सही दिशा बताने वाले लोगों का सम्मान करें
Respect the people who gave the right direction
एक बड़े पुलिस जिला मुख्यालय पर पिता कार्य करते थे ,मूल्य आदर्श और ईमानदारी उनके खून में लिपटी थी ,कभी कभी पिता जोर से चिल्ला रहे होते थे, कि तुम्हारा मैथ्स अच्छा है ,तुम मैथ्स लेकर कम्प्यूटर के क्षेत्र में खूब सफल हो सकते हो, मगर रोषित केवल इसी पर अड़ा बैठा था कि , मै बीएससी ही करूँगा , यह क्लेश पिछले ४ दिनों से चल रहा था ,माँ की स्थिति ज्यादा ख़राब थी, वो कभी रोषित को बोलती ,भैय्या वो तेरे लिए ही तो सब कररहे है ,और रोषित गुर्राता तो शांत हो जाती थी , फिर वो कभी पिताजी को कहती आप ठीक कह रहे होआप पर आज के लड़के तो सुनते ही नहीं है कुछ ,न माँ बाप की इज्जत है, न जीवन की चिंता, बस अपनी ख़राब यारी दोस्ती निभाने को ,किसी भी स्तर पर जा सकते है ये लोग,पिता गहरी खामोशी में माँ का मुँह देखते रह गए हरे सहमे से , लगभग १० दिन चला था यह सब , पिता को याद आने लगा कि एक बार महंगे मोबाइल की खरीद की जिद पर अड़े ,रोषित को दिलाना ही पड़ा था न मोबाइल, अपने कपडे, इसकी माँ की साड़ी, सब छोड़कर , अच्छेकपडे ,घड़ी ,बाइक ,स्कूल ट्रिप सब ही तो, उसने जिद करके पूरे कर लिए थे , बाबा हमेशा समझाते थे प्रेम अपनी जगह होना ही चाहिए ,मगर अनुशासन के बिना तो सब तहस नहस हो ही जाएगा न | बीएससी में प्रवेश हो ही गया था रोषित का और पढाई ,मटरगश्ती ,और यारी दोस्ती का दौर भी चल पड़ा था अपने पूरी ताकत से |
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यदाकदा पिता की बात करते हुए रोषित कहता था कि ,हर बात में आदर्शों की बातें करने वाले पिता को यह मालूम ही नहीं था ,कि दुनियां कहाँ पहुँच गई है ,वो अपने पुरातत्व विभाग जैसे कपडे पहने हुए बड़ी बड़ी बातें करतें है ,मगर यह नहीं जानते कि मेरे दोस्त मेरे समाज में जो मित्र है ,उनके पिता, केवल पैसे ,साधन और बड़ी विलासता की हर चीज देते है ,मगर कोई बात नहीं करते ,दोस्त बताते है कि उनपर टाइम है नहीं है, जो हमारा दिमाग ख़राब करें और एक हमारे पिताजी है ,जो केवल पीछे लगे रहते है ये करो ,यह गलत है ,यही सही है ,बहुत टाइम है उनपर परेशां हो गया हूँ मैं ,माँ सुनती रही बोली नहीं जानती थी कि यदि कुछ बोली तो फिर कलेश हो जाएगा --- सीने में कितना दर्द होता है उस कलेश के समय ,डर --भय ---विषाद ---घुटन क्या क्या होता है यह कुछ कैसे बताऊँ इसे यह सोचते सोचते माँ की आँखें भर आयी |
बीएससी -फिर एमएससी की पढाई पूरी होगई थी ,मगर नौकरी के कोई अते पते नहीं थे , कई जगह फॉर्म भरे थे मगर निराशा ही हाथ लगी ,पीएससी , और बहुत सी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की गई ,वहां भी नतीजा शून्य पिता शून्य भाव से यदाकदा बोलते थे ,बेटा कोई बात नहीं ईश्वर सब ठीक करेगा ,और रोषित सुनकर चुप होजाता था उसे लगता था ,शायद ये अपने आप को सांत्वना दे रहे है ,कभी उसे लगता था शायद कोई बड़ा अपराध होगया है उससे , उसके समाज के स्वार्थी लोग दूर बहुत दूर चले गए थे , जो उससे अधिक स्तर वाले थे, वो अपना बिज़नेस खोल कर बैठ गए और सहायता के नाम पर उसने बहुत कुछ सुना था उन लोगो से, उसकी सबसे करीब दोस्तों ने उसे यह आइना दिखा दिया था, कि दुनिया में दोस्ती वोस्ती क्या होती है ,केवल एक सिद्धांत होता है बी प्रेक्टिकल और जैसे को तैसा | अचानक आर्थिक बदलाव के अंतर्गत हजारों छापों की कार्यवाही में दोस्तों के प्रतिष्ठान पकडे गए हजारों अनियमितताएं मिली थी , और पेपर में भ्रष्टाचार की अनेक ख़बरों के साथयह भी था की उनलोगो को जेल भी जाना होगा | उसी समाचार पत्र में एक ओर पिताजी की भी फोटो छपी थी , लिखा था प्रदेश में ईमानदारी और श्रेष्ठ कर्त्तव्य के लिए पुरुस्कृत |, आज पहली बार उसे अपने पिता पर गर्व और अपने मित्रों के पिताओं के बोन पन का अहसास हुआ था |
नौकरी की भाग दौड़ और तरह तरह की तैयारियों के मध्य सब कुछ फिसलता सा दिख रहा था ,पहली बार उसे लगा कि शायद यदि कम्यूटर साइंस से पढाई की होती तो शायद नौकरी आसानी से मिलजाती शायद पिता सही थे ,मन में
बड़ी व्यग्रता थी , उसी समयमालूम हुआ कि , शहर में एक मूर्धन्य सन्यासी आये है , वो त्रिकालज्ञ थे,आँख बंद करके सब बता सकते थे ,उनकी ख्याति बहुत अधिक थी ,रोषित ने कई बार कहा मैं नहीं मानता ये सब, तो उन्होंने कहा वो बहुत बड़े इंजीनियर थे ,आईआईटी पास और सिविल सर्विसेस के वरिष्ठ अधिकारी रहे है ,एक झटके में में सारे भ्रम टूट गए थे ,रोषित के और एक अनजान बंधन में वह उनके पास जा पहुंचा ,और प्रणाम करके बैठ गया साधु ने पूछा कौन है आप ,तो बड़े विनम्र भाव से कहा मैं रोषित हूँ --- पिता का नाम ----- श्री कामता नाथ ----- अचानक साधु ने खड़े होकर किसी को आकाश की तरफ प्रणाम किया और ध्यान में चलागया और उसने कहना आरम्भ किया ---पुत्र जीवन में अच्छे कुल ,धर्म और श्रेष्ठ समाज में पैदा होने के बाद भी तूने नर्क भोगा है ,उसका मूल कारण यह कि तूने अपने रोकने टोकने वालों को ही ख़त्म कर दिया है ,इससे कर्म और सुख से शून्य तू सांसारिक बंधनों के पराभव की और अग्रसर है ,मै सब जानता हूँ तेरा पिता संसार में रहकर भी सबसे मुक्त है ,मैंने उसको ही प्रणाम किया था , तेरे नर्क जैसे जीवन की यातनाये ख़त्म होने का समय आगया है ,जा अपने पिता माता गुरु शाप का प्रायश्चित कर, तुझे श्रेष्ट सेवा का अवसर मिलेगा ,साधु शांत होगया ,रोषित को लगा एक बड़ा पहाड़ उसके ऊपर लुढ़कता आ रहा है बिना आवाज के |
जोर से दरवाजा खटखटाया था और पिता ने ही दरवाजा खोला था बिखर गया था रोषित पांवों में गिर गया ---- पिता पूछ रहे थे क्या हुआ बच्चे माँ रोने लगी थी क्या होगया बता तो ---- बस माफ़ करदो मुझे मारो -डाटों ---ख़राब व्यवहार करो मगर मुझे ऐसे मत छोड़ों कि मुझे हक से कोई डाटनें वाला ही न हो , मैं थक गया हूँ इस जीवन से - अपनी गलतियों से और अपने प्रेक्टिकल व्यवहार से ,अब मुझे वो ही पिता माता गुरु चाहिए जो मुझे बात बात पर अपना परामर्श दे ,अच्छे और बुरे का भेद बता पाए ,बस इतना व्यवहार चाहिए आपसे ,इसके बदले में मै दुनियां की सारी सफलताएं आपके क़दमों में बिछा दूँगा ----- माता -पिता और रोषित की आँखों से धरा प्रवाह आंसुओं का वेग था, उन्हें ऐसा लगा कि आकाश से कोई कह रहा हो ,कामतानाथ यह समय और आदर्शों की लड़ाई थी और उसमे तुम जीत गये हो, तुमने समय और उसके परिवर्तन को हरा दिया है ,पिता ने पुत्र को और कस कर गले से चिपका लिया |
इस लूट मार वाले समय में जहाँ जंगल का बड़ा कानून चल रहा है, जहाँ हर काम -सम्बन्ध किसी न किसी स्वार्थ के धरातल पर खड़ा है ,वहां कोन किसको -क्यों रोकेगा ,क्यों किसी को किसी कार्य से क्यों डाँटेगा, किसी गलत मार्ग पर जाने से क्यों आपके व्यवहार को सुधारने की बात करेगा ,क्यों आपको जीवन के सच्चे मार्ग का पथ प्रदर्शनकरेगा यह प्रश्न वाचक है ,क्योकि यदि सत्य मार्ग का दर्शन होगया तो ,आप उस का शोषण कैसे कर पाएंगे ,और शोषण ही नहीं होगा तो आपके सम्बन्ध के मायने भी शून्य हो जाएंगे ,पूरे संसार में जीवन बहुत काम लोगों के साथ वह व्यवहार कर पाता है ,जहाँ आपका व्यवहार बिना किसी प्रयोजन के ,संबंधों को पूर्ण करने की चेष्टा कर पाता है ,और यदि आपका मन मष्तिष्क इन बातों में से सार निकाल कर अपने आदर्शों कामार्ग बना पाया , तो वह सबसे अधिक श्रेष्ठ है |
प्रेम की पारा काष्ठा पर गलत कार्य करते अपने को देखकर कितना दर्द होता है ,सीने को कितनी यातना सहनी होती है ,मष्तिष्क और मन को ,और कितना भयानक होता है, वह भय जो अपने किसीको नुक्सान पहुंचाने की कोशिश में देखने से होता है ,और विडम्बना यह कि सामने वाले को आपके क्रोध के आवेग और संबंधों की आकलन शून्यता के कारण यह अहसास ही नहीं हो पाता कि वास्तव में सही कौन है ,निरंतर अपने मानसिक एवम शारीरिक आपूर्तियों के लिए , अथवा जिद -अहम् या अपने आपको सर्वश्रेष्ठ बताने की तूफानी सोच में आपको अपने बहुत करीबी लोग तो प्रतिद्वंदी दिखते है , उनकी पाबंदिया आपको अपने लिए बहुत ख़राब जान पड़ती है , शायद आप अपने तमाम आवेशों से से हारे बैठे है और अपने मन की हर बात पूरी करने चाहते है जैसे एक नन्हा सा बच्चा जलते हुए दीपक को खाने की जिद कररहा हो |
निम्न को जीवन में उतारने का प्रयत्न करें
Respect the people who gave the right direction
एक बड़े पुलिस जिला मुख्यालय पर पिता कार्य करते थे ,मूल्य आदर्श और ईमानदारी उनके खून में लिपटी थी ,कभी कभी पिता जोर से चिल्ला रहे होते थे, कि तुम्हारा मैथ्स अच्छा है ,तुम मैथ्स लेकर कम्प्यूटर के क्षेत्र में खूब सफल हो सकते हो, मगर रोषित केवल इसी पर अड़ा बैठा था कि , मै बीएससी ही करूँगा , यह क्लेश पिछले ४ दिनों से चल रहा था ,माँ की स्थिति ज्यादा ख़राब थी, वो कभी रोषित को बोलती ,भैय्या वो तेरे लिए ही तो सब कररहे है ,और रोषित गुर्राता तो शांत हो जाती थी , फिर वो कभी पिताजी को कहती आप ठीक कह रहे होआप पर आज के लड़के तो सुनते ही नहीं है कुछ ,न माँ बाप की इज्जत है, न जीवन की चिंता, बस अपनी ख़राब यारी दोस्ती निभाने को ,किसी भी स्तर पर जा सकते है ये लोग,पिता गहरी खामोशी में माँ का मुँह देखते रह गए हरे सहमे से , लगभग १० दिन चला था यह सब , पिता को याद आने लगा कि एक बार महंगे मोबाइल की खरीद की जिद पर अड़े ,रोषित को दिलाना ही पड़ा था न मोबाइल, अपने कपडे, इसकी माँ की साड़ी, सब छोड़कर , अच्छेकपडे ,घड़ी ,बाइक ,स्कूल ट्रिप सब ही तो, उसने जिद करके पूरे कर लिए थे , बाबा हमेशा समझाते थे प्रेम अपनी जगह होना ही चाहिए ,मगर अनुशासन के बिना तो सब तहस नहस हो ही जाएगा न | बीएससी में प्रवेश हो ही गया था रोषित का और पढाई ,मटरगश्ती ,और यारी दोस्ती का दौर भी चल पड़ा था अपने पूरी ताकत से |
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यदाकदा पिता की बात करते हुए रोषित कहता था कि ,हर बात में आदर्शों की बातें करने वाले पिता को यह मालूम ही नहीं था ,कि दुनियां कहाँ पहुँच गई है ,वो अपने पुरातत्व विभाग जैसे कपडे पहने हुए बड़ी बड़ी बातें करतें है ,मगर यह नहीं जानते कि मेरे दोस्त मेरे समाज में जो मित्र है ,उनके पिता, केवल पैसे ,साधन और बड़ी विलासता की हर चीज देते है ,मगर कोई बात नहीं करते ,दोस्त बताते है कि उनपर टाइम है नहीं है, जो हमारा दिमाग ख़राब करें और एक हमारे पिताजी है ,जो केवल पीछे लगे रहते है ये करो ,यह गलत है ,यही सही है ,बहुत टाइम है उनपर परेशां हो गया हूँ मैं ,माँ सुनती रही बोली नहीं जानती थी कि यदि कुछ बोली तो फिर कलेश हो जाएगा --- सीने में कितना दर्द होता है उस कलेश के समय ,डर --भय ---विषाद ---घुटन क्या क्या होता है यह कुछ कैसे बताऊँ इसे यह सोचते सोचते माँ की आँखें भर आयी |
बीएससी -फिर एमएससी की पढाई पूरी होगई थी ,मगर नौकरी के कोई अते पते नहीं थे , कई जगह फॉर्म भरे थे मगर निराशा ही हाथ लगी ,पीएससी , और बहुत सी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की गई ,वहां भी नतीजा शून्य पिता शून्य भाव से यदाकदा बोलते थे ,बेटा कोई बात नहीं ईश्वर सब ठीक करेगा ,और रोषित सुनकर चुप होजाता था उसे लगता था ,शायद ये अपने आप को सांत्वना दे रहे है ,कभी उसे लगता था शायद कोई बड़ा अपराध होगया है उससे , उसके समाज के स्वार्थी लोग दूर बहुत दूर चले गए थे , जो उससे अधिक स्तर वाले थे, वो अपना बिज़नेस खोल कर बैठ गए और सहायता के नाम पर उसने बहुत कुछ सुना था उन लोगो से, उसकी सबसे करीब दोस्तों ने उसे यह आइना दिखा दिया था, कि दुनिया में दोस्ती वोस्ती क्या होती है ,केवल एक सिद्धांत होता है बी प्रेक्टिकल और जैसे को तैसा | अचानक आर्थिक बदलाव के अंतर्गत हजारों छापों की कार्यवाही में दोस्तों के प्रतिष्ठान पकडे गए हजारों अनियमितताएं मिली थी , और पेपर में भ्रष्टाचार की अनेक ख़बरों के साथयह भी था की उनलोगो को जेल भी जाना होगा | उसी समाचार पत्र में एक ओर पिताजी की भी फोटो छपी थी , लिखा था प्रदेश में ईमानदारी और श्रेष्ठ कर्त्तव्य के लिए पुरुस्कृत |, आज पहली बार उसे अपने पिता पर गर्व और अपने मित्रों के पिताओं के बोन पन का अहसास हुआ था |
नौकरी की भाग दौड़ और तरह तरह की तैयारियों के मध्य सब कुछ फिसलता सा दिख रहा था ,पहली बार उसे लगा कि शायद यदि कम्यूटर साइंस से पढाई की होती तो शायद नौकरी आसानी से मिलजाती शायद पिता सही थे ,मन में
बड़ी व्यग्रता थी , उसी समयमालूम हुआ कि , शहर में एक मूर्धन्य सन्यासी आये है , वो त्रिकालज्ञ थे,आँख बंद करके सब बता सकते थे ,उनकी ख्याति बहुत अधिक थी ,रोषित ने कई बार कहा मैं नहीं मानता ये सब, तो उन्होंने कहा वो बहुत बड़े इंजीनियर थे ,आईआईटी पास और सिविल सर्विसेस के वरिष्ठ अधिकारी रहे है ,एक झटके में में सारे भ्रम टूट गए थे ,रोषित के और एक अनजान बंधन में वह उनके पास जा पहुंचा ,और प्रणाम करके बैठ गया साधु ने पूछा कौन है आप ,तो बड़े विनम्र भाव से कहा मैं रोषित हूँ --- पिता का नाम ----- श्री कामता नाथ ----- अचानक साधु ने खड़े होकर किसी को आकाश की तरफ प्रणाम किया और ध्यान में चलागया और उसने कहना आरम्भ किया ---पुत्र जीवन में अच्छे कुल ,धर्म और श्रेष्ठ समाज में पैदा होने के बाद भी तूने नर्क भोगा है ,उसका मूल कारण यह कि तूने अपने रोकने टोकने वालों को ही ख़त्म कर दिया है ,इससे कर्म और सुख से शून्य तू सांसारिक बंधनों के पराभव की और अग्रसर है ,मै सब जानता हूँ तेरा पिता संसार में रहकर भी सबसे मुक्त है ,मैंने उसको ही प्रणाम किया था , तेरे नर्क जैसे जीवन की यातनाये ख़त्म होने का समय आगया है ,जा अपने पिता माता गुरु शाप का प्रायश्चित कर, तुझे श्रेष्ट सेवा का अवसर मिलेगा ,साधु शांत होगया ,रोषित को लगा एक बड़ा पहाड़ उसके ऊपर लुढ़कता आ रहा है बिना आवाज के |
जोर से दरवाजा खटखटाया था और पिता ने ही दरवाजा खोला था बिखर गया था रोषित पांवों में गिर गया ---- पिता पूछ रहे थे क्या हुआ बच्चे माँ रोने लगी थी क्या होगया बता तो ---- बस माफ़ करदो मुझे मारो -डाटों ---ख़राब व्यवहार करो मगर मुझे ऐसे मत छोड़ों कि मुझे हक से कोई डाटनें वाला ही न हो , मैं थक गया हूँ इस जीवन से - अपनी गलतियों से और अपने प्रेक्टिकल व्यवहार से ,अब मुझे वो ही पिता माता गुरु चाहिए जो मुझे बात बात पर अपना परामर्श दे ,अच्छे और बुरे का भेद बता पाए ,बस इतना व्यवहार चाहिए आपसे ,इसके बदले में मै दुनियां की सारी सफलताएं आपके क़दमों में बिछा दूँगा ----- माता -पिता और रोषित की आँखों से धरा प्रवाह आंसुओं का वेग था, उन्हें ऐसा लगा कि आकाश से कोई कह रहा हो ,कामतानाथ यह समय और आदर्शों की लड़ाई थी और उसमे तुम जीत गये हो, तुमने समय और उसके परिवर्तन को हरा दिया है ,पिता ने पुत्र को और कस कर गले से चिपका लिया |
इस लूट मार वाले समय में जहाँ जंगल का बड़ा कानून चल रहा है, जहाँ हर काम -सम्बन्ध किसी न किसी स्वार्थ के धरातल पर खड़ा है ,वहां कोन किसको -क्यों रोकेगा ,क्यों किसी को किसी कार्य से क्यों डाँटेगा, किसी गलत मार्ग पर जाने से क्यों आपके व्यवहार को सुधारने की बात करेगा ,क्यों आपको जीवन के सच्चे मार्ग का पथ प्रदर्शनकरेगा यह प्रश्न वाचक है ,क्योकि यदि सत्य मार्ग का दर्शन होगया तो ,आप उस का शोषण कैसे कर पाएंगे ,और शोषण ही नहीं होगा तो आपके सम्बन्ध के मायने भी शून्य हो जाएंगे ,पूरे संसार में जीवन बहुत काम लोगों के साथ वह व्यवहार कर पाता है ,जहाँ आपका व्यवहार बिना किसी प्रयोजन के ,संबंधों को पूर्ण करने की चेष्टा कर पाता है ,और यदि आपका मन मष्तिष्क इन बातों में से सार निकाल कर अपने आदर्शों कामार्ग बना पाया , तो वह सबसे अधिक श्रेष्ठ है |
प्रेम की पारा काष्ठा पर गलत कार्य करते अपने को देखकर कितना दर्द होता है ,सीने को कितनी यातना सहनी होती है ,मष्तिष्क और मन को ,और कितना भयानक होता है, वह भय जो अपने किसीको नुक्सान पहुंचाने की कोशिश में देखने से होता है ,और विडम्बना यह कि सामने वाले को आपके क्रोध के आवेग और संबंधों की आकलन शून्यता के कारण यह अहसास ही नहीं हो पाता कि वास्तव में सही कौन है ,निरंतर अपने मानसिक एवम शारीरिक आपूर्तियों के लिए , अथवा जिद -अहम् या अपने आपको सर्वश्रेष्ठ बताने की तूफानी सोच में आपको अपने बहुत करीबी लोग तो प्रतिद्वंदी दिखते है , उनकी पाबंदिया आपको अपने लिए बहुत ख़राब जान पड़ती है , शायद आप अपने तमाम आवेशों से से हारे बैठे है और अपने मन की हर बात पूरी करने चाहते है जैसे एक नन्हा सा बच्चा जलते हुए दीपक को खाने की जिद कररहा हो |
|| किसी ने न रोका किसीने न टोका ,दुआ बद दुआ लेके न कोई आया||
|| ये कैसी खिज़ा थी ये कैसी रिवायत ,यहाँ कौन मेरा ,समझ ही न आया||
दिल्ली सल्तनत का बादशाह बहादुर शाह जफ़र अपने जीवन के अंतिम पलों में था अल्लाह का सहारा था , उस तक ही पहुँच रह गई थी उस जेल की कोठरी में , और अल्लाह के दूत से बात कररहा था , हे राजा तू तो जीवन को जीतने और अपने आपको ऐशोआराम में डुबोये हुए पूर्णनाद की और जा रहा था मै तुझसे यही जानना चाहता हूँ की तेरे जीवन की भूल क्या रही हे दूत मैं जनता हूँ अपनी गलतियां दूसरों को कष्ट न देना अच्छा आदर्श है मगर स्वयं की रक्षा का विषय छोड़ देना सबसे बड़ा अपराध है , और मेरी अंतिम इच्छा यह है कि मुझे अपनी जमीन पर दो गज जमीन जरूर मिलजाती मरने के बाद और मेरी नाकामी की सबसे बड़ी कोइ वजह थी तो वह यहकि मेरे सामने किसी ने जुबान ही नहीं खोली और मई अंधेरों के फैलने की भनक तक नहीं पा सका क्योकि मुझे कोई टोकने वाला ही नहीं था यह कहते हुए उस शासक ने अपनी बंद कर ली | और इन्हीं विचारों की गहराई में दिल्ली सल्तनत का वह शहंशाह जीवन से प्यासा ही प्रयाण कर गया |
निम्न को जीवन में उतारने का प्रयत्न करें
- जीवन को समझने का प्रयत्न करें उनके मानदंड बनाये और यही विचार करें कि उन्हें पूर्ण कैसे किया जा सकता है उन्हें अपने आपमें उतारने का प्रयत्न करें |
- समय के साथ आपको अपने संस्कारों।,सत्य और हर विचार को परिष्कृत करना होगा जैसे जैसे समय बदलेगा आपके विचारों में और श्रेष्ठता आने लगें यह ध्यान रखना आवश्यकहै |
- उन लोगो को अपने पास बनाये रखें जो आपको टोकते है क्योकि इनके कारण आप स्वयं को और अधिक परिष्कृत कर सकते है |
- क्रोध वैमनस्यता और आपनसे तुलना करने वालों के प्रति अपना रवैय्या सकारात्मक बनाये रखें क्योकि वे यही चाहते है कि आप अपना धैर्य खोकर उनके जैसे हो जाए |
- माता पिता गुरु को जैसा व्यवहार कररहे है करने दें --उनसे कोई तुलना नहीं करें ,क्योकि उनसे बंधन उत्पन्न होंगे यदि वे सही हुए तो ,आपका जीवन बनेगा और यदि वे गलत हुए तो बंधन उनका होगा आपका नहीं स्वयंको सकारात्मक बनाये रखें
- तुलना- जलन - क्रोध का सम्बन्ध प्रेम से बंधा होता है क्योकि इसके पीछे हमारी कोई कामना छुपी होती है और यही कामना का भाग प्रेम कहलाता है |
- सही अपनत्व का आकलन हमेशा करते रहना चाहिए क्योकि यदि आप ने अपने व्यवहार में उन्हें पहिचान कर अपना व्यवहार स्थिर कर दिया तो आपकी गलती की सम्भावनाये बहुत काम हो जाएंगी |
- सत्य और जुल्म के प्रति सजग रहें मगर गलती के प्रतिकार का तरीका इस तरह का अवश्य हो जिसमे सहजता और सरलता से हम आपको सत्य आदर्श के निकट रखे ,जुल्म न करें न सहन मगर अपने को नकारात्मक किये बिना |
- स्वयं की रक्षा प्रणाली बनाये रखें बिना कीसी को दुःख पहुंचाए आप स्वयं को सरल मजबूत , सत्यशील और परिपूर्ण सिद्ध करते रहें ,|
- आपके आचरण और व्यवहार से दूसरे को कष्ट न पहुँचे मगर उसके कष्ट को देखते हुए आप अपने आचरण ,आदर्श और अपनी मर्यादाओं को न लांघे | यही आपकी पूंजी है |