पिछले दशक में युवाओं के साथ बहुत बड़े बड़े सामाजिक परिवर्तन हुए ,और इस समय लगभग ५ लाख युवाओं ने आत्महत्याएं की जो समाज के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है|युवा तो किसी समाज संस्कृति और सभ्यता कि नींव होता है ,उसमे अपरमित शक्ति होती है ,वह तूफानों को मोड़ने कि शक्ति रखता है और उसे ऐसा ही होना चाहिए | ख़राब समय भी निकल ही जाएगा ,आगामी भविष्य यह संकल्प लिए खड़ा है क़ि आपके नए जीवन का नव आरंभ आज से ही हुआ है ,एक बार फिर सकरात्मकता का संकल्प लेकर आगे बढ़ों समय आपको अमर-सफल सिद्ध कर देगा ]
Monday, March 10, 2014
सफलता एवं जीवन को जीतने का एक मार्ग
एक शिष्य ने गुरु से प्रश्न किया कि देव मैं जानना चाहता हूँ कि जीवन की सफलता का क्या राज है और कैसे आदमी जीवन को जीत सकता है गुरु ने उत्तर दिया पुत्र आप प्रातः बेला में मुझे नदी के किनारे मिलें ,प्रातः गुरुशिष्य नदी पर पहुंचे और स्नान आरम्भ किया अचानक शिष्य गहरे गड्ढे में डूबने लगा पानी उसके ऊपर हावी होता रहा और वह बेहोशी की हालत में पहुंच गया अचानक गुरु ने उसे जोर का धक्का देकर किनारे पर फेंक दिया शिष्य को सामान्य होने में काफी देर लगी वो ईश्वर और गुरु को धन्यवाद ज्ञापित करने लगा अचानक गुरु ने गम्भीर स्वर में कहा बेटा जबतुम पानी में थे तब क्या चाहते थे गुरूजी स्वांस चाहता था और कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था दम घुट रहा था और सब कुछ भूल चूका था गुरु ने कहा पुत्र सफलता के लिए भी लक्ष्य की आवश्यकता भी जब इस स्वांस की जरुरत की तरह हो जायेगी तब सारी दुनियां की सफलता तेरे क़दमों में होगी ,पुत्र सफलता की सोच को इतना स्पष्ट कर कि जीवन में उसके अतिरिक्त कुछ न रहजावें [
जीवनको जीतने के प्रश्न पर गुरु ने कहा पुत्र वैसे तो जुएं और जीवन में यह समानता है कि दोनों में अधिकाँश लोगों को हारना ही पड़ता है क्योकि संसार में इन लोगों की ही भीड़ है जो जीवन में भोग और हार के लिए ही पैदा हुए है मगर कई बार अपने कर्तव्यों निश्चय और सामर्थ्य से आदमी समय को हरा देता है ,कठिन परिश्रम ,गहरी लगन ,और हर स्वांस में कर्त्तव्य का बोध यही उसके लक्ष्य की दिशा बन जाती है ,जिसने गुरु, माता पिता समाज और राष्ट्र के धर्म को बखूबी से निभाया हो जिसकी क्रिया शीलता से जीवन के उद्देश्य पूर्ण हुए हों ,जिसे जीवन में सुखों की चाह से अधिक उद्देश्य की पूर्ती की चिंता रही हो वही जीवन में अपनी जीत हासिल कर सका है ,उसने अपने कर्त्तव्य बोध के सामने किसीको भी छोटा नहीं बताया किसीकी आलोचना नहीं की और न ही किसी से तुलना की उसने किसी से अपेक्षा ही नही की कि उसे कोई सहारा दे बस यहीं से शायद वह जीवन जीत सका है ,सिकंदर और सम्राटों के मृत मुख मंडल पर जो भय था वह इन लोगो के मुख मंडल पर नहीं था क्योकि उन्हें जीवन भर कुछ खोने का भय ही कहाँ था वो तो केवल लुटाना जानते थे और यही उनकी झलकती शांती का कारण भी था |
अब प्रश्न यह उठता है कि आजके परिवेश में जब अनेक परिवर्तनों में फसां आम आदमी अपनी सफलता के मार्ग को कैसे प्रशस्त करे ,कैसे स्वयं को सामायिक बनाये और कैसे अपने आपको सिद्ध करे ,प्रश्न के उत्तर में यह जान लेना अति आवश्यक है कि सफलता और जीत के मायने क्या है ,जीवन में प्रत्येक कार्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उद्देश्य के लिए है पृकृति का हर परिवर्तन सा उद्देश्य ही होता है और सफलता का आशय भी यही से आरम्भ होता है जीवन के लक्ष्य उद्देश्य और उनके लिए किये जाने वाले प्रयत्न अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप पूरे हो पाये कि नहीं बस यहीं से जीवन कीसफलता असफलता का भाव परिणाम रूप में हमे मिलाता है |
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