Sunday, May 29, 2016

सफलता की एक और शक्ति शांति (another strength of success peace)

सफलता की एक और शक्ति शांति (another strength of success peace)

वीर सेन और उनकी पत्नी कसबे की हवेली में ही निवास करते थे बाप दादों की जायदाद ने खूब वैमनस्यता बढ़ा दी थी  तीनों भाइयो में ,सबने अपने अपने हिसाब से लूटा था संपत्ति को मगर जब भी जिक्र चलता तो एक दूसरे की बखिया उधेड़ने में कोई कोर कसर नहीं रखी जाती थी , पति पत्नी दोनों आज भी राजा साहब रानी साहब कहलाना पसंद करते थे वो बात और है कि अब न राज्य थे न न राजा शाही मगर पर्याप्त ठसक थी दोनों में एक पुत्र था सुयश जब  कभी बात होती थी परिवार में तो बड़े गर्व से कहा जाता था की बेटा  कलेक्टर बनना और इन बदमाशों को अच्छा सबक सीखना और सुयश को कमोवेश यह याद भी होगया था की मुझे कलेक्टर बनना है वो भी िंबदमाशों को सबक सिखाने के लिए |

घर का माहौल बड़ा अजीबो गरीब था दो नौकरों ने ही पाला  था सुयश को, माँ बाप बड़े लोगो जैसे पार्टी , मस्ती और राजसभा जैसी भीड़ लगाए रखने के आदी थे, रात दिन पार्टियां और कार्यक्रम होते रहते थे हवेली में और इन्ही के मध्य हमारा सुयश बड़ा हुआ , और कब उसे शराब की लत लग गई पता ही नहीं पड़ा, परन्तु जब कभी चापलूस लोग उसे और पिताजी को याद दिलाते थे कि उन्हें बटवारे में कुछ मिला ही नहीं ,तो दोनों भद्दी भद्दी गालियां देते हुए चाचाओं को गालियां देते थे अपना संकल्प याद करते एक दिन कलेक्टर बनकर इन्हे जरूर सबक सिखाया जाएगा | और ऐसे ही माहौल में कब इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी  हो गई कब पढ़ाई पूरी करके  कब घर के ऐशो आराम में  डूब गया सुयश यह मालूम ही नहीं पड़ा |

समय की गति देखिये बाह्य दिखावो और हैं घोर  लापरवाही के चलते वीर सेन की सारी  फैक्टरियां बंद होगई  जो लोग  शाम मुजरा करके चापलूसी करके गुजारा  कररहे थे अचानक लेनदार  होकर खड़े होगये हवेली , प्रतिष्ठान सब नीलाम होने लगे एक दिन दोनों पति पत्नी ने यह विचार किया अब कोई उपाय नहीं है,  यह सोचकर खाने में जहर मिला कर सबको खिला दिया गया , तत्परता से अस्पताल लेजाने पर केवल सुयश बचा माता पिता दोनों दिवंगत होगये और सुयश भी कोमा में ही जीवित -मृत के बीच फंसा रहा ,लोगों ने विचार किया कि ऐसे तो वो संपत्ति पर कब्जा कर नहीं पाएंगे तो उन्होंने सुयश को एक आश्रम में  कर संपत्ति पर कब्जा कर लिया |

आश्रम के गुरु ने उसे देखा फिर परमात्मा को याद करके उसकी सेवा चालूकरदी दुआओं और दवा का असर दिखा और सुयश ठीक होगया था बहुत कमजोर परेशां पर निरीह सा ,गुरु ने कहा पुत्र अब आप ठीक हो मगर अब आप जाओगे कहाँ  उस दुनिया में आपके लिए कुछ बचा ही कहा है , हाँ एक बार जरूर जानता हूँ ,कि तुम बेहोशी में कलेक्टर बनने और किसी किसी को गालियां दे रहे थे , तो  उसके लिए तुम्हे आज से ही प्रयास करना होगा पुत्र जीवन की सार्थकता के विषयों पर ही  आदर्श  स्थापित करो | 


 गुरुने समझाया पुत्र जीवन से जुड़े हर व्याक्ति और विषय को छोड़ने का एकमात्र तरीका है , कि हर उस  व्याक्ति को माफ़ करदो ,हर विषय की वासना छोड़ दो , जिसने  अच्छा किया है उन्हें बारम्बार प्रणाम करलो और जो तुम्हारे मन मष्तिष्क में ख़राब है उन्हें भी समय की  गति जानकर माफ करदो, इससे तुम्हारी आत्मा किसी भी और न जाकर एकाग्र भाव पैदा कर देगी , संकल्प की शक्ति को इतना विशाल बनाओ जहाँ तुम्हारी एकाग्रता और क्रियान्वयन  के सिवा कुछ न रहजाए ,पुत्र इस तरह आप  अपने नाकारात्मक बंधनों से स्वयं मुक्त होकर  एकाग्र और परम शांति में खड़े होजाओगे यही से तुम्हारे नए जन्म का शुभारम्भ होगा | आज सुयश एक सीनियर कलेक्टर था और उसे अब जीवन से कोई शिकायत भी नहीं थी |

जीवन के महत्वपूर्ण संकल्पो  के साथ जब भी नकारात्मकता का आधार तय किया गया तब तब छोटी छोटी उपलब्धियों के लिए बड़े बड़े जीवनों की   कुर्बानी दी गई , भौतिक सुख साधनों , अपने स्वयं के अहम के लिए जिन लक्ष्यों को आधार दिया गया था वे सब उस दीवार पर खडे भवन थे  ,जिन्हें कभी भी ढह जाना था ,घनघोर वैमनस्यता क्रोध लालच और असत्य और झूठ फरेब  तिरस्कार और स्वार्थों के सहारों पर जीवन का लक्ष्य स्वयं अपने से हारा हुआ सत्य है ये तो वैसा ही हुआ जैसे सोने की चाह रखने वाले राजा ने , अपनी एकलौती बेटी को सोने का बना कर खुद को बे औलाद कर लिया और सर पटक पटक कर रोंने लगा |

जीवन नश्वर है और उससे जुडी हर विषय वस्तु , सम्बन्ध और भौतिक लिप्साएँ भी नश्वर   ही होंगी , मेरा अहम और तरह तरह की शक्तियों का जो घमंड था वह भी तो नश्वर था , कहने का आशय यह कि धन वैभव , राज प्रसाद और  दूरतक फैले राज्य कल किसी के थे, और कल किसीके होंगे , कल भी  कई दुश्मन थे मेरे और कल भी कई दुश्मन खड़े होंगे ,यह क्रम अनवरत चलता रहेगा मन और बुद्धि की मांगे कभी ख़त्म ही नहीं हो पाएंगी और सम्पूर्ण समय इन्ही विषय वस्तुओं और अनश्वर  वस्तुओं के संकलन में गुजर जाएगा फिर तो जीवन  अपने महत्व पूर्ण उपलब्धियों से वंचित हो जाएगा , जीवन के अनश्वर भाग में  आपके उद्देश्य अपरिग्रह क्षमा सब बहुत महत्व पूर्ण है जिनको आपके अस्तित्व की तरह अजर अमर और अनश्वर ही रहना है |


ईसा ,बुद्ध ,महावीर नानक और मोहम्मद सबने केवल एक सन्देश दिया कि कलको  माफ़ करदो ,जो सूली पर  चढ़े ईसा को प्यासा मरते देखते हुए भी मजाक उड़ाते रहे वो समाज था ,जो मोहम्मद और उनके रिश्तेदारों के प्रति गुनहगार रहे वो भी समाज था ,और जो नानक बुद्ध और महावीर पर पत्थर बरसाते रहेवो भी समाज के उनके अपने ही थे , मगर  वे सब बहुत महान थे ,वो सबसे पहले उन्हें ही माफ़ करके आगे बढ़ गए क्योकि वे नहीं चाहते थे कि जीवन के किसी भी भाग में ऐसे नकारात्मक  समय को आश्रय  दिया जावे ,जिससे उनकी अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रता ख़त्म होजाये , हम सब ही तो सुबह से शाम तक किसी न किसी का व्यवहार आचार विचारों पर टिपण्णी करते रहते है और कालांतर में वैसे ही हो जाते है असफल , अशांत और अपूर्ण से



संकल्पों की शक्ति को इतना बड़ा और सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर बनाया जावे जिसके आदर्श आज ही नहीं सदियों तक याद किये जाते रहें ,इस शक्ति को जब भी निरन्तर कर्म का आधार  मिला है आप सही मानिए वहीं से इतिहास लिखे गए है , बिना किसी की परवाह और अपनी अवहेलना करके जब भी आप आगे बढे है समय ने खुद रास्ते छोड़कर आपका मार्ग प्रशस्त किया है ,और इसके लिए आपको स्वयं की शांति चाहिए स्वयं में स्थित होने काभाव क्योकि स्वयं में स्थिर हुए बिना आप एकाग्र हो ही नहीं सकते और एक बार आप एकाग्र होकर स्वयं की शक्ति का साक्षात्कार कर पाये तो आपको कुछ पाना  शेष ही नहीं रहजाएगा , फिर तो हर उपलब्धि आपके कदमों तले  होगी आर आपका समूर्ण अस्तित्व ही पूर्णानंद में सफल घोषित किया जाएगा |


निम्न का प्रयोग करके अवश्य देखें


  • जीवन में क्षमा का भाव दूसरों के लिए नहीं अपितु स्वयं के लिए बहुत आवश्यक है यही से संकल्प का प्राथमिक  आधार  अपनी मजबूती पाएगा और आपको सकारात्मकता की और पहुंचा सकेगा | 
  •  जीवन में क्षमा का भाव आपको उनलोगो के चिंतन से मुक्त कर देगा जिनकी कोई उधारी आपने अपने पास रखी हुई थी , इसके बाद आपका चिंतन उन्हें विस्मृत करने की हद  पर लेजाकर स्वयं एकाग्र हो जाएगा | 
  • परिश्रम और निरंतरता दोनों ही आपकी सफलता के लिए वैसे ही आवश्यक है जैसे बैलगाड़ी के दोनों पहिए और इनका सामंजस्य बन रहना जरूरी है | 
  • मानसिक एकाग्रता का का भाव आपके प्रयास  से ही पैदा होना है और वह भी अपने संकल्प की नित्य आवृत्ति से आपको प्रति पल यह याद रखना चाहिए | 
  • कर्म के प्रति गहरी श्रद्धा से ही आप कर्म बन्धः से मुक्त होकर अनवरत सत्य चित्त आनंद  में  पहुँच पाओगे और वहां आपका आनंद और लक्ष्य की पूर्ती स्वयं हो जानी है | 
  • जीवन को मुद कर देखने की आवशयकता है नहीं है वहां आपके अलावा कोई होता ही  कहाँ है  अतः उसके पूर्ण होने में आपका भय मुक्त और अकेला होना आवश्यक है |

Sunday, May 22, 2016

अपने लक्ष्य को एक जुनून में परिवर्तित करो Make your goal into a passion

अपने लक्ष्य को एक जुनून में परिवर्तित करो
Make your goal into a passion


एक गुरु आश्रम में  कोई बड़ा उत्सव मनाया जाने वाला था  ७ दिन शेष  बचे  थे  सभी लोग कठिन परिश्रम से आगे आने वालों की व्यवस्था कर रहे थे , सारे  शिष्य  जोरो शोरो से अपनी गुरु सेवा का पालन कररहे थे ,ठण्ड का हिमालय वाला समय था ,गुरु जी ने आदेश दिया  कि  लकड़ियों का पर्याप्त प्रबंध किया जाए, सारे शिष्य जंगल में कूद पड़े बस दो तीन शिष्य रसोई और सफाई आदि  के  प्रबंध  में लगे रहे ,उनमे से एक शिष्य गूंगा था नाम था सोऽहं ,इशारों और समय की भाषा बहुत अच्छे से समझ लेता था ,रात्रि में दो बजे उठ  कर  सारी सफाई  धुलाई  और हर वह काम जो, छोटा समझा जाता था ,वह उसे करने में माहिर था , रात्रि को सारे बर्तन मांज कर सुबह की व्यवस्था करना उसका ही काम था । जब गुरु अपने शिष्यों को पढ़ा रहे होते थे ,तब वह बड़े विनम्र भाव से काम करते करते भी उन्हें देखता और प्रणाम करता रहता था ,सब लोग उसे पागल ही समझते थे ,परन्तु गुरु जानते थे कि  वह आज्ञा कारी और बहुत मेहनती है बेचारा सुनने और  बोलने में असमर्थ है बस , जैसी ईश्वर की लीला ।

आश्रम के बहार अन्य शिष्यों ने ,लकड़ियों और सूखे वृक्षों का ढेर लगा दिया था , एक बड़ा पहाड़ ,रसोइया गुरूजी से कह रहा था कि   मुझे तो कटी लकड़ियां चाहिए महाराज ,ऐसे कैसे काम चलेगा , महाराज गहन चिंता में थे २ दिन बचे  थे कार्य क्रम में  ,सारे शिष्य लकड़िया रख  कर खाना खा कर  सो चुके थे ,सारा काम करने के बाद सोऽहं को गुरु माँ खाना खिला रही थी    और गुरु देव से परेशानी की बातें भी सुनती  जा रही थी ---कैसे  होगा सब ,कल आमंत्रण भेजने है ,बहुत काम है ,अथिति निवास बनाने है  ,और लकड़ियों का ढेर ,ये सब मिलके भी नहीं काट पाएंगे ,इन सबको सोचकर --- पसीने की लकीरें स्पष्ठ थी गुरु देव के माथे पर | 

सुबह होने को थी मुर्गा कबका बांग दे चूका था रात भर सो नहीं पाये थे गुरु , , जमीन को उठते ही प्रणाम किया तो वो गीली थी ,कोई पूर्व में ही उसे साफ करके जा चुका था ,  गुरु ने आश्रम के बहार कदम रखा ही था कि , जो दृश्य उन्होंने देखा वो असम्भव सा  था ,गुरु  माँ एक बड़े पत्थर पर बैठी है और सोऽहं  सारी लकड़िया काट कर रसोई घर में पहुंचा चुका है ,गुरु माँ ने बताया कि  पूरी रात में उसने एक अदृश्य शक्ति की तरह सारी लकड़िया काट दी है ,सुबह सारे आश्रम की सफाई कररहा था ,तब मैं  जागी , तो वह बिना किसी भाव के आपके उठने की प्रतीक्षा में था ,गुरु विस्मित , गदगद , और निरुत्तर थे बस वो पाँव दबाते सोहम को देखते रहे | 

आश्रम में सन्यासियों और गुरुओं का जमावड़ा था गुरु के बाबा गुरु भी आये थे हिमालय से ,उन्हें ही सफलशिष्यों की सफलता की घोषणा करनी थी ,बड़ी बड़ी दीक्षाएं और शिक्षाओं के साथ सरे शिष्य सजे धजे खड़े थे ,पता नही किसको कब पुरूस्कार मिलजाए , सोऽहं  रसोई में काम करवा रहा था, बार बार प्रणाम करता जाता था , प्रमुख रसोइया कईबार सबके साथ उसकी हंसी उडा  चुका था ,ये प्रणाम ही करता रहता है ,मगर  मेहनती है बेचारा पागल है न | 
अचानक महां  गुरु ने  नाम पुकारा ----महायोगी निवृत ---- सन्नाटा खिच गया था आश्रम में ,गुरु ने  कहा  महाराज यहाँ इस नाम का कोई नहीं है , अचानक सोऽहं गंदे मैले कुचैले कपड़ों में गुरुको प्रणाम करने पहुंचा --महागुरु  --गुरु से बोले पुत्र यही है महायोगी निवृत    ---पर इसे तो  ---- हा जानता हूँ ,यही बताएगा सब ,मैंने ही इसे इस आश्रम में भेजा  था | महा  गुरु ने पूछा पुत्र कैसी रही आपकी यात्रा ---- निवृत ने  गुरु को प्रणाम कर कहना आरम्भ किया 

देव आपके आदेश के बाद मुझे मेरे गुरु मिलगये थे ,जिस दिन मैंने इन्हें गुरु मान लिया मैंने अपनी आवाज अपने गुरु को ही मान लिया था , फिर मुझ पर बोलने को कुछ था ही नहीं ,देव संसार में बहुत कुछ सुनना ही सबसे बड़ा रोग है ,गुरु पाने के  पश्चात केवल गुरु की आवाज के अलावा सारी आवाजें व्यर्थ  थी ,तो  मैंने स्वयं को गुरु की आवाजे सुनने का माध्यम बन लिया और कुछ सुनना ही बंद करदिया ,और सेवा परिश्रम और प्रसंशा  ही तो अभिमान पैदा करती है|  ,इसलिए स्वयं को पागल के रूप में रख दिया ,और हर पल अपने काम के साथ भी अपने गुरु को प्रणाम करता रहा इससे मैं अपने लक्ष्य को याद करता रहता था ---जिससे  कोई मुझसे न तो तुलना करें  और मुझे केवल पागल समझ कर अपने काम में लगे रहने दें | जिससे मैं  अपने गंतव्य तक बिना अवरोध के पहुँच  पाऊं --यह कहकर सोऽहं या निवृत अपने गुरु के चरणों में गिर गया महा गुरु बोले पुत्र धन्य हो तुम,  एक दिन  ये ही सूत्र जीवन में सफलता के प्राथमिक कारण बनेंगे ,आओ अब आगे का मार्ग आपको बुला रहा है --- यह कहकर महा गुरु आशीर्वाद देते हुए और निवृत्त प्रणाम करता हुआ आकाश मार्ग से अदृश्य हो गए | 


जीवन में सफलता का एक ही द्वार है वह है कठिन  पारिश्रम नियत उद्देश्य और उसे प्राप्त करने का मार्ग , सबसे बड़ी विडम्बना यह है की सबके पास इन तीनों की कोई कमी नहीं है, मगर इसके साथ यह भी आवश्यक है कि आप अपने लक्ष्य को हर पल हर घड़ी हर स्वास के साथ याद रख पाये कि  नहीं ,यदि आप ऐसा नहीं करपाए तो ,आपके पास सफलता के लिए बहुत कम  भाग बच पाएगा  और आपके लक्ष्य निरन्तर बदलते बदलते ,आपके सारे जीवन पर एक भारी प्रश्न चिन्ह बन जायेगे ,जीवन का स्वाभाव ही ऐसा है कि  जहां भी कोई कठिनाई आई ,वह सरल रास्ता चुनकर निकल भागने का प्रयत्न करने लगता है , यह नहीं तो यह सही , मगर यदि आपका संकल्प पूर्ण और सत्य के साथ है तो देर सही मगर सफलता आपकी ही होगी इसमें संदेह नहीं है | 


लक्ष्य  से प्रेम उसी तरह हो ,जिसप्रकार एक प्रेयसी या प्रेमी अपने प्रेमी  के लिए विहृल , आतुर और कुछ भी करने की भावना का भाव लेकर प्रतीक्षा रत होजाता  है , वह हर रुकावट , कठिनाई और आग के दरिया को भी लाँघ जाने की शक्ति पैदा करलेता है , वह जीवन की किसी  भी चिनौती को  अपने कद से बड़ा नहीं समझता और किसी भी सूरत में प्राप्ति की कामना रखता है , उससे कौन सफलता को दूर कर सकता है ,मेरे दोस्तों यह कोई प्रेमी या प्रेयसी नहीं यही आपके लक्ष्य की कामना है ,जिस  छड़  आपके सम्पूर्ण अस्तित्व की आवाज एक कशिश बनकर अपनी मंजिल को पाने की चेष्टा करती है तो हर सफलता आपके सामने नत मस्तक हो जाती है | 



  पागल था सूरा --- ------कबीरा बेगाना  था -------  तुलसी भी बोरा था ---------- मीरा थी बाबरी 
संसार  से जब तक आप कुछ चाहते रहोगे ,वह भी आपसे कामनाओं पर कामना करता रहेगा और कभी आपको अपने लक्ष्य में सफल नहीं होने देगा , यहाँ संसार आपसे ही  मांग करता है कि आप एक अच्छे पुत्र ,पुत्री एक अच्छे पति या पत्नी या एक अच्छे पिता माता ,भाई -बहिन , और हजारों रिश्तों में आप पूर्ण हों और उसके लिए बेचारे बने रहें ,तो उसका  अहम शांत रहेगा और जहा   समाज को स्वयं को छोटे पन का अनुभव हुआ, वह आपका विरोधी हो जाएगा ,तुलसी  कबीर ,सूर , और मीरा  ये महा पुरुष इसबात   स्पष्ट कर चुके है  कि  ,जीवन को दूसरों की इच्छा के अनुसार बनाने वाले ,केवल असफल , अशक्त और हारे हुए होते है ,जिन पर समायोजन करते करते अपना खुद का कुछ रह ही नहीं जाता और जबतक आप स्वयं को अपने संकल्प के जैसा नहीं बन पाये तबतक आप सफल , आंनदित और  पूर्ण नहीं हो सकते 
इसलिए अपने संकल्प को पूरा करने के लिए पागलों की तरह परिश्रम रत रहो और यही जूनून तुम्हे तुम्हारी दृष्टी की सीमा  से अधिक तुम्हे सफल सिद्ध कर देगा | 


 निम्न का प्रयोग करके देखिये 
  • सफलता का भाव स्पष्ट और सहज दृष्टि  गत होता रहे ,उसके लिए बार बार चिंतन , सीमाएं और एक सहज मार्ग अवश्य बनाया जाए ,अन्यथान आप आगे जाकर स्वयं भ्रमित हो जाएंगे | 
  • अपने संकल्प को निरन्तर याद कीजिए , और प्रति दिन आप उसके लिए क्या करपाए या क्या नहीं कर पाये इसको अवश्य ध्यान से देखते रहेँ,  जिससे आप स्वयं की गलती समझ सकें | 
  • सफलता का सूत्र इस बात पर निर्भर है कि  उसके लिए आप क्या बलिदान दे पारहे है और इसको हमेशा याद रखे कि  संकल्प की पूर्ती के लिए उन सब क्रियाओं  का बलिदान करें जो इसमें बाधा हों | 
  • सामयिकी धर्म का सबसे बड़ा शब्द है अर्थात जिस समय का संकल्प के अनुरूप सार्थक प्रयोग हुआ है वही सच्चे अर्थों मे  जीवन का मायने है ,जो समय संकल्प के अनुसार नहीं रहा ,वह व्यर्थ रहा, इस जीवन की निरर्थकता कहा  गया है | 
  • संकल्प की व्याख्या किसीसे न की जाए ,केवल अपने अंतरात्मा में उसे पूर्ण किया जाए, अन्यथा वह सफलता से पहले ही आपका अहंकार बन जाएगा | 
  • संकल्प और लक्ष्य का निर्णय के बाद आप यह निश्चित अवश्य करें कि यह आपका निर्णय है और इसकी सफलता असफलता आपकी है , ऐसे में दूसरों की बातें सुनने के लिए आप बाध्य नहीं है ,इससे आपको एकाग्रता और शक्ति मिलेगी | 
  • स्वयं को संकल्प दोहराने की और स्वयं को सकारात्मक लक्ष्य के लिए निरन्तर धन्यवाद कहें आपको लगेगा की आपकी बहुत सी राहें आसान हो गई है | 
  • स्वयं को अपनी दृष्टी में सम भाव में रहने दें ,न तो दयनीय बनने की आवश्यकता है और न ही बहुत बड़ा दिखने की कोशिश करें, दयनीयता का भाव आपको अपनी नजर में गिरा  देगा ,तो बड़ा दिखने का भाव अहंकार ग्रस्त कर देगा 
  • शांत और सहज भाव से स्वयं के संकल्प के प्रति आप अपनी क्रियान्वयनता   को देखते रहे ,जहां आपको लगे कुछ और सार्थक किया जा सकता है तुरंत करें | 


ब्रह्मांड के एक सुदूर तारे को लक्ष्य बना कर किसी अंतरिक्ष यान में जाते हुए किसी महान इंसान की कल्पना अवश्य करना जिसे यह मालूम है की एक छड़ में विस्फोट के उसका  अस्तित्व भी राख में बदल सकता है ,फिर भी वह बहुत प्रसन्न है कि  यही मेरा लक्ष्य है, अब जीवन मृत्यु सब मेरी ही तो है ,तो फिर शिकायत किससे ,यही भाव जब आपके मन मष्तिष्क की शिराओं में उतर जाएगा तो आप यह सच जानना की दुनिया की हर सफलता आपके सामने छोटी हो जायेगी



Sunday, May 15, 2016

जीवन का चरम लक्ष्य और हम (ultimate goal of our life)

जीवन का चरम लक्ष्य और हम
(ultimate goal of our life)

शुभम परीक्षा की तैयारी में था मन बहुत  अशांत था ,कोई तो नहीं था उसके दुःख सुख की कहानी सुनने वाला, एम। टेक  का आख़िरी सेमिस्टर था ,  माँ ,पिता और बहिन अभी हाल ही मे एक कार एक्सीडेंट में गुजरगए थे , चाचा , ताऊ और रिश्तेदारों ने सारी संपत्ति पर कब्ज़ा करलिया था ,तमाम कोर्ट कचहरी के बाद एक छोटा भाग जिसमें कभी बाबा के जमाने में नौकर रहते थे शुभम को मिल पाया था , और सबकुछ मिलने के बाद भी मन में एक गहरी वेदना थी ऐसा जैसे भयानक वेदना के बाद उसे रोने नहीं दिया जा रहा हो ,उसने तय किया की इस  तिरस्कृत जीवन से  बेहतर यह है कि  इस समाज को ही छोड़ दूँ यह सोचकर  उसने अपने जरूरी कागज़  २-३ कपडे बैग में डाले और एक ट्रैन में सवार होगया उसे कब नींद आ गई पता नहीं | , 
ट्रैन चली जा रही थी लगभग १६ घंटे बाद उसकी नींद खुली उसने उसने यन्त्र वत  भाव से  सबको देखा , मन में फिर माता  पिता , और रिश्तेदारों के अन्याय के विचार आने लगे और उसे लगा कि अब है ही क्या , अचानक वो एक पहाड़ी स्टेशन पर उतर गया और एक ऊँचे पहाड़ी टीले पर से उसने जीवन समाप्त करने की छलांग लगा दी , ५ दिन बाद उसको होश आया तो उसने देखा कि एक साधु की कुटिया में वो लेटा  है ,साधु उसकी सेवा कररहा है एक ऐसे भाव से जैसे वो उसका ही पुत्र हो , कुटिया  में छोटे छोटे ग्रामीण बच्चे उसकी सेवा में थे कोई हाथ मल रहा था कोई पाँव दबा  रहा था कोई उसके सिर  में दवा युक्त तेल लगा रहा था ,और वह पूर्ण आराम में था | ,
साधु ने बताया पुत्र आप एक पेड़ में अटके थे आप कैसे गिरे मालूम नहीं था मगर बच्चे आपको यहाँ लेकर आये बताया आप बहुत  पढ़े लिखे हो ,फिर ऐसी नादानी क्यों की आपने ,साधु निर्बाध गति से बोले जा रहा था ---
पुत्र मैं  सब जानता हूँ की तुम्हारे साथ क्या हुआ ,,परन्तु वो सब नहीं होता तो तुम सफल भी नहीं हो पाते , ईश्वर ने तुम्हारा रास्ता उस दलदल से निकालकर एक अजेय और परम सत्य का मार्ग दिया है ,तुम उसकी चिनौती स्वीकार करो और जीवन को सफल बनाओ , बेटा निष्काम कर्म का मार्ग सबसे कठिन है ,मगर आज से आप उस कर्म का संकल्प करो, जीवन तुम्हें क्या क्या देता है ,यह देखते जाओ ,साधु की बात और अपनी मेहनत से शुभम ने पहली बार में आई.ए.एस.की परीक्षा पास की और पिछड़े -दलित और निस्सहाय लोगो की सेवा में लग गया ,उसे यह रहस्य मालूम हो गया था जीवन बहुमूल्य है और निस्सहाय को ख़ुशी देने का अर्थ और सुख क्या होता है | आज उसे सन्यासियों का ईश्वर ,पैगम्बरों का अल्ल्लाह और गुरु परम्परा  में नानकका एक ओंकार और प्रेयर में डूबे पादरियों का ईसा सहज ही मिल गया था | 

संसार का एक ही नियम है कि जब आप बहुत बड़े आदर्श लक्ष्य का मार्ग तय करते हो तो  वह आपकी इतनी परीक्षा लेता है कि आप अपना साहस ही खो देते है ,मगर ध्यान रहे यदि आपके पास एक  विश्वास , कर्म की शक्ति और संकल्प की लाठी होगी तो आप समय और हर समस्या को सहज ही लांघ जाएंगे , आपके रिश्ते, नाते , अपने और दोस्त केवल बाह्य भावनाओं के साथ संसाधनों से जुड़े रहते है मगर सबमे एक सहज ईर्ष्या का भाव हमेशा बन रहता है परिणाम यह कि  वे किसी बुरे शत्रु से अधिक आपको हानि पहुंचाते रहते है ,क्योकि उनके मूल स्वाभाव में स्वयं को सर्वोपरि बताने की होड़  बनी ही रहती है | 

भगवान महावीर समय को सबसे बड़ा संकल्प साधन मानते थे उनका मानना था कि जिस समय का प्रयोग सत्कर्म और सकारात्मक स्वरुप में किया गया ,वह धर्म है ,यहाँ यह स्पष्ट समझ लें कि सकारात्मक संकल्प का आशय यह है कि आप स्वयं के अविनाशी , अतुलित शक्तिस्रोत , और एक परा सत्ता  के निष्काम कर्म का माध्यम हो इसे समझना आवश्यक है , उनका सामायकि मंत्र यह बताता था  कि अब संसार का चिंतन नहीं वरन अपने मूल स्वाभाव का चिंतन करें जो अति शक्ति संपन्न है , आपका जन्म उस अजेय कार्य को सिद्ध करने के लिए हुआ है जो आपको और आपके जीवन को स्वयं सिद्ध कर देगी ,आवश्यकता आपको स्वयं का घ्यान ,एकाग्र और निष्काम भाव के संकल्प की है | 

एक युवा शिष्य ने गुरु से पूछा कोई नहीं है मेरा क्यों न मैं आत्म हत्या कर लू ,गुरु ने कहां पुत्र तुझे  ५०० वर्षों की यातना के बाद फिर पैदा होना होगा ,फिर तेरे बच्चे  पत्नी और तेरे अपने आत्महत्या कररहे होंगे,क्योकि पूर्व में तूने उन्हें ये दुःख दिया था ,और यदि यहाँ भी तूने वोही मार्ग अपनाया तो आगे के १००० वर्षों तक फिर यातनाएं भुगतेगा यहाँ फिर तुझे अकाल मृत्यु  में जाना होगा और जन्मों तक यह क्रम चलता रहेगायही हिन्दू धर्म का सर है , इस लिए निष्काम भाव से कर्म करो और जहाँ हो , जैसे हो , अपने संकल्प की शक्ति से अनवरत चलते रहो एक दिन हर सफलता आपकी होगी | 

 हार, दुःख ,धोखा ,अन्याय और यातनाएं आपको और अधिक मजबूत और कर्म के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव देती है ,वो यह स्पष्ट करती है कि व्याक्तित्व के किसी कौने में परीक्षा की तैयारी अच्छे से नहीं हुई है उसमें और परिष्करण की आवश्यकता है ,समाज और संसार आपको केवल तुलनात्मक रूप में सहायता करता मिलेगा ,जबतक आप बेसहारा , बेचारे , यातना पाते, और निचले स्तर  पर उनसे दया की याचना करने वाले हुए तो वह स्वयं को बड़ा बताने की चेष्टा में आपको सहानुभूति अवश्य देगा, जैसे ही आप आदर्शों , नीतिगत ,सत्य और आचरण में थोड़े बड़े होने लगे समाज और मेरे अपने सारे अस्त्र शस्त्र लेकर आपपर हमला  कर देगें और यह सिद्ध करने की कोशिश करेगें की वो ही सर्व श्रेष्ठ है | यही है आपका और मेरा संसार फिर इनकी चिंता कैसी | 

 

 

जीवन का चरम लक्ष्य आर्थिक और भौतिक संसाधनों की बड़ी भीड़ खड़ी करना नहीं है ,न ही दूर नजरों तक फैले अनगिनत क्षेत्रों तक जमीन जायदाद और आसमान छूते बड़े राजप्रासाद है ,अनगिनत खजाने और राज्यों की सीमा कब्जा कर  स्वयं को बड़ा बताने की चेष्टा भी व्यर्थ है , उस लक्ष्य का सम्बन्ध  हजारों शक्तिशाली लोगो का हुजूम और सम्राटों की पदवी भी नहीं है , और न ही सांसारिक उपलब्धियां उसे  श्रेष्ठ साबित कर सकती है ,
जीवन के इस चरम लक्ष्य का सम्बन्ध उस स्थिति से है जहाँ जहाँ मेरा तुलना का भाव समाप्त होजाये ,जहाँ सम भाव में मेरे साथ "सर्वे भवन्तुः सुखिनः "का भाव प्रधान हो जावे | 

जीवन में प्रत्येक जीव के साथ एक अंतर्निहित भाव सम्पूर्ण जीवन चलता रहता है वह हर पल उसे हर कार्य की प्रेरणा और प्रोत्साहन तथा आलोचना प्रदान करता रहता है , उसे  भय , लालच , मोह , और असत्य कुछ भी प्रभावित नहीं करता ,परन्तु दुनिया का हर समय , घड़ी ,और कार्य भी रुक जाए तब भी वह अविनाशी भाव आपका आकलन अवश्य करता रहता है , योगी ,ऋषि , मुनि और परम सत्ता को जानने वाले इसे साक्षी भाव कहते है और यही सिद्ध करता है कि मैं जो हूँ और जैसा दिखाने की कोशिश कररहा हूँ उसमे  अंतर है , वह दूर बैठा जीवन के हर कार्य की समीक्षा करता रहता है और बताता रहता है की जीवन की गति की सफलता किस और है , यही सहज ,सरल और सत्य का वह भाग है जो आपको बता देगा कि  आपका चरम  लक्ष्य पूर्ण हुआ की नहीं बस आवश्यकता एक बार खुद के अंतर में बैठे साक्षी भाव से साक्षात्कार की है | 

चरम लक्ष्य  की समीक्षा में इन्हें प्रयोग अवश्य करें 

  • सबसे पहले आप अपने से जुड़े नकारात्मक संसार के हर सम्बन्ध और व्यक्ति को माफ़ कर दो और उनका चिंतन बंद करदो माफ़ करने का मतलब उनको अपने मन मष्तिष्क से ख़त्म करना है | 
  • स्वयं को सिद्ध करने के लिए वाद विवाद और जिरह की आवश्यकता नहीं है समय का इंतज़ार और पूर्ण मनोयोग से कार्य करने का भाव बनाये रखिये समय आपको स्वयं सिद्ध कर देगा | 
  • हमारा सुख जितने बड़े संसार के सुख का कारक होगा हमें उतना ही अधिक सुख मिल पाएगा , खाने का सुख हमे ही मिला , परिवार को मिला तो और सुख हुआ, नगर को मिला तो और अधिक सुख , कहने का आशय आपका सुख जितने समाज को साथ लेकर चला आपको उतना सुख मिलेगा | 
  • सत्य का भाव आपके चरम लक्ष्य की पवित्रता और सहजता को बनाये रखेगा क्योकि , झूठ एक दिन आपको खुद अपमानित और समस्या में खड़ा कर  देगा क्योकि झूठ केवल झूठ होता है | 
  • स्वयं को जानना और अपने को सिद्ध करना सबसे बड़ा कार्य है , उसके लिए आपको स्वयं का ही चिंतन करना होगा वो भी एकाग्र और पूर्ण साधन में स्वयं पर विचार करके | 
  • जीवन को निष्काम कर्म के साथ जोड़ने का प्रयत्न करें ध्यान रहे की यह आपकी और से निष्काम हुआ तो प्रकृति की और से हजारों गुना सफलता का कारक होगा यह निष्काम कर्म | 
  • अहंकार और खुद का झूठा प्रदर्शन आपको शक्तिहीन , भिखारी और निस्तेज कर देता है वहां आप दूसरों की कृपा पर आजाते है की वे आपको सच माने अन्यथा आपका सारा प्रयत्न व्यर्थ हुआ | 
  • स्वयं की तुलना न करते हुए निरन्तर गतिशील रहने का प्रयत्न करें , आप यह निश्चित जनले की आपकी निरंतरता आपको एक दिन अवश्य सफल बनाएगी | 
  • आवश्यक नहीं कि आप बहुत बुद्धिमान , पढ़ेलिखे और अति ग्यानी हो आपको सत्य संकल्प से अपना मार्ग तय करना है और निरन्तर उसे मन में जाग्रत रखना है आपको सारी उपलब्धियां जल्दी मिल जाएंगी | 

        ||  असफलता - नैराश्य और जीवन को ख़त्म करने का भाव  आपको बार बार पैदा होने के बाद उसी उपलब्धि पर खड़ा कर देता है जहाँ से आपने जीवन छोड़ा था फिर आपको उसी असफलता को सफलता में बदल कर आगे की यात्रा करनी होती है, तो आप जहाँ असफल हुए है वहीँ से स्वयं को और शक्तिशाली बनाइये और एक बार फिर पूरी ताकत से अपने लक्ष्य को पूर्ण करने में जुट   जाइये ध्यान रखना कि एक दिन सारी दुनिया की सफलताएं आपके इस प्रयास के सामने नत मस्तक हो जाएंगी ||

Monday, May 9, 2016

जीवन की सफलता और नैतिक मूल्य (Career success and ethical principles)


जीवन की सफलता और नैतिक मूल्य
Career success and ethical principles


शार्ट कट तकनीक में चलता ,  हमारा रोहित  बहुत  बड़ा ड्रामे बाज था ,स्कूल के समय से ही उसे ऐसी ऐसी  तकनीकें आती थी कि सब लोग आश्चर्य में  आजाते थे ,टीचर का  काम पूरा नहीं हुआ तो रुआंसा , उसने बताया माँ की तबियत बहुत  खराब थी, सारा काम मैंने ही किया, आपने ही कहा था , माँ बाप की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है, गुरूजी की आँखों में अपना धूर्त पुत्र घूम गया बदतमीज ,नालायक और जाने क्या क्या --भरी आँखों से मास्टर जी बोले , शाबाश  बेटा और रोहित सीना तन के  गया ,पास बैठे  मित्र ने पूछा रोहित आंटी तो कल हमारे यहाँ किटी पार्टी में  बिलकुल ठीक थी ,क्या हुआ उन्हें  , कुछ  नहीं हुआ पर यदि  मैं  सच बोलता तो ,  मुझे जरूर कुछ होजाता ,यह कहकर हंसने लगा राहुल | 
धीरे  धीरे समय बीता कॉलेज में उसके चारों और लड़कियों की भीड़  होती थी , किसीको पिता की निर्दयता का वास्ता दिया जाता था ,किसीको माँ की तबियत ठीक न होने का वास्ता, किसी को यह बताया जाता था कि  मैं अपने पिता की पहली पत्नी का पुत्र हूँ और सौतेली माँ के अत्याचार का शिकार हूँ , और सारे झूठ जब काम नहीं आते थे तो वह यह कहने से भी नहीं चूकता था, कि मेरे ब्रेन में बड़ा ट्यूमर है जीवन ही कहां  है मुझ पर , ऐसी बड़ी बड़ी बातें करके लोगों को फ़साना उसके बाए हाथ का खेल था , कालेज में कौन  प्रोफेसर कौनसी कॉपी जांच रहा है, उससे कैसे नंबर बढ़वाने है , कैसे उसे फ़साना है यह खूब जानता था राहुल और इसतरह उसने इंजीनियरिंग भी कर ली और केम्पस सेलेकशन  में एक सामान्य पोस्ट पर उसे नौकरी भी मिलगई | 
लम्बा समय बीत गया था माँ बाप भाई बहिनों से उसके रिश्ते वैसे ही बहुत ठन्डे थे , उसे ये ज्ञान था सब लोग स्वार्थी है और माँ बाप ,हरेक माँ बाप यही करता है ये उनका कर्त्तव्य है कोई अहसान नहीं किया उन्होंने ,बड़ा प्रेक्टिकल था हमारा राहुल २०  वर्ष पहले उसने झूठ और सहानुभूति के नाटक में कंपनी डायरेक्टर की लड़की को फंसा कर शादी करली  और कंपनी का सी.ई. ओ. बन बैठा ,पत्नी को धीरे धीरे उसके झूठ , स्वार्थी पृवृत्ति और हर आदमी फ़साने का भाव समझ कर ,उसकी हर चाल समझ आने लगी , उसनेकई बार राहुल को बहुत समझाया फिर अंत में एक दिन उसने अंतिम निर्णय लिया वह सामने बैठे राहुल से निर्बाध बोलती रही ,कि  मैं  भी एक सम्मानित कंपनी में डायरेक्टर के पद पर हूँ ,जहाँ तक मेरा प्रश्न है मैंने अपना जीवन निकाल लिया है तुम्हारे साथ ,अब बच्चों के सवाल पर मैं  उन्हें तुम्हारे जैसा अय्याश मक्कार मतलबी नहीं बनने  दूंगी  ,आज तुम कान खोल कर सुनो ,कि झूठ ,चालाकी ,फरेब ,और दूसरों का शोषण करके ,आपने एक बड़ी सल्तनत बनाली है मगर नैतिक मूल्य ,शांति , और पत्नी बच्चों से प्रेम आपमें बिलकुल नहीं है , आज आप समाज में पैसे रुतबे और पद में बहुत ऊंचे है मगर आपके बराबर कोई भिखारी नहीं है , आप जिन लोगो के साथ सम्बन्ध बनाए हो ,वो लोग जानते है कि आप उनका नहीं वो आपका उपयोग कररहे है | आज आपके बच्चे  भी आपकी हर बुराई को जान चुके है ,इसलिए आज मैं बच्चों के साथ सब छोड़कर जा रही हूँ और राहुल की पत्नी बिना उसके उत्तर की प्रतीक्षा किये बच्चों के साथ वहां से चली गई ,राहुल जानता था   कि वो जो कह रही है सब सत्यही  तो था | 

कुछ दिन हूकेयर्स वाली स्टाइल में जीवन चल, थोड़े समय बाद जीवन का एक एक सीन जब रातके सन्नाटे में उसके सामने से निकलता था ,तो भयावह चीखों -रुदन स्वर और मात पिता का मासूम चेहरा बार बारउसके  सामने आजाता था , राहुल ने अपने तमाम वैभव , संपत्ति ऐश्वर्य को देखकर  उन लोगो का चिंतन किया जो उसके आसपास थे ,सारे के सारे  चापलूस , मक्कार और कैसे भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले , वो जिनके बीच था वो उससे स्वार्थो की बाजी खेलकर उसके मरने की प्रतीक्षा कररहे थे और जो उसके अपने थे उन्हें वो अपने से दूर कर चुका था, उसने पूरे जीवन यही तो किया था , उसके सामने अँधेरा छाने लगा जीवन सबकुछ होते हुए भी जीवन भार सा दिखने लगा ,  हर आदमी उसे दुश्मन जैसा दिखने लगा और जीवन की सम्पूर्णता ने उसे सबकुछ होते हुए भी असफल , नाकारा , और निकृष्ट सिद्ध करदिया था , उसे मालूम था इसका सूत्र धार केवल वो है और जो कुछ उसने किया है उसका कर्म फल उसे ही भुगतना है यह सोच कर उसने अपनी हार स्वीकार कर सर झुका लिया | 

अपने चारों ओर सत्य और सहजता की परिधि बनाइये ,क्योकि ये अति सरल वाक्य जीवनकी सबसे कठिन परीक्षा लेते है और सत्य मानिए की जो इन परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाते है, वे स्वयं सफलता के मार्ग दर्शक बन जाते है ,आपको जीवन की प्रत्येक गति और आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक दिशा चिन्ह तो तय करना ही होगा जो आपको आपके मार्ग के बारे में जानकारी देता रहे ,ध्यान रहे यदि सत्य सहजता और अहंकार से मुक्त पथ प्रदर्शक चिन्हों के साथ आपने अपना सफर आरम्भ किया तो आप जिसकी चाह करते है उससे भी अधिक उपलब्धियां आपको हासिल हो जाएंगी |


जीवन का प्राथमिक  आधार है मन ,बुद्धि आत्मा से संतुष्ट होना ,और उसके लिए सर्व  प्रथम   अपने आपको शुद्ध और परिस्कृत करना होगा , मानसिक जटिलताएं और कैसे भी कार्य करने का भाव तो आपको बिलकुल छोड़ देना होगा ,क्योकि अंतिम रूप में मन को यह निर्णय करना होता है की आपने जो भी जीवन जिया है ,वह अपनी ही मानसिकता के लिए गुनाह तो नहीं था  और यह बहुत महत्व पूर्ण है कि  जिस कार्य में आपकी आत्मा ही आपको गुनहगार बता रही है वो कर्म कालांतर में आपको कर्म भाव बनकर खड़ा होनाही है , फिर एक पश्चाताप की बड़ी श्रृंखला आपको अपने उत्तर के लिए विवश कर ही देगी | 





मनुष्य की हजारों इच्छाएं उसे बार बार उनकी पूर्ती के लिए उकसाती रहती  है , शरीर अपनी आपूर्तियों के लिए आपको विवश करने की बात करेगा , आवेश आपको बार बार अपनी अंतरात्मा की आवाज को कमजोर करदेंगे और शरीरकी सम्पूर्णता आपको पूरी ताकत से यह कहेगी की इससमय यही सबसे बड़ी आवश्यकता है , आप यह भी जान लीजिये की इस आवश्यकता की पूर्ती के तुरंत बाद आपको एक अतृप्ति , कमी , या उसकी अपूर्णता काभाव फिर खड़ा करके आपको और आंदोलित कर सकता है आपूर्ति का प्रश्न वासनाओं का हो या आवश्यकताओं का या भौतिक  पदार्थों का वह आपको कुछ समय बाद ही ठगा हुआ सा सिद्ध कर देता है , आपको सम्पूर्णता की चाह जीवन भर बनी रहती है ,और हर पल एक नयी आवश्यकता आपको अपनी आपूर्ति हेतु उद्धत होने का न्योता देती है , मन अभी पूर्व की आपूर्ति का सुख ले ही नहीं पाया था  कि दूसरी आवश्यकता आपको पुकारने लगती है , परिणाम पूर्व की आपूर्ति की कमी अगली आवश्यकता के सफल भाव को भी कम कर डालती है ,परिणाम आदमी अपनी इच्छाओं वासनाओं से हारा और निराश सा दिखाई देता है | 

  यदि ब्रह्मांड में सबसे बड़े भिखारी की खोज की जाए तो वह है हमारा मन है ,जो हर पल नयी नयी रचनाएं करके आपूर्ति की मांग करता रहता है , आत्मा की मांग, शरीर की मांग ,भौतिक लिप्साओं की मांग ,और सब ठीक हुआ तो हमारे अहंकार कीमांग, जिसे हम कही  भी पैदा कर लेते है ,एक आवश्यकता पूरी हुई नहीं कि ३ नयी आवश्यकताएँ खड़ी होकर मुंह चिढ़ाने लगती है और जब आवश्यकता नहीं थी ,वह तब भी असंतुष्ट थे ,और अब आवश्यकता पूरी हो गई है तो, और ज्यादा असंतुष्ट है फिर जीवन को सफलता का सूत्र कैसे मिले | 

यदि आप जीवन की इन विषमताओं में स्वयं को सिद्ध करना चाहते है तो ,उसके सूत्र बहुत सरल और  प्रयोग करने लायक है , हम जब भी कही गति करते है तो मन में विचार , और संकल्प अवश्य करते है , प्रथमतः संकल्प की शक्ति को  मुंह से दोहराएँ खूब दोहराए , इसके बाद उसे मन में दोहराए और तीसरे तल पर जाकर उसे दृश्य रूप में देखने का प्रयत्न करें  फिर निरन्तर उसका ध्यान बना  रहे यही सफलता का प्राथमिक एवं अचूक मंत्र है ,ध्यान रहे कि आपका लक्ष्य जितना बड़ा होगा आपको उतनी ही बड़ी उपलब्धि हासिल होगी | 

हम सब बिना सोचे एक दूसरे की देखा देखी भागे चले जा रहे है बिना यह सोचे  की इस उपलब्धि के बाद क्या हासिल होगा हम इसे प्राप्त करले तो क्या ,नहीं करें तो क्या, शायद ज्यादा कोई अंतर पडेगा नहीं ,हमारे जो भी मानदंड थे क्या हम उनका पालन कर पा रहे है या नहीं , हमारे साथ नैतिक मूल्यों की कोई जंजीर है या नहीं 

 बहुधा हम जब बहुत ऊंची चढ़ाई के लिए जाते है तो जंजीर , कीलें  कुंदे और पैराशूट आदि सब इंतजाम रखते है ध्यान रहे कि इनमे से कोई भी यदि नाकारा सिद्ध हुआ तो जीवन को मिटने में क्षण भर भी नहीं लगेगा ,परन्तु जीवन की ऊंचाइयों में चढ़ते वक्त हम कोई सामान जैसे सहजता के मूल्यों की सपाट जंजीर ,आत्मनियंत्रण के लिए मोटे कुंदे ,और हर पल  अपने गंतव्य को सही रूप में याद रखने हेतु संकल्प की छोटी छोटी कीलें, तथा जीवन की कालिमा , जटिलताओं , और कलुषित व्यवस्थाओं में निर्लिप्त भाव से तैर जाने हेतु निर्लिप्तता का पैराशूट रख पाए है या नहीं यह अवश्य विचार करते रहें | 

                           निम्न को भी अपनाएँ 
  •  मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त है और जीवन बहुत छोटा है ऐसे में उसे अपनी प्राथमिकताएँ तय करनी होंगी ध्यान रहे कि  जो आवश्यकताएँ आपको दीर्घ कालिक सन्तुष्टिदें उनका चयन करें | 
  • मन और शरीर दोनों  ही अपनी अपनी मांग करते रहते है परन्तु शरीर की मांगे नित्य नयी होती है और धीरे धीरे मन की आत्मा की आवाज मृत  प्रायः होजाती है बस यहाँ से सारी  उपलब्धियां व्यर्थ होजाती है ।ऐसे में मन की आवाज को जीवित  रखने का प्रयत्न करें | 
  • उन आवश्यकताओं को तेजी से पूरा करने की कोशिश न करें जो आपके मन के विपरीत हों और जिन्हे आपको बार बार पूरा करने की आवश्यकता हो | 
  • नैतिक मूल्यों का आधार भूत भाव है सत्य असत्य की नींव पर कितना ही बड़ा महल खड़ा किया जाए एक दिन उसे ताश के पत्तों की तरह ढह ही जाना है ,क्योकि छोटे छोटे झूठ एक दिन आपको झूठ का पुलंदा बना देंगे | 
  • झूठ का सबसे अधिक बुरा असर आपकी आत्मा पर होता है , जो आपको आज नहीं तो कल इतना तिरस्कृत कर देगी कि आप अपनी नजर में ही  गुनहगार साबित होजाएंगे | 
  • सफलता का एक सशक्त सूत्र यह भी है कि जीवन को सहज भाव से जीने का प्रयत्न करें , जिसके लिए आपजैसे है वैसे ही बन जाये बस स्वयं को अपने आपसे झुठलाये मत , इससे एक दिन जीवन की हर सफलता आपकी होगी | 
  • आत्म नियंत्रण की कुछ कीलें अपने हाथों में ठोकें जो गलत न करें , एक कील माथें में ठोके वह गलत का ध्यान न करें , एक कील  ह्रदय पर ठोके जिससे उसका नकारात्मक चिंतन बंधन में  रहे तथा दो कीलें पावों में ठोकें जो आपको नकारात्मक दिशाओं में जाने से रोके रखे यही जीवन की नियंत्रण सलीब है | 
  • क्रियान्वयन से पूर्व हर कार्य की बौद्धिक समीक्षा अवश्य करलें क्योकि अधिकाँश कार्य ऐसे है जो बाद में आपको अपना नकारात्मक स्वरुप अवश्य दिखा देंगे | 
  • आपकी गलतियों को भगवान ही नहीं आपका साक्षी भाव भी देख रहा है यदि साक्षी भाव मैं  होता तो वह मेरी गलती क्यों बताता , अतः यह अवश्य जान ले , कि मेरी निगरानी और कोई नहीं मेरी आत्मा का साक्षी भाव ही कररहा है जिससे बचना असम्भव है | 
  • बिना नैतिक मूल्यों के जीवन केवल वैसा ही है जैसे कोई बहुत बड़ा कलश जिसपर अमृत लिखा था वो कीचड में डूब गया हो और जिसकी दुर्गन्ध के कारण अमृत  भी अपना महत्व खो बैठा है |

Sunday, May 1, 2016

ईश्वर सबसे महान है (God is the Greatest) आपकी सफलता की शक्ति भी है

ईश्वर सबसे महान है (God is the Greatest)
आपकी सफलता की शक्ति भी है

एक संत जी लाखों की भीड़  के सामने जोर जोर से ईश्वर की परिभाषा बता रहे थे अबोध जनता हतप्रभ सी सब सुन रही थी उनके भजन गीत और ईश्वर के प्रति जो भाव थे वे बड़े निराले  और अजीब तरह के थे कभी  यह बताने की भरसक कोशिश कररहे थे कि में दुनिया में आज तक जितने संत हुए वो उनसब में सर्वश्रेष्ठ है योग, तंत्र, मंत्र ,ज्ञान और भक्ति में उनसे बड़ा  नहीं जीवन में ईश्वर से कैसे मिला जा सकता है वो भली भांति जानते है , और क्रोध अपरिग्रह ,समर्पण ,सब उस परमात्मा के लिए आवश्यक है ,एक गरीब किसान उनके भाषण सुन कर इतना प्रभावित हुआ की वह सोचने लगा की महाराज रोज ईश्वर से मिलते होंगे   महाराज सही ही तो कहरहे होंगे कि ईश्वर को  कड़ी मेहनत ,और समर्पण   करके ही  पाया जा सकता है |
भाव कुछ ऐसा था की वह महाराज की सेवा में लग गया मालूम हुआ महाराज की ४ फैकटरियां चल रही है उनके लड़के सारी  सम्पत्तियां सम्भाल रहें है , महाराज फ़ोन पर बात करते करते  कभी कभी इतने क्रोधित होजाते थे कि भद्दी भद्दी गालियां बोलने लगते थे , दूसरों से तुलना करते ही उनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच जाता था और वे उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते थे ,।
एक बार एक बड़े त्यौहार में संत जी का सारा  परिवार प्रसन्न  था खुशियों का वातावरण था अचानक जोर का भूकम्प आया किसान जल्दीसे संतजी को कंधे पर बैठा कर  पलक झपकते ही सामने मैदान में छोड़ आया, और जैसे ही लौटने को हुआ पूरा भवन भरभरा कर ढह गया सारे पुत्र पत्नी बच्चे संत जी जोर जोर से रोने लगे किसान ने बोल महाराज धैर्य रखो भगवान सब ठीक करेंगे , महाराज ने तमाम गालियां देते हुए कहा क्या ठीक करेंगे वो तो जनता को कहने के लिए है तू जा फायर ब्रगेड बुला , और फिर वे जोर जोर से रोने लगे ,
किसान ने अनवरत ईश्वर को याद करते हुए पीछे के गटर के रास्ते से थोड़ी खुदाई की वह उसे थोड़ी आवाजे  आयी उसने और साथियों की मदद से उसमे एक बड़ा सूराख बना कर सबको सा कुशल निकाल लिया संत जी ने देखा की किसान उनके दी हुई भगवान की तस्वीर लिए बड़े ही समर्पण भाव से प्रभु को शुक्रिया बोलरहे है , संत जी किसान के पांवों में गिर पड़े बेटा वास्तव में मैंने ईश्वर को आज ही पहिचाना है , यह कहकर वे सबकुछ छोड़कर जंगल की और चलेगए साथ में किसान भी चल दिया |

भगवान , अल्लाह , जिसिस , क्राइस्ट ,गुरु , और अनेक नामों वाला भगवान अलग अलग माध्यमों से आपके द्वारा पूजा जाता है , वह केवल उनलोगो को अपना अस्तित्व बता पाता  है   जब आप सबकुछ आशा छोड़कर उसके सामने आर्त  भाव से खड़े होजाते है , यही कारण है जब आप महां  संकट में होते है और उससे छूटने का कोई रास्ता नहीं होता आपके पास ,तब आप पूर्ण मनोयोग और १००% आर्त  भाव से उसके समीप जाकर अपना भाव प्रकट करते है और आप सही मानिए की इनमें से ६०% सफलता भी प्राप्त होती है क्योकि यहाँ आपके प्रार्थना पूर्ण थी |

जब भी हम अपनी और समाज की और देखते है तो केवल यही चिंता सताने लगती है की इन सब में मैं  कहा हूँ मेरा अस्तित्व इनकी तुलना में कैसा है,बस यहीं से भगवान लुप्त होने लगता है और मैं  और मेरा अहंकार इतना बड़ा हो जाते है कि जिसमे भगवान का अस्तित्व तक नहीं रह जाता , फिर हर बात में मुझे दूसरों की चिंता ज्यादा सताने लगती है की कहीं कोई मुझसे ऊपर न चला जाए परिणाम व्यक्ति की सारी  शांति स्वयं नष्ट होजाती है |

तुलसी अपने भावों में कई बार लिखते रहे
अहंकार अति दुखद डमरुआ
प्रभुता पाहि कांहे  मद नाही
ओर अंकुरेहु गरब तरु भारी



जहाँ ईश्वर है वह अहंकार  हो ही नहीं सकता, हमारे व्यक्तित्व में ईश्वर जन्म से ही १००%प्रतिशत अस्तित्व में निवास करता था , जैसे जैसे हम बड़े होते है झूठ , बेईमानी , क्रोध स्वार्थ और अपना पराये के भाव से उस १००% में धीरे धीरे कमी आने लगती है परिणाम ईश्वर का भाव लुप्त हो जाता है । फिर हमारा मन अपने व्यक्तित्व के अनुसार एक झूठे और  काल्पनिक ईश्वर का सृजन करलेता है ,जो केवल हमारे स्वार्थों को पूरा करने के लिए ही निर्मित होता है परिणाम यह  कि हर आदमी अपना ईश्वर बनाए हुए है और उसे ही अपने स्वार्थों की आपूर्ति का साधन बनाये है तो ऐसे में आदर्शों की बात तो कोरी कल्पना ही होगी न| | आज ईश्वर के नाम पर धर्म के नाम पर जो विभेद दिख रहा है वह इसी स्वछंदता और अहंकार का परिणाम है |

हम जहाँ है जैसे है जिस कार्य में लगे है वहां पूरी निष्ठां से अपने आदर्शों और सत्य का प्रयोग करते हुए ईश्वर पर विश्वास रखे कि वह आपको एक दिन अवश्य सफल बनाएगा , सफलता के मार्ग का आनंद केवल ऐसी सफलता से  ही निर्मित होता है , कैसे भी प्राप्त की सफलता आपके जीवन को एक ऐसी यातना बना डालती है जहाँ आप कभी उस आनंद  तक नहीं पहुँच सकते, जहाँ आपकी वह आनंद यात्रा समाप्त हो सके , हम जीवन को जितनी जटिलताएं देंगे जीवन आपको उतना  ही उलझता चला जाएगा और स्वयं आप अपनी सारी उपलब्धियों के बाद भी स्वयं से अपने अस्तित्व से और अपने चेतन्य भाव से स्वयं को हरा हुआ ही मान बैठेंगे, क्योकि अंतर्मन की निर्णायक शक्ति आपको कभी श्रेष्ठ नहीं मान पायेगी |


  • ईश्वर एक सार्थक चेतन्यता  का भाव है उसकी अनुभूति करने का प्रयास अवश्य करे एक बार इस भाव के सामने स्वयं को खड़ा करके देखेंगे तो अनेक निर्णय स्वतः हो जाएंगे। 
  •  भगवान कोईभी धर्म के अवलम्बियों का हो वह आपकी अंतर चेतना  से निरन्तर जुड़ा रहता है  एक बार उसकी यथार्थता के बोध के साथ सबका सामान करना सीखें | 
  • सत्य उस ईश्वर की उपलब्धि की सबसे बड़ी शर्त है , जबतक आप सत्य  को मानने वाले नहीं बनेंगे तबतक आपका अस्तित्व झूठ का पुलंदा बना  खुद को नकारता रहेगा | 
  • सहजता का मार्ग आपको जीवन जीने की कला में एक नया स्थान दे सकता है क्योकि आपकी जटिलताएं ही आपको जीवन के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बनकर मिलती है |
  • कोई ईश्वर को कर्म मानता है , कोई उसे सेवा मानता है और कोई उसे प्रेम का स्वरुप दे सकता है मेरा मानना यह है कि  उसे कुछ भी मानो परन्तु उसको मानने के बाद स्वयं को याद दिलाते रहना आवश्यक है | 
  • जीवन  मे संकल्प सबसे बड़ा सिद्धांत है जीवन में यदि संकल्प की परिपक्वता को हम सार्थक न बना  सके तो जीवन व्यर्थ ही होगा | ध्यान रहे कि  हम स्वयं की अपवंचना करके बार बार जन्म  मृत्यु की  दौड़ से यातनाएं ही चुनते रहेंगे | 
  • जो सकारात्मक तथ्य आपके अंतः चित्त की पृवृत्तियों को स्वयं के लिए श्रेष्ठ साबित कर सकते है उनका सतत चिंतन अवश्य करते रहें , वही आपको एक दिन श्रेष्ठ सिद्ध कर देगा | 

 



 

धर्म और नैतिकता के नाम पर बाहुबल , सहजता के नाम पर जटिलताएं , और संत के नाम पर अहंकार की आँधियों में जूझता व्यक्ति कैसे  ईश्वर को समझता होगा , संन्यास के बाद ढेरों सुविधाओं की लड़ाई लड़ता आदमी , चीख चीख कर धर्म को अपने अनुसार समझाता हुआ इंसान कितना जान पाया है स्वयं को यह प्रश्न चिन्ह है| धर्म का वास्तविक अर्थ है -सहजता , अपरिग्रह ,सत्य और सबमे भगवान का भाव देखने वाला भाव ,जिसे हर समय यह ज्ञान है  कि मृत्यु अवश्यम्भावी और निकट है, फिर स्वयं की आत्मा से बार बार दुराव और छलावा किस लिए ,जो भाव सम्पूर्ण पृकृति को और जीव को ईश्वर  मय  देख सके वाही श्रेष्ठ है | 

एक बार बहुत छोटे बच्चे जैसे आँख बंद करके अपनी माँ की गोद  में छुपने का प्रयत्न करो यह मानकर कि  आप अपने ईश्वर  के हाथ में सुरक्षित है और यही आपकी असली खोज थी , सच मानिए पहली बार आपदुनिया के चार्म आनंद में ईश्वर के सबसे निकट होंगे | और यही से आपको आपका चरम  आनंद का मार्ग स्वतः प्रशस्त हो जाएगा |

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...