आदमी अपनी बुद्धि और शक्ति  के अनुसार सामने वाले का शोषण करने लगता है यहाँ यह खेल इस तरह चलता है कि किसीका भी किसी भी स्तर तक शोषण किया जा सकता है , सहानुभूति की चाशनी अपनत्व की कसमें और अनंत ईश्वर के श्रेष्ठ गुणों का वास्ता देकर आदमी को धोखे पर धोखा दिया जाता है और अधिकाँश युवा इस बड़े दल दल में उन नकाबी मगरमच्छों के शिकार हो बैठते है जिन्हे वे अपना सबसे करीबी और जीवन का आधार मान बैठे थे | यहाँ बनावटी व्यवहार के कारण हमारा शोषण करने वाले हमारा उपयोग करते रहते है ,हमे जब मालूम होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है | 


यहाँ एक तीसरा पक्ष भी जुड़ जाता है कि हमें हरेक से शिकायतें रहती है क्योकि हम स्वयं को  बहुत  प्यार करते है और सबसे यही उम्मीद करते है कि वो हमे सर्वाधिक  महत्व दे परन्तु यह तो केवल स्वप्न ही है न क्योकि हर आदमी आपके सम्बन्धों में आने से पहले यह तय कर लेता है कि वह आपमें से क्या लूट सकता है अर्थात आप उसकेकिस काम के हो ,कैसा प्रोफेशनल युग है कैसा प्यार है कैसा सम्बन्ध है जिसमे सबकुछ तय है , और सम्बन्ध के मायने केवल एक दूसरे को धोखा देकर अपने आपको आदर्श साबित करना होता है ,क्या इसे सम्बन्ध ,प्यार अपनापन या समाज कहते है क्या ये सब मेरे स्टैट्स सिम्बोल (बड़ा बताने कि इच्छा ) के लिए जरूरीहै यह मन पर एक बड़ा प्रश्न चिंह् बन कर खड़ा हो जाता है |   

बड़ा ही सहज एवं  बड़ा पेचीदगियों से भरा है जीवन का यह सफ़र ,मगर एक बार इसकी बारीकियों को यदि समझ लिया जाए तो शायद आपको जीवन दुःख नहीं दे पायेगा ,हर आदमी अलग अलग चेहरे लगाये खड़ा होता है अपने अपने उद्देश्यों को लिए ,बड़े  बड़े आदर्शों का सहारा लेकर निहित स्वार्थों की आपूर्ति के लिए संघर्षरत तमाम रिश्ते हमारे सामने केवल इस लिए खड़े होते है कि वे आपकी तुलना में स्वयं को श्रेष्ठ साबित कर पाएं , रिश्तें ,मित्र।,समाज ,अपने ,और हमसफ़र की इतनी वीभत्स परिभाषा हो सकती है यह स्वयं समय पर ही निर्भर होता है ,दोस्तों केवल कुछ एक लोग ही इस दल दल से विकास शिखर की दौड़ में  ऊपर पहुँच पाते है अन्यथा  अनेक युवा अपनी हताशा की पराकाष्ठा पर अनुचित निर्णय ले बैठते है | 

स्वयं के मूल्याकन के समय यदि आप ने निम्न मान दडों का ध्यान रखा तो निश्चित ही आपको समय श्रेष्ठ साबित कर सकता है 

  • जीवन में अपने , रिश्ते , सम्बन्ध केवल आधार भूत रिश्तों में ही निहित समझे माता , पिता भाई बहिन गुरु शायद यही आधार भूत रिश्तों के मायने है इनके आलावा हर रिश्ते को परखते रहें | 
  • आधारित जो सुख दूसरों पर आधारित हुआ वह अंततोगत्वा  हमारे दुःख का कारण अवश्य बनेगा क्योकि आदमी का स्वाभाव है कि वह सबसे पहले अपने को सुख देता है | 
  • जीवन एक दिन उन रिश्तों की असलियत आपको जरूर बताता है मगर एक नशे के आदी व्यक्ति की तरह हम  अपने मन को मनदिलासा देकर सत्य को असत्य साबित करते रहते है | 
  • दूसरे के मूल्याकन और अपनी स्वयं की त्रुटियों को दूसरों पर दोषारोपित करने से आपके व्यक्तित्व में नकारात्मकता ही बढ़ेगी 
  • कैसा अजीब स्वभाव है इस आदमी का वह उस व्यक्ति से सबसेअधिक नफ़रत !घृणा और विद्वेष मान बैठता है जो उसके जीवन की अधिक चिंता करते है क्योकि उन्हें ही बार बार टोकना रोकना अच्छा बुरा बताना होता है और बार बार यह नियंत्रण क्रोध का कारण न बनकर विचार का कारण बनना चाहिए 
  • अपने जीवन में किसीको आदर्श मान कर उनका अनुशरण अवश्य करें जीवन की क्रिया शीलता में जब व्यवधान आये वहाँ परामर्श लिए जाए सकते है |   
  • स्वयं की तुलना किसीसे न करें क्योकि आप ईश्वर की स्वतंत्र और श्रेष्ठ इकाई है और आपको किसी निश्चित कार्य के लिए पैदा किया गया है आपको उसे पूर्ण करना है | 
  • जीवन अनमोल है उसकी कीमत समझकर चलें और आप कहाँ जा रहें है यह स्पष्ट तय  समझे  यद् रहे जीवन के किसी भी भाग में सॉरी नहीं होती अतैव जीवन के  हर क्रियान्वयन को धैर्य और चिंतन के बाद क्रिया स्वरुप में परणित  करें | 
  • शिकायत का बार बार खड़ा होनाआपकी कमजोरियों को बताता है और यहीं  से आपका व्यक्तित्व नकारात्मकता  की दिशा में मुड़ने लगता है | 
  • आनंद संतोष और श्रेष्ठ लगने के लिए आदमी हजारों उपाय करता है मगर ध्यान रहें कि आनंद का स्त्रोत्र आत्मा का विषय है जहाँ आपको भौतिक सुख सुविधाओं एवं शरीर और मन के बहुत अधिक प्रयोग और अच्छी वस्तुओं स्थान  और हजारों भौतिक सुविधाओं केंद्र बन कर स्वयं को प्रसन्न मानते है तो आपको केवल यातनाएं ही सहनी होंगी क्योकि इसका कोई अंतिम छोर है ही नहीं 

मन  विचार और कर्म का  प्रयोग सदैव धैर्य और कर्त्तव्य से जुड़ा है ,संसार में अकेला आया व्यक्ति अकेले ही जीवन में  अविराम गति से अपने लक्ष्य की और अग्रसर है यहाँ केवल स्वयं के बल और आत्मा की  दिशा में चलने वाले को वो दुर्लभ आनंद अनुभूति प्राप्त हो पाती है जो समय बहुत कम लोगो को प्रदान करता है अन्यथा यहाँ केवल भीड़ की तरह आदमी भागता रहता है और आनंद आगे आगे भगता रहता है एवं जीवन प्यासा का प्यासा ही रह जाता है | 


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