बहुत सारी महत्वाकांक्षाएं थी मन में और मैंने अपना निर्माण कार्य चालू कर दिया , अपने अस्तित्व बचाने और सबसे ऊंचा बताने की जिद में मैंने अपने ही अस्तित्व के चारों और खुद बड़ी बड़ी दीवारें खड़ी कर ली , और अंदर ही अंदर मजबूत सीमेंट से दीवारें बनता रहा , और थोड़ा समय बीतते ही अपनी मजबूत दीवारों में खुद फंसने लगा तो बहुत जोरो से चिल्लाया ,पर अब कौन जो मेरी सुनता कौन ये बड़ी और मजबूत दीवारें मैंने ही तो बनायीं थी , और मै खुद आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए चिल्ला चिल्ला कर मदद मांग रहा था मगर खुद अपने ही शोर में आवाज घुट कर रह गई थी , चारों और सन्नाटा और डूबता हुआ मन था जो अपने लिए मार्ग ढूढना चाहता था | हम और आप हर पल जीवन में ऐसी ही समस्याओं निर्माण करते रहते है और बार बार अपने ही जाल में स्वयं को फंसा पाते हुए जीवन से परेशान होने लगते है यह एक आदमी का विषय नहीं वरन आम आदमी की कहानी का सार है यह ।
मित्रों हमारा एक ही लक्ष्य होता है कि अधिक से अधिक सुख पाते रहें जीवन में कोई दुःख हो ही नहीं , साधनों की बाहुल्यता और हर ऐशो आराम का साधन हमे मिलता रहे और जीवन हमारे सामने कोई समस्या पैदा ही नही करें , हम अकर्मण्य से केवल भोग वादी व्यवस्था से जुड़े जीवन का आशय यही रहें कि जीवन में हमारा लक्ष्य केवल भोग और विलासिताओं के साथ ही आरम्भ हो और उसके साथ ही उसका अंत भी हो जाए ,परन्तु जीवन कोई शेख चिल्ली का स्वप्न तो है नहीं जो आपको सोचने के साथ अकर्मण्य भाव से वो सब देता जाएगा जो आप मांगते जाए आवश्यकता है की आप स्वयं को और अपने आपके आतंरिक भाव को समझ करयह निश्चित करें कि वस्तुतः आप चाहते क्या है और कहाँ गलत साबित हो रहे है , उसकी पुनरावृति न करें ।
एक और महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि हम अपने जीवन की आवश्यकताओं शारीरिक ,मानसिक , और पारिवेशिक स्थितियों के दास बन गए है जैसे ही हमारे शारीरिक , मानसिक आवेश हमें प्रभावित करते है हम अपने सारे लक्ष्य और सिद्धांत भूलकर एक सामान्य भीड़ या व्यसनी की तरह उस में लिप्त हो जाते है सारी कसमें सारें विश्वास और सारे मूल्य अपने आप ध्वस्त हो जाते है और हम बेहद सामान्य आदमी की तरह विश्वास कर बैठते है कि हम केवल भोगवादी संस्कृति के कोई सामान्य से जीव है जिसके लिए और किसी भी मूल्य का कोई मायने ही नहीं है ।
मित्रों जब हम एकाग्र चित्त होकर अपने उद्देश्यों को जीवन के मूल मन्त्रों की तरह पढ़ने और अध्ययन करने लगते है तो जीवन में मन और मष्तिष्क की अनियंत्रित मांगों पर स्वतः रोक लग जाती है हम अपने विश्वास को इतना प्रबल बना देते है कि छोटी मोटी आावश्यक ताएं अपना आधार ही नहीं रख पाती है ,और जीवन अपने आदर्शों के साथ एक ऐसे सफर पर निकलजाता है जहाँ केवल अविराम शान्ति और केवल सफलता होती है वह भी ऐसी सफलता जिसमे केवल हम होते है और अपरमित शांति होती है जिसके बाद कोई प्रश्न रह ही नहीं जाता यही जीवन का वह उच्चतम बिंदु है जिसपर भविष्य के वे सारे प्रश्न स्वतः सुलझ जाते है और यही मानवीयता के सर्वोत्कृष्ट स्तर का बिंदु भी है |
हम जीवन से चाहते तो यही है कि , और सत्य अहिंसा और त्याग के बिंदु और जीवन के हर उच्चतम शिखर पर हम ही हों परन्तु हमारे आदर्श और अनुशासन इतना ढुल मुल है कि हम अपने आप से ही हारे हुए दिखाई देते है परिणाम हमे हर पल किसी की आवश्यकता होती है और हम हर सम्बन्ध का प्रयोग केवल पायदान की तरह ही करने के आदी हो जाते है फिर तो हमे जीवन के हर कदम पर परेशानियां मिलनी ही है
हम तो हर कदम पर अपने आपसे अपने संबंधों से अपने बिछाए जालों से और अपने ही झूठ फरेब और अपने ही दोहरे व्यक्तित्व से परेशान है , हमे हर काम के लिए कोई सहायता चाहिए मगर हर आदमी से शिकायत है हमें बस यही परेशानी है । जो भी काम दूसरों पर आधारित हुआ उससे हमें दुःख ही मिलाना था ,हम यह आधार भूत बात भी भूल गए ,अब यदि हमे अपना पुनरावलोकन करना है तो अपने आप से झूठ फरेब और शारीरिक मानसिक नियंत्रण के मूल्य हमे खुद स्थापित करके कार्य में लग जाना होगा नहीं तो जानवरों की तरह ही हम भी आहार निद्रा मैथुन और भय के चक्र में चलते हुए अपना अस्तित्व खो बैठेंगें |
निम्न को परखें
मित्रों हमारा एक ही लक्ष्य होता है कि अधिक से अधिक सुख पाते रहें जीवन में कोई दुःख हो ही नहीं , साधनों की बाहुल्यता और हर ऐशो आराम का साधन हमे मिलता रहे और जीवन हमारे सामने कोई समस्या पैदा ही नही करें , हम अकर्मण्य से केवल भोग वादी व्यवस्था से जुड़े जीवन का आशय यही रहें कि जीवन में हमारा लक्ष्य केवल भोग और विलासिताओं के साथ ही आरम्भ हो और उसके साथ ही उसका अंत भी हो जाए ,परन्तु जीवन कोई शेख चिल्ली का स्वप्न तो है नहीं जो आपको सोचने के साथ अकर्मण्य भाव से वो सब देता जाएगा जो आप मांगते जाए आवश्यकता है की आप स्वयं को और अपने आपके आतंरिक भाव को समझ करयह निश्चित करें कि वस्तुतः आप चाहते क्या है और कहाँ गलत साबित हो रहे है , उसकी पुनरावृति न करें ।
एक और महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि हम अपने जीवन की आवश्यकताओं शारीरिक ,मानसिक , और पारिवेशिक स्थितियों के दास बन गए है जैसे ही हमारे शारीरिक , मानसिक आवेश हमें प्रभावित करते है हम अपने सारे लक्ष्य और सिद्धांत भूलकर एक सामान्य भीड़ या व्यसनी की तरह उस में लिप्त हो जाते है सारी कसमें सारें विश्वास और सारे मूल्य अपने आप ध्वस्त हो जाते है और हम बेहद सामान्य आदमी की तरह विश्वास कर बैठते है कि हम केवल भोगवादी संस्कृति के कोई सामान्य से जीव है जिसके लिए और किसी भी मूल्य का कोई मायने ही नहीं है ।
मित्रों जब हम एकाग्र चित्त होकर अपने उद्देश्यों को जीवन के मूल मन्त्रों की तरह पढ़ने और अध्ययन करने लगते है तो जीवन में मन और मष्तिष्क की अनियंत्रित मांगों पर स्वतः रोक लग जाती है हम अपने विश्वास को इतना प्रबल बना देते है कि छोटी मोटी आावश्यक ताएं अपना आधार ही नहीं रख पाती है ,और जीवन अपने आदर्शों के साथ एक ऐसे सफर पर निकलजाता है जहाँ केवल अविराम शान्ति और केवल सफलता होती है वह भी ऐसी सफलता जिसमे केवल हम होते है और अपरमित शांति होती है जिसके बाद कोई प्रश्न रह ही नहीं जाता यही जीवन का वह उच्चतम बिंदु है जिसपर भविष्य के वे सारे प्रश्न स्वतः सुलझ जाते है और यही मानवीयता के सर्वोत्कृष्ट स्तर का बिंदु भी है |
हम जीवन से चाहते तो यही है कि , और सत्य अहिंसा और त्याग के बिंदु और जीवन के हर उच्चतम शिखर पर हम ही हों परन्तु हमारे आदर्श और अनुशासन इतना ढुल मुल है कि हम अपने आप से ही हारे हुए दिखाई देते है परिणाम हमे हर पल किसी की आवश्यकता होती है और हम हर सम्बन्ध का प्रयोग केवल पायदान की तरह ही करने के आदी हो जाते है फिर तो हमे जीवन के हर कदम पर परेशानियां मिलनी ही है
हम तो हर कदम पर अपने आपसे अपने संबंधों से अपने बिछाए जालों से और अपने ही झूठ फरेब और अपने ही दोहरे व्यक्तित्व से परेशान है , हमे हर काम के लिए कोई सहायता चाहिए मगर हर आदमी से शिकायत है हमें बस यही परेशानी है । जो भी काम दूसरों पर आधारित हुआ उससे हमें दुःख ही मिलाना था ,हम यह आधार भूत बात भी भूल गए ,अब यदि हमे अपना पुनरावलोकन करना है तो अपने आप से झूठ फरेब और शारीरिक मानसिक नियंत्रण के मूल्य हमे खुद स्थापित करके कार्य में लग जाना होगा नहीं तो जानवरों की तरह ही हम भी आहार निद्रा मैथुन और भय के चक्र में चलते हुए अपना अस्तित्व खो बैठेंगें |
निम्न को परखें
- जीवन में सत्य और अपने प्रति अडिग भावना का निर्माण जीत की पहली शर्त है यदि हम अपने निर्णयों के प्रति भी ढुल मुल नीत का सहारा लेते है तो जीवन भी हमारे प्रति वैसी ही नीत अपनाने लगेगा, अतः जीवनके प्रति अडिग दृष्टी कोण अपनाना होगा |
- मेरे ख़ुशी का माध्यम जब तक दूसरे रहेंगे तबतक जीवन में केवल परेशानी ही रहेगी यदि जीवन को इससे मुक्त रखना है तो अपने जीवन को अपनी अंतरात्मा के साथ रहने और खुश रहने के भाव का निर्माण करना होगा |
- जीवन में भविष्य के प्रति दृष्टिकोण को धनात्मक रखने के साथ अपनी कार्य शैली पर भी विचार करना आवश्यक है उसकी त्रुटियोंकी पुनरावृत्ति न होने दें |
- दुर्भाग्य शाली वह नहीं है जिसका समय ने साथ नहीं दिया है बल्कि असल में दुर्भाग्य शाली वह है जो सब कुछ जानते हुए भी अपनी गलतियों को दोहराता रहता है |
- अपनी त्रुटियों को हटाते समय आप पूर्णतः उनका त्याग करें यह मत बताये कि अब आपने अपनी गलती कम कर दी है या तो आप त्रुटि को समूल नष्ट करे अथवा आप दोषी है यही मानें |
- अपनी शारीरिकता और मानसिक उद्वेगों को नियंत्रित रखिये अन्यथा आपभी अपनी आत्म हत्या की और अग्रसर है और आपका भविष्य भी प्रश्न वाचक है |
- जीवन की नकारात्मकता पर नियंत्रण के लिए आपको उन लोगों से दूर अपना अस्तित्व स्थापित करना होगा जो आपके जीवन में नकारात्मक भूमिका निभाते रहे है और अडिग होकर इसका पालन करें |
- आपका मन जानता है कि आप कहाँ कहाँ गलत हो और आप कहाँ कहाँ अपने आपको धोखा दे रहे है , ध्यान रहे जीवन के प्रति परिष्कृत दृष्टी रखने वाले सर्वोच्च शिखर पर पहुँच पाते है |
- दूसरों के चिंतन में स्वयं को उलझाने वाले स्वयं अपनी शक्ति खो बैठते है क्योकि उनके चिंतन का विषय दूसरे रहते है इस लिए उनका विकास प्रभावित होने लगता है |
- ईश्वर और अपने प्रति उदार भावना का प्रयोग करें , तथा अपने आपको अपने बड़े उद्देश्य की याद दिलाते रहिये साथ ही उसकी कर्त्तव्य बोध की दिशा का भी ध्यान रखते रखिये |
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