Friday, March 11, 2022

प्रेम ,अपनत्व और समर्पण में परमात्मा है

नफ़रत शत्रुता और अलगाव स्वयं  अपनी सीमाएं अनादर बेज्जती और हत्या तक बाँध पाए हैं परंतु अपनत्व  प्रेम  और उसकी कशिश व्यक्ति की आत्मा से जुड़ी कोई  छाया  है जिसका आंकलन सदियों से नहीं हो सका  है कारण यह है की आत्मा का विराट  स्वरूप जो स्वयं प्रकृति और  और ब्रहमाँड  जैसा विशाल हैं ,ऋणात्मकता शरीर है जो  अपनी परिभाषा जन्म से मृत्यु तक ही बाँधने मे सक्षम है  है परंतु प्रेम  सौहार्द और अपनत्व का  रूप रंग  भार  और प्रभाव इतना विराट  है कि उसका आंकलन और माप व्यक्ति की  चिंतन शीलता से भी परे ही रहेगें क्योंकि उसमें परमात्मा समाया है


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