पिछले दशक में युवाओं के साथ बहुत बड़े बड़े सामाजिक परिवर्तन हुए ,और इस समय लगभग ५ लाख युवाओं ने आत्महत्याएं की जो समाज के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है|युवा तो किसी समाज संस्कृति और सभ्यता कि नींव होता है ,उसमे अपरमित शक्ति होती है ,वह तूफानों को मोड़ने कि शक्ति रखता है और उसे ऐसा ही होना चाहिए | ख़राब समय भी निकल ही जाएगा ,आगामी भविष्य यह संकल्प लिए खड़ा है क़ि आपके नए जीवन का नव आरंभ आज से ही हुआ है ,एक बार फिर सकरात्मकता का संकल्प लेकर आगे बढ़ों समय आपको अमर-सफल सिद्ध कर देगा ]
Friday, July 29, 2011
स्ट्रीट लाइट बनो
हर कदम पर रौशनीकी उम्मीद है जों .जिसकी हर किरण दिशा ओर मार्गदर्शन करती है ओर अन्नत तक बिखरे पड़े मार्गों का पथ प्रदर्शन करती है ,जों मार्ग के हरेक पथिक को एक लाइट पार करते ही दूसरे की उम्मीद बंधा देती है शायद आदमी भी इसी मार्ग दर्शक का मायने होता तो कितना अच्छा होता समाज मेंफैली भ्रांतियों का निराकरण खुद आदमी ही कर देता द्वेष जलन ओर प्रतियोगिता स्वयं आदर्शों में बदल जाती ओर सम्पूर्ण मानवीयता एक आदर्श बन बैठती शायद इससे अच्छा मानव समाज कौन बना पाता जहाँ हर आदमी एक स्ट्रीट की तरह सहारा बन जाता सौन्दर्य हो जाता ओर पथ प्रदर्शक भी ,प्रतियोगिताएं सहयोग हो जाती ,ओर हर इंसान उतना ही महत्वपूर्ण हो जाता जैसा की एक अकेला स्तम्भ
Thursday, July 21, 2011
गलतियाँ ओर सॉरी
आदमी क्या करे खता के सिवा
लोग नाहक खुदा से डरते है
जीवन में हर कदम पर हम अपने को गलत पते रहते है मन का अहम् हमे अपनी गलतियाँ स्वीकार नही करने देता वह हमें एक बनावटी परिवेश से जोड़े हुए बड़ा ओर पूर्ण बताने की कोशिश करता रहता है जबकि मन यह जानता है कि वह गलत है फिर भी दूसरों को समाज को ओर अपने आपको हम झुथियो दिलासा दिए रहते है कि हम गलत हो ही नही सकते ,दीर्घज काल में यही सब हमे नितांत एकांकी कार देता है ,अतीत मुंह चिडाने लगता है कि हम केवल अकेले ओर निरीह जान पड़ते है स्वयं को , ओर तब हम पर कोई विकल्प नहीं होता अपने को सुधारने का ।
आवश्यकता इस बात कि है कि हम जितनी जल्दी गलतियाँ करें उतनी ही शीघ्रता से उन्हें स्वीकार करें ,कोई भी इंसान हमारे दुःख का कारक हो ही नहीं सकता हम स्वयं उसके निर्माणक होते है जब कि बार बार हम स्वयं को श्रेष्ठ ओर दूसरों को गलत साबित करने में समय व्यर्थ गवाने के आदि हो चुके होते है।
शेष फिर
लोग नाहक खुदा से डरते है
जीवन में हर कदम पर हम अपने को गलत पते रहते है मन का अहम् हमे अपनी गलतियाँ स्वीकार नही करने देता वह हमें एक बनावटी परिवेश से जोड़े हुए बड़ा ओर पूर्ण बताने की कोशिश करता रहता है जबकि मन यह जानता है कि वह गलत है फिर भी दूसरों को समाज को ओर अपने आपको हम झुथियो दिलासा दिए रहते है कि हम गलत हो ही नही सकते ,दीर्घज काल में यही सब हमे नितांत एकांकी कार देता है ,अतीत मुंह चिडाने लगता है कि हम केवल अकेले ओर निरीह जान पड़ते है स्वयं को , ओर तब हम पर कोई विकल्प नहीं होता अपने को सुधारने का ।
आवश्यकता इस बात कि है कि हम जितनी जल्दी गलतियाँ करें उतनी ही शीघ्रता से उन्हें स्वीकार करें ,कोई भी इंसान हमारे दुःख का कारक हो ही नहीं सकता हम स्वयं उसके निर्माणक होते है जब कि बार बार हम स्वयं को श्रेष्ठ ओर दूसरों को गलत साबित करने में समय व्यर्थ गवाने के आदि हो चुके होते है।
शेष फिर
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अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...