हम सामान्य जीवन में केवल अपने अतीत को कोसते और अपनी कमियों का रोना रोते रोते अकर्मण्य बने रहनाचाहते है ,ऐसे में हम एक भीरु भावना से धर्म का अँधा अनुकरण करने को भी तैयार हो जाते है, जबकि हम अपनीआत्मा अपने परिवेश और अपनी ही कमियों के शिकार रहते है |परिवर्तन , नई सोच और सब कुछ पैदा करने काजोश और अभिमान हम स्वयं में उत्त्पन्न नहीं कर पाते और हमेशा नकारात्मक बने दीन हीन स्वरुप में स्वयं को रखदेते है जबकि ये सब हमारा पैदा किया ही होता है |
भारतीय धर्म दर्शन ने बताया कि
सो परत्र दुःख पावहि ,सर धुन धुन पछताय
कालहि, कर्महि , ईश्वरही ,मिथ्या दोष लगाय
अकर्मण्य पुरूष स्वयं अपने कर्म एवं संकल्प शक्ति अनभिज्ञ दीन हीन बना दूसरों के सहारों की कल्पना करतारहता है ,उसपर समय बहुतायत में होता है ,वह हर व्यक्ति का आंकलन करता रहता है, हर जीत और समाज केकिसी उत्कर्ष पर` बैठे व्यक्ति को देख कर उसका आलोचक या अपने को कोसने वाला बन बैठता है ,परिणाम उसेदुनिया भर की परेशानिया घेर लेती है और उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व प्रश्न वाचक और नकारात्मक हो जाता है |वह समय को ईश्वर को और कर्म को दोष देता रहता है जबकि ये उसी ने बोया था |
मित्रों कमोवेश हम सब की स्थिति कभी कभी इन चीजो से प्रभावित अवश्य होती है और हम अपना जीवन काउद्देश्य ,कठिन परिश्रम की ताकत और सर्वश्रेष्ठ होने का गर्व भी भुला कर उन स्थितियों और व्यक्तियों के लिएपरेशान होते है जो केवल हमारा शोषण ,दुरुपयोग और हमे नाकारात्मक बनाने में लगे रहते है ,हमे लगता है किइनके बिना हमारा जीवन अधूरा रह जाएगा ,जबकि यहाँ हम अपनी सकारात्मक सोच ,आपकी परवाह करने वालेलोगोंके प्रेम को एवं अपने अन्दर छिपी अमोघ शक्ति को भुला देते है और स्वयं कमजोर होने लगते है |
एक पक्ष यहाँ भी महत्वपूर्ण है कि हमारे नकारात्मक होने ,दुःख पाने और हारने के हर पहलू पर हमारे कुछनिकटतम लोग जरूर परेशान होते है और आपकी सकारात्मक और नकारात्मक उपलब्धिया उन्हें प्रभावितअवश्य करती है यह बात और है कि आप उनकी परवाह न करें मगर इनके नकारात्मक -सकारात्मक प्रभावअवश्य होंगे |आपकी क्रिया शीलता में स्वार्थों के साथ परमार्थ कि भावना भी होनी चाहिए थी |आपको यह आंकलन करना है कि किस हद तक स्वार्थी होना है आपको और इसके परिणाम क्या होंगे|
संकल्प कि शक्ति इतनी प्रबल है कि वह कुछ भी कराने में सक्षम है ,आप संकल्प के साथ अपने सुख के साधनों व्यक्तियों और नकारात्मक और थोड़े समय के सुख देने वाली स्थितिया और व्यक्ति पैदा करसमय साधन शरीर का अपव्यय कर सकते है, मगर ध्यान रहे कि हम इसेस्वयं को धोखा देने के अलावा कुछ न माने |संकल्प को नकारात्मक विचार और व्याक्तियों से दूर रखें |जिससंकल्प के साथ समयबद्ध क्रियाशीलता नहीं हो वह स्वयं आपको अपराध बोध का विषय बना देगा|
आवश्यकता है उस क्रियान्वयानता की जो हवा के प्रचंड वेग, सूर्य के तेज और अपनी क्रियाशीलता से सम्पूर्णइतिहास को बाँध दे और आपके व्यक्तित्व में वह अपरमित शक्ति है बस केवल अपने क्षणिक सुख ,औरनकारात्मकता से घिरे व्यक्तियों से अपने को अलग करके संकल्प की सोई हुई शक्ति को जगाने कि आवश्यकता है
पिछले दशक में युवाओं के साथ बहुत बड़े बड़े सामाजिक परिवर्तन हुए ,और इस समय लगभग ५ लाख युवाओं ने आत्महत्याएं की जो समाज के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है|युवा तो किसी समाज संस्कृति और सभ्यता कि नींव होता है ,उसमे अपरमित शक्ति होती है ,वह तूफानों को मोड़ने कि शक्ति रखता है और उसे ऐसा ही होना चाहिए | ख़राब समय भी निकल ही जाएगा ,आगामी भविष्य यह संकल्प लिए खड़ा है क़ि आपके नए जीवन का नव आरंभ आज से ही हुआ है ,एक बार फिर सकरात्मकता का संकल्प लेकर आगे बढ़ों समय आपको अमर-सफल सिद्ध कर देगा ]
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि
अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...
No comments:
Post a Comment