एक राजा था जो अपनी प्रजा और राज्य के राज काज में निपुण था मगर उसमे केवल यह अवगुण था कि वह अपने सामने किसी की विद्वता को मानने को तैयार नहीं होता था , बहुत से शुभ चिंतकों ने उसे समझने का प्रयत्न किया मगर वह मानाने को ही तैयार नहीं होता था एक बार राजा का एक मात्र पुत्र जंगल में शिकार पर गया और सकुशल लौटने कोही था अचानक एक सर्प पेड़ से उसके उपर गिरा और उसने उसे काट लिया तत्क्षण उस उस राजकुमार की मृत्यु हो गई , लोगो ने बताया यहाँ पास ही एक तपस्वी रहते है उन्हें बुलाया जाये वो शायद आपकी कुछ सहायता कर पाये , राजा के सामने केवल अन्धकार छाया हुआ था उसने कहा अब मै हार गया हूँ आपलोग जैसा चाहो वैसा करो मंत्री ने उस सन्यासी से प्रार्थना की और सन्यासी ने आकर कुछ एक जड़ी बूटियों से राजकुमार को जीवित कर दिया राजा मूर्खों सामान हतप्रभ सा उसे देखता रह गया , बाद में उसने साधु से कहा हे देव मेरी और से ये तुच्छ भेंट स्वीकार करें साधु ने देखा हीरे मोतियों से भरे कुछ थाल है उसने कहा बस इतना सा , राजा ने कहा पूरा खजाना दे देता हूँ स्वीकार करें आप साधु ने कहा राजा तेरा खजाना है ही कितना ,राजा बोल पूरा राज्य लेलो साधु बोला बहुत छोटा है तेरा राज्य, राजा को क्रोध आ गया वो कहने लगा आपपर कुछ है नहीं और मुझे आप कंगाल ठहरा रहे हो बताओ क्या है आपके पास साधु शांत भाव से बोला राजन आओ बैठो मैं बताता हूँ पुत्र जब आप घर परिवार , राज्य स्थान के मालिक होना बताते हो तो आप केवल उसके ही मालिक होते हो और आपके आधीन जो होते है बस उनका ही आधिपत्य होता है आपपर. और आप कभी अपने अंतरकी शक्ति और उसके साम्राज्य का अनुभव करके तो देखो ,एक बार इन बंधनों से हट कर देखें तो सारा आसमान और पूरा संसार आपका हो जाता है ।सधु ने राजा को एकाग्र करके मन का शक्ति शाली वैभव दिखाया राजा को लगा वो आकाश में घूम रहा है हजारों सूर्यों की रौशनी के साथ उसे मालूम होगया की साधु सबको तुच्छ क्यों कह रहा है उसे राज्य अपनी सम्पत्ति सब बहुत छोटी दिखाई देने लगी और वह भी परम सत्य की खोज में साधु के साथचल दिया |
आज हम जिस समय से है वहां केवल भौतिक संसाधन और हर स्वयं को श्रेष्ठ बताने की होड़ है हम एक दूसरे को अपने सामने छोटा सिद्ध करके स्वयं को अतुलनीय बनाने में लगे रहते है जबकि हमारी सम्पूर्ण शक्ति इसमें लगी रहती है कर्त्तव्य , आदर्श और सरकारात्मक गुणों चाहे समाहित करें या नहीं करें लेकिन अनेक बुराइयों , कमियों और नकारत्मकताओं के बाद भी श्रेष्ठ बने रहे , काल अबाध गति से चलता रहता है ,हर युग में मनुष्य अपने आपको सर्वोच्च बनाने की कोशिश में लगा रहता है फिर एक दिन समय के हाथों हारा चला जाता है , कहने का अर्थ यह की समय उसके प्रभुत्व को मानने से इंकार कर देता है |
हर इंसान को ईश्वर ने पूर्ण शक्ति , धर्म , और सकारात्मकता के गुण दिए है मगर हर आदमी सफल नहीं हो सका अधिकांश बीच में ही अपने मूल लक्ष्य से भटकते दिखाई दिए क्योकि उस व्यक्ति को पूर्ण बना कर परीक्षा लिए हजारों प्रलोभन संसार में फ़ेंक दिए है जिनमे उलझ उलझ कर व्यक्ति अपने मूल उद्देश्य या सफलता तक नहीं पहुँच पाता युवा अवस्था में उसने बहुत आदर्श , सकारात्मक गुण , एवं सार्थक उद्देश्यों को लक्ष्य बनाया फिर जैसे ही धीरे धीरे बढ़ा उसे समाज पैसा , योवन , संसाधन ऐशोआराम , और की तमाम रंगीनियाँ, आधुनिक कहलवाने के मद ने घेर लिया और उसके मूल उद्देश्य समय निकलने के साथ हारते चले गए और अधिकाँश लोग उस ईश्वर की श्रेष्ठ कृति होकर भी स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध नहीं कर सके |
इस समय की गति में सफल सिद्ध वही हो पाये जिनके लक्ष्य और कर्म के संकल्प पूर्ण शक्ति संपन्न थे , अनादि काल से यह कथा महाभारत में द्रोण ने अर्जुन से चिड़िया की आँख के लक्ष्य के रूप में कही है और वही सत्य आपको सफल या असफल सिद्ध करदेगा , सफलता के कोई लघु मार्ग होते ही नहीं है , जो लोग लक्ष्य की नीरसता भरे कठिन परिश्रम को ही जीवन मान लेते है समय उनके सामने समय स्वयं नतमस्तक हो जाता है ,उनका केवल एक गीत होता है
जिंदगी रंगीनियों को देख लूँगा फिर कभी ,
वक्त मुझको मंजिलों पर खुद फतह पाने तो दे
अर्थात उसे केवल यह मालूम रहता है की उसे कौन सा काम किस प्राथमिकता पर करना है , और यही मूल मंत्र उसे सफलता के उस पायदान पर खड़ा कर देता है जहाँ समय उसका प्रसंशक बन जाता है |
जीवन में इस आत्म नियंत्रण के लिए निन्म प्रयोग करके अवश्य देखे
आज हम जिस समय से है वहां केवल भौतिक संसाधन और हर स्वयं को श्रेष्ठ बताने की होड़ है हम एक दूसरे को अपने सामने छोटा सिद्ध करके स्वयं को अतुलनीय बनाने में लगे रहते है जबकि हमारी सम्पूर्ण शक्ति इसमें लगी रहती है कर्त्तव्य , आदर्श और सरकारात्मक गुणों चाहे समाहित करें या नहीं करें लेकिन अनेक बुराइयों , कमियों और नकारत्मकताओं के बाद भी श्रेष्ठ बने रहे , काल अबाध गति से चलता रहता है ,हर युग में मनुष्य अपने आपको सर्वोच्च बनाने की कोशिश में लगा रहता है फिर एक दिन समय के हाथों हारा चला जाता है , कहने का अर्थ यह की समय उसके प्रभुत्व को मानने से इंकार कर देता है |
हर इंसान को ईश्वर ने पूर्ण शक्ति , धर्म , और सकारात्मकता के गुण दिए है मगर हर आदमी सफल नहीं हो सका अधिकांश बीच में ही अपने मूल लक्ष्य से भटकते दिखाई दिए क्योकि उस व्यक्ति को पूर्ण बना कर परीक्षा लिए हजारों प्रलोभन संसार में फ़ेंक दिए है जिनमे उलझ उलझ कर व्यक्ति अपने मूल उद्देश्य या सफलता तक नहीं पहुँच पाता युवा अवस्था में उसने बहुत आदर्श , सकारात्मक गुण , एवं सार्थक उद्देश्यों को लक्ष्य बनाया फिर जैसे ही धीरे धीरे बढ़ा उसे समाज पैसा , योवन , संसाधन ऐशोआराम , और की तमाम रंगीनियाँ, आधुनिक कहलवाने के मद ने घेर लिया और उसके मूल उद्देश्य समय निकलने के साथ हारते चले गए और अधिकाँश लोग उस ईश्वर की श्रेष्ठ कृति होकर भी स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध नहीं कर सके |
इस समय की गति में सफल सिद्ध वही हो पाये जिनके लक्ष्य और कर्म के संकल्प पूर्ण शक्ति संपन्न थे , अनादि काल से यह कथा महाभारत में द्रोण ने अर्जुन से चिड़िया की आँख के लक्ष्य के रूप में कही है और वही सत्य आपको सफल या असफल सिद्ध करदेगा , सफलता के कोई लघु मार्ग होते ही नहीं है , जो लोग लक्ष्य की नीरसता भरे कठिन परिश्रम को ही जीवन मान लेते है समय उनके सामने समय स्वयं नतमस्तक हो जाता है ,उनका केवल एक गीत होता है
जिंदगी रंगीनियों को देख लूँगा फिर कभी ,
वक्त मुझको मंजिलों पर खुद फतह पाने तो दे
अर्थात उसे केवल यह मालूम रहता है की उसे कौन सा काम किस प्राथमिकता पर करना है , और यही मूल मंत्र उसे सफलता के उस पायदान पर खड़ा कर देता है जहाँ समय उसका प्रसंशक बन जाता है |
जीवन में इस आत्म नियंत्रण के लिए निन्म प्रयोग करके अवश्य देखे
- जीवन बहुमूल्य है और इसमे प्रति पल कुछ सकारात्मक किया जा सकता है , मै किस प्रकार इसे सिद्ध कर सकता हूँ , क्या मै सकारात्मक कर्म के लिए संकल्पित हूँ अथवा नहीं |
- आत्म नियंत्रण का अर्थं है , मन ,वाणी ,कर्म से वो मान दंड स्थापित कर पाएं जो भविष्य में समाज को एवं मानवीयता एक उदाहरण बन कर मिल पाये , अर्थात वह कल्याण कारी हों |
- स्वयं के विकास और कर्म को ऐसा सिद्ध करने का प्रयत्न करें कि वह आपके लाभ के साथ सामाजिक हिट का भी कारक बन सकें |
- संकल्प की प्राथमिकता से पहले यह विचार करलें कि संकल्प की आपूर्ति के समय तक अनगिनत समस्याएं और प्रलोभन आपको आकर्षित करेंगे , और उनका प्रभाव आपको असफल सिद्ध कर देगा |
- अपने संकल्प और शक्ति को बार बार दोहराते रहें , प्रति दिन आपके इस प्रकार याद करने से यह संकल्प आपको पूर्ण सफल कर देगा ,इसके लिए स्वयं को जाग्रत रखें |
- आत्म नियंत्रण के प्रश्न पर यह हमेशा याद रखें कि हम स्वयं अपने हर अच्छे बुरे कर्म के लिए जिम्मेदार है और हमारा हर कार्य हमें अच्छा या ख़राब सिद्ध करने की शक्ति रखता है |
- स्वयं को संयमित और और सकारात्मक ऊर्जा से ओत प्रोत देखे और यह अनुभव करें कि संसार को शक्ति देने वाली कोई अभूतपूर्व शक्ति आपको दिशा दे रही है , इससे आपको साक्षात , धनात्मक अनुभव हो सकेंगे |
- आप अपने हर कार्य को समय बद्ध , तरीके से करने का प्रयत्न करें , आप दिशा भ्रमित तब ही होते है जब आपके पास कोई समयानुरूप रूप रेखा नहीं होती |
- अपने कार्यों और मन मष्तिष्क के आवेगों को निरंतर देखते रहिये की क्या कोई और श्रेष्ठ विधि अपनाई जा सकती है , अपनी क्रिया विधि कीकमियों को दूर करते रहिये |
- आत्म नियंत्रण का सबसे बड़ा सूत्र यह है कि स्वयं को अंतरात्मा की आँखों से उस प्रकार देखें कि शरीर के किये गए कार्यों पर आपको आपकी आत्मा दिशा निर्देशित करती रहे , वह आपको आपके हर कार्य के बारे में दिशा निर्देशित करती रहे और आप स्वयं को सुधरते रहे , ये तकनीक आपको पूर्ण आत्म नियंत्रण सीखा देगी |