इंसान हर कार्य अपने अनुसार करना चाहता है जबकि हर बात ,कार्य ऑर क्रियान्वयन का उसे जबाब देना होता है
उसके जीवन चक्र पर इन सबक्रियाओ का पर्याप्त एवं कई गुना प्रभाव पड़ता है |इनके परिणाम स्वरुप हमारी सारीजीवन शैली प्रभावित होती रहती है हम न तो अच्छे बुरे का भेद करपाते है न ही हम उसके परिणामों से स्वयं कोबचा पाते है , यही विडम्बना है आज के युवा की |
मित्रों विज्ञान के मत में क्रिया के बराबर प्रक्रिया होती है ,न्यूटन ने अपने आधार भूत सिद्धांतों में बताया कि यदिएक भरे हुए बर्तन में कोई चीज डालते है तो वह अपने वजन के बराबर पानी हटा देगी अर्थात क्रिया के बराबरप्रतिक्रिया का सिद्धांत यह बताता है कि कोई भी क्रिया अपने बराबर की प्रतिक्रया पैदा क़र देती है | न्यूटन का यहसिद्धांत भौतिक वस्तुओं के बारे में अपनी सीधी राय दे सकता है मगर मनुष्य एक गतिशील ,सतत चिंतन रत ऑरनिरंतर परिवर्तन शील वैचारिकता का पर्याय है अतैव उसकी क्रिया विधियों में परिवर्तन भी गुणात्मक ऑर हजारोंगुने होते है |
यदि मनुष्य की हर सोच ऑर ऑर उसकी क्रिया का प्रभाव हजार गुना पड़ता है तो निश्चित ही उसकी तमाम सोचएवं व्यक्तित्व इससे प्रभावित अवश्य होगा ऑर इन सबका प्रभाव क्षेत्र इतना विशाल होता है की भविष्य के सारेविकास एवं उसके व्यक्तित्व की सभी क्षमताएं इनसे प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकती |इन सब कार्य क्षमताओं को अतीत के हर कार्य से जुडा हुआ प्रतिक्रया रूप ही माना जाता है |व्यक्ति की सोच उसके क्रियान्वयन ऑरउसकी कार्य पद्धतियाँ इन क्रियाओं से बंध कर उसका स्वाभाव बन जाती है ऑर यही उसकी अंतरात्मा का आधारबनकर उसे कमजोर या शक्ति शाली बनाती है |
दोस्तों यह सिद्ध है की हमे अपनी हर क्रिया ,सोच ऑर क्रियान्वयन से पहले एक दीर्घ विचार की आवश्यकता होतीहै ,मगर समय के प्रलोभन ,शारीरिक एवं मानसिक आपूर्तियों के लालच में हम भेद नहीं कर पाते |यहाँ मैनें कुछऐसे युवाओं को भी देखा है जों अपनी मर्जी से भौतिक साधनों की दौड़ में भागते हुए यह निर्णय क़र लेते है की जोंहोगा देखा जाएगा ऑर अपनी शारीरिक आपूर्तियों के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते है |मन भटकन केमाहौल में अपने ही शुभ चिंतकों को उपेक्षित क़र देता है ,जों उन्हें अच्छे बुरे ऑर सही रास्तों पर देखना चाहते है वोउपेक्षित ऑर प्रयास रतओर बार बार इस दुःखसे पीड़ित रहते है कि कैसे भी जीवन के इस सत्य को युवा कोसमझा दिया जाए ,मगर उस युवा पर केवल आधुनिकता की दौड़ में दौड़ रहे खोखले आधार हिन् ऑर अतृप्तव्यक्तियों का हुजूम भर होता है जों सत्य को असत्य ऑर खाओ खेलो ऑर जीवन को वीभत्सता से जियो यहसमझा देता है ,फिर आगे क्या होता है एक बड़ा अपराध बोध ,वितृष्णा ,अलगाव ,लुटे जाने का दर्द ,ऑर घोरनिराशा ऑर सन्नाटा |
साथियों जब यह बिलकुल स्पष्ट है कि हर क्रिया सोच आपको अपने अनुरूप धनात्मकता ऑर ऋणात्मकता बनकर भविष्य में मिलनी है तो क्यों न आजके हर कार्य को विचार का विषय बना दे| हम हर कार्य यदि पूर्ण विचारशीलता ऑर धनात्मकता के साथ अपने उद्देश्यों की आपूर्तिके लिए करेंगे तो हमारा भविष्य भी पूर्ण सुरक्षित होसकता है
आपके हर कार्य को दीर्घ काल में आपकी अंतरात्मा को झेलना है आप दुनियां ऑर अपनों की नजर बचा सकते हैमगर आपको यदि आपकी ही नज़रों ने गिरा दिया तो आपका व्यक्तित्व भी आपको सहयोग नहीं देता |आपकोंउनकी परवाह होनी चाहिए जों आपकी परवाह में जीवन के कई वर्ष लगा कर आपको धनात्मक देखना चाहते हैआप जहाँ है वहीँ से नए युग की शुरुआत कीजिये बदलाव धनात्मकता स्वयं आपको अपना आधार बना लेगी |
विशवास ओर पूरी शक्ति से आप अपना संकल्प दोहराइए ओर पूर्ण मनोयोग से संसार जीतने का संकल्प लेडालिए इतिहास आपकों स्वयं सिद्ध कर देगा |
पिछले दशक में युवाओं के साथ बहुत बड़े बड़े सामाजिक परिवर्तन हुए ,और इस समय लगभग ५ लाख युवाओं ने आत्महत्याएं की जो समाज के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है|युवा तो किसी समाज संस्कृति और सभ्यता कि नींव होता है ,उसमे अपरमित शक्ति होती है ,वह तूफानों को मोड़ने कि शक्ति रखता है और उसे ऐसा ही होना चाहिए | ख़राब समय भी निकल ही जाएगा ,आगामी भविष्य यह संकल्प लिए खड़ा है क़ि आपके नए जीवन का नव आरंभ आज से ही हुआ है ,एक बार फिर सकरात्मकता का संकल्प लेकर आगे बढ़ों समय आपको अमर-सफल सिद्ध कर देगा ]
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