अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी
आँचल में है दूध ओर आँखों में पानी
मर्दों का समाज है ये यहाँ केवल शक्ति ओर मर्दानगी के गीत गाता हुआ बहुल समाज है जों यही जानता रहा है किऔरत इस सभ्यता में केवल घर ओर परिवार को सुरक्षित ओर बच्चों कि परिवरिश करने के लिए ही बनी हैउसका तमाम व्यक्तित्व केवल सहजता में दबने पिसने ओर जुर्म सहने कि परिभाषा से अधिक कुछ नहीं हैदुनिया जाहाँ से पिटे ,तिरस्कृत ओर असफल आदमी के बदले की आग में पिसती हुई औरत जों उसकी बेवजहभड़की क्रोध ज्वाला को सहज पीना जानती है ओर आदमी को जीत का सुख देती है ,शायद वह ऐसे ओर कही नहींजीत सकता ,क्योकि औरत ही वो संस्कृति थी जिसने अग्नि ओर इश्वर को साक्षी मान कर यह प्रतिज्ञा ली थी कीवह इस आदमी को हर व्यवहार के बदले केवल जीत दूंगी ,चाहे वह सहज दबाने की प्रक्रिया हो या अनैतिकअव्यवहारिक ,या पागलपन के क्रोध की कोई स्थिति |
बेटी बनी तो पिता ने अपने आदर्शों के अनुरूप उसे चलाना चाहा माँ ने विरोध किया तो उसे भी बिना भाव के चलनेकी हिदायत दे डाली ,डरे सहमे ओर साँसों की अनुमति के साथ चलता जीवन बहुत विकसित ओर पूर्ण सफलता केमानदंडों पर खरा दिखे यह आशा की गई , धन वैभव बाहुबल ,ओर समाज में सर्व श्रेष्ठ दिखने के लिए बेटी की हरगतिविधि को पूर्ण नियंत्रित करदिया गया क्योकि समाज में सर्व श्रेष्ठ साबित करनेके लिए यह भी एक बहुत बड़ामानदंड था|पीढ़ियों से चली आ रही मर्दानगी का एक बार नए अर्थों ओर नए रेपर में प्रदर्शन होना था जबकि यहआशा की जाती रही की सब इसे उदारवादी माने |
युग बदल रहा था मान्यताएं बदल गई थी औरत नयी परिभाषाएं जान चुकी थी ,उसने भी उच्च शिक्षा के मानदंडोंको अधिक सफलता से पाया था , वह मर्द की हर मर्दानगी की कुंठाओं को समझ चुकी थी ओर ऐसे में वह मर्द के हरव्यवहार की मांग को जानते हुए भी यदि उसे जितारही थी तो ये उसका बड़कपन था न की मर्द की मर्दानगी |
दोस्तों औरत माँ बहिन ओर बेटी या चाहे वह पत्नी हो ममत्व , वात्सल्य ओर प्रेम की परिभाषा जानती है वह उसकेसाथ किया हुआ कोई भी अशोभनीय व्यवहार आदमी को दीर्घ काल तक केवल घोर अपराध बोध दे सकता है ,हमबहुधा तथाकथित सभ्य , धनाड्य ,ओर सर्व श्रेष्ठ साबित करने की होड़ में जैसा व्यवहार इस नारी के साथ कर रहे हैध्यान रखे की समयकी मान्यता के बदलते ही परिस्थिति ओर अधिक बदलकर आपसे अपना हिसाब जरूर मांगेगीआप ने कभी यह सोचा होता की एक माँ अपना परिवार घर ओर सारे अपने छोड़ कर आपके साथ इस विश्वास सेआगई थी की आप शायद उसे जीवन में अपने पन की नयी परिभाषा दोगे ,बेटी ने पिता से यही आशा की की वहजितने समय परिवार के साथ है उसे पूर्ण स्वतंत्रता से स्वछन्द वातावरण में सांस लेने का अवसर मिले पिता ओरमाता का सम व्यवहार उसे एक सहज मित्र के जैसा मिले क्योकि बाद में तो उसके जीवन को भी समायोजन करनाहै जीवन भर|
नारी की परिभाषा संस्कार ओर सोच बदल चुकी है आज आज वह अबला नही रही है उसके विचार ओर शिक्षा कानया जन्म हुआ है आज वहतिरस्कार, क्रोध ओर खिसियान का जबाब देने में सक्षम है यदि घर परिवार ओरसामाजिक शान्ति को प्रश्रय देना है, तो नारी की शक्ति का सम्मान कर हम उसे सम्मान ओर उचित स्थान देंअन्यथा देश ओर भारतीय संस्कृति का वह बिंदु जिसमे यही कहा है कि
यत्र पूजयते नारी --- रमन्ते तत्र देवता
एक प्रश्न वाचक बन कर रह जाएगा| , | , ,
पिछले दशक में युवाओं के साथ बहुत बड़े बड़े सामाजिक परिवर्तन हुए ,और इस समय लगभग ५ लाख युवाओं ने आत्महत्याएं की जो समाज के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है|युवा तो किसी समाज संस्कृति और सभ्यता कि नींव होता है ,उसमे अपरमित शक्ति होती है ,वह तूफानों को मोड़ने कि शक्ति रखता है और उसे ऐसा ही होना चाहिए | ख़राब समय भी निकल ही जाएगा ,आगामी भविष्य यह संकल्प लिए खड़ा है क़ि आपके नए जीवन का नव आरंभ आज से ही हुआ है ,एक बार फिर सकरात्मकता का संकल्प लेकर आगे बढ़ों समय आपको अमर-सफल सिद्ध कर देगा ]
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि
अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...
No comments:
Post a Comment