प्रेम स्वयं समर्पण की सीमा में एक ऐसा अनुराग है जिसमे केवल अति प्रेम की परा काष्ठा पर सबकुछ लुटा देने का भाव होता है परन्तु जब इस भाव में लेन देन का भाव प्रकट होने लगता है तो स्वयं प्रेम की परिभाषाएं बदल जाती हैं |
सेंट वेलेंटाइन प्रेम की एक जाग्रत परिभाषा बन कर समाज में प्रचलित रहे विगत १० वर्षों से इस प्रेम के अग्र दूतकी आत्मा को अनेक दुःख झेलने पड़े होंगे यह भी सत्य है |प्रेम अनन्य शरीर ओर क्रियाओं से दूर आत्मा का एकभाव था जिसे पूर्ण समर्पण ओर एकाकार भाव समझा जा सकता था | वह भाव का वह बिंदु था जहाँ केवलसमर्पण की पराकाष्ठा का चित्रण था वहां अपने प्रेमी के प्रति सबकुछ लुटा कर उसे सर्वोच्च पद पर बिठा देने कीएक सोच थी प्रेम|
आज जिस प्रेम की क्रियान्वयानता हम देख रहे है वह केवल शारीरिक सुखों के अनुबंध से दिखाई देते है | प्यासअहसास ओर केवल लूट की मानसिकता से अपने समूहों में भद्दा प्रदर्शन ओर केवल शारीरिक आपूर्ति | स्वतंत्रताके इस माहौल में प्रेम के नाम पर केवल स्वार्थों ओर हवस का एक नंगा खेल खेला जा रहा है ओर उसके बाद गहन अपराध बोध शून्यता ओर पतन के द्वार सामने है |कैसा प्रेम था यह जिसने हवस स्वार्थ ओर छलावे के सारेहथियारों का प्रयोग करके उन्हें ही लूट लिया जिनसे वह प्रेम का दम्भ भरता रहा|ओर पूर्ण शांति कि जगह दे दिया जीवन भर का अपराध बोध अशांति ओर दुःख |शायद इसकी परणीती भी ऐसी ही विद्ध्वंसक होगी जिसमे इश्वर के कहर से प्रेम के नाम पर धोखा देने वाले नेस्तनाबूद हो जायेंगे |
मित्रो प्रेम निस्वार्थ , बलिदान ओर समर्पण की परा काष्ठा का भाव है वही इबादत है वही साधना का मूल भी है सेंटवेलेंटाइन का अनन्य प्रेम जिसमे मानव मात्र के प्रति अगाध श्रद्धा ओर सबको अपनी आत्मा का समर्पण भाव देनेकी ललक ओर अपने परमार्थ के सहारे इश्वर की प्राप्ति का बड़ा उद्देश्य, प्रेम ओर समर्पण की परा काष्ठा रहा था उसेआज हम हवस के रूप में प्रदर्शित कर केवल अपनी दूषित मानसिकता ओर हवस की आपूर्ति बना बैठे है बस यहीहमारी सबसे बड़ी भूल है |
मित्रों प्रेम अनमोल सौगात है इश्वर की, जिसमे केवल मिट जाने, अपने को दूसरे में मिला देने का भाव होता है वहभाव का वह उच्च शिखर है जहाँ आत्मा परमात्मा का भाव व्यक्ति स्वयं हो जाता है आराध्य की हर इच्छा केअनुरूप जीवन बनने लगता है ओर उसके लिए कैसा भी बलिदान देने में पीछे नहीं हटता प्रेमी, यही था सेंट का भावआप स्वयं अपने आपको इस
परिभाषा में रख कर आकलन अवश्य करें आपको अपने प्रेम का उत्तर मिल जायेगा |
सेंट वेलेंटाइन प्रेम की एक जाग्रत परिभाषा बन कर समाज में प्रचलित रहे विगत १० वर्षों से इस प्रेम के अग्र दूतकी आत्मा को अनेक दुःख झेलने पड़े होंगे यह भी सत्य है |प्रेम अनन्य शरीर ओर क्रियाओं से दूर आत्मा का एकभाव था जिसे पूर्ण समर्पण ओर एकाकार भाव समझा जा सकता था | वह भाव का वह बिंदु था जहाँ केवलसमर्पण की पराकाष्ठा का चित्रण था वहां अपने प्रेमी के प्रति सबकुछ लुटा कर उसे सर्वोच्च पद पर बिठा देने कीएक सोच थी प्रेम|
आज जिस प्रेम की क्रियान्वयानता हम देख रहे है वह केवल शारीरिक सुखों के अनुबंध से दिखाई देते है | प्यासअहसास ओर केवल लूट की मानसिकता से अपने समूहों में भद्दा प्रदर्शन ओर केवल शारीरिक आपूर्ति | स्वतंत्रताके इस माहौल में प्रेम के नाम पर केवल स्वार्थों ओर हवस का एक नंगा खेल खेला जा रहा है ओर उसके बाद गहन अपराध बोध शून्यता ओर पतन के द्वार सामने है |कैसा प्रेम था यह जिसने हवस स्वार्थ ओर छलावे के सारेहथियारों का प्रयोग करके उन्हें ही लूट लिया जिनसे वह प्रेम का दम्भ भरता रहा|ओर पूर्ण शांति कि जगह दे दिया जीवन भर का अपराध बोध अशांति ओर दुःख |शायद इसकी परणीती भी ऐसी ही विद्ध्वंसक होगी जिसमे इश्वर के कहर से प्रेम के नाम पर धोखा देने वाले नेस्तनाबूद हो जायेंगे |
मित्रो प्रेम निस्वार्थ , बलिदान ओर समर्पण की परा काष्ठा का भाव है वही इबादत है वही साधना का मूल भी है सेंटवेलेंटाइन का अनन्य प्रेम जिसमे मानव मात्र के प्रति अगाध श्रद्धा ओर सबको अपनी आत्मा का समर्पण भाव देनेकी ललक ओर अपने परमार्थ के सहारे इश्वर की प्राप्ति का बड़ा उद्देश्य, प्रेम ओर समर्पण की परा काष्ठा रहा था उसेआज हम हवस के रूप में प्रदर्शित कर केवल अपनी दूषित मानसिकता ओर हवस की आपूर्ति बना बैठे है बस यहीहमारी सबसे बड़ी भूल है |
मित्रों प्रेम अनमोल सौगात है इश्वर की, जिसमे केवल मिट जाने, अपने को दूसरे में मिला देने का भाव होता है वहभाव का वह उच्च शिखर है जहाँ आत्मा परमात्मा का भाव व्यक्ति स्वयं हो जाता है आराध्य की हर इच्छा केअनुरूप जीवन बनने लगता है ओर उसके लिए कैसा भी बलिदान देने में पीछे नहीं हटता प्रेमी, यही था सेंट का भावआप स्वयं अपने आपको इस
परिभाषा में रख कर आकलन अवश्य करें आपको अपने प्रेम का उत्तर मिल जायेगा |
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nice
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