Monday, December 14, 2009

जीवन का सत्य और सफलता

हमारा सारा जीवन इस उधेड़ बुन में निकल जाता है की हमें क्या अच्छा लगता है हमें शरीर, स्तर ,और सामाजिकपारिवारिक आवश्यकताएं जैसे ही महसूस होती है हम उनकी प्राप्ति के प्रयत्न में लग जाते है और इस तमाम प्रयत्नशीलता में हमे जीवन का बड़ा भाग यूँ ही बिता देना होता है और जैसे ही हम एक आपूर्ति करते है वैसे ही अनेक समस्याये ,कमियां हमें मुंह चिडाने लगती है | सौंदर्य ,बल ,उत्कृष्ट होने का भाव , धन , वैभव,शारीरिक सुखऔर सारी परिस्थितियां अपनी आपूर्तियों के लिए हमारा उपयोग करती रहती है और हम जीवन में स्वयं के लिए आत्माके लिए क्या अच्छा और जरूरी था समझ ही नही पाते|


हम सब इस प्रयत्न में जुटे है कि हमें क्या चाहिए क्या करके हमें अच्छा लगेगा क्या और हर बार नया नयाकरके हम झूठी खुशियों का हुजूम खडा करते जाते है ,वही हम खोखले ,आधार हीन और आदर्शों से समझौता करनेवाले बन जाते है फिर कहाँ तक हमें जीवन के मूल्यों से आदर्शों से समझौता करना पड़ता है इसका कोई हिसाब हीनही रहता|, हम हर काम जिसे अपने सुख का एकमात्र साधन मानकर चलने का प्रयत्न करते है वही हमें अपराधबोध बना दिखाई देने लगता है ,हमारा विशवास मूल्य और प्राकृतिक खुशी सब एक बनावटी फर्ज अदायगी ओर नाटक जैसी बन जाती है जिससे केवल खोखला ,निराशा युक्त और अधूरा व्यक्तित्व हमारा वर्त्तमान भविष्य औरअतीत बन जाता है |
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आपको यह तय करना है कि आपके लिए आख़िर जरूरी क्या था ,और आपका दायित्व कर्तव्य बोध क्या यह समझपाया है कि आप अपनी आंतरिक खुशी के लिए क्या कर रहे है |
हमको यह जानना जरूरी है आख़िर हमारी आवश्यकताएं क्या है , कहीं हम स्वयं को वर्तमान की छोटी छोटी उपलब्धियों के लिए व्यर्थ तो नही गवां रहे निम्नांकित बिन्दु आपको कहीं सहयोग कर सकते है |
  • पहले अपनी प्राथमिकताये तय करें यह जाने कि क्या हमे चाहिए क्या हम प्रयत्न करें और क्या हमारे जीवनके मूल सिद्धांत है ,इनमें हम किस स्तर तक समायोजन कर सकते है |
  • शरीर परिवार और सामाजिक आपूर्तियों की पूर्ति में कही अपने मन सिद्धांतों और अपने उद्देश्य को तो दांवपर नहीं लगा रहें
  • हर व्यक्ति के मिलने के बाद मन विचारों और बाद कि सोच में अपराध बोध पनपने लगे तो ऐसा सम्बन्धव्यक्ति आपकी हर विकास गति को रोक देगा |
  • विचारों को इतना सशक्त और प्रभावी बनायें कि हर उपलब्धि आपको स्वयं मिलाती दिखे इसमे यह महत्वपूर्ण है कि थोड़े समय के सुख के साधनों कि बजाय हमें अंतरात्मा कि खुराक या संतोष के लिए सोचनाचाहिए
  • आप दूसरों से सुख की कल्पना को जोड़ कर ख़ुद एक नकारात्मक ऊर्जा पैदा कर रहें है यहाँ हर आदमीआपसे केवल खेल सकता है ,लूट सकता है या स्वयं आपके लिए छलावा बन जाएगा क्योकि आप अपनीवासनाओं के वशीभूत केवल सुख का आधार उसे मान बैठे है जबकि अंतरात्मा के सत्य से अपनी खुशीअंदरसे पैदा करने की आवश्यकता थी |और आप उसमे सशक्त भूमिका निभा सकते थे |
  • शरीर और बाह्य जरूरतों को आप उद्देश्य न बनाये अनभिज्ञ के स्वप्नों में अपना वर्त्तमान नष्ट न करें येकमियां आपकी अंतरात्मा को बहुत कमजोर साबित कर देगी |
  • हमे अपने आत्मा के भाव को जानना है महसूस करना है जब तक हम स्वयं से धोखा करते रहेंगे तब तकशान्ति और विकास की कल्पना हमें कुछ नही दे सकेगी |
कहने का आशय यह है की आप अपने जीवन को बहुमूल्य मान कर अपने लिए अपनी अंतरात्मा में लिए औरआपके लिए क्या अच्छा है इसके निर्णय हेतु आप स्वयं को प्रश्न वाचक बना कर यह तय करें कि आप अपने लिएअपनी अंतरात्मा के लिए क्या कर रहे है क्या आप उस दीर्घ कालिक सुख के लिए कितना समय अपने को दे रहे हैजब आप जीवन को इस प्रकार की सकारात्मकता देने लगेंगे तो जीवन स्वयं सफल हो जाएगा|

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