Saturday, June 25, 2011

युवा दौड़ और जीवन के संतोष का स्तर

हम सब अपने ही बुने जालों में फसे समय का इन्तजार कर रहे है ,हर आदमी व्यस्त है उसपर आपके लिए सोचने ओर दुःख मनाने का समय कहाँ है , वह तो अपने ही फेकें पांसो से खेल रहा है , सच न्याय ओर विश्वास सब बहुत छोटे है ओर केवल आदमी ओर उसकी वर्तमान की जरूरतें ,और कुछ पलों का संतोष है जों उसने किसीसे छीन कर अपने नाम लिख लिया है |चलिए यही सही आप अपनी मन बुद्धि और तात्कालिक निर्णय पर खूब खुश होइए .अपने आपको प्रसंषित कीजिये ,और हर स्तर पर स्वयं को श्रेष्ठ साबित कीजिये , परन्तु इन सबके बाद भी आप समस्या में हो तमाम समस्याओं का हल करके भी भी आप और अधिक जटिल व्यक्तित्व वाले बने रहें यह सबसे अधिक दुःख का विषय है |

आज
का युवा भी इसी कार्य विधि से जीवन यापन करने में लगा है , उसे सबसे ज्यादा चिंता अपनी और अपने फैलाए हुए जालों की है , वह अपने अनुसार पूरा जीवन चक्र तय करता है ,कार्य करता है ,कई लक्ष्यों को एकसाथ चलता रहता है और अपने आपको साबित करने की कोशिश में लगा रहता है ,फिर भी बहुत तनाव और अस्थिर मानसिकता में बना रहता है यह स्वयं में बड़ा प्रश्न चिन्ह है |


दोस्त
जीवन के हर क्षण को ईमान और विश्वास के सहारे जीना एक बड़ी कला है और उसके लिए अपने उद्देश्य सिद्धांत और रास्ता बनाना थोडा कठिन अवश्य है मगर एक बार यदि उस रास्ते को अपनाया तो जीवन स्वयम आपको सिद्ध कर देगा |सत्य का मार्ग थोडा टेडा जरूर है मगर एक बार उसे हमने जीवन में प्रश्रय दिया तो शायद वह हमारी बड़ी पहचान बन जाएगा जहाँ से शायद हमें जीवन के सटीक मार्ग मिल सकें |


लघु
मार्ग आपको थोड़े समय का शारीरिक मानसिक सुख दे सकते है मगर जीवन आपको ऐसा अपराध बोध दे जाता है जहाँ से आप ही स्वयं को माफ़ नहीं करपाते आवश्यकता इस बात की है की आप अपने उद्देश्यों और सिद्धांतों को और मजबूत कीजिये शायद भविष्य आपको वह स्वर्णिम युग दे सके जिसमें आपके स्वप्न निहित हों |


दोस्त
ये मेरा मार्ग है शायद मै आज अपने सत्य और सिद्धांतों के कारण प्रासंगिक भी हुआ तो शायद मै अपनी रूढी वादी आत्मा में स्वयं को प्रसंशा दे सकूँ जों आज के युग में दुर्लभ ही है |

Tuesday, June 21, 2011

ईश्वर सत्य है ---परन्तु आपके साथ है -महसूस करें

शुभ कर्म करता तो स्वयं तर जाए अपने कर्म से
ज्ञानी तरे निज ज्ञान से धर्मात्मा निज धर्म से
जिसके न कुछ आधार हो कुल दृव्य विद्या बल न हो
तेरे सकल बेकल सकल कल प्रान्त में भी कल न हो
उस दीन के बंधू हो तुम बल हीन की प्रभु शक्ति हो
अशरण शरण भव भय हरण तुम ज्ञान कर्म सुभक्ति हो
अर्थात आप यदि अच्छे कर्म वाले है तो वह कर्म है ,ज्ञानियों का ज्ञान धर्मात्माओं का धर्म रूप भी वही है ओर जिसके पास कुल .धन ,विद्या ,ओर बल आदि कुछ भी न हों मगर उसमें आपका जिज्ञासु भाव बना हों तो आप स्वयं उसके विश्वास से बड़े बन कर धर्म कर्म विद्या बल धन ज्ञान रूप में परणीत होकर अपना अस्तित्व बता देते हो
चाहे वह निराकार का उपासक हो या साकार का उसे पूर्ण रूप में आपका ज्ञान है हो जाता है

ईश्वर को आप कुछ भी मान सकते है ज्ञान माने कर्म माने निराकार माने या साकार सब उसका अस्तित्व है ओर हमे वह स्वीकार करना ही होता है एलोपथी ने मानवीय जीवन को बहुत बड़ी सेवा दी जिसे विज्ञान का परिष्कृत रूप माना गया मगर उसने भी अपने प्रथम पेज पर यह लिखा कि
आई ट्रीट ही क्योर्स
अर्थात मै केवल इलाज करता हूँ मगर ठीक करने कि शक्ति उस ब्रह्मांडीय शक्ति का काम है दोस्तों मै इसे ही ईश्वर मानता हूँ
सम्पूर्ण प्रुकृती में हर चीज किसी न किसी चीज से बंधी या सम्मोहित है ओर उसका मग्नेटिक फील्ड कुछ आवृतिया प्रेषित कर रहा है वही जीवनी शक्ति का स्त्रोत है यह नाद ,ध्वनि से पूर्णत बंधी है इसकी गति शीलता के लिए उसे इसे समयानुसार चार्ज करना होता है ओर वह एक नियत समय सीमा में हर चीज .जीव केपास उसे चार्ज करने अवश्य आता है बस इसी सामीप्य को आपको समझाना महसूस करना है आज वैज्ञानिक मानव सेल खून ओर चेतना कुछ नहीं बना पाया तो यह जिसने भी बनाया है वह ईश्वर होगा जिसे अपनी कृति कि चिंता सबसे ज्यादा होगी
सारत;यह कि ध्वनि नाद ओर मग्नेटिक फील्ड का आपस में गहरा सम्बन्ध है दोस्तों वेद इस ध्वनि को मंत्र मानता है जिसका सम्बन्ध पृकृति कि जीवनी शक्ति के जीवन सेल से है ये ध्वनि अपने अनुरूप कार्य ओर निर्माण स्वयं कर लेती है ओर इंसान इसे ओर करीब महसूस कार सकता है
पृकृति के अनगिनत जीवन सेल अलग अलग मन्त्रों से बंधे है ओर उनके कार्य भी अलग है इसलिए मै ये दावा कर सकता हूँ कि हर जीवन के हर काम ओर सोच को सम्मोहित किया जासकता है ओर उसे महसूस करके अधिक सशक्त जीवन की शुरुआत की जा सकती है

Tuesday, June 14, 2011

ईश्वर सत्य है ---------

कभी होता भरोसा कभी होता भरम खुदा तू है कि नहीं
अनादी काल से मनुष्य की सोच रही है कि वह सर्वशक्तिमान की शक्तियों से अविभूत रहे उसकी सारी समस्याएं ,कमिंयां और अपूर्णताएँ पलक झपकते हीदूर हो जाए यही एक विश्वास एक धनात्मक मानसिकता के साथ वह अपने गंतव्य की और अग्रसित रहे|उसके लिए उसने हजारों विश्वास खड़े किये ,और इतिहास साक्षी है कि वह उसमें सफल भी रहा है |
वेद कि ऋचाएं कुरान शरीक कि आयातें बाइबिल के विश्वास कि कहानियां और हर धर्म का अपने अनुरूप संचालन एक अभूतपूर्व विश्वास नहीं तो क्या है |ब्रह्माण्ड का हर जीव किसी किसी विश्वास के सहारे माना गया है और स्वयं ब्रह्माण्ड भी उन अवयवों के भाग से निर्मित है जिसे न्यूट्रोंन प्रोटोंन ,इलेक्टोन और इसकी अति सूक्ष्म इकाइयों तक क्रिया शील देखा है वैज्ञानिकों ने |ये अवयव जिस केंद्र के चारों और एक नियत गति से चक्कर लगा रहे है वह विश्वास है एक अन सुलझा किन्तु गतिशील क्रिया जों अपने केंद्र से बंधी है|

दोस्तों इश्वर की परिभाषाएं हर समाज और मनुष्य कीअलग ही हैक्योकि वह अनुभव गम्य है और वही उसका विश्वास है |कोई एक शक्ति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को संचालित कर रही है ,कुछ लोग इसे ईश्वर मानते है कुछ लोग विज्ञान दौनों ही मत अपनी जगह सही है क्योकि कोई शक्ति सपूर्ण प्रकृति में क्रिया शील अवश्य है| वेद कहता है
एको देवः सर्वाः भूतेशु गूढ़ ;सर्व वापी सर्व भूतनत्रात्मा
कर्माध्यक्ष ;सर्व भूत ; कर्म वही केवलो निर्गुनाश्य ;

अर्थात सम्पूर्ण पृकृति में केवल एक ही शक्ति है और वह जड़ चेतन सबको संचालित कर रही है और लोग इसे किसी भी नाम से पुकारें वह शक्ति सबमें अन्तर्निहित है |
वही कर्म का आधार है वही चेतना रूप है वही आदर्शों का शिखर है वही अनुभव गम्य है ओर वही निर्गुण एवं सगुन है |

दोस्तों आदर्श कर्म ओर अच्छे विचार ओर उनकी सोच सब उसका ही भाग है |अथर्व वेद में जिन देवताओं को शक्तिमान माना गया है उन्होंने सारी शक्ति केन्द्रित कर एक शक्ति का निर्माण किया है वह भी वही रूप है |

अब एक मत यह मानता है की क्या संसार के हर कार्य का सम्बन्ध ओर उसका संचालन उस ईश्वर के नाम पर कैसे हो सकता है तो दोस्तों यहाँ मै आपको विज्ञान तक ले जाना चाहूँगा ,परमाणु ऊर्जा का प्रत्येक सूक्ष्म कण जों अपने स्थिर केंद्र का चक्कर लगा रहे है उनका हर भाग स्वयं एक वृहत चक्र है ओर हर सूक्ष्म का सम्बन्ध किसी सांसारिक क्रिया से जुड़ा है ओर वही ब्रह्माण्ड की क्रिया आपको ओर संसार को एक प्रति ध्वनी दे रही है यदि आप यह पहचान लें तो शायद हर होने वाला कार्य आपके प्रयासों से आकर्षित होकर आपके अनुरूप ही होगा | इसे मै ईश्वर नाम देता हूँ आपकुछ ओर भी कह सकते है |


शेष फिर




अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...