Friday, December 18, 2009

हमीं तुम क्या सभी में कुछ कमीं है -------

आदमी इश्वर की श्रेष्ठ कृति है उसे स्वयं को बार बार सिद्ध करना होता है
यह जानते हुए की उसकी तमाम शक्तियां इश्वर के सामने या प्रकृति के सामने बहुत छोटी है
समय ,उम्र ,अवस्था धन वैभव समाज परिवार और दूर तक उसकी सल्तनत भी बहुत छोटी है
उसे हर समय यह भय रहता है की वह कहीं भी हार जाए मगर प्रकृति का सत्य उसकी लौकिकअलौकिक शक्तिया अगम ,अजेय और चिरंतन है उनका प्रतिपल बदलना और अधिक शक्ति शाली
होकर इंसान को चिनौती देना आदमी के लिए सदैव चिंता का विषय रहा है|

विजयी होने का गुरु मंत्र भी इसी प्रकृति ने आपको दिया है इसका मूल सिद्धांत है कि
आप अपना जीवन निर्विकार और परमार्थ के भाव से निकाले ,आप अपने से किसी को पीड़ा पहुचाये
और आप पीड़ित मानवता का भाव बनाये रखें ,शायद ये सब आपको अजेय विजयी और सार्थक इतिहास का
भाग बनाने में सक्षम है |

Thursday, December 17, 2009

प्रश्नों के उत्तर दें, भविष्य की राह आसान होगी

जीवन के सामने जो ज्वलंत प्रश्न खड़े होते रहते है उनके सकारात्मक उत्तर खोजने की चेष्टा करें
  • जीवन सत्य का रूप था तो इतनी जटिलताएं क्यों
  • लक्ष्य यदि तय है तो भटकन कैसी ?
  • आत्मा यदि अमर है तो भय किसका
  • सुख दुःख यदि दौनों थे तो केवल सुख का चिंतन क्यों नहीं?
  • व्यक्ति की सोच से यदि नकारात्मकता पैदा हुई तो उसका चिंतन क्यों?
  • अच्छे और सुखद क्षणों का ही चिंतन क्यों नहीं?
  • जीवन गति है तो अनेकों लक्ष्य क्यों
  • अच्छे और बुरे में बुरी सोच ही क्यों?
  • आशा निराशा में निराशा ही क्यों?
  • परम शक्ति का अंश थे आप तो कमजोर कैसे?
  • सब आपके नियंत्रण में है ये भाव क्यों नहीं?
आपको अपनी सोच से इन प्रश्नों को सकारात्मक बनाना है |और फिर बहुत से ज्वलंत प्रश्न फिर

कभी-------

Monday, December 14, 2009

जीवन का सत्य और सफलता

हमारा सारा जीवन इस उधेड़ बुन में निकल जाता है की हमें क्या अच्छा लगता है हमें शरीर, स्तर ,और सामाजिकपारिवारिक आवश्यकताएं जैसे ही महसूस होती है हम उनकी प्राप्ति के प्रयत्न में लग जाते है और इस तमाम प्रयत्नशीलता में हमे जीवन का बड़ा भाग यूँ ही बिता देना होता है और जैसे ही हम एक आपूर्ति करते है वैसे ही अनेक समस्याये ,कमियां हमें मुंह चिडाने लगती है | सौंदर्य ,बल ,उत्कृष्ट होने का भाव , धन , वैभव,शारीरिक सुखऔर सारी परिस्थितियां अपनी आपूर्तियों के लिए हमारा उपयोग करती रहती है और हम जीवन में स्वयं के लिए आत्माके लिए क्या अच्छा और जरूरी था समझ ही नही पाते|


हम सब इस प्रयत्न में जुटे है कि हमें क्या चाहिए क्या करके हमें अच्छा लगेगा क्या और हर बार नया नयाकरके हम झूठी खुशियों का हुजूम खडा करते जाते है ,वही हम खोखले ,आधार हीन और आदर्शों से समझौता करनेवाले बन जाते है फिर कहाँ तक हमें जीवन के मूल्यों से आदर्शों से समझौता करना पड़ता है इसका कोई हिसाब हीनही रहता|, हम हर काम जिसे अपने सुख का एकमात्र साधन मानकर चलने का प्रयत्न करते है वही हमें अपराधबोध बना दिखाई देने लगता है ,हमारा विशवास मूल्य और प्राकृतिक खुशी सब एक बनावटी फर्ज अदायगी ओर नाटक जैसी बन जाती है जिससे केवल खोखला ,निराशा युक्त और अधूरा व्यक्तित्व हमारा वर्त्तमान भविष्य औरअतीत बन जाता है |
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आपको यह तय करना है कि आपके लिए आख़िर जरूरी क्या था ,और आपका दायित्व कर्तव्य बोध क्या यह समझपाया है कि आप अपनी आंतरिक खुशी के लिए क्या कर रहे है |
हमको यह जानना जरूरी है आख़िर हमारी आवश्यकताएं क्या है , कहीं हम स्वयं को वर्तमान की छोटी छोटी उपलब्धियों के लिए व्यर्थ तो नही गवां रहे निम्नांकित बिन्दु आपको कहीं सहयोग कर सकते है |
  • पहले अपनी प्राथमिकताये तय करें यह जाने कि क्या हमे चाहिए क्या हम प्रयत्न करें और क्या हमारे जीवनके मूल सिद्धांत है ,इनमें हम किस स्तर तक समायोजन कर सकते है |
  • शरीर परिवार और सामाजिक आपूर्तियों की पूर्ति में कही अपने मन सिद्धांतों और अपने उद्देश्य को तो दांवपर नहीं लगा रहें
  • हर व्यक्ति के मिलने के बाद मन विचारों और बाद कि सोच में अपराध बोध पनपने लगे तो ऐसा सम्बन्धव्यक्ति आपकी हर विकास गति को रोक देगा |
  • विचारों को इतना सशक्त और प्रभावी बनायें कि हर उपलब्धि आपको स्वयं मिलाती दिखे इसमे यह महत्वपूर्ण है कि थोड़े समय के सुख के साधनों कि बजाय हमें अंतरात्मा कि खुराक या संतोष के लिए सोचनाचाहिए
  • आप दूसरों से सुख की कल्पना को जोड़ कर ख़ुद एक नकारात्मक ऊर्जा पैदा कर रहें है यहाँ हर आदमीआपसे केवल खेल सकता है ,लूट सकता है या स्वयं आपके लिए छलावा बन जाएगा क्योकि आप अपनीवासनाओं के वशीभूत केवल सुख का आधार उसे मान बैठे है जबकि अंतरात्मा के सत्य से अपनी खुशीअंदरसे पैदा करने की आवश्यकता थी |और आप उसमे सशक्त भूमिका निभा सकते थे |
  • शरीर और बाह्य जरूरतों को आप उद्देश्य न बनाये अनभिज्ञ के स्वप्नों में अपना वर्त्तमान नष्ट न करें येकमियां आपकी अंतरात्मा को बहुत कमजोर साबित कर देगी |
  • हमे अपने आत्मा के भाव को जानना है महसूस करना है जब तक हम स्वयं से धोखा करते रहेंगे तब तकशान्ति और विकास की कल्पना हमें कुछ नही दे सकेगी |
कहने का आशय यह है की आप अपने जीवन को बहुमूल्य मान कर अपने लिए अपनी अंतरात्मा में लिए औरआपके लिए क्या अच्छा है इसके निर्णय हेतु आप स्वयं को प्रश्न वाचक बना कर यह तय करें कि आप अपने लिएअपनी अंतरात्मा के लिए क्या कर रहे है क्या आप उस दीर्घ कालिक सुख के लिए कितना समय अपने को दे रहे हैजब आप जीवन को इस प्रकार की सकारात्मकता देने लगेंगे तो जीवन स्वयं सफल हो जाएगा|

Saturday, December 5, 2009

उलझने सारी सुलझती जायेंगी

चाँद तारे आसमानों की तरह
हैं जरूरी आप ऐसा मानिए

सब मिलेगा आप तो कोशिश करे
वक्त को अपना करीबी जानिए

जिंदगी आसान सी हो जायेगी
जीत के जज्वात अपने मानिए

वो खुदा केवल तुम्हारे साथ है
इस यकीं को अपने दिल में ठानिये

उलझने सारी सुलझती जायेंगी
आप दम ख़म को जरा पहचानिए

राह चुनकर आप तो चलते रहें
मंजिलें ख़ुद पास आती जायेंगी

Tuesday, December 1, 2009

संकल्प की शक्ति जगाइए

हम सामान्य जीवन में केवल अपने अतीत को कोसते और अपनी कमियों का रोना रोते रोते अकर्मण्य बने रहनाचाहते है ,ऐसे में हम एक भीरु भावना से धर्म का अँधा अनुकरण करने को भी तैयार हो जाते है, जबकि हम अपनीआत्मा अपने परिवेश और अपनी ही कमियों के शिकार रहते है |परिवर्तन , नई सोच और सब कुछ पैदा करने काजोश और अभिमान हम स्वयं में उत्त्पन्न नहीं कर पाते और हमेशा नकारात्मक बने दीन हीन स्वरुप में स्वयं को रखदेते है जबकि ये सब हमारा पैदा किया ही होता है |

भारतीय धर्म दर्शन ने बताया कि

सो परत्र दुःख पावहि ,सर धुन धुन पछताय
कालहि, कर्महि , ईश्वरही ,मिथ्या दोष लगाय

अकर्मण्य पुरूष स्वयं अपने कर्म एवं संकल्प शक्ति अनभिज्ञ दीन हीन बना दूसरों के सहारों की कल्पना करतारहता है ,उसपर समय बहुतायत में होता है ,वह हर व्यक्ति का आंकलन करता रहता है, हर जीत और समाज केकिसी उत्कर्ष पर` बैठे व्यक्ति को देख कर उसका आलोचक या अपने को कोसने वाला बन बैठता है ,परिणाम उसेदुनिया भर की परेशानिया घेर लेती है और उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व प्रश्न वाचक और नकारात्मक हो जाता है |वह समय को ईश्वर को और कर्म को दोष देता रहता है जबकि ये उसी ने बोया था |

मित्रों कमोवेश हम सब की स्थिति कभी कभी इन चीजो से प्रभावित अवश्य होती है और हम अपना जीवन काउद्देश्य ,कठिन परिश्रम की ताकत और सर्वश्रेष्ठ होने का गर्व भी भुला कर उन स्थितियों और व्यक्तियों के लिएपरेशान होते है जो केवल हमारा शोषण ,दुरुपयोग और हमे नाकारात्मक बनाने में लगे रहते है ,हमे लगता है किइनके बिना हमारा जीवन अधूरा रह जाएगा ,जबकि यहाँ हम अपनी सकारात्मक सोच ,आपकी परवाह करने वालेलोगोंके प्रेम को एवं अपने अन्दर छिपी अमोघ शक्ति को भुला देते है और स्वयं कमजोर होने लगते है |

एक पक्ष यहाँ भी महत्वपूर्ण है कि हमारे नकारात्मक होने ,दुःख पाने और हारने के हर पहलू पर हमारे कुछनिकटतम लोग जरूर परेशान होते है और आपकी सकारात्मक और नकारात्मक उपलब्धिया उन्हें प्रभावितअवश्य करती है यह बात और है कि आप उनकी परवाह करें मगर इनके नकारात्मक -सकारात्मक प्रभावअवश्य होंगे |आपकी क्रिया शीलता में स्वार्थों के साथ परमार्थ कि भावना भी होनी चाहिए थी |आपको यह आंकलन करना है कि किस हद तक स्वार्थी होना है आपको और इसके परिणाम क्या होंगे|


संकल्प कि शक्ति इतनी प्रबल है कि वह कुछ भी कराने में सक्षम है ,आप संकल्प के साथ अपने सुख के साधनों व्यक्तियों और नकारात्मक और थोड़े समय के सुख देने वाली स्थितिया और व्यक्ति पैदा करसमय साधन शरीर का अपव्यय कर सकते है, मगर ध्यान रहे कि हम इसेस्वयं को धोखा देने के अलावा कुछ माने |संकल्प को नकारात्मक विचार और व्याक्तियों से दूर रखें |जिससंकल्प के साथ समयबद्ध क्रियाशीलता नहीं हो वह स्वयं आपको अपराध बोध का विषय बना देगा|

आवश्यकता है उस क्रियान्वयानता की जो हवा के प्रचंड वेग, सूर्य के तेज और अपनी क्रियाशीलता से सम्पूर्णइतिहास को बाँध दे और आपके व्यक्तित्व में वह अपरमित शक्ति है बस केवल अपने क्षणिक सुख ,औरनकारात्मकता से घिरे व्यक्तियों से अपने को अलग करके संकल्प की सोई हुई शक्ति को जगाने कि आवश्यकता है

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...