Saturday, January 31, 2015

व्यक्तित्व विकास (११का जादू ) personality development (miracle of eleven )

भारतीय दर्शन में ११ का अंक बड़ा महत्वपूर्ण है धर्म के अनुसार ११  सबसे अधिक ताकतवर   माना गया है और यह  जाना  जाता है कि रूद्र अपने पूर्ण अवतारों में ११ की संख्या में सम्पूर्ण जगत के कर्तव्यों को पूर्ण करने में सामर्थ्यवन सिद्ध हुए अर्थात यह माना गया सम्पूर्ण जगत  में स्वयं सिद्ध होने के लिए ११ मुख्य रूद्र गुणों की आवश्यकता  अवश्य  सकती है जिनसे सम्पूर्ण लोक और उसकी नियंत्रण शक्तियों को प्राप्त किया जा सकता है |

आधुनिक युग में व्यक्तित्व विकास हेतु मनुष्य को गुणात्मक आधारों की आवश्यकता अवश्य है और पूरे जीवन में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए गुणों की आवश्यकता  है आज व्यक्ति और व्यक्तित्व  को भी पूर्ण करने के लिए व्यक्तित्वविकास के मूल मन्त्रों को सीखना आवश्यक है जिससे जीवन को सफल बनाया जा सके यदि आप यह चाहते है कि  जीवन के प्रत्येक भाग में सर्वश्रेष्ठ सिद्ध होना है तो जीवन के इस ११ का जादू आपको स्वयं सिद्ध बना देगा |


व्यक्तित्व विकास की पृष्ठ भूमि में सबसे महत्वपूर्ण विषय है अपनी समस्त शक्तियों को समझना और उनका विकास करना ११ का चमत्कार बड़ा ही विचित्र है महा रुद्रों की संख्या ११ ही है और सम्पूर्ण संसार की महाशक्तियां ३३ बताई गई है और जिन्हें ३३ कोटि देवता संचालित करते है इन ३३ महा शक्तियों का आधार मनुष्य के अंदर  और उनकी जाग्रति हेतु उसमे ३३ महागुण  होने ही चाहिए जो सम्पूर्ण शक्तियों के साथ मनुष्य को श्रेष्ठतम सिद्ध करते है ये ही गुण व्यक्तित्व विकास  की महाशक्तियां है जिन्हे पूर्ण करके मनुष्य महाशक्ति सम्पन्नऔर देवतुल्य हो सकता है |


व्यक्तित्व विकास के मूल ११ शब्दों के सपूर्ण शक्तियों को निम्नतः समझा जासकता है

1   P     ------- purity-----passion -----power

 जीवन में पहला शब्द  पी पवित्रता ,शक्ति और जिद का प्रतीक है वह जीवन से यही मांगता है कि अपने पूर्ण सत्य को पवित्रता और पूर्णता से जीतने का प्रयास किया जावे , जीवन की पूर्णता सरलता और पवित्रता के आधारों में ही छुपी है उसी प्रकार पैशन यह चाहता है कि जीवन लक्ष्यों और अपने उद्देश्यों के प्रति इतना दृण निश्चय करले कि उसे जीवन के प्रतिपल अपने लक्ष्य की प्राप्ति का ही ध्यान बना रहे और तीसरा पी यही बताता है कि जीवन को पूरी ताकत और शक्ति से जीने का प्रयत्न करें जीवनको जो भी चाहिए ,जो उसके लिए आवश्यक हो पूरी ताकत से उसे प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाए |
2   E -------evaluation -------external knowledge --------experience

जीवन की दूसरी महत्व पूर्ण आवश्यकता है की हम तीनों ई को प्राप्त करें ,प्रथम ई यह बताता है कि जीवन सदैव स्वयं का मूल्यांकन करता रहे और हर कार्य के बाद हर बीतने वाले दिन के अंत में हम यह अवश्य विचार करें कि आज हमने स्वयं के कार्यों में कितनी सफलता पाई क्या कोई त्रुटि तो नहीं की , किसी के दुःख का कारण तो नहीं बने हम और कल आजकी त्रुटियों को सुधरने के लिए क्या निश्चय किया जाए ,दूसरा ई यह बताता है कि जीवन के प्रत्येक चरण में स्वयं को प्रासंगिक सिद्ध करने के लिए बाह्य जगत की आधुनिक तकनीकों का पूर्ण ज्ञान किया जावे उसके बिना आपके लक्ष्य पूरहोने में कठिनाई हो सकती है ,जीवन का तीसरा  मुख्य ई है अनुभव जिसके बिना जीवन मूल्य  नहीं बना पाता जीवन के कई अध्याय अनुभव गम्य होते है और उन्हें अनुभव   से ही पूर्ण किया जा सकता है |

3   R--------rethinking -------research -------remember ------

तृतीय शब्द R यह बताता है   जीवन आपसे निरंतर यह मांग करता है कि आप स्वयं के आचार -विचार ,कार्यों और व्यवहारों को पुनर्चिन्तन के माध्यम से चुस्त और दुरुस्त बनाये रखिये , जैसे ही मन और बुद्धि को ढीला करके जीवन जीने की कोशिश की जीवन पर बहुत सारी नकारात्मकताएं हावी होने लगेंगी नकारत्मकताओं की  चोटी अपने पुनर्चिन्तन के हाथ में रखिये ,द्वतीय आर यह बताता है की जीवन को शोध का विषय बनाकर रखिये हिन्दू दर्शन यही कहता है कि आप जिज्ञासु भाव जगा कर स्वयं को सम्पूर्ण प्रकृति के लिए अधिक से अधिक सार्थक बनाये रखिये ,यह कार्य शोध से ही संभव हो सकता है ,तृतीय आर यह बताता है ,आपको सम्पूर्ण जीवन के सकारात्मक -नकारात्मक पल याद रहने चाहिए ,समय व्यवस्था को सदैव याद रखना चाहिए जो त्रुटियाँ जीवन करे उनकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए |

4   S-------skill---------smile---------sacrifice

S चौथा शब्द है वह बताता है  कि  जीवनकेवल कुशलता को ही प्रोत्साहित करता है उसपर त्रुटि सुधारने और बार बार गलतियां करने का समय है ही नहीं अतैव वह पूर्ण कुशलता की कामना करता है जीवनको अपने प्रयत्नों से पूर्ण कुशल बनाने का प्रयत्न करें बस उसके लिए अपने निश्चय को आधार बनाया जा सकता है ,दूसरा एस  यह बताता है  कि जीवन हर पल नई समस्याओं ,लोगों और नए परिवेश के साथ आपकी परीक्षा लेने को तत्पर रहेगा आप हर परिस्थिति में मुस्कुराते रहिये देखिये आपके नकारात्मक कार्य सकारात्मक होने लगेंगे | क्योकि मुस्कुराहट से आप संसार को  प्रेम  से जीत सकते है ,तृतीय एस  यह बताता त्याग,जीवन में हर इंसान एक लक्ष्य के लिए जी रहा है और उसकी अधिकाँश सफलता दूसरों के  प्रतियोगी भाव के कारण है यहाँ उसमे त्याग का गुण उसे चिरस्थाई सफलता का आधार बना सकता है |

5   O --------oath-------observation --------organized

o के मूल शब्दों का आशय ओथ यानि एक प्रतिज्ञा से आरभ है यह शब्द यह बताता है  कि जीवन के हर भाव को जो प्रतिज्ञा के भाव से जीता है उसे दुनियां में कोई पराजित  नहीं कर सकता , जीवन एक ऐसी प्रतिज्ञा है जिसमे परहित का ध्यान , स्वयं से सम्पूर्ण जगत का उत्थान और जीवन के प्रत्येक भाव पर , कर्त्तव्य और दायित्व पर एक अनवरत प्रतिज्ञा है जिसका पालन  पूर्णता है द्वतीय शब्द बताता है की जीवन की प्रत्येक क्रिया को बड़े ध्यान से परखने की आवश्यकता है और यह कला आतंरिक और बाह्य दोनों रूपों में चलतेेे रहनी चाहिए ,और तृतीय शब्द यह बताता है कि जीवन के हर भाग क्रिया और मन बुद्धि को एक संगठनात्मक व्यवस्था के अंतर्गत पूर्ण रूप से संचालित किया जाना चाहिए मन ,वाणी एकाग्रता , और कार्य कारी सफलता प्रभावी संगठनात्मक स्वरुप पर संभव है |

6   N--------nationality -------new-vision --------nectar

जीवन में प्रथम ऐन यह  यह बताता है  कि  राष्ट्र मर्यादा और उनका गर्व आपके व्यक्तित्व की प्रथम सोच होनी चाहिए हिन्दू धर्म में स्पष्ट लिखा है कि
जननी जन्म भूमि स्वर्गादपि गरीयसा
राष्ट्रीयता की भावना हजारों स्वर्गों से भी उत्तम मानी जा सकती है  अतः जीवन में अपनी राष्ट्रीयता पर सदैव गौरवान्वित रहना सीखिये द्वतीयतः सैदेव नया दृष्टि कोण बनाये रखिये क्योकि यदि समय  के साथ दृष्टिकोणों में परिवर्तन नहीं हुआ तो आपका पतन निश्चित है ,समय के साथ सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएँ तृतीय ऐन यह बताता है कि जीवन एक अद्भुत विषय है इसकी सम्पूर्णता इतनी अभूतपूर्व है जो जीवन को किसी भी स्तर पर लेजाने की शक्ति रखती है अतः जीवन की बहुमूल्यता का भाव रख कर उसे उच्चतम शिखर पर ले जाए |

7   A-------active  --------accuracy --------acceptance

व्यक्तित्व के सातवें आधार के रूप में जो शब्द है वह ए  यह बताता है कि जीवन के सभी  भाव यह प्रप्रदर्शित करते है की जीवन स्वयं संचालित होना चाहिए कर्मा का सिद्धांत यही बतलाता है की जीवन की क्रियाशीलता ही उसका स्पंदन ही उसकी जीवंतता है है उसे क्रियात्मक स्वरुप में सकारात्मकता का भाव देते रहिये द्वतीय ए यह इंगित करता है कि जीवन में निश्चितता होनी चाहिए आप का इसप्रकार का नियंत्रण बना रहे कि जीवन में समरूपता बनी रहे किसी भी कार्य या भावका बाहुल्य अथवा कमी नहीं होनी चाहिए तृतीय ए यह बताता है की जीवन में हर परिस्थिति की स्वीकार्यता होनी ही चाहिए दुःख सुख लाभ हानि जय पराजय आपको पथ से डिगा नहीं पाये आप सब को सम भावसे स्वीकार करें |

8   L--------leadership---------listening ----------love

व्यक्तित्व का आठवां प्रमुख शब्द है एल यह बताता है कि जीवन में नेतृत्व का  गुण बना ही रहना चाहिए एक और नेतृत्व आपकी आंतरिक शक्तियों का नेतृत्व करता है दूसरी और आपके परिवेश समाज राष्ट्र को भी दिशा देने की शक्ति रखता है दूसरे एल का  आधार है प्रभावी श्रवण का गुण अर्थात दूसरों के विचारों को आत्मसात करके स्वयं को दिशा के आधारों पर स्थिर रखना तृतीय आधार सबसे महत्व पूर्ण भाव बताता है वह यह सिद्ध करता है कि जबतक आप में मानव मात्र के प्रति प्रेम नहीं होगा आप सफल और श्रेष्ठ व्यक्तित्व के स्वामी हो ही नहीं सकते |

9   I --------intuition ----------improvement --------imagination

व्यक्तित्व का  नौवां महत्वपूर्ण भाग या शब्द है आई प्रथम आई यह बताता है कि आपस्वयम् की आवाज सुन सकते है कि नहीं आपके व्यक्तित्व का सबसे शक्तिशाली गुण यही होना चाहिए कि आप का आंतरिक चिंतन इतना सशक्त हो की वह आपको आधी सफलता द्रण निशचय के साथ ही प्राप्त हो सके द्वतीयतः आपमें स्वयं को सुधारने के गुण भी होने चाहिए आप अपनी त्रुटियों को समय रहते सुधार कर शक्तियों में बदल सकें तृतीयतः आपकी चिंतन शक्ति इतनी प्रभावी हो  कि आप जो भी सकारात्मक सोच बनाये वह आपको मूर्त रूप में मिल सके |  आप जीवन को इतनी शक्ति के साथ सोचिये कि आपका जीवन मार्ग सामने बिलकुल स्पष्ट हो जाए  सभी सफलता प्राप्त  है |

10   T----------target----------thought ----------transfer

व्यक्तित्व का दसवां शब्द  यह बताता है कि जीवन के प्रत्येक भाग में से आपक्या प्राप्त करना चाहते है उसका लक्ष्य पहले से निर्धारित रखें और समय समय पर उसका मूल्यांकन करते रहें  द्वतीयतः आपमें निरंतर विचार श्रंखला पैदा होती और समयानुसार उसका सकारात्मक प्रयोग करती दिखाई देनी चाहिए साथ  ही आप सकारात्मकता के गुणों को दूसरी पीढ़ियों को हस्तांतरित अवश्य करें |

11    Y----------young ----------you -----------yoga

व्यक्तित्व का अंतिम शब्द यह बताता है  कि आपकी सोच एकदम युवा ही होनी चाहिए जिसप्रकार युवा सोच में शक्ति , बल , तीव्रता होती है वैसे ही व्यक्तित्व में चिर युवा सोच रहनी चाहिए ,द्वतीयतः व्यक्तित्व में केवल तुम का भाव आपको सम्पूर्ण सफलता बड़ी आसानी से दे सकता है यहाँ हमेशा मैं से अधिक बल तुम पर  देना आवश्यक है तृतीयः आपसंयोग से योग का महत्व समझे दुनिया  की हर सफलता के मूल में योग है वह भी निश्चित योग चाहे वह मन  शरीर का हो या सम्पूर्ण शक्तियों का हो योग व्यक्तित्व विकास का प्राथमिक सफलता का आधार है |और वाही मानसिक संतुलन का विषय भी है |

शेष  फिर






Sunday, January 18, 2015

सेल्फ़ी से सेल्फिश तक ( By Selfi to Selfish),



बड़ा भारी चलन है स्वयं को बड़ा , सुन्दर और श्रेष्ठ दिखने और दिखाने का ,समाज में परिवार में और सम्पूर्ण व्यक्तित्व में हम स्वयं को ही ढूढते नजर आते है , कहीं भी मन यह मानाने को तैयार ही नहीं होता कि हम अपनी श्रेष्ठता  में कोई समायोजन कर दूसरों को भी श्रेष्ठ  समझ पाये , सेल्फ़ी अपनी ही तस्वीर को हजारों बनावटी अंदाज दे दे कर  अनगिनत तस्वीरें खींच डालना परन्तु मन  फिर भी  नहीं भरना, फिर उनमे से अनगिनत को मिटा या हटा देना और अपनी ही तस्वीर की तुलना हमें जो सबसे आदर्श लगता है उससे करते रहना ,कितना जबरदस्त चलन या कितना बड़ा दिखावा बन कर रह गया है हम शायद अपने ही साथ मजाक कर रहे है  और यह बताने का प्रयत्न कररहे है कि  हम पूर्णतः भावनाशून्य चेतना  शून्य  और आदर्शों से शून्य हो चुके है  |




श्मशान में भारी भीड़ थी लोगो के चेहरे लटके थे चार किशोर युवक स्टंट करते हुए मारे गए थे लोग उनकी क्रिया कर्म की प्रक्रिया चालू थी , और वही दो तीन युवक मृतक के शवों के साथ थोड़ी दूर खड़ेभारी उत्साह में अपनी तस्वीरें ऐसे खींच रहे थे जिसमे क्रिया कर्म का भी हिस्सा आ रहा था|  ,एक युवक ने पूरा वीडीओ  बना डाला जिसमे उसके चित्र के साथ एक भालू एक युवक को नोंच नोंच कर खा रहा था ,एक ने ऐसी तस्वीरें डाली जिसम तीन चार गुण्डे एक युवती को परेशान कररहे थे  ,और एक तस्वीर में एक युवक को खंजर से क़त्ल करता हुआ व्यक्ति अपनी वीडीओ खुद खींच कर सार्वजानिक वेब साईड  पर डाल  रहा था
कितना भावना शून्य है यह मन मष्तिष्क जो जरा सी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए अपने आपको  स्तर पर लेजाने से भी नहीं हिचकता ,भावना शून्यता की  पराकाष्ठा तब होती  जब अरब के कई देशों में गैर कानूनी ऊंट रेस में नन्हें बच्चे ऊंटों से बांध दिए जाते है और जितना बच्चे चिल्लाते है ऊंट डर कर उतना ही तेज भागते है , हम किस समाज की कल्पना भविष्य को देना चाहते है जहाँ केवल अपनी सेल्फ़ी का चेहरा हो या कोई आदर्श भी होने चाहिए | 

मित्रो समाज और मनुष्य के निर्माण में सबसे ज्यादा सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह रहा है कि वह हम दूसरों के लिए कल्याण  भाव रखते है वहां धर्म की परिभाषाओं  में यह स्पष्ट कर दिया जाता कि  दूसरों के हित  में कार्य करने से ही सब से बड़ा धर्म प्राप्त हो सकता है ,और  यहीं से  वह परिकल्पना आरम्भ होती है जो  स्वयं से समाज  के विकास की बात करती  है , आप ही बताइये कि मेरे सुख , दुःख , सुंदरता , श्रेष्ठता को सिद्ध करने वाला  तो समाज ही था न तो  उसकी अवहेलना करके मैं  स्वयं को सिद्ध  कैसे  कर  सकता हूँ | संसार के  उदभव   के समय  तीन शक्तियां क्रिया शील थी
उदभव जन्म की प्रक्रिया या जीवन का आरम्भ 
जन्म लेने वाले का पालन और संरक्षण

जन्म लेने वाले का अंत या उसकी मृत्यु


मित्रों सबसे महत्व पूर्ण  प्रक्रिया है   पालन और प्रतिपालन यही  कल्याण का वास्तविक अर्थ भी है जो जीवको यह सिखाने का प्रयत्न करती है  कि जब तक सब के लिए कल्याण का भाव नहीं होगा तब तक सारे विकास और मानवीय मूल्यों के प्रयास व्यर्थ ही सिद्ध होंगे आपका प्रथम कार्य यही है कि आप स्वयं श्रेष्ठ सिद्ध हों और आप जिस समाज परिवार , परिवेश में रह रहे है उसे भी श्रेष्ठ सिद्ध कर सकें |

                                                          ईश्वरो सर्व भूतानाम  
                                                          सर्वे भवन्तुः  सुखनाम
  ईश्वर और परम संतोष मिलने का स्थान सर्वजगत के प्रत्येक जीव मात्र में निहित है और सबके कल्याण , सुख और संतोष में  ही मेरी परम शांति छुपी है , मैं जीवन के हर सुख के साधन का ढेर तो होसकता हूँ मगर उन सब साधनों संसाधनों को बड़ा मानने वाला भी तो होना चाहिए था ,नाव में बैठे हुए किसी बहुत बड़े सम्राट  की सारी दौलत ,संसाधन और ऐश्वर्य उसके प्राण तब तक नहीं बचा सकते  जब तकसंपत्ति के साथ उस सम्राट में तैरने का या विनम्र स्वाभाव में नाविक से प्राण बचाने की प्रार्थना करने का गुण  न हों |  


मित्रो सेल्फ़ी  खींचना आधुनिक तकनीक  और युग की बहुत सामान्य प्रक्रिया है बस उसे आदर्श बनाने के लिए सेल्फिश न होने दें , सेल्फ़ी सेल्फ़ी को सेल्फिश होने से रोकने के लिए आपको स्वतः  अपने मूल स्वभाव का ज्ञान  करना होगा जीवन में सबसे मुश्किल कार्य है दूसरे के गुणों का गुणगान करना , और आज अधिकाँश समाज केवल इसमें लगा है कि गुण हो चाहे नहीं लेकिन  उनका ही गुणगान करें ,आप यदि श्रेष्ठता , सुंदरता , और सरलता विनम्रता के ऊंचे पायदान पर खड़ा  चाहते है तो दूसरों की प्रसंशा करना अवश्य सीखें | 


जीवन के सिद्धांतों में निम्न मार्गों पर विचार करें 
  • जीवन में अपने साथ दूसरोंको  विकास का मौका दें क्योकि केवल आपके सफल हो जानेसे उस सफलता का महत्व पूर्ण नहीं होगा उसकी सफलता तब है जब आप दूसरों को भी सफल बना सकें | 
  • दूसरों की प्रसंशा करना सीखें जब हम अपने व्यक्तित्व के विकास की बात करते है तो यह भूल जाते है कि सेल्फ़ी से  सेल्फिश तक ( By Selfi to Selfis),विकास को समझने के लिए भी विकसित समाज की आवश्यकता होती है | 
  • अपनी सेल्फ़ी मतलब आपका व्यक्तित्व समाज , राष्ट्र और भविष्य के लिए कैसे सकारात्मक बनने जारहा है यह चित्र समाज को अवश्य दिखाइए | 
  • आप ध्यान रखें आप सेल्फ़ी (स्वयं का विकास )की नीति अवश्य अपनाये परन्तु उसे सेल्फिश (स्वार्थ ) होने से रोकते रहिये क्योकि दोनों में बहुत बारीक रेखा का अंतर है | 
  • मनुष्य में मानवोचित गुण  होने ही चाहिए वह इतना  शील अवश्य हो जो दूसरों के दर्द की अनुभूति अपनी अंतरात्मा में   कर सके| 
  • अनावश्यक और बनावटी प्रसंशा से अपने व्यक्तित्व को बचाये रखने का प्रयत्न करें क्योकि , प्रसंशा इतना मीठा जहर होता है जो सहज ही आपके अस्तित्व को निगल सकता है |
  • जीवन ने आपको जो भी सकारात्मक दिया है उसे आप समाज में  अवश्य बाँटें क्योकि  बांटने से दुःख सुख और प्रकृति के हर उत्पादन में विकास होता ही है | 
  • जीवन   में  किसी भी जीव के पालन का भाव रख कर उसे संरक्षित  प्रयत्न अवश्य करें इससे आपमें प्राकृतिक गुण स्वतः  बढ़ने लगेंगें और आत्त्मा  गौरवान्वित अनुभव करेगी | 
  • सबको सम्मान और आदर काभाव  क्योकि   जैसा  व्यवहार आप दूसरों के साथ करेंगे आपको भी कालान्तर में  वैसा वैसा ही व्यवहार प्राप्त होगा |
  • सेल्फ़ी को  सकारत्मक कर्तव्यों  से  समाज के कल्याण के  सूत्रों  में बदल डालिये ,    जब आपको यह विश्वास  होने लगे  कि  मेरे प्रयास से समाज सुखी हुआ है  आपकी सच्ची सेल्फ़ी दुनिया के नक़्शे पर   अमर अवश्य हो जावेगी | | 
  • अपनी सेल्फ़ी के बड़े परदे आप समाज राष्ट्र राष्ट्र और सम्पूर्ण मानवीयता को ऐसे प्रदर्शित कर डालिये जहां हर कोई आपके आधार से खुश रहना , विकास करना और स्वयं पर  गर्व  सीखें |






Thursday, January 15, 2015

क्यों परेशान हूँ मैं ( Why am I upset)

बहुत सारी महत्वाकांक्षाएं थी मन में और मैंने अपना निर्माण कार्य चालू कर दिया , अपने अस्तित्व  बचाने और सबसे ऊंचा बताने की जिद में मैंने अपने ही अस्तित्व  के चारों और खुद बड़ी बड़ी दीवारें खड़ी कर ली , और अंदर ही अंदर मजबूत सीमेंट से दीवारें बनता रहा , और थोड़ा समय बीतते ही अपनी  मजबूत दीवारों में खुद फंसने लगा तो  बहुत जोरो से चिल्लाया ,पर अब  कौन जो मेरी सुनता कौन ये बड़ी और मजबूत दीवारें मैंने ही तो बनायीं  थी , और मै  खुद आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए चिल्ला चिल्ला कर मदद मांग रहा था मगर खुद अपने ही शोर में  आवाज घुट कर रह गई थी , चारों और सन्नाटा और डूबता हुआ मन था जो अपने लिए मार्ग ढूढना चाहता था | हम और आप हर पल जीवन में ऐसी ही समस्याओं  निर्माण करते  रहते है और बार बार अपने ही जाल में स्वयं को फंसा पाते हुए जीवन से परेशान होने लगते है यह एक आदमी का विषय नहीं वरन आम आदमी की  कहानी का सार  है यह ।


मित्रों हमारा एक ही लक्ष्य होता है कि  अधिक से अधिक सुख पाते रहें जीवन में कोई दुःख हो ही नहीं , साधनों की बाहुल्यता और हर ऐशो आराम का साधन हमे मिलता रहे और जीवन हमारे  सामने कोई समस्या पैदा ही नही करें , हम अकर्मण्य से केवल भोग वादी व्यवस्था से जुड़े जीवन का आशय यही  रहें  कि जीवन में हमारा लक्ष्य केवल भोग और विलासिताओं के साथ ही आरम्भ हो और उसके साथ  ही उसका अंत भी हो जाए ,परन्तु जीवन कोई शेख चिल्ली का स्वप्न तो है नहीं जो आपको सोचने के साथ अकर्मण्य भाव से वो सब देता जाएगा जो आप मांगते जाए आवश्यकता है की आप स्वयं को और अपने आपके आतंरिक भाव को समझ करयह  निश्चित करें कि  वस्तुतः आप चाहते क्या है और कहाँ  गलत साबित हो रहे है , उसकी पुनरावृति न करें । 

एक  और महत्वपूर्ण प्रश्न  यह है कि हम अपने जीवन की आवश्यकताओं शारीरिक ,मानसिक , और पारिवेशिक स्थितियों के दास बन गए है जैसे ही हमारे शारीरिक , मानसिक आवेश हमें प्रभावित करते है हम अपने सारे लक्ष्य और सिद्धांत भूलकर   एक सामान्य भीड़ या व्यसनी की तरह उस में लिप्त हो जाते है सारी  कसमें सारें विश्वास  और सारे मूल्य अपने आप ध्वस्त हो जाते है और हम बेहद सामान्य आदमी की तरह  विश्वास कर बैठते है  कि हम केवल भोगवादी संस्कृति के कोई सामान्य से जीव है जिसके लिए और किसी भी मूल्य का कोई मायने ही नहीं है । 



मित्रों जब हम एकाग्र चित्त होकर अपने उद्देश्यों को जीवन के मूल मन्त्रों की तरह पढ़ने और अध्ययन करने लगते है तो जीवन में मन और मष्तिष्क  की अनियंत्रित मांगों पर  स्वतः रोक लग जाती है हम अपने विश्वास  को इतना प्रबल बना देते है कि छोटी मोटी आावश्यक ताएं अपना आधार ही नहीं रख पाती  है ,और जीवन अपने आदर्शों के साथ एक ऐसे सफर पर निकलजाता है जहाँ केवल अविराम शान्ति और केवल सफलता होती है वह भी ऐसी सफलता जिसमे केवल हम होते है और अपरमित  शांति  होती है जिसके बाद कोई प्रश्न रह ही नहीं जाता यही जीवन का वह उच्चतम बिंदु है जिसपर भविष्य के वे सारे प्रश्न स्वतः सुलझ जाते है और यही मानवीयता के सर्वोत्कृष्ट स्तर का बिंदु भी है | 

हम जीवन से चाहते तो यही है कि ,  और सत्य अहिंसा और त्याग के बिंदु और जीवन के हर उच्चतम शिखर पर हम ही हों परन्तु हमारे आदर्श और अनुशासन इतना ढुल मुल  है कि हम अपने आप से ही हारे हुए दिखाई  देते है परिणाम हमे हर पल किसी की आवश्यकता होती है और  हम हर सम्बन्ध का प्रयोग केवल पायदान की तरह ही करने के आदी  हो जाते है फिर तो हमे जीवन के हर कदम पर परेशानियां मिलनी ही है 

 
हम तो हर कदम पर अपने आपसे अपने संबंधों से अपने बिछाए जालों  से और अपने ही झूठ फरेब और अपने ही दोहरे व्यक्तित्व से परेशान है , हमे हर काम के लिए कोई सहायता चाहिए मगर हर आदमी से शिकायत है हमें बस यही परेशानी है । जो  भी काम दूसरों पर आधारित हुआ उससे हमें दुःख ही मिलाना था ,हम यह आधार भूत बात भी भूल गए ,अब यदि हमे अपना पुनरावलोकन करना है तो अपने आप से झूठ फरेब और शारीरिक मानसिक नियंत्रण के मूल्य हमे खुद स्थापित करके कार्य में लग जाना होगा नहीं तो जानवरों की तरह ही हम भी आहार निद्रा मैथुन और भय के चक्र में चलते हुए अपना अस्तित्व खो बैठेंगें | 


निम्न को परखें 
  • जीवन में सत्य और अपने प्रति अडिग भावना का निर्माण जीत की पहली शर्त है यदि हम अपने निर्णयों के प्रति भी ढुल मुल नीत का सहारा लेते है तो जीवन भी हमारे प्रति वैसी ही नीत अपनाने लगेगा, अतः जीवनके प्रति अडिग दृष्टी कोण अपनाना होगा | 
  • मेरे ख़ुशी का माध्यम जब तक दूसरे रहेंगे तबतक जीवन में केवल परेशानी ही रहेगी यदि जीवन को इससे मुक्त रखना है तो अपने जीवन को अपनी अंतरात्मा के साथ रहने और खुश रहने के भाव का निर्माण करना होगा | 
  • जीवन में भविष्य के प्रति दृष्टिकोण को धनात्मक रखने के साथ अपनी कार्य शैली पर भी विचार करना आवश्यक है उसकी त्रुटियोंकी पुनरावृत्ति न होने दें | 
  •  दुर्भाग्य शाली वह नहीं है जिसका समय ने साथ नहीं दिया है बल्कि असल में दुर्भाग्य शाली वह है जो सब कुछ जानते हुए भी अपनी गलतियों को दोहराता रहता है | 
  • अपनी त्रुटियों को हटाते समय आप पूर्णतः उनका त्याग करें यह मत बताये कि अब आपने अपनी गलती कम कर दी है या तो आप त्रुटि  को समूल नष्ट करे अथवा आप दोषी है यही मानें | 
  • अपनी शारीरिकता और मानसिक उद्वेगों को नियंत्रित रखिये अन्यथा आपभी अपनी आत्म हत्या की और अग्रसर है और आपका भविष्य भी प्रश्न  वाचक है | 
  • जीवन की नकारात्मकता पर नियंत्रण के लिए आपको उन लोगों से दूर अपना अस्तित्व स्थापित करना होगा जो आपके जीवन में नकारात्मक भूमिका निभाते रहे है और अडिग होकर इसका पालन करें | 
  • आपका मन जानता है कि आप कहाँ  कहाँ गलत हो और आप कहाँ कहाँ अपने आपको धोखा दे रहे है , ध्यान रहे जीवन के प्रति परिष्कृत दृष्टी रखने वाले सर्वोच्च शिखर पर पहुँच पाते  है | 
  • दूसरों के चिंतन में स्वयं को उलझाने वाले स्वयं अपनी शक्ति खो बैठते है क्योकि उनके चिंतन का विषय दूसरे रहते है इस लिए उनका विकास प्रभावित होने लगता है | 
  • ईश्वर और अपने प्रति उदार भावना का प्रयोग करें , तथा अपने आपको अपने बड़े उद्देश्य की याद दिलाते रहिये साथ ही उसकी कर्त्तव्य बोध की दिशा का भी ध्यान रखते रखिये |








 

Friday, January 9, 2015

आत्म- बोध (self realization)

आज चारों ओर  चहल पहल थी एक बड़े मंच पर खूब सजावट थी रंग बिरंगे कपड़ों में लोग अपने अपने शिष्यों के समूह के साथ आते जा रहे थे अत्यंत महंगे  सूटों , गाड़ियों और वैभव के अनंत साधनों  के साथ   विद्वान आते जा रहे थे और सब  स्वयं को ऊँचा बताने की चेष्टा में लगे थे , कुछ अपनी लम्बी लम्बी गाड़ियों के सहारे स अपने अनुयाइयों को दिशा निर्देशित कररहे थे , कुछ अपने वस्त्रों के चटकीले रंगों के साथ अपने समूह का आकर्षण केंद्र बन गए थे, वहीँ दूर इन सब मानसिकताओं से दूर एक कोने में एक युवक अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठा था ,पुराने किन्तु धवल वस्त्र और एक गहन चिंतन  में  यदा  कदा  हंसी की कोई रेखा होठों पर आजाती थी अपने गुरु , विचारो और लक्ष्य से आबद्ध उसका समूचा अस्तित्व बहुत शांत और तेजस्वी था और अचानक उसका नाम पुकारा  गया और उसने अपने विचारों से वो अजस्र धारा प्रवाहित की जिसने  भारतीय इतिहास को सराबोर कर दिया ,उस युवा  की धर्म संसद  के विचारों के सामने नत मस्तक हो गया सम्पूर्ण विश्व ,यही युवा था जिसे कभी विवेकानंद , नरेंद्र आदि नामों से जाना गया | आप जानते है  उसकी मूल शक्ति थी आत्म- बोध

भारतीय दर्शन में यह स्पष्ट है  कि मनुष्य  प्रकृति का एक ऐसा सशक्त भाग है जिसमे  अपरमित  शक्ति है और वह ब्रह्माण्ड का सबसे गतिशील और परिवर्तन शील तत्त्व भी है आत्मा से अमरत्व प्राप्त उसका स्वरुप कर्म के सिद्धांत पर आधारित है धर्म  और भारतीय संस्कृति यह जानती है कि उस परम शक्ति जिसे ब्रह्म कहा गया है उसका प्रत्येक जीवमे वास है ,मनुष्य  का जीवन मरण का चक्र निरंतर चलता रहता है ,और बार बार उसका जन्मऔर  मृत्यु भी होती रहती है इस प्रकार उसका क्रम तब तक चलता रहता है जबतक वह मोक्ष को प्राप्त नहीं हो जाता ,अनेक धर्माचार्य मानते है कि मनुष्य अपने कर्मों के चक्र को निम्न  अवस्थाओं में जीता है
  • वर्तमान  कर्म
  • क्रियमाण कर्म
  • संचित कर्म 
  • प्रारब्ध कर्म 
इन सब कर्मों की आपूर्ति और भोग्यो को भोगते हुए उसे अपने मोक्ष बिंदु की तरफ जाना होता है और यही सम्पूर्ण दर्शन  की मीमांसा करता है भारतीय धर्म और  यही है भारतीय संस्कृति का मूल |

आज जब विकास और उन्नति के लिए सम्पूर्ण विश्व क्रिया शील है तब हर इंसान अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करने की होड़ में लगा दिखाई देता है उसे ज्ञान , साधनों और परिवार ,समाज तथा सभ्यता के नाम पर आदमी आदमी में प्रतियोगिता खड़ी हो गयी है  , हर व्यक्ति स्वयं को ऊँचा  बताने की चेष्टा में दूसरों को छोटा साबित करने में लगा है ,
उसके बड़े होने के लिए सामने वाले को छोटा सिद्ध करना आवश्यक सा दिखाई देने लगा है , उसकी अनंत कामनाओं के जाल इतने सशक्त होते जा रहे है कि  वह उनमे और अधिक फँसता चला जा रहा है , वह शांति के स्थान पर यह मान बैठा है   कामनाओं की आपूर्तियों ही सर्वोत्कृष्ट है |


 मनुष्य  धन ,बल ,ऐश्वर्य ,और भौतिक श्रेष्ठता के आयामों में पूर्ण होकर ही  श्रेष्ठ सिद्ध हो सकता है , केवल यही भ्रम पाले  रखता है , इसी दौड़ में  शामिल होकर उसका अस्तित्व ही एक ऐसा खिलौने बन जाता है जिसे चाबी भरने के बाद भागना होता है, चाहे वो विकास हो या पतन ये मालूम ही कहाँ होता है उसे ,क्योकि वह  आदर्शों से कोसो दूर खड़ा होता है केवल अपनी पीठ थपथपाने के लिए जबकि ईश्वर ने मनुष्य को ऐसा बनाया है की वह अपनी पीठ थपथपा ही नहीं सकता 


 आत्म बोध के आभाव में जब जीवन आगे बढ़ता है तो  कामनाएं और प्रबल होने लगती है भविष्य के प्रति दृष्टिकोण भय पैदा करने वाला होने लगता है जीवन की दुसम्भावनाएं अधिक परेशान करने लगती है , आत्म विश्वास में कमी```आने लगती है, हर पल यह लगने लगता है कि  जीवन में कही मेरे से अधिक साधन ,सौंदर्य , बल ऐश्वर्य दूसरे पर न होजाए , कहीं मैं कंगाल न हो जाऊं या कहीं मेरे सम्बन्धी मुझसे किसे भी अर्थ में अपने को बड़ा सिद्ध न कर दें,ये सब मानसिकताएं व्यक्ति को नकारात्मक चिंतन की ओर मोड़ देती है, वह जो है उसका अभिमान करने के स्थान पर, जो नहीं  है उसका रोना रोता रहता है ,समय का  चक्र बस इतना करता है कि  उसे उस बिंदु तक नहीं पहुँचने देता जहाँ से वास्तव में उसे संतोष का परम स्तर मिलने वाला होता है

आत्म बोध और धर्म संस्कृति वर्त्तमान में विस्मय कारी शब्द जैसे लगने लगे है , तथा कथित  सभ्य समाज और सुसंस्कृत कहे जाने वाले परिवारों को अपने लिए और अपने बच्चों के लिए आदर्शों सत्य और सुसंस्कृत मानदंडों की आवश्यकता तो  है परन्तु स्वयं उनके पास अपने यह आचरण करने के  ये सारे विषय रूढ़िवादी व्यवस्था जैसे है और विकास में ऐसा आचरण असभ्य होता है , अत्यधिक विकसित व्यवस्था में स्वयं को जानने पहिचानने के स्थान पर कैसे भी लूट खसोट कर विकसित हो जाना पर्याप्त माना जाता है, अब क्या आप अपनी आगामी पीढ़ी के वे ही कर्म करने से परेशान क्यों है, कल आपने जिन मूल्यों को उपेक्षित किया था आज आपकी पीढ़ी भी उन सब मूल्यों को उपेक्षित करके आपको आईना दिखा रही है तो शिकायत कैसी ,आवश्यकता है आज से अपने आप पर पुनर्चिन्तन करने की जिससे भविष्य के प्रति सकारात्मक चिंतन बनाया जा सके

भारतीय दर्शन और संसार के प्रत्येक दर्शन में सबसे बड़ा भेद यह है  कि वे समस्त दर्शन किसी ईश्वरीय शक्ति की उपासना पद्धति में उस सर्वोच्च सत्ता की आराधना में लगे दिखाई देते है और  उनका  अनुयायी अपने ईश्वर को सर्वोच्च बताना चाहता है और वह सम्प्रदाय को आरम्भ करने वाले माने जाते है जबकि भारतीय धर्म में यह स्पष्ट है  कि एक काल पुरुष जिसमे सम्पूर्ण और अनंत ब्रह्माण्ड समाये हुए हैं वही पूर्ण ब्रह्म है | 

" अलग अलग धर्म के अनंत सम्प्रदाय यह मानते है कि सम्पूर्ण प्रकृति और संसार में वो समाया है जबकि भारतीय सांस्कृतिक प्रतिमान मानते है कि वह काल पुरुष ही अखंड और अन्नंत कालों और ब्रह्माण्डों  को धारित किये हुए है और उसके छोटे छोटे अवयव प्रकृति के जड़ चेतन स्वरुप के छोटे छोटे शक्ति केंद्र है ,जब तक वह शक्ति आवरणों और सुरक्षा के घेरे में होती है तबतक उसकी शक्ति का ज्ञान ही कहा हो पाता है जब वह पूर्ण विधि और आवरण रहित होकर अपनी सर्वोच्च सत्ता से जुड़ जाती है तब वह परम शक्ति का केंद्र हो जाती है जिसका आकलन करना तक असंभव है "

जीवन के दृष्टी कोण में निम्न को याद रखिये 

  • जीवन के सच्चे अर्थों को जानने के लिए उसके आदि अंत और उसमे अपना योगदान उसपर विचार करके समय बद्ध कार्यक्रम का चित्र बनाइये और उसमे रंग भरिये | 
  • जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टी बनाये रखिये और ये अवश्य ध्यान रखिये कि आपके द्वारो जो दूसरों का आकलन किया जारहा है वैसा ही दूसरे आपके प्रति विचार कररहे होंगे | 
  • जीवन के प्रति ऐसा दृष्टी कोण बनाये रखें  कि आप एक न्यासी की भांति इस शरीर और मन के स्वामी है और आपको अपने हर कार्य और व्यवहार का हिसाब देना ही होगा | 
  • आत्मा की अमरता और शरीर की नश्वरता के बोध और उनके लिए एकत्रित किये जाने वाले गुण धर्मों पर निरंतर विचार किया जाता रहना चाहिए | 
  • स्वयं की सकारात्मक धारणा को सदैव बल देते रहना चाहिए क्योकि आपके द्वारा इन्ही प्रयासों से भौतिक  और अभौतिक उपलब्धियां प्राप्त हो पाएंगी | 
  • भविष्य और दूसरों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण  रखना चाहिए क्योकि यदि आने नकारात्मक दृष्टी कोण अपनाया तो वाही आपका अस्तित्व हो सकता है | 
  • जीवन में मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है और उसमें अपरमित शक्ति भी है उसे अपनी शक्तियों के विकास के  चिंतन करना होगा जिससे उसका सर्वांगीण विकास हो सके | 
  • आपके पास जो है उसका गर्व करें परन्तु आपके पास जो है वह दूसरो को छोटा और हीं बताने के लिए ना हों अन्यथा आपकी सारी शक्तियां आपको  स्वयं नष्ट कर देंगी | 
  •  स्वयं एक प्रतियोगिता ही तो है यदि  आदर्शों और नैतिकता में आप शून्य रहे तो आप स्वयं  सकते है क्योकि आपने भौतिक साधनों की साधना की और दूसरों ने सत्य और आदर्शों की | 
  • स्वयं का आंकलन करते रहिये कहीं भी जीवन के धनात्मक मूल्यों का ह्रास करने वाले कार्यों को प्रश्रय न दें यदि कहीं आपको उन मूल्यों की नकारात्मकता दिखे तो तुरंत अपना रास्ता बदलिये |

Friday, January 2, 2015

भारतीय दर्शन - संतोष का स्तर ( Indian philosophy - the level of satisfaction)

भारतीय दर्शन सम्पूर्ण विश्व में अपनी जो पहिचान रखता है उसमे  मूल भाव यही रहता है कि मनुष्य का जन्म केवल खाने ,पहनने ,बच्चे पैदा करने और शक्ति प्रदर्शन  या भयाक्रांत होकर जीने के  प्रयत्न करने में नहीं है , उसका सम्पूर्ण जीवन निश्चित उद्देश्य के लिए ही निर्धारित है और वही   उसको पूर्णता देसकता है |


भगवान परुशराम ने अपने एक शिष्य को एक दुर्गम पर्वत से एक अमर फल लाने का आदेश दिया और बताया पुत्र इस समय तुम्हारे साथ शिक्षा लेने भगवान कृष्ण और उनके सभी अंश आये हुए है जो अति शक्ति शाली और जगत के आधार भी है मेरा मान बढ़ने के लिए शिष्य बनकर शिक्षा प्राप्त कररहे है ,चाहता हूँ कि मै तुमसबको अमर कर दूँ ,  शिष्य ने लालच भरी नजर से गुरु को देखा और अमर फल लाने चल दिया वहां से  फल लाकर उसके मन में यह लालच खड़ा हो गया कि अब मुझे गुरु की आवश्यकता ही क्या है, मै  और मेरी प्रेमिका इस फल का उपयोग करके अमर हो जाएंगे और फिर  हमे डर भी तो नहीं रहेगा , हम तो अमर  रहेंगे न ,शिष्य ने फल अपनी प्रेमिका को दिया प्रेमिका ने वह फल अपने एक दूसरे प्रेमी जिसे वह चाहती थी उस को दिया उस प्रेमी ने सोचा कि मई तो स्वयं इन तीन चार प्रेमिकाओं से कष्ट प् रहा हूँ तो यह जीवन तो कष्टों और भोग्यों का ही नाम ही समझता हूँ ,मैं इसे तो किसी साधु को दे देता हूँ , उसने वह फल भगवान परुशराम को दे दिया भगवान परुशराम ने सारा वृतांत जाना और अपने शिष्यों से पूछा क़ि  इसका क्या करें कृष्ण ने कहा महा प्रभु जीवन तो कर्म का ही नाम है और उसमे यदि परिवर्तन ,सुख दुःख ही नहीं रहा तो वह  निर्जीव और मृत्यु से भी  अधिक यातना  का विषय बन कर रह जावेगा , अतः  मुझे इस फल की कामना है ही नहीं है , इस प्रकार सारे शिष्यों ने फल  कामना से इंकार कर दिया,

सबके निर्णय के बाद भगवान परुष राम से कृष्ण ने इस लीला का कारण पूछने पर बताया  कि  हे जनार्दन मै बताना चाहता था कि संसार में विश्वास का  सर्वथा आभाव है  और जीवन की नश्वरता ही जीवन को  रस देनेवाला तत्त्व  है और हम केवल एक अमरता को यदि समझ पाये तो हम जीवन को जीत सकते है  और वह अमरता है केवल  आत्मा की है ,यह कहते हुए उन्होंने वह फल पास खड़ी  एक युवती को दे दिया जिसका नाम था समस्या ,और यह भी कहा कि ध्यान रहे जिसे अपनी नश्वरता और आत्मा की अमरता का ज्ञान हो जाएगा तो  तुम अमर होकर भीउस व्यक्ति से स्वतः  हार जाओगी |


 इसके बाद भगवान परुष राम ने कहा हे कृष्ण जीवन का सार बस यही है  अपनी साँसों के मध्य स्वयं को केंद्रित रखो हर आने वाली स्वांस  हर जाने वाली स्वांस मृत्यु है जनार्दन   वहीँ से जीवन का  आकलन करो , यहाँ न तो जीवन है न ही यहाँ मृत्यु है , न ही विषाद है और न ही  हर्ष है ,यहाँ   न  कोई सम्बन्ध है न  कोई प्रिय है और नहीं कोई अप्रिय है ,सब अपने आपमें सिमटे ,अपने अपने कर्त्तव्य बोध से बने कर्म में रत है ,यहाँ से आप स्वयं का आकलन करते हुए स्वयं सिद्ध हो सकते है, हे नारायण शरीर के अमर होने में अनंत विषाद है ,जबकि आत्मा की अवस्था चिरंतन और अनवरत अमरता लिए हुए है ,जो इसका रहस्य जानते है वे स्वयं जीवन मृत्यु की मानसिकता से परे  है , तुम एक श्रेष्ठ आत्मा हो और हर कर्म का फल तुम्हारा भविष्य है , इस लिए निस्वार्थ   निर्लिप्त भाव से जीवन को जीने का प्रयत्न करो और  आसक्ति ही तुम्हारे दुःख का कारण होगी चाहे वह सम्बन्ध हों , या साधन ,या संसार में जीवन मृत्यु ही क्यों न हों या तुम्हारा जीवन के प्रति आंकलन हो ,आत्मा की अमरता का बोध और स्वांसों के मध्य  एकाग्र करने का नाम ही महायोग जीवन  है इसके आलावा सब कुछ  मिथ्या है |


प्रश्न यह है कि  फिर मुझे प्रेम करने वाले मुझे जन्म देने वाले मुझे अच्छे लगने वाले ये  कौन   है यदि मै  इनके प्रेम मै  हूँ तो कहाँ गलत हूँ , महा योगी परुशराम  ने कहा हे वासुदेव हम सब अपनी अपनी भूमिका निभाने  और अपने कर्म और दंड की प्रक्रिया की पूर्ती के लिए यहाँ कर्म रत है , सम्पूर्ण जीवन का नाम क्रिया योग साधना ही तो है जहाँ चाहते न चाहते हमे अपने कार्य साधन में लगे रहना होता है हर इंसान अपने अपने हिसाब से अच्छे बुरे कर्मों में  अपना भविष्य बना और बिगाड़ रहा है जो स्वांसों के बीच स्थिर रहने की कला जानता है वह संबंधों , दुःख , सुख और जीवन की नश्वरता के कारणों से प्रभावित नहीं हो सकता वह तो जीवन को कर्म योग मान कर उसे सम्पूर्णतः जीतने की शक्ति  रखता है |

वस्तुतः यही जीवन का सार भी है हम जीवन की सारी सुविधाएं सारी उपलब्धियां और सम्पूर्ण श्रेष्ठता की चाहना करते रहते है हमारी इच्छा यही रहती है कि हमें अमृत्व प्राप्त हो जबकि हम यह भूल जाते है  कि  जीवन का एक मात्र लक्ष्य परम शान्ति की खोज ही तो है, हम अपनी समस्याओं के जाल में फंसे स्वयं का आकलन ही नहीं कर पाते परिणाम केवल यह समझ पाते है की हम अमुक नाम से अमुक सम्बन्ध में अमुक स्थान से सम्बंधित कोई व्यक्ति है और हमारा कुल परिवेश केवल उस परिवार या समाज से ही सम्बंधित है | जबकि हमारा अस्तित्व उस परम तत्त्व का एक अंश होता है जिससे महा शक्ति का संचालन किया जा सकता है शर्त यह कि  हम स्वयं की शक्ति और परम शक्ति के संचालन  की विधि  समझ पाएं |

हमारे दुःख का कारण केवल यह नहीं कि हम पर क्या क्या है ,बल्कि हम इससे दुखी है कि हम चाहते क्या है ,यही नहीं समझ पाते , हमारे संबंधों में वह प्रतियोगिता है जो हमें मानसिक रूप से छोटा  सिद्ध करती रहती है ,हम न तो स्वयं को समझ पाते है न ही दूसरों को, सदैव ईर्ष्या , नकारात्मक भावों में संबंधों का आंकलन करते रहते है परिणाम यह की कि हमारे दुखों का कारण हमारी उपलब्धियां नहीं वरन  हमारे भ्रम है हम जिन स्थितियों से अनभिज्ञ है उनसे अपने को डरा हुआ  पाते है और उनकी तैयारी में अपने वर्तमान के कर्मों को ख़राब कर रहे जो हमें ही भविष्य में परिणाम रूप में हमें ही प्राप्त होने वाले है |
 सारतः  यह कि हम जिन से स्वयं को अनभिज्ञ पाते है बस उन्हीं उन्हीं से सबसे अधिक भयाक्रांत होते   है ,हमारे भय का कारण यह है कि हम भविष्य मे  झांक ही  नहीं पाते, और निरंतर उसका नकारात्मक अनुमान अनुमान  रहते है हम आत्मा को नहीं जानते तो स्वयं को कमजोर मानते रहते है , हम जीवनकी नश्वरता  नहीं जानते इसलिए अत्याधिक मोह के वशीभूत रहते है हम सम्बंन्धों के आतंरिक भाव को नहीं समझ पाते इसलिए उन्हें सच्चा समझते रहते है और वस्तुतः हम जीवन में सुख -,दुःख -लाभ हानि, जय -पराजय और अपनत्व तथा दुशमनी की परिभाषा भी अपने हिसाब से ही समझते रहते है परिणाम  जीवन दुःख यातना और हार का मायने ही बना रहता है आवश्यकता स्वयं को समझने की थी |


मानवीय चिंतन का अंतिम सत्य पूर्ण संतोष की कामना में निहित है जबकि उसके  आधारों को वही  मनुष्य जीवन भर समझ ही नहीं पाता  है ,भारतीय धर्म के मूल सिद्धांतों के साथ  निम्न को प्रयोग में लाइए |
  • आत्मा शाश्वत  अमर और अनादि है उसके मूल स्वरुप को समझते हुए स्वयं की वास्तविक   पहिचान से परिचित होने का प्रयत्न कीजिए वहीँ से स्वयं का असल ज्ञान प्राप्त हो पायेगा | 
  • काम -,क्रोध- लोभ -मोह -ईर्ष्या -भय केवल इस बात का संकेत है कि  आप जीवन की वास्तविकता से अनभिज्ञ नहीं है क्योकि आप स्वयं इनके साथ नकारात्मक जीवन जी रहे है | 
  • भारतीय धर्म का आधार कर्म का सिद्धांत है  अपने ही कर्मों के कारण सुख और दुःख के फेर में पड़े रहते है जबकि सम्पूर्ण जीवन में सुख और दुःख का आधार हमारा आंकलन ही है | 
  • जीवन स्वयं एक महा क्रिया योग है जो मनुष्य के प्रत्येक कर्म का आधार भी है वही मनुष्य के कर्म और उससे बनने वाले भविष्य को निर्धारित करता है उसे ही जीने की कला का नाम जीवन है | 
  • मनुष्य का भय का स्त्रोत है अनभिज्ञता और वह जिसे नहीं जान पाता उससे उसमें नकारात्मकता जन्म लेती है जबकि स्वयं को जानने के बाद वह भय मुक्त हो सकता है | 
  • स्वयं को उस प्रकार रखिये जैसे हम मृत्यु के दरवाजे पर खड़े  है और अपने आवश्यक कार्य करने के लिए हमने काल से थोड़ा सा समय पाया है और अब हम स्वयं के कार्यों को पूरा करने में जुटे है , यहाँ आप जो भी कार्य करेंगे वे सब बहुत सोच कर किये जावेंगें ,क्योकि आप मृत्यु और जीवन के किनारे खड़े है | 
  • मनुष्य का अंतिम लक्ष्य मोक्ष की कामना है जबकि उसे जीवन में कई बार  जीवन की निर्लिप्तता से यह मोक्ष मिलता रहता है , यदि यही निर्लिप्तता दीर्घ कालिक होकर मनुष्य का स्वभाव बन जाए तो वह पूर्ण मोक्ष की स्थिति में ही स्थिर हो सकता है। 
  • सामजिक व्यवहार के बिंदु पर आप सबको सहज स्नेह करते रहे बस उसे मोह की सीमा तक न लेजाये क्योकि सहज प्रेम और मोह में बहुत बारीक अंतर होता है उसे व्यक्ति विशेष से न जोड़े | 
  • जो तथाकथित प्रेम कुछ क्रियाओं की पूर्ती के के बाद अपना स्वरुप और तीव्रता बदल लेता है जो आपूर्ति के आवेग में किसी नैतिक मूल्य का ध्यान नहीं रख पाता  हो और जो सामने वाले से लूटने - जीतने का भाव रखता हो वह तो प्रेम है ही नहीं वह वासना है और वही सबसे बड़ी नकारात्मकता भी है |
  • जीवन की नश्वरता और आत्मा की  शाश्वतता के भेद को जानने वाला जनता है कि जो प्राप्त होने वाला है वह  नश्वर है जिनके लिए प्राप्ति होनी है वे सब झूठा है और जो अमरत्व है उसके लिए हम पर कुछ नहीं है | 
  • अन्धकार में एक बर्तन में बहुत सा पानी भर कर लेजाता हुआ कोई व्यक्ति घर पहुँच कर बड़ा दुखी हुआ क्योकि जिस बर्तन में वह बहुत यत्न से पानी भर कर लाया था वह एक बड़ी छलनी थी जिसमे कुछ बचा ही नहीं था अब पश्चाताप कैसा | साधन और सम्बन्ध केवल छलनी में  पानी इकठ्ठा करने जैसे विषय थे जो अपने हिस्से में आने ही कहाँ थे | 

  • सम्पूर्ण जीवन को एक  साक्षी भाव  से आंकलित करने की आवश्यकता है आप स्वयं को ऐसे देखकर आंकलन करते रहें कि  आप कहाँ गलत है आपके कर्म कहाँ नकारात्मक हो रहे है और तत्काल उसका प्रायश्चित करके उसे ठीक करें और उसे सकरात्मक कर्म विधा से जोड़े रखें |

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...