एक महात्मा जी ध्यान में लगे थे और उनका पुत्र अपनी माँ से लड़ रहा था क्या मैं कुछ नहीं कर पाउँगा ,लोगो के पिता उनका कितना सहयोग करते है , कितनी सहायता उनके परिवार वाले देते है , मगर मैं जब भी यह कहता हूँ कि मुझे धन दौलत और सांसारिक साधन चाहिए तो वो हंसने लगते है , मै जानता हूँ वो सब कर सकते है , माँ ने बात सुनी और कहा पुत्र आप धैर्य रखो वो ठीक ही सोच रहे होंगे , बच्चा पांव पटकता हुआ वहां से चला गया ,ऐसा अनेक बार हुआएक दिन बहुत क्लेश के बाद माँ ने पिता से पुत्र के सामने ही कहा कि आप एक समर्थ साधक हो क्या आप
अपने ही पुत्र को वह सब नहीं दे सकते जो वह चाहता है , मैंने आपसे जीवन भर कुछ नहीं माँगा ,आज मै आपसे यह प्रार्थना करती हूँ कि आप उसे सांसारिक साधन और उन्नति जो वो मांग रहा है सब देदें इसके बाद मैं आपसे कुछ नहीं मांगूंगी ,महात्मा गहरे सोच में डूब गए आँखों के किनोर गीले हो गए मन का बोझ चेहरे पर दिखने लगा फिर अचानक उन्होंने आसमान की और देख और गहरी स्वांस लेकर कहा मालिक जैसी आपकी इच्छा फिर वो बड़े भारी भाव से पुत्र और पत्नी की और आये और बोले हाँ बोलो बेटा आपको क्या चाहिए पुत्र माँ से बोला सबसे महंगा क्या है माँ ने तुरंत कहा सोना ,हीरा ,प्लेटिनम जो लोग गहनों में पहनते है ,पुत्र ने तुरंत कहा वो तो थोड़ा थोड़ा पहनते है , फिर वो पिता की और मुडा और बोला आप ऐसा कुछ करो कि जब भी मैं ये सब मांगूं तो वो भारी मात्रा में बरसने लगे , माँ तुरंत बोली २० -२० किलो की सिल्ली जैसे पुत्र बोला नहीं ५०-५०- किलो की सिल्ली ले रूप में , पिता सुनता रहा और परेशान होता रहा बहुत ज्यादा जिद करने पर उसने कहा जाओ मैं तुम्हे ये ही शक्ति देता हूँ मैं जानता हूँ यह ठीक नहीं है पर अब बेकार है ये ज्ञान की बातें आप खुले आसमान मेँ जाकर जब भी इस मंत्र का जाप आसमान की और देख कर करोगे तब जैसा चाहते हो वैसी ही बरसात होगी यह कहकर पिता ने पुत्र को एक मंत्र बताया और आसमान की और देख कर बड़े आर्त भाव से रोने लगे , पुत्र दौड़ कर सामने खुले आसमान के नीचे गया और आसमान की और देखकर मंत्र बुदबुदाया , फिर जोर जोर से मंत्र पढ़ने लगा , आसमान में भारी गड गड़ाहट होने लगी और सम्पूर्ण वातावरण एक धुंध से ढक गया ,धड़ाम धड़ाम की बड़ी आवाजें आती रहीं और जब वह सब शांत हुआ तो माँ ने देखा कि पुत्र के ऊपर बड़ी बड़ी सिल्लियां पडी है और वह निष्प्राण हो चुका है माँ पर अब केवल रोने के सिवा कुछ था ही नहीं और पिता गहरी समाधी में थे आंसुओं से भरे चेहरे के साथ |जैसे समाधिस्थ पिता का आंसू भरा चेहरा पूछ रहा हो कि कौन रहा सफल मै मेरा पुत्र या मेरी पत्नी और या समय ?ये आप तय करें |
जीवन इन्ही मानसिकताओं में घूमता रहता है कि वह केवल सफलता और सफलता के पायदानों पर खड़ा रहता है , उसे किसी भी अवस्था में न सुनने की आदत न रहे और वह अपने आपको सर्वश्रेष्ठ दिखा सके बस इसी उधेड़ बुन में पूरा जीवन धीरे धीरे निकलता जाता है और मन एवं मष्तिष्क अपने झूठे खोखले आदर्शों को सबसे अच्छा मानते हुए समाज और अपने आधिनस्थों पर थोपता रहता है , और भ्रम यह कि वह सर्व श्रेष्ठ है ।
मन का एक भाग सत्य को प्रोत्साहित करता है और दूसरा भाग असत्य को और सम्पूर्ण जीवन में अधिकाँश भाग में हम अपने आपको प्रोत्साहित करते हुए असत्य भाग के संपर्क में बने रहते है इससे न तो हमें अपनी त्रुटियों का आभास हो पाता है और न ही हम अपने आपको पूरे जीवन भर समझ ही पाते है , हर विषय वस्तु जिसे हम अपने लिए अच्छा समझते है आदर्श मान कर दूसरों को अमल करने सलाह देने लगते है जबकि वस्तुतः वे स्वयं सही गलत ही नहीं जानते ,समय का उत्तरार्ध ही उन्हें अंत में बताता है की वे मूल्य और आदर्श केवल धोखा और कपट और अपने अहंकार के द्योतक थे और उसका केवल एक परिणाम बचा है पश्चाताप और पश्चाताप और बिगड़ी हुई पीढ़ियों की दी जा रही यातना | ध्यान रहे सत्य के भाग से दीर्घ कालिक सफलता और संतोष मिलेगा और असत्य के भाग में केवल यातनाएं होगी |
अब यहाँ एक यह भी महत्व पूर्ण प्रश्न है कि आप सफलता असफलता समझते किसे है एक छोटा बच्चा पूजा कमरे में घुसकर दीपक की लौ खाना चाहता है या जलते हुए हवन में हाथ डालकर लाल और पीली चमकती लौ निकालना चाहता है माँ बार बार उसे बिना भाव के दूर हटा देती है बिना क्रोध और भाव के अब यदि बड़ा होकर यह कहे कि आपने मुझे सफल नहीं होने दिया तो बड़ी विडम्बना ही है न | हम सब भी हर रोज वो तमाम चीजों के पीछे भाग रहे होते है जिससे हमारा अस्तित्व ही संकट में पड़ सकता है मगर जिद और केवल जो हमारी सोच से नहीं हुआ वह गलत है तो हम असफल है या महात्मा ने अपने पुत्र को सोने की पटियां मंत्र देकर सफल बनाया जिससे उसकी मृत्यु हुई ,क्या सही है वह सफल हुआ या असफल यह आप समझें ,
सुख दुखे समेकृत्वा लाभा लाभो जयाजयो
सुख दुःख लाभ हानि जय पराजय सब ईश्वर के द्वारा निर्मित है और सशक्त साधन है जीवन को सभालने के उनमें जो लोग स्थिर भाव रखते है वो निश्चित रूप से जीत सकते यही , जो सामान्य मनुष्य बनकर दुःख हानि असफलता में अपना धैर्य खो देते है वो वास्तव में सफलता और जीवन का दोनो का ही अर्थ नहीं जानते, सार यह है कि सब में शांत प्रसन्न रह कर अपने संकल्पों को दोहराते रहे आपको सफलता अवश्य मिलेगी |
सफलता और असफलता के लिए निम्न का प्रयोग करें
अपने ही पुत्र को वह सब नहीं दे सकते जो वह चाहता है , मैंने आपसे जीवन भर कुछ नहीं माँगा ,आज मै आपसे यह प्रार्थना करती हूँ कि आप उसे सांसारिक साधन और उन्नति जो वो मांग रहा है सब देदें इसके बाद मैं आपसे कुछ नहीं मांगूंगी ,महात्मा गहरे सोच में डूब गए आँखों के किनोर गीले हो गए मन का बोझ चेहरे पर दिखने लगा फिर अचानक उन्होंने आसमान की और देख और गहरी स्वांस लेकर कहा मालिक जैसी आपकी इच्छा फिर वो बड़े भारी भाव से पुत्र और पत्नी की और आये और बोले हाँ बोलो बेटा आपको क्या चाहिए पुत्र माँ से बोला सबसे महंगा क्या है माँ ने तुरंत कहा सोना ,हीरा ,प्लेटिनम जो लोग गहनों में पहनते है ,पुत्र ने तुरंत कहा वो तो थोड़ा थोड़ा पहनते है , फिर वो पिता की और मुडा और बोला आप ऐसा कुछ करो कि जब भी मैं ये सब मांगूं तो वो भारी मात्रा में बरसने लगे , माँ तुरंत बोली २० -२० किलो की सिल्ली जैसे पुत्र बोला नहीं ५०-५०- किलो की सिल्ली ले रूप में , पिता सुनता रहा और परेशान होता रहा बहुत ज्यादा जिद करने पर उसने कहा जाओ मैं तुम्हे ये ही शक्ति देता हूँ मैं जानता हूँ यह ठीक नहीं है पर अब बेकार है ये ज्ञान की बातें आप खुले आसमान मेँ जाकर जब भी इस मंत्र का जाप आसमान की और देख कर करोगे तब जैसा चाहते हो वैसी ही बरसात होगी यह कहकर पिता ने पुत्र को एक मंत्र बताया और आसमान की और देख कर बड़े आर्त भाव से रोने लगे , पुत्र दौड़ कर सामने खुले आसमान के नीचे गया और आसमान की और देखकर मंत्र बुदबुदाया , फिर जोर जोर से मंत्र पढ़ने लगा , आसमान में भारी गड गड़ाहट होने लगी और सम्पूर्ण वातावरण एक धुंध से ढक गया ,धड़ाम धड़ाम की बड़ी आवाजें आती रहीं और जब वह सब शांत हुआ तो माँ ने देखा कि पुत्र के ऊपर बड़ी बड़ी सिल्लियां पडी है और वह निष्प्राण हो चुका है माँ पर अब केवल रोने के सिवा कुछ था ही नहीं और पिता गहरी समाधी में थे आंसुओं से भरे चेहरे के साथ |जैसे समाधिस्थ पिता का आंसू भरा चेहरा पूछ रहा हो कि कौन रहा सफल मै मेरा पुत्र या मेरी पत्नी और या समय ?ये आप तय करें |
जीवन इन्ही मानसिकताओं में घूमता रहता है कि वह केवल सफलता और सफलता के पायदानों पर खड़ा रहता है , उसे किसी भी अवस्था में न सुनने की आदत न रहे और वह अपने आपको सर्वश्रेष्ठ दिखा सके बस इसी उधेड़ बुन में पूरा जीवन धीरे धीरे निकलता जाता है और मन एवं मष्तिष्क अपने झूठे खोखले आदर्शों को सबसे अच्छा मानते हुए समाज और अपने आधिनस्थों पर थोपता रहता है , और भ्रम यह कि वह सर्व श्रेष्ठ है ।
मन का एक भाग सत्य को प्रोत्साहित करता है और दूसरा भाग असत्य को और सम्पूर्ण जीवन में अधिकाँश भाग में हम अपने आपको प्रोत्साहित करते हुए असत्य भाग के संपर्क में बने रहते है इससे न तो हमें अपनी त्रुटियों का आभास हो पाता है और न ही हम अपने आपको पूरे जीवन भर समझ ही पाते है , हर विषय वस्तु जिसे हम अपने लिए अच्छा समझते है आदर्श मान कर दूसरों को अमल करने सलाह देने लगते है जबकि वस्तुतः वे स्वयं सही गलत ही नहीं जानते ,समय का उत्तरार्ध ही उन्हें अंत में बताता है की वे मूल्य और आदर्श केवल धोखा और कपट और अपने अहंकार के द्योतक थे और उसका केवल एक परिणाम बचा है पश्चाताप और पश्चाताप और बिगड़ी हुई पीढ़ियों की दी जा रही यातना | ध्यान रहे सत्य के भाग से दीर्घ कालिक सफलता और संतोष मिलेगा और असत्य के भाग में केवल यातनाएं होगी |
अब यहाँ एक यह भी महत्व पूर्ण प्रश्न है कि आप सफलता असफलता समझते किसे है एक छोटा बच्चा पूजा कमरे में घुसकर दीपक की लौ खाना चाहता है या जलते हुए हवन में हाथ डालकर लाल और पीली चमकती लौ निकालना चाहता है माँ बार बार उसे बिना भाव के दूर हटा देती है बिना क्रोध और भाव के अब यदि बड़ा होकर यह कहे कि आपने मुझे सफल नहीं होने दिया तो बड़ी विडम्बना ही है न | हम सब भी हर रोज वो तमाम चीजों के पीछे भाग रहे होते है जिससे हमारा अस्तित्व ही संकट में पड़ सकता है मगर जिद और केवल जो हमारी सोच से नहीं हुआ वह गलत है तो हम असफल है या महात्मा ने अपने पुत्र को सोने की पटियां मंत्र देकर सफल बनाया जिससे उसकी मृत्यु हुई ,क्या सही है वह सफल हुआ या असफल यह आप समझें ,
एक परम सत्ता सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को नियंत्रित कररही है और हम सब उस सत्ता के क्रियान्वयन स्त्रोत है हम अपने बारे में वह सब नहीं जानते जो वह सत्ता जानती है और वह किसी रूप में भी हमारा अहित नहीं होने देगी यह विश्वास यदि मन मष्तिष्क में स्थिर हो जाए तो आपको सफलता का पूर्ण मायने प्राप्त हो जावेगा ,जो सफलता मनुष्य को आत्म संतोष और मानसिक शांति दे पाये बस वही सफलता श्रेष्ठ है वैसे तो यहाँ कितने ही सम्राट अपने अपने अनुसार स्वयं को सफल बता कर भी अंत में मानसिक शांति के बिना ही दुनियां से चले गए है जिन्हे जीवन ने असफल सिद्ध कर दिया |
आज आवश्यकता इस बात की नहीं कि हम संसाधनों का ढेर बन कर बैठे रहें और स्वयं को सफल सिद्ध समझते रहें ,मित्रों पद , बल, संसाधन ,रूप रंग और सत्ता बहुत दिनों तहतक आपके साथ नहीं चल पाएगी , केवल आपकी सफलता में यदि आपका आत्म संतोष का भाव उत्पन्न हुआ है तो वह आपकी सच्ची सफलता होगी
सुख दुखे समेकृत्वा लाभा लाभो जयाजयो
सुख दुःख लाभ हानि जय पराजय सब ईश्वर के द्वारा निर्मित है और सशक्त साधन है जीवन को सभालने के उनमें जो लोग स्थिर भाव रखते है वो निश्चित रूप से जीत सकते यही , जो सामान्य मनुष्य बनकर दुःख हानि असफलता में अपना धैर्य खो देते है वो वास्तव में सफलता और जीवन का दोनो का ही अर्थ नहीं जानते, सार यह है कि सब में शांत प्रसन्न रह कर अपने संकल्पों को दोहराते रहे आपको सफलता अवश्य मिलेगी |
सफलता और असफलता के लिए निम्न का प्रयोग करें
- जीवन में हर रोज हजारों लक्ष्य हमारे सामने होंगे ,और हर जगह श्रेष्ठ सिद्ध होना चाहेंगे जहां हम श्रेष्ठ सिद्ध नहीं हो पाये वहां हम क्रोध , दुःख ,अनमनेपन और क्षोभ से ग्रसित न होकर अगले प्रयासों को सार्थक करने की पहल करें तो जल्द सफलता मिलेगी |
- जीवन को किसी एक असफलता से जोड़कर भविष्य की की जावे क्योकि जीवन के हजारों लक्ष्यों में अनगिनत ऐसे है जहाँ केवल आप ही सफल हो सकते है |
- जीवन में अपनेत्रुटियों की ग्राह्यता बनाये रखिये अपनी त्रुटियों के लिए दूसरों को दोष न दें यदि आप अपनी त्रुटि स्वीकार कर पाये तो भविष्य आपको जल्द ही सफल बनाएगा यह विश्वास बनाये रखिये |
- सफलता आपको अंतरात्मा के सत्य से आपको सराहे बस वही सफलता श्रेष्ठ हो सकती है क्योकि केवल भौतिक भाग दौड़ की सफलताएं आपका सम्पूर्ण ख़त्म कर देती है |
- एक परम सत्ता आपको अनुदेशित कर रही है और आपकी सफलता उसका उद्देश्य भी है आप उसे जानने का प्रयत्न एवं आत्मा की आवाज से उसे सुनने का प्रयत्न करें आपको पूर्ण सफलता मिलेगी |
- सफलता के लिए स्वयंको अति प्रयत्न शील होना चाहिए जहाँ भी थोड़ा कमी लगे वहां अपने प्रयासों से उसे अधिक समझ कर हल प्रयत्न करें |
- सफलता के लिए आत्म चिंतन करना आवश्यक है ,और आत्म चिंतन सदैव सकारात्मक ही होना चाहिए इससे आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार स्वयं होने लगेगा |
- जो विचार आपको अधोइक परेशान कररहा हो उसे अपनी ध्यान शक्ति सामने खड़ा करके यह कहें की आपको बाद में सोचते है ऐसा ३-४ बार दोहराएं |
- सफलता प्रसन्नता देती है तो असफलता आपको एक अध्याय पढ़ाती है कि आप सफलता के लिए एक प्रयास और करें जिसमे आपकी कर्म शक्ति और विकसित हो पाये |
- असफलता को एक भाव से जीने वाले जीवन के सम्पूर्ण क्षेत्र में स्वयं महान सफलता अर्जित कर लेते है क्योकि वे जीवन को जीतने की शक्ति रखते है |
- जीवन का प्रतियोगी भाव से आंकलन नहीं किया जा सकता , दूसरों से अपनी तुलना कभी नहीं करें और अपनी अंतरात्मा के अनुरूप निर्णय लेने का प्रयत्न करें |
- सकारात्मक परामर्श पर नकारात्मक शंशय खड़े मत करें क्योकि जीवन में आपको सकारात्मक दिशा देने वाले काम लोग ही होते है |
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