हारी हुई जीत
२०/११/२० का दिन था माँ पिताजी की अचानक तबीयत अचानक तबीयत ख़राबहोगई
थी लोगों ने कहा कोरोंना हुआ है इसका कोई इलाज नहीं है भयानक बुख़ार खाँसी ,और छाती में गड़गड़ाहट थी,वैसे तो ताऊ चाचा और रिश्तेदार वही शहर में रह रहे थे
मगर ऐसी स्थिति में कोई देखने को भी नहीं आया चार दिन तक मुझे कोई खबर नहीं दी ,एक दिन पहले बहिन ने फ़ोन किया भैय्या जल्दी आजाओ माँ -पिताजी की तबियत ज़्यादा ख़राब है साँस नहीं ले पा रहें
जब तक में देहली से घर पहुँचा तब तक माँ और पिताजी अस्पताल में भर्ती हो गए थे पिताजी फ़ोन पर चिल्ला
कर बोलते रहे बेटा , बचा लो हमें ,यहाँ कुछ भी अच्छा नहीं है , तेरी माँ बेहोश पड़ी है ,उनको ओक्सीजन सिलेंडरतक नहीं मिल पा रहाहै कोई रेमडेसीवियर के इंजेक्शन लगने हैं डाक्टर्स से बात कर बेटा नहीं तो हम बचेंगे नहीं मिल पा रहा है बेटा बचा ले अपनी माँ को
बड़ी बहिन ज़ोर ज़ोर से रो रही थी, उसको बहुत समझाया और अपने एक दो दोस्तों के साथ डॉक्टर से मिलने
का प्रयत्न किया , परंतुसब प्रयत्न करने के बाद भी डॉक्टर से बात नहीं हो सकी ,एक मोहन कंपाउंडर मिला
जिसकी वहीं वार्ड में ड्यूटी थी , वो बोला १२ इंजेक्शन की आवश्यकता है नहीं तो बचना मुश्किल ही है ,जल्दी लाओ मैंने कहा भाई साहब बचा लो मैं बर्बाद हो जाऊँगा ,मैं सब कुछ करने को तैय्यार हूँ, एक बार मेरे माता पिताजी को बचा लो बस रोता जा रहा था मैं , मैं क्या करूँ ले आओगे तो लग जाएँगे नहीं तो वो तो मरना तय ही है,मैं निरुत्तर था ,अपना सिर पकड़कर ज़मीन पर बैठकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा ,अचानक वो बोला सिस्टर मेरी से बात कर लो उनके कोई रिश्तेदार का मेडिकल है उनसे शायद कुछ इंतज़ाम हो जाए ये ये फ़ोन नम्बर है ,मैं उठ गया डायल करते ही बोला बहिन जी मोहन डॉक्टर साहब ने नम्बर दिया है १२ रेमडेसीवीयर इंजेक्शन दिलवा दो मेरे पापा और माँ की ज़िंदगी का सवाल है,वहाँ से आवाज़ आयी यहाँ एक एक इंजेक्शन की लड़ाई है १२ इंजेक्शन कहाँ से लाएंगे ख़ैर मोहन ने कहा है तो करना पड़ेगा इंतज़ामआप आजाओ 70, हज़ार रुपये लगेंगें मैंने कहा मुझपे तो ५०हज़ार है बहिन जी बोली देख लो मुझ पर बहुत से ग्राहक हैं मोहन बोले नहीं नहीं चलो 60, हज़ार में बात कर लो सारे पैसे एकत्रित करके इंजेक्शन लाए गए और मोहन जी को सुपुर्द कर दिए गए ,लगा इलाज अब सब ठीक है बहिन को कहा गुड़िया अब सब ठीक होगा इंजेक्शन लग जाएँगे और अब सब ठीक ही समझो
शहर के सबसे बड़े अस्पताल की स्थिति यह थी कि वहाँ कोई सीनियर डॉक्टर था ही नहीं. हाँ नर्सों का व कंपाउंडर के साथ मिलकर अलग अलग रोगियों के लिए अटेंडेरस से पैसे लेकर उनकी देख रेख खानपान .
फल योग व्यवस्थाएं ज़रूर कर देने का वादा कर रहे थे
पांचवें दिन ख़बर आयी आप जल्दी आ जाओ, गुड़िया बोली हलवा ले जा भैय्या माँ को बहुत पसंद है
झोला लेकर अस्पताल पहुँचा, नीचे मोहन मिला और बोला वेरी सोरी दोस्त माँ नहीं रहीं झोला हाथ से छूट गया अनायास बोला मैं अरे उन्हें तो पूरे इंजेक्शन लगे थे मोहन बोला तो क्या लंग्स काम नहीं कर रहे थे ,
जाओ जाकर बॉडी ले लो बिलकुल शून्य हो गया था मैं ज़ोर ज़ोर से वहीं बैठ कर रोने लगा , भाई चाचा ताऊ
सबको फ़ोन किए बड़ी देर तक बैठा रोता रहा मगर कोई नहीं आया, एक सफाई कर्मी जब बहुत देर से
मुझेदेखे जा रहा था मेरी और मोहन की बात सुन रहा था मेरे पास आकर बोला बेटा चलो मैं करता हूँ ,
कुछ सीलबंद बॉडी ली गई कब बाल कटे कब माँ का अंतिम संस्कार हो गया समझ ही नहीं आया ,
रोते रोते मैंने ५००/रुपये चार पाँच नोट निकाले उस कर्मचारी को देना चाहे वो बोला बेटा में इतना
बड़ा आदमी नहीं हूँ कि ये ले सकूँ कल मेरा भी बेटा ऐसे ही मरा था ।अगले दिन उसी तरह पिताजी का कर्मकांड भी क़राना पड़ा
एक शुभचिंतक धर्माचार्य द्वारा यमुना के किनारे ही सांकेतिक मृत्यु कर्मकांड करा दिया गया ,
10 दिन के अंदर हमारा स्वर्ग सा घर शमशान सा दिखाई देने लगा था
हमें समझ नहीं आ रहा था कि हमसे गलती कहाँ हो गई कभी लगता था की माँ पापा की हत्या में हम कहीं बराबर के सहयोगी तो नहीं है जो उन्हें बचा नहीं पाए
२० दिन बाद एक ख़बर छपी नगर के सबसे बड़े डीलर से मिलकर कुछ लोगों ने नक़ली इंजेक्शन
दवाइयों की आपूर्ति की उससे अस्पताल में कई लोगों की जानें गई है पकड़े हुए लोगों में मोहन
मेरी और डीलर महोदय थे और दूसरी तरफ़ योग्य डॉक्टर नर्सों कासम्मान हो रहा था समझ नहीं आया
कि क्या कहूँ अचानक सफाई कर्मी की बात याद आती रही बेटा बड़ा पैसा कमाया है इन लोगों ने
भगवान कैसे माफ़ करेगा इनको वो ही जाने
गहन निराशा थी चारों ओर सब कुछ ख़त्म सा नज़र आ रहा था बहिन और मेरी स्वयं की तबीयत
भी ख़राब थी हमें भी कोरोना कीदवाइयाँ दी जा रही थी ,गुमसुम बिना खाए पिए कई दिन निकल गए
थे कोई घर में कोई रिश्तेदार मिलने न आया समाज की संवेदनाएँ शून्य दिखाई देने लगी थी यह
ज़रूर समझ आ गया था की यहाँ सारे रिश्ते नाते केवल छलावा है जाने क्यों लोग रिश्तों नातों
दोस्ती के लिए जीवन भर भटकते रहते है
सब कुछ ख़त्म हो गया भैय्या , ये बात बहिन बार बार दोहराए जा रही थी ,कमोवेश मेरा भी मन यही दोहरा
लेता था अचानक बहिन का फ़ोन सर्च देख कर मन घबरा गया उसमें ऊपर लिखा था आत्महत्या के तरीक़े
सब कुछ फिसलता सा दिख रहा था कोई रास्ता नहीं दिख रहा था
अचानक फ़ोन की घंटी बजी दूसरी तरफ़ से आवाज़ आयी बेटा मैं तुम्हारा शर्मा अंकल बोल रहा हूँ प्रणाम
किया हमनें बहुत बुरा हुआ बेटा आज ही मालूम हुआ शर्मा जी बोल रहे थे कि बेटा तुम्हारे पिताजी का बड़ा समय मेरे साथ ही गुज़ारा है आपके पिताजी से मैंने भी बहुत कुछ सीखा और बहुत कुछ पाया है मैं जानता हूँ तुम्हें को लेकरवो अधिक आशान्वित थे गुड़िया पास आ गई थी ,फ़ोन को स्पीकर पर कर लिया था शर्मा जी बोलते जा रहे थे बेटा तुम्हारे पिताजी की सबसे ज़्यादा चर्चा मुझसे ही होती थी शर्मा जी कह रहे थे की पुत्र इस समय में सबके घर या उनके जानने वालों में कोई न कोई बड़ा हादसा अवश्य हुआ है परंतु पुत्र परमात्मा ने सबको अकेला ही पैदा किया है और अकेला ही व्यक्ति स्वयं को सिद्ध करता है तुम्हारे पिताजी तो हमेशा यही कहा करते कि की मेरे बच्चे एक दिन अवश्य मेरा नाम रोशन करेंगे बहुत यातना पाकर मैंने उन्हें पढ़ाया लिखाया है , बेटा उठो औरअपने मातापिता की तपस्या को पूरा करो , नहीं तो सहानुभूति की लंबी चादर में तुम्हारा ही परिवार समाजतुम्हें विलुप्त कर देगा ,ध्यान रहे समाज में सहानुभूति सबसे सस्ती है, और यही आदमी को नाकारा बना डाल डालती है कुछ समय में वह शोषण का कारक बन जाता है, पुत्र माँ पिता का ऋण चुकाए निभाये बिना तो तुम मुक्ति नहीं सकते , ताक़त से उठो अपने माँ बाप को तपस्या का सही पारितोषिक दो यही जीवन की सार्थकता है
सब समझ आ गया था , गुड़िया बोली भैया हम सबको अब खड़े होकर स्वयं को सिद्ध ही करना पड़ेगा मेरी
पढ़ाई ऑन लाइन ख़त्महो गई मुझे देश की बड़ी कम्पनी द्वारा सीनीयर इंजीनियर के पद पर नौकरी मिली और ज्वोनिंग मिल गई गुड़िया ने पूरी ताक़त से परीक्षा दी उसका परिणाम सकारात्मक आया और गुड़िया एक बड़ी पुलिस अधिकारी बन गई माँ और पिता की बरसी पर दौनो अपने आपको रोक नहीं पाए रोते हुए माँ पिता की फ़ोटो के सामने बस यही कह पाए देखो बाबूजी माँ हमेंमाफ़ करना हम आपके लिए कुछ नहीं
कर पाए उन्हें लगा माँ बाबू जी कह रहे हैं बेटा तुमने हमें सिद्ध कर दिया है ,अपने मूल्यों को जीवन से बड़ा मानना शायद यही मेरे देश का संस्कार धर्म और संस्कृति का आधार है पुत्र केवल अपनी आपूर्तियों के लिए
भागना मानवता को धोखा देना ये सब इंसान नहीं जानवर का स्वभाव है अपने आदर्शों से कभी समझोत मत
समझ नहीं पा रहे थे हम यह बाज़ी जीते की हारे बस संतोष यही था की हम हार जीत से दूर अपने माँ पिता की अंतिम इच्छा पूर्ण करने में सार्थक सिद्ध हुए है यही हारी हुई जीत है जीत है
करना —
निम्नांकित पर अवश्य ध्यान दें क्योंकि अनिश्चित को जीत में बदलने का एक ही आधार हैं सकारात्मकता ,
जो सदैव आपको सिद्धकरती है
प्राकृतिक घटनाओं पर स्वयं को अधिक प्रभावित न होने दें क्योंकि वह अवश्यंभावी है
जीवन के प्रति क्षण अपनी सकारात्मकता को जीवित बनाए रखे
बुराई बदला और नकारात्मकता को जीवन से निकालने का प्रयास करें
लक्ष्य की आपूर्ति हेतु कठिन श्रम और संकल्प की आवश्यकता है उसपर विचार करें
बड़ी सी बड़ी परिस्थिति में स्वयं को नैराश्य में नहीं पड़ने दे क्योंकि यही से व्यक्ति का पतन आरंभ होता है
हारना बहुत सरल है जबकि जीतने के लिए लक्ष्य प्रयत्न और श्रम करना होता है है उसके लिए कठिन
परिश्रम अवश्य किया जासकता है
दुख की पराकाष्ठा पर परमात्मा को नहीं भूलें वह आपको नया रास्ता अवश्य प्रदान करेगा
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