Wednesday, May 27, 2015

the power of silence मौन की शक्ति


the power of silence  मौन की शक्ति



पूर्ण क्षेत्र का राजा विश्वजीत बड़ा ही पराक्रमी और दिलेर  माना जाता था सारे इलाके में उसके शौर्य की चर्चा  होती रहती थी ,राजा ने अपने सारे शत्रुओं पर विजय हासिल करली थी  , सारे राज्य में सुख शान्ति थी और सभी लोग खुश थे एक दिन रात्रि में अचानक यद्ध के नगाड़ों की आवाज आने लगी राजा ने गुप्तचरों को चारों दिशाओं में हाल जानने भेजा गुप्त चरों ने बताया की ४ हारे हुए राजाओं ने यह हमला  किया है , और वे सेनाये चोरों और बिछा चुके है ,कई दिन राजा ने अलग अलग तरीके से व्हियू रचना की ,मगर हर बार  उसे लौटना पड़ा ,और ऐसे में बहुत निराश होकर वह चिंता में बैठा था ,अचानक उसकी पत्नी ने उससे कहा की मैं  जानती हूँ यह समय विपरीत है ,मगर आप अपना धैर्य मत खोइए, हमारे राज गुरु इसका जरूर कोई उचित हल निकाल लेंगे ,राजा तत्काल गुरु आश्रम पंहुचा गुरु गहरी समाधि में थे , राजा नत मस्तक होकर उनके चरणो में बैठ गया,  पता नहीं क्या परम शक्ति थी उस आश्रम में राजा भाव विभोर और विस्मृत  सा बैठा रह गया ,अचानक गुरु ने उसे जगाया पुत्र उठो सुबह हो गई है , राजा ने गुरु को सारी समस्या बताई वे बोले मैं  जानता हूँ पुत्र कि  इस समय तुम संकट में हो ,अधिक चिंता , सोच और आवेग में तुम सही गलत का विचार ही नहीं कर पा रहे हो ,पुत्र एकांत में एकाग्रचित्त होकर अपनी मौन की परम शक्ति को जाग्रत करो वहां  से तुम्हे शक्ति और समाधान  अवश्य मिलेगा , राजा ने स्वयं को एकाग्र किया अचानक उसे आक्रमण कारी सेनाओं ने रसद बंद करने की नीत  पर घेरा डालने की चाल दिखाई दी ,और  हल भी साथ दिखा , कि किले के बड़े पहाड़ से जाने वाला जल ही एक नहर जैसे स्वरुप में  निकलकर पड़ोस के राज्य में जाता है, राजा ने तुरंत उस जल की  धारा बड़ी बाबड़ी  की और करदी ,पानी बंद होने, गर्मी से आहात सेनाओं में  व्याकुलता बढ़ गई सेनाओं का बड़ा भाग जब पानी के इंतजाम में भटका , उसी समय राजा की सेनाओं ने एक बड़ा आक्रमण कर शत्रु सेनाओं को परास्त कर दिया | राजा ने अपनी सभा में अपने गुरु को विजय का श्रेय दिया गुर ने गम्भीर स्वर में कहा सभा सदो यह जीत महाराज विश्वजीत की ही है , जब हमारे पास समस्याएं आती है तब सबसे पहले नकरात्मक विचार हजारों की संख्यां में हमारे मन मष्तिष्क पर कब्ज़ा कर लेते है , फिर निरंतर नकारात्मक प्रभाव स्वयं को और अधिक और अधिक नकारात्मक कर देता है और हम अपने स्वभाव के विपरीत गलतियां करने लगते है यही हमारी पराजय का कारण भी बन जाता है ,राजा ने जिस छण  स्वयं को एकाग्र करके मौन का सहारा लिया उसे वह दिव्यरास्ता दिखने लगा जो उसे नहीं दिख रहता ,  मौन और एकाग्रता इन्हीं नकारात्मक विचारों से व्यक्ति को मुक्त करता है और वहीं  व्यक्ति विजय प्राप्त कर सकता है राजा सभासदों के साथ गुरु चरणों में नत मस्तक था | 


जीवन विचारों की श्रंखलाओं का कोई सुगठित समूह है निरंतर चेतनाएं मनुष्य को एक ऐसी दलदल में फंसाए रखतीं है जहां सत्य का कोई भी नामो निशान होता ही नहीं है , वह संसार में जो भी कुछ दिख रहा है उससे प्रेम और जो अदृश्य और सत्य है उससे  आँखें बंद रखने की चेष्टा करता रहता है , उसके विचारों में स्वयं को बड़ा और श्रेष्ठ बताने की लालसा उससे इतने पाप कराती है की वह स्वयं पापों को गिनने की गिनती भूल जाता है , स्वयं को बड़ा सिद्ध करने में सारे आदर्श , प्रतिमान और सिद्दांत धरा शाही होते है और सदैव की तरह अंतर का झूठ सच सा दिखने लगता है ,लगता यह है कि यह ठीक है ,मगर इससे आत्मा कभी भी सुख का अनुभव नहीं कर पाती है, और  इसके विपरीत जब भी हम अपने बड़े होने का व्याख्यान दूसरों को देते है हमारी ही आत्मा हमे धिक्कारने लगती है जैसे हमने सब कुछ खो दिया हो | 


मानसिक शारीरक स्थितियां नित्य नई समस्याओं के साथ  हमारा परीक्षण करती रहती है , और जैसे ही नयी समस्याएँ आई  हमारे हजारों नकारात्मक विचार उसे घेर लेते है मन मष्तिष्क हल और भय के भविष्य की कल्पना में और अधिक संवेदनशील होजाता है , अलग अलग कल्पनायें हमारा सोच इस प्रकार बनाने लगती है कि हमारा सारा आत्म विशवास चूर चूर हो जाता है और हर आने वाले क्षण से हमें भय लगने लगता है , परिणाम यह  कि सम्पूर्ण व्यक्तित्व बदहवासी की स्थिति में एक हारे हुए प्रतियोगी की तरह जीवन से व्यवहार करने लगता है , और ऐसे में विजय की कल्पनाएं कितनी सार्थक होंगी ये आप भी समझ सकते है 


भगवान बुद्ध  से एक शिष्य ने पूछा परम गुरु आप यह बताये कि मौन की शक्ति क्या है और वह क्यों श्रेष्ठ है ,गुरु ने बोलना आरम्भ किया पुत्र हम जिस संसार में आज दृश्य मान है ,जानते हो वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अपनी पहिचान भी बड़ी मुश्किल से तय करपाता है , जब हम संसार के हिसाब से व्यवहार कररहे होते है तो हमारे सामने बहुत छोटा सा क्षेत्र होता  है, समाज , प्रदेश देश या इक गृह मगर यह एक छोटी सी सोच होती है छोटा सा वातावरण होता है और उस दृश्य मान में हम सबसे श्रेष्ठ बनने की चाह और प्रयत्न में अपने जीवन के मूल उद्देश्य को ही भूल जाते है कि हमारा जन्म क्यों हुआ है और हमे क्या करना चाहिए ,ऐसे ही उस छोटे से कुंएं रुपी परिवेश में हम बार बार असफल होते घसटते , कराहते  अपने आपको ही नहीं पहचान पाते ,इसी लिए मनुष्य जीवन यातना  बना मालूम होता है , जबकि मौन में जिस अनंत की व्याख्या होने लगती है वह इतना अनंत होता है की उसे हर बार नए सिरे से अलग अलग समझ कर भी उसके अंदर की खोज जिज्ञासा कभी ख़त्म ही नहीं हो पाती और वही जीवन के मूल में जाकर उसके रहस्यों से नित्य नए परदे हटाती रहती है ,और यही कारण है कि गहन समाधि के बीच का साधक  मौन की गहराइयों में हजारों गुना सकारात्मक और क्रियान्वित रहता है , और बुद्ध ने कहा  हजारों वर्ष की साधना के बाद भी हर बार साधना में कुछ नया जानने को शेष रहजाता है अतः योगी सदैव ध्यान और मौन में ही रहना चाहते है |यही जीवन का अमृत्व भी है | 


 दुनिया के हर धर्म में मौन और उसकी शक्तियों का प्रयोग प्रत्यक्ष दिखता है , ईसा को सूली परचढ़ाया गया वहां स्वयं उस देव पुरुष ने अपने प्राणों को समाधिस्थ करके  एक नियत समय के लिए सम्पूर्ण पीड़ा से स्वयं को मुक्त रख कर स्वयं को उस अन्नत में समाहित कर लिया और बाद में अपनी चेतना के लौटने पर जीवत हुए , भारतीय धर्म में शिव को समाधि का देवता भी बताया गया है , निरंतर समाधि और मौन की शक्ति से देवता ओतप्रोत है ,नानक , कबीर ,और हर धर्म का साधक और देवता इसी मौन और साधना से अपनी चरम शक्ति प्राप्त करते है
 
कलाकार दार्शनिक और साहित्य की सृजनात्मकता इसी मौन की शक्ति से पैदा होती है , असंख्य समस्याओं और उलझनों का हल है यह मौन एक सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र बिंदु  जहाँ से सम्पूर्ण शक्ति एकाग्र होकर जीवन को वह लक्ष्य  दे देती है जो आदमीको देव तुल्य बना देता है , मौन का चिंतन क्षेत्र इतना वृहत है की जिसकी खोज में कई जन्मों की तपश्चर्या कम पड़ जाती यही खोज जीवन के सार्थक उद्देश्यों को इतने पास से दिखाती है जहाँ दुनियां की हर दृश्य अदृश्य शक्तियों का भेद स्पष्ट हो जाता है| 

मौन और साधना के प्रत्यक्ष प्रभाव से चेतना का धरातल प्राप्तियों और अप्राप्त के भाव से दूर होकर अपने पूर्ण लक्ष्य की तरफ मुड़कर चलने लगता है जीवनका क्षेत्र और सूक्ष्म होकर सांसारिक और पारलौकिक शक्तियों से जुड़ने लगता है , अनंत की खोज में एक सतत अमृत की धार साधक के दिल दिमाग में स्पष्ट हो जाती है , नश्वर और अनश्वर की पहिचान होने लगती है , सुख और दुःख के कारण और परिणाम अपना अर्थ खो देते है ,और जीवन साश्वत सत्य की और चलने लगता है जहाँ न चोरी का भय होता है ना ठगी का , ना लूट की चिंता होती है और, न होती है ख़ूबसूरत और बद सूरत की भावना तथा वहां केवल्य भाव होता है ,और हमारा पूरा समाज और समूह होता है, जिज्ञासु जिसे उस अमृत पान की लत लग गई है ,और उसका सम्पूर्ण जीवन बदल गया है |

जीवन के इस  इस अध्याय में इन्हें भी याद बनाये रखिये 

  • मौन का सम्बन्ध आतंरिक चेतना शक्ति से है और हम यह प्रयास स्वयं के साक्षात्कार हेतु कर रहे  है जिससे हम क्या है और किस उद्देश्य के लिए प्रयासरत है यह स्पष्ट हो जाएगा | 
  • मौन की साधना से पूर्व स्वयं को एकाग्र करें संकल्प लें कि सारी समस्याओं और सारी जीवन की विषमताओं का समाधान हम इस साधना के बाद सोचेंगे ऐसा करने से साधना में अधिक शक्ति आ जावेगी |
  • साधना से पूर्व यह स्पष्ट चिंतन करें कि हम जिस संसार को जानते है उससे हजारों लाखों गुना संसार हमारे लिए अनभिज्ञ है और आज हम उस  अनभिज्ञ  को समझने की चेष्टा कर रहे है | 
  • जीवनके बाह्य स्वरुप से अंतर्मुखी होकर हम स्वयं की चेतना का आंकलन कर रहे है अतैव बाह्य आवरण से सम्बंधित तथ्य आपको प्रभावित नहीं करें इसके लिए स्वयं को एकाग्र करें | 
  • मौन और साधना के लिए वातावरण तैयार करें सादे कपडे अनंत का ध्यान , और सकारात्मक चिंतन यहीं से आरम्भ होगा आपका सहज योग | 
  • अपने चिंतन को शून्य से सकारात्मकता की और मोड़नेका प्रयत्न करें , यह प्रयास करें की आप सहजता और शून्यता की स्थितिमे प्रवेश कररहे है | 
  • विचारों को रोकना और उन्हें अपने हिसाब से सोचना दोनों ही सहज नहीं है  अतः केवल स्वयं को शिथिल और शिथिल  तथा शरीर  में और शरीर से बाहर स्थापित कीजिए | 
  • एकाग्र और चिंतन रहित स्थिति के लिए आपको केवल यह प्रयास करना चाहिए या तो आप स्वयं की स्वांस को एकाग्रता से देखे या अपनी नाक के अग्रभाग या अपनी भ्रू मध्य को देखने का चिंतन और प्रयास करें | 
  • ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां अखिल ब्रह्माण्ड में समायी हुई है और उन सारी शक्तियों की उपस्थिति का अनुभव आपको करना है और ध्यान में आप उसका प्रयास कररहे  है | 
  • समस्याओं  विषमताओं , और साधन और रूप हीनता को आप जैसे ही ध्यान की गहराई में जाएंगे आप सब भूल जाएंगे , मन स्वयं उस रस से ओतप्रोत और स्वाभिमान का अनुभव करने लगेगा | 
  • मौन और ध्यान का मध्य भाग आपके चिंतन से बड़े छोटे अच्छे बुरे और हीन और सर्वोत्कृष्ट का भाव ख़त्म करदेगा एक सहज प्रेम कीअनुभूति देगा यह मौन | 
  • मौन और साधना से प्राप्त शक्ति और बदलाव आपको और अधिक विनम्र और जहाज बनाएंगे , उनसे प्राप्त शक्तियां आपको और अधिक सज्जन और सहज बनाएंगी |




Saturday, May 23, 2015

women empowerment (महिला सशक्तिकरण )

women empowerment (महिला सशक्तिकरण )

 एक चिंतन 

वाज्ञा  का कलेक्टर के रूप में ज्वाइन करने का स्वागत कार्यक्रम था यह , आगे बैठी माँ वाज्ञा को देखते देखते सम्पूर्ण अतीतमें विस्मृत सी हो गई थी , आँखों के सामने  अतीत चल  चित्र की तरह घूमने लगा , पूरे गाँव   से दुश्मनी लेकर जीवित रख पाई थी मालती इसको ,जन्म के दिन ही उसे सास के कहने पर दाई ने तम्बाखू मुह में रख कर डलिया से ढक  कर रख दिया  था ,सुबह उसे मरा हुआ समझकर फेंकने जा ही रहे थे कि बच्ची  जोर से रोई ,गहरे नशे में थी वह ,माँ का ह्रदय चीत्कार उठा उसने किसी की परवाह किये बगैर बच्ची को परिवार के सेवादार से छीना और जोर से चिल्लाई खबर दार अब किसी ने हाथ लगाया तो सबको जेल करवा दूंगी ,सारा घर परिवार पड़ोस सब सकते में आगये थे और बच्ची जीवित बच गई थी ,खूब शान और पूरी स्वतन्त्रता  से पाला  था सबनेउसे ,बड़ी पार्टिया , खुला वातावरण ,पैसे और स्वतंत्रता ने उसे अधिक बद दिमाग बना दिया था, जिद और बेतहाशा पैसे के प्रयोग ने सारी जिद पूरी करने का संकल्प ले लिया था पूरे घर ने | आज वाज्ञा  अपने साथियों के साथ दूर पिकनिक स्पॉट पर थी , साथियों ने कोल्ड ड्रिंक में शराब मिलाकर सर्व करदी थी,और बाद में उल जलूल हरकत करने लगे थे , वाग्या  ने पूरी ताकत लगाकर रेस लगा दी ,सड़क के किनारे आकर वह बेहोश हो गई थी किसी सज्जन  ने उसे अस्पताल पहुँचाया घर को सूचना दी ,अब सारा घर उसे घेरे खड़ा था ,होश आने पर वाज्ञा माँ से लिपट कर खूब रोइ फिर केवल माँ से एक लाइन बोली---- माँ आप तो जानती हो दुनिया कितनी स्वार्थी , खुद गरज और ख़राब है आपने मुझे उससे दूर क्यों नहीं रखा , क्यों नहीं टोका हर जगह गलत जिदों पर ,मुझे मैं  तो अबोध थी , आपतो बड़ी थी न , माँ के सामने पूरा जीवन चक्र एकबार में घूम गया , उसे लगा मैं  समाज परिवार की रूढ़िवादी सोच को तो हरा आई पर आज इस बिंदु पर खुद को हारा  सा महसूस कर रही  थी खुद को, माँ भी रोने लगी , हा बेटा यह गलती हो गई, मगर आज वादा करती हूँ की मैं  और तुम दोनो जीवनको इतना बड़ा बनाएंगे जहाँ समाज का हर विकास छोटा पड़ जाए , समय बीता और आज वाज्ञा उस जिले की नई  कलेक्टर बनी बैठी अपने अतीत को सोच कर जीवन की बारीकियों को समझ रही थी | और तालियों की गड गड़ाहट ने माँ की सोच पर विराम लगा दिया  था और माँ हंस दी थी |


हम या तो बहुत कठोर अनुशासन अथवा अनुशासन हीनता की परा काष्ठा  पर स्वयं को रखना चाहते है ,और दोनो ही स्थितियों में  आपको सहज उन्नति और चिदानंद की प्राप्ति नहीं हो सकती , क्योकि यदि आप स्वछन्द भाव से स्वयं को नियंत्रित नहीं कर सके तो आपका पतन निश्चित है, क्योकि जीवन का उर्ध्वगामी सत्य स्वयमेव  विपरीत परिस्थितियों  के कारण जब भी रुकता है तो ,वह अपने स्वाभाव के अनुसार नीचे की और जाने लगता है ,ऐसे में यदि नियंत्राण कारी शक्तियों से अंकुश लगा कर उसे नहीं रोका  गया तो उससे समूल विनाश की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है और यही मनुष्य के लिए सबसे बड़ी चिनौती भी है |


अभी  हाल  में एक भारतीय अभिनेत्री को मीडिया ने खूब उछाला ,क्योकि उन्होंने जीवन को एक सिद्धांत पर रख दिया वह था ------------   MY CHOICE  -----खूब हंगामा हुआ  लोगोने यह  कहा शर्म ,लाज , सम्मान , व्यवहार और श्रेष्ठ जीवन शैली के सिद्धांत अपना अलग महत्व रखते  है , माय चॉइस का आशय यह कदापि नहीं है कि आप सामजिक और सांस्कृतिक मान्यताये छोड़ कर पाश्चात्य सामाज जैसे  आचरण करना और समाज का उपहास करना सीख जाएँ , शायद आपको सुसंस्कृत वातावरण प्रदान करने के पीछे केवल एक सत्य था  कि आपमें हर कार्य की ललक बनी रहें , मित्रों भारतीय धर्म यह जानता था कि जीवन के हर भोग को उसने एक सीमा में बांधने  का प्रयत्न किया है जिससे वह भोग सुख और संतति का साधन बने ,न  कि वह भोग के अतिरेक के कारण मानसिक दबाब , नैराश्य , या जीवन से मोह भंग  का कारक  भी बन जाये |



1 --------- अति सर्वत्र वर्जयेत

2 ---------- परम स्वतंत्र न सिर पर कोई आवहि मनही करो तुम सोई

3 ----------महा वृष्टि  जहिं  नसत कियारी ॥ जिम स्वतंत्र होइ बिगरहिं नारी

कहने का अर्थ यह कि चाहे स्त्री हो या पुरुष अपनी  सीमाएं तो हमे ही निर्धारित करनी होंगी अति हर स्थान पर आपको कष्ट और हानि के सामने ही खड़ा कर देगी , दवा का अधिक डोज प्राण घातक है ,भोग का अधिका अधिक प्रयोग आपको मानसिक व शारीरिक रोगो और नैराश्य के भाव से  जोड़ देगा , कहने का आशय जहां भी अति की वह परिणाम जान लेवा ही होंगे , वहीँ अति से आदर्श , संस्कृति और प्रतिमान सब कुछ ख़त्म होजाते है | अधिकार दायित्व और शक्ति की अति भी असामायिक विनाश का कारण खड़ा कर सकती है , इतिहास गवाह है की जहां भी अति गुण  या दोष किसी में समाहित हुए है वहां विनाश अवश्यम्भावी हो ही जाएगा |



मित्रों पाश्चात्य देश अपना सारा भोग विलास छोड़कर एक नए सिरे से जीवन को समझने में लगे है , आपने उन भोगवादी व्यवस्थाओं को काफी समझ लिया होगा , जहाँ १३ वर्ष का बच्चा घर से अलग अपनी दुनिया में मस्त है भोग वादी प्रवृती  ने उन्हें स्वतंत्र सम्पूर्ण भोगों से तो जोड़ दिया है मगर उनसे शिक्षा , ज्ञान एकाग्रता , लक्ष्य और जीवन के उद्देश्य छीन लिए है , जीवन में नैराश्य , पार्किंसंस ,  पागलपन , और अति हिंसा ये सब कारण उस अति भोग से पैदा हुए परिणाम है , रिश्तों  का जीवन अस्तित्व तलाक और मिचुअल  सेपरेशन के इर्द गिर्द घूम कर रह गया है दोस्तों आप सच मानिए कि उनका जीवन उत्तरार्ध और भी अधिक कठिन है |



महिला सशक्तिकरण का आशय यह है  कि उसे जन्म का अधिकार दीजिये उसे अच्छे संस्कार और शिक्षा और संस्कृति से जुड़ने का सामान अवसर दीजिये , उसे अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में सोचने का अवसर अवश्य दीजिये साथ ही उसकी समस्याओं और उनके समाधानों को समझने समझाने का प्रयत्न भी कीजिए , उसके  सम्मान  और मर्यादाओं की इज्जत कीजिए तथा उसे और अधिक शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न किया जाए , उद्यमिता विकास कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी और बढाई जाए और उसे अपने पैर्रों पर खड़ा करने का मौका दिया जावे , शायद यहीं कहीं से जीवन को महिला सशक्तिकरण का लाभ प्राप्त हो जाएगा |



मनुष्य के दिल से दिमाग तक के भाग में एक ऐसा सेंसर मौजूद है जो शरीर से किये जाने , सोचेजाने और मन में आने वाले विचारों से पहले ही उसकी नकारात्मकता सकारात्मकता को प्रकट कर देता है ,यही है आत्मा |

मन बुद्धि और कर्म के सिद्धांत यह बताते है की जीवन चिंतन , चेतना , और उसे मूर्त स्वरुप प्रदान करने वाले कर्म से बंधा है और सबसे अधिक जीवन का जो मूल्यांकन करने वाला भाग है वह है आत्मा , यह मन मस्तिष्क के त्रिकोण में घूमती हुई कोई जीवन लहरें है जो  शरीर और मन के छोटे से छोटे भाग पर पड़ने वाले हर प्रभाव को आंकलित करके उसका तुरंत निर्णय करती है ,और इसका सम्बन्ध केवल त्याग, अपरिग्रहता , प्रेम  सौहार्द और अपनत्व में निहित है , अतः यह स्वीकार करने योग्य है कि  भोग विलास और मानसिक चिंतन का सार्थक स्थान स्वतंत्रता के लिए अति उपयोगी शस्त्र है जो इंसान को जीवन भर शिक्षा देते रहते  है आवश्यकता यह है की आप उसे ध्यान से सुन पाएं |


        इन विषयों पर पुनः विचार करें


  • जीवन का आशय भोग नहीं है उसका आशय मन वचन कर्म की सच्चाई को समझाना एवं शारीरिक मानसिक चेतना में जितना आवश्यक हो उतना प्रयोग आवश्यक है | 

  • जीवन में पथ प्रदर्शन अति आवश्यक है और जीवन के हर पल आप गुरु माँ पिता के परामर्शों को नाकारात्मक स्वरुप में न लें उसपर चिंतन का प्रयत्न करें | 

  • महिला शशक्ति कारण हेतु आपको संस्कार , शिक्षा , सामाजिक मान्यताएं और उन्हें जन्मकी अनुमति अवश्य दी जानी चाहिए जिससे समाज सुसंस्कृत हो सके | 

  • प्रेम सौहार्द और स्वतंत्रता की सारी सुविधाएं देने वालों से यह भी अपक्षा की जाती है कि  वे सही गलत सिद्धांतों की व्याख्या करना अवश्य सीखें | 

  • नितांत अन्धे होकर किसी भी बात को मान लेना पूर्ण स्वरुप में ठीक नहीं है क्योकि जहा आपको यह लगे  कि आप स्वयं अपने मार्ग से भटक रहे है आप उसमे सुधार अवश्य करें | 

  •   मन वचन कर्म से सकारात्मक  भावों को अधिक आश्रय दें क्योकि जैसे ही आपने तीनो स्तर पर सकारात्मक भाव बनाये सारी नकारत्मकताएं स्वयं नष्ट हो जाएंगी | 

  • मन की चेतना शक्ति सबसे प्रबल है जब भी आपकी अंतरात्मा का सत्य आपको यह विचार दे कि आप उस कार्य में गलत हो या गलत साबित होगे आप सावधान होकर कार्य करना आरम्भ करदें | 

  • जीवन को कमियों और अच्छाइयोंके साथ स्वीकार करें जिससे आपको कभी दुःख नहीं होगा जब हम पूर्णता से आदर्शों की  बात करते है तब भी स्वयं अपनी अंतरात्मा में दोषी बने रहते है इससे विकास रुका रहता है |


Sunday, May 17, 2015

powers of universe and you ब्रह्माण्ड की शक्तियां और आप

powers of universe and you
ब्रह्माण्ड की शक्तियां और आप 
 (UNDERSTANDING , POWER OF UNIVERSE , PRACTICAL APPROACH)
ब्रह्माण्ड की शक्तियों को समझिए और स्वयं में पैदा करें


एक राजा के राज्य में एक चोर रहता थानाम था वीर मणि बहुत ही शातिर और तेज दिमाग था उसके पास महल और नगर में ऐसी चोरियां करता था कि किसी को कानों कान  खबर नहीं होती थी ,एक बार उसने एक बूढ़े साधु के वेश में महल में चोरी की और सामान लेकर भाग रहा था उसके पीछे सुरक्षा कर्मी लगे थे , अचानक  उसने सड़क पर सोते हुए एक लड़के के पास चोरी का सामान रखा और थोड़ी दूर पर वो भी सड़क के एक कोने में सोने का नाटक करने लगा सुरक्षा कर्मियों ने लड़के को पकड़ लिया लड़का चिल्ला रहा था कि मैं तो कल रात ही गाँव से आया हूँ माँ की तबियत बहुत ख़राब है खाने के लाले पड़े है ,बहिन शादी को है, पिता मर चुके है ,मैं  तो महल में काम करके धन कमाने की इच्छा से आया हूँ ,अधिकारियों ने एक न सुनी उसकी और जेल में डाल दिया| 
आज घटना को तीन रातें गुजरगई  थी वीर मणि पूरी रात सो नहीं पा रहा था ,उसे बार बार साधु के वेश के कपडे और उस लड़के के शब्द कानों में गूंजते मालूम पड रहे थे ----- सब कुछ ख़त्म हो जाएगा ,रहम करों  सब मर जाएंगे ,और फिर मेरी तरफ देख कर भी बोला था इन साधू महाराज से पूछ लो मुझे कुछ नहीं मालूम मैं तो सो रहा था बस ,मुझे साधु शब्द सुनकर आत्म ग्लानि होने लगी कितना विशवास था उसे साधु और उन कपड़ों पर ,सुबह वीर मणि ने जाकर अपना अपराध स्वीकार कर लिया , राजा ने पूछा जानते हो तुम्हे सूली पर चढ़ा दिया जाएगा , वीर मणि ने बताया हाँ  महाराज जानता हूँ ,परन्तु  मैंने पिछले तीन दिन इस प्रकार बिताये है स्वप्न में मुझे कई साधुओं ने घेर कर पिटाई की है मेरी , आत्म ग्लानि से  कई बार मैं सूली पर चढ़ाया गया हूँ मैं ,और कई बार अपने आपसे घृणा का भाव पैदा हुआ है, राजा   ने सत्य बोलने के  लिए वीर मणि को देश निकाला ,और युवक को नौकरी देदी ,कालांतर में वीर मणि ने घन घोर जंगल में एक बड़े साधु को गुरु मानकर यह पूछा मेरे संग ऐसा क्यों हुआ गुरुदेव ,साधु ने कहा पुत्र तुमने जो वेश धारण किया था वो स्वयं अपराध था ,वहां  ब्रह्माण्ड की अनेक शक्तियां तुम्हारे विरुद्ध एक जुट  होगई  ,उन्होंने तुम्हारे मन मष्तिष्क पर काबू कर लिया, यदि  तुम अपना अपराध स्वीकार  न करते तो वो शक्तियां तुम्हें नष्ट कर देती , दूसरे यह की तुमने जिस साधू स्वरुप का वेश रखा था वह तुममे जाग्रत होगया और उसने तुम्हे अपराध बोध देकर मुक्त कर दिया। वीर मणि ने एक बार गुरु बनाये साधु को देखा और दूसरी और ब्रह्माण्ड को ध्यान से देखा उसे लगा की एक परम शक्तिशाली शक्ति चारों और संसार को नियंत्रित कर रही है उसने दोनो को साष्ट्रांग प्रणाम किया |




आधुनिक चिकित्सा  शास्त्र मनुष्य को केवल वैज्ञानिक आधारों पर सिद्ध करने का प्रयत्न करता है वह यह बताता है की मनुष्य में हजारों लाखों  घटक कार्य करते है उनकी कमी और अधिकता से रोग , स्मरण और विस्मरण तथा शारीरिक -मानसिक समस्याएँ पैदा होती है जबकि कई बार यह देखने में आया है कि कोई समस्या नहीं होने पर भी अचानक कोई विपरीत परिस्थिति खड़ी हो जाती है , सारे  लेबोटरी टेस्ट श्रेष्ठ होते हुए भी इंसान , जीवन से हार जाता है ,भारतीय पुरातन सिद्धांतों में यही कहा  गया है , कि  
                                          मृत्यु से पूर्व सब कुछ सामान्य और ठीक हो जाता है 
शायद यह तथ्य अधिक महत्वपूर्ण है ,वही यह  भी देखने में आता है  कि कहीं कोई शक्ति उसके मन बुद्धि और क्रियाओं को नियंत्रित अवश्य  कर रही है | 
                                                           I TREAT HE CURES 

की परंपरा पर चलने वाला  चिकत्सीय विज्ञान यह मानता है कि  सारी परिस्थितिया सामान्य होने के बाद भी  कुछ  ऐसा है जो बुद्धि और मन से परे  है  कुछ अलग घट रहा है सामान्य स्थितियों में चिकित्सा विज्ञान के ये शब्द आपको विस्मित अवश्य कर सकते है     
                                 PLEASE START PRAYER THERE IS NO SIGN OF LIFE 

अर्थात आप  जिस भी धर्म को मानने वाले हों आप प्रार्थना आरम्भ कीजिए यहाँ जीवन का  कोई संकेत नहीं मिल रहा है और प्रार्थना चालू की जाती है तथा कई बार विस्मय कारी परिणाम आपके सामने होते है जिसे आदमी अपनी ही जीत बताने लगता है | कई लोगो के संस्मरण में मृत्यु के बाद उनका पूरे ध्यान में एक अलग लोक का वर्णन करना और वहां की घटनाएं बताना , ये सब झूठ कैसे बता सकते है आप | 

एक विस्मय कारी घटना में अभी हाल ही में दिल्ली के प्रतिष्ठित अस्पताल में घटित हुई ,एक मरीज का ओपन हार्ट सर्जरी किया गया सब कुछ सामान्य था मरीज डॉक्टर को बोला मुझे बचा लीजिये मैं मरना नहीं चाहता डॉ बोले आप बिलकुल ठीक है और धीरे धीरे आपके टांके ठीक हो रहें है , मरीज आश्वस्त नहीं हो सका पत्नी को भी यही कहा  सब कुछ सामान्य होने के बाद भी एक ७ वे दिन सोते सोते अचानक तेजी से उठ गया सारे टाँके टूट गए और वह मर गया | 
आप इन घटनाओं को सामान्य कैसे मान  सकते है | 

भारतीय धर्म की मान्यताओं के अनुरूप जो महत्वपूर्ण मान्यताएं आतीं है उनपर जरा दृष्टी डालें 

दिखारावा मातही निज अद्भुत रूप अखंड॥ रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्माण्ड 

हरी अनंत हरी कथा अंनंता ॥ कहै सुनहि सब विद्धि सब संता 

सोहास्मि इति  वृत्ति अखंडा ॥ दीप शिखा सोई परम प्रचंडा 

अर्थात प्रथम पक्ति में ब्रह्माण्ड की अनंतता का वर्णन है यहाँ यह बताया गया है कि जैसे उस सुप्रीम पावर गॉड  के शरीर के हर रोम ब्रह्माण्ड की गैलक्सी की तरह है जिसमे करोड़ों या अनगिनत ब्रह्माण्ड या गृह समाये हुए है ,जिसे वैज्ञानिक मानते है कि यह ब्रह्माण्ड का विस्तार  है या ब्रह्माण्ड बढ़ रहा है | 

 द्व्तीय पक्ति में यह  कहा गया है कि उस सुप्रीम पावर गॉड  का रूप और विषय बहुत बड़ा  और  अन्नंत है उनका  जितना अध्ययन और शोध किया जाएगा उतनी ही गहराई प्रकट होगी ,यह दोनो बड़े शोध के विषय है ,| 

तृतीय पक्ति में यही बताया गया है कि  मनुष्य उस ब्रह्माण्ड का शक्तिशाली अणु  है और उसकी परम  चेतना यह भाव पैदा करती  है कि वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्तियों का उपयोग कर सकता है । अर्थात मनुष्य की चेतना सबसे शक्तिशाली विषय है जिसके विस्तार  का प्रयास करना ही चाहिए ।
 उसकी सकारात्मकता और अबूझी पहेलियों पर निरंतर शोध, चर्चा होती रहनी चाहिए

चीन रोम  भारत तथा  ज्ञान और तपस्थली के रूप में , तिब्बत का तवांग मठ  ज्ञान गंज ,चीन,   कश्मीर , बिहार और नालंदा के शोध स्थल तथा मोहोम्मद साहब ,नानक देव, और अनेक वैज्ञानिक संतों ने केवल परम चेतना के भाव से ऐसे ऐसे चमत्कार किये और किये जारहे है जिसे विज्ञान की भाषा में असंभव ही कहा जाएगा 

कितने बौने  और  कमजोर है हम कि जिस बड़े काम को हम असंभव मानते है उसे तुरंत नकार देते है की यह हो ही नहीं सकता, विज्ञान पोलीग्राफ , ईसीजी और हर्ट ब्लड प्रेशर तो नाप सकता है मगर इंसानी चेतना की उँचाइयों को नापने का कोई स्ट्रूमेंट  आज तक नहीं बना पाया है , वह तो केवल एक दौड़ के खिलाड़ी की तरह बार बार गिरता खड़ा होता और फिर भाग कर अपनी परम शांति की खोज में लगा रहता है,  ,उसकी गति इस प्रकार की होती है जैसे एक पागल आदमी के हाथ में बड़ा बांस है, और उसके सिरे पर लाल रूमाल बांधा  गया है ,और वह तेजी से भागता रहता है बांस आगे किये पर जीवन भर वो रूमाल उसकी पकड़ में नहीं आ पाता क्योकि उसकी चेतना ही तो शून्यता प्रकट कर देती है | 


 विश्व भर के इतिहास में यदि दृष्टी डाली जाए हजारों स्थान पर ऐसी धार्मिक प्रयोग शालाएं थी जिनका प्रयोग ब्रह्माण्ड  को समझने के लिए किया गया है , आज अनेक स्पेस सेंटर , परमाणु केंद्र और वैज्ञानिक जो  प्रकृति को समझने की चेष्टा कररहे है वो हर रोज कुछ न कुछ नया कररहे है अपनी चेतना शक्ति से , सारे फॉर्मूले फ़ैल होजाते यही , सहज एकाग्रता में नया फार्मूला तय करलिया जाता है , किसी की सफलता के प्रयास में कुछ और सफल हो जाता है और हम बड़े प्रसन्न बने रहते है की हमने यह किया या वो किया ,

संसार के हर इंसान को मैं  दो मिनट आत्मानुभव का मौका देता हूँ दोस्तों ९०%लोगो को अपने आपमें बड़ा खालीपन लिए मालूम होते  है ,क्योकि उनके पीछे जीवन को समझने की शक्ति नहीं है ,  
शरीर रिस्पॉन्ड नहीं कररहा है ,इसलिए आधुनिक चिकित्सा काम नही कररही है ,
मन में भोग और विलासता के बीच कुछ एकाग्रता का भाव नहीं बना  पा रहा हूँ इस लिए इसके अलावा सब बेकार है यह सब स्वयं की चेतना को नही समझने के कारण है ,कहने का आशययह कि आप स्वयं की परम चेतना को जाग्रत कीजिए तब आप नये जीवन की शुरुआत करपाएंगे | 

 परम चेतना को परिष्कृत कर ब्रह्माण्ड से शक्ति प्राप्त करने के लिए भारतीय तंत्र शास्त्र के इन बिन्दुओं को अपनाइये
  • जीवन और संसार को समझने का प्रयत्न करें अपने लक्ष्य और  अपने आस पास की स्थितियों को समझे और उनके अनुसार स्वयं को सकारात्मक रखें | 
  • स्वयं को एकाग्रता का भाव प्रदान करने के लिए  दिन में १य़ा २ घंटे मौन धारण करने का प्रयत्न करें इससे आपकी चेतना को विस्तार मिलना आरम्भ हो जाएगा | 
  • स्वयं  को एकाग्र करके अनन्तायः नमः (ANAN-TAAYAH -NAMH--)को ३ से ५ मिनट तक आँख बंद करके रिपीट करें  ध्यान  रहे  कि  आप  पारलौकिक सत्ता से जुड़े है | 
  • प्रथम स्थिति के बाद आपको शांत और एकांत में अपने भ्रू  बिंदु का चिंतन करना चाहिए यहां आपको जितना संभव हो दोंनो  आखों से भ्रू मध्य को देखने का प्रयत्न करें | 
  •  स्वासों को नियंत्रित रखकर आँख बंद करके स्वयं की चेतना से उन्हें देखना आरम्भ करें जैसे आपकी स्वास आरही है तो वह सकारात्मकता लारही है और जाने वाली स्वास ऋणात्मकता लेजारही है  यह बहुत प्रभावी योग माना गया है | 
  • अपने सारे कार्यों में पूर्ण मनोयोग रखें एवं हर कार्य के लिए उन शक्तियों को धन्यवाद अवश्य करें जो आपके साथ सहयोगी और अदृश्य है , इससे आपको अहम और घमंड नहीं पैदा होगा | 
  • स्वयं को हर कार्य में पूर्ण मनोयोग देकर भी आप निर्लिप्त बने रहें ध्यान रहे कि जीवन बहुत सारे भागों में बंटा  हुआ कोई सत्य है और हर स्तर पर आपको स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करना है | 
  • जिन स्थितियों पर आपका नियंत्रण नहीं हो उनमे सकारात्मक रुख अपनाये रखें क्योकि अतीत भविष्य और दूसरो के सम्बन्ध में आप निर्णय लेकर भी कोई कार्य नहीं करवा सकते | 
  •  नियमित स्वरुप में स्वयं के कार्यों का आकलन अवश्य करें और जहाँ आप गलत हों अगले आने वाले समय में वह गलती की पुनरावृत्ति न होने दें । 
  •  आकाश में रोज  बैठ कर  आकाशीय दृश्यों का अवलोकन करें और अपने मंत्र का जाप करें , इससे आपको अनभिज्ञ को जानने में सरलता होगी | 
  • रोज कुछ समय पानी में थोड़ा सा नमक डालकर पांव डालकर अवश्य बैठे इससे आपकी नकारात्मक ऊर्जा निरंतर कम होती जाएगी | 
  • ध्यान के समय एक पानीके चौड़े  पात्र में कोई इत्र डालकर आँख बंद करके ध्यान करें , यह अवश्य ध्यान रहे कि जहाँ ध्यान किया जा रहा है वहा कम से कम से सामान हो | 
  • ध्यान के समय सुबह पूर्व दोपहर २ बजे के बाद पश्चिम और संध्या के बाद उत्तर की और मुंह करके ध्यान करें , अमावस्या  ,  रविवार , में गरीबों को दान एवं एक दो सिटिंग दक्षिण की और भी ली जा सकती है | 
  • ब्रह्माण्ड का मूल भाव देना त्याग और सबको खुश रखना है , आप ब्रह्माण्ड साधना के लिए ऐसे ही भाव जाग्रत रखे क्योकि इससे आपको नित्य नई  ऊर्जा मिलेगी | 
  • दूसरों के कार्यों की आलोचना और आंकलन करना आपका विषय नहीं है और इससे आपमें भी ऋणात्मकता पैदा होगी आप  जीवन के प्रति सकारात्मक रवैय्या अपनाइये |

Thursday, May 14, 2015

yours strength and weaknesses आपकी शक्तियां और कमजोरियां

yours strength and weaknesses
आपकी शक्तियां और कमजोरियां

वार्षिका चौधरी जोर से चिल्लाया था दरबान एक मोटी  सी फाइल लेकर एक युवती नौकरी बोर्ड के सामने थी चेयरमेन ध्रुव ने जैसे ही उसे देखा एक शांत और तटस्थ भाव से अनदेखा कर दिया , युवती के हाथ की फाइल छूटकर नीचे गिर गई उसे तेज पसीना आगया शायद वो बहुत ज्यादा घबरा गयी थी ,युवती के बैठने के बाद ध्रुव ने बड़े ही संयमित और शांत स्वर में  कहा हम सबने आपका प्रोफाइल देखा काफी पढ़ी है आप ,और आपको हमारी कंपनी  विदेशी शाखा में नियुक्त करती है ,नियुक्ति के बाद आप सारी बातें शिकायते वहीँ के ऑफिस में करें यहाँ आपको आने की आवश्यकता नहीं है ? युवती ने रुंआसे अंदाज़ में नीचे देखकर सर हिलाया और बाहर निकल गई | सारा बोर्ड हतप्रभ और चकित था ये कैसी नियुक्ति थी , मेम्बचकित थे |  ध्रुव के अकेले अच्छे मित्र यश , उस रात्रि ध्रुव के घर पहुंचे और उस नियुक्ति के बारे में फिर पूछा ,ध्रुव ने  बड़े गंभीर  स्वर में कहना आरम्भ किया ,वो दिन मेरे जीवन के भयानक दिन थे ,जब मैं गाँव से  अभी स्कूल पास करके कालेज में प्रवेश लिया था  वहां सारे गाँव वाले मुझे दद्दू ,मामा , या फूहड़ कहकर बुलाते थे ऐसे में एक लड़की को मुझ पर दया आई ,सब लोगो से उसने यही कहा की वो लोग मुझे परेशान न करें, और धीरे धीरे मै उसके आस पास घूमकर रहगया ,उसका सारा होमवर्क और नोट्स मैं  ही लिखता था ,घरके काम भी करता रहता था , यानि कि यह की मेरा वज़ूद उसके ही वज़ूद का हिस्सा बन कर रह गया था , मैं भी चाहने लगा था उसे दिलोजान से ,कभी कभी वो समय गुजारने को बुला भी लेती थी मुझे , उसने ही कहा कई बार मैं  बहुत प्यार करती हूँ तुम्हें ,पढ़ाई ख़राब हो गई थी ,दिन  रात केवल वो और उसकी तीमारदारी में खुद को देखता था मैं  , वैसे उसके घर बेरोक टोक जाने का अधिकार भी पा लिया था मैंने ,एक रोज रात ८ बजे के समय  मैं उसके घर पहुंचा पीछे के गेट से अंदर दाखिल हुआ और उसके कमरे में जैसे ही दरवाजा खोला नशे  हालत में दो युवको के साथ मैंने उसे देखा आधे कपड़ों में ही बिना किसी जल्दी में उसनेआकर  मेरे मुंह पर धड़ा धड़ चांटे मरने चालू कर दिए जाहिल, गवार , बद्तमीज तेरी ओकात ही क्या है साला हमारे टुकड़ो पर पलने वाला ,क्या तेरे जैसे नीच से शादी करूंगी मैं ,जिसे  तमीज नहीं है ,,चलेजा यहाँ से लौट कर मत आना अपराध मेरा इतना ही था कि मैंने बिना अनुमति के उसकी असलियत जान  ली  थी , ----हेभगवान कितना बड़ा छल था ,मेरे साथ और मैं ही अपराधी था ------ कानों में  शून्यता  थी उसके दोस्तों ने बहुत मारा  था मुझे, और  मैं यह विश्वास नहीं कर पा रहा था कि  वास्तव में यह वही लड़की है जो मेरे प्यार में अपना सब कुछ लुटाने  का दम  भरती थी , मैं वहां से निकला और रेल की पटरी पर गाड़ी के सामने कूद गया फिर जब होश आया तो मालूम हुआ मैं आपने कसबे के अस्पताल में था एक पाँव कट चुका था ,  और बूढी माँ और पिताजी जमीन में लेटे थे मेरे ठीक होने की प्रतीक्षा कररहेथे , सारी जमीन बेचीं जा चुकी थी  एक मकान  भर रह गया था , सोचा अब जीवन ख़त्म क्यों करूँ , अपने गम दुनियां के फरेब को एक ताकत बनाऊँ  और चल पड़ा  २ वर्ष पढ़ाई करके आज मैं इस डायरेक्टर के पद पर हूँ , जानते हो यह वही लड़की थी जो इंटरव्यू के लिए आई
थी ,पहले  मन में आया मैं  इसे रिजेक्ट करदूं मगर यह किसी न किसी रूप में सामने आएगी , और मेरे विकास की जिद इसे देख कर और प्रबल होगी इसलिए यह निर्णय लिया कि एक अनाम द्वीप पर इसे अपनी कंपनी की  नौकरी के लिए रख दूँ ,  जो मेरे हिसाब से काला पानी जैसा है ,सोचता यह हूँ कि यदि  जीवनका यह रूप नहीं  देख पाता  तो शायद आज  उस प्रतिशोध की आग से मेरा   अग्निपुत्र जैसा जन्म नहीं हो पाता | यश समझ गया  कि जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी ही जिसका सम्पूर्ण बल बन गई हो उसे काल पुरुष बनने से कौन रोक सकता है |


 बहुत सारी अपेक्षाएं रखते है हम सब ,और चाहते यह है जीवन इतना शक्तिशाली हो जिससे सदियों तक लोग उसका अनुशरण करते रहें ,यहाँ सबसे बड़ा प्रश्न यह है  कि हजारों ख्वाहिशों के साथ शक्ति शाली जीवन की कामना खुद ही एक बड़ा विस्मय कारी प्रश्न है , शक्ति का केन्द्रीयकरण  तब होता है जब आपकी सम्पूर्ण चेतना  केवल एक ताकत के साथ अपने लक्ष्य की तरफ केंद्रित हो जाती है ,जहाँ कुछ अपने उद्देश्य के सिवा होता ही नहीं है ,  परन्तु आदमी का स्वाभाव ही ऐसा है कि  वह सारी कामनाओं की पूर्ती के बाद अपने उद्देश्य को भी पूर्ण करना चाहता है ऐसे में ये आकांक्षाएं ही उसके लिए उसकी सबसे बड़ी कमजोरियां साबित होने लगती है |



जीवन  की शक्ति को जानने से पहले आपको स्वयं को जानना जरूरी है की वास्तव में आपका जन्म और जीवन का मूल उद्देश्य क्या है , हम अधिंकांशतः दिवा स्वप्नों के फेर में जिंदगी का बड़ा भाग निकाल देते है जो परिस्थितियां सामने आती है उनके अनुसार स्वयं को बदल बदल कर चलते रहते है , कालान्तर में हम अपनी सच्ची पहिचान ही भूल जाते है , हम परिस्थितियों , समय की मान्यताओं और परिवर्तन की आंधी में सबसे समायोजन बनाकर चलने का प्रयत्न करते है जबकि हम कितने भी आदर्श स्थापित करें मगर समाज हमें बौना साबित करने की होड़ में ही लगा रहता है परिणाम हम सारे आदर्शों अपने मूल उद्देश्य और जीवन के मूल्य भूलकर समाज समय और लाभ की मानसिकता से समायोजन करते रहते है परिणाम हम जीवन की मूल शक्ति का अनुभव ही नहीं कर पाते |


मनुष्य ईश्वर की सबसे शक्तिशाली कृति है और उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व इस बात पर शक्ति अर्जित करपाता है की वह स्वयं को एकाग्र करके स्वयं को चिंतन की उस पराकाष्ठा पर ले जाए जहां जीवन के प्रत्येक लक्ष्य उसके लिये सहज सेदिखाई देने लगे ,
भारतीय धर्म शाश्त्र में अगस्त्य ऋषि का समुद्र पान , भगीरथ का गंगा पृथ्वी पर लाना  और  जल ,वायु , आकाश , और अग्नि को स्तंभित करने वाली शक्तियां यही बताती है कि मनुष्य का चिंतन जितना प्रबल और शक्तिशाली होगा  वह उतनी ही ऊंचाइयों पर अपनी शक्तियों को लेजा सकता है , अर्थात चिंतन की पराकाष्ठा को पहचानिये तब कही जाकर आप अपनी शक्तियों के साथ न्याय कर पाएंगे |

जीवन में दुःख और सुख दोनों  ही तो अवश्यम्भावी है कभी सुख की मीठी बयार है तो कभी दुःख और यातना का जीवन स्वयं जीवन पर प्रश्न चिन्ह लगा देता है यहाँ यह बात बमहत्वपूर्ण है की सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो ऐसे पहलू है जिनका अस्तित्व एक दूसरे पर ही टिका रहता है , सुख का आना दुःख के आने का अलार्म है तो दुःख सुखआने का संकेत देदेता है |
मित्रों सुख  की प्राप्ति का प्रयत्न और ख़ुशी जीवन में प्राप्ति के समय ९०%और प्राप्ति के बाद उपभोग के समय गिरते हुए क्रम में २०%रह जाती है जबकि दुःख अतिरेक की स्थिति में १००%यातना  देता है आत्मा को अर्थात दुःख सम्पूर्णता का द्योतक है जबकि सुख गिरते हुए क्रम में कुछ एक % तक ही सहारा दे पाता है ,

एक बूढी औरत का पर्स गिर गया वह परेशान हो गई रोने लगी फिर लोगो ने कहा अम्मा हम छोड़ देते है घर वो धीरे धीरे शांत होने लगी और दुःख कम होने लगा ,
दूसरे  पल उसे याद आया जब उसके लड़के ने उसे धक्का मार कर घर से निकाला था तो उसे कितनी पीड़ा हुई थी आज भी वह १००% तक दुखी होकर रोती है परन्तु पर्स गिरने का दर्द क्षणिक ही रहा
मित्रों जीवन को शक्तिशाली बनाने में हर गम हर दर्द हर पीड़ा का अपना महत्व है और जिसने जितना दर्द और पीड़ा अपने जीवन को शक्तिशाली बनाने के संकल्प  में झोंक दिए है आप सत्य माने उसने उतने ही बड़े कीर्तिमान स्थापित किये है गांधी काकठिन सत्य वृत , नानक का गृहत्याग , ईसा का सूली पर चढ़जाना और अपने प्राण के लिए कुछ भी करगुजरने  का संकल्प इंसान को मनुष्य से देवता बनाने की शक्ति रखता है |


आप अपने धोखों को सीढ़ी बनाये , तिरस्कार और अपमान को लक्ष्य बनाये , आप अपनी शारीरिक कमजोरियों को आत्माका प्रबल वेग   प्रदान करें , आप अपने सामाजिक पारिवारिक और मित्रों के अनादर को भविष्य की शक्ति के संकल्प में खड़ा करें , एक दिन आपका होगा , जहाँ सारी कायनात आपको सफल और श्रेष्ठ सिद्ध कर देगी , कष्ट और यातनाओं  से जीवन गवाने की सोच इसलिए पाप है की आप सामर्थ्य वान होकर भी जीवन के संघर्ष से भागने लगे, और अपराधियों को किसी निरीह इंसान के शोषण के लिए खुला छोड़ दिया ,  ध्यान रहे जीवन के संघर्ष को पूरी ताकत से लड़ कर जीतने के लिए आपका जन्म हुआ है और यही से एक नया  युग का आरम्भ भी होगा जो बता देगा की आप ने ही जीवन के मूल्यों को इस तरह अपनाया जिससे आप कल पुरुष बन सकें है |


 निम्न मत को ध्यान रखें
  • जो विषय स्थितियां अवश्यम्भावी है उनका शोक मानना व्यर्थ है उनके लिए कुछ कुछ संकल्प किये जाए और  उनपर अमल किया जाए | 
  • संसार का हर कार्य आपको यह निर्देश या संकेत देता है की आप उससे कुछ न कुछ अवश्य सींखें चींटियों से बिना हारे चलने का अध्याय और हर जीव से अपने नियमों में चलने का चलन आप भी अपनाइये | 
  • दुःख और कमजोरियां वे है जो आप ठीक करसकते है मगर ठीक नहीं कर पा रहे और इसका ही दुःख मानना चाहिए  जो कार्य आपके  वश में ही  नहीं  है उनके लिए शोक मत मनाएं | 
  • शक्तियों का प्राकट्य केवल चिंतन और एकाग्रता से संभव है और उसके लिए एकाग्रचित्त होकर आत्म मंथन की प्रक्रिया को निरंतर परिष्कृत करने की आवश्यकता है | 
  • आपका जो सुख दूसरों पर निर्भरहुआ उसमे आपको केवल दुःख ही प्राप्त होगा क्योकि आपका चिंतन और उनका चिंतन दोनो पृथक है | 
  • कमजोरियों का अर्थ है अज्ञानता जबतक आप अपने आपको ही नहीं समझेंगे तबतकआप कमजोरियों को भी नहीं पहिचान सकते  अतः स्वयं की चेतना से कमजोरियों को निकलने का चिंतन आरम्भ करें | 
  • शक्ति और कमजोरियों को निरंतर आंकलन की आवश्यकता होती है और निरतंर उनके लिए नए आधार निर्धारित किये जाने चाहिए क्योकि निरंतर परिवर्तन से ही  गुण परिष्कृत हो सकते है | 
  •  अपनी  स्थान पर अपनी शक्तियों का चिंतन कीजिए जिससे आप स्वयं कुछ   समय बाद  अपने में परिवर्तन अवश्य महसूस करेंगे | 
  • जीवन को नकारत्मकताओं के स्थान पर सकारात्मक सोच  से पूर्ण करें जिससे आपकी आधी सफलता आरम्भ में ही तय हो जाएगी | 
  • संसार का आशय ही यह है कि आप जीवन को सद विचारों सद प्रेरणा और सद मार्ग से जोड़े रखें जिससे आत्मबल स्वयं आपकी जीत का कारक हो जाएगा | 
  • स्वयं की तुलना आप किसीसे न करें क्योकि तुलनात्मक दृष्टी कोण से या तो अहम पैदा होगा या विद्वेष और जीवन के लिए ये दोनो ही नकारात्मक है |





Sunday, May 10, 2015

जीवन की गुणवत्तता का भाव (concept of quality life)

जीवन की गुणवत्तता का भाव (concept of quality life)
हैप्पी मदर्स डे ------माँ ------- क्वालिटी टाइम निकलना आज पापा के साथ -----------    बीमार लाचार पत्नी  के मुख पर बेबसी - और कमजोरी से की जाने वाली बातें के प्रभाव एक साफ़ आईने की तरहचेहरे पर घूमने लगे एक मोटा सा आंसू गाल पर लुढक आया माँ कहती रहीं बहुत अच्छी हूँ बेटा , मेरे सामने मेरा अतीत एक एक लम्हे जैसे खड़ा करने लगा ----------सोचा मै  रोऊँ या खुश होऊं -----
गाँव के वातावरण मै पैदा हुआ था मैं अच्छी जमीन जायदाद थी बाबा के पास सुख था शांति थी वैभव था सबके दुःख सुख में खड़े होने का भाव  साथ ही हर  त्यौहार में एक दूसरे का इंतज़ार मीठी लड़ाइयां और लम्बी  मनाने की प्रक्रिया और फिर एक दूसरे के प्रति मर मिटने का भाव, यहाँ आम था । कुल मिला कर जिंदगी सकून लुटा रही थी और हम ही नहीं सैकड़ों  लोगो को रोजी रोटी देने वाली थी बाबा की यह  हवेली । समय बीतता गया बाबा ने शहर के  बड़े कॉलेज में मेरा दाखिला , डाक्टरी में करा दिया था ,और हम डाक्टर भी बन गए थे ,पी जी के लिए मुझें विदेश जाना पड़ा ,फिर शादी हुई बच्चे हुए और कभी गाँव लौट कर जाना नहीं   हो पाया ,मेरी पत्नी ने भी पूरी संस्कृति और संस्कारों से बच्चों को पाला ,पुत्र एवं पुत्री को ,मुझे भी विदेश पढाई करने भेजना पड़ा बच्चों को, और  वे  ग्रीन कार्ड धारी वहीँ के होकर रह गए | अपने अपने परिवारों के साथ  खुश है वे सब लोग   और हम भी क्याकहें उनकी ख़ुशी में खुश है मगर -------आज मैं और मेरी पत्नी शहर के बहुत बड़े डॉक्टर है मगर उम्र बीमारियों और हताशा से पूर्ण , खोखले आधार  हीन और नीरस जीवन का भाव पैदा होने लगा है हममें , ,बच्चों को पैसे ,संपत्ति और जायदाद का कोई लोभ नहीं है परन्तु   दुःख यह कि कर्त्तव्य बोध भी नहीं है ,मशीनी इंसान की तरह ,हम अकेले शारीरिक मानसिक कमजोरियों  के  साथ  इस द्वन्द में   कि  जीवन में मुझसे  कहाँ गलतियां हुई है ,जिससे मुझे उस समय की खोज करना पड रहा है कि मेरी क्वालिटी लाइफ कहाँ है --------------इस कहानी का  निष्कर्ष आप अपने अपने हिसाब से निकालिये शायद बहुत सारे उत्तर  होंगे इस वास्तविक कहानी के -------


आज हम आप सब क्वालिटी लाइफ या क्वालिटी टाइम के फेर में जीवनके संस्कारों और आदर्शों से आदर्शों  से बहुत दूर निकल आए  है यहां हमने अपना जीवन  केवल उन स्थितियों को समर्पित करदिया है जहाँ केवल अपनी सोच अपना विकास औरकर्तव्यों की अनदेखी रह गई है ,परिवार समाज और राष्ट्र की मानसिकता हमारे  निहित स्वार्थों के सामने बहुत पंगु होकर रहगए है , हमारे पास अपना आंकलन करने का समय ही  नहीं है , आदर्शों की मीमांसा में हम स्वयं को कहा खड़ा पाते है ,? शायद हम अपने ही जाल और   भाव में अकेले पड़ गए है , जहाँ हमारा खोखलापन ,हताशा और नैराश्य की पारा काष्ठा परहै ,और  हम स्वयं को खोजने का प्रयत्न अवश्य कर रहे है |


मित्रों पिछले तीन दशकों में आदमी साधनों का ढेर बन कर बैठ गया है हर ऐशोआराम की बहुतायत है उसके पास संबंधों के आधार जो कल तक साधन हीनता और उनकी अधिकता के कारण बन रहेथे वो भी ख़त्म होते जारहे है , पैसा रूपया ,साधन सम्पन्नता और भौतिक साम्राज्य भी मनुष्य के मानसिक स्तर को संतोष नहीं दे पारहा है ,जब हम क्वालिटी लाइफ या समय की बात करते है तो हमारा इशारा उपभोगवादी होता है जबकि यह अकाट्य सत्य है कि जिस क्वालिटी टाइम या लाइफ की हम खोज कररहे है उसका आरम्भ संस्कारों ,संस्कृति और परहित के भाव में निहित मिलेगा , हम उपभोग के स्थान  पर   त्याग के महत्व को अधिक बल देंगे तब शायद क्वालिटी लाइफ का मायने समझ पाएंगे  |


दोस्तों  जीवन सम्पूर्णता चाहता है वह कई भागों में बंटा हुआ आपको पूर्णता के साथ सफल देखना चाहता है जीवन के हर भाग में आप अपने अधिकार कर्तव्यों से बधें हुए अपना आंकलन सकारात्मक कर पाएं | यहाँ समस्या यह है कि हम जीवन से चाहते बहुत कुछ है, मगर उसे देने के लिए हम स्वयं को सबसे ज्यादा कंगाल बना बैठते है  यहीं से एक ऐसा कुचक्र आरम्भ होता है कि हम केवल नकारत्मकताओं से जुड़े सकारात्मक जीवन के कुछ पलों को इकठ्ठा करना चाहते है मगर हमपर अपनी सकारात्मकता कम पड़ने लगती है और जीवन की हताशा भी बढ़ जाती है, तब तो क्वालिटी लाइफ ढूढनी ही पड़ेगी न |

हर आदमी यहाँ स्वयं को खोजता हुआ मिलता है सबके अपने अपने स्वार्थ है , अपने लक्ष्य और अपने गंतव्य है और कैसे भी स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने की एक बड़ी होड़ भी है ,कैसे भी स्वयं को सिद्ध बताने की चेष्टा में उसे सकारात्मकता और नकारात्मकता का ज्ञान ही कहाँ रहता है , जीवन प्रश्नों के साथ बार बार उसके सामने खड़ा होजाता है मगर वह बार बार अपने स्वार्थो के हिसाब से उत्तर देता रहता है यह बात और है कि कालांतर में ये सब क्रियान्वयन उसे ही कटघरे में खड़ा कर देता है ,फिर मानसिक हताशा उससे तमाम प्रश्नोत्तर करती रहती है जिनके उत्तर उसके पास नहीं होते |

क्वालिटी लाइफ और क्वालिटी समय के लिए इनका प्रयोग अवश्य करें जीवन की गुणवत्तता का भाव (concept of quality life)
  • जीवन के सत्य को एक बार फिर इस नजर से समझे कि आपके  जन्म का मूल उद्देश्य क्या है और उसकी पूर्ती के लिए क्या आपने अपने प्रयास आरम्भ किये है अथवा नहीं | 
  • संस्कारों और आदर्शों के क्रियान्वयन पर अपनी पैनी नजर बनाये रखें क्योंकि इसके बिना आपका जीवन गतिहीन और लक्ष्य हीन होसकता है | 
  • आपके भाव में जबतक दूसरों के हित की सोच नहीं होगी तबतक आपको कोई उपलब्धि प्राप्त नहीं हो सकती क्योकि जबतक आपको देने का भाव नहीं आएगा तबतक आपको समाज से वह नहीं मिलेगा जो आप ढूढ़ रहे है | 
  • सम्पत्ति  जायदाद और साधनों की बाहुल्यता आपको श्रेष्ठ सिद्ध नहीं करसकती क्योकि सबके  साथ आपका सहज सच्चा और मधुर व्यहार ही आपको श्रेष्ठ साबित करेपयेगा यह हमेशा ध्यान रखें| 
  • क्वालिटी लाइफ एवं  क्वालिटी समय का मायने आपका उपभोग वादी दृष्टिकोण नहीं अपितु आवश्यक उपयोग और त्याग का बाहुल्य आपको श्रेष्ठ सिद्ध करसकता है | 
  • अपने कर्तव्यों की स्थिति पर पैनी नजर बनाये रखें आज के कर्त्तव्य की अनदेखी आपका तमाम सुख और संतोष ख़त्म करडालता है अतः  कर्त्तव्य और दायित्व को जीवन में बनाये रखें | 
  • क्वालिटी टाइम और क्वालिटी लाइफ की आवश्यकता आपको तब होती है जब आपके पास सम्पूर्णता नहीं होती अत; अपने व्यवहार और जीवन को इतनी सहजता दें जिससे जीवन के आदर्श आपके सम्पूर्ण जीवन को क्वालिटी लाइफ में बदल सकें | 
  • जीवन को नकारात्मकता के जाल से बचा कर एक सकारात्मक दृष्टी से पूर्ण करें और समस्याओं का सामना नकारात्मकताओं से से नहीं अपितु शक्ति से करें | 
  • सबके साथ मधुर एवम सहज सम्बन्ध स्थापित करें और सुख दुःख से स्वयं को जोड़े रखें इससे स्वयं को शांत और सहज रहने का ढंग और परिष्कृत होगा | 
  • जीवन में प्रत्येक दिन एक कार्य सकारात्मक दृष्टी से दूसरों के लिए अवश्य करें इससे आपको जीवन का आतंरिक संसर्ग मिलाना आरम्भ हो जाएगा | 
  • परहित , परदुःख और परमार्थ को आधार बनाकर सम्पूर्ण विश्व से स्वयं को जुड़ा अनुभव करें आपको स्वयं की शक्ति का ज्ञान अवश्य होने लगेगा | 
  • गुणात्मक आधारों पर जीवन को मूल्य परक  बनाने का प्रयत्न करे क्योकि मूल्यों की क्रियान्वयनता स्वयं संतोष के  स्तर का निर्माणक हो जाता है | 
  • क्वालिटी टाइम की सोच उपभोगवादी और बाह्य आवरण का विषय है , जबकि क्वालिटी लाइफ का भाव आतंरिक मूल्यांकन है जो मनोभाव को सिद्धः करता है |





अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...