दोस्तों जीवन में उपलब्धियां दो ही तरीके से प्राप्त होती है एक शोर्ट कट से दूसरा लम्बे रास्तो से, नए मान दंडों कोनिर्मित करते हुए चलता हुआ कोई अकेला आदमी ,जिसे बार बार विचार क्रियान्वयन विरोधो और आक्षेपों के साथअपना मार्ग खोजना होता है , वह कैसे अपने आप को सिद्ध करे, इस को क्रियान्वित कर वह सम्पूर्ण जीवन को एकबड़ा संग्राम बना डालता है, उसके हर क्रियान्वयन में असफलता निरंतर प्रयास से सफलता दिखाई देने लगती है|
उसे हर क्रियान्वयन में अपने आपको मिटा कर केवल उद्देश्य खोजना होता है, और वह उसे प्राप्त भी कर लेता है| मानवता , परमार्थ बलिदान त्याग और स्वयं को मिटा कर भी दूसरों के लिए रास्ता देने कि ललक उसे जीवन मेंइतिहास पुरुष बना देती है वह स्वयं मानवीयता का उदहारण हो जाता है भले ही उसका जीवन कष्ट , अभाव औरदर्द का मायने बन गया हो मगर उसका उद्देश्य उसे स्वयं अमृत्व दे देता है |
सफलता के लिए बहुत से लघु मार्ग ओर निरंतर क्रियान्वयन का लम्बा रास्ता है ,हम बहुधा सरल ओर सस्तारास्ता चुन बैठते है ,यहाँ विचार भावनाए ,आदर्श , ओर परमार्थ सब व्यर्थ दिखाई देते है ,यहाँ केवल अपनीआपूर्तियाँ अपनी उपलब्धियां ओर अपना स्वयं का लेखा जोखा देखने का मार्ग होता है ,यहाँ हम स्वार्थों कि उस मृगमरीचिका में जी रहे होते है जों हमे अपनी उपलब्धियों से ज्यादा कुछ सोचने ही नहीं देती |हम किसी को भी सीडीबना कर अपना रास्ता तय करके सीडी में लात मार के गिराना भी नहीं भूलते और आदर्शों भावनाओं मानवीयता केलिए हमारे पास समय ही नहीं रहता हम केवल अपनी उपलब्धियों के सामने झूठ फरेब चालबाजी और किसे भीकाम निकालने कि अदा समझते है और इतिहास पुरुष बन बैठते है |क्या हमारा मन हमे इन उपलब्धियों के लिएकभी प्रोत्साहित कर पाएगा शायद कभी नहीं |
दोस्तों यह सत्य है कि हम केवल एक ही तरीके से अपने आप को सिध्ह कार सकते है जीवन में वह ललक खादीकरे जिसमे उद्देश्यों के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव हो किसीने सही लिखा है कि
प्रेम गली अति सांकरी जा में दो न समाय
अर्थात जीवन में संकल्प का सार यह है कि आप एक उद्देश्य एक संकल्प ओर एक भाव के साथ अपने अस्तित्वको उद्देश्य पूर्ती में लगा दे आपको सफलता अवश्य मिलेगी
वो अपनी हस्ती मिटा मिटा कर वहा पे पंहुचा जहाँ न कोई
न कोई आशा न कोई शिकवा नाकोई हमदम न कोई गम था
उसे न दुनिया का ध्यान था जब चला कहा से कहा तलक वो
बस एक अकेला चला वहा से जहा पे अपना कोई नहीं था
पिछले दशक में युवाओं के साथ बहुत बड़े बड़े सामाजिक परिवर्तन हुए ,और इस समय लगभग ५ लाख युवाओं ने आत्महत्याएं की जो समाज के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है|युवा तो किसी समाज संस्कृति और सभ्यता कि नींव होता है ,उसमे अपरमित शक्ति होती है ,वह तूफानों को मोड़ने कि शक्ति रखता है और उसे ऐसा ही होना चाहिए | ख़राब समय भी निकल ही जाएगा ,आगामी भविष्य यह संकल्प लिए खड़ा है क़ि आपके नए जीवन का नव आरंभ आज से ही हुआ है ,एक बार फिर सकरात्मकता का संकल्प लेकर आगे बढ़ों समय आपको अमर-सफल सिद्ध कर देगा ]
Thursday, February 18, 2010
Sunday, February 14, 2010
प्रेम का रूप पहचानिए-- वेलेंटाइन
प्रेम स्वयं समर्पण की सीमा में एक ऐसा अनुराग है जिसमे केवल अति प्रेम की परा काष्ठा पर सबकुछ लुटा देने का भाव होता है परन्तु जब इस भाव में लेन देन का भाव प्रकट होने लगता है तो स्वयं प्रेम की परिभाषाएं बदल जाती हैं |
सेंट वेलेंटाइन प्रेम की एक जाग्रत परिभाषा बन कर समाज में प्रचलित रहे विगत १० वर्षों से इस प्रेम के अग्र दूतकी आत्मा को अनेक दुःख झेलने पड़े होंगे यह भी सत्य है |प्रेम अनन्य शरीर ओर क्रियाओं से दूर आत्मा का एकभाव था जिसे पूर्ण समर्पण ओर एकाकार भाव समझा जा सकता था | वह भाव का वह बिंदु था जहाँ केवलसमर्पण की पराकाष्ठा का चित्रण था वहां अपने प्रेमी के प्रति सबकुछ लुटा कर उसे सर्वोच्च पद पर बिठा देने कीएक सोच थी प्रेम|
आज जिस प्रेम की क्रियान्वयानता हम देख रहे है वह केवल शारीरिक सुखों के अनुबंध से दिखाई देते है | प्यासअहसास ओर केवल लूट की मानसिकता से अपने समूहों में भद्दा प्रदर्शन ओर केवल शारीरिक आपूर्ति | स्वतंत्रताके इस माहौल में प्रेम के नाम पर केवल स्वार्थों ओर हवस का एक नंगा खेल खेला जा रहा है ओर उसके बाद गहन अपराध बोध शून्यता ओर पतन के द्वार सामने है |कैसा प्रेम था यह जिसने हवस स्वार्थ ओर छलावे के सारेहथियारों का प्रयोग करके उन्हें ही लूट लिया जिनसे वह प्रेम का दम्भ भरता रहा|ओर पूर्ण शांति कि जगह दे दिया जीवन भर का अपराध बोध अशांति ओर दुःख |शायद इसकी परणीती भी ऐसी ही विद्ध्वंसक होगी जिसमे इश्वर के कहर से प्रेम के नाम पर धोखा देने वाले नेस्तनाबूद हो जायेंगे |
मित्रो प्रेम निस्वार्थ , बलिदान ओर समर्पण की परा काष्ठा का भाव है वही इबादत है वही साधना का मूल भी है सेंटवेलेंटाइन का अनन्य प्रेम जिसमे मानव मात्र के प्रति अगाध श्रद्धा ओर सबको अपनी आत्मा का समर्पण भाव देनेकी ललक ओर अपने परमार्थ के सहारे इश्वर की प्राप्ति का बड़ा उद्देश्य, प्रेम ओर समर्पण की परा काष्ठा रहा था उसेआज हम हवस के रूप में प्रदर्शित कर केवल अपनी दूषित मानसिकता ओर हवस की आपूर्ति बना बैठे है बस यहीहमारी सबसे बड़ी भूल है |
मित्रों प्रेम अनमोल सौगात है इश्वर की, जिसमे केवल मिट जाने, अपने को दूसरे में मिला देने का भाव होता है वहभाव का वह उच्च शिखर है जहाँ आत्मा परमात्मा का भाव व्यक्ति स्वयं हो जाता है आराध्य की हर इच्छा केअनुरूप जीवन बनने लगता है ओर उसके लिए कैसा भी बलिदान देने में पीछे नहीं हटता प्रेमी, यही था सेंट का भावआप स्वयं अपने आपको इस
परिभाषा में रख कर आकलन अवश्य करें आपको अपने प्रेम का उत्तर मिल जायेगा |
सेंट वेलेंटाइन प्रेम की एक जाग्रत परिभाषा बन कर समाज में प्रचलित रहे विगत १० वर्षों से इस प्रेम के अग्र दूतकी आत्मा को अनेक दुःख झेलने पड़े होंगे यह भी सत्य है |प्रेम अनन्य शरीर ओर क्रियाओं से दूर आत्मा का एकभाव था जिसे पूर्ण समर्पण ओर एकाकार भाव समझा जा सकता था | वह भाव का वह बिंदु था जहाँ केवलसमर्पण की पराकाष्ठा का चित्रण था वहां अपने प्रेमी के प्रति सबकुछ लुटा कर उसे सर्वोच्च पद पर बिठा देने कीएक सोच थी प्रेम|
आज जिस प्रेम की क्रियान्वयानता हम देख रहे है वह केवल शारीरिक सुखों के अनुबंध से दिखाई देते है | प्यासअहसास ओर केवल लूट की मानसिकता से अपने समूहों में भद्दा प्रदर्शन ओर केवल शारीरिक आपूर्ति | स्वतंत्रताके इस माहौल में प्रेम के नाम पर केवल स्वार्थों ओर हवस का एक नंगा खेल खेला जा रहा है ओर उसके बाद गहन अपराध बोध शून्यता ओर पतन के द्वार सामने है |कैसा प्रेम था यह जिसने हवस स्वार्थ ओर छलावे के सारेहथियारों का प्रयोग करके उन्हें ही लूट लिया जिनसे वह प्रेम का दम्भ भरता रहा|ओर पूर्ण शांति कि जगह दे दिया जीवन भर का अपराध बोध अशांति ओर दुःख |शायद इसकी परणीती भी ऐसी ही विद्ध्वंसक होगी जिसमे इश्वर के कहर से प्रेम के नाम पर धोखा देने वाले नेस्तनाबूद हो जायेंगे |
मित्रो प्रेम निस्वार्थ , बलिदान ओर समर्पण की परा काष्ठा का भाव है वही इबादत है वही साधना का मूल भी है सेंटवेलेंटाइन का अनन्य प्रेम जिसमे मानव मात्र के प्रति अगाध श्रद्धा ओर सबको अपनी आत्मा का समर्पण भाव देनेकी ललक ओर अपने परमार्थ के सहारे इश्वर की प्राप्ति का बड़ा उद्देश्य, प्रेम ओर समर्पण की परा काष्ठा रहा था उसेआज हम हवस के रूप में प्रदर्शित कर केवल अपनी दूषित मानसिकता ओर हवस की आपूर्ति बना बैठे है बस यहीहमारी सबसे बड़ी भूल है |
मित्रों प्रेम अनमोल सौगात है इश्वर की, जिसमे केवल मिट जाने, अपने को दूसरे में मिला देने का भाव होता है वहभाव का वह उच्च शिखर है जहाँ आत्मा परमात्मा का भाव व्यक्ति स्वयं हो जाता है आराध्य की हर इच्छा केअनुरूप जीवन बनने लगता है ओर उसके लिए कैसा भी बलिदान देने में पीछे नहीं हटता प्रेमी, यही था सेंट का भावआप स्वयं अपने आपको इस
परिभाषा में रख कर आकलन अवश्य करें आपको अपने प्रेम का उत्तर मिल जायेगा |
Thursday, February 11, 2010
क्षमा का मायने यह नहीं कि आप गलत है |
व्यक्ति हमेशा अपने कार्यों ओर अधिकार दायित्व के निर्वहन में लगा रहता है जीवन की प्रथम पाठशाळा से ही वहयह सीखता रहता है कि कैसे वह स्वयं को अधिक प्रभाव शाली एवं कार्य क्षम सिद्ध सके| इसके लिए उसे पूरे जीवनकुछ न कुछ सीखते रहना होता है , वह बार बार गलतिया करता है उन्हें सुधारता है ओर सारे जीवन को एक बड़ाट्रेनिग सेंटर बना डालता है |वह स्वयं ही बड़ा प्रशिक्षण केंद्र होता है वही प्रशिक्षण दाता होता है ओर उसका ही मनमष्तिष्क हार ओर जीत का कारक बनता है |
व्यक्ति धर्म , सहजता से यह भी सीखता है कि उसे किस प्रकार के व्यवहार से अधिक सफलता मिल सकती हैउसके लिए वह कई बार उन परिस्थितियों से भी समझोता करके जल्द ही गलतियां मानने लगता हैजों पूर्णतगलत है परन्तु क्षमा का यह सिलसिला चलता रहता है ,कई बार यह भी जनता है कि वो जिन बातों पर क्रोध याक्षमा के लिए गिड गिडा रहा है वहा सामने वाला पूर्ण रूप से दोषी है मगर वह क्रोध ओर अति शून्य में केवल क्षमाओर मानाने की प्रक्रिया बनाये रखता है शायद समय उसके साथ हो जाए |
मित्रों जीवन ऐसा ही है हम जिन को बहुत प्यार करते है जिनके भविष्य के लिए कुछ भी कर सकते है ओरजिनकी मनो भावनाओं की बहुत क़द्र करते है , जिन्हें कैसे भी परेशां ओर चिंता में नहीं देख पाते उनके लिए हमेबार बार यही करना पड़ता है दोस्तों यही जीवन का सबसे ख़ूबसूरत पहलू भी हो सकता है क्योकि यही उन सबकोअपने क्रियान्वयन पर पुनर्विचार के लिए बार बार प्रेरित भी करता है |ओर यही अनन्य प्रेम उन्हें एक दिन उसशिखर पर लेजाता है जहाँ पर उनको पूर्णता मिलती है ओर आपको अवर्णीय संतोष जों स्पष्ट कर देता है की इश्वर नेजिस कार्य का दायित्व आपको सौपा था आप उसमे सफल हुए|
व्यक्ति धर्म , सहजता से यह भी सीखता है कि उसे किस प्रकार के व्यवहार से अधिक सफलता मिल सकती हैउसके लिए वह कई बार उन परिस्थितियों से भी समझोता करके जल्द ही गलतियां मानने लगता हैजों पूर्णतगलत है परन्तु क्षमा का यह सिलसिला चलता रहता है ,कई बार यह भी जनता है कि वो जिन बातों पर क्रोध याक्षमा के लिए गिड गिडा रहा है वहा सामने वाला पूर्ण रूप से दोषी है मगर वह क्रोध ओर अति शून्य में केवल क्षमाओर मानाने की प्रक्रिया बनाये रखता है शायद समय उसके साथ हो जाए |
मित्रों जीवन ऐसा ही है हम जिन को बहुत प्यार करते है जिनके भविष्य के लिए कुछ भी कर सकते है ओरजिनकी मनो भावनाओं की बहुत क़द्र करते है , जिन्हें कैसे भी परेशां ओर चिंता में नहीं देख पाते उनके लिए हमेबार बार यही करना पड़ता है दोस्तों यही जीवन का सबसे ख़ूबसूरत पहलू भी हो सकता है क्योकि यही उन सबकोअपने क्रियान्वयन पर पुनर्विचार के लिए बार बार प्रेरित भी करता है |ओर यही अनन्य प्रेम उन्हें एक दिन उसशिखर पर लेजाता है जहाँ पर उनको पूर्णता मिलती है ओर आपको अवर्णीय संतोष जों स्पष्ट कर देता है की इश्वर नेजिस कार्य का दायित्व आपको सौपा था आप उसमे सफल हुए|
Tuesday, February 9, 2010
चिंतन करें कार्यों से पहले क्रिया की प्रतिक्रिया तय है
इंसान हर कार्य अपने अनुसार करना चाहता है जबकि हर बात ,कार्य ऑर क्रियान्वयन का उसे जबाब देना होता है
उसके जीवन चक्र पर इन सबक्रियाओ का पर्याप्त एवं कई गुना प्रभाव पड़ता है |इनके परिणाम स्वरुप हमारी सारीजीवन शैली प्रभावित होती रहती है हम न तो अच्छे बुरे का भेद करपाते है न ही हम उसके परिणामों से स्वयं कोबचा पाते है , यही विडम्बना है आज के युवा की |
मित्रों विज्ञान के मत में क्रिया के बराबर प्रक्रिया होती है ,न्यूटन ने अपने आधार भूत सिद्धांतों में बताया कि यदिएक भरे हुए बर्तन में कोई चीज डालते है तो वह अपने वजन के बराबर पानी हटा देगी अर्थात क्रिया के बराबरप्रतिक्रिया का सिद्धांत यह बताता है कि कोई भी क्रिया अपने बराबर की प्रतिक्रया पैदा क़र देती है | न्यूटन का यहसिद्धांत भौतिक वस्तुओं के बारे में अपनी सीधी राय दे सकता है मगर मनुष्य एक गतिशील ,सतत चिंतन रत ऑरनिरंतर परिवर्तन शील वैचारिकता का पर्याय है अतैव उसकी क्रिया विधियों में परिवर्तन भी गुणात्मक ऑर हजारोंगुने होते है |
यदि मनुष्य की हर सोच ऑर ऑर उसकी क्रिया का प्रभाव हजार गुना पड़ता है तो निश्चित ही उसकी तमाम सोचएवं व्यक्तित्व इससे प्रभावित अवश्य होगा ऑर इन सबका प्रभाव क्षेत्र इतना विशाल होता है की भविष्य के सारेविकास एवं उसके व्यक्तित्व की सभी क्षमताएं इनसे प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकती |इन सब कार्य क्षमताओं को अतीत के हर कार्य से जुडा हुआ प्रतिक्रया रूप ही माना जाता है |व्यक्ति की सोच उसके क्रियान्वयन ऑरउसकी कार्य पद्धतियाँ इन क्रियाओं से बंध कर उसका स्वाभाव बन जाती है ऑर यही उसकी अंतरात्मा का आधारबनकर उसे कमजोर या शक्ति शाली बनाती है |
दोस्तों यह सिद्ध है की हमे अपनी हर क्रिया ,सोच ऑर क्रियान्वयन से पहले एक दीर्घ विचार की आवश्यकता होतीहै ,मगर समय के प्रलोभन ,शारीरिक एवं मानसिक आपूर्तियों के लालच में हम भेद नहीं कर पाते |यहाँ मैनें कुछऐसे युवाओं को भी देखा है जों अपनी मर्जी से भौतिक साधनों की दौड़ में भागते हुए यह निर्णय क़र लेते है की जोंहोगा देखा जाएगा ऑर अपनी शारीरिक आपूर्तियों के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते है |मन भटकन केमाहौल में अपने ही शुभ चिंतकों को उपेक्षित क़र देता है ,जों उन्हें अच्छे बुरे ऑर सही रास्तों पर देखना चाहते है वोउपेक्षित ऑर प्रयास रतओर बार बार इस दुःखसे पीड़ित रहते है कि कैसे भी जीवन के इस सत्य को युवा कोसमझा दिया जाए ,मगर उस युवा पर केवल आधुनिकता की दौड़ में दौड़ रहे खोखले आधार हिन् ऑर अतृप्तव्यक्तियों का हुजूम भर होता है जों सत्य को असत्य ऑर खाओ खेलो ऑर जीवन को वीभत्सता से जियो यहसमझा देता है ,फिर आगे क्या होता है एक बड़ा अपराध बोध ,वितृष्णा ,अलगाव ,लुटे जाने का दर्द ,ऑर घोरनिराशा ऑर सन्नाटा |
साथियों जब यह बिलकुल स्पष्ट है कि हर क्रिया सोच आपको अपने अनुरूप धनात्मकता ऑर ऋणात्मकता बनकर भविष्य में मिलनी है तो क्यों न आजके हर कार्य को विचार का विषय बना दे| हम हर कार्य यदि पूर्ण विचारशीलता ऑर धनात्मकता के साथ अपने उद्देश्यों की आपूर्तिके लिए करेंगे तो हमारा भविष्य भी पूर्ण सुरक्षित होसकता है
आपके हर कार्य को दीर्घ काल में आपकी अंतरात्मा को झेलना है आप दुनियां ऑर अपनों की नजर बचा सकते हैमगर आपको यदि आपकी ही नज़रों ने गिरा दिया तो आपका व्यक्तित्व भी आपको सहयोग नहीं देता |आपकोंउनकी परवाह होनी चाहिए जों आपकी परवाह में जीवन के कई वर्ष लगा कर आपको धनात्मक देखना चाहते हैआप जहाँ है वहीँ से नए युग की शुरुआत कीजिये बदलाव धनात्मकता स्वयं आपको अपना आधार बना लेगी |
विशवास ओर पूरी शक्ति से आप अपना संकल्प दोहराइए ओर पूर्ण मनोयोग से संसार जीतने का संकल्प लेडालिए इतिहास आपकों स्वयं सिद्ध कर देगा |
उसके जीवन चक्र पर इन सबक्रियाओ का पर्याप्त एवं कई गुना प्रभाव पड़ता है |इनके परिणाम स्वरुप हमारी सारीजीवन शैली प्रभावित होती रहती है हम न तो अच्छे बुरे का भेद करपाते है न ही हम उसके परिणामों से स्वयं कोबचा पाते है , यही विडम्बना है आज के युवा की |
मित्रों विज्ञान के मत में क्रिया के बराबर प्रक्रिया होती है ,न्यूटन ने अपने आधार भूत सिद्धांतों में बताया कि यदिएक भरे हुए बर्तन में कोई चीज डालते है तो वह अपने वजन के बराबर पानी हटा देगी अर्थात क्रिया के बराबरप्रतिक्रिया का सिद्धांत यह बताता है कि कोई भी क्रिया अपने बराबर की प्रतिक्रया पैदा क़र देती है | न्यूटन का यहसिद्धांत भौतिक वस्तुओं के बारे में अपनी सीधी राय दे सकता है मगर मनुष्य एक गतिशील ,सतत चिंतन रत ऑरनिरंतर परिवर्तन शील वैचारिकता का पर्याय है अतैव उसकी क्रिया विधियों में परिवर्तन भी गुणात्मक ऑर हजारोंगुने होते है |
यदि मनुष्य की हर सोच ऑर ऑर उसकी क्रिया का प्रभाव हजार गुना पड़ता है तो निश्चित ही उसकी तमाम सोचएवं व्यक्तित्व इससे प्रभावित अवश्य होगा ऑर इन सबका प्रभाव क्षेत्र इतना विशाल होता है की भविष्य के सारेविकास एवं उसके व्यक्तित्व की सभी क्षमताएं इनसे प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकती |इन सब कार्य क्षमताओं को अतीत के हर कार्य से जुडा हुआ प्रतिक्रया रूप ही माना जाता है |व्यक्ति की सोच उसके क्रियान्वयन ऑरउसकी कार्य पद्धतियाँ इन क्रियाओं से बंध कर उसका स्वाभाव बन जाती है ऑर यही उसकी अंतरात्मा का आधारबनकर उसे कमजोर या शक्ति शाली बनाती है |
दोस्तों यह सिद्ध है की हमे अपनी हर क्रिया ,सोच ऑर क्रियान्वयन से पहले एक दीर्घ विचार की आवश्यकता होतीहै ,मगर समय के प्रलोभन ,शारीरिक एवं मानसिक आपूर्तियों के लालच में हम भेद नहीं कर पाते |यहाँ मैनें कुछऐसे युवाओं को भी देखा है जों अपनी मर्जी से भौतिक साधनों की दौड़ में भागते हुए यह निर्णय क़र लेते है की जोंहोगा देखा जाएगा ऑर अपनी शारीरिक आपूर्तियों के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते है |मन भटकन केमाहौल में अपने ही शुभ चिंतकों को उपेक्षित क़र देता है ,जों उन्हें अच्छे बुरे ऑर सही रास्तों पर देखना चाहते है वोउपेक्षित ऑर प्रयास रतओर बार बार इस दुःखसे पीड़ित रहते है कि कैसे भी जीवन के इस सत्य को युवा कोसमझा दिया जाए ,मगर उस युवा पर केवल आधुनिकता की दौड़ में दौड़ रहे खोखले आधार हिन् ऑर अतृप्तव्यक्तियों का हुजूम भर होता है जों सत्य को असत्य ऑर खाओ खेलो ऑर जीवन को वीभत्सता से जियो यहसमझा देता है ,फिर आगे क्या होता है एक बड़ा अपराध बोध ,वितृष्णा ,अलगाव ,लुटे जाने का दर्द ,ऑर घोरनिराशा ऑर सन्नाटा |
साथियों जब यह बिलकुल स्पष्ट है कि हर क्रिया सोच आपको अपने अनुरूप धनात्मकता ऑर ऋणात्मकता बनकर भविष्य में मिलनी है तो क्यों न आजके हर कार्य को विचार का विषय बना दे| हम हर कार्य यदि पूर्ण विचारशीलता ऑर धनात्मकता के साथ अपने उद्देश्यों की आपूर्तिके लिए करेंगे तो हमारा भविष्य भी पूर्ण सुरक्षित होसकता है
आपके हर कार्य को दीर्घ काल में आपकी अंतरात्मा को झेलना है आप दुनियां ऑर अपनों की नजर बचा सकते हैमगर आपको यदि आपकी ही नज़रों ने गिरा दिया तो आपका व्यक्तित्व भी आपको सहयोग नहीं देता |आपकोंउनकी परवाह होनी चाहिए जों आपकी परवाह में जीवन के कई वर्ष लगा कर आपको धनात्मक देखना चाहते हैआप जहाँ है वहीँ से नए युग की शुरुआत कीजिये बदलाव धनात्मकता स्वयं आपको अपना आधार बना लेगी |
विशवास ओर पूरी शक्ति से आप अपना संकल्प दोहराइए ओर पूर्ण मनोयोग से संसार जीतने का संकल्प लेडालिए इतिहास आपकों स्वयं सिद्ध कर देगा |
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अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...