Tuesday, May 26, 2009

चिंतन की सार्थकता

चिंतन की सार्थकता



आदमी नितांत अकेला ही था जब जब मन के भाव अपनी उत्कर्ष सीमा पर पहुचे उसे बार बार अकेले पन
का अहसास हुआ उसके मष्तिष्क में यह बात घर करने लगी की उसे दुःख सुख और अपने निर्णय एकगहन एकांत में ही लेने पड़ेंगे और उसने लिए भी लेकिन बार बार यह प्रश्न उठता रहा की शायद वो अपने नज़दीक लोगो का अति चहेता है वोलोग उसके बिना जी ही नही सकते उनका लालन पालन उसे ही करना है या वह उनके आश्रित है मगर वह यह भूल गया की एक स्वतंत्र सत्ता उसके सारे भार संभाले हुए है उसके एकांत में भी वह सहयोगी है और उसका अस्तित्व संपूर्ण ब्रह्माण्ड में परिलक्षित है जो पृकृति और जीवो का पालन हार और जींस का सबसे छोटा अणु है जिसकी जीवन्तता गति शीलता से परिलक्षित है
यही गति शील संरचना जीवन के महत्व को बनाये हुए है यही धनात्मक चिंतन का आधार है यही जीवन की वह सोच है जिसे हम परा दृष्टी कहतेहै फिर इसपर की आवश्यकता विचार क्यो नही किया आदमी के चिंतन का विषय यही से आरम्भ अच्छा है
अब जब सब आस पास का वातावरण ही सोच से परे परे अपने अपने स्वार्थो की आंधी में बह रहे है सबका एक मकसद है की आप उनकी आपूर्तियों को कहातक पूरा कर पाते है आप उनके कहातक के साथी है और प्रत्यक्ष रूप से आप का क्या ओचित्य है यह कटु प्रश्न आदमी के समनेहमेशा खड़े  रहते है वो इन्हे अनदेखा कर जीवन पथ पर  बदता रहता है और अकेला नितांत अकेला बना उनके उत्तर की खोज करता रहता है की उसका अपना है कोन मगर यही भ्रम बना रहता है की मैं शायद अपने आस आस पास के लोगो से अपनत्व पा सकू मगर समय की दोड़ मे बदलते मानदंड नै सोच में भागते दोडते उसके अपनो पर समय ही कहा था की वे अपनी उपलब्धियों से ऊपर कुछ सोच पाते




समय से हारता हुआ सत्य अपनी मृग मरीचिका का ख़ुद शिकार हो रहा था और मन था की वह भ्रमात्मकता के मध्य सब जानकर भी सार्थक रहना चाहता था परन्तु समय का कड़वा सच जब सामने आया तो उसे लगा की वह हजारो की भीड़ में अकेला उदास निढाल सा खडा  है उसके पास उसका कोई नही था कुछ छोड़ कर जा चुके थे कुछ छोड़ने को उद्यत थे और वह सब आकलन करता कोमा की स्थिति में था गुजरा समय मानस पटल पर बार बार साकार हो उठता था समय और मष्तिष्क का समन्वय चिंता अवसाद और घृणा मे था आगामी भविष्य खतरा बन गया था और उसके साथ वह पृकृति पुरूष रह गया था नितांत अकेला

शायद यही से उसके अभुदय की कहानी चालू हुई उसका बल उसका सत्य कुछ खोने की चिंता से मुक्त था उसे इश्वर के विशाल भण्डार से बहुत कुछ हासिल होना था उसने पूरी ताकत से नए युग का स्वागत किया और वह जीवन की मिसाल बन बैठा. |   




Sunday, May 24, 2009


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इंतज़ार
जीवन तो नाम ही इंतज़ार का था पैदा होने से मृत्यु पर्यंत तक तो केवल इंतज़ार ही तो था जो मरे साथ रहा आदमी का पूर्ण सत्य था वह इंतज़ार जिसे वह कभी स्वीकार न कर सका जीवन मगर सत्य जनता ही था उसने चाहते न चाहते अपने भाव से हर पल का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार किया :
योगी ध्यान की संपूर्ण मुद्राओं मे इंतज़ार करता रहा तो दूसरी तरफ़ भक्ती मार्ग अपने आराध्य का मार्ग देखता रहा चकवा पक्षी स्वाति नक्षत्र के जल की कहानी अपने नन्हे बच्चो को समझाता रहा और पूर्ण सत्य को जानने वाला हर महा पुरूष इस दुविधा मे रहा की वो सही था की नही जो पूर्ण मानताथा उसे इश्वर ने धोखे बज और फरेबी माना जो भोला सहज और जिज्ञासु था उसे उसने अधिक करीब माना जीवन के हर पल ने जीवन को इंतज़ार कीपरिभाषाये दी और आदमी उसका ही खिलौना बना रहा धर्म संस्कृति समाज अपनी अपनी सोच के साथ इंतज़ार करते रहे आदमी मूक भाव से उसे झेलते झेलते स्वयं एक पहेली बन बैठा

बार बार प्रश्न यह उठा कि उसे ऐसा इंतज़ार करना ही नही था मगर शायद वो मजबूर था
माँ के गर्भ मे बड़ा होने के लिए अपनों का अपनात्वा पाने के लिए समाज के साथ चलने केलिए शिक्षा व्यव्हार और जीवन कि हर छोटी विषय स्थिति केलिए उसे दीर्घ कालिक इंतज़ार करना पड़ा था बाद मे उसके परिवर्तनों का युग शुरू हुआ वहा हर आदमी अनेक मुखोटे लगाये था और आदमी एक बार फिर मानसिक द्वंद men था कि उसका अपना है कोन

हम जिस युग मे जी रहे है वो तो मुर्दा खोरो का हुजूम है जो शारिरीक भूख के बाद अपने संबंधो का अर्थ भी नही जानते मन आत्मा और सत्य उनके वश के बहार ही है और इसमे हमें इंतज़ार है अपने उस मसीहा की जो हमारी आत्मा के सत्यha कोlh जान पाता और हम बैठे है उसी मसीहा कि तलाश मे जीवन छोटा पड़ जाता है इंतज़ार का समय नही रहता सब कुछ हारा सा जान पड़ता है ।
हम अपनी पूरी शक्ति से इंतज़ार करने लगते है जीवन के हर भद्दे मजाक के लिए
अब जीवन के आरम्भ से अंत तक आदमी के साथ सबसे ज्यादा जिसका साथ रहा वो था इंतज़ार लोग आते
रहे जाते रहे आदमी
आदमी बेबस सा करता रहा था इंतज़ार माँ के गर्भ से चिता के अन्तिम पड़ाव के समय तक उसे इंतज़ार ही तो करना पड़ा था हर आदमी से अच्छा बुरा व्यवहार करके उसने किया था केवल इंतज़ार

गीता ने अपने पूर्ण सार मे कहा ' सुख दुखे समे कृत्वा लाभा लाभे जाया जयो '
अर्थात लाभ हनी जे पराजय और सुख दुःख मे समान रहिये एक साक्षी भाव पैदा करे जो नाटो इंतज़ार का मोहताज़ होगा हर आदमी से अपेक्षा करता दिखाई देगा
सारांश यह की जीवन को केवल वर्तमान में जिए हर पल से जो चुराना है वह प्राप्त करे बिना संकोच के
नही तो कल सब बदल जनiहै एक इंतज़ार में और अगला जन्म भी अपने थोथे मूल्यों में हारा थका और निराश सा कर रहा होगा एक सुदीर्घ और नही ख़त्म होने वाला इंतज़ार


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yours

A.K.B

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