Friday, November 26, 2010

अबला जीवन ---आँखों में पानी --सावधान सम व्यवहार करें

अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी
आँचल में है दूध ओर आँखों में पानी

मर्दों का समाज है ये यहाँ केवल शक्ति ओर मर्दानगी के
गीत गाता हुआ बहुल समाज है जों यही जानता रहा है किऔरत इस सभ्यता में केवल घर ओर परिवार को सुरक्षित ओर बच्चों कि परिवरिश करने के लिए ही बनी हैउसका तमाम व्यक्तित्व केवल सहजता में दबने पिसने ओर जुर्म सहने कि परिभाषा से अधिक कुछ नहीं हैदुनिया जाहाँ से पिटे ,तिरस्कृत ओर असफल आदमी के बदले की आग में पिसती हुई औरत जों उसकी बेवजहभड़की क्रोध ज्वाला को सहज पीना जानती है ओर आदमी को जीत का सुख देती है ,शायद वह ऐसे ओर कही नहींजीत सकता ,क्योकि औरत ही वो संस्कृति थी जिसने अग्नि ओर इश्वर को साक्षी मान कर यह प्रतिज्ञा ली थी कीवह इस आदमी को हर व्यवहार के बदले केवल जीत दूंगी ,चाहे वह सहज दबाने की प्रक्रिया हो या अनैतिकअव्यवहारिक ,या पागलपन के क्रोध की कोई स्थिति |

बेटी बनी तो पिता ने अपने आदर्शों के अनुरूप उसे चलाना चाहा माँ ने विरोध किया तो उसे भी बिना भाव के चलनेकी हिदायत दे डाली ,डरे सहमे ओर साँसों की अनुमति के साथ चलता जीवन बहुत विकसित ओर पूर्ण सफलता केमानदंडों पर खरा दिखे यह आशा की गई , धन वैभव बाहुबल ,ओर समाज में सर्व श्रेष्ठ दिखने के लिए बेटी की हरगतिविधि को पूर्ण नियंत्रित करदिया गया क्योकि समाज में सर्व श्रेष्ठ साबित करनेके लिए यह भी एक बहुत बड़ामानदंड था|पीढ़ियों से चली रही मर्दानगी का एक बार नए अर्थों ओर नए रेपर में प्रदर्शन होना था जबकि यहआशा की जाती रही की सब इसे उदारवादी माने |

युग बदल रहा था मान्यताएं बदल गई थी औरत नयी परिभाषाएं जान चुकी थी ,उसने भी उच्च शिक्षा के मानदंडोंको अधिक सफलता से पाया था , वह मर्द की हर मर्दानगी की कुंठाओं को समझ चुकी थी ओर ऐसे में वह मर्द के हरव्यवहार की मांग को जानते हुए भी यदि उसे जितारही थी तो ये उसका बड़कपन था की मर्द की मर्दानगी |

दोस्तों औरत माँ बहिन ओर बेटी या चाहे वह पत्नी हो ममत्व , वात्सल्य ओर प्रेम की परिभाषा जानती है वह उसकेसाथ किया हुआ कोई भी अशोभनीय व्यवहार आदमी को दीर्घ काल तक केवल घोर अपराध बोध दे सकता है ,हमबहुधा तथाकथित सभ्य , धनाड्य ,ओर सर्व श्रेष्ठ साबित करने की होड़ में जैसा व्यवहार इस नारी के साथ कर रहे हैध्यान रखे की समयकी मान्यता के बदलते ही परिस्थिति ओर अधिक बदलकर आपसे अपना हिसाब जरूर मांगेगीआप ने कभी यह सोचा होता की एक माँ अपना परिवार घर ओर सारे अपने छोड़ कर आपके साथ इस विश्वास सेआगई थी की आप शायद उसे जीवन में अपने पन की नयी परिभाषा दोगे ,बेटी ने पिता से यही आशा की की वहजितने समय परिवार के साथ है उसे पूर्ण स्वतंत्रता से स्वछन्द वातावरण में सांस लेने का अवसर मिले पिता ओरमाता का सम व्यवहार उसे एक सहज मित्र के जैसा मिले क्योकि बाद में तो उसके जीवन को भी समायोजन करनाहै जीवन भर|

नारी की परिभाषा संस्कार ओर सोच बदल चुकी है आज आज वह अबला नही रही है उसके विचार ओर शिक्षा कानया जन्म हुआ है आज वहतिरस्कार, क्रोध ओर खिसियान का जबाब देने में सक्षम है यदि घर परिवार ओरसामाजिक शान्ति को प्रश्रय देना है, तो नारी की शक्ति का सम्मान कर हम उसे सम्मान ओर उचित स्थान देंअन्यथा देश ओर भारतीय संस्कृति का वह बिंदु जिसमे यही कहा है कि
यत्र पूजयते नारी --- रमन्ते तत्र देवता
एक प्रश्न वाचक बन कर रह जाएगा|
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Wednesday, November 24, 2010

भ्रम है ये रिश्ते --- पूर्ण भाव चाहिए

मै आपके बिना जी नहीं सकता

जीवन की सारी खुशिया आपसे है

आप मेरे लिए भगवान् हो

मेरी ख़ुशी जान ओर सारा जहाँ हो आप

दुनियां की सारी खुशियाँ है आपसे

ओर बहुत सी बाते जों हम ओर हमारा नवयुवक अपने विचारों ओर सोच में समाहित किये हुए है शायद हमको बहुत कमजोर ओर आधारहीन साबित कररहा है ,हम अपने विचारों ओर सोच को सहारों का मोहताज़ बना बैठे है ,हमारी सारी खुशिया ओर संतोष दूसरों में समाहित होकर रह गया है हम यह नहीं समझ पाते कि हम आखिर जीवन से चाहते क्या है ,प्रशंसा ,हवस,या हर परिस्थिति में स्वार्थों इंसान का केवल उपयोग |

दोस्तों जीवन एक ऐसी अजीब शै है जिसे यदि विचारों कि पूर्णता के बगैर जिया गया तो वह हजारों ऐसे अनुत्तरित प्रश्न छोड़ देती है जिनका उत्तर आदमी को पूरी उम्र परेशां करता रहता है ,आज हम अपने विकास से अधिक इस बात से जुड़े है कि समाज ,परिवार ओर हमारे अपने हमारे हर कार्य की केवल प्रशसा करते रहें ,हम धन वैभव ओर हर दौड़ में उन्हें नगण्य ओर आधारहीन साबित करदें ,शायद हमारा अहम् सबसे बड़ा बन बैठा है|

सामान्यत ऐसे ही कुछ वाक्यांश मैंने नवयुवको कि बातचीत में कई बार सुने है मगर उन्हें अनेक बार आधारहीन ओर बहुत उथला पाया है ,हम समाज के बड़े वर्ग ओर अपने मित्रों से ऐसी ही भाषा में बात करने के आदी होगये है ,मन वाणी ओर आत्मा के संबंधों में भाषा शेष कहाँ रह जाती है यह शायद ही किसी कि समझ में आये |मित्रों जों हमारी भाषा भाव ओर हमारे चिंतन से प्रभावित हो रहा है उसे ही भाव नही दे पाए तो आप ही बताइए वह कितना किसी व्यक्ती को प्रभावित कर पाएगा,यह प्रश्नचिन्ह है |

मित्रों जीवन ने जब भी उम्मीद की दूसरों से पूर्ण होने कि तब पहले उसे छोटा होना पड़ा है ,जब वह जीवन ही पूर्ण नहीं हो पाया तो वह अपनी चापलूसी के द्वारा सृजन किसी विषय वस्तु से कितना पूर्ण हो पायेगा मेरी समझ से परे है |हम अपने मूल्यों ओर सिद्धांतों से अनजान बने केवल बाह्य आवरण ओर अपने परिष्कृत स्वार्थो के क्रियान्वयन का एक ऐसा आवरण बना चुके है जिसमे हमारी प्रशंसा करने वाले बहुत से लोग स्वयम कुंठित ओर अधूरे है वे वही मानसिकताए हमे देकर ओर अधिक पंगु बना दे हमे यही सोच का विषय होना चाहिए |

जीवन केलिए प्रशंसक नहीं वरन केवल वे लोग चाहिए जों हमे कदम कदम पर गलत साबित करके सही मार्ग का रास्ता बताते रहेंओर हम अपनी आत्मा चिंतन ओर सत्य के सहारे अपने दिलोदिमाग में एक ऐसी सल्तनत पैदा करें जिसमे किसी की झूठी प्रशंसा की जरूरत ही न पड़े,बल्कि हमे अपनी आत्मा का वह नांद सुनायी दे जों आपको चिरस्थायी शांति दे सके|


Friday, September 17, 2010

पसंद , प्रेम ,या योग्यता

जीवन भर आदमी के सामने यही प्रश्न रहता की वह सभी विषय स्थितियों में से श्रेष्ठ का चयन करे ,आरम्भ से ही उसके सामने यह सवाल खड़ा होता है कि वह अपनी अच्छी लगने वाली चीजों को देखे प्रेम देखे या योग्यताओं का मूल्यांकन करेओर इन्ही समस्याओं में घिरा वह अपने जीवन का बहुमूल्य समय यूँ ही गवां बैठता है

पसंद उसका अनुभव बताता है वह अच्छी ख़राब दौनों चीजों को पसंद कर सकता है, उसके जन्म लेतेही उसे पसंद ना पसंद का ज्ञान होने लगता है ,वह माँ के चेहरे दूध ओर शून्य की परिधि में भी अच्छा बुरा दौनों में भेद कर पाता है पसंद बहुत तरह कि चीजों में एकसाथ अस्तित्व में आ सकने वाली विषय वस्तु है बहुत से लोगो समूह ओर एकसाथ सबको पसंद ना पसंद किया जा सकता है पसंद परिवर्तन शील है उसकी तीव्रता में उतार चढ़ाव देखा जा सकता है ,ओर वह आदमी के अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है

प्रेम सदियों से अपनी परिभाषा खुद रहा है समय परिस्थितियों ओर समय की असामायिक मांग से वह प्रभावहीन ही रहा है वर्त्तमान परिवेश में उस प्रेम का स्वरुप वहीँ खड़ा है मगर आज हमे प्रेम के नाम पर जों परोसा जा रहा है वह प्रेम की मानसिकता से बहुत दूर केवल एक सौदा है ,जिसमे बहुत से मूल्यांकन कर्ता ओर अपने अपने मतलब से खड़े बहुत से स्वार्थी तत्त्व है जों अपने स्वार्थों के लिए हवस,उपयोग,ओर शोषण के लिए अलग अलग तरह से इस प्रेम शब्द का उपयोग कर रहे है

दोस्तों योग्यता अपने आपमें सबसे उपर की स्थिति है हम पसंद ओर प्रेम दौनों को ही इस कसौटी पर रख कर परख सकते है क्या यह प्रेम या हमारी पसंद इस योग्यता पर खरी उतरने लायक है अथवा नहीं यदि हमने इन स्थितियों को योग्यता की कसौटी पर परख लिया तो आपका प्रेम पसंद ओर योग्यता आपको शोषण ओर हवस के उपयोग का कर्क नही बनने देगी ओर जीवन अपने उन्नत शिखर तक अवश्य पहुच जाएगा



Wednesday, September 8, 2010

समय

वह जों कल था आज बदल गया है वह गति मान है ,जीवन के सबसे तीव्र गातिवेग से ओर वही बता रहा है कि सब कुछ कुछ पलों में बदल जाना है ,हम सब केवल उसे ही सबसे सस्ता समझ बैठे है , शायद यही भूल हमे अपनी उम्र भर परेशां करने को काफी है ,समय कि अबाध गति के सामने युग मर्यादा ,ओर ब्रहमांड कि हर शै ताश के पत्तो की तरह धराशाही होती रही है, मगर हम केवल तमाश बीन बने खड़े रहे है |

जुएँ में ओर जीवन में कोई जीत कर नहीं निकला
यह समय का सबसे सशक्त पहलू हो सकता है , समय ने ब्रहमांड के बहुत से आयामों को हराया है ,ओर हर बार अविजित रहा है ,सम्राटों के सिंघासन ओर ताज इसने चढते ओर उतरते देखे है , सूर्य ओर पृकृति के सुहावने ओर प्रलयंकारी स्वरुप को इसने धैर्य से देखा है ,ओर इतना शक्ति शाली होकर भी यह हर प्राणी के सामने अपना मूल्याकन करने कि चाह रखता है ,जबकि उसका मूल्य समझाने वाला हर शक्श यह जनता है कि वह अनमोल,बेजोड़ ओर अतुलनीय शक्ति संपन्न है |

आज आप ओर मेरे सामने बस यही प्रश्न है कि इसे जीत कौन पाया है दोस्तों समय को जीतने वाला हर इंसान वह था जों इसका महत्व जानता था ,जिसने अपने उद्देश्यों में समयको ही सर्वाधिक महत्व दिया ,जिसने समयकी मान्यताओं के साथ स्वयं को एकसूत्र में बाँधा ओर जिसने हर समय के परिवर्तन की नब्ज के साथ स्वयं को ढाला ,शायद ये ही वो लोग थे जिन्होंने समय को सही ढंग से उपयोगित किया ओर इतिहास बन गए |समय की अबाधता को अपने आदर्शों ओर उद्देश्यों के उच्च शिखर पर रखने वाले ये लोग समय पटल पर अपना नाम सुनहरी अच्छरों में अंकित करने में कामयाब रहे |ओर समय की धारा इन्हें बहुत दूरतक ले गई ओर शायद समय इन सबके सामने नत मस्तक हो गया |


आओ दोस्तों आज हम भी आपके साथ समय की उस गरिमा , तीव्र गति के साथ स्वयं को उसके अनुरूप बनाते हुए अपने उद्देश्यों ओर आदर्शों के पैमानों पर उसे परखे शायद यहीं से हम स्वयं को सिद्ध करने की कोई सशक्त कोशिश कर पायें|

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...