Saturday, June 18, 2016

सफलता बनाम समय बद्ध क्रियान्वयन Success vs time bound implementation

सफलता बनाम समय बद्ध  क्रियान्वयन
Success vs time bound implementation

राजा शिवसेन के राज्य में  सुख शांति की कोई कमी नहीं थी , पूर्वजों की बेशुमार दौलत और विद्वान प्रजा प्रिय पिता का आशीर्वाद भी प्राप्त था ,उन्होंने ही अवस्था धर्म का पालन करते हुए शिव सेन को राज्य में गद्दी पर बैठाया था, पिता हमेशा शिव सेन को कहता, पुत्र जीवन बहुत छोटा है ,जो काम करना है शीघ्रता के साथ करो, समय सबसे बहुमूल्य है और वह लौट कर नहीं आना है ,इसलिए प्रजा के कल्याण के लिए अस्पताल ,शिक्षा , श्रम की व्यवस्था और सुरक्षा के साथ कल्याण कारी योजनाएं चलाओ ,जिससे तुम भी विश्वके  श्रेष्ठ  सम्राटों में से  एक बन सको , शिवसेन हमेशा उन्हें हाँ ,हूँ, करके अपनी विलासिता भरे जीवन में लिप्त रहता था ,आलस्य प्रमाद और विलासताओं का गुलाम बन हमेशा यही कहता रहता था, अरे अभी कौन मररहा हूँ मैं , ये सब काम बाद में करलूंगा और यही क्रम उसका जीवन भी बन गया था | 


एक रात शिवसेन सो रहाथा कि अचानक उसने देखा कि चार काले कलूटे भारीबदन के पहलवान नुमा आदमी उसके पलंग के चारों और  खड़े है राजा ने पूछा कौन हो तुम वो बोले यम दूत है, शिव सेन तुम्हारा समय ख़त्म होगया है ,२० मिनट बाद चलना है  तुम्हें, राजा घबराया, चिल्लाया , अनुनय विनय किया , गिड़गिड़ाया बोल छोड़ दो मुझे मैंने अभी कुछ किया ही कहां है, पिता द्वारा बताए  बहुत से काम करने है, एक बार छोड़ दो ,यम दूतों ने कहा, अरे मूर्ख तेरे जैसे पापी बार बारईश्वर के यहाँ यह कहकर आते है कि ,हम अपने लक्ष्य पूरे करके परमार्थ में लगाएंगे जीवन और हर जन्म में यही पाप  दुष्कर्मों   में   लगे रहते  हो और  जन्म लेकर यातनाएं भोगते हो  , राजा दूतों से कहने लगा मैं  आपको बेशुमार दौलत दूंगा छोड़ दो मुझे ,यह सुनकर यमदूत मुस्कुराए , अरे पूरा खजाना देदूंगा , मुझे एक माह का समय देदो यमदूत हंसे, फिर राजा बोल अच्छा मेरे पूरा राज्य लेलो मुझे बस एक दिन का समय देदो, यमदूतों ने ठहाका लगाया  और एक ही पल में राजा  की आत्मा को लेकर यमलोक पहुँच गए | 


वहां पहुँचते ही एक गम्भीर गुस्से वाली आवाज आयी ये किसे ले आये है आप, ये वो शिवसेन नहीं है ,राजा कुछ समझ पाता  उससे पहले उसे एक बड़े धक्के का अनुभव हुआ, आँख खुलने पर उसने देखा की सारे महल राज्य के निवासी रोरहे है ,या शोकाकुल खड़े है ,राजा का सारा बदन काँप रहा था ,मुंह से आवाज नहीं निकल पा रही थी ,मगर वह समझ चुका था कि  धर्म ग्रन्थ ,पिता ,गुरु जिस समय के सद उपयोग की बात करते है ,वो क्या है ,राजा सोच रहा था कि जिन कार्यों को वह बाद में करने की बात करता था , कब आएगा वह समय किसी को नहीं मालूम ,आँखों से निरन्तर आँसूबह रहे थे ,वह यह भी सोचने लगा कि  कितना बहुमूल्य है समय का एक एक पल जिसके एक पल की कीमत मेरे जैसे  हजारों राज्यों से भी अधिक है ,अचानक वह उठा और पिता के चरण छूकर उनसे कहने लगा चलिए मुझे इसी पल से  परमार्थ के कार्यों में लगा दीजिये मैं एक पल भी व्यर्थ नहीं गवाना चाहता और अपने राजा  पिता और अपने लाव  लश्कर के साथ  अपने परमार्थ के वास्तविक लक्ष्य की और बढ़ गया था  | 


आप जीवन  की एक स्वांस में १/१५ मिनट का जीवन जीते है ,इसप्रकार एक दिन में २१६०० स्वांस लेकर १०८ वर्ष तक जी सकते  है , यही वह गहन राज है ,जिसे समझना आवश्यक है ,कुत्ता एक मिनट में १३५ स्वास लेता है उसका जीवन १२  पूर्ण  हो जाता है ,इसी प्रकार कम स्वांस लेकर सर्प , कछुआ , पेड़ पौधे अपने स्वांस क्रम के हिसाब से हजारों वर्षों का जीवन पाते है , यही स्वांस एक छोटी इकाई है ,जीवन के समय के निर्धारण की और यहीं से जीवन के प्रत्येक लक्ष्य को सहज ही बाँधा जा सकता है शर्त यह है कि एक बार चिंतन कर यह निर्धारित अवश्य करें कि आपको हर पल का सकारात्मक एवं अधिकतम प्रयोग करना है | 


महावीर नानक  मोहोम्मद ईसा सबने समय को  बाँध दिया और जिसका समय गुलाम हो बैठे ,वो तो काल जई हुआ ही   न , इन सबकी मान्यताएं समय को लेकर ही बनी रहीं ,महा वीर का स्पस्ट मानना था कि समय का दूसरा नाम काल है और जो समय  सकारात्मक  हुआ  था   वह सामयिकी हुआ ,और जिस समय के भाग को हमने व्यर्थ छोड़दिया है  , वही महां विष की   तरह  मृत्यु को प्राप्त  हो जाता है ,इसका ही भोग्य  हमें कालांतर में भुगतना  होता है , और जिस थोड़े समय का उपयोग हम सत्कार्यों और लक्ष्य कव अनुरुप करपाते है वही  अमृत्वको प्राप्त हो पाता है फिर तो आपको ही जीवन के अंत में यह निर्णय करना होगा कि , जीवन का कितना भाग आपने अमरत्व केरूप  में गुजारा  और कितना भाग मृत प्रायः हुआ  इसका  निर्णय   करना  ही होगा | 


समय के बारे में भारतीय साहित्य ने बहुत कुछ लिखा है 
  •  मनुष  बड़ो नहीं  होत  है ,समय होत बलबान , भिल्लनि  लूटी गोपिका, वहि  अर्जुन वहि बाण
  • देखो समय बड़ा बलवान ,धनवानों को निर्धन करदे ,निर्धन को धनवान ,जंगलमे वो शहर बसा दे ,शहर करे वीरान 
  •  आदमी से ये कहो  कि वक्त से डरकर रहे , कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिज़ाज़ 
  • देश काल अवसर अनुसारी , बोले राम भगत भय हारी 
  • छन सुख लाग जन्म सत  खोटी 
मनुष्य ही नहीं देवताओं को भी समय की कसौटी पर खरा उतरना होता है और यह सिद्ध करना होता है की वो समय का सबसे श्रेष्ठ प्रयोग करने के कारण ही श्रेष्ठ साबित हुए है | यह समय वो है जो गांडीव धारी अर्जुन को वैभव और बलहीन कर देता है ,जिसका ध्यान भगवान राम भी रखकर कार्य करते है, यही समय कृष्ण  की जीवन शैली भी है ,अर्थात समय की आबद्धता के बगैर ब्रह्मांड का कोई कार्य सफल और सिद्ध नहीं हो सकता | 

मनुष्य देह को सदैव से  नश्वर माना  गया है उसका नाश अवश्यम्भावी है, परन्तु  इसमें  ही अमृत्व घट छुपा है, शरीर नश्वर- चेतना --अनश्वर जो कार्य व्यर्थ हुआ वो मृत और जो सकारात्मक हुआ वो अमृत्व प्राप्त किया मना गया | इसी , प्रकार  धन संपत्ति भौतिक और अभौतिक वस्तुओं का संग्रह समय के साथ किया जा सकता है मगर सारी उपलब्धियां यह बताने में अक्षम है की आपके पास कितना समय बाकी है | जो कल गया वो मृत  जो  है  वह आंकलन है  जो आने वाला   है ,यदि वर्तमान की चेतना  को समय बद्ध करके सकारात्मक कर्मों में लगा दिया गया, तो सारी सफलताएं आपके सामने नत मस्तक हो जाएंगी | 

मनुष्य जन्म के साथ आपके ऊपर कर्म  बंद्ध और स्वयं को सिद्ध करने का दायित्व स्वतः  आजाता है ,वह प्रारब्ध, क्रियमाण ,संचित  के फेर में अपने कर्त्तव्य को समय बद्ध  रूप में निभा पाया तो ,वह मुक्ति पथ पर पाया गया, और यदि यह समय का प्रयोग सही नहीं हो पाया तो, बार बार अपने अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति तक उसे ही भटकना होगा , क्योकि यहाँ आप नियत उद्देश्य से अपने कर्मों का हिसाब करने आये थे ,या लाभ कमाने --वहां आप तमाम सारा ऋण लेकर लौटे है ,तो यह ऋण आपको ही चुकाना है, इसका एक मात्र हल यही है कि हर पल को अपने उद्देश्य की आपूर्ति और सकारात्मक लक्ष्य में झोंक दे ,सारे लक्ष्य आपके सामने झुक कर आपको विजयी घोषित कर देंगे | 



 लगभग  25550  दिन जीने वाला इंसान ,लक्ष्य  विहीन ,व्यर्थ के कार्यों और काम क्रोध लोभ मोह  को साधने में ,जीवन के बहुमूल्य समय को निकालकर ,गहरे काँटों  के वन में उलझता चलाजाता है ,तब लक्ष्य का छूटता सफर अधिक कष्ट कारक होने लगता है ,वासनाओं और भौतिक लिप्साओं की आपूर्ति में संतोष प्राप्ति से पहले ही जीवन अपना उत्तरार्ध लेकर खड़ा होजाता है ,जो एक गहरा पश्चाताप और घबराहट नैराश्य छोड़ने लगता है ,जो अधिक कष्टकर होजाता है, आवश्यकता इस वात की थी कि  समय के एक छोटे भाग को भी यदि जीवन के सार्थक लक्ष्य के लिए जाग्रत करलिया जाए तो जीवन अपनी क्रियांवयन्ता पर प्रसन्न हो सकता है | 


निम्न का प्रयोग करें 
  • जीवन को स्वासों ,दिन ,माहों और वर्षों का आंकलन दें और यह विचार करें उस आकलन में आप कहाँ खड़े है और क्या आप आज सकारात्मक रहें | 
  • सकारात्मक दृष्टिकोण के के साथ ही आपको जीवन की सफलता का मार्ग तय  करना है  क्योकि सकारात्मक जीवन शैली आपको आधी सफलता दे देती है | 
  • समय के केवल तीन प्रयोग होसकते है आवश्यक कार्य सकारात्मक कार्य और सामान्य कार्य सामान्य कार्य आपको कर्म बंधन में बांधेंगे ,सकारात्मक और लक्ष्य के प्रति जागरूकता आपको सफल सिद्ध करेगी | 
  • समय के महत्व को सदैव याद करतेरहे ,यह अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है इसमें अपनेलक्ष्य को सदैव याद रखना महत्वपूर्ण है | 
  • जाता हुआ समय  वास्तविक प्रसन्नता देकर जाएगा तो उसकी सार्थकता सिद्ध होगी और यदि वह आपको चिंता पश्चाताप और नकारात्मकता देकर जा रहा है तो सधार की आवश्यकता है | 
  • जीवन का प्रत्येक कार्य जरूरी है,  मगर आसक्ति , शोषण , शोषित होने की लत नकारात्मकता है उससे बच कर स्वयं की चेतना  में लौटकर ध्यान करें | 
  • समय का सदुपयोग -सकारात्मकता और उसकी सुरति ही का एक मार्ग है  लक्ष्य को साधने   के लिए यही   उद्देश्य है जिसे नित्य ध्यान देना आवश्यक है । 
  • समय को सामयिकी बनाकर अपने कल को सुधारने की चेष्टा करो ,उसे काल बनाकर व्यर्थ मत गवाओं  अन्यथा बार बार आपको अधिक भटकना होगा | 
  • बार बार समय को अपने लक्ष्य की सफलता के रूप में देखना सीखें ,धीरे धीरे ये सफलता आपके वास्तविक जीवन में कब उतर आएगी मालूम भी नहीं पड़ेगा | 

 जीवन तो अपने लक्ष्य की और जाती हुई कोई बड़ी रथ  यात्रा ही है न यहाँ पूर्ण चेतन से अपने उद्देश्य का ध्यान रख कर उतरना ,पहुँचाना महत्व पूर्ण जिम्मेदारी है ,वरना  कब यह रथ तेजी से आपके लक्ष्य को विस्मृत करा देगा, आप समझ भी नहीं पाएंगे ,आपको सकारात्मक भाव से लक्ष्य के प्रति पूर्ण चेतन्य भावसे केंद्रित रहना है, तब आप जीवन चक्र के सिद्धांत में मोक्ष का  रूप को जान सकेंगे 

Tuesday, June 14, 2016

स्वयं को दोष न दें (Do not blame yourself)


      स्वयं को दोष न दें
  (Do not blame yourself)
सुकेत नालंदा का सबसे योग्य विद्यार्थी था पठन -पठान में उसे कोई मात नहीं दे पाया था , गुरुओं ने  उसकी बुद्धि का लोहा कई बार माना था ,दर्शन ,सेवा , संस्कारों और परीक्षा में उसे अव्वल आना ही होता था ,  अच्छे , सम्भ्रान्त परिवार का इकलौता पुत्र था हमारा सुकेत , बस  एक ही बड़ी कमी उसने अपने पापा से सीख ली थी , असंतोष और स्वयं को कोसते  रहने का दुर्गुण -----मैं  कुछ नहीं कर सकता, बड़ी बड़ी परीक्षाएं चुटकियों में पास करने वाला खुद अपने आपको संतुलित नहीं रख पाता था ,परिणाम यह कि  उसको सारी सफलताएं मिलने के बाद भी कोई संतोष आनंद मन में पैदा ही नहीं हो पाता था, समय निकलता गया और पूर्ण शिक्षा ग्रहण करने के बाद सुकेत  अपने घर पहुँच गया , और जीवन की ताल में ताल मिलाने लगा , परिणाम - पिता के व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धि के बाद भी घर में कोई शान्ति सुख की परिकल्पनाथी ही नहीं|

घर का हर सदस्य कुशंकाओं  से घिरा  एक दुसरे पर अपने अपने असंतोष का ठीकरा फोड़ता ,अवश्य दिखाई देता था , माँ कह रही  होती  थी ,पूरा जीवन खपा दिया घर के लिए और सब लोग मेरी परवाह ही नहीं करते और अब तो शरीर भी साथ नहीं दे रहा ,किसको कहूं अपनी , बेकार है जीवन ,क्या मतलब इसका, और पिता कहरहे होते की पूरा दिन खट खट किसके लिए कररहा हूँ सब तुम लोगो के लिए , सुकेत अपने आपमें कुंठित अनमना सा कहता रहता था  काहे को पढ़ाया इतना जब दूकान ही करानी थी तो -----और हर रोज किसी न किसी बात पर  खौफ   और दुःख का माहौल बना रहता था |

अचानक बाज़ार की  मन्दी  और व्यापार की  हानि  ने सुकेत के पिता को भारी क्षति दी थी , सारी सम्पत्तियां एक एक कर बिक गई और परिवार पर जीवन यापन का भी संकट खड़ा होगया  परिवार के सदस्यों ने झूठे कागजों से रही बची संपत्ति भी ठग ली ,पिता को एक रात लकवे का दौरा पड़गया , धन की कमी और समस्या का स्वरुप इतना बड़ा था कि  कोई किरण दिख ही   नहीं रही थी , सुकेत ने माँ को काम पर जाते हुए देखा , बड़ी ग्लानि हुई मन को , दूसरे ही दिन वो अपने गुरु ने यहाँ नालंदा पहुंचा वहां सब हालत जानकर गुरु ने सुकेत की मदद भी की और आश्रम के एक कोने में जगह भी दी ,और काम भी दे दिया , सुकेत बहुत ज्यादा अनुग्रह प्राप्त कर रोने लगा घर आये गुरु से उसने अनायास ही पूछा देव आप सब जानते हो  हमारी ऐसी स्थिति क्यों हुई |


गुरु ने लम्बी सांस लेकर कहना चालू किया पुत्र आपके पूरे परिवार में  विस्वास , पराक्रम और सकारात्मक सोच की कमी है ,   आप पूर्ण शिक्षित होकर भी उस परमात्मा  की अनुकम्पा को नकारते रहे , आप स्वयं में परमात्मा का वास देखने में अक्षम, सदैव इस बात परअडिग रहे की आपसे ज्यादा कोई दुखी दीन हीन और निरीह नहीं है , परिणाम आपका  सब पर स्वयं पर विश्वास  कभी बन ही नहीं पाया ,ब्रह्मांड केवल आपकी नकारात्मकता सुनते सुनते यही समझ पाया कि आप उससे यही मांग रहे है तो उसने आपको वहीँ खड़ा कर दिया ,आप एक बार पुनः परमात्माकी अनुकम्पा और पूर्ण विशवास को मन में जगह दो ,आपका यह समय भी आपको बहुत बड़ी सौगात देकर जाएगा , गुरु की वाणी सुनकर तीनों लोगो की अश्रुधारा बह चली , कुछ ही समय में पिता पुनः ठीक होगये , अदालत ने पिता की सारी संपत्ति पुनः लौटा दी , माँ को लगा शायद जीवन ने जो यह सौगात दी है वह अमूल्य है और सुकेत जान गया था की अपनी अंतरात्मा के सत्य , आदर्शों और उसकी चेतना को अनसुना करके कोई भी संसार में आनंद पैदा कर  नहीं सकता , और गुरुवाणी की गहनता में डूब कर सुकेत अपने आनंद  में डूबने लगाउसे लगा कि हममे वह शक्ति विद्यमान थी जो हमें अपने सर्वोच्च सफलता के शिखर पर ले जा सकती थी| ,



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 हमारी सबसे बड़ी समस्या यही है कि हम अपने आपको निरीह बेचारा नाकारा और  भोंदू बना कर रखना चाहते है हर परिस्थिति में हर काम में अपने को कार्य से पहले ही अपने आपको हतोत्साहित कर करते हुए दोषारोपित करते रहते है परिणाम यह कि एक दिन हम वैसे ही होजाते है   नाकारा, अकर्मण्य , और निराश्रित से
हमेशा यह मेरे साथ ही क्यों होता है ? मैंने किसीके साथ ख़राब नहीं किया ऐसा मेरे साथ क्यों हुआ ?मै  जो चाहता हूँ वो तो  कभी हो ही नहीं सकता ,मेरा समय खराब चल  रहा है , और भगवान मेरे साथ ही ऐसा क्यों करता है ? ये सब प्रश्न एकसाथ  हम हर परिस्थिति में दागने के  आदी हो गए है ,जब भी हमारे सामने वो परिस्थितियां आईं  जो हमारे मन और रूचि  के विरुद्ध हुई या यो कहिये कि जो नकारात्मकताऐं  हमारी कमजोरी बन गई है उन्हें त्यागने के लिए भी हम इन्ही वाक्यांशों का प्रयोग करते रहते है  शायद हमे इनसबके बाद कुछ शान्ति मिल पाये ,नही मित्र इसके बाद और अधिक नकारात्मकता हमें घेर लेती है और हम उस नैराश्य का ढेर होजाते है जिसमे केवल   विनाश के रस्ते रहजाते है जबकि हमारे पास वो अदम्य शक्ति थी जो कुछ भी पैदा कर सकती थी |


सुख --संतोष --- और लक्ष्य ये अलग अलग विषय है लक्ष्य विहीन सुख संतोष वैसा ही होगा जैसे  सुंदर खाने के बाद फ़ूड पोइज़निंग जबकि लक्ष्य के साथ ही सुख संतोष की पूर्णता माना  जा सकती है | मनुष्य का मन मष्तिष्क हमेशा कुछ न कुछ मांग करता रहा है ,कभी वह शरीर के सुख सम्बन्धों को अपनी कमजोरी बना बैठता है , औरकभी विलासताओं भरे जीवन में भौतिक संसाधनों के इर्द गिर्द घूमता रहता है , पूरा जीवन इसमें ही स्वाहा होजाता है कि,  मैंने जीवन में कमाया क्या , और हर समय केवल स्वार्थों की खोज में घूमते घूमते हर  कदम पर अपने आपको बड़ा दिखाने की चाह बनाये रहे ,  कहने का आशय यह कि हमारी सारी खोज केवल यही तक सीमित रह गई कि हम भौतिक सुख साधनों के आधीन होकर रहगये है, और उनसे हटकर हमे शान्ति मिल ही नहीं सकती , हमारा तमाम चिंतन इन विषय वस्तुओं पर निर्भर हो जाता है कि , हम समाज और सम्बन्धों का कितना विदोहन ---शोषण ----- और लूट कर लें जिससे हमारा अहम शांत होजाये  , मगर एक बार फंस कर हम कभी उससे निकल ही  नहीं सके और खुद को लाचार , गरीब और निस्सहाय सिद्ध करने में जुटे रहे और एक दिन वैसे ही दीन   हीन  बने बैठे अशांत अस्थिर और निराश्रित से |



आपके अपने , सम्बन्ध , समाज ,केवल आपके बाह्य स्वरुप से जुड़े एक शोषण की मांग करते रहते है, इन सबके एक ही धर्म रहे कि   वे अपने  अपने सामर्थ्य के अनुसार आपकी लूट  खसोट करते रहे , उस हिंसक पशु की तरह जिसने   ताजे हरे पत्तों के बगीचों का आश्रय लिया था ,तब अभी हाल ही में एक मृग मारा  था,भर पेट अपनी  भूख मिटाने के बाद उसने  उसे उसी हाल में छोड़ दिया ,  वह चला गया, शायद फिर भूख लगी तो फिर आजायेगा खाने ,तबतक दूसरे जानवर नोचा खसोटी करते रहे ,क्योकि , जीवन ने  उन्हें यही  दिया है |   आदमी की हालत भी कमोवेश  ऐसी ही है , अपनी  शारीरिक और मानसिक कमजोरियों के हरे  बगीचों को देख कर वो हमेशा  शिकार बनता रहा है ,  फिर बार बार जीवन पर प्रश्न चिन्ह क्यों ?क्योकि इसके  एकमात्र जिम्मेदार हम ही रहे है ,बार बार हमारा झूठे , निराश्रित और नकारात्मक सम्बन्धों और  शारीरिक मानसिक  संसाधनों का लालच ,स्वयं पर अविश्वास और  दिशा हीनता  हमे उस कगार  खड़ा कर देती है जहां केवल हमारे पास  रह जातीहै  कुछ  शिकायतें कुछ आलोचनाएं  और ढेर सारी  नकारात्मकता क्योकि ये ही हमने पैदा किया है




मनुष्य के पास  हर समस्या के निराकरण के लिए और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ  सिद्ध करने के लिए एक अ जेय ब्रह्मास्त्र भी है जो जीवन के हर दुश्मन को पलक झपकते ही ख़त्म कर सकता है , इसका नाम है संकल्प और यही वह शक्ति है जो ईसा नानक  मोहम्मद और बुद्ध को महान बना देती है , जीवन के लक्ष्य को साध कर , जिसने भी अपना पथ तय करना आरम्भ किया ,आप सच मानिए ब्रह्मांड की समस्त शक्तियों ने अपना सर वही पर झुका दिया है , जैसे ही आप अपना लक्ष्य बन कर चलना आरम्भ करेंगे तो दुनिया  की सारी बाधाएं आपके सामने खड़ी हो जाएंगी ,  समाज आपको लक्ष्य के साथ अलग जाता देखेगा ,तो अपने सारे अस्त्र शस्त्र लेकर आपपर हमला बोल देगा , कोई कहेगा  बस एकबार और बात  मानलो , कोई कहेगा आप एकबार और रुक जाओ , इस तरह की बहुत सी बातें ----बस यही परीक्षा है आपकी जहां आपको अपने संकल्प को और अधिक मजबूती देनी है  और यही से आपकी वह विजय यात्रा आरम्भ होनी है जिसके बाद जीवन से नकारात्मकता का अध्याय समाप्त होकर आपको सकारात्मक जीवन का नया उपहार मिलना है |



  निम्न विषयों पर भी विचार कीजिये


  • सबसे पहले अपने इर्द गिर्द  लोगो का आंकलन करे और बारीकी से यह देखे की वे यदि आपके लक्ष्य में बाधक है तो उनसे धीरे से किनारा अवश्य करलें , | 
  • अपनी कमजोरियों को अपने विकास पर हावी  मत होने दें  ,क्योकि यदि आप अपनी कमजोरियों पर अंकुश नहीं लगा पाये तो आपका लक्ष्य तक पहुंचना  अत्यन्त कठिन है | 
  •  स्वयं को हर कार्य और शक्ति में  पारंगत  मानते हुए, उसे जागृत करने का स्वप्न  देखते रहने का प्रयत्न करें जिससे वह आपके अंतर स्थल की सबसे बड़ी मांग के रूप में आपको  लक्ष्यरूप में दिखाई देने लगे | 
  • श्रेष्ठ जीवन मनुष्य की अपनी  सोच संकल्प और उसपर क्रियान्वयन करने की शक्तियों को  जगाने का नाम है क्योकि जोलोग अपनी  शक्ति को  जागृत कर उसे मूर्त रूप देने में  समर्थ होते है वही  स्वयं सिद्ध हो पाते है | 
  • आत्मा की परमशक्ति का ध्यान किये बगैर आप अपनी  आतंरिक शक्ति को जागृत नहीं कर सकते ,क्योकि जब तक आप बाह्य जगत की तुच्छ उपलब्धियों में लगे रहे ,तब तक आप उस शक्ति से परिचित न हो सकेंगे | 
  • स्वयं को सकारात्मक विचारों का आधार बना  दीजिये, उसके लिए केवल यह करना है की  लक्ष्य से पहले कुछ नहीं इसे रोज बार बार दोहराएँ | 
  • समस्याएँ केवल वीर मनुष्यों के समक्ष आती है और वे अपना उत्तर साथ लिए होती है ,बिना क्रोध घबराहट , और जल्दबाजी किये उनका उत्तर खोजने का प्रयत्न करे | 
  • सुख , लक्ष्य , सम्बन्ध , और समाज  आपकिसी एक को ही चुन सकते है यदि आप दो और तीनों के साथ चलने की कोशिश करेंगे तो आपका सफल होना कठिन है | 
  •  निरन्तर अपने लक्ष्य का ध्यान और नित्य उसकी प्राप्तिके लिए प्रयत्न करने वाला ही एक दिन लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है अन्यथा सफलता प्रश्न वाचक बन जायेगी | 
  • जो लोग आपको ख़राब , कमजोर और कमियों वाला मानते है वो आपको अभी तक जानते नहीं है ,एक दिन आप का विकास और उपलब्धियां  उन्हें आपका कद दिखा देगा  | 

    आप ईश्वर की अनमोल कृति है और आपको ईश्वर ने किसी ख़ास उद्देश्य के लिए पैदा किया है आपको उसी लक्ष्य की खोज करके सफलता प्राप्त करनी है , यही विचआर तेजी से अपने मन मो समझाते रहें | 

    आदमी तुम क्या आदम के सिर मौर हो - वक्त -ए -ताकत तुम्ही  रब का तुम शौर्य हो 

Sunday, June 12, 2016

दूसरों का मजाक मत उड़ाइये Do not make fun of others

दूसरों  का मजाक मत उड़ाइये
Do not make fun of others

सिकंदर महान को  अरस्तु ने समाजिक राजनैतिक धार्मिक और मानवीयता वादी तमाम उपदेश और शिक्षा दी थी और उसके व्यक्तित्व में वे  गुण  परिलक्षित भी होने लगे थे,३४३  ईसा पूर्व  मेसीडोनिया के   शासक  ने सिकंदर की शिक्षा के लिए महात्मा अरस्तु को बुलाया और और  यही से सिकदर की शिक्षा का  शुभारम्भ हुआ , हजारो नीति उपदेशों  के साथ गुरु ने यह भी बताया पुत्र जो जीवन को भलीभांति जान  लेता है उसमे अहंकार , क्रोध , लोभ ,मोह और लालच स्वयं  ख़त्म हो जाता है , पुत्र स्वयं की रक्षा और वीरता ,राज़्य  का नैसर्गिक गुण  है , मगर अतुलनीय वीरता और परम बल के साथ जो क्षमा , दया और सहिष्णुता का भाव रखता है  वही सर्वाधिक महान माना जाता है , पुत्र दूसरों के सम्मान को क्षति केवल हमारा अहंकार ही तो पहुंचाता है ,जबकि ईश्वर की हर कृति  परमात्मा को अति प्रिय है फिर  उसका अपमान ईश्वर कैसे सह सकता है |
ईराक के बाबिल नगर में जंगल भ्रमण में सिकंदर और उसकी सेनाएं  आखेट पर थी जंगल में एक फ़कीर एक पेड़ के नीचे शीर्षासन लगाए ध्यान रत था , सिकंदर ने उसे देखा तो अपनी हंसी रोक नहीं पाया ,वो जोर जोर से घह हंसने लगा उसे हँसता देख कर  साथ चल रहे सेना अधिकारी भी हंसने लगे और  बोलने लगे , फ़कीर का ध्यान शोर की आवाज से टूट गया उसने ध्यान से हँसते हुए सिकंदर को देखा और अचानक उसकी आँखों से आंसू आने लगे फिर उसने गहरी साँस लेकर आकाश देखा और वो भी जोर जोर से हंसने लगा , सिकंदर ने प्रार्थना की कि यह बताये कि   आप क्यों हंसे ----फ़कीर बोला फिर बताऊंगा यह सुनकर सिकंदर  महल में लौट गया  ,  मगर बार बार उसे उस फ़कीर का रोना, हंसी  बड़ी रहस्य  मयी  और  अजीब सी लगी थी |
कुछ दिन बाद एक बार फिर से सिकंदरने  एक बड़े राज्य पर आक्रमण किया और लौटते में उसी जंगल से उसका पुनः गुजरना हुआ अफरात संपत्ति और लुटे हुए ख़जाने के साथ वह स्वयं को खूब सराहता रहा ,  चाटुकारों ने बताया वो सबसे अमीर है यह चर्चा चलते चलते सब लोग शयन हेतु चले गए परन्तु उसी रात्रि में सिकंदर की तबियत ज्यादा ख़राब हो गई तेज बुखार , और दस्त  ने  उसकी सारी शक्ति  ली थी ,सुबह होते होते उसकी तबियत और अधिक ख़राब होगई ,अचानक सेना के अधिकारी उसी फ़कीर को  लेकर  आये  ,जंगली दवाओं की  थैली लिए था वो ,उसने ध्यान से सिकंदर और उसके चारोओर देखा, फिर प्रणाम किया , बोल बंद सिकंदर के मुंह में उसने एक जड़ का रस  निचोड़ा २ मिनट बाद ही सिकंदर के बेजान  शरीर  में  स्फूर्ति सी आयी ,उसने आँख खोलकर बड़े आर्त भाव से कहा  मुझे बचालो , फ़कीर की आँखों में आंसू आगये ,वो कहने लगा सिकंदर यह रोग नहीं है यह मृत्यु है , देख यदि ये दस्त और बुखार जैसी बीमारी होती तो यह ठीक हो जाती ,देख यह कहकर फ़क़ीर ने कुछ जड़ी बूटियों को मसलकर पास के झरने में फेंक दिया ,झरना बर्फ जैसे जम गया ये पृकृति रुक सकती है तेरे दस्त न  हीं क्योकि आज मृत्यु तेरे दस्त और बुखार के रूप में आयी है , और हाँ उस दिन जब तू मुझे देख कर हंस रहा था तो मुझे तेरी मौत दिखाई दी ,मैं रोया इसलिए की तेरे गुरु ने मुझे तेरी हिफाजत के लिए कहा था, और हंसा इस लिए कि मालिक कैसी लीला है आपकी कि  इसे यह नहीं मालूम कि  अगले छड़  मेरी मृत्यु खड़ी है |

छट,पटाते हुए सिकंदर के माथे पर फ़कीर ने बहुत प्यार भरा हाथ रख दिया, जिससे छण  भर में सारे दर्द शून्य हो गए,
फ़कीर ने कहा   हे  सम्राट  आपके गुरु का  मानसिक सन्देश आया था ,कि मैं   आपके पास ही रहूं और आपको सारे ऋणों से मुक्त करने का उपाय बताऊँ , सिकंदर ने आँखे बंद करली और कहना चालू किया हे, महात्मन मैं  सब समझ गया हूँ ,मरने के बाद मेरे हाथ ताबूत से बहार लटका दिए जाएँ, जिससे लोग जान सके कि अकूत संपत्ति के भंडारण के बाद भी संपत्ति ,एक साँस तक नहीं बढ़ा सकती ,और  आदमी को खाली हाथ ही जाना होता है , और ये हाथ यह भी बताएँगे कि अहंकार और शक्ति की  प्रतीक  ये भुजाएं स्वयं अपना भी भर तक नहीं उठा सकती है ,और संसार इतना छोटा है कि  कल मैंने जिसका उपहास उड़ाया ,आज वही मेरे गुरु का सन्देश लेकर मेरे जीवन की कामना करते हुए रो  रहा  है ,|यह कह कर सिकंदर ने फ़कीर को प्रणाम किया और पूछा मेरे गुरु की क्या आज्ञा है , साधु ने  ध्यान में देखा और कहा आपके गुरु कह रहे है जाओ सिकंदर तुम मुक्त हो अपने कर्मों से तुम  महान हो और तुम्हारा प्रयाण भी पूर्ण होना चाहिए -- यह कहकर फ़कीर ने जाते हुए सिकंदर को देखा तृप्त , शांत , और पूर्ण सा |




महाभारत का मह युद्ध केवल उन थोड़े पात्रों के इर्द गिर्द सिमटा दिखता है जो अपने बल पौरुष और स्मिता के लिए लड़ते झगड़ते रहे , यहाँ मैं पूर्ण ब्रह्म कृष्ण को सबसे अलग औरपृथक रख रहा हूँ क्योकि वे ही इन सब पात्रों के मूल्यांकन कर्ता  रहेंगे , पांचों पांडवो की सेना और अनगिनत कौरव सैनिक केवल द्रौपदी के उस वाक्यांश का शिकार बन बैठे जिसमे उसने यह कहा कि  अँधोंकी संतानें भी अंधी होती है इसके बाद की सारी कथाएं बड़ी विचित्र और अहम के प्रदर्शन की कहानी ही है ध्रुपद के पास द्रोणाचार्य का  जाना और ध्रुपद द्वारा द्रोणाचार्य का अपमान और द्रोणाचार्य द्वारा ध्रुपाद के नाश की प्रतिज्ञा और अर्जुन द्वारा ध्रुपद को हराना बंदी बनाना और फिर क्षमा मंगवा कर छोड़ देना ये सब भी किसी पात्र के उपहास उड़ाने के कारण ही पैदा हुए है और अंत में द्रोणाचार्य को ध्रुपद के पुत्र   द्वारा ही मारा गया , ये सब राज नीति ,कूट नीति का सम्बन्ध किसी  के उपहास उड़ाने का प्रतिफल ही तो रहा है | 


जब स्वयं के अहंकार की आंधी चलती है   तो वह हर  आदमी हमारे सामने नगण्य होजाता है और हमारा क्रियान्वयन भी ख़त्म  होजाता है ------फिरतो -----सुंदरता, रूप, रंग, बल श्रेष्ठता , ज्ञान ,आदर्श और सहजता ,सरलता और अनेकों गुणों में हम स्वयं को सर्व श्रेष्ठ बताने की चेष्टा में उलझे अशांत , अनमने और अपूर्ण से बने रहते है ,परिणाम यह कि  हम उस जीवन को जान ही नहीं पाते जिसकी डोर हमारे हाथ में थी ही नहीं , बस हम एक बैलगाड़ी के नीचे चल रहे कुत्ते की तरह गौरवान्वित बने रहते है जो चलती बैलगाड़ी के नीचे चलते चलते यही सोच रहा होता है कि  इसे तो मैं  ही चला रहा हूँ | 


अहंकार के समक्ष स्वयं को ऊचां बताने के सिवा कुछ होता ही कहां  है ,जबकि हम केवल अपना ही आंकलन करने में सर्वदा असमर्थ होते है , क्योकि हमे   अपनी दृष्टी से केवल वे लोग दिखते है जो बहार होते है ,यहीं से आ त्मा अवलोकन का विषय ख़त्म हो जाता है और अतुलनीय स्थिति में हर इंसान छोटा कमतर और स्वयं से दीन जान पड़ता है  फिर तो जीवन का हर भाग, क्रिया और दृश्य मान,  विषय बन कर रह जाता है मन से शान्ति ख़त्म हो जाती है सोच कुंठित हो जाती है और मन -मष्तिष्क की हर सोच स्वयं को ऊंचा बताने की फिक्र में खुद अपने पतन की और जाने लगती है ,| 



मनुष्य का जन्म और उसका चरम लक्ष्य है कि  वह परमानन्द की अनुभूति तक पहुँच सके वहां है जैसा है वैसे ही स्वयंको सोचना आरम्भ करदे तो शायद वहीँ कहीं से उसका मूल उद्देश्य उसके पास आजाता है 
आज संसार के हर प्राणी की सोच ऐसी होगी  कि वह स्वयं को यह   नहीं बता पाता जो वास्तव में वो स्वयं है, इससे संसार में वैमनस्यता जन्म लेगी ,प्रतियोगिता जन्म लेगी और वहीँ से हमारा पराभव आरम्भ होजायेगा , हम जिन गुण दोषों के साथ है ,उन्हें सोचकर  उनसे बचने का प्रयास न करें, यदि हम अपनी कमियों को प्रदर्शित करने का संकोच बनाये रखते हुए स्वयं को कुछ और बता कर कुछ और प्रदर्शित करते रहेंगे ,तो  जीवन भर हम स्वयं में सुधार कर ही नहीं पाएंगे  अतः स्वयं का आंकलन करते हुए अपने दोषो को कम और गुणों को बढ़ाने का प्रयत्न अवश्य करें | 


        निम्न का प्रयोग अवश्य करें 
  •  ईश्वर ने आपको बहुत सी खूबियों और कमियों के साथ पैदा किया है आपको अपनी कमियों पर अंकुश लगाकर स्वयं के गुणों का विकास करते रहना चाहिए अन्यथा आप स्वयं भ्रमित हो जाएंगे | 
  • किसी का उपहास मत उड़ाइए क्योकि इसकी चोट यदा कड़ा इतनी गहरी होती है जो मन मष्तिष्क को इसतरह घायल करदेती है जहाँ अच्छे बुरे का विचार ख़त्म होकर जीवन बदले की भावना में परिवर्तित हो जाता है | 
  • हर व्याक्ति की अपनी शक्तियां है और हमे उनका सम्मान करना ही चाहिए क्योकि  यदि हम उनका सम्मान कर सकेंगे तो ही अपना सम्मान पाने के हक दार बन पाएंगे | 
  • भारतीय धर्म का आधार यही है  कि जो पिंड सोई ब्रह्मांड बहुत बड़ी परिभाषा है मनुष्य और उसकी शक्तियों की क्योकि धर्म मानता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जो शक्तियां निहित है वो ही मनुष्य में निहित है आवश्यकता उन्हें जाग्रत करने की है | 
  •  मनुष्य का शरीर और उससे जुडी हुई हर चीज नश्वर है और वह समय के आधीन है परन्तु उसकी चेतन और आत्मानुभव  बहुत शक्तिशाली और श्रेष्ठ है उन्हें जागृत करने हेतु स्वयं में स्थित रहना सीखें | 
  • जब भी आप दूसरों से अपनी तुलना करेंगे तो आपकी अशांति चरम  पर होगी ,क्योकि आप पहले नकारात्मकता को पैदा करते है फिर उस चश्मे से स्वयं का आंकलन करना चाहते है ऐसे में आपमें और नकारात्मकता बढ़ने लगेगी | 
  • स्वयं का आंकलन करते समय किसी का विचार मन में मत लाये क्योकि हर व्यक्ति पद और आकार की एक सीमा है जबकि विकास आपका कद और आपकी प्रकाश सम्भावनाएं असीमित है ,उनका चिंतन करें | 
  •  यह मानकर  चले कि  मनुष्य और प्रकृति के विकास की सम्भावनाएं असीमित है और इस असीमित को जागृत करने के लिए सर्व प्रथम आपको स्वयं को एकाग्र करना होगा यही से आपको आगेके मार्ग प्रशस्त होंगे 
  • अपनी संभावनाओं और विकास की पहली शर्त यह है कि आप दूसरों से तुलना करना छोड़ दे क्योकि यहाँ आपका ध्यान केवल अपने उद्देश्य पर हो दूसरा बीच में आते ही आपका मार्ग अवरुद्ध होजाता है अतः  अपने संकल्प में किसी को प्रवेश न दें |



Sunday, June 5, 2016

अपनी आतंरिक शक्ति का असल परिचय आपको परिपूर्ण सफलता देगा identification of your inner power give you acme of success

अपनी आतंरिक शक्ति का असल परिचय 
आपको परिपूर्ण सफलता देगा
 identification of your inner power
give you acme of successा

सत्यघटना
अडिग स्कूल के समय सी ही  काफी प्रबुद्ध विचार शील और मेधावी रहा था ,  पिता एक स्कूल में हेड मास्टर थे और घर का सम्पूर्ण  वातावरण सयुक्त हिन्दूपरिवार जैसा ही था, एक दुसरे के दुःख में खड़े दिखाई देते थे सब ,अडिग बचपन से ही साहित्य कार रहा, स्कूल के समय में जब उसके साथी स्टेडियम में हॉकी खेल रहे होते थे तब वह कवितायें लिख के कर  सबको मंत्र मुग्ध कर देता था | स्कूल और कॉलेज में साहित्यिक प्रतियोगिताओं में उसे कोई नहीं हरा पाता था  , जब भी कोई साहित्यिक सांस्कृतिक  प्रतियोगिताएं स्कूल या कॉलेज में आयोजित की जाती, अडिग का पूरा समूह उसमे अपने प्रतियोगी बना  कर प्रस्तुत  कर देता था और सफलता के साथ यदि पुरूस्कार में यदि नकद ईनाम मिला तो पास ही के एक दूकान जा कर मिठाई लस्सी और बहुत से पकवानों का जश्न हो जाया करता था ,ऐसी ही  बेफिक्र  थी जीवन  की यह मंजिल | हमारा अडिग समाजिक और राष्ट्रिय हित की संस्थाओं से भी   सघन संपर्क में रहा ,सब  जगह एक खामोश संघर्ष था और वहां भी एक छोटी जगह पायी थे हमारे अडिग ने | 

बात १९४५  के कुछ    बाद  की है कि अडिग का स्वास्थ्य ख़राब हुआ खांसी कमजोरी और  ढेरो  स्वास्थ्य समस्याएँ 
 सांस  लेने में तकलीफ , चलने उठने बैठने में समस्या ,डाक्टर , वैद्यों और समाज के हरजानकार ने यह बताया कि बीमारी ला इलाज है अभी इसका कोई इलाज बना ही नहीं है ,  इस  बीमारी में लंग्स में पानी भर जाता है और फिर बुखार कमजोरी और तेज दर्द और कमजोरी आदमी को तोड़ डालती है ,वैद्यों के हिसाब से ताकत की दवा और उच्च प्रोटीन का भोजन इसमें थोड़ा लाभ कारी हो सकता था ,कभी कुछ ठीक कभी ख़राब ऐसे ही जीवन निकलने लगा हमारा अडिग ,एक बार एक राष्ट्रीय नेता ने अपने विचार प्रस्तुत किये और मंच से ही मांग करदी की एक लड़का चाहिए जो   अच्छी हिंदी जानता हो , नेता कलकत्ता से सम्बद्ध थे,वरिष्ठ नेताओं का चर्चा का दौर चला अचानक अडिग ने अपनी इच्छा  प्रकट की कि  मैं चला जाता हूँ ,अर्थात अडिग साथ तैयार हो गया, वो  जानता था कि जीवन में कुछ है नहीं ,कभी भी मर सकता  हूँ , एक ओर घोर निराशा  थी जीवन का लोभ और उससे की जाने वाली आकांक्षाएंं  मृत प्रायः सी थी, घर के लोग फिक्र मंद तो थे ,मगर उन सबने इस नियति को मान लिया था ,| 

कई बार मन ने कहा  बेकार है जीवन चलो आत्म हत्या की जाए ,मगर बार बार  आत्मा के एक छोर से आवाज आती रही कि  शरीर को अपना धर्म  निभाने दो ,आत्मा की ताकत से नया  काव्य लिखो, यही सोच कर अडिग अपने आगामी भविष्य  चल दिया ,  अडिग ने भी निश्चय करलिया ऐसे  घिसट घिसट कर मरने से अच्छा यह है कि  वो संघर्ष और खुद को सिद्ध करके ही मरे, नेताजी  का  आग्रह उसे ईश्वर की राह लगी, वैद्य यही बताते रहे जबतक अच्छा खाना और संयमित जीवन चलेगा ,आपका जीवन चलता रहेगा और बाद में   ह रि  इक्छा , कलकत्ता जाकर अडिग ने एक  नए जीवन के प्रथम दिन की शुरुआत की और धीरे धीरे उसमे  वह सफल भी होने लगा | 

समुद्र की सैर, अच्छा समय बद्ध भोजन ,वैद्यों की दवाएं और  काली माँ  का आशीर्वाद,  इन तीनों ने मिलकर अडिग को  जल्द ही ठीक कर दिया था , नेता जी  का  कद बहुत बड़ा था ,धीरे धीरे  अडिग  के सौम्य   स्वाभाव और   सारे  परिवार को  मोह लियाथा , कालान्तर में अडिग की पहिचान ही नेता जी होगये , सम्पूर्ण देश में नेता जी के साथ एक छोटे से सेवक का भी नाम लिया जाने लगा , भाषण , समाजिक कार्य  और  कविता   ने उसका कद बहुत बढ़ा दिया था ,नेताजी के भाषण के पूर्व स्टेज तैयारी  और पूर्व में छोटे भाषणों ने उसे देश में एक स्थान दे दिया था,   फिर नेता जी ने कई चुनाव लड़ाये हमारे अडिग को ,अपने स्वाभाव और क्रियाशीलता के चलते जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ हमारा अडिग और कभी किसी महिला से हार भी गया तो ये उत्तर देता  रहा कि  मातृ शक्ति थी उन्हें जीतना ही था , और एक दिन हमारा अडिग राष्ट्र की प्रमुख नेताओं में था देश की राजनीती उसके ही अनुसार चलती थी और सम्पूर्ण विश्व में उसकी उदारवादी नीति के नग्मे गाए जाते  रहे , यही जीवन का सत्य भी था | परन्तु अडिग बेफिक्र बे परवाह और अपने लक्ष्य की और चलता रहा यह कहकर  कि उस रोज नैराश्य के सागर में जो ख़त्म होगया वह अडिग नहीं हूँ  मैं  उस आत्मा का अडिग हूँ जो चिरन्तर साश्वत ,अजेय सनातन और अपूर्व शक्ति वाली आत्मा से पैदा हुआ है बस एक बार स्वयं के स्वरुप को पहिचानने  की आवश्यकता है | 

 संसार में हम हजारों ख्वाहिशें लेकर चलते रहते है ,हजारो उपलब्धियां होती है ,हजारों जगह हमे हारना होता है , क्योकि हम उस प्रतियोगिता में भाग ले रहे है , सेल्यूकस  अपने शिष्य से कहा ,क्या जानते हो जीत के बारे में ,शिष्य ने तुरंत कहा प्रयास ----- पूरी ताकत से प्रयास  उसने कहा फिर भी असफल हुए तो ---- तो दुगनी ताकत से फिर प्रयास ------ और फिर भी सफल न हुए तो ------- शिष्य ने कहा देव मुझे तो पूरी ताकत से प्रयास करना है न ,जब मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त करलूं तो काम पूरा, नहीं तो काम आरम्भ समझें --- यहाँ सफलता असफलता का भाव तो समाज और दूसरों की सोच से पैदा होता है, ऐसे में जरूरी तो नहीं कि मैं  अपना आंकलन दूसरों के हिसाब से ही करू, यह कहकर शिष्य गुरु के चरणों में झुक गया | 



पढ़ाई , मित्रता , सामाजिक सम्बन्ध , बहुत सारी कामनाएं , नशा , ख़र्च और बेतहाशा दौड़ते हुए समाज में खुद को सिद्ध करने के लिए  बहुत सारा धन ये सब भौतिक आकांक्षाएं है जिनसे मन मष्तिष्क का संतुलन बिगड़ जाता है और मन बुद्धि खुद को दूसरों की तुलना में छोटा बताने लगती है बस यहींसे हमारा पतन आरम्भ हो जाता है , हम अपने प्राकृतिक सौंदर्य को छोड़कर सबसे पहले पूरी दुनिया को देखते है ,उसके बाद स्वयं को  कोसने लगते है, यह बिना जाने की जिन चीजों के लिए हम अपने आपको दोष दे रहे है ,वे हमारे सम्बन्ध में है ही नहीं है , पढ़ाई मित्रता  सम्बन्धों के नाकारात्मक हो जाने  के बाद मन में  का भाव प्रकट    होता है , यदि उसपर दीर्घ विचार कर , आगे की रणनीति बन ली जाए तो सफलता का प्रतिशत और अधिक  हो  सकता है ,आवश्यकता इस  बात की है कि आप  आंकलन करके आगे की रणनीति बनाने का प्रयास करें | 


दुःख -अवसाद -और दर्द में महांन शक्ति होती है ,इतिहास गवाह है कि बहुत बड़े बड़े रचनात्मक परिवर्तन इसी अवसाद ,दुःख और दर्द से पैदा हुए है | सुख --जश्न --और खुशियां मनाने के नियत प्रकार है क्योकि उसमे बहुत कुछ कमी और तरीके हो सकते है अर्थात उसमे पूर्ण शक्ति एकत्रित नहीं पाती मगर ,दुःख और अवसाद में वह अजेय शक्ति होती है जो अपने संकल्प और शक्ति के माद्यम से कोई भी लक्ष्य प्राप्त करने का साहस रखती है ,अपने अवसाद और नैराश्य को महान शक्ति बनाइये और उसे संकल्प और क्रिया शीलता की आग में पकाइये , समय को झुका कर एक दिन सारी सफलताएं आपके अपने द्वार पर खुद दस्तक देने आएंगी ,यहाँ आप को यह चुनना है कि आपकी ख़ुशी काहे में है | 



,जब हम आपना आंकलन दुनिया के हिसाब से करेंगे तो, फिर शान्ति , सुख और सम्मान कैसे मिलपाएगा हमे , दुनिया का काम केवल हमे निकृष्ट बताना ,हारा हुआ बताना और भारी दुःख में हमे बताना था और हम भी खुद को वैसा ही बताने लगे , दुखी होने लगे ,जबकि हमारे अंतर में हर ख़ुशी विद्यमान थी , हम सारी समस्याओं का खुद निदान थे मगर हमने अपने आपको पहिचाना ही नहीं , हमने स्वयं को देखा ही नहीं ,हम बस दूसरों की आँखों में अपनी तस्वीर देख कर उसके बताये अनुसार  रोते रहे ,वो चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था की हम मर गए है, उसके आर्त और उच्च स्वर में हम भी अपना रोना मिलाते रहे ,कि  हम  बहुत अच्छे थे --- बड़ी देर बाद याद आया ---मगर मै  तो जिन्दा हूँ , ताकतवर हूँ ,कमजोर नहीं हूँ , फिर क्यों  रो रहा हूँ ,बस यहीं से आत्मा अपना आंकलन कर जीवन को लक्ष्य पर ले जाएगी ,आप स्वयं का चिंतन अपनी अपराजेय शक्ति के स्त्रोत  के द्वार को खोलने के लिए करें | समाज और तुम्हारे परिवेश ने तो तुम्हारा नकारात्मक आकलन हमेशा किया है, उसने इतनी बार वो नकारात्मक जुमले तुम्हे सुनाये है कि  तुम अपनी वास्तविक तस्वीर तक भूल गए हो ,अपना सौंदर्य और शक्ति की मूल द्धारा से वंचित होगये हो, फिर कैसे सुख , सौंदर्य और शांति प सकते हो आप, आपको शांति सुख की खोज में अपने अंतर के रहस्यों तक जाना जरूरी है | स्वयम  की शक्ति और आत्मा का विचार अवश्य करें ,सारी समस्या इस बात की है कि हम स्वयं का आंकलन नहीं कर पारहे ,यही हम सारे संसार और अपना आंकलन भी दुनिया के हिसाब से कर रहे  है| 


सारी शक्तियों के साथ है आप ,आप हर समस्या और हर नकारात्मकता का जबाब है , बस ाआवश्यक्ता इसबात की है एक बार स्वयं को रोक कर एकाग्र  भाव से यह जानने का प्रयत्न अवश्य करें कि जो आंकलन हम सकारात्मकता और नकारात्मकता का कर रहें है वह कितना सही है , 
  हर असफलता , हार और नकारात्मकता आपके पास एक ऐसा मौन सन्देश लेकर आती है की आप सावधान होकर उसके सन्देश को समझने का प्रयत्न अवश्य करें, प्रेम की असफलता आपको यही  समझाने का प्रयत्न करती हैकि , खुद को सिद्ध करके बताओ ,अहम की हार आपको यह बताती है कि अपनी एकाग्र शक्ति का विकास करों ,संकल्प करो और भौतिक संसाधनों की कमियां आपको इस बारे में सोचने को मजबूर करती है कि  आप उनके बारे में विचार करे और उनकी आपूर्ति के लिए खुद को सक्षम बनाये , प्रयास करें , हम जो भी है आज है  वो सब हमारे संकल्पों का परिणाम है ,और आगे भी इस संकल्प की प्रक्रिया को इतना सशक्त बनाया जाए जिससे आपको दुनिया की हर सफलता आपके लिए सहज हो जाए


निम्न भावो में स्वयं को  अवश्य ले जाइये 
  • आपका जन्म का आधार भूत  उद्देश्य क्या है क्या आप केवल  साधनों और भौतिक संसाधनों की उपलब्धि में ही तो नहीं उलझे आपको प्रमुख उद्देश्य तक पहुँचाना ही चाहिए | 
  • हर नकारात्मकता , हार और असफलता यह बताने का प्रयत्न अवश्य करती है  कि, इस सफलता के लिए कुछ और किया जाना बाकी है, -एक बार नए तरीके और नयी ताकत से नयी तकनीक के साथ ,अलग प्रयास अवश्य करें सफलता आपको ही मिलेगी | 
  •   आपना आंकलन दूसरों के हिसाब मत करो ,दूसरों के पास आपको परखने की शक्ति ही नहीं है , जब आप दूसरों के हिसाब से अपना आंकलन करते है तो, आप स्वयं की शक्तियों को जान ही नहीं पाते स्वयं को श्रेष्ठ समझ कर संकल्प और सकारात्मक परिवर्तन करें 
  • हर परिवर्तन कास्वागत करने का मन बनाएं क्योकि जीवन में अवसाद केवल तब ही आता है जब हम जीवन के परिवर्तनों को नकार  देते है  जबकि परिवर्तनों को अपनाना महत्वपूर्ण है | 
  •  जीवन को सफलता  और असफलता का मैदान मत बनाइये ,  क्योकि पूर्ण प्रयास को हम सफलता ,और प्रयास में  कुछ कमी को असफलता  मानते है,  हम जबकि प्रयास करना ही आधी सफलता है | 
  • संकल्प का निरन्तर ध्यान रखना आपको अपनी  सफलता तक अवश्य लेजायेगा , क्योकिहम जिसका   निरन्तर ध्यान करते है उसकी प्राप्ति हमे होना ही है |
  • स्वीकार्यता  आशय  है , सफलता  असफलता को पूरे मन से स्वीकार कर  नयी तकनीक और नए उत्साह के साथ आगामी  कार्य और संकल्प में जुट  जाने की आवश्यकता है | 
  • सफलता के प्रति  पूर्णआश्वस्त रहने में आधी सफलता  हांसिल होना  तय है ,जबतक हम अपने कर्तव्य  और संकल्पों को सफलता  के  प्रति आश्वस्त नहीं कर पाएंगे ,तब तक सफलता अपना लाभ नहीं दे पाएगी | 
  • स्वयं का आकलन  करें और अपनी सुप्त  और जाग्रत शक्तियों केद्वार खटखटायें , और निरन्तर स्वयंको तैयार रखें कि  आप इसमें अवश्य सफल होंगे | 
  • जीवन के कार्यों और भविष्य के लिए कुछ विकल्प जरूर रखें , कभी कभी आपका बार बार  असफल होना  बात का इशारा है कि आपको नए विकल्प और तकनीक से सफलता  जीतना होगा |

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...