Sunday, April 3, 2016

आप सबकुछ जीत सकते है (You have to win everything)

 आप सबकुछ जीत सकते है (You have to win everything)

काशी  में  एक गरीब ब्राह्मण निवास  करता था ,ब्राह्मण बहुत विवेकी और हरी भक्त था, वो जानता था  कि संसार पूर्णतः नश्वर और  ब्रह्मांड का  नगण्य भाग है ,और एक मह शक्तिशाली सत्ता उसे संचालित करती है और वही  संसार के उद्भव और नाश का कारक भी है , वह राजा के महल के  बाहर जाता और केवल ऐसे ही संसार के गीत गाता , राजा और उसके पुत्रों को यह सब अच्छा नहीं लगता था,  वे उनको  कई बार प्रताड़ित कर चुके थे , ब्राह्मण सदैव  हंस कर टाल देतेथे कि ये अज्ञानी है ईश्वर इन्हें माफ़ करें ,| 
 एक बार ब्राह्मण की तबियत ज्यादा खराब हुई उन्होंने अपने  पुत्रों से भिक्षा लाने कहा ,जैसे तैसे सबसे छोटा पुत्र  सुवर्ण इस काम को तैयार हुआ  ,उस दिन उसने देखा कितने अपमान और असम्मान साथ उसे भिक्षा प्राप्त हुई , राजा दुर्मुख और उसके पुत्रों को लोगो पर अत्याचार  करने में बड़ा आनंद आता था ,राजा के पुत्रों ने उस दिन उस से कहा कि तीन कोडे खाओ तब दूंगा भिक्षा ,और उसने ऐसे ही भिक्षा प्राप्त भी करली ,पिता ने भिक्षा में राजसी वस्त्र और उसमें बंधे हुए अनाज को देखा तो अनायास उसका हाथ बेटे की पीठ सहलाने लगा आंसू आँखों में भर गए ,पुत्र ने पिता की पीठ देखी और एक कठोर निर्णय उसके संकल्पों में घूम गया ,| 

सुवर्ण ब्रह्मचर्य आश्रम में शिक्षा के लिए सुदूर  एक जंगल में गया ,वहां किसी  भी गुरुकुल ने उसे शिक्षा नहीं दी बल्कि कई स्थानों से ,भगा दिया गया  वह,७ वें दिन घने जंगल में उस ने एक तेजस्वी तपस्वी को  देखा ,तपस्वी ध्यान में था आश्रम के बहार जहाँ तहाँ  गन्दगी के अम्बार लगे थे ,परन्तु परम शांति और निस्तब्धता थी , सुवर्ण ने धीरे धीरे सारे आश्रम को साफ किया ,नदी से पानी भर कर लाया और आश्रम को साफ़ किया थोड़े फल बीन लाया ,साथ ही साधू की बुझ रही अग्नि को पुनः प्रज्ज्वलित करदिया  ,साधु के लिए गहरे ध्यान में उतरने के लिए सारी  व्यवस्थाएं भी करदी ,दिन बीत गया भूख के मारे सुवर्ण का बुरा हाल था ,मगर उसने तय किया जब तक साधु  नहीं उठेंगे ,वह  कुछ भी नहीं लेंगा, साधु ने देर रात्रि आँखें खोली सम्पूर्ण आश्रम को साफ सु व्यवस्थित देखकर उसे आश्चर्य हुआ , फिर उन्होंने  एक छोटे बच्चे को आश्रम के कोने में गठरी जैसे पड़े देखा, दया और प्रेम भाव में उन्होंने एक चादर बच्चे  पर डाल दिया | सुबह साधु ने बच्चे की पूरी कहानी सुनी और उसे शिक्षा देना आरम्भ कर दिया , कुछ समय बाद ही  सुवर्ण ने सारी शिक्षा ग्रहण की और साधु को अपने अपमान और पिता के अपमान की कहानी सुनाई साधु ने बताया पुत्र आप सक्षम हो मेरी शिक्षा के प्रभाव से तुम अजेय हो गए हो | 

सुवर्ण ने साधु के पास आने वाले छोटे राजा से अपनी इच्छा व्यक्त की  राजा ने साधु की इच्छा और सुवर्ण की शक्ति से प्रभावित हो कर उस दूसरे राज्य  पर आक्रमण कर दिया  और पलक झपकते ही राजा दुर्मुख और उसके पुत्रों को बंदी बना  लिया गया ,  राजा ने सुवर्ण  के पिता के पाँव पकड़ लिए और स्वयं को क्षमा करदेने को कहा , पिता ने सुवर्ण की और देखा तो सुवर्ण ने उनके चरण छूकर आश्वस्त किया कि  मेरा लक्ष्य राज्य नहीं है |



सुवर्ण ने कहा राजा मुझे न तो राज्य का लोभ है और न ही सत्ता का , मैं तो केवल उस अन्याय और अत्याचार के खिलाफ खड़ा हूँ, जहाँ लोग अपनी मर्यादाएं भूल कर स्वयं को सर्व शक्तिमान मान बैठते है ,जबकि उन्हें स्वयं को यह भली भांति मालूम होता है कि  कोई  भी घड़ी  उनके जीवन की अंतिम घड़ी हो सकती है ,उसके बाद उनका कमाया हुआ सत्कर्म ,धर्म , नैतिकता और उच्च व्यक्तिगत प्रतिमानों के अलावा कोई भौतिक संपत्ति शेष नहीं होगी , फिर आदर्शों की  अवहेलना कर कमाया हुआ हर साधन तुम्हें और गरीब से गरीब सिद्ध करदेगा , यह कहकर सुवर्ण ने राजा  को राज्य वापिस लौटा दिया ,राजा ने  सत्य और नैतिकता की शपथ लेकर सुवर्ण के पिता को अपना महामंत्री और पुरोहित बन कर काम आरभ कर दिया और सुवर्ण बिना किसी भाव  अपने साधु गुरु के आश्रम लौट गया | 

जीवन में हर कार्य संभव है शर्त  कि उसके लिए संकल्प की शक्ति इतनी प्रबल हो ,जिसके  सामने जीवन की हर इच्छा छोटी हो जाए , सोते जागते स्वयंको मन और मष्तिष्क यही कहता रहे की जीवन की पूर्णता उस लक्ष्य के बिना अधूरी है ,  दर्द और भविष्य की स्वर्णिम कामनाएं  केवल लक्ष्य में सिमट जाए , हजारों इच्छाओं का मुख्य केंद्र बिंदु स्वयं का लक्ष्य हो जाए और जीवन में अपना ही लक्ष्य ईश्वर की  इच्छा को सिद्ध करने का आधार बन जाए , मेरे दोस्त इसके बाद आपके प्रयास और आपका संकल्प आपको वो सब भी दे सकता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती | 


 आम आदमी का यही प्रश्न रहता है कि , कोशिश तो बहुत की मगर सफलता हमें नहीं मिल सकी, शायद हमारा भाग्य ख़राब था या हमें ये मिलना ही नहीं था ,मित्रों हम जीवन में अपने लक्ष्य के साथ हजारों कामनाएं लिए खड़े रहते है , हम अच्छा लगने और बुरा  लगने की मृग मारीचिका में खड़े हर कार्य में सफलता का सुख लेना चाहते है , हमारी शारीरिक एवम  मानसिक  आपूर्तियों को पूर्ण करने वाला मानस हर कार्य करके भी स्वयं को हारा हुआ सा मान लेता है , फिर लक्ष्यों की पूर्णता के लिए हमारी प्राथमिकताएँ स्वयं भ्रमित होजाती है, जीवन सफलता के आयाम चाहता है , शरीर स्वयं की बार बार संतुष्टि , और मन केवल ठगा सा खड़ा रहता है ,अपने आपको जीवन से हारता हुआ देख कर और इनसबके जिम्मेदार आप स्वयं होते है क्योकि आप स्वयं की नियंत्रण शक्ति खो बैठे है | जबकि आपके पूर्ण नियंत्रण और पूर्ण एकाग्र भाव से किये गए  प्रयास आपको हर लक्ष्य में विजय दे  सकते थे | 


जीत का भाव पूर्णता का भाव है ,अर्थात जीत उसी को हासिल होती है जो वास्तव में पूर्णता का प्रतीक हो सके , प्रश्न यह है कि वह पूर्ण भाव कैसे पैदा हो , हम जिस समाज  परिवेश में खड़े है , स्वयं की पूर्णता आरम्भ करें , परिवार और समाज को अपने व्यवहार से जीतने का प्रयत्न करें , लक्ष्य को कठिन परिश्रम से बिना सफल असफलता का भाव लाये अकथ परिश्रम से जीतें , शरीर और मन को आत्म नियंत्रण से  जीतने का संकल्प करें , और अपनी आत्मा को उस परम शक्तिमान प्रभु की सर्वोत्तम कृति मान कर स्वयं को जीतने का प्रयत्न करें , वर्त्तमान को लक्ष्य की प्राप्ति और उसके प्रयासों में झोंक दे , साधनों की चिंता को भविष्य की सफलता के लिए नगण्य करदें , बस सोते जागते केवल यही भाव रहे की वह सफलता का लक्ष्य आपका है और वह आपको ही हासिल होना है | 

कृपया इनका भी प्रयोग करें 
  • लक्ष्य की स्पष्टता आपकी सफलता के मार्ग को आधे से ज्यादा सहज कर देती है क्योकि आपका लक्ष्य  जितना स्पष्ट होगा आपकी गति उतनी ही तेज होगी। 
  •  सफलता के लिए किये जाने वाले प्रयास सार्थक एवं सकारात्मक भाव के लिए किये जाने चाहिए जिससे आपके साथ समाज को भी अधिकतम लाभ प्राप्त हो सकें | 
  • लक्ष्य की प्राथमिकताएँ  बिलकुल स्पष्ट होनी चाहिए जीवन में आपके सामने एक लक्ष्यके साथ शारीरिक मानसिक , अपनी श्रेष्ठता को साबित करने और कई कार्य होंगे आपको अपनी प्राथमिकताएँ स्पष्ट रखनी है| 
  • जबतक आपका आत्म नियंत्रण पूर्ण नहीं होगा तबतक आप स्वयं को सफल साबित नहीं कर सकेंगे , जीवन में हर आवश्यकता आवश्यक है मगर लक्ष्य से पहले किसी आवश्यकता की जरूरत न हो | 
  • विनम्रता ,त्याग, बलिदान , एक शक्ति संपन्न व्यक्ति का आभूषण होते है ,सफलता के लिए ये सब बेहद जरूरी है नहीं तो इनके बिना सारी  सफलता अधिक विनाश कारी हो जायेगी
  • पूर्ण स्वतंत्रता सफलता के मार्ग में बाधक है क्योकि सफलता का मार्ग अपने अनुसाशन  नियमों और आदर्शों के मार्ग से बंधा , स्वयं से समाज के पूर्ण कल्याण का भाव लिए होता है अतः कुछ आदर्श जरूर बनाये रखें | 
  • अपने स्वयं पर अडिग विश्वास रखें कि आप ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है और आपको आपके द्वारा चयनित लक्ष्य के लिए ही ईश्वर ने चुना है , और आज या कल सफलता आपको ही मिलने है | 

  • सकारात्मक संकल्प का दीपक सदैव जलाए रखे  उसमे नित्य नयी बाती और संकल्पों का तेल डालते रहें आप निश्चित समझ ले कि जीवन आपको सफलताएं अवश्य देगा | 
  • असफलता का मायने यही था कि आपकी सफलता में थोड़ा समय है लेकिन वह सफलता इतनी प्रचण्ड होगी कि वह पूर्वकी असफलता के हर कदम को भविष्य की सशक्तता  में बदल देगी | 

 

 शरीर का धर्म है दुःख-सुख का अनुभव करना , ,भीख मांगना ,और और और करते हुए , हर समय असंतुष्ट रहना , जबकि आत्मा और उसकी महा  चेतना का कार्य है आपको पूर्ण शांति और लक्ष्य में सफल सिद्ध करना ,यहाँ आप यदि आत्मा की चेतना  से जुड़े रहे ,तो हर सफलता आपकी ही होगी, और यदि आप आज मन नहीं लगरहा , आज तबियत ख़राब है , आज अच्छा नहीं लग रहा , में लगे रहे तो आपकी सफलता भी आपसे दूर हो जायेगी, शरीर और मन की विषय वस्तुओं को सफलता का माध्यम बना डालें , संकल्प की शक्ति को पतवार  बनादे जो हर तूफ़ान को बौना साबित कर देगी

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