Friday, September 18, 2009

शिक्षा दिवस ----व्यंग

शिक्षक-----शिक्षक दिवस का क्या महत्व है
विद्यार्थी ------सर साल भर शिक्षक
विद्यार्थी को पीटता है
और शिक्षक दिवस पर सरकार
शिक्षक की पिटाई कराती है

Tuesday, September 15, 2009

आप खुश है यह नहीं आपसे कितनेलोग खुश है यह महत्त्वपूर्ण है

मेरे प्यारे दोस्तों एक मेसेज था कि
खूबसूरती यह नहीं कि आप जीवन में कितने खुश है
खूबसूरती इस बात में थी कि आपसे कितने लोग खुश है

अनाम मसेज ने आत्मा को झकझोर के रख दिया सोचा यह कि जिसने यह मसेज किया होगा कितनी बड़ी आत्माऔर निस्वार्थ प्रेम का मायने होगा जिसने जीवन के सम्पूर्ण दर्शन को कितने सहज रूप में परिभाषित करदिया,एक बार आत्मा की गहराई से मसेज भेजने वाले को सलाम करते हुए मै मूल भाव पर आता हूँ |

जीवन केवल एक बहुत तेजी से भागती हुई गाडी है ,जिसमे तेजी से ही सफर करना होता है और अपना स्थानसुविधा और आदर्श स्वयं बनाने होते है |
| ,यहाँमुख्य बात यह कि समय की कमी और अपने ही स्वार्थों की होड़ मेंभाग रहा इंसान कभी दूसरे के सुख पर विचार ही कहाँ कर पाया है |उसे अपने तन धन और अपने सुख कीअनुभूतियों के लिए ही रोना कम पड़ता है, वह दूसरों के लिए सोच ही कहाँ पाता है |गाडी की गति बढ़ जाती है जीवनहारने लगता है और हारने , खोने छूटने का भय सताने लगता है जबकि ये सब होना अवश्यम्भावी था |

आहार ,निद्रा और मैथुन आवश्यक हो सकते है मगर ये जीवन नहीं हो सकते ये जीवन है तो केवल पशुओं के |
इंसान में इन सबके अलावा अथाह और निस्वार्थ प्रेम ,सह्ष्णुता ,दया ,क्षमा ,दूसरे का सुख से पैदा संतोष ,औरबलिदान के लिए हर सुख की आहुती ऐसे गुण है जो इंसान को ईश्वरीय गुणों से परिपूर्ण करते है |

हमारा सारा आकलन इस बात पर निर्भर है की हम उस समाज अपनों और हर अजनबी को क्या निस्वार्थ औरअथाह प्रेम दया क्षमा और सुख देपाये है अथवा नहीं ?यदि हम केवल अपने निहित स्वार्थों से अपने तन मन औरभौतिक सुखों की आपूर्ती का केन्द्र रह गए तो निश्चय ही जीवन हमे अनेक भौतिक सुखों का ढेर अवश्य बना देगामगर जीवन कभी भी सुख के चरम( level of satisfaction) का मायने नहीं बन पायेगा | जब हम केवल अपनीआपूर्तियों से जुड़े रहेंगे तो जीवन में सुख का आशय जानना बहुत मुश्किल होगा क्योकि हम जिसे सुख समझ रहेहोते है वो शायद हमारी शारीरिक आपूर्तियों के आलावा कुछ नहीं होता मेरा मानना है कि अधिकांश समाज अपनीविभिन्न हवसों
को उपलब्धि का नाम दे बैठता है , जबकि सुख तो कई जन्म उसकी कल्पना से ही परे होता है |प्यारेदोस्तों जीवन एक बहुत परिष्कृत कला है जिसे वही जी पाता है जो इसका मूल भाव जान पाता है|

आपसे आपके अपनों ने क्या पाया ,सुख दुःख तिरस्कार अविश्वास या अथाह प्रेम ,आपका आकलन समय करेगाफिर आपको अपने जीवन कि परिक्षा कि कांपी ख़ुद जांचनी होगी ,वहां आपको स्वयं सजा या पुरूस्कार मिलेगाआपका सावधान होना आवश्यक है |


my dear thanks

हर नया इंसान बेईमान नहीं है |

हर गरज मंद मतलबी तो नहीं
प्यारे दोस्तों जीवन और दुनिया बहुत छोटी है यहाँ आपको अपने अनुसार सब मिलता रहता है मगर आप बार बारईश्वर के दिए हुए संबंधों ,उसके साधनों ,और समय की उपलब्धियों पर अविश्वास करते रहते है, जबकि समयपरिस्थितियां और आप पर इन चीजों को प्राप्त करके भी उनका उपयोग नहीं कर पाते, कारण है आपकी आत्मा काअविश्वास ,अधूरा पन ,और साथ ही आप जीवन को बहुत लंबा समझ कर
hur सम्बन्ध को चैक करने के लिए छोड़ देते है,हम पर समय ही कहाँ होता है इतना |इंसान का मूल स्वाभाव निस्वार्थ प्रेम,अपनत्व और सबकुछ लुटा देने में निहित था |प्रकृति ने कब आप परअविश्वास किया ,आपने जिनपर विशवास किया वे आपके शोषक होगये, और इस समाज से ही आपने बहुत सीअविश्वास की कहानियाँ सीख ली |प्यारे मित्रों जीवन विशवास प्रेम और अपनत्व का नाम है जिसमे सब कुछलुटाकर भी अपने आपको बड़ा बहुत बड़ा बनाया जा सकता है |
एक बार उसकी हर शै से अथाह और निस्वार्थ प्यार करना तो सीखें |

Sunday, September 13, 2009

धर्म इंसान बनने की विधा है

मै सिख हूँ ,इसाई हूँ,मुसलमान हूँ ,या हिंदू हूँ ,और यदि हिंदू हूँ तो मै गायत्री का उपासक हूँ ,या आर्य समाज मानने वाला हूँ या शिव शक्ति या एकात्मक ब्रह्म को मानने वाला हूँ अथवा मै किसी और संप्रदाय पर अमल करने वाला हूँ |
प्यारे मित्र यह सब धर्म कहाँ है ये तो मत है विचार धारा है या स्वयं को विरासत में मिली कोई पद्धति है यह धर्म कैसे हो सकता है, यह तो वह वाहिका है जिसके सहारे हम अपने विश्वास एवं एकाग्र होने की प्रवृति को बांधते है औरइसका स्वरुप बहुत ही छोटा और धर्म की वाहिका हो सकता है सम्पूर्ण धर्म नहीं |

गुरु साहब ,बाइबल कुरान ,या वेदोक्त अध्ययन करके क्या मै अनंत प्रेम, परमार्थ , दया ,और दूसरे के सुख कासाधन बन पाया या नहीं ,क्या मैंने इन सब का अध्ययन कर उसपर अमल किया, यदि नहीं तो हमें पुनर चिंतन करअपनी एक आदर्श दिशा बनाने की आवश्यकता है जिसके सहारे हम वास्तविक धर्म का अनुशरण कर सकें |

प्यारे मित्र आप हिंदू धर्म आर्य समाज गायत्री और किसी भी हिंदू पद्धति से जुड़े हों आपका मूल ग्रुन्थ वेद ही है
जिसमे वैज्ञानिक आधार पर जीवन जीने की कला दर्शाई गई है ,पशु ,राज्य ,कर्म काण्ड ,ज्योतिष ,गृह गणना
और सूर्य या चंद्रमा का अस्त और उदय होना बड़ा चालित यन्त्र जैसा है जिसे तथ्यों द्वारा सिद्ध किया जा सकता है
और जिसे सिद्ध किया जा सके वही विज्ञान भी है |

मेरा मानना है कि यदि आपमें अथाह प्रेम ,दया कर्तव्य बोध ,और दूसरों के दुःख में सहयोग करने कि कला है तोआप धार्मिक है आप अपने कर्तव्य ,अपने समाज ,बलिदान कि भावना और जिज्ञासु का भाव रखते है तो आप सेबड़ा धार्मिक हो ही नहीं सकता आप कहीं भी हो इन गुणों से सारा निष्कर्ष स्वतः स्पष्ट हो जाएगा|

धर्म तो जीवन जीने कीवह कला हैजिसमें यह छुपा है कि जीवन को और अधिक सुखी और पूर्णकैसे बनाया जाएबिना समस्याओं के पूर्ण संतोष का मायने |

क्यों लगते है कुछ लोग अपने

जीवन के साथ आदमी को निरंतर जीना पड़ता है बड़ी संजीदगी से और बहुत बड़े जीवन में उसे अनगिनत लोगों सेमिलना होता है कुछ होते है जो सामान्य बनकर भुला दिए जाते है कुछ काम के साथ ही अपना अस्तित्व रख पातेहै ,और कुछ संबंधों में स्वतः पैदा होते है |मगर आज मै उन संबंधों की बात कर रहा हूँ जो बेनाम है उनका उनकाप्रभाव मनः मष्तिष्क पर इतना अधिक होता है जिसे समझ पाना सीमा में रखना और अच्छे बुरे का विचार करनासम्भव ही नहीं होता है क्योकि वे जीवन चक्र और पूर्व जन्म के अनसुलझे सम्बन्ध है जो इस जन्म में अपनीआपूर्ति चाहते है |आदमी बार बार यह समझने का प्रयत्न अवश्य करता है की वह कहीं ग़लत तो नहीं है ,क्या वहस्वार्थी तो सिद्ध नहीं होरहा आदि बहुत से प्रश्न अनसुलझे ही खड़े रहते है सबके बीच केवल एक भाव रहता है देने कासब कुछ देने का ,शायद ये सब बहुत दुर्लभ और ईश्वरीय प्रदत्त स्थिति है |

सामान्यत जो सम्बन्ध हमारे काम के साथ पैदा होते और ख़त्म होते रहते है उनका अस्तित्व प्रभाव हीन ही रहता है,जबकि कुछ सम्बन्ध बिना किसी परिचय के एक नजर में ही तय हो जाते है फिर तो समय परिस्थिति के अनुरूपहमे वही व्यवहार करना होता है जो समय मान्यता और आदर्शों के अनुरूप होता है जबकि उससे कई गुना प्रेम मनके अन्दर ही दबा रह जाता है क्योकि वह समय के और आदर्शों के अनुरूप सही नही लगता |

जीवन का गतिशील चक्र जीवन तरंगों को जो ध्वनी तरंगे गतिमान करती है उनके अणु परमाणु एक गति मै हीगतिशील होते है ,इनमे पोजेटिव नेगेटिव दौनों होते है पोजेटिव पोजेटिव की ओर और नेगेटिव नेगेटिव की ओरप्रभावित होते है ,यहाँ विरोधी स्वाभाव वाली तरंगे एक दूसरे के मध्य वैमनस्यता ओर धनात्मक तरंगे अति प्रेमउत्पन्न करने वाली होती है ,ये बात और है की आदमी परिस्थिति का दास है उसे एक आदर्श रूप में जीवन जीनेका भान बना रहता है और वह इसके अनुरूप ही व्याव्हार करता है |

जीवन तरंगे प्रकृति का सत्य है वे सहज और अनंत प्रेम की पारा काष्ठा होती है, वही ईश्वर का स्वरुप भी है ,उसका रंगरूप आकार सम्पूर्ण ब्रहमांड से अधिक विशाल है और जिसमे सम्पूर्ण जीवन का सार भी है ,सम्पूर्ण पृकृति सेनिस्वार्थ प्रेम और हर जीव पर दया क्षमा और सहजता का व्यवहार इस प्रेम की प्रथम सीडी है ,और यहीं सेमानवीयता की पहली पाठ शाला अपना पहला अध्याय शुरू करती है ,और यही आदमी को सर्व श्रेष्ठ और इतिहासपुरूष बना देती है |
,
यही जीवन का सार भी है अनंत और सहज प्रेम

Saturday, September 5, 2009

हम सर्व श्रेष्ठ है,सुसुप्त शक्ति जगाइए

आदमी की इच्छाओं का कोई अंत ही नहीं है उसकी जितनी इच्छा पूरी होती हैं उनसे कई गुनी इच्छाएं फिर जन्म लेलेती है |वह इच्छाओं के लिए आजाद पंछी की तरह स्वप्न लोक में विचरण करता रहता है ,यहाँ किसी प्रकार कीकोई बंदिश नहीं है ,नही कोई व्यवधान बस दबी पिसी भावनाओं का खुला खेल शुरू हो जाता है ,स्वप्नों की बनावटीदुनिया|

हमें दुनिया की सारी खूबसूरती चाहिए ,पुरूष को स्त्री स्त्री को पुरूष|
हमें दुनीयाँ का सबसे धनवान व्याक्ति बनाना है |
हमारे पास ऐश का हर साधन होना चाहिए |
ज्ञान के क्षेत्र में हम सबसे आगे होने
चाहिए
ज्ञान के हर विषय में हमें पूर्णता चाहिए |
जीवन के हर उत्कर्ष पर हम ही श्रेष्ठ साबित हों |
हम कला विज्ञान और हर क्षेत्र में अतुलनीय दिखाई दें |
हमसे कोई भी व्यक्ति बराबरी का हो|
हम शक्ल अक्ल और सोंदर्य के अतुलनीय रूप हों|
हमसे ही नीचे सब अपनी सोच और स्तर बनाये रखें |
हमारा हर कार्य जायज और अनुकरण का विषय हो|
पूर्ण संतोष और भविष्य की हर अनभिज्ञता हमारे आधीन निर्णय करे|

मित्रों ऐसा ही कुछ हम सब अपने स्वप्न या विचारों में रख कर आगे बदने का प्रयत्न कर रहें है ,जबकि हमेंवास्तविक जीवन में सब कुछ सिद्ध करना होता है ,स्वप्न का वास्तविक रूप बड़ा अलग और विचित्र होता है ,वहजैसा हम पूर्ण भाव से कर्तव्य और प्रयत्न कर रहे होते है उसके अनुरूप ही होता है |हम यदि अपने स्वप्नों कोसाकार देखना चाहते है तो हमें उनके अनुरूप योजना और कार्य निर्धारण करना होगा ,ध्यान रहे कि आपकी हरइच्छा पूर्ण हो सकती है शर्त यह है कि आप अपने पूर्ण भाव से उसकी योजना बना कर अमल करें |

इतिहास उनके ही होते है जो अपने स्वप्नों को मूर्त रूप में प्रस्तुत कर पायें ,आपमें वही जोश वही जज्बा ,वहीसंकल्प पैदा करने की आवश्यकता है जिससे इतिहास ने आदमी के सामने बार बार घुटनें टेककर उसे अमर बनादिया है |मेरा विशवास है की आप अपने को सिद्ध कर देंगें बस एक बार स्वयं को सयोंजित कर समय को चिनोतीदेने हेतु अपनी शक्ति को जगाने की आवश्यकता है |

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...