Friday, August 19, 2011

क्रांति बिगुल से स्वर मिलाएं

समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जों तटस्थ है समय लिखेगा उसका भी अपराध

जीवन चलता रहता है युग बदलते रहते है ओर अनवरत चलता रहता है एक दीर्घ कालीन शोषण हर शक्ति संपन्न कमजोर का शोषण कर अपने आपको शेष्ठ बताने की कोशिश करता है |आज राष्ट्र इन्हीं शक्ति सम्पन्नों के हाथ की कठपुतली सा बन गया है उनके शोषण का केंद्र बना समाज अनेक प्रकार से प्रताड़ित किया जारहा है ,सब अपने स्वर में अपनी शक्ति के हिसाब से समाज को शोषित करने में जुटे है |

भारत में समाज में याप्त भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो गई है की आम आदमी का जीना दुश्वार हो गया है नोकारियों केलिए भटक कर आत्म हत्या करने वाले युवक गरीबी रेखा के अंदर खिसकता समाज ,राष्ट्र के निर्माण ढाचें को खोखला बनाने का काम भी इसी भ्रष्टाचार ने किया है |गरीबी के बड़े चक्रों में फंसी अर्थव्यवस्था में दो जून का भोजन नही जूता पारही लोग अभावों में मर रहे है ओर शक्ति सम्पान्न अपने गोदामों ओर घरों में अकूत संपत्ति अर्जित करने में व्यस्त है |

गांधी की अपरिगृह मानव मूल्यों ओर सबसे पिसे तबके को न्याय दिलाने का मूल भाव आज अन्ना हजारे ने अपने हाथ में लिया है ओर वो एक नव क्रान्ति का बिगुल लेकर समाज में खड़ा हुआ है ,आज समाज का हर वर्ग शोषण का शिकार है उसका भला चाहने वाले खुद साधनों का ढेर बन गए मगर आम आदमी ओर गरीब ओर बेसहारा तथा साधन हीन होगया है
जों लोग कल अन्ना को बुला कर अपने साथ समझाने खरीदने की कोशिश कर रहे थे पलक झपकते ही अन्ना को भ्रष्ट ओर गिरा हुआ बताने लगे |सत्ता के गलियारों ने आम आदमी को बहुत बुरी तरह ठगा है रक्षक को भक्षक बनते देखा है ओर हर क्रान्ति वीर को नेस्तनाबूद करते देखा है |

धर्म संस्कृति ओर गांधी वादी विचारधारा के सत्याग्रह पर पुलिस की बर्बरता पूर्ण कार्यवाही में लहुलुहान आम आदमी आज अन्ना के साथ हाथ बांधे खड़ा है ,पहले भी भाहूत पिटा सिमटा ओर शोषित हुआ है अब वह संघर्ष के लिए तैयार है एक जागृत भारत उसे कुचलने की साजिश अब फेल होगई है ओर आज आम आदमी के हाथ में वो गर्दन गई है जों उसकी इस दशा के लिए जिम्मेदार है |अन्ना नही आज देश का हर युवा यह समझ गया है कि यदि आज नहीं जागा तो १८५७ के बाद १९४७ कि तरह कई दशाब्दियों उसे अपनी आजादी के लिए संघर्ष करना होगा
समय को सहारा नहीं दे सके तुम तो
समय तुमको बागी बनाता रहेगा
तुम्हारे भी कल को भुगतना पड़ेगा
उठो आप जागो नई इस सुबह को

Tuesday, August 2, 2011

चार सोपान शान्ति एवं जीवन के सहज आदर्श

हर जीव की कमाना है कि वह सुख पूर्वक जीवन को नए आयाम देता रहे वह समाज परिवार राष्ट्र में उच्च आदर्शों कि स्थापना कर पाए, उसके लिए उसने तमाम प्रयास किये हैवह कहाँ तक सफल हो पाया यह स्वयं में प्रश्न चिन्ह ही रहा है आज जब आदमी आदमी का प्रतियोगी हो गया है ,हर जीवन में सुविधाओं कि होड़ मची हो ,ओर हर आदमी अपने निहित स्वार्थों के लिए कुछ भी करने को तैयार हो गया हो वहां शान्ति ,सौहार्द ओर प्रेम की बात करना बेमानी सी दिखाई देती है ,सत्य को कमजोर ओर आदर्शों को रूढ़िवादी कहा जा रहा हो ओर हर आदमी स्वयं को श्रेष्ठ बताने की होड़ में लगा हो तो आप बताइए कि उसे जीवन की मूल शान्ति हासिल कैसे हो पाएगी
इसके लिए धर्म चार सहज योग मध्याम बताता है एक बार प्रोयोग अवश्य करें

अहंकार का त्याग जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है यही से मनुष्य मनुष्य में भेद ओर प्रतियोगिता पैदा होती है
जों दीर्घ काल में आपको केवल अपराध बोध ओर निराशा देती है

सत्य की शक्ति जीवन में सबसे बड़ी है जों मन ओर समय के साथ आपकी आत्म चेतना को ओर अधिक शक्ति शाली बना देती है जिसके परिणाम देर से सही मगर १००प्रतिशत तक आपके मार्ग को अधिक सुगम ओर पारदर्शी बना देते है

स्वयं को अनुवत बनने का प्रयत्न करें जब आप स्वयं को छोटा मान लेतेहै तो आपमें से बड़े बनने या दिखने की छोटी मानसिकता स्वयं विलुप्त हो जाती है

आत्मा का साक्षात्कार करें ओर आत्मचिंतन में स्वयं का आकलन करें की आपके जन्म ओर क्रिया का उद्देश्य क्या है क्या आप स्वयं अपने कर्म विचार में संतुष्ट है
यही सिद्धांत आपको वह शक्ति जिसे आप खो चुके है शायद आपको नई दिशा के साथ उपलब्ध हो सकें

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...