Sunday, March 16, 2014

शक्ति ,ज्ञान ,और संतोष अनेक कामनाएं है पूर्णता के लिए

हमसब एक शक्ति शाली प्रकृति और ब्रह्माण्ड के अंश है और हमारी उत्पत्ति ,विकास और गति शीलता उस अपरमित शक्तिशाली तत्व का ही क्रियान्वयन है | सामान्यतः हम जब भी अपना आकलन और कल्पना करते है है तोसदैव यह विचार मन में रहता है कि हम बुद्धि , बल ,ज्ञान धन संपत्ति और शक्ति के बिंदुओं पर सबसे ज्यादा बड़े हों, हमारा जीवन ,सुख संतोष और परहित में दिखाई दे हम जीवन के हर भाग में स्वयं को सशक्त ,और श्रेष्ठ सिद्ध कर सकें ,इन्ही सब वैचारिक्ताओं के मध्य जीवन चलता रहता है और हम अपने अस्तित्व की सम्पूर्ण शक्तियों और बल के साथ प्रयत्न रत रहते है जीवन मांगता रहता है कि वह श्रेष्ठ साबित हो पाये|

जिसने  भी संसार में जन्म लिया है उनमे जो प्रमुख  कामनाएं है उनमे धन ,वैभव ,सम्पन्नता , ज्ञान , बुद्धि ,बल ,यश श्रेष्ठता और पुत्र की कामनाएं प्रमुख है कहने का अर्थ यह कि व्यक्ति में सदैव यह कामना बनी रहती है कि वह संसार में सर्व श्रेष्ठ  हो सके वह यही चिंता में रहा कि कैसे भी वह अपने आपको  इस स्वरुप में सिद्ध कर सके कि संसार उसका लोहा मानता रहे ,मित्रों यही सब मांग राष्ट्र , और विश्व के सम्पूर्ण संगठनों की भी है हम चाहे  व्यक्ति हों या सगठन हम चाहे संस्था हो या राष्ट्र हम सम्पूर्ण विश्व के रूप में सबसे श्रेष्ठ  सिद्ध होना चाहते है

मित्रों हम सर्व श्रेष्ठ तो बनाना चाहते है मगर उस महा संकल्प के लिए हमने क्या किया और हमे क्या करना चाहिए इस पर भी विचार करना अधिक महत्वपूर्ण है ,बहुधा  हम बहुत ऊंचा नहीं सोच कर  केवल वर्त्तमान की आपूर्तियों और वर्त्तमान सुख के बारे में ही सोच पाते है परिणाम  यह कि भविष्य के  लिए  सोचे  गए हर स्वप्न को हम मूर्त रूप नहीं दे पाते परिणाम सम्पूर्ण  चिंतन जीवन को संतोष का अर्थ नहीं दे पाता  है  और शिकायतें ,शकायते, और सबसे शिकायते केवल यही क्रम और नकारात्मकताएं हमारे  जीवन का अर्थ हो जाता है फिर हमारा विकास कैसा होगा आप स्वयं  समझ  सकते है |


जीवन का आधार चिंतन , क्रियान्वयन और निरंतर क्रिया शील  रहने में  ही है जब तक हम सब जीवन के इस दर्शन को नही समझ पाएंगे तब तक हम स्वयं को संतोष की  सीमा पर नहीं ले जा सकते ,धर्म कहता हैं कि जीवन का चरम लक्ष्य है मोक्ष प्राप्त करना जबकि मोक्ष ऐसा विषय है जो केवल विश्वास का विषय है जबकि पूर्ण संतोष को भी अनेक विद्वान मोक्ष   के अर्थ में लेते  है  , जीवन में श्रेष्ठ की कामना करना ही  पर्याप्त  नहीं है अपितु उसके लिए कर्म नहीं करने वाले बहुत अधिक यातना का  जीवन जीता  है क्योकि जिसने स्वप्न ही नहीं देखाऔर कर्म नहीं किया  उसने कल्पना ही नहीं की सुख समृद्धि  और प्रसन्नता की मगर जिसने स्वप्न भी देखे मगर उसके लिए प्रयत्न नहीं किये तो उसे बहुत अधिक यातना  झेलनी पड़ेगी क्योकि  वह  अपने स्वप्नों को कर्तव्यों से नहीं जीत पाया है  उसकी कल्पनाये ही उसके जीवन में  कर देती है |
जीवन को सही अर्थों में स्वीकार करने का आशय है स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करना और उसके लिए निम्न विचार महत्व पूर्ण होसकते है |
  • जीवन के किसी भी गुण के कारण आप अपना  संतोष का स्तर बनाये रखा सकते है शर्त यह है कि आप स्वयं को एकाग्र कर के  अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण भाव से क्रिया शील हों |
  •  बहुत से गुणों में से एक में श्रेष्ठ  सिद्ध होने के बाद भी जीवन के मूल सिद्धांतों का सामंजस्य बनाये रखिये क्योकि एक गुण आपका विकास करेगा मगर समन्वय आपको आदर्श रूप में बनाये रखने में सहायता अवश्य करेगा 
  • यदि आपको लक्ष्य के अतिरिक्त  स्वयं को शक्ति देने केलिए बहुत सी स्थितियों की आवश्यकता प्रतीत होती है तो आप स्पष्ट समझ लें कि आभी आप सफलता या आदर्श स्थिति से बहुत दूर है | 
  • जीवन का अंतिम लक्ष्य एक ऐसी स्थिति पैदा कर लेना है जहाँ आपको संतोष का स्तर प्राप्त हो आप को किसी से भी शिकायत न हो आप जीवन में क्रिया शील रहते हुए धनात्मक व्यवहार बनाये रखें | 
  • आप आचार विचाऱ एवं क्रियाशीलता और चिंतन से धनात्मक व्यवहार बनाये रखें तथा समयानुसार चिंतन शीलता में अपने लक्ष्य को दोहराते रहें | 
  • सफलता संघर्ष  जय , पराजय आपको एक नया सन्देश देकर  नए उत्साह के साथ जीवन के हर पल अपना संयोग प्रदान करते रहें बस यही संकल्प रखें नकारात्मक विचार न आनें दें | 
  • जहां तक सम्भव हो वहाँ तक सामाजिक , मनोरंजन , पारिवारिक और सांस्कृतिक ,धार्मिक कार्यों में भी एक सीमा तक स्वयं जोड़े रखें परन्तु अपना आधारभूत उद्देश्य नहीं भूलें | 
  • स्वयं के कर्त्तव्य और मेहनत  से  जीवन को जीतने का प्रयास करें , आस पास के लोगों से बहुत सारी अपेक्षाएं नहीं रखें नहीं तो जीत के बाद भी आत्म संतोष नहीं मिल पायेगा | 
  • जीवन को सहजता सरलता और विश्वास के साथ जीने का प्रयत्न करें अपने आप पर अपरमित विश्वास  रखें और अपने आपको धनात्मक क्रियान्वयनता से जोड़े रखें | 
  • अपनी पराजय पर  आप क्रोधित और नैराश्य  पैदा करके स्वयं को और आस पास के लोगो को दोषारोपित न करें बल्कि पूरी चिंतन शीलता से और अधिक संकल्पित होकर चलने का प्रयत्न करें | 

No comments:

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...