Saturday, December 15, 2012

अपेक्षा और उपेक्षा ही दुःख का कारण है

जीवन भर आदमी को केवल दो ही चीजें परेशान  करती है प्रथम अपेक्षा और दूसरी है उपेक्षा ,जीवन से, अपनों से, समाज से और परायों से हम सब से कुछ न कुछ चाहते रहते है जिससे हम कुछ नहीं चाहते उससे इतना तो चाहते ही है की वह हमारी स्वायंभू  सत्ता को आँख बंद करके मानता रहे और वह हमसे छोटा है उसे यह ध्यान बना रहे ।दूसरी और हमे सबसे ज्यादा आहात केवल यह करता है की कोई हमे उपेक्षित करके छोड़ दे और हम उस उपेक्षा के लिए कुछ न कर सके ।महाभारत के महा योधा गुरु पुत्र अश्वथामा की हत्या न करके उसे उपेक्षित करके छोड़ देना यही दर्शाता है की आदमी के लिए उसकी उपेक्षा करदेना मृत्यु से भी अधिक बड़ा दंड है।मृत्यु उसके जीवन की भौतिक  यातनाओं को समाप्त करके नए सिरे से उसे पुनर्विचार  की स्वायत्तता प्रदान कर देती है ।

सुख मय जीवन के लिए सबसे पहले यही विचार किया जाना चाहिए कि  जीवन  से बहुत सी अपेक्षा की ही नहीं जाएँ ,हम अपने जीवन की हर छोटी स्थिति के लिए भी किसी न किसी पर आधारित हो बैठते है या सामने वाले से अधिक अपेक्षा कर  बैठते है परिणाम यह होता है कि  हमारे मन और आत्मा को वह  अन्दर तक ऐसा दुःख देजाती है जिससे लम्बे समय तक हम अपने आपमें दुखी होकर रह जाते है और जीवन इसीतरह दुःख यातना और संघर्ष का मायने बना रहता है कोई आपके मन को और आत्मा के दर्द तक नहीं पहुच पाता  मन को अपना दर्द खुद उठाना होता है अकेले, निःसहाय  और बेबस सा  ।


जरूरत है कि  अपने आपसे भी न बहुत अपेक्षा  रखी  जाएँ न उपेक्षा से मन को दुखी होने दें एक अडिग और चिरस्थाई विश्वास रखे की आप उस परम सत्ता के एक शक्तिशाली अंश हो और आपका कर्तव्य आपके तमाम जीवन को सफल बनाएगा यदि आप जीवन को केवल अपने लिए जिए तो शायद आपने अपना जीवन व्यर्थ गँवा दिया और आपको बहुत सी स्थितियां विपरीत रूप में उठानी होंगी ।यदि आपने अपने जीवन के साथ दूसरों को समझने का प्रयत्न कर लिया तो शायद आप् जीवन  के मूल  को सफल बना  कर जीवन  की दिशा को सही मार्ग दे सके ।


दोस्तों  न  तो जीवन से अपेक्षा की जावे की वह आपको  आपके कर्तव्य से अधिक बहुत कुछ दे जायेगा , या आपको हर उद्देश्य में सिद्ध साबित कर देगा यदि आपने यह सोचा तो आपको दुःख मिलाना स्वाभाविक है और आपकी व्यर्थ की गई अपेक्षा भी आपके दुःख का कारण बन सकती है आप मजबूत इरादों के साथ बिना किसीसे अपेक्षा किये उस परम शक्ति के विश्वास के सहारे अपने लक्ष्य की और बढे सफलता खुद आपके कदमोँ  में सर झुका
देगी ।

Tuesday, October 2, 2012

हारता सा लेवल ऑफ़ सेटिसफ़ेकशन

बहुत छोटा था  मै ढेर खिलोने थे मेरे पास जो आता था नया खिलौना जरूर लाता था और मै  बिना वक्त गंवाए नए खिलोनोसे खेलने में जुट जाता था और थोड़ी ही देर में मेरा मन उस खिलोने से भर जाता था और मन फिर एक नए खिलोने की आशा करने लगता था ।पिता जी नाराज होते हुए कहते थे इतना ढेर लगा है मगर तुम्हारा पेट नहीं भरता मन तो तुम्हारा भर ही नहीं सकता कल तुम ऐसे ही  खिलोने से खेलते हुए यह कह रहे थे कि  बस ये अकेला बेस्ट था मगर पलक झपकते ही तुम दूसरे खिलोने की तरफ बढने  लगे मुझे लगा की यह पेट भरने का नहीं मन भरने का सवाल है , मै  खिलोनो की कमी से नहीं अपितु मन के उस भाव से अपूर्ण  था जिसमे संतोष का भाव पलता है ।दोस्तों अरबो की संपत्ति और हर तरह का शारीरिक मानसिक सुखों के ढेर भी आपको कम और संतोष  नहीं दे पायेगे  क्योकि आपने कभी रुक कर जीना सीखा ही नहीं था और बड़े होने पर  भी आप अपने बचपन की उस हवस को नहीं भूल पाए जिसमे संतोष और न्याय होता है , आज परिवर्तन चाहता है ।हर चीज जिन्दगी में बचपन का खिलौना नहीं होती ,आप बचपन का नाम लेकर जीवन भर अपने मन की अच्छी बुरी आदतों को छुपाते रहे और दूसरों पर दोषारोपण करते रहे वस्तुत आप स्वयं ही अपने मन भाव और आदर्शों की आस्थाओं से बहुत दूर है आपका धर्म केवल लाभ कमाना है कैसे भी किसी हद  पर जाकर भी ,चाहे उससे किसीको कितना ही दुःख क्यों न पहुचे आपको केवल अपने स्वार्थों से प्यार है ।आपके सम्बन्ध केवल अपने से है और आप अपने सामने किसीको जानते ही नहीं है ।  

दोस्तों जीवन किसी ऐसे सुख संतोष की खोज में हमेशा भटकता रहा है जिसमे उसे हर पल जीवन का मूल संतोष मिलाता रहे ,कभी उसे अपना मन चाह न करने का दुःख होता है और कभी सब कुछ अपने मन से करने के बाद भी आत्म ग्लानी होती है क्योकि हर वह कदम जिसपर केवल शारीरिक आपूर्तियों का भाव हो उससे मन कैसे संतुष्ट होगा
जब आप शरीर की हवस के पीछे भागते रहोगे तो शरीरऔरअधिक चीत्कार कर आपसे और सुखों साधनों कीमांग करेगा , सबको अपने आधीन हर गलत काम पर भी प्रसंशा  के लिए लालायित रहेगा जबकि मेरा स्वयं का मन भी जानता है की मै  इन कार्यों में पूर्णत गलत हूँ जिसके लिए मै स्वयं अपराध  बोध में हूँ ।

मित्रों मन और बुद्धि यह जानती है की कौन सा कार्य मेरे लिए अपराध बोध बनेगा , पर  आदमी का स्वाभाव ऐसा ही है कि वह स्वतंत्रता मिलते ही अपनी उस हवस को जिसे उसे मजबूरन छुपाना पड़ा था एका  एक विस्फोट के साथ क्रियान्वित कर  बैठता है जिसका अंतिम छोर उसे भी नहीं मालूम ,अच्छे  बुरे अपने पराये की मानसिकता स्वयं या अपनों के मान अपमान से उसका कोई सरोकार नहीं होता  वह यही जान पाता है कि  उसकी हवस क्या है और उसे कैसे पूरा किया जाए ।यही क्रम चलते चलते पूरा जीवन असंतोष अशांत और कोलाहल से भर जाता है ।जीवन के लिए कुछ नया होता ही नहीं है मन किसी भी जगह ठहरने को तैयार नहीं होता परिणाम जीवन गहरा प्रश्न बनने लगता है ।

बस आज जरूरत केवल  यह है कि अपना आत्म चिंतन करें जब आप स्वयं अपने में खो गए तो आपका कोई  था ही कहा न आपके पास कोई सम्बंध था न किसी सम्बन्ध पर आप थे बस एक हुजूम था जिसके अपने अपने स्वार्थ थे और वहाँ  हर एक स्वार्थी था अपने आपके लिए दोस्तों यही दुनिया का वह कटु सत्य है जिसे आप समझने में पूरा जीवन लगा देते है ।आज यदि आप चाहे तो जीवन को फिर अपनी गति दे सकते है मगर शर्त यह है की आप अपने हवस अपने नशे और अपनी मानसिकता के संकीर्ण दायरों को तोड़ कर इनसे बहार निकलने का संकल्प तो ले सकें।

Saturday, September 29, 2012

स्वार्थी, प्रेक्टिकल या मोर्डन

 स्वार्थी, प्रेक्टिकल या मोर्डन बड़े छोटे शब्द है परन्तु शायद आज की युवा पीढ़ी के लिए ये शब्द उनकी दबी पिसी  हीन  भावना को प्रस्तुत करने में प्रमुख भूमिका निभा रहे  है । छोटे छोटे ग्रामों कस्बो और संयमित
 परिवारों में अनुशाशन में पलने वाले बच्चे आधुनिक शिक्षा और गिनी चुनी डिग्रियों से शिक्षित होकर स्वयं को बेहद मोर्डन और आधुनिक समझने की कोशिश करने लगते है परिणाम यह कि उनके हर कार्य में एक घोर निराशा घोर हीन भावना और समाज में आधुनिक बनने की होड़ छुपी होती है जो स्वयं  एक ऐसी हीन भावना को प्रदर्शित करती है जिसमे शारिरिक संसाधनों और भौतिक साधनों की अधिकता अवश्य हो सकती है मगर एक लम्बे समय बाद खुद अपने खोखले व्यक्तित्व और शारीरिक अक्षमताओं  को ही हम सब शाप बना बैठते है ।

दोस्तों जीवन कोई आपसे उन सब कार्यों का  हिसाब जरूर मागेगा जो आप आज कर रहे है ,आदर्श मूल्य और सत्य का मूल्य केवल वो समझ सकते है जो जीवन को केवल भोग न समझ कर उससे ज्यादा मूल्य के  पक्ष धर हो
आपने यदि जीवन को केवल हवस और ऐश का माध्यम समझा है तो आपका कोई दोष नहीं है आप यदि हर सम्बन्ध को यूज  एंड थ्रो की माल संस्कृति जैसा समझते है तो आप प्रेक्टिकल है आज समाज में क्या नहीं हो रहा और अधिक और अधिक भोगवादी बन कर  हम अपनी मूल पृकृति को ही ख़त्म करने पर आमादा है यह कैसा सुख चिंतन या प्रेक्टिकल होना है जिसमे केवल पैसा शराब माल और होटल की लम्बी स्याह राते है और वैसा ही कुछ भविष्य है हमारे आने वाले कल का ।
चलिए यह विचार तो शायद गंवारो का और उस समाज का विषय हो जिनका हर समय केवल शोषण हुआ हो और शायद ये लोग बने ही इसलिए हों कि वो किन्ही उन प्रेक्टिकल लोगो के काम आ सके जिन्हें अपने उद्देश्यों के लिए कुछ भी किसी भी सीमा पर जाकर हर रिश्ते और हर सम्बन्ध को यूज  करना आता है  और यूजर तो अच्छा मनेजर होता है स्वार्थी  नहीं हो सकता।समय शायद इसका सही उत्तर दे सकता है ।
हर जगह कोई आपके हर कार्य पर नजर लगाए है दोस्त आप सबकी नजर से अपने झूठ  फरेब और मक्कारी का सहारा लेकर बच जाओगे हर आदमी को पागल बना कर खुदको श्रेष्ठ साबित भी कर लोगे पर   क्या   जीवन का सत्य और आपकी आत्मा   इस  से खुश  और शांति पा  सकेगी    यह खुद प्रश्न   चिन्ह है इश्वर  खूब खुश रखे  उन प्रेक्टिकल लोगों को  जिनका जीवन हर सम्बन्ध केवल यूज एंड थ्रो की तरह प्रेक्टिकल है 

Wednesday, August 15, 2012

ऐ  वतन वाले  वतन का और ऊँचा नाम  कर 
जिन्दगी जो चाहिए तो देश का कुछ काम कर 
ऐ श्रमिक तुम हो महान  जय जवान और जय किसान 

न चाहिए जन्नत  किसी की न किसी की आबरू  आबरू 
हम जियें और तुम जियो दौनो रहेंगे रु बरु  रूबरू 
खून अपना और पसीना दौनो अमृत धार कर 
जिंदगी जो चाहिए तो देश का कुछ काम कर 
 स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर  अनन्त बधाइयाँ

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...