Wednesday, November 24, 2010

भ्रम है ये रिश्ते --- पूर्ण भाव चाहिए

मै आपके बिना जी नहीं सकता

जीवन की सारी खुशिया आपसे है

आप मेरे लिए भगवान् हो

मेरी ख़ुशी जान ओर सारा जहाँ हो आप

दुनियां की सारी खुशियाँ है आपसे

ओर बहुत सी बाते जों हम ओर हमारा नवयुवक अपने विचारों ओर सोच में समाहित किये हुए है शायद हमको बहुत कमजोर ओर आधारहीन साबित कररहा है ,हम अपने विचारों ओर सोच को सहारों का मोहताज़ बना बैठे है ,हमारी सारी खुशिया ओर संतोष दूसरों में समाहित होकर रह गया है हम यह नहीं समझ पाते कि हम आखिर जीवन से चाहते क्या है ,प्रशंसा ,हवस,या हर परिस्थिति में स्वार्थों इंसान का केवल उपयोग |

दोस्तों जीवन एक ऐसी अजीब शै है जिसे यदि विचारों कि पूर्णता के बगैर जिया गया तो वह हजारों ऐसे अनुत्तरित प्रश्न छोड़ देती है जिनका उत्तर आदमी को पूरी उम्र परेशां करता रहता है ,आज हम अपने विकास से अधिक इस बात से जुड़े है कि समाज ,परिवार ओर हमारे अपने हमारे हर कार्य की केवल प्रशसा करते रहें ,हम धन वैभव ओर हर दौड़ में उन्हें नगण्य ओर आधारहीन साबित करदें ,शायद हमारा अहम् सबसे बड़ा बन बैठा है|

सामान्यत ऐसे ही कुछ वाक्यांश मैंने नवयुवको कि बातचीत में कई बार सुने है मगर उन्हें अनेक बार आधारहीन ओर बहुत उथला पाया है ,हम समाज के बड़े वर्ग ओर अपने मित्रों से ऐसी ही भाषा में बात करने के आदी होगये है ,मन वाणी ओर आत्मा के संबंधों में भाषा शेष कहाँ रह जाती है यह शायद ही किसी कि समझ में आये |मित्रों जों हमारी भाषा भाव ओर हमारे चिंतन से प्रभावित हो रहा है उसे ही भाव नही दे पाए तो आप ही बताइए वह कितना किसी व्यक्ती को प्रभावित कर पाएगा,यह प्रश्नचिन्ह है |

मित्रों जीवन ने जब भी उम्मीद की दूसरों से पूर्ण होने कि तब पहले उसे छोटा होना पड़ा है ,जब वह जीवन ही पूर्ण नहीं हो पाया तो वह अपनी चापलूसी के द्वारा सृजन किसी विषय वस्तु से कितना पूर्ण हो पायेगा मेरी समझ से परे है |हम अपने मूल्यों ओर सिद्धांतों से अनजान बने केवल बाह्य आवरण ओर अपने परिष्कृत स्वार्थो के क्रियान्वयन का एक ऐसा आवरण बना चुके है जिसमे हमारी प्रशंसा करने वाले बहुत से लोग स्वयम कुंठित ओर अधूरे है वे वही मानसिकताए हमे देकर ओर अधिक पंगु बना दे हमे यही सोच का विषय होना चाहिए |

जीवन केलिए प्रशंसक नहीं वरन केवल वे लोग चाहिए जों हमे कदम कदम पर गलत साबित करके सही मार्ग का रास्ता बताते रहेंओर हम अपनी आत्मा चिंतन ओर सत्य के सहारे अपने दिलोदिमाग में एक ऐसी सल्तनत पैदा करें जिसमे किसी की झूठी प्रशंसा की जरूरत ही न पड़े,बल्कि हमे अपनी आत्मा का वह नांद सुनायी दे जों आपको चिरस्थायी शांति दे सके|


2 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

बहुत अच्‍छे विचार है। यह सत्‍य है कि हम प्रशंसा के कवच से कमजोर होते हैं। आपको दो परामर्श दे रही हूं, एक तो अपने ब्‍लाग का कलर और फोण्‍ट कलर बदले, पढने में और आँखों में कठिनाई पैदा होती है। दूसरा वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें।

drakbajpai said...

dhanyavad mai aisa hi karunga

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