Sunday, February 23, 2014

मित्रता--उन्नति या अवनति --बसि कुसंग चाहत कुशल



बसि कुसंग चाहत कुशल रहिमन यह अफ़सोस
मान घट्यो समुद्र को जो रावण बसा पड़ोस 

आज हम विकास कि दौड़ में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे है और हम पर समय बहुत कम है बहुत सारा सोचने मनन करने और अच्छे बुरे में भेद करने का ,अब जब आज का समय इस प्रकार का हो गया है कि हमे अपने अच्छे बुरे और सामान्य जीवन में हर स्तर पर अपने सहयोगियों  की जरूरत होने लगी है और शायद उनके बगैर हम स्वयं   के सुखो की कल्पना भी नहीं कर पाते ऐसे समय में इतनी आवश्यक आवश्यकता के लिए हमें श्रेष्ठ का चयन करना चाहिए | मित्रों आदमी सामाजिक प्राणी माना गया है और शायद समाज कि आवश्यकता उसके लिए सबसे  महत्व पूर्ण बिंदुओं में से एक है  जिस पर उसके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण स्थिति -- जीवन के संतोष का स्तर  टिका होता है और यही उसके विकास और पराभव का मार्ग भी खोलता है अतः जीवन में इसका विचार किया जाना शायद अधिक महत्व पूर्ण है |

आज जब मैं  युवाओं को देखता हूँ तो उनके अनुभवों में अधिकाँश मित्र या तो धोखे का पर्याय बन जाते है या वे सब अपनी आकाँक्षाओं से जुड़े अपने बारे में ही सोच पाते है , एक और हम यह जानते है कि हमारा सामाजिक जीवन श्रेष्ठ मित्रों कि कामना करता है जो हमे हमारी नकारात्मकताओं  के समय हमे ऊर्जा  वान  बना कर समय कि विपरीतता से हमे संघर्ष करने और जीतने का तरीका बताये ,कंधे से कन्धा मिलाकर हमें बुरे वक्त में सहायता दे ,और जीवन के उन पहलुओं पर जहाँ हम हार रहे हों वहाँ हमें जीतने का अवसर दे ,शायद ये सब अपेक्षाएं की  जाती है अपने मित्र से साथ ही यह सोचा जाता है कि मित्र हमारे भावनात्मक पक्ष को समझ कर हमे सहयोग देता रहे |

यहाँ आज के समय में एक और महत्व पूर्ण विषय हमारे साथ जुड़ रहा है कि हम सीमा से अधिक आधुनिक होना चाहते
है तथा अधिक  लोगों से मित्रता को हम अति आधुनिक होने कि निशानी मानने लगते है और यह कहने लगते है कि जिसके मित्र नहीं वो तो व्यवहारिक ही नहीं हो सकता ,यहाँ सबसे अधिक महत्व पूर्ण बात यह है कि एक और तो मित्रता सबसे अधिक महत्व आपके जीवन कि दिशा के लिए है और आप उसके चयन में इतनी लापरवाही कैसे  कर सकते है ,आपके जीवन कि तमाम सुख और  दुःख कि स्थितियां यहीं से आरम्भ हो सकती है ,आपके गलत निर्णय आपको और अधिक परेशानी और गहरे सदमे में डाल  सकते है |



दोस्तों मित्रता  जीवन में बहुत बड़ा स्थान रखता है हमारे समाज , परिवार मन ,मष्तिष्क के भीतर से जुड़ा होने का अनुभव देता है हमें , तो इन सबसे मित्रता हमे उन्नति या पराभव के बिंदु तक लीजा सकती है ,मित्रों अनेक धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि यदि जीवन में मित्रता की आवश्यकता हो तो उसका चयन खोज पूरी ताकत  योग्यता से  की जानी चाहिए यह सोच कर कि यहीं से आपके जीवन को दिशा मिल सकती है , गुरु ,मित्र , और उद्देश्य के चयन में पूरे धैर्य से  विचार करना चाहिए |
सबसे ऊपर वाली पक्ति में बसि ----------  पड़ोस
कहने का आशय यह कि बुरे लोगों की मित्रता के बाद अपनी कुशलता की कामना करना व्यर्थ है ,क्योकि  समुद्र जैसा महा विशाल अस्तित्व रखने वाले पर भी छोटे छोटे बंदरो ने पुल बना  कर उसकी मर्यादा भंग करदी थी क्योकि वह रावण जैसे ख़राब व्यक्ति के पास निवास करता था |


आज जब मित्रता के नाम पर कोई न्याय नहीं कररहा है वहाँ इस सबसे महत्वपूर्ण सम्बन्ध के लिए निम्न विषय स्थितियों को अवश्य ध्यान रखें | 
  • मित्रता का चयन स्टेटस सिम्बोल  (अति आधुनिक होने की  निशानी )नहीं होकर एक ऐसी आवश्यकता है जिसमें वर्त्तमान की जरूरतें नहीं वरन भविष्य के विकास की  सम्भावनाएं हों | 
  • मित्र  अधिक  जल्दी न करें इस बात पर भी विचार करें कि सामने वाला आपको अधिक महत्व क्यों देरहा है क्या उचित कारण है अथवा नहीं | 
  • आप जिसमे अपने मित्र को ढूढ़  रहे है उसमे आपकी कल्पना के अनुरूप गुण है कि नहीं केवल एक दो गुणों को वर्त्तमान के परिवेश में देखने से आपका भविष्य समस्याओं से घिर सकता है | 
  • जीवन  में सफल होने के लिए सशक्त और लम्बे समय तक सम्बन्ध बनाये रखने के लिए आपको अपनी सीमाएं तय करनी होंगीं ,जिनका अतिकृमण न किया जावे | 
  • मित्रता का भाव का आशय यह  नहीं है कि आप सबसे अच्छा व्यवहार न रखें आपको सबके साथ श्रेष्ठ व्यवहार रखना है , परन्तु अपने मित्र के साथ समय समय पर अपनी परेशानियां बांटते रहें यदि आपका मित्र इस स्तर का है तो | 
  • स्वयं को श्रेष्ठ बताने की होड़ नहीं होनी चाहिए मित्रता में , वहाँ हमें अपने मित्र की हर कमी को अपने कार्यों से श्रेष्ठ बताने का प्रयत्न करना चाहिए | 
  • मित्रता सहयोग ,त्याग ,बलिदान और दूसरे के सुख में अपना सुख ढूढ़ने वाला व्यक्तित्व है उसमे यदि ये गुण नहीं है तो शायद आपका चयन गलत है | 
  • मित्रता माँ मायने आपका(यूज)उपयोग  करने का (सर्टिफिकेट) प्रमाणपत्र नहीं है जिससे सामने वाला आपका शोषण करता रहें मित्रता अपने लाभ की  कामना नहीं सामने वाले को सुख देने का सम्बन्ध है | 
  • बुरे समय में मित्र और सम्बन्धों का सही अर्थ पता लग जाता है | 
  • मित्र का आशय यह नहीं कि वह अपने जीवन की दुर्घटनाएं सुना सुना कर आपकी सहानुभूति के साथ आपका शोषण करने लगे आपको इन सब स्थितियों का ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए 
  • यदि समय के साथ आपको यह मालूम हो  जाए कि आपसे झूठ ,  है या आपकी सहानुभूति का गलत प्रयोग किया गया है या आपको सामने वाले से नकारात्मकता का भान हो रहा है तो आपको  शीघ्र शीघ्र ही उस व्यक्ति का त्याग कर देना चाहिए और एक नए प्रण के साथ  जिससे आपका भविष्य आपको  सशक्त और विकास का मायने बना सके | 







Tuesday, February 18, 2014

क्षमा क्रोध से सशक्त हथियार है 

क्षमा क्रोध से सशक्त हथियार है 


आम आदमी के स्वाभाव में जरा जरा सी बात में क्रोधित हो जाना  एक स्वाभाविक सी प्रक्रिया है  आज हम दैनिक जीवन में जिन परिस्थितियों से जूझ रहे है  वहाँ  अपने व्यक्तित्व कि कमियां ही है हम पर ,कही धन का आभाव है कहीं संसाधनों कां अभाव है कही सामाजिक राजनैतिक  या सांस्कृतिक प्रतिमानों का आभाव है कहने का अर्थ यह कि हमे आभाव है और वही कही से हमारे व्यक्तित्व में कमियां उत्पन्न हो रही है | 


एक सम्राट ने भिखारी का वेश रख कर शहर का भ्रमण किया और गाँव के सबसे कंगाल व्यक्ति से राज्य के विकास, प्रसंशा के बारे में पूछा कंगाल नाराज होगया क्रोध में अनर्गल बकता रहा और सम्राट हँसता रहा दुखी होता रहा ,अंत में कंगाल ने उस सम्राट में चाटा मार दिया और गालियां देकर बोला गर्त में जारहा है ये राज्य और तू मजाक बनाने आया है !सम्राट के आंसू छलक आये कितनी गरीबी कितनी मजबूरी और कितनी गहरी व्यथा है बेचारे पर  यही   सच्चा मित्र है मेरे राज्य का,दूसरे दिन जब कंगाल राज्यसभा में आया तो बहुत माफी माँगी बहुत रोया सम्राट ने बहुत सा धन देकर विदा किया उसे और  कहा  मित्र तुम्हारा क्रोध इस लिए जायज  है कि तुम पूर्ण रूप से कंगाल थे अब तुम ज्ञान धन और संस्कारों के साथ जीना क्योकि जिन अभावों में तुम थे मैंने उनसे तुम्हे मुक्त कर दिया है ,अब  तुम्हे क्रोध नहीं आएगा यही विश्वास है मेरा | 


जहाँ आभाव रिक्तता ! शून्यता पैदा होने लगती है वहाँ सांसारिक नकारात्मकताएं अधिक प्रभावित करने लगती है , घर परिवार राष्ट्र और परिवेश की  नकारात्मकताएं आपके मन मष्तिष्क पर  हावी होने लगे तो क्रोध आना स्वाभाविक है ,क्रोध शक्ति का नहीं वरन रिक्तता और शून्यता का प्रतीक है   क्षमा  से आपके व्यक्तित्व कि गरिमा परिलक्षित होती है | 

  • क्षमा वीरों के आभूषण के स्वरुप में माना गया है 

  • क्रोध शक्ति हीनता का प्रतीक है 

  • क्षमा मागने का अर्थ यह नहीं कि आप गलत है यह आपकी विनम्रता भी हो सकती है 

  • क्रोध  एक ऐसा   विषय है जिसमे आप दूसरे को बुरा बताने की तीव्रता में स्वयं को सजा दे रहे होते हो ॥

  •  क्रोधी से समता का भाव रखने कि कामना करना व्यर्थ है | 

  • क्रोध का एकबड़ा कारण  अ हंकार  भी माना गया है चाहे वह  विद्वता का हो या धन का या पद का सभी प्रकार के अहंकार से क्रोध स्वतः उत्पन्न हो जाता है | 

  • जीवन में स्वीकारोक्ति के आभाव भी क्रोध का बड़ा कारण है क्योकि इसमें यह गलत फहमी बनी रहती है कि मैं  अकेला सत्य और श्रेष्ठ हूँ | 

कहने का आशय यह कि जीवन को जिन अवगुणों से बचा कर हम जिस बड़े सकल्प से समाज बनाने का संकल्प  कर रहे है वाहाँ आप स्वयं झुकने का प्रयास कीजिये क्योकि अकड़न प्रायः लाशों में देखी  जाती है | 

एक बार फिर क्षमा का भाव लेकर विनम्र होकर सबको जीतने का प्रयास करें । 

दूसरों की समस्याओं में सहायता करे ,मजाक न उडाये

दूसरों की समस्याओं में सहायता करे ,मजाक न उडाये

समर शेष हैं नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ है समय लिखेगा उसका भी अपराध
जीवन संग्राम है और यहाँ हर सम्बन्ध और परिस्थितियां आपको यही समझाती है की मानवीय मूल्यों की रक्षा करते रहे तथा अपने आचार और विचार के बारे में सोच कर उसे परिष्कृत करते रहे |बहुधा यह देखने में आता है की यदि किसी एक व्यक्ति पर कोई बड़ी समस्या आजाती है तो हम उसकी सहायता के वजाय उसकी मजाक उडाने लगते है ,या पूरा जोर उसे दोषी बताने में लगा देते है ,यह जीवन का पहला पक्ष है की यातना झेल रहा व्यक्ति दोषी है और हम सब यथा सम्भव उसके कष्ट में सुख पाने कि अनुभूति पैदा करने लगते है क्योकि जब हम हरेक  इंसान से प्रतियोगिता करते है तो  हर समय यही सोचते है कि देखिये कैसे लोग है , अक्ल नहीं है ,इनका तो ऐसा ही होना था ,बहुत उड़ रहे थे और भी अनेको कशीदे जो दूसरों को छोटा अपने को श्रेष्ठ बताने के लिएजरूरी हो | 


सामान्यतः हम दूसरों कि समस्याओं में भागी दार या तो होते  ही नहीं है और अगर होतेभी है तो यह बताने के लिए कि हम आपसे अधिक श्रेष्ठ है ,अनादि काल से यही परम्परा चलती रही है कि आदमी स्वयं को एक दूसरे से श्रेष्ठ बताने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है जबकि यदि वह अपने विशवास , उद्देश्य और कर्तव्यों के प्रति सजग रह  कर अपना पथ प्रसस्त कर पाता तो शायद उसका सही विकास हो सकता था 



एक और समस्या कि हम दूसरों के दुःख !परेशानी ,और समयों में सहायता न करते हुए उसके आलोचक बन जाते है अथवा शांत हो जाते है मन ही मन कहते है कि हमें क्या जैसा करेगा वैसा भरेगा परन्तु आपत्ति काल में किसी कि सहायता न करना एवं उसके प्रति तटस्थ हो जाना किसी भी रूप में आपको श्रेष्ठ साबित नहीं करता , आपको यह जान लेना चाहिए कि केवल  वह व्यक्ति जिसके सामने कठिनाई आयी है वही दोषी नहीं है  वरन  हम सब भी उसकी सहायता के समय तटस्थ होने के कारण या सहायता नही करने के कारण बड़े दोषी है | 


कल चक्र में हर प्राणी , जीव इंसान और जीवित अजीवित वस्तुएं अपने अपने कर्म और उनके हिसाब की जीवन शैली  में सुख दुःख भोग रहा है और किसी भी स्थिति में समस्या में पड़े इंसान कि मदद न करना मानवोचित नहीं कहा  जा सकता ,इससे  यह सिद्ध होता है कि आप मानवीय संस्कारों से  दूर हो रहे है | 
कई कथाओं में यह कहा  गया है कि एक जानवर ने दुसरे जानवर के बच्चे को पाला ,कुत्ते ने मालिक कि कब्र पर दम तोडा ,और बहुत  कुछ पर इंसान ने मदद में अहसान , सहायता में स्वार्थ और सहयोग के समय सुपीरियरटी  दिखाई जो स्वयं बहुत बड़ा कलंक है | 


  • जीवन में यदि स्वयं  की  सफलता  सुख और शांति  की  आवश्यकता  है तो  निम्न बातों पर ध्यान अवश्य दें | 
  • समय चक्र ने आज यदि मुझे परेशां किया है तो कल आपको भी परेशां करेगा आप स्वयं दूसरों कि सहायता के लिए अवश्य तैयार रहें | 
  • हर परिस्तिथि पर  आपको अपना निर्णय लेकर कार्य रेखा बनानी चाहिए अन्यथा आपके तटस्थ रहने से समय आपके अपराध  को कभी माफ़ नहीं करेगा | 
  • मानव का जन्म उदारता ,दया, करुणा ,सौहार्द और सबकी सहायता के लिए हुआ है और यदि वह इसका पालन नहीं कर पता तो समय उसे भी वाही परिस्थितिया दे देता है | 
  • हम अपने मन से अपनी क्षमता के अनुसार दूसरों कि सहायता हेतु उद्धत रहें,और यदि सहायता न कर सकें तो उसे ठीक भी सिद्ध  न करें 
  • दूसरों कि आलोचना कदापि न करें अन्यथा वाही नकारात्मकता आपके मन मष्तिष्क और आचरण में परिलाक्षित  होने लगेगी 
  • दुनिया में   सम्बन्ध इस प्रकार बनाये कि आपसे किसीको तकलीफ न हो मगर आप उसे अपनी कमी भी न बनाएँ आप  कमल और कीचड का सम्बन्ध  याद  रखें    | 
  • अपने आदर्शों और दूसरे के गलत कामों को कभी प्रसंशान नहीं दे | 
  • हर दिन अपने व्यवहार कार्य और सम्बन्धों को सोच कर देखे और यथा सम्भव उनमे धनात्मकता लेन का प्रयत्न अवश्य करें | 


Monday, February 17, 2014

दायित्वों की आपूर्तियाँ बनाम सफलता



सामान्यतःहम केवल अधिकारों के लिए संघर्ष रत रहते हैं ,हमारी कोई व्यवस्था या हमारी जिद जब पूरी नहीं हो रही होती है तब हम आंदोलित हो बैठते है |आज व्यक्ति के सामने यही प्रश्न है की वह जीवन में जहाँ तक उसकी पहुँच है अपनी बात मनवा पा रहा है या है या नहीं|वह समाजमें रहता है ,काम करता है ,जहाँ उठता बैठता है,सबका प्रभाव उस पर पर्याप्त रूप से पड़ता है |उनसे ही प्रेरित होकर उसकी मांगे बढती रहती हैं , वह उन्हें पूरा करने के लिए हर स्तर पर प्रयत्न करने लगता है। समाज से सीखे हुए अधिकारों के मापदंड उसे बार बार प्रोसाहित करते रहते हैं। उसने अपने ही परिवार, समाज के बुजुर्गों को वसीयतें बांटते देखा था और अब वह वही मांगे उनसे कर रहा था। समाज ने जो उसे दिया था वही उसके अस्तित्व की पहचान बन गया था।

प्राचीन से ही भारतीय दर्शन इस बात को समझाता रहा है कि कर्तव्य, दायित्व और अधिकार अपने क्रम में ही होने चाहिए थे। यदि इनका क्रम ख़त्म किया गया तो समाज में और अधिक समस्यायें बढ़ जाएँगी, जिनका हल हमारे पास नहीं होगा। शायद यही विषय स्तिथियाँ वर्त्तमान में सब समस्याओं का सबसे बड़ा मूल है। हम अपने आस पास के वातावरण, संबंधो और समाज से यही चाहते है कि वह हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व कि कमियों को पूरा करता रहे परन्तु वह यदि हमे कुछ नही दे पाता तो यही से चालू हो जाता है एक ख़त्म होने वाला संघर्ष |



पुनर्चिन्तन के इस समय में महत्व पूर्ण यह था कि क्या हमने अपने कर्तव्यों को ठीक से पूर्ण किया ,क्या हमने जीवन के हर पल को न्याय दिया ,क्या हम संबंधों कि अपेक्षा पर खरे उतरे |यदि इन सब का उत्तर धनात्मक रहा तो हमे आशा करनी चाहिए थी ,अन्यथा हम जिस स्थिति से कुछ चाहते है उसके लिए हमने कुछ किया ही कहाँ थाऔर उससे हमें आशा भी नहीं करनी चाहिए |

दायित्व ही केवल एक ऐसा पक्ष है कि यदि मै और मेरा समाज इसका निर्वहन ठीक से कर पाये तो शायद अधिकारों कर्तव्यों और पीदियों का द्वंद स्वतः समाप्त हो सकता है|अब प्रश्न यह था की मेरा दायित्व किसके प्रति होना चाहिए?

इस प्रश्न के उत्तर में धर्म शास्त्र और दर्शन दोनों अपना मत यह देते है कि सर्व प्रथम आपको यह तय करना होगा कि आपके जीवन में ऐसी कोंन सी विषय स्थितियां है जिन्हें आप बदल नहीं सकते , और जिनसे आपका अतीत , वर्तमान और भविष्य तीनो जुड़े है शायद इनके प्रति ही आपको दायित्व निभाना है |

दायित्व के प्रथम सोपान पर माता का स्थान है , जो आपको जीवन शिक्षा और परवरिश देती है और उसका दायित्व निर्वहन आपके जीवन को किसी भी स्थिति में सुखमय बनाए रखेगा |

दूसरे स्थान पर पूर्ण भाव से पिता आते है, क्योकिं वे आपके जीवन के आधार स्तंम्भ रहे है, अपनी आवश्यकताओं कि परवाह किए बगैर उन्होंने आपकी परवरिश की है और उनसे आपको कार्य स्थान की स्थितियों में पूर्ण संतोष मिलेगा |
तीसरे स्थान पर गुरु आते है जो आपको पूर्ण दायित्व निर्वहन के लिए, संतान को संस्कार, आय और पराक्रम देंगे |
चोथे स्थान पर यहाँ आपका शरीर है | धर्म ग्रंथों ने स्पष्ट किया कि "शरीर माध्यम खलु धर्म साधनं "शरीर ही आपको प्रेरणा और भाव देता है और उसके प्रति धनात्मक रहना चाहिए | 
अन्तिम एवं पाँचवे स्थान पर है आपकी आत्मा इसके प्रति आप हर वक्त जिम्मेदार रहते है आपको हर समय धन ऋण का ज्ञान यही देती है और आप हर समय इसके द्वारा ही प्रोत्साहित या दुत्कारे जाते रहते हो आपके सर्वांगीण विकास की असल कुंजी यही है |
  • दायित्व से भागे नहीं हम अपने भविष्य कि भी चिंता निरंतर बनाये रखें क्योकि हम जो मूल्य अपने सुख के लिए जोड़ रहे है वहीँ से हमारे भविष्य कि नीवें तैयार हो रही है | 
  • दायित्व  को जितनी शक्ति से आप निर्वहन करेंगे उतनी ही तीव्रता  से आपके कर्त्तव्य और अधिकार पूर्ण होने लगेगे | 
  • गीता के कर्त्तव्य मार्ग के अनुसार हम कर्त्तव्य पर अधिकार रखें  परिणाम कि चिंता न करें तो फल श्रेष्ठ एवं अवश्य अधिक फल दायी होगा | 
  • हम हर कार्य सम्बन्ध को एक परीक्षा समझ कर  श्रेष्ठ स्वरुप में सम्पादित करें 
  • हम सबके प्रति अपने द्वारा हो रहे व्यवहार के प्रति सचेत रहें | 
  • दूसरों कि क्रियाओं का चिंतन न करें नहीं तो आप में नकारात्मकता पैदा होने लगेगी !आप केवल यह ध्यान करें कि आप सबसे श्रेष्ठ क्या कर  सकते है और कितना कर प् रहें है| 
  • व्यक्तियों के सम्बन्धों के प्रति शीघ्र निर्णय करें यदि सम्बन्ध धनात्मक है तो उन्हें बना रहने दें नहीं तो उन्हें शीघ्र ख़त्म करें  जिससे आपकी विकास दौड़ कही भीड़ जैसी सामान्य होकर ख़त्म न हो जाए | 
जीवन  मूल्यों का   मूल्यांकन अवश्य करते रहे अन्यथ बदलते परिवेश में आप सैमसामायिक नहीं हो पाएंगे | 

Friday, February 14, 2014

प्रेम सत्य और  उसका स्वरुप (love,truth and nature)

प्रेम

अनादि काल से इंसान के मष्तिष्क में यह प्रश्न उठता रहा की वह कोंन ही विषय स्थिति है जो मानवीय अस्तित्व को अमर और शाश्वत बनाए रखती है |जन्म के समय से ही उसने अपने आस पास सहज प्रेम की अनुभूति की थी और उसका विकास भी उसी परिवेश में हुआ था |उसने चंदा मामा सूर्य और प्रकृति के प्रेम को अपनी अबोधावस्था में बहुत पास से देखा,अनुभव किया था |


तोता, मैना, कौओ,कबूतरों को पकड़ने का प्रयास औरउन्हें  देने की जिद उसने बहुत की थी |कई बार चींटी चीटों के साथ खेलना नन्हीं सी मखमल की गुड़िया और जुगनू छोटे छोटे हाथो में बंद कर उन्हें रखे रहना तथा अनेक खेलो के प्रयोजनयही सिद्ध करते थे की वह ईश्वर के घर से एक अमर प्रेम लेकर चला था, और वही उसके भविष्य का सत्य होना चाहिए था

प्रकृति ने मानव को यही सिखाया कि प्रेम का रूप आकार प्रकारअनंत की सीमा से भी परे है |कवियों और साहित्य के शब्द बोने पड़ जाते है ,चिंतन और विचारों की दूरी साथ नही दे पाती मन मष्तिष्क इस परिभाषा को उम्र भर समझाने की चेष्टा करता रहता है और उस अनंत को अपने अनुसार ही समझ पाता है |प्रकृति ने मनुष्य को परिवरिश दी ,सूर्य ने उसे जीवन बचाए रखने का उपहार दिया ,हवाओं ने उसे जीवन संरचना की गति, साँसे दी ,मिटटी ने उसे जीवन बनाए रखने के लिए उपज दी,और अन्तरिक्ष ने उसे अनंत तक की नई परिभाषाये दी |


इन सब विषय स्थितियों वह पलने के बाद वह धीरे धीरे बड़ा होने लगा परिवार के वातावरण के हिसाब से उसने व्यवहार चालू कर दिया था ,पहले तो उसने दुनिया की हर चीज़ से अधिकता की पराकाष्ठा तक प्रेम किया मगर धीरे धीरे उसने परिवार और अपनो के बीच के मतभेद भी समझे | वो परिवार और अपने कल तक जो निर्विकार और पूर्ण भाव से केवल प्रेम दे रहेथे वेआज अपनो परायों और समाज का मूल्यांकन कर यह बताने लगे कि
किसको कितना और किस हिसाब से प्यार बंटाना है |किसको देखकर हसना है, किसको देखकर चुप होजाना है ,और किसको कितना महत्व देना है |प्रकृति और इंसानियत का मूल मंत्र कलयुग के दुर्विचार का शिकार होगया था | हम परिवार एवं अपनों की मिलकियत बन बैठे थे हमारा मन मष्तिष्क गुलाम और ग़लत दिशामे अपना रूप लेरहा था, मगर इस उम्र मी हमें इन सबकी परवाह ही कहाँ थी |धीरे धीरे यही हमारा अस्तित्व बन गई और घर एवं अपनों के व्यवहार के स्वार्थ,फरेब झूठ और कृत्रिम व्यवहार हमने उनसे भी अच्छी तरह सीख लिया क्योकि हमारी ग्रहण शक्ति अद्वतीय थी |
आज में बड़े , सफल और समाज के बहुत बड़े पदपर आसीन था ,सबको हमारे हुक्म मानने थे और हम सबके साथ व्यवहार तय करते थे ,मगर यह विडम्बना थी की हमें कोई असली प्रेम करने वाला था ही नही|हम हुक्म ,पैसे, पद से अपने अनुसार व्यवहार करा रहे थे लेकिन सब कुछ बनावटी लग रहा था |पत्नी पिता माँ और समाज के बीच हमारा बड़ा पद आगया था परिणाम पत्नी भोग्या रह गई पिता माता समय से छोटे जान पड़ने लगे और समाज वह तो मेरे अधीन था,उसे मेरे व्यवहार की आदत डालनी थी जो हम से कही नीचे थे अब वो मेरे ज्यादा करीब आना चाहते थे मगर मै जान चुका था की स्तर हीन लोगो  को  मैं  अपने कद से  बहुत छोटा मान चूका था  और उन्हें प्यार नहीं दया की जरूरत थी |

प्रेम को पवित्र बनाएँ और निम्न को अपनाने का प्रयत्न अवश्य करें | 


  •   सर्वप्रथम यह तय करें  आप स्वय के मानदंडों  पर हर सम्बन्ध का  करें।, जिस प्रकार अधिक  कूड़ा करकट     नकारात्मक ऊर्जा का  सृजन करता    करते रहें ।  
  •  प्रेम को  सहानुभूति,हादसे और दया का पात्र मानकर सम्बन्ध न बनाएँ जाएँ क्योकि ये सम्बन्ध  प्रभावी नहीं  हो हो पाएंगे 
  • आप अपने व्यवहार और अपने सम्बन्धों के व्यवहार पर  पूर्ण सचेत रहें । 
  •  कोशिश यह करें कि  आपको अपने उद्देश्य और लक्ष्य स्वयं   ही पूरे करने है और उनमे आप अकेले है । 
  • दोस्तों जो सुख दूसरों पर आधारित होगा उसमें दीर्घ काल में आपको दुःख ही मिलेगा अतः सबसे बहुत  अच्छा व्यवहार करें मगर उम्मीद बहुत कम लोगों से रखें 
  • अपनी और अपने आदर्शों कि सीमा पार न होने दें और प्रायस यह करें कि जीवन ! कार्य आपके सामने साफ हो कि आपको कहाँ तक जाना है । 
  • शरीर मन और एकाग्रता को बड़े रचनात्मक उद्देश्य में लगाएं तो बहुत  सारी नकारात्मक भावनाओं से बचाव किया जा सकता है । 
  •  सम्बन्धों के लिए झूठ फरेब और  व्यवहार करना पड़े वो सब एक दिन आपको कष्ट देंगें । 
  • जब भी आप स्वयं में  सुधार का प्रयास करेंगे कुछ कठिनाइयों के बाद आपको आत्म बल मिलने लगेगा 
  • प्राकृतिक सहज और सरलता से स्वयं को जीतने का प्रयास करें जिससे आपकी सुंदरता और निखार सकें 
  • खान  पान  रहन सहन   और  घूमने फिरने की प्रवृति को रचनात्मक दिशा दें । 
दोस्तों यही सब  कारक आपको जीवन में एक ऐसे जीवन का परिचय देंगें जिसमे आपको अपने आपसे शिकायतों के स्थान पर स्वयं संतोष का अनुभव होने लगेगा । जीवन में संतोष प्राप्त  करलेना और उसे दूसरों में बाँट देना सबसे दुर्लभ और अद्वितीय उपलब्धि है । 
यही सिद्ध करता है कि  इंसान ईश्वर के घर से एक अमर प्रेम लेकर चला था और वही उसके भविष्य का सत्य होना चाहिए था


Thursday, February 13, 2014

प्रेम  वर्तमान  आप और वैलेंटाइन

मै  प्रेम था इसलिए बे जुबान था समाज ने अपने अपने हिसाब से मेरा उपयोग किया और मैं  वैसे ही खड़ा अपनी बेबसी पर आंसूं बहता रहा ,लोग आते गए और मैं वही खड़ा अडिग सा अपनी बदलती हुईं परिभाषाएं देखता रहा उदास और अनमना सा , मुझे  याद आने लगे  राम रहीम और वो ऐतिहासिक किस्से जिनमे बलिदान के बड़े बड़े अध्याय थे मुझे याद आने लगा वो ५ वर्ष के कृष्ण और राधा का अविरल और पूर्ण समर्पण का प्रेम जिसमे केवल देना होता थ सब कुछ न्योछावर करने का भाव !जहा कुछ भी अपना होता कहाँ  था ,जरा सी खुशियों कि इच्छा के साथ चलता था ये प्रेम |

युग बीते समर्पण का भाव बहुत मंहगा हो गया तो  वह तो लुप्त प्रायः होगया राग का नामोनिशान नहीं रहा और अनुराग व्यथित होता रहा परिणाम यह कि हम वस्तु हो गए और आत्मा सौदागर एक बेहद चालाक सौदागर मूल्य खत्म होते गए व्यवसाय परिष्कृत होते रहे और हम इस माहौल में प्रेम ढूढ़ते रहे शायद यह रेगिस्तान कि मृग मरीचिका से भी अधिक दुष्कर खोज थी |

फिर वैलेंटाइन  ईसा गांधी और मदरटेरेसा का प्रेम देखा अथाह प्रेम वहा भी सब कुछ लुटाने की होड़ थी और आज तक मैं  यह नहीं तय   कर  सका कि उनमें जीता कौन सब अपनी अपनी जगह महा वैराग्य और महा त्यागी रहे और उनमे भेद करना मानवीयता का अपमान ही होगा सो उन्हें उस ऊँचे मुकाम पर ही हम सब पूजनीय मानते रहें ||


आज प्रश्न है इस बदलते युग में प्रेम कि परिभाषा का कि क्या हो सकती है वह इस अति वैज्ञानिक और अति जानकारियों वाले युग में अलग अलग लोगो के लिए अलग अलग ही थे
एक ने कहा क्या बात करते हो प्रेक्टिकल बनो और वैसे ही जियो
 कहाँ चककर में डालते हो दोस्त क्या ऐसे मैं  सबसे कहां  तक  रेलेशन बनाऊंगा
एक का मत था विदेशों में जानते हो पूरी स्वतंत्रता है वहाँ है लाइफ तो यहा तो सब बेकार है
एक कह रहे थे कि आज दौड़ का ज़माना है और बहुत खर्चा है  फिर कैसे भी पैसा कमाओ सब जायज है
और एक का मत था कि हम सब वयस्क है अपना अच्छा बुरा सोचते है हमें किसीसे  क्यां
एक जोर जोर से बोल रहे थे  तेरी नानी मारी तो मई क्या करूँ[हूँ  केयर्स ].          


यही है आज के समाज  की अधिकाँश मानसिकता  आज नए युग में अनेक प्रतिउत्तर है युवा के पास अनेक तर्क है और पिछले २० वर्षों से इन्हीं तर्कों को सम झा. ती शैक्षणिक  पद्धति है शायद यही है विकास |
मेरे दोस्त एक वर्ग आज भी  मेरे तर्कों से सहमत हो सकता है बस प्रेम के स्वरुप में इन बातों का ध्यान अवश्य रखें


  • प्रेम का आशय राग है जिसमें क्रियाओं का महत्व नहीं वर्ण आत्मा की कशिश का महत्व है 
  • ज्ञान  स्तर  विवाह और प्यार यह क्रम आपको सफलता या असफलता के बिंदु पर लेजायेगा इसका क्रम कैसे भी नहीं बदला जा सकता | 
  • प्रेम का आशय व्यवसाय नहीं होना चाहिए | 
  • प्रेम को समर्पण  की परा काष्ठा है परन्तु सहज ही उसका विशवास करने से पूर्व उसकी कठिन परीक्षा करें | 
  •  जीवन में अपने उद्देश्य और अपने मार्ग सु निश्चित करें और अपने उद्देश्यों से प्यार करने वाले सफल ही होते है 
  • जीवन में हर अजनबी के साथ बहुत से प्रश्नों के साथ मिलें जीवन में धोखे कम हो

Wednesday, February 12, 2014

स्वयं को अतुलनीय (incomparable) बनायें

बहुमूल्य और बहुत खूबसूरत है जीवन और इसे उतना ही खूबसूरत और सुन्दर बनाया जा सकता है जैसा कि हमारी कल्पनाओं में अति सुन्दर  की परिभाषा है | जीवन के हर भाग में समस्याएं ,उनका हल  ,खुशियां और जीवन कि गति सब एक साथ चलता रहता है और हम उन सब के मध्य अपना स्थान बनायें रखते है | अनेक बार जीवन में बहुत ऊपर जाने के समय या बड़े लक्ष्य बनाते समय हम लड़खड़ाने लगते है इसका मतलब यह तो नहीं कि हम चलना और जीत की  आशाये ही छोड़ दें ,दोस्त यह जीवन आपका है और आप उस सर्वशक्ति मान की वह रचना हो  उसने एक नियत उद्देश्य के लिए बनाया है और आपको वाही पूरा करके जीवन को श्रेष्ठ प्रमाणित करना है |

अति सुंदरता के आस पास  काटें और जहरीले जीव होते है आप ध्यान रखे आपके जीवन में जीतनी ऊंचाइयों कि आशा ईश्वर करता है आपको उतनी ही बड़ी समस्याओं एवम कठिन मार्गों को सहज बनाना होगा आपमें वह अपरमित शक्ति है जिसे जाग्रत  कर आप स्वयं को अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित कर सकते है | हम सहज जीवन में सरलता सहजता और समस्याओं से भागने  की प्रवृति रख लेते है परिणाम समस्या आने से पूर्व ही खुद को हार मान लेते   है और किसी समस्या का एक नकारात्मक पहलू स्वयं खड़ा हो जाता है | 

जीवन से बहुत सी आकांक्षाएं रखते है हम सब और दिन प्रति दिन अपने आपकी ये अपेक्षाएं बढतें रहते है हम सब सामान्यतः हम सहज ही जीवन से चाहने लगते है कि ---


  • मेरी स्वयं की  पहिचान बहुत बड़ी हो और लोग उसे सराहना और प्रसंशा दे | 
  •  अपने रूप रंग और सौंदर्य से अति सुन्दर  बनूँ और समाज परिवार मेरे इस सोंदर्य कि प्रसंशा अवश्य करें जिससे मै सब से अलग और श्रेष्ठ दिखूं | 
  • मेरे  मिलने वाले लोगो में मै सबसे प्रिय रहूँ लोग सबसे अधिक मुझे प्यार ध्यान और अपनत्व दें सबकी नजर में मेरा एक अलग श्रेष्ठ स्थान अवश्य हो | 
  • मै  एक सहज शांत और निर्विघ्न जीवन जियूं जिसमे किसी प्रकार की  कोई  विपरीतता न हो | 
  • संसाधनों कि दृष्टी से मैं हमेशा पूर्ण धनवान रहूँ मुझपर हर सुविधा और हर आराम का साधन हो जिसकी मेरा मन जरूरत समझाता हो | 
  • सारतः यह कि सुंदरता ,   शारीरिक मानसिक ,आध्यात्मिक,और भौतिक, परा भौतिक ,जगत में  मैं परिपूर्ण रहूँ जिसकी तुलना किसी से न कि जा सके |  मैं अजेय रहूँ और जीवन से अजेय बनकर ही प्रस्थान करूँ | 
  मेरे प्यारे दोस्त संसार में हर आने वाले मनुष्य ऐसी ही अनेक आकांक्षाओं के के मध्य अपने जीवन में खोजकरता  रहता है कि उसे खुशियां कैसे मिलेंगी और अनवरत उन्हें बढ़ने का पर्र्यटन करता रहता है और उसे ऐसा करना भी चाहिए क्योकि जीवन को सबसे सुंदर खुश शांत और अतुलनीय बनाने के प्रयत्न किये ही जाने चाहिए |  

हर जीवन एक बड़ी परम सत्ता से जुड़ा है और उसका लक्ष्य बहुत निश्चित है उस सर्वशक्तिमान ने उसे ऐसा बनाया है कि जिसकी तुलना किसीसे नहीं कि जासकती परन्तु जब कभी समस्याओं और विपरीत परिस्थितियां जन्म लेती है तो आम आदमी अपने सारे लक्ष्य उद्देश्य और जीवन कि ममहानता  भूलकर उस आवेग में बह जाता है और हम फिर हार जाते है दोस्तों एक बार आप जीवन के इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार अवश्य करें | 

  • जीवन में अपने से अधिक विश्वास  , प्रेम और दोस्ती अपने सिवा किसी से न करे ,आपको ईश्वर ने नियत उद्देश्य के लिए बनाया है और आपको वाही महान  लक्ष्य पूर्ण करना है | 
  • जो लोग आपके आस पास है उनमे से कुछ लोग ही आपके साथ चलने वाले है बहुत से लोग आपका शोषण करने की आस में आपके आस पास है और वो अपने उद्देश्य में सफल होकर आपसे दूर जाने वाले है 
  • आपका जीवन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और विकास उन्नति और लक्ष्य की दौड़ कभी भी कहीं से भी आरम्भ कि जा सकती है | 
  • धन , वैभव , स्तर गरीबी आमीर और समाज ,समस्याएँ आपके लक्ष्य में बाधक नहीं हो सकती क्योकि उनके मध्य से आपकी लक्ष्य के प्रति ललक और प्रयत्न और सजीव और सशक्त होगा | 
  • आप अपने कार्यों और उद्देश्यों को अपने जीवन में स्पष्ट  रखें और समयानुसार उन्हें दोहराते रहें जिससे आप अपने उद्देश्य के प्रति एक दिन अवश्य जाग्रत हो जायेंगे | 
  • वैभव धन ,और संशाधनों कि बहुतायत आपको यदि अपने उद्देश्यों की और जाने से रोकती है तो आप सबसे अपने को अलग मान कर स्वयं के विकास में लगें नहीं तो आपका आत्मविश्वास ख़त्म हो जाएगा | 
  • जीवन कि हर विपरीत परिस्थिति आपके लिए एक बड़ी सफलता के घोष का प्रवेश द्वार है आप उससे विचलित हुए बगैर धीरज के साथ समय का इन्तजार और श्रेष्ठ कर्त्तव्य  के साथ अपनी जगह खड़े रहें कल आपका ही होगा | 
यही से आरम्भ होगी जीवन कि वह दौड़ जो आपको अतुलनीय सिद्ध कर देगी  | 



Monday, February 3, 2014

आत्म नियंत्रण  और सफलता

आज हम नवीन युग में जी रहे है  नई तकनीकें है ,उपभोग केलिए अनगिनत सामिग्री है सम्पूर्ण विश्व
 हाथों में है अनगिनत रिणात्मक धनात्मक  जानकारियां है  और  आदमी अपने अनुसार उनका प्रयोग
  करके अपने संतोष के स्तर  को  बनाये रखना चाहता है ,परन्तु सबसे बड़ी समस्या यह है कि तमाम प्रयत्न  करने के बाद भी असंतोष,हताशा , अधूरापन और अनमना मानसिकस्तर ये सब स्थितियां  तेजी से बढ़ रही है !विकास ,शांति , कुछ श्रेष्ठ करने  की चाह और अपनी  पहिचान  की  खोज में अनवरत प्रयत्न करता आदमी   पूर्णता पाने में बार बार अक्षम सा जान पड़ता है!
  विकास ,परिवर्तन और तेजी से बदलते परिवेश में हजारो उपयोग कि वस्तुओं के बाद भी हम स्वयं  कि शक्तियों को और से और अधिक प्रयोगित करना चाहते है रोज नई नई कामनाएं रोज नई उपलब्धियां और रोज आधे अधूरे से परिणाम हमारे मन मष्तिष्क को झकझोर  कर रख देता है फिर नए लक्ष्य के लिए हम चलने लगते है एक अज्ञात दिशा की ओर ,और फिर कामनाएं फिर अंधी दौड़ और फिर वे अस्पष्ट  सी उपलब्धियां जीवन को पूर्ण नहीं होने देती और मन सदैव यही कहता  रहता है कि वह कुछ कर नहीं पाया । 
मित्रो चाहे स्त्री हो या पुरुष हमें अपनी  स्वतंत्रता कि सीमाएं तय करनी होंगी ,हमे यह जानना होगा कि किस सीमा के बाद हम स्वयं को पूर्ण नियंत्रण में रखें हिन्दू धर्म के अनुसार स्पष्ट कहा गया है कि स्त्री या पुरुष अति स्वतंत्रता के स्थापना सम्पूर्ण अस्तित्व बिगाड़ बैठते है ,कई महा पुरुष यह मानते है कि शक्ति केस्त्रोत को स्वयं के आत्म नियंत्रण में रखना अति आवश्यक है जिससे हम जीवन की तमाम उपलब्धियोंसफलता को एक ऐसे क्रम में संयोजित कर देते है जिससे रिणात्मक विषय भी हम पर विपरीत प्रभाव नहीं डाल पाते जीवन में स्वयं के नियंत्रण  की प्रक्रिया में निम्नाकित तथ्य महत्वपूर्ण है | 

  1. जीवन को नियंत्रण में बनाये रखने के  लिए अपने उद्देश्यों को स्प्ष्ट रखें और उन्हें समयानुसार जल्दी जल्दी दोहराते  रहें  और जीवन का हर क्रियान्वयन पर यह विचार  अवश्य करते  रहें कि वह  आपके उद्देश्यों के विपरीत न हों | 
  1. विकास !परिवर्तन और तकनीकी शिक्षा को युग के साथ स्वीकार  किया जाए मगर अपने मन मष्तिष्क में यह स्पष्टरखें कि वो कोई कार्य नहीं करें जिसमें आपका मन मष्तिष्क आपको सहयोग न दें | 
  1. आत्म नियंत्रण के लिए ही नहीं वरन जीवन की प्रत्येक   सफलता के लिए महत्वपूर्ण यह है कि हम  स्वयं को एकाग्र  रखने कि चेष्टा अवश्य करें यह ध्यान रखें कि  अपने उद्देश्यों के प्रति जितना जल्दी  एवम जितना अधिक एकाग्र होने  की कला  हम सीख लेंगें सफलता उतनी ही जल्दी हम प्राप्त कर सकते है | 
  1. जीवन  की हर सोच पर और क्रियान्वयन के अच्छे और बुरे पक्ष पर पहले विचार  आवश्यक है 
  1. अपने मूल उद्देश्यों से अपनी सोच और क्रियान्वयन को जड़ें 
  1. गलतियां विचार और संकल्प के संगम से आप स्वयं को एक दिन सभी विकारों से कर है | 
बहुत  से विचार है और सबका  सार भूत सत्य  यह है कि आपका अपने मन मष्तिष्क और अपनी आत्मा के स्पंदन और क्रियान्वयन पर जितना अधिक और जितना सशक्त नियंत्रण होगा आपकी सम्पूर्ण सफलता भी उतनी ही ज्यादा सुनिशित  होगी | जीवन  की सारी क्रियाओं  पर नियत और सुनियोजित विचारो  के साथ किये हुए समस्त कार्य और नियंत्रण आपको अवश्य कामयाबी के शीर्ष पर पहुंचा देगा | आज हम नवीन युग में जी रहे है  नई तकनीकें है ,उपभोग केलिए अनगिनत सामिग्री है सम्पूर्ण विश्व

 हाथों में है अनगिनत रिणात्मक धनात्मक  जानकारियां है  और  आदमी अपने अनुसार उनका प्रयोग
  करके अपने संतोष के स्तर  को  बनाये रखना चाहता है ,परन्तु सबसे बड़ी समस्या यह है कि तमाम प्रयत्न  करने के बाद भी असंतोष,हताशा , अधूरापन और अनमना मानसिकस्तर ये सब स्थितियां  तेजी से बढ़ रही है !विकास ,शांति , कुछ श्रेष्ठ करने  की चाह और अपनी  पहिचान  की  खोज में अनवरत प्रयत्न करता आदमी   पूर्णता पाने में बार बार अक्षम सा जान पड़ता है!
  विकास ,परिवर्तन और तेजी से बदलते परिवेश में हजारो उपयोग कि वस्तुओं के बाद भी हम स्वयं  कि शक्तियों को और से और अधिक प्रयोगित करना चाहते है रोज नई नई कामनाएं रोज नई उपलब्धियां और रोज आधे अधूरे से परिणाम हमारे मन मष्तिष्क को झकझोर  कर रख देता है फिर नए लक्ष्य के लिए हम चलने लगते है एक अज्ञात दिशा की ओर ,और फिर कामनाएं फिर अंधी दौड़ और फिर वे अस्पष्ट  सी उपलब्धियां जीवन को पूर्ण नहीं होने देती और मन सदैव यही कहता  रहता है कि वह कुछ कर नहीं पाया । 
मित्रो चाहे स्त्री हो या पुरुष हमें अपनी  स्वतंत्रता कि सीमाएं तय करनी होंगी ,हमे यह जानना होगा कि किस सीमा के बाद हम स्वयं को पूर्ण नियंत्रण में रखें हिन्दू धर्म के अनुसार स्पष्ट कहा गया है कि स्त्री या पुरुष अति स्वतंत्रता के स्थापना सम्पूर्ण अस्तित्व बिगाड़ बैठते है ,कई महा पुरुष यह मानते है कि शक्ति केस्त्रोत को स्वयं के आत्म नियंत्रण में रखना अति आवश्यक है जिससे हम जीवन की तमाम उपलब्धियोंसफलता को एक ऐसे क्रम में संयोजित कर देते है जिससे रिणात्मक विषय भी हम पर विपरीत प्रभाव नहीं डाल पाते जीवन में स्वयं के नियंत्रण  की प्रक्रिया में निम्नाकित तथ्य महत्वपूर्ण है | 

  1. जीवन को नियंत्रण में बनाये रखने के  लिए अपने उद्देश्यों को स्प्ष्ट रखें और उन्हें समयानुसार जल्दी जल्दी दोहराते  रहें  और जीवन का हर क्रियान्वयन पर यह विचार  अवश्य करते  रहें कि वह  आपके उद्देश्यों के विपरीत न हों | 
  1. विकास !परिवर्तन और तकनीकी शिक्षा को युग के साथ स्वीकार  किया जाए मगर अपने मन मष्तिष्क में यह स्पष्टरखें कि वो कोई कार्य नहीं करें जिसमें आपका मन मष्तिष्क आपको सहयोग न दें | 
  1. आत्म नियंत्रण के लिए ही नहीं वरन जीवन की प्रत्येक   सफलता के लिए महत्वपूर्ण यह है कि हम  स्वयं को एकाग्र  रखने कि चेष्टा अवश्य करें यह ध्यान रखें कि  अपने उद्देश्यों के प्रति जितना जल्दी  एवम जितना अधिक एकाग्र होने  की कला  हम सीख लेंगें सफलता उतनी ही जल्दी हम प्राप्त कर सकते है | 
  1. जीवन  की हर सोच पर और क्रियान्वयन के अच्छे और बुरे पक्ष पर पहले विचार  आवश्यक है 
  1. अपने मूल उद्देश्यों से अपनी सोच और क्रियान्वयन को जड़ें 
  1. गलतियां विचार और संकल्प के संगम से आप स्वयं को एक दिन सभी विकारों से कर है | 
बहुत  से विचार है और सबका  सार भूत सत्य  यह है कि आपका अपने मन मष्तिष्क और अपनी आत्मा के स्पंदन और क्रियान्वयन पर जितना अधिक और जितना सशक्त नियंत्रण होगा आपकी सम्पूर्ण सफलता भी उतनी ही ज्यादा सुनिशित  होगी | जीवन  की सारी क्रियाओं  पर नियत और सुनियोजित विचारो  के साथ किये हुए समस्त कार्य और नियंत्रण आपको अवश्य कामयाबी के शीर्ष पर पहुंचा देगा | 

Sunday, February 2, 2014

पूर्ण सफलता और संतोष के लिए जीवन की प्राथमिकता पहले तय करें

पूर्ण सफलता और संतोष के लिए जीवन की प्राथमिकता पहले तय करें



जन्म के समय मै रोया नहीं डॉक्टर और सब परेशान थे ,कही कोई अनहोनी बच्चे के साथ और उसकी माँ के साथ न हो जाए ,प्रयास किए गए मुझे उल्टा करके थपथपाया (मारा)गया और उन प्रयासों से मै रोने लगा |परन्तु मुझे बाद मै समझ आया की मै अपनी भूख और आवश्यकताओं के लिए रो रहा था , और कब ये आवश्यकताएं मेरी जरूरत बन कर बड़ी बड़ी महत्वाकांक्षाओं में बदल गई मै समझ ही नहीं पाया |मानव के जन्म से ही यह स्थिति बनने लगती है जिनसे ताल मेल बिठा कर हम अपनी आवश्यकताओं और महत्वाकांक्षाओं का ऐसा जाल अनजाने मे बचपन से बुन लेते है जिसकी आपूर्तियों केलिए हम जीवन भर केवल समायोजन ही करते रहते है और यही हमारे लिए दुःख और असंतोष का कारण बन बैठता है |
जीवन बहुत ही संवेदन शील विषय है |यहाँ हर कार्य की तुलना में कई गुनी प्रतिक्रियाएं होती है ,क्योकि हम गति शील परिस्थितियों से जुड़े लोगो की बात करते है |यहाँ हर सार्थक कार्य पर हम धनात्मक होकर पुरस्कृत होते है वही अपनी हर त्रुटि पर हमे बहुत ज्यादा सजाएं मिलती है क्योकी जीवन जिस प्रकृति पर आधारित है उसमे क्षमा है ही नहीं |अर्थात जीवन जीना जिस कला का नाम है उसका हर कदम फूँक फूँक कर और सोच कर ही रखना होगा |यदि हम अपने इस प्रयोजन मे सफल हुए तो निश्चित रूप से हमारा जीवन अवं हमारी मृत्यु दोनों ही सार्थक हो जायेंगी और हम जीवन पर गर्व कर सकेंगे |ध्यान रहे जिसका जीवन सफल रहा मृत्यु उसकी ही सफल होगी अतैव जीवन के हर कर्तव्य दायित्व और अधिकार को पूर्ण भाव से जीना चाहिए |

अब यह महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जीवन कि प्राथमिकतायें तय कर उनपर द्रणता से अमल किया जाएऔरउसके लिए आवश्यकता है स्वयं के आत्म नियंत्रण की |मै यहाँ कुछ सुझाव प्रेषित कर रहा हूँ शायद कही यदि एक भी बिन्दु काम आया तो मै अपने इस कार्य की सार्थकता समझूंगा |

  1. अपनेजीवन के आधारभूत लक्ष्य`और आदर्श बनाइये और उनके क्रियान्वयन के लिए हर रोज एक नियत समय विचार कीजिये |
  2. समय सारणी बना कर स्वयम को कार्यों में लगाए अन्यथा हर काम समय के बाद होगा जो पूर्ण संतोष का सुख छीन लेगा ,यदि आपको हर सफलता समय के बाद मिली है तो आज से ही आपको समय के साथ समायोजन कर चलने का संकल्प करना चाहिए |जीवन में सबसे ज्यादा बहुमूल्य समय ही तो था |
  3. एक कठोर किंतु मन पसंद अनुशासन बनाए और कोशिश हो कि हम उसका पालन कर पायें और समयानुसार इस पर विचार करते रहे |
  4. भोतिक साधनों कि आपूर्ति जीवन के लिए एक सीमा तक आवश्यक है कही ये आपूर्ति आपके लक्ष्य और आदर्शों के विपरीत होकर आपका ही उपयोग ना करने लगे |धन वैभव और भोतिक आपूर्तियाँ आपको शरीर समाज और स्तर में ऊंचा दिखा सकती है मगर धन केवल शरीर को सुख दे सकता है मगर मन के सुख के लिए धन और आपके लक्ष्य और आदर्शों के सयोग कि पूर्ति होनी चाहिए|
  5. ज्ञान ,स्तर और विवाह जीवन के अकाट्य क्रम रहे है जिसने भी इसके क्रम को तोड़ने कि कोशिश की वह स्वयं उसके लिए बड़ी समस्या बन गया है |पहले श्रेष्ठ ज्ञान और आधुनिक व वैज्ञानिक सोच, और विद्यार्थी बन करअध्ययन में गहरी पकड़ बनाए ,यदि यह कार्य पूर्ण हुआ तो अच्छा जॉब आपको स्वतः अच्छा स्तर देगा और स्तर के बाद आपका विवाह आपके जीवन की आपूर्ति में धनात्मक योगदान देगा |
  • आपकी प्राथमिकताओं में वर्तमान का क्रियान्वयन अतीत के सबक और भविष्य की स्वर्णिम योजना होनी चाहिए साथ ही उसे कड़ी मेहनत से जीतने कॉ संकल्प भी महत्व पूर्ण है |
  • जीवन के लिए व्यक्ति ,सामायिक आपूर्तियों के साधनों ,और छोटे लक्ष्य बनाना सबसे बड़ा अपराध माना गया है आप लक्ष्य इतना बडा बनाए कि जिसमे आपके सारे स्वप्न और आदर्श समां सकें|
हमारी प्राथमिकताएं बहुत बड़े स्वरुप में हमे प्रेरित करती रहती है कार्यों की सही दिशा केलिए यदि उनका सफल और समय बद्ध तरीके से क्रियान्वयन सम्भव हुआ तो हमारी सफलता पूर्व से निश्चित हो जाती है |जब हम रोते नही है तो रुलाकर हमे जगाया जाता है और जब हम कुछ सीखना चाहते है तो हमेंअपने अपने आचरण के अनुरूप व्यवहार सिखाया जाता है जबकि हमारे जीवन की समस्यायें ,लक्ष्य और दिशा सब अलग ही होती है|

आज इस विषय के निष्कर्ष पर यही कह सकते है कि जीवन की प्राथमिकताएं तय करें ध्यान रखें जब कभी भी आप जीवन की सार्थक पहल आरम्भ करेंगे तो निश्चित ही अनेक समस्याये और अनेक ऋणात्मक विचारों वाले लोग ,समय और व्यवधान बनकर आपका मार्ग रोकने कि कोशिश करेंगे मगर आपको जीतना है |आप जीवन कि बाजी के अकेले विजेता है| येभाव एक बार पैदा करके तो देखें फिर सब कुछ आपके लिए सम्भव है और आपही मानवीयता को एक नयी दिशा देंगे |

शेष फिर

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...