झूठी प्रसंशा पतन का सबसे बड़ा कारण है
False praise is cause of downfall
एक शिष्य समूह ने अपने गुरु से पूछ गुरुदेव हमारे देश का राजा बहुत ही घमंडी है उसे चाटुकारिता बहुत प्रिय है, वह हमेशा अपने चाटुकारों से घिरा अपने राज्य में अजीबोगरीब हरकतें करता रहता है, कभी वह किसी को बे वजह दंड दे देगा कभी वह बिना किसी कारण के दूसरों से अपनी तुलना करने लगेगा ,और उसके द्द्वारा कभी भी किसी को भी फांसी चढ़ा दिया जाता है क्योकि वह राजा की प्रसंशा नहीं कर पाया था , गुरुने पूछा वहां कोई धर्म पारायण ग्यानी पुरोहित या श्रेष्ठ मनुष्य नहीं है क्या, शिष्यों ने बताया हाँ महाराज वहां के राज पुरोहित बहुत ग्यानी और विद्वान है ,शास्त्रार्थ में उनसे कोई नहीं जीत पाता , मगर उन्हें भी अपनी योग्यता पर बहुत घमंड है, और दोनों ही अपने अपने कार्यों में व्यस्त रहते है ,पुरोहित जी भी समय समय पर लोगो को शाश्त्रार्थ में हरा कर सार्वजानिक रूप से सजा देते है , गुरु गंभीरता से बहुत देर सुनते रहे अचानक वे अपने शिष्यों से बोले पुत्र जाओ आप दो समूहों में बंट कर राजा और राज पुरोहित की झूठी प्रसंशा करो ,इस समय आपका काम बिना सोचे प्रसंशा करना ही रहे बस ,शिष्यों ने गुरु को प्रणाम किया और अपने गंतव्यों की और चलेगये राजा से शिष्यों ने कहा महाराज आपके यश बल और ज्ञान की चर्चा सर्वत्र हो रही है आपका रूप , यौवन , ज्ञान और बल की पूरी दुनियां दीवानी है , पड़ौसी राज्य की जनता भी आपके गुणों की तारीफ़ करने से नहीं थकती और आप बाहुबल धन बल और शौर्य में सबसे श्रेष्ठ है , बड़े शिष्य ने बोल रहे शिष्य की ओर विस्मय से देखा, की पड़ौसी राजा बहुत बलशाली और बहुत बड़े राज्य का मालिक है ,उसे कोई नहीं जीत सका और उसकी धर्म परायणता के किस्से जगह जगह सुनाये जाते है ,वो इससे सब अर्थो में श्रेष्ठ है ,पर झूठी प्रसंशा की बात सुन कर वो चुप रहा ,दूसरे शिष्य ने राज पुरोहित को यही कहा, महाराज आपके ज्ञान , तपश्चर्या और त्याग के किस्से आज राज्य और राज्य से बहार भी सुनाये जाते है लोग आपके ज्ञान का लोहा मानते है ,और राजा भी आपके ज्ञान के कारण ही शांति से राज्य कररहे है , भावावेश में राज पुरोहित राजा को बुरा भला कहने लगा , राजा को तुरंत खबर हुई उसने राज पुरोहित को बुलाया दोनों में विवाद होने लगा राजा खुद को बगड़ा बताने लगा पुरोहित अपने को , राजा बोला सब कह रहे है मैं सबसे ग्यानी हूँ ,बलशाली हूँ ,पड़ौसी राज्य वाले भी कहीं नहीं लगते मेरे सामने , पुरोहित ने कहा पड़ोसी राज्य बहुत शक्तिशाली है , राजा ने तुरंत अपनी बात की अवहेलना के लिए पुरोहित को फांसी पर चढ़ावा दिया, और पड़ोसी राज्य पर हमला कर दिया पड़ौसी राजा को राजा की मूर्खता पर पहले से ही संदेह था उसने पलक झपकते ही युद्ध जीत लिया ,और अपना धर्म पारायण राज्यउस राजा के साथ मिला कर और बढ़ा लिया , दुष्ट राजा इस युद्ध में मारा गया |
मूर्ख और अहंकार से ग्रस्त महा ग्यानी की दशा एक जैसी ही होती है महा ग्यानी को ज्ञान का अतिरेक का अहंकार एक कीटाणुं की तरह उसके सम्पूर्ण ज्ञान का छरण करने लगता है , उनसे जीतने का केवल एक ही शस्त्र है वह है उनकी झूठी प्रसंशा क्योकि मूर्ख की अति प्रसंशा उसे और अधिक मूर्खता करने के लिए बाध्य करती है, और एक दिन उसकी बढ़ती हुई मूर्खता उसके पतन का कारण बनजाती है ,दूसरी और महाज्ञानी यदि अहंकार के कीटाणु से ग्रस्त है तो वह भी झूठी प्रसंशा के कारण और अधिक स्वछन्द और स्वार्थी हो जाता है वह ज्ञान और धर्म का प्रयोग अपने हिसाब से करने लगता है , और आदर्शों और सत्य की परिभाषाये भी अपने हिसाब से बना डालता है ,परिणाम यह कि उसका यह भाव उसे ही नष्ट कर डालता है जबकि वह स्वयं को ग्यानी और सर्वश्रेष्ठ समझता रहता है ,परन्तु अहंकार उसे कब भ्रष्ट , असत्य और अनादर्शों के तराजू में रख कर असफल सिद्ध कर देता है यह मालूम ही नहीं पड़ता |
आधुनिक युग में हम सब आदी होगये है अपनी प्रसंशा सुनने के, हमारा हर कार्य प्रसंशा के लिए होने लगा है , हम धन ,बल, रूप, रंग ,सौंदर्य और सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए इतने लालायित है कि उसके लिए किसी भी हद पर जाने को तैयार दिखते है , जबकि हम यह जानते है इन सब चीजों में सर्वश्रेष्ठ साबित होने के लिए हमें दूसरों की तुलना में खड़ा होना होगा और जहाँ से भी कोई तुलना आरम्भ होती है वहां से तमाम नकारत्मकताएं अपने आप आरम्भ हो जाती है, आज जो धन , बल, रूप, रंग, यश वैभव मेरा है कल वो दूसरे का होगा जो सौंदर्य मेरे नाज का विषय था कल किसी और को उपकृत करेगा और वह हर गुण कल जो मुझे सबकी तुलना में श्रेष्ठ साबित करने के लिए दिखाना होता था आज दूसरों के पास था और यही सत्य भी था , मैं झूठी प्रसंशा के कारण कभी अपना स्वरुप ही नहीं देखा पाया कि वास्तव मैं मैं हूँ क्या |
कई बार हमारे साथ यही होता है कि हम अपने प्रयत्नों से जो अर्जित नहीं कर रहे होते उनकी भी प्रसंशा हमे लोग दे रहे होते है , जबकि आत्मा की गहराइयाँ यह जानती है कि उसपर किसी और का हक है, परन्तु स्वार्थों के वशीभूत वह प्रसंशा हमें मिल रही है , प्रसंशा एक ऐसा नशा है जिसका आदी मनुष्य उस नशेड़ी की तरह व्यवहार करता है जैसे उसका अस्तित्व इस पर ही निर्भर होकर रहगया है , नशे के पूर्णतः आदी रोगी की तरह उसकी गति बड़ी दयनीय होती है जिसमे हर एक से यही याचना छुपी होती है वो कैसे भी आपकी प्रसंशा करें , मित्रों भिखारी को कम्बल ,पैसे , भीख देते में आप भिखारी से भी प्रसंशा की मांग कररहे होते हों कि भिखारी और देखने वाले आपको झूठी प्रसंशा दे सकें |
how are you -----fine looking --------smart
इन्हीं शब्दों के बीच कही छुपा है एक ऐसा व्यवहार जो आँखों ही आँखों में अपनी तुलना करके देखना चाहता है की मैं कैसे सामने वाले से श्रेष्ठ हूँ , मेरा पहनावा ,ओढ़ावा , चलने बैठने उठने बोलने चालने और तथा संसाधनों की बहुतायत या आभव सब मिलकर ही तो मैं समाज को प्रदर्शित कररहा होता हूँ और वह समाज आप भी उसे वैसा ही उत्तर देकर उसकी आत्मा को शांति देंगे इसलिए वह भी आपकी और देख रहा है , और हम सब एक सी मांग लेकर जीवन के समायोजन कररहे है ,एक दूसरे से हजारों शिकायतें लिए ,लेकिन ध्यान रहे कि हमें ये खोखलापन हमारा वही व्यक्तित्व दे रहा है जिसे हम बिना गुणों के प्रसंशा पाने के लिए दूसरों के हाथ में सुपुर्द कर चुके होते है |
भारतीय साहित्य और धर्म ने कई स्थानो पर यह लिखा कि मनुष्य को मनुष्यता और आदर्शों के गुण साहित्य और धर्म ही सिखा सकता है तो कई साहित्य कारों ने यही भाव लिखा
|| निंदक नियरे रखिये आँगन कुटी छबाय || बिन पानी साबुन बिना निर्मल कराइ सुभाय ||
अर्थात अपनी आलोचना करने वाले को अपने साथ ही रखना चाहिए जिससे वह आपको आपकी गलतियों के लिए समयानुसार सुझाव दे सके ,और इस प्रकार वह पानी और साबुन के बिना ही आपके आचार विचार और व्यक्तित्व को पवित्र कर सकता है मगर आज के युग में ------ जब भी आप समझाइश दे , ये आपका टाइम नहीं है ,किया ही क्या है आपने , मेरी गलती निकालेगा ---- how dare he say , और भी तरह तरह के वाक्यांश , सत्य का और आदर्शों की बात आपको स्ववकार ही नहीं है क्योकि जीवन ने आपको आपकी आत्मा के सामने आने का अवसर ही नहीं दिया आप भी जानते थे आप गुणों , और संसाधनो में समय और समाज से हारे हुए है और ऐसे में आपको केवल ऐसी झूठी प्रसंशा की आवश्यकता है जो आपको झूठा ही सही मगर थोड़ा सकूँ अवश्य देदे | दोस्तों यही कहीं से जीवन में बदलाव का सूत्र आरम्भ होगा बस इस नशे का त्याग सबसे आवश्यक है
एक दिन जीवन ने खुद को पलटकर देखा वहां हजारों लुटेरे खड़े थे जिसे जितना
बड़ा स्वार्थ था ,उसने उतना ही बड़ा झूठी तारीफ के अम्बार खड़े कर दिए और जैसे
ही हमे उस प्रसंशा का नशा चढ़ा उसने नशे की हालत में हमे कई बार हमें लूटा और
जैसे ही उसका मतलब ख़त्म हुआ वह जीवन से गायब हो गया ,और हम झूठी प्रसंशा के
आदी । वो लोग झूठी प्रसंशा के जाल में फसाने वाले शिकारी बने रहे ,हमारा नशा इतना अधिक हो गया था कि हमपर कि हर सच्चाई हमें रूढ़िवादी , हर आदर्श
और सत्य हमे दूसरे युग का वाक्य लगा,
आईना हमे पलट कर रख देना पड़ा क्योकि
झूठी प्रसंशा के नशे में हम स्वयं का सामना करने का साहस ही नहीं जुटा पाये
थेजीवन के सत्य के सामने हम यह मानाने को तैयार ही नहीं होते कि एक दिन यौवन, धन , बल सौंदर्य सब दूसरों के हक में होंगे समय के साथ चलता चलता शरीर मन मष्तिष्क सब हार जाएगा तब मन और आत्मा उस भाव को ढूंढेगी जिस पर वह सही मायनों में आपको प्रसंशा दे पाये और यह कह पाये कि आप जिंदगी के खेल के एक और सफल खिलाड़ी सिद्ध हुए आपको सलाम है |
जीवन के इस भाग में इन्हें भी आजमाइयें
- अपने व्यवहार और बात चीत में सामान्य रहने का प्रयत्न कीजिये क्योकि यहीं से आपको जीवन में सरलता का गुण आरम्भ होगा और यहीं से जीवन में सहजता के साथ व्यवहार करना सीखेंगे हम |
- आप अपने आपको पूर्ण मानकर ईश्वर को समर्पित कर अपना जीवन कार्य आरम्भ करें इससे आपको अपने आपमें पूर्णता का ज्ञान होने लगेगा और यही से आपको नया मार्ग प्राप्त हो सकता है |
- दूसरों की प्रसंशा के आशय से स्वयं को दूर रखें और यह माने कि यह प्रसंशा आपके उन कार्यों की है जिनमे सम्पूर्ण समाज परिवार परिवेश सबका हिस्सा है और यह प्रसंशा सबकी है |
- प्रसंशा का सबसे केंद्र है मन जब आपकी आत्मा आपको श्रेष्ठ साबित कर दे बस आप यह जान लीजिये की आपको अब किसी बाह्य प्रसंशा की आवश्यकता नहीं है
- उन वस्तुओं और गुणों पर प्रसंशा की कामना न करें जो समय और परिस्थिति के कारण बदल जाने वाली है क्योकि उनका स्वाभाव ही ऐसा है |
- सत्य आदर्श और सबका सम्मान करने का गुण ये सब आपमें होना ही चाहिए क्योकि इन गुणों के कारण ही आपको स्वयं से प्रसंशा प्राप्त होती है |
- प्रत्येक व्यक्ति में अलगअलग गुण विद्यमान है आप उससे यदि ज्ञान में श्रेष्ठ है तो वह रूप में श्रेष्ठ हो सकता है अर्थात वसमें भी कोई न कोई गुण है जिसकी प्रसंशा आपको करनी चाहिए |
- झूठी प्रसंशा करने वालों से सावधान और दूरी बनाये रखें क्योंकि ये आपके विकास पथ पर आपको अकर्मण्य बना देते है और आपका मानसिक स्तर भी ख़राब कर देते है |
- जीवन में काम बोले सुने ज्यादा और उससे ज्यादा चिंतन करें इससे हर इंसान का असली स्वरुप आपके सामने होगा और सहजता में आप ठगे नहीं जाएंगे |
- अपनी आलोचना करने वालों से अच्छा व्यवहार बनाये रखिये एक दिन आप इनके कारण ही उन्नति के शिखर पर पहुंचेंगे |
- हर प्रसंशा जप बाह्य व्यक्ति द्वारा की जा रही है उसका उद्देश्य क्या है इसका उत्तर आपको सहजता में मिल जाएगा आप वैसा ही व्यवहार करें जैसा अंतरात्मा कहें |
- भावावेश में कोई निर्णय न ले झूठी प्रसंशा के बाद आपको कड़वा जहर भी पीने को दिया जा सकता है यह हमेशा ध्यान रखें |