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लाइक्स और टिप्पणियों के लिए आप क्यों चिंतित हों
देवानी आंध्रा के एक प्रतिष्ठित मंदिर के प्रमुख पुजारी की संतान थी धर्म , कर्म , आचरण , और सुबह शाम सत्य और आदर्शों में बंधें जीवन का सशक्त चलचित्र था उसका जीवन , भगवान बालाजी का श्रृंगार सेवा और हर व्यक्ति से उसके मधुर सम्बन्ध ने उसे पूरे क्षेत्र में ख्याति लब्ध बना दिया था , बहुत दूर दूर तक लोग यही कहते थे संस्कृति सभ्यता,और संस्कार इन लोगो से सीखने चाहिए , जीवन का इससे सुन्दर सांकल और चित्र हो ही क्या सकता था |
१५ वर्ष की उम्र पूरी करने के जश्न में देवानी की बड़ी बहिन जो अमेरिका में रहती थी ,ने उसे एक लेपटोप दिया और
ढेर सारी बधाइयां , उसने बताया विश्व कहाँ से कहां पहुँच गया है सब तरफ केवल विकास , बाजारों की चक चोंध और असंख्यों उपयोग के सामान है , और हम अभी भी वहीँ पड़े अपने आप को केवल मंदिर और रूढ़िवादी जंजीरों से बधें बैठे है, कुछ दिन साथ रहते रहते बड़ी बहिन ने अनेकों साइट्स से उसे जोड़ दिया आरम्भ में वह जब कोई मंत्र या धर्म के आदर्शों की बात शोशल साइड्स पर डालती थी तो उसे एक -दो यह एक भी लाइक्स मिलता ही नहीं था भूले बिसरे कोई एक आध लाइक्स मिलता भी था तो बहुत दिनों में --- दोस्तों के हजारों लाइक्स , और बड़ी बहिन की बातों से मन छुब्ध होने लगा , सपनों में भी उसे अपनी हीनता का बोध होने लगा --- फिर धीरे धीरे मंत्र के साथउसका सेक्सी सजा धजा उसका स्वरुप दिखाई देने लगा और समय बीता जीवन ने स्वयं को और ढीला छोड़ दिया धीरे धीरे भद्दे भद्दे कमेंट्स के साथ देवानी दूसरे किसी नाम से उस शोशल साइट्स की सबसे बदनाम मेंबर थी , इस बीच कई बार लोगो ने उसे बुरी तरह ठग डाला था ,मन में गहन पीड़ा थी अपने पारिवारिक मंदिर में भगवान के सामने बैठी देवानी अलग अलग तरह की कसमें और संकल्प करती दिखी और अचानक वह भगवान का वही गीत गा उठी जिसे वह रूढ़िवादी सोच कर ६ माह पहले छोड़ चुकी थी ,उसे लगने लगा था कि जीवन लाइक्स से अधिक अपनी अंतरात्मा के लाइक्स की प्रतीक्षा करता है , जबकि अधिक प्रसंशा की आकांक्षा में लोग हममें अपनी वासनाओं की आपूर्ति में हमें अपनी अंतरात्मा की गहराइयों से दूर एक बनावटी संसार में लेजाता है जहाँ हम केवल भोग्य का सामन भर होते है | देवानी संकल्प के बाद रोते रोते अचानक मुस्कुराने लगी शायद उसे उसकी अंतरात्मा का सत्य समझा आ गया था | और उसने सही दिशा में जाने का संकल्प कर डाला था |
जीवन में आकांक्षाएं मनुष्य को गुलाम बनाये रखती है और सबसे अधिक महत्वपूर्ण तीन आकांक्षाएं प्रबल मानी गई है उसमें प्रथम धन की कामना , द्वितीय पुत्र की कामना और तीसरी यश की कामना इनमे यश की कामना सतत और अधिक प्रबल है जिसमें आदमी स्वयं को बड़ा बताने की होड़ में किसी भी स्तर पर जा सकता है वहां स्वयं को सिद्ध करने के लिए वह हर बुराई और स्वार्थ को अपना सकता है , यही है जीवन में यशकी कामना की प्रबलता है , जीवन बार बार स्वयं की कमियों से परेशान स्वयं को स्थापित करने की होड़ में लगा रहता है , और स्वयं के इस स्थापत्य में उसे केवल यही फिक्र बनी रहती है की वह सबसे श्रेष्ठ साबित हो सके |
शरीर आत्मा और संसार जीवन एक सामंजस्य ही तो है सबका यहाँ सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह कि मन शरीर और संसार कैसे भी स्वयं को सबसे ऊपर खड़ा देखना चाहता है वह किसी भी स्थिति में स्वयं को हर्ता नहीं देखना चाहता जबकि आत्मा उसके हर कर्त्तव्य पर अपना मत अवश्य देती रहती है ,एक नौकर व्यक्ति ने अपने स्वामी से मरते समय उसकी सारी दौलत अपने नाम करवा ली और मरते हुए स्वामी को इस लिए मार दिया की वह सारी घटना अपने पुत्रों को न बतादे , पुत्रों ने इससबको अपनी अकर्मण्यता और उसकी सेवा का फल समझा और भूल गए मगर इस नौकर को जब भी समाज से प्रसंशा मिली इसे अपने हत्यारा होनेका और बेईमानी से धन हड़पने का चल चित्र सैदेव दिखाई देता रहा, अंत में मरे हुए सेठ का ध्यान उसे पागलपन की उस सीमा पर ले गया जहाँ उसे पागलखाने में बंद करना पड़ा , यदा कदा वह चिल्लाता रहता था , मैं अमीर हूँ साले को मार दिया , फिर जोर जोर से रोता था हत्यारा हूँ मैं मैंने अपनेको पालने वाले को मार दिया , तेरे को भी मार दूंगा , ------- दोस्तों इस आदमी के वैभव ,और यश कमाने की चाहत में किये गए कर्म को इसकी अंतरात्मा ने अस्वीकार उसे आईना दिखा दिया था , यही जीवन का अकाट्य सत्य है जो यह बताता है जीवन का जीवन का मायने लाइक्स कमाना नहीं वरन अपनी अंतरात्मा के लाइक्स को जीतते रहने में है |
हम सदैव यही उधेड़ बुन में लगे रहते है कि कैसे भी स्वयं अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने मैं लगे रहें ,जबकि मन हर जीत के बाद स्वयं को ठगा महसूस करते हुए आगे की चिंता में व्यस्त हो जाता है हर जीत अपना सुख छोड़कर स्वयं थोड़े ही समय बाद नए सुख की कामना करने लगता है , और और की मानसिकता उसे उस बिंदु पर पहुंचा देती है जहाँ सुख होते ही नहीं है , आप ही बताइये जिस भोजन में तृप्ति का गन ही ख़त्म हो जाए उस भोजन की उपयोगिता ही क्या हो सकती है , मन बुद्धि और आत्मा की अतृप्तता सम्पूर्ण शारीरिक और मानसिक अपूर्णता सिद्ध करने लगती है और अंतरात्मा हर बनावटी और असत्य को झुठलाते हुए बार बार ऐसे कर्म की मांग करने लगती है जो वास्तव में आदर्श , सत्य और श्रेष्ठता की परिभाषा बन सके |
लाइक्स या आपकी प्रसंशा निश्चित तौर पर मन को अच्छे लगते है परन्तु उनकी सीमा क्या हो , यह बात हमें अवश्य याद रखनी चाहिए , मित्रों हम अधिकाँश शोशल साइड्स पर जहां स्वयं को श्रेष्ठ देखना चाहते है एक पल उनकी वास्तविकताएं अवश्य देखें , पड़ोस की एक अधेड़ आंटी ने १५ वर्ष के एक लड़के से ऐसी दोस्ती की कि उस किशोर का सारा चैन छीन लिया और एक दिन उसने आत्महत्या कर ली,एक अन्य आंटी ने पड़ोस की एक बच्ची से ऐसी ही साइड्स पर दोस्ती की एवं लम्बे समय तक ब्लैक मेल करती रहीं , मित्रों इनमे अधिकांश साइड्स वासनाओं की पूर्ती का एकमात्र केंद्र बन गए है वे केवल स्वार्थ वासनाओं और शारीरिक मानसिक शोषण के लिए काम उम्र के बच्चों को गुमराह कररहे है , शायद समय आगया है जहां बड़ी संख्या में लाइक्स इकट्ठे करने की बजाय आप स्वयं अपनी अंतरात्मा का लाइक पा सकें |
लाइक्स या आपकी प्रसंशा निश्चित तौर पर मन को अच्छे लगते है परन्तु उनकी सीमा क्या हो , यह बात हमें अवश्य याद रखनी चाहिए , मित्रों हम अधिकाँश शोशल साइड्स पर जहां स्वयं को श्रेष्ठ देखना चाहते है एक पल उनकी वास्तविकताएं अवश्य देखें , पड़ोस की एक अधेड़ आंटी ने १५ वर्ष के एक लड़के से ऐसी दोस्ती की कि उस किशोर का सारा चैन छीन लिया और एक दिन उसने आत्महत्या कर ली,एक अन्य आंटी ने पड़ोस की एक बच्ची से ऐसी ही साइड्स पर दोस्ती की एवं लम्बे समय तक ब्लैक मेल करती रहीं , मित्रों इनमे अधिकांश साइड्स वासनाओं की पूर्ती का एकमात्र केंद्र बन गए है वे केवल स्वार्थ वासनाओं और शारीरिक मानसिक शोषण के लिए काम उम्र के बच्चों को गुमराह कररहे है , शायद समय आगया है जहां बड़ी संख्या में लाइक्स इकट्ठे करने की बजाय आप स्वयं अपनी अंतरात्मा का लाइक पा सकें |
लाइक्स और यश की कामना के समय निम्न को भी ध्यान रखें
लाइक्स और टिप्पणियों के लिए आप क्यों चिंतित हों
देवानी आंध्रा के एक प्रतिष्ठित मंदिर के प्रमुख पुजारी की संतान थी धर्म , कर्म , आचरण , और सुबह शाम सत्य और आदर्शों में बंधें जीवन का सशक्त चलचित्र था उसका जीवन , भगवान बालाजी का श्रृंगार सेवा और हर व्यक्ति से उसके मधुर सम्बन्ध ने उसे पूरे क्षेत्र में ख्याति लब्ध बना दिया था , बहुत दूर दूर तक लोग यही कहते थे संस्कृति सभ्यता,और संस्कार इन लोगो से सीखने चाहिए , जीवन का इससे सुन्दर सांकल और चित्र हो ही क्या सकता था |
१५ वर्ष की उम्र पूरी करने के जश्न में देवानी की बड़ी बहिन जो अमेरिका में रहती थी ,ने उसे एक लेपटोप दिया और
ढेर सारी बधाइयां , उसने बताया विश्व कहाँ से कहां पहुँच गया है सब तरफ केवल विकास , बाजारों की चक चोंध और असंख्यों उपयोग के सामान है , और हम अभी भी वहीँ पड़े अपने आप को केवल मंदिर और रूढ़िवादी जंजीरों से बधें बैठे है, कुछ दिन साथ रहते रहते बड़ी बहिन ने अनेकों साइट्स से उसे जोड़ दिया आरम्भ में वह जब कोई मंत्र या धर्म के आदर्शों की बात शोशल साइड्स पर डालती थी तो उसे एक -दो यह एक भी लाइक्स मिलता ही नहीं था भूले बिसरे कोई एक आध लाइक्स मिलता भी था तो बहुत दिनों में --- दोस्तों के हजारों लाइक्स , और बड़ी बहिन की बातों से मन छुब्ध होने लगा , सपनों में भी उसे अपनी हीनता का बोध होने लगा --- फिर धीरे धीरे मंत्र के साथउसका सेक्सी सजा धजा उसका स्वरुप दिखाई देने लगा और समय बीता जीवन ने स्वयं को और ढीला छोड़ दिया धीरे धीरे भद्दे भद्दे कमेंट्स के साथ देवानी दूसरे किसी नाम से उस शोशल साइट्स की सबसे बदनाम मेंबर थी , इस बीच कई बार लोगो ने उसे बुरी तरह ठग डाला था ,मन में गहन पीड़ा थी अपने पारिवारिक मंदिर में भगवान के सामने बैठी देवानी अलग अलग तरह की कसमें और संकल्प करती दिखी और अचानक वह भगवान का वही गीत गा उठी जिसे वह रूढ़िवादी सोच कर ६ माह पहले छोड़ चुकी थी ,उसे लगने लगा था कि जीवन लाइक्स से अधिक अपनी अंतरात्मा के लाइक्स की प्रतीक्षा करता है , जबकि अधिक प्रसंशा की आकांक्षा में लोग हममें अपनी वासनाओं की आपूर्ति में हमें अपनी अंतरात्मा की गहराइयों से दूर एक बनावटी संसार में लेजाता है जहाँ हम केवल भोग्य का सामन भर होते है | देवानी संकल्प के बाद रोते रोते अचानक मुस्कुराने लगी शायद उसे उसकी अंतरात्मा का सत्य समझा आ गया था | और उसने सही दिशा में जाने का संकल्प कर डाला था |
जीवन में आकांक्षाएं मनुष्य को गुलाम बनाये रखती है और सबसे अधिक महत्वपूर्ण तीन आकांक्षाएं प्रबल मानी गई है उसमें प्रथम धन की कामना , द्वितीय पुत्र की कामना और तीसरी यश की कामना इनमे यश की कामना सतत और अधिक प्रबल है जिसमें आदमी स्वयं को बड़ा बताने की होड़ में किसी भी स्तर पर जा सकता है वहां स्वयं को सिद्ध करने के लिए वह हर बुराई और स्वार्थ को अपना सकता है , यही है जीवन में यशकी कामना की प्रबलता है , जीवन बार बार स्वयं की कमियों से परेशान स्वयं को स्थापित करने की होड़ में लगा रहता है , और स्वयं के इस स्थापत्य में उसे केवल यही फिक्र बनी रहती है की वह सबसे श्रेष्ठ साबित हो सके |
शरीर आत्मा और संसार जीवन एक सामंजस्य ही तो है सबका यहाँ सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह कि मन शरीर और संसार कैसे भी स्वयं को सबसे ऊपर खड़ा देखना चाहता है वह किसी भी स्थिति में स्वयं को हर्ता नहीं देखना चाहता जबकि आत्मा उसके हर कर्त्तव्य पर अपना मत अवश्य देती रहती है ,एक नौकर व्यक्ति ने अपने स्वामी से मरते समय उसकी सारी दौलत अपने नाम करवा ली और मरते हुए स्वामी को इस लिए मार दिया की वह सारी घटना अपने पुत्रों को न बतादे , पुत्रों ने इससबको अपनी अकर्मण्यता और उसकी सेवा का फल समझा और भूल गए मगर इस नौकर को जब भी समाज से प्रसंशा मिली इसे अपने हत्यारा होनेका और बेईमानी से धन हड़पने का चल चित्र सैदेव दिखाई देता रहा, अंत में मरे हुए सेठ का ध्यान उसे पागलपन की उस सीमा पर ले गया जहाँ उसे पागलखाने में बंद करना पड़ा , यदा कदा वह चिल्लाता रहता था , मैं अमीर हूँ साले को मार दिया , फिर जोर जोर से रोता था हत्यारा हूँ मैं मैंने अपनेको पालने वाले को मार दिया , तेरे को भी मार दूंगा , ------- दोस्तों इस आदमी के वैभव ,और यश कमाने की चाहत में किये गए कर्म को इसकी अंतरात्मा ने अस्वीकार उसे आईना दिखा दिया था , यही जीवन का अकाट्य सत्य है जो यह बताता है जीवन का जीवन का मायने लाइक्स कमाना नहीं वरन अपनी अंतरात्मा के लाइक्स को जीतते रहने में है |
हम सदैव यही उधेड़ बुन में लगे रहते है कि कैसे भी स्वयं अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने मैं लगे रहें ,जबकि मन हर जीत के बाद स्वयं को ठगा महसूस करते हुए आगे की चिंता में व्यस्त हो जाता है हर जीत अपना सुख छोड़कर स्वयं थोड़े ही समय बाद नए सुख की कामना करने लगता है , और और की मानसिकता उसे उस बिंदु पर पहुंचा देती है जहाँ सुख होते ही नहीं है , आप ही बताइये जिस भोजन में तृप्ति का गन ही ख़त्म हो जाए उस भोजन की उपयोगिता ही क्या हो सकती है , मन बुद्धि और आत्मा की अतृप्तता सम्पूर्ण शारीरिक और मानसिक अपूर्णता सिद्ध करने लगती है और अंतरात्मा हर बनावटी और असत्य को झुठलाते हुए बार बार ऐसे कर्म की मांग करने लगती है जो वास्तव में आदर्श , सत्य और श्रेष्ठता की परिभाषा बन सके |
लाइक्स या आपकी प्रसंशा निश्चित तौर पर मन को अच्छे लगते है परन्तु उनकी सीमा क्या हो , यह बात हमें अवश्य याद रखनी चाहिए , मित्रों हम अधिकाँश शोशल साइड्स पर जहां स्वयं को श्रेष्ठ देखना चाहते है एक पल उनकी वास्तविकताएं अवश्य देखें , पड़ोस की एक अधेड़ आंटी ने १५ वर्ष के एक लड़के से ऐसी दोस्ती की कि उस किशोर का सारा चैन छीन लिया और एक दिन उसने आत्महत्या कर ली,एक अन्य आंटी ने पड़ोस की एक बच्ची से ऐसी ही साइड्स पर दोस्ती की एवं लम्बे समय तक ब्लैक मेल करती रहीं , मित्रों इनमे अधिकांश साइड्स वासनाओं की पूर्ती का एकमात्र केंद्र बन गए है वे केवल स्वार्थ वासनाओं और शारीरिक मानसिक शोषण के लिए काम उम्र के बच्चों को गुमराह कररहे है , शायद समय आगया है जहां बड़ी संख्या में लाइक्स इकट्ठे करने की बजाय आप स्वयं अपनी अंतरात्मा का लाइक पा सकें |
लाइक्स या आपकी प्रसंशा निश्चित तौर पर मन को अच्छे लगते है परन्तु उनकी सीमा क्या हो , यह बात हमें अवश्य याद रखनी चाहिए , मित्रों हम अधिकाँश शोशल साइड्स पर जहां स्वयं को श्रेष्ठ देखना चाहते है एक पल उनकी वास्तविकताएं अवश्य देखें , पड़ोस की एक अधेड़ आंटी ने १५ वर्ष के एक लड़के से ऐसी दोस्ती की कि उस किशोर का सारा चैन छीन लिया और एक दिन उसने आत्महत्या कर ली,एक अन्य आंटी ने पड़ोस की एक बच्ची से ऐसी ही साइड्स पर दोस्ती की एवं लम्बे समय तक ब्लैक मेल करती रहीं , मित्रों इनमे अधिकांश साइड्स वासनाओं की पूर्ती का एकमात्र केंद्र बन गए है वे केवल स्वार्थ वासनाओं और शारीरिक मानसिक शोषण के लिए काम उम्र के बच्चों को गुमराह कररहे है , शायद समय आगया है जहां बड़ी संख्या में लाइक्स इकट्ठे करने की बजाय आप स्वयं अपनी अंतरात्मा का लाइक पा सकें |
लाइक्स और यश की कामना के समय निम्न को भी ध्यान रखें
- अपनी सीमाएं बनाएं और कड़ाई से अपने नियमों का पालन करें क्योकि जीवन में अपने आदर्श सीमाएं ही आपको उन्नति के शिखर पर ले जा सकती हैं |
- दुनियां में हर इंसान बिना किसी कीमत के आपको कुछ नहीं दे सकता और जो लोग बिना किसी सशक्त कारण के आपको लाइक्स भेज रहे है उनसे सावधान रहने की आवश्यकता है |
- जीवन में सांसारिक लाइक्स की तुलना में अपनी अंतरात्मा के लाइक्स की फिक्र करना सीखें वह नितांत सत्य और आपका वास्तविक विकास का मान दंड भी बना पाएगी |
- जब तक आप दूसरों को समझ ना पाएं तबतक उनसे प्रसंशा और आलोचना की अपेक्षा भी मत करें क्योकि उनकी आलोचनाऔर प्रसंशा आपके लिए घातक ही होगी
- जीवन का हर कदम इस बात पर निर्भर है की आप जीवन से चाहते क्या है और यदि जीवन शार्ट कट चाहता है तो आप निश्चित समझे की आप धोखा खाने जा रहा है |
- हर इंसान अपने गुण और अवगुणों के साथ जीवन गुजार रहा है और उसमें अपनी अपनी गुणवत्ता है यह ध्यान रहे कि आप अपने गुणों का विस्तार और कमियों को ख़त्म करें |
- आलोचनाओं और प्रसंशा में आप स्वयं को न तो अधिक प्रसन्न और अहंकार में देखें और न ही आलोचनाओं में स्वयं को अत्याधिक् दुखी करें यह सब विधाता की इच्छा है और उसमे स्वयं को स्थिर रखें |
- जीवन के हर पथ पर अपने गुरु पिता माता से परामर्श लेते रहें क्योकि समय समय पर आपको परामर्श की आवश्यकता होगी और ये रिश्ते आपको नया रास्ता देते रहेगा |
- धर्म और आदर्शों को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाये रहें क्योकि यह आपको नए सिरे से निर्माण करने की शक्ति प्रदान कर सकता है |
- जीवन के हर पल को अपने हिसाब से मूल्यांकन चाहिए होता है आप स्वयं आप अपना मूल्यांकन करते रहें और अपने को दोषों पर पैनी नजर बनाये रखें |