एक समय की बात है की एक चोर रात्रि के अँधेरे में अपने घर के बाहर निकला सोचा आज कोई बड़ा हाथ लग जाए तो अच्छा है और इसी उधेड़ बन में वो धनाढ्यों के निवासों के चक्कर लगता ,राज्य प्रासादों के आस पास मंडराता रहा मगर कहीं भी उसको सुरक्षा में ढील नहीं मिली सुबह हो चली थी , हार थक कर लौटते हुए अचानक उसकी नजर एक झोपड़ी पर गई दरवाजा अध खुला था ,कुटिया में एक साधुबैठा था उसके सामने चार पक्तियां लिखी थी ,
- हर कर्म का फल तुझे ही मिलना है
- अनंत कामनाये या शांत मन क्या चाहिए तुझे
- ईश्वर सब देख रहा है उसे मन में देख
- मै तुझे भी सब दूंगा सब्र रख
और अंदर झांक के देखा तो पाया , पूर्ण नीरवता थी और ध्यान से देखने पर उसने देखा की एक साधु महाराज अपने भगवान के ध्यान में पूरी तरह डूबे है ,एक कम्बल जमीन पर बिछा है एक कमंडल पास में रखा है चोर ने सोचा यही सही , उसने दबे पाँव जाकर कमंडल और कम्बल उठाया और चलता बना ,ध्यान के बाद साधु महाराज ने सोचा ईश्वर कुछ नया देना चाहता हैमुझे , समय बीतता गया एक रोज साधु महाराज सोकर उठ भी नहीं पाये की एक पागल जैसा आदमी चिल्लाता हुआ उनके पावों में लिपट गया बोला ये लो अपना कम्बल और कमंडल, मेरा जीना हराम कर दिया है इन्होनें , जिस दिन मै ये चोरी करके यहाँ से आगे गया तो एक और घर से गहने चुरा कर कम्बल में बांध कर निकलने को ही था कि एक हल्दी चढ़ी बच्चीको मुस्कुराते हुए , सोते देखा और जल्दी में मै भाग तो गया मुझे बार बार वो चारों बाते मेरा पीछ करती रहीं और वो लड़की, उसके स्वप्न ,उसकी गरीबीमें भी शांती और अपनी लड़की का ध्यान आता रहा और जब मै वो गहने लौटने गया तो मुझे पकड़ कर करावास में डाल दिया गया ,मै कारावास में भी एक पल को चैन से नहीं रह पाया हूँ वो चारो बाते तीर जैसा मेरे अंतः को बार बार घायल कररही है , जब से आपका कमंडल और कम्बल ले गया हूँ तब से एक दिन भी न सो पाया हूँ न मेरी प्यास बुझ पाई है मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा साधु हँसे , पुत्र जब तू ये ले जारहा था तब मैंने तुझे देख लिया था सोचा ईश्वर ने तुझे अपनी सेवा के लिए चुन लिया है पुत्र
जब तक मन में कुछ पाने और परिवर्तन के लिए व्याकुलता नहीं हो तब तक जीवन में कुछ पाया ही नहीं जा सकता या वह पाया हुआ हमे संतोष नहीं दे सकता |
जब तक मन में कुछ पाने और परिवर्तन के लिए व्याकुलता नहीं हो तब तक जीवन में कुछ पाया ही नहीं जा सकता या वह पाया हुआ हमे संतोष नहीं दे सकता |
चोर शरणागत होकरमहात्मा की शरण में चला गया और एक दिन बहुत बड़े सिद्ध योगी के रूप में अवतरित हो गया |
मित्रो अधिकांश प्रबुद्ध अपनी कामनाओं के जाल में इस तरह से लिप्त है कि आॅंख बंद करके भागे चले जारहे है जिसे हम अपने वर्त्तमान के लाभ का विषय मानते है उसके ही दूरगामी परिणामों से हम भय भीत हो जाते है , और उनसे भागने का प्रयत्न करते है ,जीवन की सार्थकता और उसकी सकारात्मकता को अपने लाभों के लिए विस्मृत कर देना चाहते है ,शायद हमारे आँख बंद करने से परिस्थितियां अनुकूल नहीं बन पायेंगीं वरन उसके लिए हमें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा और यह याद रखें की हमारे दृष्टिकोण बदलते ही हमारी क्रियात्मकता स्वयं सकारात्मक होकर हमारे ही लिए नहीं अपितु हमारे सम्पूर्ण समाज के लिए एक उदाहरण का रूप ले लेगी |
परिवर्तन धनात्मक एवं ऋणात्मक क्रियान्वयनके साथ हमेशा शेष रहता है केवल हमारी सोच उसे जिन्दा या मुर्दा साबित करती रहती है और हम उसे ही सच समझ कर जीने के आदि होते रहते है ,अपने आपको दोषारोपित करते रहते है , जबकि हमारा चिंतन और विषय के आकलन की दृष्टी सकारात्मक होने से ये सारी विपरीत परिस्थितियां हमारे लिए सकारात्मक रूप में खड़ी हो सकती है |
हम कर्तव्य और कर्त्तव्य बोध से बंधे चलरहे है, हमारा हर काम यंत्रवत होता जा रहा है , पीढ़ियों की आदतों के आधार पर हम भी भागे चले जा रहे है अपनी वंश परम्परा निभाते हुए , इस बात को अनदेखा किये कि समाज , संस्कृति , आचारों विचारों में तीव्र गामी परिवर्तन होरहे है और नई सोच तथा उनके अनुरूप हमारी सकारात्मक सोच में भी वृद्धि गामी परिवर्तन होने ही चाहिए |
हम कर्तव्य और कर्त्तव्य बोध से बंधे चलरहे है, हमारा हर काम यंत्रवत होता जा रहा है , पीढ़ियों की आदतों के आधार पर हम भी भागे चले जा रहे है अपनी वंश परम्परा निभाते हुए , इस बात को अनदेखा किये कि समाज , संस्कृति , आचारों विचारों में तीव्र गामी परिवर्तन होरहे है और नई सोच तथा उनके अनुरूप हमारी सकारात्मक सोच में भी वृद्धि गामी परिवर्तन होने ही चाहिए |
कोई भी व्यक्ति , समाज , और संस्कृति में यदि समयानुसार सकारात्मक परिवर्तन न हो पाये तो वह संस्कृति , अपने सांस्कृतिक प्रतिमानों के साथ स्वयं नष्ट होजाती है , विश्वकी अनेक सभ्यताओं का मूल्यांकन करने से हमे यह स्पष्ट हो जाएगा कि जिन सभ्यताओं ने अपने मूल सिद्धांतों के साथ सकारात्मक परिवर्तनों को अपने में स्थान दियाहै केवल वे ही आज भी अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल रहे है ,समयके परिवर्तनों के साथ सभ्यता, सोच , और नैतिक मूल्यों के उत्थान को ध्यान में रख कर किये गए परिवर्तन सम्पूर्ण मानवीयता को पुरस्कृत कर सकते है |
परिवर्तन के इस युग में जो तथ्य महत्व पूर्ण है वे निम्न हो सकते है |
- सकारात्मकता का विचार अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है और वह किसी भी परिस्थिति में लुप्त नहीं हो सकता क्योकि हर स्थिति में सकारात्मकता का बीज अवश्य बना रहता हैं बस उसे पल्लवित करने की चेष्टा की जानी चाहिए
- हमें हरदिन सकारात्मकता को नवीन दृष्टी से सोचना आवश्यक है जब तक हम अपने हर कर्त्तव्य को नयी दृष्टी से नहीं सोच पाएंगे तब तक हमारे विचार और परिवर्तन संभव ही नहीं है |
- तात्कालिक लाभों के लिए अपने से समझौता न करे क्योकि यदि हमने अपने कर्त्तव्य में अपने अडिग आदर्शों को आधार नहीं बनाया तो हमारी सारी उपलब्धियां समुद्र की रेत पर बने चित्रों जैसी होगी जिनका जीवन बहुत छोटा होता है |
- राष्ट्र समाज ,संस्कृति सब लाखों करोडो में से कुछ एक लोगो से यह आशा करते है कि वे आएंगे और एक नई दिशा में मोड़ कर समाज राष्ट्र और सामाजिक प्रतिमानों को उन्नत बनाएंगे हमे उनमे से ही बनकर स्वयं को सिद्ध करना है |
- मनुष्य ईश्वर की सर्वोच्च कृति है और उसे यह स्थान इस लिए प्राप्त है कि उसमे परहित का भाव , परमार्थ , सकारात्मक परिवर्तन , और भविष्य को अपने त्याग से परिष्कृत करना आता है , और यही सकारात्मक दृष्टी उसे महानतम बनाने में सक्षम है |
- हरदिन किये जाने वाले कार्य को उसकी उत्तम विधिमे पूर्णकरने का संकल्प किया जावे यह भी विचार किया जाना चाहिए कि मेरे कार्य से समाज राष्ट्र और सम्पूर्ण सांस्कृतिक सभ्यता को क्या लाभ हो पायेगा यदि उत्तर धनात्मक है तो जीवन सफल सिद्ध होगा |
- नवीन परिवर्तनों को इस प्रकार स्वीकार कियाजाना चाहिए जिससे पूर्व संस्कृति , सभ्यता के मूल रूप से छेड़ छाड़ न होते हुए उसके लाभकारी रूप, आदर्शों की ऊंचाइयां और सकारात्मक क्रियान्वयन को और प्रभावी बनाया जा सके |
- हर घटना को आप समालोचना के दृष्टी कोण से विचार करके अवश्य देखे क्योकि इसके बाद ही आप उस घटना को समाज के लिए सकारात्मक सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत कर पाएंगे |
- प्रथम दृष्टी में किसी भी क्रियान्वयन को नकारात्मक सिद्ध करने का प्रयास न करें उसके विश्लेषण के बाद ही उसकी धनात्मकताओं को आत्मसात किया जा सकता है |